NCERT Solutions Class 6th Home Science Chapter – 4 हमारे वस्त्र Notes in Hindi

NCERT Solutions Class 6th Home science Chapter – 4 हमारे वस्त्र

Text BookNCERT
Class 6th
Subjectगृह विज्ञान
Chapter 4th
Chapter Nameहमारे वस्त्र
CategoryClass 6th गृह विज्ञान
MediumHindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 6th Home science Chapter – 4 हमारे वस्त्र Notes in Hindi जिसमे हम विभिन्न प्रकार के वस्त्र या वस्त्रोपयोगी तन्तु?, वस्त्रोपयोगी तन्तुओं के प्रकार लिखिए?, तन्तु कितने प्रकार का होता है?, सूती कपड़ा क्या होता है?, सूत की विशेषताएं लिखिए?, ऊनी कपड़ा किसे कहते है?, ऊन की विशेषताएं लिखिए?, रेशमी कपड़ा किसे कहते है?, रेशम की उत्पत्ति किसे कहते है?, रेशम प्राप्त करने की विधि क्या है?, रेशम की विशेषताएं लिखिए?, कृत्रिम तन्तु किसे कहते है?, कृत्रिम तन्तुओं की विशेषताएं लिखिए?, वस्त्रों की आवश्यकता हमें क्यों है?, हमें कैसे वस्त्र पहनने चाहिए?, बच्चों के वस्त्रों का चुनाव कैसे करना चाहिए?, 4. वस्त्रों की धुलाई?, वस्त्रों की धुलाई में सहायक पदार्थ लिखिए?, पानी से आप क्या समझते है?, साबुन किसे कहते है?, डिटर्जेन्ट किसे कहते है?, वस्त्रों की धुलाई कैसे करे?, सूती वस्त्रों की धुलाई?, वस्त्र धोने की सामग्री?, वस्त्र धोने की विधि?, आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 6th Home Science Chapter – 4 हमारे वस्त्र

Chapter – 4

हमारे वस्त्र

Notes

विभिन्न प्रकार के वस्त्र या वस्त्रोपयोगी तन्तु

प्रकृति में ऐसी असंख्य वस्तुएं हैं जिनके बिना मनुष्य का भली-भांति जीवित रहना भी असम्भव हो जाता है। इन अनगिनत वस्तुओं में उन पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं का स्थान है जिनके द्वारा हमें तन्तु व रेशे प्राप्त होते हैं। इन तन्तुओं को विशेष प्रकार की मशीनों में डाल कर अनेक तरह के लम्बे व मजबूत धागों में परिवर्तित किया जा सकता है। इन तन्तुओं को बाद में वस्त्र बनाने के काम में लाया जाता है अतः ऐसे तन्तुओं को ‘वस्त्रोपयोगी तन्तु’ कहते हैं।

इसके अतिरिक्त कुछ तन्तु खानों व भूमि से प्राप्त होते हैं जिनको ‘खानों से प्राप्त होने वाले तन्तु’ कहते हैं जिनमें सोना व चांदी उल्लेखनीय है। ऐसे वस्त्र को जिनमें सोने व चांदी के रेशे प्रयोग में लाये जाते है ‘जरीदार वस्त्र’ कहते हैं।

मनुष्य स्वभाव से ही प्रगतिशील है। वह केवल उन वस्तुओं से सन्तुष्ट नहीं रहता जो केवल प्रकृति से ही प्राप्त होती है। मनुष्य ने कुछ रासायनिक द्रव्यों की सहायता से ऐसे तन्तुओं का निर्माण किया है जिनको ‘कृत्रिम तन्तु’ अथवा मानव निर्मित तन्तु कहते हैं।

वस्त्रोपयोगी तन्तुओं के प्रकार

• प्राकृतिक तन्तु।
• कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित तन्तु।
• मिश्रित तन्तु।

तन्तु के तीन प्रकार होता है

• प्राकृतिक
• कृत्रिम
• मिश्रित

(1) प्राकृतिक तन्तु

प्राकृतिक तन्तु उत्पत्ति के आधार पर तीन भागों में विभाजित किये जा सकते हैं-

(i) वानस्पतिक तन्तु ये हमें वनस्पति एवं पेड़-पौधों से प्राप्त होते हैं जिनसे सूती, लिनन और सन के कपड़े बनते हैं।
(ii) प्राणिज तन्तुः ये तन्तु हमें जीव-जन्तुओं से मिलते हैं जिनसे ऊनी व रेशमी कपड़े बनाए जाते है।
(iii) खानों से प्राप्त तन्तुः ये तन्तु भूमि से खोद कर निकाले जाते हैं जिनमें सोना व चांदी विशेष महत्त्वपूर्ण है।

