NCERT Solutions Class 6th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 6 प्राथमिक सहायता Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 6th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 6 प्राथमिक सहायता

Text BookNCERT
Class 6th
Subjectगृह विज्ञान
Chapter 6th
Chapter Nameप्राथमिक सहायता
CategoryClass 6th गृह विज्ञान
MediumHindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 6th (गृह विज्ञान) Home science chapter- 6 प्राथमिक सहायता Notes in Hindi हम इस अध्याय में प्राथमिक चिकित्सा से क्या अभिप्राय है, प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए 3 कदम क्या हैं?, प्राथमिक चिकित्सा ग्रेड 4 क्या है?, प्राथमिक चिकित्सा के 5 मुख्य उद्देश्य क्या है?, प्राथमिक उपचार कितने प्रकार के होते हैं?, प्राथमिक उपचार का नियम क्या है?, प्राथमिक चिकित्सा दिवस कब मनाया जाता है?, प्राथमिक रोकथाम क्या है?, हड्डी टूटने का प्राथमिक उपचार क्या है?, प्राथमिक चिकित्सा किसने शुरू की?, प्राथमिक चिकित्सा कौन देता है?, फर्स्ट एडर की परिभाषा क्या है?, फर्स्ट एडर की जिम्मेदारियां क्या हैं?, प्राथमिक चिकित्सा का उद्देश्य क्या है?, फुल एडर सर्किट में कितने, आउटपुट होते हैं?, First Aid शब्द का प्रथम बार प्रयोग कब और कहाँ किया गया था?, आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 6th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 6 प्राथमिक सहायता

Chapter – 6

प्राथमिक सहायता

Notes

प्राथमिक सहायता किसे कहते हैं – दैनिक जीवन में कई प्रकार की दुर्घटनाएं घटती रहती है। चाहे हम घर में हों, स्कूल में हो या बाहर हो कभी न कभी, कहीं न कहीं दुर्घटनाएं सामने आती है। इस प्रकार अचानक घटने वाली दुर्घटनाओं में घायल की जो चिकित्सा, डॉक्टर के पास या अस्पताल ले जाने से पूर्व की जाती है उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं। दूसरे शब्दों में घटना स्थल पर डॉक्टर के आने से पहले घायल की जो सहायता की जाती है। उसे प्राथमिक सहायता कहते है। प्राथमिक सहायता देने वाले व्यक्ति को प्रथम सहायक कहते है।

प्राथमिक सहायता के लाभ का वर्णन करें – घायल की थोड़ी-सी सहायता करने से उसका जीवन बच सकता है तथा रोग आगे नहीं बढ़ता है। स्कूल के किसी बच्चे की उंगली पेंसिल बनाते समय ब्लेड से कट जाती है और रक्त बहने लगता है। किसी की नाक में से रक्त बहने लगता है या किसी को बेहोशी आ जाती है। उस समय यदि हमें प्रथम सहायता का थोड़ा सा भी ज्ञान हो तो हम रक्त रोकने तथा बेहोशी को दूर करने का उपाय कर सकते है। इससे दशा अधिक गम्भीर नहीं होगी। यदि हम डॉक्टर की प्रतीक्षा करते रहेंगे तो अधिक खून निकलने से बच्चे की दशा अधिक चिंताजनक हो सकती है। अतः प्राथमिक सहायता का ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के लिए अति आवश्यक है। परन्तु प्रथम सहायक का यह अर्थ नहीं कि वह डॉक्टर का स्थान ही ले ले। किन्तु डॉक्टर के आने तक वह घायल की चिकित्सा करता रहे। डॉक्टर के आने के पश्चात् उसका उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है।

प्रथम सहायक के गुण बताए – प्रथम सहायता देने वाला चाहे बच्चा, बूढ़ा या युवा हो उसमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए :-

