Class 10th English (First Flight) Chapter – 10 The Sermon at Benares Explanation in Hindi

Class 10th English (First Flight) Chapter – 10 The Sermon at Benares

TextbookNCERT
Class 10th
Subject English 
Chapter10th
Chapter NameThe Sermon at Benares 
CategoryClass 10th English Explanation in Hindi
Medium English
SourceLast Doubt

Class 10th English (First Flight) Chapter – 10 The Sermon at Benares

Chapter – 10

The Sermon at Benares

Explanation in Hindi

THE SERMON AT BENARES

Gautama Buddha (563 B.C.-483 B.C.) began life as a prince named Siddhartha Gautama, in northern India. At twelve, he was sent away for schooling in the Hindu sacred scriptures and four years later he returned home to marry a princess. They had a son and lived for ten years as befitted royalty. At about the age of twenty-five, the Prince, heretofore shielded from the sufferings of the world, while out hunting chanced upon a sick man, than an aged man, then a funeral procession, and finally a monk begging for alms These sights so moved him that he at once became a beggar and went out into the world to seek enlightenment concerning the sorrows he had witnessed He wandered for seven years and finally sat down under a fig tree, where he vowed to stay until enlightenment came. Enlightened after seven days, he renamed the tree the Bo Tree Tree of Wisdom and began to teach and to share his new understandings At that point he became known as the Buddha The Awakened or the Enlightened. The Buddha preached his first sermon at the city of Benares, most holy of the dipping places on the river Ganges; that sermon has been preserved and is given here. It reflects the Buddha’s wisdom about one inscrutable kind of suffering.

गौतम बुद्ध (563 ई० पू० – 483 ई० पू०) ने उत्तरी भारत में सिद्धार्थ गौतम नामक एक राजकुमार के रूप में अपना जीवन आरंभ किया। 12 वर्ष की आयु में उसे हिंदू धार्मिक ग्रंथ पढ़ने के लिए दूर स्कूल में भेजा गया और चार वर्ष पश्चात् वह एक राजकुमारी से विवाह हेतु घर लौटा। उनके एक बेटा था और दस वर्ष तक वे राजस्वीव्यक्ति की तरह रहे। लगभग पच्चीस वर्ष की आयु में जब वह, जिसे संसार के दुःखों से अब तक सुरक्षित रखा गया था, बाहर कुछ खोज रहा था, संयोगवश वह एक रोगी से मिला, फिर एक बूढ़े व्यक्ति से, फिर एक अन्त्येष्टि जुलूस से, और अंत में एक भिक्षु से जो भीख माँग रहा था, इन दृश्यों ने उसे इतना विचलित कर दिया कि वह तुरंत एक भिखारी बन गया और सांसारिक जीवन में ज्ञानोदय की खोज में उन दुःखों को जानने के लिए जिन्हें उसने देखा था, प्रवेश कर गया। वह सात वर्ष तक भटकता रहा और अंत में एक अंजीर के पेड़ के नीचे बैठ गया। जहाँ उसने यह प्रण लिया कि वह उस समय तक वहाँ ठहरेगा जब तक ज्ञानोदय नहीं हो जाता। ज्ञान-प्राप्ति के सात दिन बाद, उसने पेड़ का फिर से वटवृक्ष (बुद्धिमत्ता का पेड़) नाम रखा और शिक्षा देने लगा और अपने नए ज्ञान को बाँटने लगा। उस समय वह बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा (जागृत या चैतन्य) बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश बनारस में दिया, जो गंगा नदी में डुबकी लगाने वाले स्थानों में अत्यंत पवित्र है; उस धर्मोपदेश को सुरक्षित रखा गया है और यहाँ मुद्रित किया जा रहा है। यह एक अबोध प्रकार के दुःख के संबंध में बुद्ध की बुद्धिमता को प्रतिबिंबित करता है।

Kisa Gotami had an only son, and he died. In her grief she carried the dead child to
all her neighbours, asking them for medicine, and the people said: “She has lost her senses. The boy is dead.”

