वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन
वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों की बढ़ती मात्रा व सान्द्रण से उत्पन्न ग्रीन हाउस प्रभाव द्वारा भूमण्डलीय तापमान में वृद्धि हो रहा है
ग्रीन हाउस गैसों द्वारा भूमंडलीय तापमान में योगदान की दृष्टि से कार्बन डाइऑक्साइड पहले नम्बर पर, दूसरी नम्बर पर मिथेन, तीसरे नम्बर पर नाइट्रस-ऑक्साइड, और उसके बाद क्लोरो-फ्लोरो कार्बन व अन्य गैसें आती हैं। भूमंडलीय तापमान क्षमता की दृष्टि से इनमें इन्फ्रारेड विकिरण या किरणों को शोषित करने की क्षमता में भिन्नता होती है।
वैश्विक तापन के परिणामस्वरूप उत्पन्न मौसम एवं जलवायु में परिवर्तन आज वैश्विक समस्याओं में से एक है। आर्थिक एवं विकासात्मक गतिविधियों का विस्तार, बढ़ती जनसंख्या और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल आदि ऐसे कारण हैं जिनसे मानव जनित ग्रीन हाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी अनुमानोें से संकेत मिलता है कि विकासशील देशों पर कई तरह के दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं जिनसे घटनाओं को चरम तक ले जाना जैसे “लू” चलने और भारी वर्षा होने की आवृत्ति, अवधि और तीव्रता में बदलाव आये हैं। जलवायु परिवर्तन से मानव स्वास्थ्य को रोगवाहकों (मच्छर आदि) से फैलने वाली बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाएगा।
पृथ्वी के तापमान के बढ़ने तथा धरती की जलवायु में परिवर्तन से केवल समुद्र तल के ऊपर उठने की ही समस्या का सामना होगा, ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसके अतिरिक्त सूखा का प्रभाव बढ़ेगा
इन सभी क्षेत्रों में सूखा के कारण कृषि उपज में कमी आएगी, साथ ही मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया, जो इन सभी क्षेत्रों में पहले ही एक बड़ी समस्या है, वह और भी तीव्र हो जाएगी। इसका परिणाम होगा कि लोग बड़ी संख्या में ऐसे क्षेत्र से पलायन करेंगे
मौसम और जलवायु
किसी स्थान विशेष पर, किसी खास समय वायुमंडल की स्थिति को मौसम कहा जाता है। मौसम के अन्तर्गत अनेक कारकों यथा हवा का ताप, दाब, उसके बहने की गति और दिशा तथा बादल, कोहरा, वर्षा, हिमपात आदि की उपस्थिति और उनकी परस्पर अन्तरक्रियाएँ शामिल होती हैं।
न्यूयार्क स्थित नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जी.आई.एस.एस.) के मौसम विज्ञानियों के अनुसार वर्ष 2007, वर्ष 2008 के साथ शताब्दी की दूसरा सबसे गर्म वर्ष था। पिछले 30 वर्षों से पृथ्वी पर जो गर्मी बढ़ रही है उसकी मुख्य वजह हम हैं। इस ताप वृद्धि के लिये मानव निर्मित ग्रीन हाउस गैसें जिम्मेदार हैं।
जलवायु परिवर्तन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारण
1. औद्योगी करण (1880) से पूर्व कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 280 पीपीएम थी जो 2005 के अन्त में बढ़कर 379 पीपीएम हो गई है।
2. औद्योगीकरण से पूर्व मीथेन की मात्रा 715 पीपीबी थी और 2005 में बढ़कर 1734 पीपीबी हो गई है।
3. मीथेन की सान्द्रता में वृद्धि के लिये कृषि एवं जीवश्म ईंधन को उत्तरदायी माना गया है।
4. समुद्र का जलस्तर 1-2 मि.मी. प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है।
5. पिछले 100 वर्षों में अंटार्कटिका के तापमान मेें दोगुना वृद्धि हुई है तथा इससे बर्फीले क्षेत्रफल में भी कमी आई है।
