NCERT Solutions Class 6th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध
Text Book | NCERT |
Class | 6th |
Subject | गृह विज्ञान |
Chapter | 8th |
Chapter Name | पारिवारिक सम्बन्ध |
Category | Class 6th गृह विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 6th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध Notes in Hindi हम इस अध्याय में घर एवं परिवार, परिवार एवं सम्बन्धी, अच्छे सम्बन्ध, परिवार के सदस्यों के प्रति व्यवहार, माता-पिता के प्रति व्यवहार, अपने माता-पिता के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने के लिए बच्चों को निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए, भाई-बहनों के प्रति व्यवहार, अन्य सदस्यों के प्रति व्यवहार, दादा-दादी, नाना-नानी के प्रति व्यवहार, अन्य सम्बन्धियों के प्रति व्यवहार, आधीन कर्मचारी वर्ग के प्रति व्यवहार, मित्रों के प्रति व्यवहार, मित्रों का चुनाव और उनके प्रति कर्तव्य इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 6th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध
Chapter – 8
पारिवारिक सम्बन्ध
Notes
घर एवं परिवार से आप क्या समझते हैं? – घर वह स्थान है जहां परिवार के सदस्य रहते हैं। जहां बच्चों का जन्म एवं लालन-पालन होता है। परिवार में अनेक सदस्य होते हैं। इनका आपस में रक्त का सम्बन्ध होता है। इन सबके पूर्वज भी एक ही होते हैं। परिवार के सभी सदस्य आपस में प्रेम से रहते है तथा एक दूसरे के प्रति विश्वास, आदर, भक्ति एवं सहयोग की भावनाएं रखते हैं। यह लोग घर में रहें चाहे घर से बाहर अपने लोगों की चाह उन्हें घर की ओर खींच ही लाती है। गरीब-अमीर, छोटे-बड़े सभी को अपना घर और अपने लोग प्यारे होते हैं।
परिवार एवं सम्बन्धी के बारे में बताए? – एक भारतीय परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी आदि के अतिरिक्त चाचा-चाची, मामा-मामी, बुआ, मौसी, चचेरे भाई-बहन तथा ममेरे भाई-बहन होते है। पुराने नौकर-चाकर, जो बहुत अरसे से घर में कामकाज करते हैं, भी परिवार का ही अंग बन जाते हैं। इनमें से बहुत से सदस्य एक ही घर में रहते हैं। एक ही घर में रहने वाले एक ही परिवार के सदस्य परस्पर भिन्न विचार रखते हैं और सभी में अपनी-अपनी विशेषताएं भी होती है
परन्तु फिर भी वह सब एक होकर घर में रहते हैं और अपने घर की भलाई और मान-मर्यादा को ध्यान में रख कर कार्य करते है। परिवार के सदस्य छोटे हों या बड़े, गरीब हों या अमीर, स्वस्थ हों या अस्वस्थ, सभी के मन में परिवार के प्रति सम्बद्धता की भावना होती है। सभी अपने घर के प्रति अपनत्व की भावना रखते है। अपने घर में ही उन्हें अपना अस्तित्व नजर आता है और इस प्रकार उनमें पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास होता है।
अच्छे सम्बन्ध किसे कहते हैं? – वह घर सचमुच स्वर्ग के समान होता है जहां परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं। जहां सभी के मन में एक-दूसरे के लिए प्रेम, आदर एवं भक्ति की भावना होती है। जहां सब अपने सुख के साथ दूसरे के सुख का भी ध्यान रखते हैं। यही हैं अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने के मूल सिद्धान्त। जिस घर में रहने वालों के आपसी सम्बन्ध अच्छे होते हैं वहां पलने वाले बच्चों की प्रवृत्तियों एवं व्यक्तित्व भी इन अच्छी बातों से अछूते नहीं रहते। जब बच्चा अपने अभिभावकों में प्यार, दुलार, समझदारी, नम्रता, निःस्वार्थ, विश्वास आदि गुणों का अनुभव करता है तो उसमें यह सारे गुण स्वयं ही आ जाते हैं। घर में अन्य सदस्यों के साथ मिल जुल कर रहने की शिक्षा,