(1) उसे साहसी होना चाहिए जिससे संकट का सामना धैर्य से कर सके।
(2) घायल के लक्षणों को शीघ्र पहचान कर उसका उपचार कर सके।
(3) घटना स्थल पर जो भी वस्तु उपलब्ध हो उसका उचित प्रयोग कर सके।
(4) घायल को बिना कष्ट दिए उसका उपचार कर सके।
(5) उसे दयालु मीठा बोलने वाला, प्रसन्नचित्त तथा धैर्यवान होना चाहिए।

कुछ आकस्मिक दुर्घटनाएं

1. कट जाना व छिलना या खरोच लगना
2. जलना
3. झुलसना
4. बिजली का धक्का
5. मोच
6. कीड़ों के डंक
7. जानवरों का काटना
8. मूर्छा या बेहोशी
9. नाक से रक्तस्राव
10. हड्डी की टूट

1. कट जाना व छिलना या खरोच लगना – कभी-कभी ब्लेड के साथ पेंसिल बनाते समय या सब्जी काटते समय चाकू द्वारा हाथ या उंगली कट जाती है। उस समय वहां से थोड़ा या अधिक रक्त निकलने लगता है। ऐसे भी होता है कि खेलते समय ऊपरी त्वचा छिल जाती है और रक्त बहने लगता है।

उपचार –

(1) रक्त को रोकने के लिए उस स्थान पर दबाव डालना चाहिए।
(2) कटे हुए स्थान को किसी भी कीटाणुनाशक औषधि द्वारा साफ करना चाहिए जैसे पोटाशियम परमागनेट अथवा स्पिरिट, इससे घाव रोगाणुओं से बच जाता है। यदि ये औषधियां उपलब्ध न हों तो उस स्थान को स्वच्छ पानी से धो दें।
(3) घाव को ढकने के लिए कीटाणु रहित रुई व पट्टी का प्रयोग करना चाहिए।
(4) घाव पर मरक्यूरो क्रोम (लाल दवाई) या टिंचर बेन्जोइन लगाना चाहिए।
(5) छोटे घाव को ढकने के लिए बाजार से उपलब्ध तैयार दवाईयुक्त प्लास्टर बैंड-एड (Band-aid) का प्रयोग किया जा सकता है।
(6) घाव पर यदि खुरण्ड जमा हो तो उसे हटाना नहीं चाहिए क्योंकि यह रक्त को रोकने का प्राकृतिक साधन है।

2. जलना – सूखी गर्मी से जलना जैसे-आग, गर्म धातु, तेजाब, क्षार, तेज घूमने वाले पहिये या तार की रगड़ से जलना।

लक्षण –

(1) अधिक पीड़ा
(2) सदमा
(3) त्वचा पर लाली

उपचार –

(1) सदमे को दूर करने के लिए घायल को गर्म रखें।
(2) जलन को कम करने के लिए जले हुए स्थान पर तुरन्त ठण्डा पानी डालें।
(3) जले हुए स्थान पर कोई भी ठण्डक पहुँचाने वाला पदार्थ लगायें।
(4) जले हुए स्थान पर कोई एन्टीसेप्टिक क्रीम लगाये।

नोट :- यदि कपड़ों में आग लग जाये तो घायल व्यक्ति के शरीर को किसी मोटे कपड़े में लपेटे या उसे भूमि पर करवटें लेने को कहें। उससे आग बुझ जायेगी। घायल को कभी दौड़ने नहीं देना चाहिए। आग बुझाने के लिए उस पर पानी नहीं डालना चाहिए।

3. झुलसना – तरल पदार्थों से जलना-जैसे गर्म पानी, गर्म दूध, गर्म घी, गर्म तेल, भाप आदि।

लक्षण :-

(1) अधिक पीड़ा व जलन
(2) सदण
(3) त्वचा झुलस जाती है व छाले पड़ जाते है।
(4) घाव बन जाता है।

उपचार :-

(1) घायल को अधिक से अधिक आराम पहुँचाने के लिए जले हुए स्थान पर ठण्डा पानी डालें।
(2) यदि छाले पड़ जाये तो उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए और न ही कपड़े को हटाना चाहिए, यदि वह जले स्थान पर चिपक गया हो।
(3) सदमे से बचाने के लिए घायल को गर्म रखें।

