NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar व्याकरण अपठित काव्यांश

NCERT Solutions  Class 10th Hindi Grammar व्याकरण अपठित काव्यांश

TextbookNCERT
Class 10th
Subject हिन्दी व्याकरण
Chapterव्याकरण
Grammar Nameअपठित काव्यांश
CategoryClass 10th  Hindi हिन्दी व्याकरण
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar अपठित काव्यांश अपठित गद्यांश कैसे सॉल्व करें? अपठित गद्यांश में प्रश्नों के उत्तर कैसे लिखने चाहिए? कौन सा विषय सबसे कठिन है? कुल कितने विषय होते हैं? कितने नंबर से पास होते हैं? क्या हम कक्षा 10 में फेल हो सकते हैं? विषयों में फेल होने पर क्या होता है? काव्यों की भाषा क्या है? अपठित गद्यांश को कैसे हल किया जाता है? पद्यांश क्या कहलाता है? काव्यांश मतलब क्या होता है? गद्यांश में क्या होता है? हिमालय को देखकर कौन सा भाव जागृत होता है? आदि के बारे में पढ़ेंगे और जानने के साथ हम NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar अपठित काव्यांश व्याकरण करेंगे।

NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar व्याकरण अपठित काव्यांश

हिन्दी व्याकरण

अपठित गद्यांश

अपठित काव्यांश – अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। इस अंश को छात्रों द्वारा पहले नहीं पढ़ा गया होता है।

अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।

अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।

अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए –

•  काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके अर्थ एवं मूलभाव को समझना।
• कठिन शब्दों या अंशों को रेखांकित करना।
•  प्रश्न पढ़ना और संभावित उत्तर पर चिह्नित करना।
•  प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रतीकार्थों पर विशेष ध्यान देना।
•  प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना; काव्यांश से बाहर जाकर उत्तर देने का प्रयास न करना।
•  उत्तर अपनी भाषा में लिखना, काव्यांश की पंक्तियों को उत्तर के रूप में न उतारना।
•  यदि प्रश्न में किसी भाव विशेष का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ पूछी गई हैं तो इसका उत्तर काव्यांश से समुचित भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ही लिखना चाहिए।
•  शीर्षक काव्यांश की किसी पंक्ति विशेष पर आधारित न होकर पूरे काव्यांश के भाव पर आधारित होना चाहिए।
•  शीर्षक संक्षिप्त आकर्षक एवं अर्थवान होना चाहिए।
•  अति लघुत्तरीय और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
•  प्रश्नों का उत्तर लिखने के बाद एक बार दोहरा लेना चाहिए ताकि असावधानी से हुई गलतियों को सुधारा जा सके।

काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें –

आओ मिलें सब देश बान्धव
हार बनकर देश के।
साधक बने, सब प्रेम से
सुख शांतिमय उद्देश्य के।
क्या सांप्रदायिक भेद से
है ऐक्य मिट सकता अहो!

[ बनती नहीं क्या एक माला
। विविध सुमनों की कहो?

रक्खे परस्पर मेल मन से
छोड़कर अविवेकता।

मन का मिलन ही मिलन है
होती उसी से एकता।
सब बैर और विरोध का
बल-बोध से वारण करो
है भिन्नता में खिन्नता ही
एकता धारण करो।

प्रश्न. 1. कवि देशवासियों से क्या आह्वान कर रहा है?
उत्तर –
कवि देशवासियों से यह आह्वान कर रहा है कि वे भारत में एकता स्थापित करके सुख-शांति से जीवन बिताएँ।

प्रश्न. 2. आपस में एकता बनाए रखने के लिए किसका उदाहरण दिया गया है?
उत्तर –
आपस में एकता बनाए रखने के लिए कवि तरह-तरह के फूलों से बनी सुंदर माला का उदाहरण दे रहा है।

प्रश्न. 3. देश में एकता की भावना कब मज़बूत हो सकती है?
उत्तर –
देश में एकता की सच्ची भावना तब मज़बूत हो सकती है जब हर देशवासी जाति-धर्म, भाषा प्रांत आदि के बारे में अविवेक से सोचना बंद करे और सच्चे मन से दूसरों से मेल करे।

प्रश्न. 4. ‘भिन्नता में खिन्नता’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है और क्यों?
उत्तर –
भिन्नता के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि अलग-अलग रहने का परिणाम दुख एवं अशांति ही होता है। अतः हमें मेल जोल और ऐक्यभाव से रहना चाहिए क्योंकि एकता के अभाव में देश कमज़ोर हो जाएगा जिसका परिणाम दुखद ही होगा।