(2) कृत्रिम तन्तु

कृत्रिम तन्तु विभिन्न प्रकार के रासायनिक द्रव्यों द्वारा बनाए जाते हैं। इनमें नायलोन, रैयोन, टैरीन, पोलिएस्टर, एक्रैलिक आदि आते हैं।

(3) मिश्रित तन्तु

प्राकृतिक व कृत्रिम तन्तुओं को मिला कर एक नए प्रकार का तन्तु तैयार किया जाता है जिसे मिश्रित तन्तु कहते हैं। इनमें टेरीकॉट, टेरीवूल आदि बहुत प्रसिद्ध हैं क्योंकि यह बहुत उपयोगी है।

सूती कपड़ा

सूत हमें कपास से मिलता है। कपास एक पौधे से प्राप्त होती है। कपास ऊष्ण-प्रदेश में उगती है। इसको उगाने के लिए हमें मुलायम मिट्टी की आवश्यकता होती है। जिसमें जल चूसने की शक्ति हो। कपास का पौधा एक फल देता है जो प्रारम्भ में हरे रंग का होता है किन्तु पक कर वह भूरे रंग का हो जाता है और खुल जाता है। खुलने पर उसमें से रूई प्राप्त होती है।

यदि कपास के पौधों के पक जाने पर उसमें से रुई न निकाली जाए तो कपास में पीलापन उत्पन्न हो जाता है। इस रुई को हाथ व मशीन द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है। इसमें काले रंग के छोटे-छोटे दाने होते हैं जिनको बिनौले कहते हैं। रुई को बिनौलों से अलग करने के बाद इसको हाथ-करघे अथवा मशीनों के द्वारा सूत में बदल दिया जाता है जिससे बाद में कपड़ा तैयार किया जाता है।

सूत की विशेषताएं – सूत के तन्तु छोटे होते हैं। इनकी लम्बाई लगभग 1.5 सेमी से 5 सेमी तक होती है। वास्तव में सब वस्त्रोपयोगी तन्तुओं में से इसकी लम्बाई सबसे कम होती है। सूत के लम्बे तन्तु बढ़िया किस्म के कपड़े बनाने के काम में लाये जाते हैं। सूत में लिनन के समान चमक तथा चिकनापन नहीं होता है। यह रेशम व ऊन से अधिक भारी होता है।

(1) रगड़ने का प्रभाव – धोते समय सूती कपड़े पर रगड़ने का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इसकी शक्ति पहले के समान बनी रहती है अतः इसे धोते समय रगड़ा भी जा सकता है।

(2) पानी सोखने की शक्ति – सूत में पानी को विलीन करने की शक्ति बहुत अधिक होती है अतः यह बहुत शीघ्र ही गीला हो जाता है। इसी कारण इसे झाड़न व तौलियाँ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

(3) ताप का संचालक – सूती कपड़ा ताप का अच्छा संचालक है। यह आसानी से गर्मी को बाहर निकालता है और शरीर को ठंडक पहुंचाता है। यही कारण है कि इसे गर्मियों में पहना जाता है।

(4) सोडे का प्रभाव -थोड़ी मात्रा में कपड़े धोने वाला सोडा सूती कपड़े पर कोई हानि नहीं पहुंचाता है। अतः सूती कपड़े धोने के लिए देसी साबुन काम में लाया जाता है। परन्तु अधिक तेज सोडा सूती कपड़ों का रंग खराब कर देता है।

ऊनी कपड़ा – ऊन प्रायः भेड़ों से प्राप्त होती है जिनमें सबसे अच्छी भेड़ मेरिनो जाति की मानी जाती है। इसके अतिरिक्त अंगोरा बकरी, खरगोश, गाय, ऊंट इत्यादि से भी थोड़ी मात्रा में ऊन मिलती है।

ऊन की विशेषताएं – ऊन के तन्तु लगभग 3.5 सेमी से 35 सेमी तक लम्बे होते हैं। ये तन्तु जितने लम्बे हो, ऊनी कपड़ा उतना ही बढ़िया और मजबूत होगा। प्रायः बढ़िया ऊन कपड़े और घटिया ऊन नमदे या गलीचे बनाने के काम में लाई जाती है।