नोट :- घायल को गर्म-गर्म चाय या काफी में अधिक चीनी डालकर दें। जलने व झुलसने पर घायल को अतिशीघ्र डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

4. बिजली का धक्का – बिजली का तार छूने से कभी-कभी बड़े जोर से धक्का लगता है। जिससे शरीर को बड़ी हानि पहुँच सकती है। कभी-कभी तार से चिपक कर मूर्छा आ जाती है। यह धक्का कभी-कभी इतना तीव्र हो जाता है कि मृत्यु भी हो सकती है। इतना ही नहीं कई बार तो बिजली के सम्पर्क में आये हुए व्यक्ति को बचाने वाले का स्वयं का जीवन भी संकट में पड़ जाता है। अतः बिजली के सम्पर्क में आये हुए मनुष्य को बचाने के लिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।

लक्षण –

(1) सदमा या मूर्छा
(2) सांस का रुकना
(3) चेहरा नीला पड़ जाता है।

उपचार –

(1) बिजली के तार और खंभे से चिपके हुए मनुष्य को कभी भी हाथ से पकड़ कर नहीं उतारना चाहिए।
(2) मुख्य स्विच बंद कर देना चाहिए।
(3) यदि मुख्य स्विच दूर हो तो किसी सूखी लकड़ी से व्यक्ति को तार से अलग कर देना चाहिए।
(4) तार से अलग करने के उपरान्त यदि सांस रुक गई हो तो कृत्रिम विधि द्वारा सांस दिलानी चाहिए।
(5) बिजली का धक्का लगने से हृदय पर गहरा सदमा पहुँचता है। उसके कुप्रभाव से बचने के लिए व्यक्ति को गर्म दूध या चाय पिलानी चाहिए।

5. मोच कभी-कभी जल्दी-जल्दी चलने से या भागने से या फिसल कर गिर जाने से शरीर के किसी भी जोड़ पर अचानक झटका आ जाता है या वह मुड़ जाता है तो उस समय जोड़ के आसपास के बन्धन या तो टूट जाते है या खिंच जाते है। इसे मोच आ जाना कहते है। मोच अधिकतर हाथ व पैर में ही आती है।

लक्षण –

(1) जोड़ वाले स्थान में दर्द।
(2) जोड़ को हिलाने में कष्ट।
(3) सूजन तथा नीलापन।

उपचार –

(1) मोच वाले अंग को अधिक से अधिक आरामदेह स्थिति में रखें।
(2) वहां पर करेप पट्टी बांध दें।
(3) यदि आराम न मिले तो पट्टी को ठण्डे पानी में भिगो कर बांध दें और उसे गीला रखें।
(4) कुछ समय पश्चात् गर्म सेक करें।

6. कीड़ों के डंक

कभी-कभी बिच्छू, मधुमक्खी, बर्रे आदि मनुष्य के शरीर पर डंक मार देते हैं तो उस समय भयंकर स्थिति हो जाती है।

लक्षण –

(1) वह स्थान सूज जाता है।
(2) गम्भीर पीड़ा होती है।
(3) बहुत अधिक बेचैनी होती है।

उपचार –

(1) सुई की नोक को गर्म करके उस से डंक निकाले।
(2) यदि डंक अन्दर हो तो अंगूठे व ऊंगली द्वारा उस स्थान के चारों ओर दबाव डाले जिससे डंक ऊपर आ जाए और विष बाहर निकल जाए।
(3) उस स्थान को डिटोल या पोटाशियम परमैंगनेट से धो कर खाने वाले सोडे का घोल लगा दें।
(4) यदि आसपास का स्थान सूज गया है तो सूखी गर्म सेंक करके पट्टी बांध दें।

7. जानवरों का काटना – कभी कुत्ता, बन्दर व सांप काट लेते है तो उसका उपचार उसी समय कर लेना चाहिए नहीं तो स्थिति चिन्ताजनक हो जाती है। प्रत्येक के लक्षण व उपचार भिन्न-भिन्न है। इनके विषय में अब हम संक्षिप्त रूप में पढ़ेंगे।

