औपनिवेशिक भारत में प्रमुख किसान एवं आदिवासी आंदोलनों के विकास के कारणों एवं उनके द्वारा अपनाई गई रणनीतियों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर- परिचय
अंग्रेजी शासन के सौ वर्ष पूरा होने के पहले ही किसानों और आदिवासियों का इकट्ठा होता असंतोष जनविद्रोह के रूप में फूट पड़ा। यह भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय में पनपा इन विद्रोहों के तात्कालीन कारण अलग-अलग थे, पर कुल मिलाकर यह औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ विद्रोह था।
औपनिवेशिक भारत में किसान आंदोलन
विकास चंपारण सत्याग्रह (1917)
• बिहार के चंपारण जिले में नील के बागानों में यूरोपीय बागान मालिकों द्वारा किसानों का अत्यधिक उत्पीड़न किया जाता था और उन्हें अपनी जमीन के कम से कम 3/20वें हिस्से पर नील उगाने तथा बागान मालिकों द्वारा निर्धारित कीमतों पर नीत बेचने के लिये मजबूर किया जाता था।
• वर्ष 1917 में महात्मा गांधी ने चंपारण पहुँचकर किसानों की स्थिति की विस्तृत जाँच की।
• उन्होंने चंपारण छोड़ने के जिला अधिकारी के आदेश की अवहेलना की।
• सरकार ने जून 1917 में एक जाँच समिति (गांधीजी भी इसके सदस्य थे) नियुक्त की।
• चंपारण कृषि अधिनियम, 1918 के अधिनियमन ने काश्तकारों को नील बागान मालिकों द्वारा लगाए
गए विशेष नियमों से मुक्त कर दिया।
किसान आंदोलन द्वारा अपनाई गई रणनीतियाँ
• चंपारण सत्याग्रह को शुरू करने में चम्पारण जिले के पंडित राजकुमार शुक्ल का विशेष योगदान है। जिन्होंने गांधीजी को चम्पारण आने के लिए मनाया एवं नील कृषकों की दशा से गांधीजी को अवगत कराया। वर्ष 1916 में गांधीजी जब कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लेने के लिए लखनऊ आये थे तो राजकुमार शुक्ल भी अपनी पीड़ा लेकर गांधीजी से इस समस्या का समाधान माँगने आये थे। गांधीजी ने अपनी कार्य की व्यस्तता के चलते प्रारम्भ में चम्पारण आने से मना कर दिया था परन्तु ढ निश्चयी कृषक राजकुमार शुक्ल के अत्यधिक आग्रह करने पर गांधीजी चंपारण आने को राजी हुए।
• गांधीजी द्वारा कहा गया की वे जल्द ही बिहार का आएंगे परन्तु राजकुमार शुक्ल ने उन्हें एक निश्चित तारीख देने को कहा। इसके बाद जहाँ भी गाँधीजी गए राजकुमार शुक्ल भी उनके साथ गए। अंतत गांधीजी अप्रैल माह में चम्पारण आये।
विकास खेड़ा सत्याग्रह (1918)
• गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों ने सरकार के विरूद्ध बढ़ी हुई लगान की वसूली के खिलाफ गांधी जी के नेतृत्व में आंदोलन किया।
• 1917-18 में फसल खराब होने के बाद भी खेड़ा के किसानों से लगान की वसूली की जा रही थी, खेड़ा के कुनबी पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान में राहत की मांग की लेकिन कोई रियायत न मिली।
• खेड़ा के किसानों का सहयोग गांधी जी ने इन्दुलाल याज्ञनिक और बल्लभ भाई पटेल के साथ किया, उन्होंने किसानों को लगान न अदा करने का सुझाव दिया।
• लगान न अदा करने का पहला नारा खेड़ा के ‘कापड़ गंज’ तालुके में स्थानीय नेता मोहन लाल पांड्या ने दिया।
• गांधीजी ने खेड़ा आंदोलन की बागडोर 22 मार्च, 1918 को संभाला गांधीजी के सत्याग्रह के आगे लाचार सरकार ने इस आशय का गोपनीय दस्तावेज जारी किया कि लगान उसी से वसूली जाये जो देने में समर्थ हो ।
• गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन सफल रहा। खेड़ा में ही गांधी जी ने अपने प्रथम वास्तविक किसान सत्याग्रह की शुरूआत की।
औपनिवेशिक भारत में आदिवासी आंदोलन
संथाल विद्रोह (आदिवासी आंदोलन)