(1) लचक – ऊन में एक बहुत बड़ा गुण लचक का पाया जाता है जिसके कारण यदि ऊन को हाथ में दबा कर ढीला छोड़ दिया जाए तो वह अपनी पूर्व अवस्था में वापस आ जाती है। इसी गुण के फलस्वरूप बढ़िया ऊन के वस्त्र अपने आकार को बनाए रखते हैं और अधिक टिकाऊ होते है।

(2) जुड़ने या फैल्ट बनने का गुण – प्रायः ऊन के रेशे एक दूसरे से अलग रहते हैं किन्तु गर्मी, नमी, रगड़ और दबाव से वे सिकुड़ जाते हैं और एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं, जिसको ऊन का ‘जुड़ना’ कहते हैं। ऊन का यह गुण फैल्ट के हैट, जूते आदि बनाने में बहुत लाभदायक होता है। परन्तु दूसरी ओर यदि ऊनी वस्त्रों को धोते समय सावधानी न बरती जाए तो ऊनी कपड़े सिकुड़ जाते हैं। ऊनी वस्त्रों को सिकुड़ने से बचाने के लिए यह अति आवश्यक है हम ऊनी वस्त्रों को जल्दी से जल्दी नरम हाथों से तथा गुनगुने पानी में धोएं जिससे ऊन के तन्तु अलग-अलग रहें और जुड़ने न पाएं।

(3) नमी व रगड़ने का प्रभाव – यदि ऊनी वस्त्रों को धोते समय रगड़ा जाए तो इनके तन्तु आपस में जुड़ जाते हैं, विशेषकर जब पानी का तापमान बदल दिया जाए। इसलिए यह आवश्यक है कि ऊनी वस्त्र धोते समय पानी का तापमान एक-सा रहे और वस्त्रों को अधिक जोर से न रगड़ा जाए।

(4) सूखा-ताप – ऊनी वस्त्र बहुत अधिक ताप सहन नहीं कर सकते हैं। यही कारण है कि ऊनी वस्त्रों पर प्रैस करने से पूर्व एक पतला कपड़ा गीला करके रखा जाता है तथा हल्की गर्म इस्तरी से दबा-दबा कर प्रैस किया जाता है।

(5) ताप का संचालक – ऊन ताप का बुरा संचालक है और शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता है। इसी कारण इसे सर्दियों में पहना जाता है।

(6) मजबूती – ऊन का रेशा जितना अधिक लम्बा होगा उसमें उतनी ही अधिक मजबूती होगी। ऊन को गीला करने पर उसकी 25 प्रतिशत मजबूती कम हो जाती है।

रेशमी कपड़ा – रेशम को ‘कपड़ों की रानी’ कहा जाता है। इसे यह पदवी अपनी मजबूती, चिकनाहट, कोमलता इत्यादि गुणों के कारण प्राप्त हुई है। रेशम के तन्तु रेशम के कीड़ों द्वारा प्राप्त होते हैं। ये कीड़े शहतूत के पेड़ पर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।

रेशम की उत्पत्ति – रेशम का प्रारम्भ कब और कैसे हुआ इस सम्बन्ध में एक कथा प्रसिद्ध है। कहते हैं कि चीन में एक राजकुमारी एक बाग में पेड़ के नीचे बैठ कर चाय पी रही थी। चाय के प्याले में एक चीज पेड़ से आकर गिरी जिसको बाद में ‘रेशम का कोया’ कहा गया। जब उस राजकुमारी ने उस को प्याले से निकाला तो उसकी ऊपरी सतह नरम हो गई थी जिसमें से लम्बे, मजबूत धागे निकाले जा सकते थे।

रेशम प्राप्त करने की विधि – रेशम का कीड़ा अपनी प्रौढ़तम अवस्था में अण्डे देता है। ये अण्डे शहतूत की पत्तियों को खाकर बड़े होते हैं। कुछ दिनों के बाद ये अपने सिर से दो लेसदार द्रव्य निकालते है। रेशम के कीड़े इन दोनों द्रव्यों को अपने ऊपर लपेट लेते है तथा एक खोल सा बना कर स्वयं उसके भीतर घुस जाते है। इसी खोल को रेशम का कोया या काकून कहते हैं।