(क) पागल कुत्ते का काटना
(ख) बन्दर का काटना
(ग) सांप का काटना

(क) पागल कुत्ते का काटना

पागल कुत्ते के चिन्ह

(1) कुत्ते की पिछली टांगें कमजोर हो जाती है और वह भाग नहीं सकता।
(2) पानी को देख कर डरता है।
(3) उसके मुंह से सफेद झाग निकलती है।
(4) कुत्ता काटने के पश्चात् दस दिन के अन्दर मर जाता है।

उपचार

(1) रोगी के सदमे को दूर करें।
(2) घाव को साबुन व पानी से साफ करें।
(3) कटे हुए स्थान को कार्बोलिक अम्ल से दाग दें।
(4) पोटाशियम परमैंगनेट के घोल से घाव को साफ करें या उसके दो तीन दाने घाव में डाल दें।
(5) लोहे को गर्म करके भी वहां लगाते हैं।
(6) टिंचर आयोडीन को कटे हुए स्थान पर लगा दें।
(7) रोगी के उत्साह को बढ़ाने के लिए गर्म चाय या कॉफी पीने को दें।
(8) उसी समय डॉक्टर के पास ले जाते है।
(9) कुत्ते के काटने पर पास्चर के टीके लगते है।

नोट – यदि उसी समय उपचार न किया जाए तो मनुष्य के अन्दर भी पागल कुत्ते के लक्षण आ जाते है

(ख) बन्दर का काटना


कभी-कभी बन्दर भी काट लेता है। उसके काटे का उपचार भी कुत्ते के काटने की भांति करना चाहिए।

(ग) सांप का काटना


लक्षण

(1) भय से सदमा।
(2) अधिक पीड़ा व बेचैनी।
(3) सांस लेने में कठिनाई।

उपचार

(1) डॉक्टर को बुलाना चाहिए।
(2) घाव के ऊपर व नीचे बन्धन बांध दें।
(3) पोटाशियम परमैंगनेट के घोल से घाव को धो दें।
(4) किसी तेज वस्तु को कीटाणुरहित करके घाव पर क्रास (x) का चिन्ह लगा दें फिर उसमें पोटाशियम परमँगनेट के दाने भर दें।
(5) रोगी को गर्म रखें व पूरा आराम दें।
(6) उसे सोने न दें।
(7) यदि वह निगल सके तो गर्म काफी या चाय पीने को दें।

8. मूर्छा या बेहोशी – अचानक खुशी या दुख का समाचार सुनकर, अधिक दर्द, अधिक गर्मी या सर्दी के कारण, भयानक दृश्य देखने से, अधिक भीड़ में बैठे रहने से मूर्छा आ जाती है। मस्तिष्क में रक्त ठीक मात्रा में न पहुँचने से भी बेहोशी आ जाती है।

लक्षण

(1) दाँत पिचक जाते है।
(2) हाथ पैर ठंडे हो जाते हैं।
(3) चेहरे का रंग पीला पड़ जाता है।
(4) नाड़ी की गति मन्द हो जाती है।
(5) साँस लेने में कठिनाई होती है।
(6) माथे पर पसीना आता है।

उपचार –

(1) बेहोश व्यक्ति को पूर्ण आराम दें व सदमें को दूर करें।
(2) बेहोश व्यक्ति को खुले स्थान पर ले जाकर सीधा लिटा दें। कमरे की खिड़कियां व दरवाजे भी खोल दे जिससे शुद्ध वायु मिल सकें।
(3) आसपास की भीड़ को हटा दें।
(4) श्वास लेने में रुकावट हो तो कृत्रिम सांस दें। यदि सिर पर चोट नही लगी हो तो सूंघने वाला नमक सुघाएं।
(5) गर्म कपड़े या कम्बल द्वारा गर्म रखे।
(6) यदि चेहरे का रंग लाल है तो इसका अर्थ है कि सिर की ओर रक्तस्राव अधिक है इसलिए गर्दन को ऊंचा कर दे।
(7) यदि चेहरे का रंग पीला हो तो इसका अर्थ है कि टांगों की ओर रक्तस्राव अधिक हो रहा है इसलिए टांगों को थोड़ा ऊंचा कर दें।
(8) यदि चोट लगने से कहीं से रक्त बह रहा हो तो उसको पहले रोकें।
(9) जब तक होश न आए तब तक खाने पीने के लिए कुछ नहीं दें। होश आने पर गर्म कॉफी, दूध या चाय पीने को दें।