बच्चे को अपने अभिभावकों से ही मिलती है। बच्चा जब अपने परिवार के साथ मिलकर रहना सीखता है तभी उसे समाज के नियमों व रीतिरिवाजों को मानने का महत्व भी समझ में आता है। माता-पिता के सामाजिक व्यवहार के ढांचे पर ही बच्चे का सामाजिक विकास होता है। इस प्रकार परिवार में रह कर बच्चा उस व्यवहार को सीखता है जो समाज को मान्य है तथा समाज में रहने के लिए आवश्यक है।
परिवार के सदस्यों के प्रति व्यवहार के बारे में बताए? – परिवार में जितने भी व्यक्ति होते हैं सभी का एक-दूसरे से कुछ न कुछ नाता होता है। सम्बन्ध के अनुसार हर व्यक्ति से भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यवहार की आशा की जाती है। माता-पिता का आपसी व्यवहार, भाई-बहन के आपसी व्यवहार से भिन्न होता है। घर में अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि घर का प्रत्येक सदस्य यह भली प्रकार समझ ले कि उसे घर में रहने वाले प्रत्येक सदस्य से कैसा व्यवहार करना है।
अपने घर में सदैव सुख शांति रखने के लिए बच्चे को भी प्रयत्नशील होना चाहिए। उसे भी घर के प्रत्येक व्यक्ति के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए जिससे सभी उससे प्रसन्न रहें। परिवार के इन विभिन्न सदस्यों के प्रति बच्चों से कैसे व्यवहार की आशा की जाती है इसका वर्णन अब इस अध्याय में किया जाएगा।
माता-पिता के प्रति व्यवहार कैसे होते हैं? – माता-पिता अपने बच्चे का पालन-पोषण कितने लाड़-प्यार से करते हैं। बच्चे पढ़े-लिखे, स्वावलम्बी हों, फूलें फलें यही उनकी एकमात्र आकांक्षा होती है। अपने बच्चों के लिए वह हर समय भलाई की कामना करते हैं। बच्चों की मामूली सी तकलीफ से माता-पिता को बहुत कष्ट होता है। स्वयं कठिनाइयां सह कर माता-पिता अपने बच्चों को जीवन की हर सुविधा देने का प्रयत्न करते हैं।
उनकी इस निःस्वार्थ सेवा का बदला क्या कभी बच्चे चुका सकते हैं? कभी नहीं। वास्तव में माता-पिता अपने बच्चे के लिए जो कुछ भी करते हैं किसी फल की आशा से कभी नहीं करते। परन्तु बच्चों को अपनी ओर से उनकी इस निःस्वार्थ सेवा का ऋण चुकाने का प्रयत्न अवश्य ही करना चाहिए। इसे चुकाने का एक सबसे सरल उपाय है कि बच्चे अपने प्रतिदिन के व्यवहार में अपने माता-पिता के लिए असीम प्यार, आदर और भक्ति का आचरण करें।
प्रत्येक बच्चे का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता के आदर्शों का पालन करे। उनके घर के कामकाज में हाथ बटाना चाहिए। यदि माता रसोई पकाने की तैयारी कर रही हैं तो बच्चे को सब्जी छील कर तैयार कर लेनी चाहिए। इस प्रकार उसे कभी-कभी अपने से छोटे भाई-बहिन के लिए दूध गर्म करना और उसको बोतल में डालकर पिलाना भी चाहिए। इसके अलावा जब कपड़े धुल कर सूख जायें तो उन्हें देख लेना चाहिए कि कहीं बटन तो नहीं टूट गये हैं और यदि टूट गये हैं
तो उन्हें टांक देना चाहिए। इस प्रकार यदि कोई वस्त्र फट गया है तो उसे सिल देना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चे को हर संभव उपाय से माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। प्रतिदिन रात को सोने से पूर्व अगले दिन के लिए साफ वस्त्र (स्कूल यूनिफार्म), जूते, स्कूल बैग स्वयं तैयार करना चाहिए जिससे समय पर स्कूल पहुंचने में परेशानी न हो।
अपने माता-पिता के साथ अच्छे सम्बन्ध रखने के लिए बच्चों को निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए? – स्पष्टवादिता – माता-पिता से अपनी कोई बात छिपानी नहीं चाहिए। अपने सुख-दुःख, अपनी समस्याएं, सभी कुछ बिना किसी झिझक का अनुभव किए माता-पिता से कह डालनी चाहिए। बच्चों के वास्तविक शुभचिंतक उनके माता-पिता ही हैं। अपने बच्चों की खुशहाली एवं सफलता को देखकर उन्हें ही सबसे अधिक प्रसन्नता होती है। इसलिए बच्चों से मिला प्यार और विश्वास ही उनकी निःस्वार्थ सेवा का सबसे अमूल्य पुरस्कार है। बच्चों को चाहिए कि स्पष्टवादी रहें और माता-पिता से कुछ छिपाएं नहीं।