रेशम बनाने के लिए इन्हीं रेशम के कोयों को इकट्ठा कर लिया जाता है। फिर भाप के द्वारा इनके भीतर के कीड़ों को मार कर चरखी की सहायता से रेशम उतार लिया जाता है जिससे बाद में रेशम के कपड़े तैयार किए जाते हैं।

रेशम की विशेषताएं लिखिए

(1) रगड़ने का प्रभाव – रेशम के तन्तुओं को कोमल होने के कारण मलने से उनकी चमक नष्ट हो जाती है अतः इनको धोते समय अधिक नहीं रगड़ना चाहिए।

(2) नमी का प्रभाव – रेशमी वस्त्र पर नमी का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह पानी में डालने से न सिकुड़ता है और न फैलता है।

(3) सूखा ताप – हल्की गर्म इस्त्री से रेशमी कपड़ों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु बहुत गर्म इस्त्री रेशमी कपड़ों को नष्ट कर देती है। सफेद रेशमी कपड़ा बहुत गर्म इस्त्री से पीला पड़ जाता है।

(4) ताप का संचालक – रेशम ताप का बुरा संचालक है। इसलिए शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देता। यही कारण है कि रेशम सूत की अपेक्षा अधिक गर्म होता है और इसे सर्दियों में पहनते हैं।

(5) सोडे का प्रभाव – कपड़े धोने वाले सोडे का रेशम पर हानिकारक प्रभाव होता है। कास्टिक सोडा के तेज घोल से रेशम के तन्तु नष्ट हो जाते हैं।

कृत्रिम तन्तु – कृत्रिम तन्तु विभिन्न प्रकार के रासायनिक द्रव्यों द्वारा बनाए जाते है। इन्हें बनाने में काफी परिश्रम की आवश्यकता होती है। मशीनों द्वारा रासायनिक द्रव्यों के लम्बे-लम्बे तन्तु बनाए जाते हैं। फिर इन तन्तुओं को गीला कर दिया जाता है जिससे कुछ तन्तु एक साथ मिलकर एक लम्बा धागा बनाते हैं। उन धागों को रील पर लपेट कर बाद में कपड़ा तैयार किया जाता है।

कृत्रिम तन्तुओं की विशेषताएं

(1) रगड़ने का प्रभाव – कृत्रिम तन्तु को रगड़ने से इस पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

(2) नमी का प्रभाव – यह तन्तु सुगमता से धुलता है तथा गीली दशा में भी कमजोर नहीं होता। यह नमी को विलीन नहीं करता अतः शीघ्रता से सूखता है। नमी को न सोखने के कारण ही इस पर किसी प्रकार के धब्बे अपना स्थायी प्रभाव नहीं डालते और धोने पर शीघ्रता से उतर जाते हैं।

(3) सूखा ताप – कृत्रिम तन्तु गर्मी से बहुत जल्दी खराब होता है और अधिक गर्मी से पिघलने लगता है। इसी कारण इन तन्तुओं से बने कपड़ों को इस्त्री करने में विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है। इनसे बने वस्त्र बिना इस्त्री किए भी पहने जा सकते हैं।

(4) जलाने पर – कृत्रिम तन्तुओं को आग बहुत शीघ्र लगती है। आग लगने पर यह पिघलता है। रसोई में आग के पास काम करते हुए हमें कृत्रिम तन्तुओं से बने वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह आग को बहुत शीघ्र पकड़ते हैं। इन तन्तुओं को जलाने पर इनमें से प्लास्टिक के जलने की सी गन्ध आती है।

(5) ताप का संचालक – यह तन्तु ताप का बुरा संचालक है अतः इसे सर्दियों में पहनते हैं।

(6) मजबूती और हल्कापन – कृत्रिम तन्तु बहुत मजबूत होते हैं। इसके साथ-साथ यह बहुत हल्के भी होते हैं और कम स्थान घेरते है। यही कारण है कि लोग जब कहीं यात्रा पर जाते हैं तो वे अधिकतर सूती वस्त्रों की अपेक्षा इन के वस्त्रों को ही ले जाना पसन्द करते हैं।

(7) सिलवटों का प्रभाव – कृत्रिम तन्तुओं से बने कपड़ों पर सिलवटें बहुत कम पड़ती है अतः इसको बिना इस्त्री किए ही कई बार पहना जा सकता है।