9. नाक से रक्तस्राव

प्रायः गर्मियों में अधिक गर्मी होने के कारण नाक से रक्त बहता है। इसे नक्सीर फूटना भी कहते हैं। कभी-कभी नाक पर चोट लगने के कारण मुंह के बल गिरने से भी नाक से रक्त बहता है। जब भी नक्सीर फूटे उसी समय उसका निम्नलिखित प्रकार से उपचार करना चाहिए :-

(1) घायल को खुले स्थान पर या खिड़की के सामने ले जाकर कुर्सी पर बैठा दें जिससे शुद्ध वायु मिल सके।
(2) उसके सिर को पीछे व हाथ को ऊंचे कर दें। यदि रोगी बैठ नहीं सकता तो उसे सीधा लिटा कर कन्धों के नीचे दो तकिये रख दें।
(3) गर्दन तथा छाती के आसपास के तंग वस्त्रों को ढीला कर दें।
(4) नाक द्वारा सांस न लेकर मुंह द्वारा सांस लेने को कहें।
(5) नाक तथा सिर पर ठण्डे पानी की पट्टी रखें या सिर पर पानी डालें ताकि रक्त का बहाव कम हो जाए।
(6) एक चिलमची में गुनगुना पानी लेकर घायल के पैरों को उसमें रखें तथा उसे तौलिये के साथ ढक दें। गर्म पानी द्वारा रक्त का बहाव पैरों की ओर अधिक होगा।

10. हड्डी की टूटजब हड्डी के एक या एक से अधिक टुकड़े हो जाते हैं या उसमें दरार आ जाती है तो उसे हड्डी की टूट कहते है।

लक्षण

(1) हड्डी टूटने के स्थान पर या उसके निकट तीव्र दर्द होता है।
(2) वह स्थान सूज जाता है।
(3) वह अंग शक्तिहीन हो जाता है।
(4) उसका आकार अप्राकृतिक हो जाता है और वह अंग लटक जाता है।

उपचार

(1) घायल भाग को तुरंत सहारा देना चाहिए।
(2) यदि रक्त बह रहा हो तो उसे रोकना चाहिए।
(3) जिस अंग की हड्डी टूटी है उसे स्थिर कर देना चाहिए। इसके लिए पट्टियों तथा कमठियों का प्रयोग करते है। यदि कमठियां न मिलें तो उसके स्थान पर गत्ता, फुटा, लकड़ी का टुकड़ा, छड़ी अथवा मोटे कपड़े को तह लगा कर प्रयोग कर सकते है। इनमें से किसी का भी प्रयोग करने से पहले उन पर रुई लपेट देनी चाहिए जिससे उनकी कठोरता के कारण घायल अंग को कष्ट न हो।
(4) फिर उस अंग को झोली द्वारा ठीक प्रकार से सहारा देना चाहिए।

पट्टियां कितने प्रकार के होते हैं

पट्टियां दो प्रकार की होती है-

(1) तिकोना पट्टी
(2) गोल पट्टी

(1) तिकोनी पट्टी – प्राथमिक सहायता में अधिकतर तिकोनी पट्टी का प्रयोग होता है। इसके लाभ निम्नलिखित है :-

(1) मोच आए हुए या चोट लगे हुए हिस्से को सहारा देती है।
(2) रक्त के प्रवाह को रोकती है तथा सूजन को कम करती है।
(3) हड्डी के टूटने पर उस अंग को स्थिर रखती है।