प्रश्न. 5. काव्यांश में सच्ची एकता किसे कहा गया है? इसे बनाए रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर –
सच्चे मन से ही एक-दूसरे से मिलने को सच्ची एकता कहा है। इसके लिए भारतीयों को आपसी बैर और विरोध को सप्रयास बलपूर्वक दबा देना चाहिए और एकता मज़बूत करनी चाहिए।

निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

1. कोलाहल हो,
या सन्नाटा, कविता सदा सृजन करती है,
जब भी आँसू
कविता सदा जंग लड़ती है।
यात्राएँ जब मौन हो गईं
कविता ने जीना सिखलाया
जब भी तम का
जुल्म चढ़ा है, कविता नया सूर्य गढ़ती है,

जब गीतों की फ़सलें लुटती
शीलहरण होता कलियों का,
शब्दहीन जब हुई चेतना हुआ पराजित,
तब-तब चैन लुटा गलियों का जब भी कर्ता हुआ अकर्ता,
जब कुरसी का
कंस गरजता, कविता स्वयं कृष्ण बनती है।
अपने भी हो गए पराए कविता ने चलना सिखलाया।
यूँ झूठे अनुबंध हो गए
घर में ही वनवास हो रहा
यूँ गूंगे संबंध हो गए।

प्रश्न. 1. कविता की प्रवृत्ति किस तरह की बताई गई है?
उत्तर –
कविता की प्रवृत्ति हर काल में नव सृजन करने वाली बताई गई है।

प्रश्न. 2. कविता मनुष्य को कब जीना सिखाती है?
उत्तर –
जब परिश्रमी कर्मठ और श्रम करने वाले लोग अकर्मण्यता का शिकार हो जाते हैं तब कविता कर्म की राह दिखाकर उन्हें जीना सिखाती है।

प्रश्न. 3. कविता लगातार संघर्ष करने की प्रेरणा देती है-ऐसा किस पंक्ति में कहा गया है?
उत्तर –
उक्त भाव व्यक्त करने वाली पंक्ति है… जब भी आँसू हुआ पराजित, कविता सदा जंग लड़ती है।

प्रश्न. 4. कविता ने लोगों को कब प्रेरित किया और कैसे?
उत्तर –
जब जब लोगों में निराशा और अंधकार के कारण हताशा की स्थिति आई, तब-तब कविता ने लोगों को प्रेरित किया। निराशा की इस बेला में कविता नया सूर्य बनकर अंधेरे में रास्ता दिखाती है।

प्रश्न. 5. संबंधों में दूरियाँ आ जाने का परिणाम आज किस रूप में भुगतना पड़ रहा है?
उत्तर –
संबंधों में दूरियाँ बढ़ जाने के कारण अपने लोग भी दूसरों जैसा ही व्यवहार करने लगे। जो संबंध अत्यंत घनिष्ठ थे वे समझौता बनकर रह गए। लोग एक घर में रहते हुए भी दूरी बनाकर रहने लगे हैं।

2. जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हों चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली।

मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुँही जिसे बहलाने के
जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
सांसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोके राह, समय में ताब कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।

सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुँचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।

आरती लिये तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

प्रश्न. 1. एहसासहीन जनता की तुलना किससे की गई है?
उत्तर –
एहसासहीन जनता की तुलना उस फूल से की गई है जिसे जब चाहें, तोड़कर दूसरे के सामने प्रस्तुत कर दिया जाता है।

प्रश्न. 2. कवि किसके सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है?
उत्तर –
कवि तैंतीस करोड़ भारतीय जनता के सिर पर मुकुट रखने के लिए कह रहा है।

प्रश्न. 3. ‘जंतर-मंतर सीमित हों चार खिलौनों में’ का भाव क्या है?
उत्तर –
भाव यह है कि अपनी माँगों के लिए आवाज़ उठाती जनता को बातों का खिलौना देकर बहला दिया जाता है।

प्रश्न. 4. क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने का क्या परिणाम होता है ?
उत्तर –
क्रोधित जनता में क्रांति भड़कने पर व्यवस्था में भूकंप आ जाता है, तूफ़ान आ जाता है। उसकी हुंकार से शासन की नींव हिल जाती है। उसकी शक्ति से सत्ता नष्ट हो जाती है। तब समय में भी इतनी ताकत नहीं रहती कि उसे रोका जा सके।