(8) सोडे का प्रभाव – कृत्रिम तन्तुओं पर सोडे का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

वस्त्रों की आवश्यकता हमें क्यों है – अपने शरीर को ढकने, सुन्दर बनाने और सर्दी तथा गर्मी से बचाने के लिए हमें वस्त्रों की आवश्यकता होती है। वैसे तो शरीर को ढकने के लिए हम भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र पहन सकते है जैसे सूती, रेशमी, नायलोन आदि, किन्तु सर्दी से बचाव के लिए हमें इन वस्त्रों के साथ-साथ ऊनी वस्त्रों की भी आवश्यकता होती है।

हमें कैसे वस्त्र पहनने चाहिए – वस्त्रों के सम्बन्ध में हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(1) वस्त्र ऋतु अनुकूल हों

(i) वस्त्र सदैव ऋतु के अनुसार पहनने चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में सूती वस्त्रों का प्रयोग करना ही सर्वोत्तम है क्योंकि यह पसीने को सोख लेता है, यह आसानी से धोया जा सकता है और शीघ्र नहीं फटता । सूती कपड़ा शरीर को ठण्डक पहुंचाता है। सर्दियों में रेशमी व कृत्रिम तन्तु के वस्त्र पहने जा सकते हैं क्योंकि वे शरीर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देते और शरीर का तापक्रम बनाए रखते हैं। अधिक सर्दी में न केवल रेशमी व कृत्रिम वस्त्र, बल्कि उनके साथ ऊनी वस्त्र पहनने भी अति आवश्यक हैं। ऊनी वस्त्र-हवा को अपने छिद्रों में दबाए रखते हैं जिससे शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकलती और बाहर की ठण्डी हवा शरीर को नहीं छू पाती।

(ii) इसके अतिरिक्त वस्त्रों के रंग भी ऋतु के अनुकूल होने चाहिए। गर्मियों में हमें गहरे या चमकीले रंग के कपड़े जैसे काला, लाल, सन्तरी आदि नहीं पहनने चाहिए क्योंकि गहरे रंग पर सूर्य की किरणों का प्रभाव बड़ी शीघ्रता से पड़ता है। ये रंग हमें गर्मी प्रदान करते है, अतः ऐसे वस्त्र सर्दियों में पहनने ज्यादा लाभप्रद होते हैं। गर्मियों में हमें हल्के रंग के या सफेद कपड़े पहनने चाहिए क्योंकि वे शरीर को ठण्डक पहुंचाते हैं और आंखों को भी अधिक अच्छे लगते हैं।

(2) वस्त्र बहुत तंग न हों – शरीर को सुडौल और स्वस्थ रखने के लिए तथा अंगों के ठीक विकास के लिए यह अति आवश्यक है कि वस्त्र तंग न हो। इसका यह अर्थ नहीं कि हम फैशन न करें और हम अपने मित्रों के साथ बैठने-उठने में झिझक करें, किन्तु फैशन उतना ही करना चाहिए जिससे उठने-बैठने, चलने-फिरने, खेलने आदि में बाधा न हो। बच्चों के वस्त्र सीते समय उनके शारीरिक विकास की ओर अत्याधिक ध्यान देना चाहिए।

(3) वस्त्रों का स्वच्छ होना – शरीर को निरोग रखने के लिए वस्त्रों का स्वच्छ होना भी अत्यन्त आवश्यक है, विशेषकर भीतरी वस्त्र जैसे बनियान, जांघिया आदि। ये वस्त्र यदि सफेद रंग के हों तो अधिक अच्छा है, क्योंकि इन पर मैल आसानी से दिखाई पड़ती है। भीतरी वस्त्र प्रतिदिन बदलने चाहिए और इनकी स्वच्छता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।

(4) वस्त्रों का अवसर अनुसार होना – हमें सदैव वस्त्र अवसर के अनुसार पहनने चाहिए। विवाह अथवा किसी पार्टी में चमकीले भड़कीले वस्त्रों का होना उतना ही आवश्यक है जितना कि स्कूल के लिए साधारण वस्त्रों का। स्कूल के वस्त्र ऐसे होने चाहिए कि वे घर में आसानी से धोए जा सकें। यदि हम पिकनिक के लिए जा रहे हैं तो हमें ढीले व मजबूत वस्त्र पहनने चाहिए, जिससे हम आसानी से खेल-कूद सकें। रात के सोने के वस्त्र, दिन के पहनने के वस्त्रों से अलग होने चाहिए। रात को पहनने के वस्त्र ढीले-ढाले होने चाहिए, जिससे नींद में करवट लेने में आसानी रहे।