आदर – बच्चों के मन में माता-पिता के प्रति बना हुआ अडिग विश्वास ही उन्हें माता-पिता का आदर करना सिखलाता है। जब बच्चों को यह विश्वास हो जाता है कि उनके माता-पिता कोई गलती नहीं कर सकते तभी वह उनका आदर करते हैं। बच्चों को सदैव उनके माता-पिता के लिए शिष्ट व्यवहार तथा मीठे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। उनकी आज्ञाओं का सहर्ष पालन करना चाहिए। माता-पिता जो व्यवहार चाहते हैं, उसे ही करें तथा जिन कार्यों को करने से वह अप्रसन्न होते हैं, उन्हें न करें।
भाई-बहनों के प्रति व्यवहार के बारे में बताए? – एक ही पिता की सन्तान आपस में भाई-बहन अथवा भाई-भाई का सम्बन्ध रखते है। माता-पिता को अपने सभी बच्चे समान रूप से ही प्यारे होते हैं, भले ही कोई बड़ा हो अथवा छोटा, सुन्दर हो अथवा कुरुप, गुणवान हो अथवा गुणहीन, स्वस्थ हो अथवा अस्वस्थ । इसलिए अपने भाई-बहनों को अपना प्रतिद्वंदी समझ कर उनसे ईर्ष्या-द्वेष रखना, लड़ना-झगड़ना बच्चों को शोभा नहीं देता।
बच्चों को चाहिए कि वह अपने भाई-बहनों के संग मिल-जुल कर रहें। अपने बड़े भाई-बहनों को आदर तथा छोटे भाई-बहनों को स्नेह देना चाहिए। सभी को प्यार भरा उचित व्यवहार दें; जिससे घर में सुख और शांति का वातावरण बना रहे। बड़े भाई-बहनों का सदैव आदर करना चाहिए तथा छोटे भाई-बहनों की देखभाल करनी चाहिए और उन्हें अच्छी-अच्छी आदतें सिखानी चाहिए। यदि बड़े भाई-बहन अपने व्यवहार को छोटों की नासमझी के कारण आवश्यकतानुसार बदलना सीख जाएं तो भाई-बहनों के आपसी सम्बन्ध में अत्याधिक सुधार हो जाए।
अन्य सदस्यों के प्रति व्यवहार कैसे होते हैं? – अपने माता-पिता तथा भाई-बहनों के अतिरिक्त परिवार में कुछ अन्य सदस्य भी होते हैं जैसे दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ आदि। परिवार के सदस्य होने के ही नाते यह लोग भी परिवार की भलाई के लिए कार्य करते हैं। इन सभी सम्बन्धियों के साथ बच्चों को कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका विवरण अब यहां दिया जाएगा।
1. दादा-दादी, नाना-नानी के प्रति व्यवहार के बारे में बताए? – ये लोग बच्चों के माता-पिता के भी माता-पिता होते हैं, इसलिए परिवार में इनका एक विशेष स्थान होता है। इनका छोटे बच्चों से बहुत लगाव होता है क्योंकि ये बच्चे उनकी सन्तान की सन्तान है। बच्चों को चाहिए वे उन्हें भी उतना ही सम्मान दें, जितना कि वे अपने माता-पिता को देते है। बच्चों व दादा-दादी, नाना-नानी में उम्र का फर्क होने के नाते कुछ कठिनाइयां सामने आती हैं।
ये लोग अपने विचारों को आधुनिक युग के विचारों से नहीं मिला पाते, जिस कारण बच्चे उनके विचारों से सहमत नहीं होते। ये पूर्वज पुरानी परिपाटी को बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि वह उनके युग की देन है। उनके तथा आधुनिक बच्चों के विचारों तथा व्यवहार में बहुत अन्तर होता है। बच्चों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे पूर्वजों के विचार बदल तो नहीं सकते किन्तु आदर व प्रेम से वे अपने विचार उन्हें समझा सकते हैं। इसके अतिरिक्त उनको चाहिए कि समय-समय पर उनके साथ बातचीत करें,
अपने अनुभव सुनाएं और उनके अनुभव सुनें। ऐसा करने से दोनों में ही एक-दूसरे को समझने की क्षमता बढ़ेगी जो आपसी सम्बन्धों को सुधारने और बनाए रखने में सहायक सिद्ध होगा।