प्रश्न. 5. कवि ने देवता किसे कहा है ? वह कहाँ रहता है?
उत्तर –
कवि ने हमारे देश के साधारण लोगों, मज़दूरों, किसानों आदि को देवता कहा है। ऐसे देवता देवालयों और राजप्रासादों में न रहकर सड़कों के किनारे मिट्टी खोदते और खेतों-खलिहानों में काम करते हुए मिल जाते हैं।

3. सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में।
हो रक्त बूंद भर भी जब तक हमारे तन में।
छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

कोई दलित न जग में हमको पड़े दिखाई।
स्वाधीन हों सुखी हों सारे अछूत भाई ॥
सबको गले लगा ले यह शुद्ध मन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा ।।

धुन एक ध्यान में है, विश्वास है विजय में।
हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में॥
कैसे उजाड़ देगा कोई चमन हमारा?
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

हम प्राण होम देंगे, हँसते हुए जलेंगे।
हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे॥
जब तक पहुँच न लेंगे तब तक न साँस लेंगे।
वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे।
गायें सुयश खुशी से जग में सुजन हमारा।
छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥

प्रश्न. 1. कवि की हार्दिक इच्छा क्या है?
उत्तर –
कवि की हार्दिक इच्छा यह है कि वह मरते समय तक देश की सेवा करता रहे।

प्रश्न. 2. ‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तर –
‘हम प्राण होम देंगे हँसते हुए जलेंगे’ में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न. 3. ‘हम तो अचल रहेंगे तूफ़ान में प्रलय में’ यहाँ ‘तफ़ान’ और ‘प्रलय’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर –
‘हम तो अचल रहेंगे तूफान में प्रलय में’-यहाँ ‘तूफ़ान’ और ‘प्रलय’ राह की मुश्किलों के प्रतीक हैं।

प्रश्न. 4. कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसका स्वरूप कैसा होगा?
उत्तर –
कवि जिस समाज की कल्पना करता है उसमें कोई भी दीन-दुखी और दलित नहीं होगा। समाज के अछूत समझे जाने वाले दलित जन भी आपस में भाई-भाई होंगे और वे एक-दूसरे को प्रेम से गले लगाएँगे।

प्रश्न. 5. कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए क्या-क्या करना चाहता है और क्यों?
उत्तर –
कवि अपना लक्ष्य पाने के लिए शरीर में एक भी साँस रहने तक आगे बढ़ना चाहता है। वह लक्ष्य तक पहुँचे बिना साँस तक नहीं लेना चाहता है। कवि उस लक्ष्य के सहारे चाहता है कि विश्व के लोग भारत का गुणगान करें।

4. ओ महमूदा मेरी दिल जिगरी
तेरे साथ मैं भी छत पर खड़ी हूँ
तुम्हारी रसोई तुम्हारी बैठक और गाय-घर में
पानी घुस आया
उसमें तैर रहा है घर का सामान
तेरे बाहर के बाग का सेब का दरख्त
टूट कर पानी के साथ बह रहा है
अगले साल इसमें पहली बार सेब लगने थे
तेरी बल खाकर जाती कश्मीरी कढ़ाई वाली चप्पल
हुसैन की पेशावरी जूती
बह रहे हैं गंदले पानी के साथ
तेरी ढलवाँ छत पर बैठा है
घर के पिंजरे का तोता
वह फिर पिंजरे में आना चाहता हैमहमूदा मेरी बहन
इसी पानी में बह रही है तेरी लाडली गऊ
इसका बछड़ा पता नहीं कहाँ है
तेरी गऊ के दूध भरे थन
अकड़ कर लोहा हो गए हैंजम गया है दूध
सब तरफ पानी ही पानी
पूरा शहर डल झील हो गया हैमहमूदा, मेरी महमूदा
मैं तेरे साथ खड़ी हूँ
मुझे यकीन है छत पर ज़रूर
कोई पानी की बोतल गिरेगी
कोई खाने का सामान या दूध की थैली
मैं कुरबान उन बच्चों की माँओं पर
जो बाढ़ में से निकलकर
बच्चों की तरह पीड़ितों को
सुरक्षित स्थान पर पहुँचा रही हैं
महमूदा हम दोनों फिर खड़े होंगे
मैं तुम्हारी कमलिनी अपनी धरती पर…
उसे चूम लेंगे अपने सूखे होठों से
पानी की इस तबाही से फिर निकल आएगा।
मेरा चाँद जैसा जम्मू
मेरा फूल जैसा कश्मीर।