बच्चों के वस्त्रों का चुनाव – बच्चों के उत्तम विकास तथा स्वास्थ्य के लिए उचित प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग किया जाता है। बच्चों के वस्त्र आरामदायक व ढीले-ढाले होने चाहिए जिससे उनकी शारीरिक वृद्धि व अंगों की गति उचित प्रकार हो सके। प्रायः लोग जन्म से एक वर्ष तक के बच्चे को ऊपर बनियान, झबला तथा फ्राक पहनाते हैं तथा नीचे पहनाने के लिए लंगोट व जांघिये का प्रयोग करते हैं। बच्चों के वस्त्रों का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(1) कोमलता तथा हल्कापन – बच्चे की त्वचा कोमल होती है इसलिए उसके लिए नर्म व हल्के वस्त्र होने चाहिए, जैसे-वायल, मलमल, कैमरिक तथा रूबिया वायल आदि।

(2) नमी सोखने के गुण – कपड़े में नमी सोखने का गुण होना चाहिए जिससे बच्चे के शरीर से निकले हुए पसीने को सोख सके। इसके लिए सूती कपड़ा उपयुक्त है क्योंकि इसमें नमी सोखने का गुण होता है।

(3) रंग – वस्त्रों के रंग की ओर ध्यान देना अति आवश्यक है। गर्मियों में हल्के रंगों के वस्त्र पहनने चाहिए। हल्के नीले, हरे, गुलाबी, बादामी रंग अच्छे होते हैं, क्योंकि इन से गर्मी कम लगती है और इनका प्रभाव ठंडक पहुंचाने वाला होता है। गहरे रंग के कपड़े पहनने से अधिक गर्मी लगती है। इसीलिए गहरे रंग सर्दियों के लिए अच्छे होते हैं। कपड़ों का रंग पक्का होना चाहिए क्योंकि कच्चे रंग त्वचा के लिए हानिकारक होते हैं। यही नहीं, रंग खराब हो जाने से कपड़ा भी भद्दा प्रतीत होता है।

4. वस्त्रों की धुलाई

वस्त्र गन्दे होने के कारण – वस्त्र दो प्रकार से गन्दे होते है-

1. शारीरिक मैल द्वारा और
2. बाहरी मैल द्वारा।

(1) शारीरिक मैल द्वारा – जैसा हम सब को ज्ञात ही है कि हमारी त्वचा पर छोटे-छोटे रोमकूप होते है, जिनके द्वारा हमारे शरीर की गन्दगी पसीने के रूप में बाहर निकलती रहती है। जब हम कपड़े पहनते है तो यह गन्दगी हमारे कपड़ों के साथ लग जाती है, जिससे हमारे वस्त्र मैले हो जाते है। पसीने से गन्दे वस्त्रों में से दुर्गन्ध आने लगती है।

(2) बाहरी मैल द्वारा – हवा में मिट्टी व धूल के कण सदा मिले रहते हैं। जब यह हवा हमारे वस्त्रों के साथ लगती है तो मिट्टी व धूल के कुछ कण हमारे वस्त्रों के साथ लग जाते हैं, जिस से कपड़ा मैला दिखाई देने लगता है। इन धूल के कणों के साथ रोगों के कीटाणुओं के रहने की भी सम्भावना रहती है। हल्के और सफेद रंग के कपड़ों पर यह मैल और भी साफ दिखाई देती है। खेलने पर जब बच्चे मिट्टी से सने हुए हाथ अपने कपड़ों में लगाते हैं या कारखानों में काम करते हुए मजदूर धुएं के सम्पर्क में आते हैं अथवा यदि हम गाड़ी व बसों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं तो उनसे भी वस्त्र बहुत जल्दी मैले हो जाते हैं।