2. अन्य सम्बन्धियों के प्रति व्यवहार के बारे में समझिए? – मामा-मामी, बुआ, मौसी आदि का भी बच्चों से सम्बन्ध होता है। वास्तव में माता-पिता के पश्चात्स म्बन्धियों में इन्हीं का स्थान निकट का होता है। यूं भी अपने माता-पिता के भाई-बहन होने के नाते यह सभी हमारे आदरणीय हैं। चचेरे, ममेरे भाई-बहनों को अपने ही भाई-बहनों के समान ही जानना चाहिए और उन्हें भी प्यार और आदर देना चाहिए।
3. आधीन कर्मचारी वर्ग के प्रति व्यवहार के बारे में समझिए? – इन सब सम्बन्धियों के साथ ही साथ बच्चों को उन व्यक्तियों की ओर ध्यान देना चाहिए जो एक अरसे से उनके परिवार की सेवा कर रहे हैं। यह लोग हैं-घर के नौकर, चौकीदार, दूध वाला, धोबी, सब्जी वाला, जमादार इत्यादि। यह गरीब लोग मेहनत करते हैं और अपना और अपने परिवार का पेट पालते है। अपने मालिकों से इन्हें सदैव सहानुभूति की आशा रहती है। बच्चों को सदैव मेहनत की कदर करनी चाहिए और इस वर्ग में काम करने वालों से भी सम्मानपूर्ण और मधुर शब्दों में बोलना चाहिए।
घर में काम करने वाले नौकर अथवा नौकरानियां, छोटे-छोटे बच्चों के पालन-पोषण में भी सहायक होते हैं। यही बच्चे जब बड़े होकर इन्हें दुत्कारते है तो सचमुच इन्हें बहुत ठेस पहुंचती है। इसलिए बच्चों को सदैव याद रखना चाहिए कि यह लोग भी उनके परिवार का एक अंग ही हैं और इनसे भी परिवार के अन्य सदस्यों की भांति सदैव सम्मानपूर्वक बोलना चाहिए।
4. मित्रों के प्रति व्यवहार के बारे में बताए? – परिवार के सदस्यों के बाद बच्चों के जीवन में मित्रों का महत्व बहुत अधिक होता है। बच्चो याद रखो योग्य मित्रों के चयन पर ही तुम्हारे जीवन की सफलता निर्भर करती है। इसका कारण यह है कि संगति के प्रभाव से कोई व्यक्ति नहीं बच सकता। मित्रता जोड़ते समय बच्चों को अत्यन्त सावधानी बरतनी चाहिए।
मित्रों का चुनाव और उनके प्रति कर्तव्य कैसे होते हैं?
(1) मित्रता स्थापित करने के लिए उसे स्वयं एक अच्छा मित्र बनना चाहिए।
(2) मित्र ऐसा हो जो सुख-दुःख में काम आये। मित्र को धन वैभव तथा खुशहाली के आधार पर नहीं तोला जा सकता। गरीब हो या अमीर, छोटा हो या बडा मित्र तो मित्र ही होता है।
(3) मित्रों के लिए कोई भी बलिदान बड़ा नहीं है। उनके लिए कुछ भी करने को हर समय तैयार रहना चाहिए।
(4) मित्रों से शिष्टाचार का व्यवहार करना चाहिए ।
(5) मित्रों की इच्छाओं, विश्वास, रीति-रिवाज, रहन-सहन, विचारों आदि का आदर करना चाहिए।
(6) मित्रों पर विश्वास करना तथा उनके प्रति वफादार होना मित्रता की आधारशिला है।
(7) मित्रों को बुराई से बचाना और सच्चाई की ओर ले जाना चाहिए ।
(8) झूठ बोलने वाले और कपटी बच्चों की संगति से हमेशा बच कर रहना चाहिए।
FAQ
प्रश्न 1. एक परिवार में कौन से सदस्य होते हैं?
प्रश्न 2. परिवार का सदस्य होने का क्या अर्थ है?
प्रश्न 3. 5 सदस्यों के परिवार को क्या कहते हैं?
प्रश्न 4. छोटे परिवार में कितने सदस्य रहते हैं?
प्रश्न 5. परिवार के सदस्य का उदाहरण क्या है?
माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, बच्चे, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, मामा-मामी, ससुर-सास, भतीजे-भांजे,
प्रश्न 6. परिवार के प्रकार कितने हैं?
1. संयुक्त परिवार
2. एकवंशीय परिवार
3. अनाथ बच्चों का परिवार
4. आधुनिक परिवार
प्रश्न 7. संयुक्त परिवार में कितने सदस्य होते हैं?
प्रश्न 8. तीन प्रकार के परिवार कौन से हैं?
2. एकवंशीय परिवार
3. अनाथ बच्चों का परिवार
प्रश्न 9. परिवार का सबसे छोटा सदस्य कौन है?
प्रश्न 10. परिवार का गठन कैसे होता है?
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