प्रश्न. 1. रसोई, बैठक और गाय घर में पानी घुस आने का क्या कारण है ?
उत्तर –
रसोई, बैठक और गाय-घर में पानी घुस आने का कारण भीषण बाढ़ है।

प्रश्न. 2. ‘पूरा शहर डल-झील हो गया है’ का आशय क्या है ?
उत्तर –
आशय यह है कि बाढ़ का पानी चारों ओर ऐसा भर गया है जैसे सारा शहर डलझील बन गया है।

प्रश्न. 3. कवयित्री को किस बात का विश्वास है?
उत्तर –
कवयित्री को विश्वास है कि उसकी छत पर पानी की बोतल, खाने का सामान या दूध की थैली अवश्य गिरेगी।

प्रश्न. 4. जलमग्न हुए स्थान पर तोते और गाय-बछड़े की मार्मिक दशा कैसी हो गई है?
उत्तर –
जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आ जाने से पेड़ धराशायी हो गए हैं। बाहर सब जलमग्न हो गया है। इस स्थिति में तोता घर की छत पर बैठा है। इसी पानी में महमूदा की गाय बह रही है, बछड़े का पता नहीं है। बछड़े से न मिल पाने के कारण गाय के दूध भरे थन अकड़ गए हैं।

प्रश्न. 5. कवयित्री की आशावादिता किस प्रकार प्रकट हुई है? काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर –
कवयित्री को आशा है कि पानी जल्द ही उतर जाएगा, धरती की रौनक-लौट आएगी और ज मू-कश्मीर का स्वर्ग जैसा सौंदर्य पुनः जल्दी वापस आ जाएगा।

5. तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ।।

बँटवारे ने भीतर-भीतर
ऐसी-ऐसी डाह जगाई।
जैसे सरसों के खेतों में
सत्यानाशी उग-उग आई॥

तेरे-मेरे बीच कहीं है टूटा-अनटूटा पतियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा॥

अपशब्दों की बंदनवारें
अपने घर हम कैसे जाएँ।जैसे साँपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनाएँ।।

तेरे-मेरे बीच कहीं है भूला-अनभूला गलियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा ।।

बचपन की स्नेहिल तसवीरें
देखें तो आँखें दुखती हैं।
जैसे अधमुरझी कोंपल से
ढलती रात ओस झरती है॥

तेरे-मेरे बीच कहीं है बूझा-अनबूझा उजियारा।
संबंधों के महासमर में तू भी हारा मैं भी हारा॥

प्रश्न. 1. कविता में किस बँटवारे की बात कही गई है?
उत्तर –
कविता में दो भाइयों के बीच हुए बँटवारे और उससे उत्पन्न स्थिति की बात कही गई है।

प्रश्न. 2. ‘तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव क्या है?
उत्तर –
‘तेरे-मेरे बीच कहीं है एक घृणामय भाईचारा’ का भाव यह है कि संबंधों में इतनी घृणा हो गई है कि भाईचारा के लिए इसमें कोई जगह नहीं है।

प्रश्न. 3. सरसों के खेत और सत्यानाशी किनके प्रतीक हैं?
उत्तर –
‘सरसों के खेत’ मिल जुलकर रहने वालों और ‘सत्यानाशी’ एकता देखकर ईर्ष्या से जल-भुन जाने वालों के प्रतीक हैं।

प्रश्न. 4. अपशब्दों की बंदनवारें हमारे संबंध और रहन-सहन को किस तरह प्रभावित कर रही हैं ?
उत्तर –
अपशब्दों की बंदनवारों के कारण लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। आज स्थिति यह है कि साँपों के जंगल में पक्षी कैसे अपना घर बना सकते हैं। अब तो लोग एक-दूसरे से मिलने में कतराने लगे हैं।

प्रश्न. 5. बचपन की तस्वीरें देखकर कवि को कैसा लगता है ? ऐसे में कवि को किस बात की आशा जग रही है?
उत्तर –
बचपन की तसवीरें देखकर लगता है कि पहले लोगों में बहत भाईचारा था। वे मिल-जुलकर रहते थे। वैसी स्थिति अब स्वप्न बन गई है। ऐसे में कवि को आशा है कि दिलों में आई ये दूरियों की मलिनता समाप्त हो जाएगी और नए संबंधों की शुरुआत होगी।