किसा गौतमी का एकमात्र बेटा था, और उसकी मृत्यु हो गई। अपने दुःख में वह मृत बालक को अपने सभी
पड़ोसियों के पास ले गई, उनसे औषधि के लिए कहने लगी, और लोगों ने कहा, “वह अपनी मति खो बैठी है। बालक की मृत्यु हो गई है। “

At length, Kisa Gotami met a man who replied to her request: “I cannot give thee
medicine for thy child, but I know a physician who can.” And the girl said: “Pray tell me, sir; who is it?” And the man replied, “Go to Salyamuni, the Buddha.” Kisa Gotami repaired to the Buddha and cried: “Lord and Master, give me the medicine that will cure my boy.”

एक लंबे समय के बाद, गौतमी एक ऐसे व्यक्ति से मिली जिसने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया, “मैं तुम्हारे
बालक के लिए औषधि नहीं दे सकता, किंतु मैं एक ऐसे काया चिकित्सक को जानता हूँ जो दे सकता है।”
और लड़की ने कहा, “श्रीमान जी, कृपया मुझे बताइए, वह कौन है?” और उस पुरुष ने उत्तर दिया, “साल्यमुनि के पास जाइए, बुद्ध के पास। ” किसा गौतमी बुद्ध के पास गई और चिल्लाई, “भगवान् तथा स्वामी, मुझे वह औषधि दीजिए जो मेरे लड़के को रोगमुक्त कर दे।”

The Buddha answered: “I want a handful of mustard-seed.” And when the girl in her joy promised to procure it, the Buddha added: “The mustard-seed must be taken from a house where no one has lost a child, husband, parent or friend.”

बुद्ध ने उत्तर दिया, “मैं मुट्ठी भर सरसों के बीज चाहता हूँ” और जब उस लड़की ने अपनी प्रसन्नता में उसे
प्राप्त करने का वचन दिया, बुद्ध ने कहा, “सरसों के बीज अवश्य ही उस घर से लिए जाएँ जहाँ किसी ने अपने बालक, पति, पिता या मित्र को न खोया हो। “

Poor Kisa Gotami now went from house to house, and the people pitied her and said: “Here is mustard-seed; take it!” But when she asked, “Did a son or daughter, a father or mother, die in your family?” they answered her: “Alas! the living are few, but the dead are many. Do not remind us of our deepest grief.” And there was no house but some beloved one had died in it.

बेचारी किसा गौतमी अब घर-घर गई। और लोगों ने उस पर दया दिखाई और कहा, “यह लो सरसों के बीज, इन्हें ले लो।” किंतु जब उसने कहा, “क्या तुम्हारे परिवार में एक बेटे या बेटी, पिता या माता की मृत्यु हुई थी?” उन्होंने उसे उत्तर दिया, ‘खेद जीवित कम हैं, किंतु मृत बहुत हैं। हमें अपने गहन दुःख की याद न दिलाओ।” और वहाँ कोई भी ऐसा घर नहीं था जिसमें किसी प्रियजन की मृत्यु न हुई हो।

Kisa Gotami became weary and hopeless, and sat down at the wayside watching the lights of the city, as they flickered up and were extinguished again. At last the darkness of the night reigned everywhere. And she considered the fate of men, that
their lives flicker up and are extinguished again. And she thought to herself: “How
selfish am I in my grief! Death is common to all; yet in this valley of desolation there is a path that leads him to immortality who has surrendered all selfishness.

किसा गौतमी परिश्रांत तथा निराश हो गई, और नगर की बत्तियों को देखने लिए सड़क के किनारे बैठ गई,
क्योंकि वे टिमटिमा रही थीं और फिर बुझ जाती थीं। अंततः रात्रि का अंधकार सर्वत्र छा गया और वह मनुष्य के भाग्य पर विचार करने लगी। कि उनके जीवन झिलमिलाते हैं और फिर बुझ जाते हैं। और वह अपने मन में सोचने लगी, “अपने दुःख में मैं कितनी स्वार्थी हूँ। मृत्यु सबको आती है; किंतु इस गहन शोक के क्षेत्र में एक ऐसा मार्ग है जो उसे अमरत्व की ओर ले जाता है, जिसने अपनी सारी स्वार्थपरता का समर्पण कर दिया है”

The Buddha said: “The life of mortals in this world is troubled and brief and combined
with pain) For there is not any means by which those that have been born can avoid
dying; after reaching old age there is death; of such a nature are living beings. As ripe fruits are early in danger of falling, so mortals when born are always in danger of death. As all earthen vessels made by the potter end in being broken, so is the life of mortals. Both young and adult, both those who are fools and those who are wise, all fall into the power of death; all are subject to death.