(2) गोल पट्टी – गोल पट्टी गॉज के कपड़े से बनती है। इसका प्रयोग घाव को ढकने के लिए किया जाता है।

प्रयोग –

(1) घाव पर लगी दवाई या रुई को स्थिर रखने के लिए।
(2) दर्द व सूजन को कम करने के लिए।
(3) अंगों को सहारा देने के लिए।
(4) रक्त के बहाव को कम करने के लिए।

(2) रीफ गांठ – रीफ गांठ बांधने के लिए पट्टी के दोनों सिरों को हाथों में पकड़ लें। दायें हाथ के सिरे को बायें हाथ के सिरे के नीचे से निकाल कर ऊपर लाकर चक्कर दे दें। फिर बायें हाथ के सिरे को दायें हाथ के सिरे के नीचे से निकाल कर ऊपर लाकर चक्कर दे दें। फिर दोनों सिरों को खींच दें। दिखाए गए चित्र की भांति गांठ बन जाएगी।

झोलियां किसे कहते है – चोट लगने या हड्डी के टूटने पर यदि वह हिस्सा लटकता हुआ रखा जाये तो अधिक कष्ट होता है। इसलिए उसे सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टी को झोली बनाकर गले में लटका देते हैं।

झोलियां कई प्रकार की होती है :-

(1) बांह की बड़ी झोली
(2) बांह की छोटी झोली
(3) कालर कफ झोली

(1) बांह की बड़ी झोली – इसका प्रयोग आगे की बांह तथा हाथ को सहारा देने के लिए करते हैं। चित्र 1 की भांति तिकोनी पट्टी को खोलकर घायल की छाती पर फैला दें। फिर चित्र 2 की भांति दोनों अंतिम कोनों को घायल बांह की हंसली की हड्डी पर रीफ गांठ से बांध दें। कोहनी वाले कोने को आगे की ओर खींचकर थोड़ा मोड़ दें और पिन लगा दें। पट्टी बांधने के बाद यह देखना चाहिए कि पट्टी का आधार छोटी अंगुली के नाखून की जड़ तक पहुचे जिससे सभी अंगुलियों के नाखून दिखाई देते रहें।

(2) बांह की छोटी झोली – यह कलाई को सहारा देती है और कोहनी को खुला रखती है। पट्टी के एक सिरे को स्वस्थ कन्धे पर रखें और उसको गर्दन के पीछे से इस प्रकार घुमाएं कि वह घायल कलाई वाले कन्धे के ऊपर आ जाए। कलाई को पट्टी पर इस प्रकार रखें कि उसके सामने का सिरा अंगुली को ढक ले। फिर दूसरे सिरे को ऊपर ले जाकर पहले सिरे से बांध लें।

(3) कालर कफ झोली – इसका प्रयोग कलाई को सहारा देने के लिए किया जाता है। इसको बांधने के लिए चित्र 3 के अनुसार घायल की कोहनी को इस प्रकार मोड़कर रखें कि वह 45 का कोण बनाए। चित्र 4 के अनुसार कलाई की क्लोवहिच गांठ से स्थिर करते हुए घायल बांह की हंसली की हड्डी पर दोनों अंतिम किनारों को रीफ गांठ से बांध दें।

प्रथम सहायता का डिब्बा क्या होता है – प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सक के पास घर में तथा स्कूल में एक साधारण छोटा प्रथम सहायता का डिब्बा होना चाहिए, जिसमें प्राथमिक चिकित्सा सम्बन्धी निम्नलिखित आवश्यक सामान हो :-



(1) टिंक्चर आयोडीन
(2) टिंक्चर बैन्जोइन
(3) ऐक्रीफलेविन या मरक्यूरोक्रोम
(4) स्पिरिट तथा अमोनिया
(5) पोटाशियम परमैंगनेट तथा डिटोल
(6) सोडा-बाई-कार्ब
(7) सूंघने का नमक (स्मैलिंग साल्ट)
(8) एस्प्रीन या दर्दनाशक दना
(9) कीटाणुनाशक क्रीम
(10) दवाईयुक्त प्लास्टर (बैंड-एड)
(11) तिकोनी व गोल पट्टी
(12) रुई, गॉज (जाली वाला कपड़ा)
(14) कमठियां
(15) थर्मामीटर

FAQ

प्रश्न 1. गरम सेंक वाली पट्टी से क्या लाभ है?