• संथाल विद्रोह आदिवासी विद्रोहों में सबसे शक्तिशाली व महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका प्रारम्भ 30 जून 1855 ई. में हुआ तथा 1856 के अन्त तक तक दमन कर दिया गया।
• इसे ‘हुल आन्दोलन’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्य रूप से भागलपुर से लेकर राजमहल क्षेत्र के बीच केन्द्रित था। इस क्षेत्र को “दामन-ए-कोह” के नाम से जाना जाता था।
• इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजों द्वारा लागू की गई भू-राजस्व व्यवस्था तथा जमींदारों और साहूकारों का अत्याचार था
रणनीति
• संघात विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू नामक दो आदिवासी नेताओं ने किया था। सरकार ने इस आन्दोलन का दमन करने के लिए विद्रोह ग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगा दिया।
• एक बड़ी सैन्य कार्यवाही कर भागलपुर के कमिश्रर ब्राउन तथा मेजर जनरल लायड ने 1856 ई. में क्रूरता पूर्वक इस विद्रोह का दमन कर दिया। किन्तु सरकार को शान्ति स्थापित करने के लिए इनकी मांग को स्वीकार कर सन्थाल परगना को एक नया जिला बनाना पड़ा। संथाल विद्रोह के कारण
• 1773 ई. में स्थायी भूमि बन्दोवस्त व्यवस्था लागू हो जाने के कारण इनकी भूमि छीनकर जमींदारों को दे दी गयी। जमींदारों की अत्यधिक उपज मांग के कारण इन लोगों को अपनी पैतृक भूमि छोड़कर
राजमहल की पहाड़ियों के आसपास बस गये।
• वहाँ पर कड़े परिश्रम से इन लोगों ने जंगलों को काटकर भूमि कृषि योग्य बनाई जमींदारों ने इस भूमि पर भी अपना दावा कर दिया। सरकार ने भी जमींदारों का समर्थन किया और संथालों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया।
• जमींदार उनका शोषण करने लगे अंग्रेज अधिकारी भी जमींदारों का पक्ष लेते थे। अतः अधिकारियों, जमींदारों और साहूकारों के विरोध में सिद्धू और कान्हू नामक दो आदिवासियों के नेतृत्व में 30 जून 1855 ई. में भगनीडीह नामक स्थान पर 6 हजार से अधिक आदिवासी संगठित हुए और विदेशी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
• उन्होंने घोषणा कर दी कि वे देश को अपने हाथ में ले लेंगे और अपनी सरकार स्थापित कर देंगे।” उन्होंने भागलपुर तथा राजमहल के बीच तार तथा रेल व्यवस्था भंग कर दी। महाजनों व जमींदारों के घर तथा पुलिस स्टेशन व रेलवे स्टेशनों को जला दिया।
संथाल विद्रोह के परिणाम
• संथालों ने कम्पनी के राज्य की समाप्ति तथा अपने सूबेदार के राज्य के आरम्भ की घोषणा कर दी। सरकार ने विद्रोह को दबाने के लिए सैनिक कार्यवाही प्रारम्भ कर दी तथा विद्रोह प्रभावित क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगा दिया तथा सिद्धू और कान्हू को पकड़ने 10 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया।
• सेना का प्रतिरोध न कर पाने के कारण आन्दोलनकारियों ने जंगलों में शरण ली और अपनी कार्यवाही (जारी रखी। मेजर बरों के अधीन एक अंग्रेज सैन्य टुकड़ी को विद्रोहियों ने मात भी दी।
• अगस्त 1855 में सिद्धू तथा फरवरी 1856 में कान्हू मारे गये। फलस्वरूप 1856 के अन्त तक विद्रोह को बहुत कठोरता से दबा दिया गया लेकिन सरकार को संथाल परगना को नया जिला बनाकर उनके रोष को शान्त करना पड़ा।
निष्कर्ष
आजादी की लड़ाई के बलिदानों को स्मरण करते समय हमें उन अनेक किसान व आदिवासी आंदोलनों को नहीं भूलना चाहिए जिनमें शोषित पीड़ित ग्रामीण जनता ने अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई व जागीरदारों जमींदारों से मिले औपनिवेशिक शासकों का भी विरोध किया ये आंदोलन लगभग अंग्रेज शासन की स्थापना के साथ ही शुरू हो गए थे।
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