6. उत्तरी अटलांटिक से उत्पन्न चक्रवातों की संख्या में वृद्धि हुई है।
भारत की जलवायु पर प्रभाव
1. इक्कीसवीं सदी में वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाने से ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण भारत की जलवायु भी कुछ गर्म हो जाएगी वायुमंडल के ताप में सबसे अधिक वृद्धि (3.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक) भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी इलाके में होगी। पर अरब सागर और बंगाल की खाड़ी की ताप वृद्धि होगी लगभग 2.5 डिग्री सेल्सियस।
2. वायुमंडल के ताप में वृद्धि होने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रभाव वर्षा के वितरण पर पड़ सकता है। वायुमंडल मे उष्णतर होते जाने से मानसून द्रोणी के उत्तर की ओर सरक जाने की सम्भावना है। यदि ऐसा हो गया तब भारतीय उपमहाद्वीप पर होने वाली वर्षा की मात्रा में वृद्धि हो सकती है।
3. बंगाल की खाड़ी में चक्रवात उस समय पैदा होते हैं जब सागर सतह का ताप 27 डिग्री सेल्सियस या अधिक होता है। वायुमंडल के ताप में वृद्धि हो जाने से बंगाल की खाड़ी में सतह के पानी के ताप के बढ़ जाने की सम्भावना है। इसके फलस्वरूप अधिक विनाशकारी चक्रवातों के पैदा होने की सम्भावना बढ़ जाएगी।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न भारत के लिये सम्भावित समस्याएँ-
1. ऐसा अनुमान है कि 21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत में वायुमंडल का औसत तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। उत्तरी तथा पश्चिमी भाग में यह परिवर्तन अधिक होगा।
2. गंगा नदी की घाटी के पश्चिमी भाग में वर्षा ऋतु में कमी होगी। दूसरी ओर गोदावरी तथा कृष्णा नदी की घाटियों में वर्षा ऋतु की लम्बाई बढ़ जाएगी। इसका परिणाम होगा कि देश के कुछ भाग में सूखे का प्रकोप बढ़ेगा। तो दूसरे क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
3. वर्षा ऋतु के उपरान्त बंगाल की खाड़ी में समुद्री तूफान अधिक आएँगे और ऐसे तूफानों के मामले में हवा की गति भी अधिक रहेगी। इसका अर्थ कि समुद्र तट पर बसने वाले लोगों के लिये समस्याएँ बढ़ेंगी।
4. जलवायु में परिवर्तन के कारण बहुत सी फसलों का क्षेत्र बदल सकता है। साथ ही वर्षा पर आधारित फसल के मामले में उपज में कमी भी आएगी।
5. देश में मलेरिया के मामले बढ़ेंगे और वह अवधि जब मलेरिया का प्रकोप फैलता है अलग-अलग क्षेत्र में अधिक लम्बी होगी। अन्य बीमारियाँ जिनका सीधा सम्बन्ध तापमान से है वे भी बढ़ेंगी। हैजा, अतिसार, लू, हृदय रोग, फाइलेरिया, काला-जार इत्यादि भी अधिक होने की सम्भावना रहेगी।
जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमान के प्रयास
बढ़ती आबादी, औद्योगिक विकास, कृषि उत्पादन, ऊर्जा आवश्यकताएँ आदि भविष्य में क्या मोड़ लेंगी, कहना कठिन है पर आईपीसीसी को कुछ निश्चित तो करना ही था।
जलवायु परिवर्तन के कारण इनमें क्या बदलाव आएगा यह कहना भी कठिन है।
धरती की जलवायु का पूर्वानुमान लगाने के लिये विभिन्न गणितीय मॉडलों का सहारा लिया जाता है। ये मॉडल वायुमंडल, सागर और ग्लेशियरों व पर्वतों के बीच की जटिल प्रक्रियाओं की नकल करके जलवायु की भविष्यवाणी करती है। पहले साधारण मॉडलों से काम चलाया जाता था पर अब सुपर कम्प्यूटरों के आगमन ने बेहद जटिल मॉडलों पर काम करना आसान कर दिया है।