यह घाव तथा चोट के दर्द को कम कर देता है।

प्रश्न 2. गौज किसे कहते हैं?

लम्बी पट्टियाँ सामान्यतः जाली वाले सफेद कपड़े से बनाई जाती हैं। इस कपड़े को गौज कहते हैं।

प्रश्न 3. घायल अंगों को सहारा देने के लिए आप किस प्रकार की पट्टियों का इस्तेमाल करते हैं?

घायल अंगों को सहारा देने के लिए हम तिकोनी पट्टियों काइस्तेमाल करते हैं।

प्रश्न 4. ‘रीफ’ गाँठ बाँधने के कोई तीन लाभ बताए?

‘रीफ’ गाँठ बाँधने के तीन लाभ इस प्रकार हैं-
1. उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण
2. दर्द में कमी
3. जल्दी से जल्दी ठीक

प्रश्न 5. सबसे अच्छी पट्टी कौन-सी है?

कीटाणुरहित स्वच्छ पट्टी सबसे अच्छी पट्टी होती है।

प्रश्न 6. आपातकाल में पट्टियाँ न उपलब्ध होने पर आप क्या करेंगे?

आपातकाल में पट्टियों के स्थान पर किसी रूमाल या स्वच्छ कपड़े का टुकड़ा प्रयोग करके घाव को ढककर बाँध देना चाहिए।

प्रश्न 7. लम्बी पट्टियाँ बनाने के लिए कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?

लम्बी पट्टियाँ सामान्यतः जाली वाले सफेद कपड़े से बनाई जाती हैं।

प्रश्न 8. गीली मरहम-पट्टी क्यों की जाती है?

गीली मरहम-पट्टी का प्रयोग सूजन कम करने के लिए की जाती है।

प्रश्न 9. पट्टियाँ कितने प्रकार की होती हैं?

पट्टियाँ दो प्रकार की होती हैं-
(1) तिकोनी पट्टियाँ
(2) लम्बी पट्टियाँ

प्रश्न 10. झोलियां क्या होता है?

चोट लगने या हड्डी के टूटने पर यदि वह हिस्सा लटकता हुआ रखा जाये तो अधिक कष्ट होता है। इसलिए उसे सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टी को झोली बनाकर गले में लटका देते हैं।

प्रश्न 11. तिकोनी पट्टी का प्रयोग कब-कब किया जाता है?

शरीर के चोट लगे स्थान पर या घायक अंगो को सहारा देने के लिए तिकोनी पट्टी का प्रयोग करते है।

प्रश्न 12. पट्टियाँ बाँधते समय मुख्य रूप से किस गांठ को अपनाया जाता है?

रीफ गांठ को अपनाया जाता है।

प्रश्न 13. तिकोनी पट्टी के लिए प्रायः कौन-सा कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है?

मारकीन नामक कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 14. नक्सीर किसे कहते है?

गर्मियों में अधिक गर्मी होने के कारण नाक से रक्त बहता है। इसे नक्सीर फूटना भी कहते हैं।

प्रश्न 15. हड्डी की टूट किसे कहते है?

जब हड्डी के एक या एक से अधिक टुकड़े हो जाते हैं या उसमें दरार आ जाती है तो उसे हड्डी की टूट कहते है।
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Chapter – 1 गृह विज्ञान का अर्थ एवं महत्व
Chapter – 2 हमारे स्वस्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वछता
Chapter – 3 हमारा भोजन
Chapter – 4 हमारे वस्त्र
Chapter – 5 सिलाई कढ़ाई एवं बुनाई
Chapter – 6 प्राथमिक सहायता
Chapter – 7 उपभोक्ता ज्ञान
Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध
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