बुद्ध ने कहा, “इस संसार में नश्वर प्राणियों का जीवन दुःखी, अल्पकालीन तथा पीड़ा से युक्त है। यहाँ कोई
भी ऐसा साधन नहीं है जिसके द्वारा जिनका जन्म हुआ है मृत्यु से बच सकते हैं; बुढ़ापा आने पर मृत्यु आती है; जीवित प्राणियों की ऐसी प्रकृति है। जैसे पके फलों को शीघ्र गिरने का खतरा होता हे, उसी प्रकार से नश्वर प्राणियों को जब से वे पैदा होते हैं मृत्यु का खतरा होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे कुम्हार द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों का अंत टूटने में होता है, उसी प्रकार से नश्वर प्राणियों का जीवन है। युवा तथा प्रौढ़ दोनों, और जो मूर्ख तथा जो बुद्धिमान हैं वे दोनों भी मृत्यु की शक्ति का शिकार होते हैं; मृत्यु सबको प्राप्त होती है।

“Of those who, overcome by death, depart from life, a father cannot save his son,
nor kinsmen their relations. Mark! while relatives are looking on and lamenting deeply, one by one mortals are carried off, like an ox that is led to the slaughter. So the world is afflicted with death and decay, therefore the wise do not grieve, knowing the terms of the world.

“उनमें से वे लोग, जो मृत्यु से अभिभूत होते हैं; जीवन से प्रस्थान कर जाते हैं, पिता अपने पुत्र को नहीं बचा
सकता, न ही नाती (संबंधी) अपने संबंधियों को। ध्यान दो। जब संबंधी देख रहे हों और गहन विलाप कर रहे हों, एक-एक करके नश्वर प्राणी चले जाते हैं, उस बैल की भाँति जिसे वध के लिए ले जाया जाता है। अतः संसार मृत्यु तथा क्षय से प्रभावित है। इसलिए बुद्धिमान लोग संसार की विधि को जानते हुए दुःख नहीं करते।

“Not from weeping nor from grieving will anyone obtain peace of mind; on the
contrary, his pain will be the greater and his body will suffer. He will make himself sick and pale, yet the dead are not saved by his lamentation. He who seeks peace should draw out the arrow of lamentation, and complaint, and grief. He who has drawn out the arrow and has become composed will obtain peace of mind; he who has overcome all sorrow will become free from sorrow, and he blessed,”

“न रोने-धोने से और न ही शोक करने से किसी व्यक्ति को मानसिक शांति प्राप्त होगी। इसके विपरीत, उसकी पीड़ा बढ़ जाएगी और उसका शरीर दुःख भोगेगा। वह अपने को रोगी तथा पीला बना लेगा, फिर भी उसके विलाप से मृतकों को नहीं बचाया जा सकता। वह जो शांति की खोज करता है उसको विलाप, शिकायत तथा दुःख के तीरं को बाहर खींच देना चाहिए। जिसने तीर को बाहर खींच दिया है और संतुलित हो गया है वह मन की शांति प्राप्त करेगा। जिसने सभी दुःखों पर काबू पा लिया है वह दुःख से मुक्त हो जाएगा, और वरदान पाएगा।’

WORD – MEANINGS

Sermon : Lecture – (प्रवचन)
Funeral Procession : Spirit – (शव यात्रा)
Shield Defend : (ढाल)
Enlightenment : Clarification – (ज्ञानोदय)
Vow : To take a pledge (शपथ)
Preserve : Safeguard – (सुरक्षित, संरक्षित)
Procure : To get – (प्राप्त करना)
Lament : to feel sorrow (शोक प्राकट करना)