वस्त्रों की धुलाई में सहायक पदार्थ

वस्त्रों में दो प्रकार की मैल होती है-एक तो ऊपरी मैल जो वस्त्रों को झाड़ने से या ब्रुश से रगड़ने से दूर हो जाती है और दूसरी मैल जो वस्त्रों के साथ चिपक जाती है तथा वस्त्रों को झाड़ने से नहीं उतरती। इसको दूर करने के लिए साबुन और पानी की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त वस्त्रों में कड़ापन लाने के लिए, विशेषकर सूती वस्त्रों के लिए मांड की भी आवश्यकता होती है। इनके साथ-साथ यदि सूती वस्त्र सफेद हों तो नील व टिनोपाल का प्रयोग भी अवश्य करना चाहिए।

वस्त्रों को धोने के लिए साबुन की झाग बनानी पड़ती है तथा धोने के पश्चात् उनको पानी में से खंगारना पड़ता है, जैसे पहले बताया गया है उनमें नील व मांड लगानी होती है। इन सब कार्यों को करने के लिए हमें टब व चिलमची, मांड बनाने के लिए पतीले व कड़छी की भी आवश्यकता होती है।

पानी – सूती वस्त्रों को प्रायः धोने से पूर्व ठण्डे या गर्म पानी में लगभग 15-20 मिनट तक भिगो कर रख दिया जाता है जिससे वस्त्रों की मैल फूल जाए। यदि वस्त्र बहुत मैले हों तो गर्म पानी में साबुन का घोल बनाकर वस्त्रों को उसमें भिगो दिया जाता है, इससे वस्त्रों को धोने पर उनकी मैल जल्दी और आसानी से दूर हो जाती है। यह विधि केवल सफेद या पक्के रंग वाले सूती कपड़ों के लिए ही प्रयोग में लाई जाती है।

साबुन – वस्त्रों को धोने में साबुन भी अपना विशेष महत्त्व रखता है। प्रायः साबुन में कास्टिक सोडा होता है, जो कपड़ों की मैल उतारने में सहायक होता है। कुछ वस्त्र जैसे सूती और लिनन पर इसका बुरा प्रभाव नहीं पड़ता अतः इनके लिए ऐसे साबुन का प्रयोग किया जा सकता है।

डिटर्जेन्ट – आज के युग में साबुन की जगह डिटर्जेन्ट का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। यह पैट्रोलियम से बनता है। डिटर्जेन्ट में कास्टिक सोडा नहीं होता अतः यह रेशमी वस्त्रों के लिए उपयुक्त है। इसका प्रयोग करना भी आसान है। इसका पानी में घोल बना कर, मैले कपड़ों को कुछ देर भिगोने से मैल के कण पानी में घुल जाते है और कपड़ा आसानी से साफ हो जाता है। यह कठोर जल में भी घुलनशील है। आजकल बाजार में कई प्रकार के डिटर्जेन्ट पाऊडर मिलते है जैसे सर्फ, सनलाईट, डेट इत्यादि। अब यह टिकिया के रूप में भी मिलते हैं जैसे रिन, डेट, फेना आदि।

वस्त्रों की धुलाई कैसे करे
वस्त्रों को धोने के लिए पहले साबुन या डिटर्जेन्ट का घोल तैयार करना चाहिए, फिर वस्त्रों को उसमें अच्छी प्रकार से खोलकर डाल देना चाहिए तथा हाथों से दबाना चाहिए जिससे घोल में वस्त्र भली प्रकार से भीग जाए। यदि वस्त्र कुछ स्थानों से अधिक मैला हो तो उस पर थोड़ा सा साबुन का चूरा डाल कर उस स्थान को रगड़ना चाहिए। रगड़ने के लिए बुश का प्रयोग भी कर सकते हैं। यदि कोमल वस्त्र जैसे रेशमी व ऊनी वस्त्र धोने हों तो उनको हल्के हाथों से धोना चाहिए ताकि वे फटें अथवा सिकुड़े नहीं।

इसके पश्चात् वस्त्रों को साफ पानी से बार-बार धोएं जिससे वस्त्रों में से सारा साबुन निकल जाए। सूती वस्त्रों के लिए आवश्यकतानुसार मांड, नील अथवा टिनोपाल का प्रयोग करना चाहिए। रेशमी वस्त्रों में मांड के स्थान पर गोंद का पानी प्रयोग में लाया जा सकता है। उनमें चमक लाने के लिए थोड़े से सिरके के घोल का भी प्रयोग किया जा सकता है। यदि गोंद के घोल में थोड़े से सिरके को मिला दिया जाए तो भी एक ही बात है। इस घोल में वस्त्र को अच्छी तरह से डुबो कर निचोड़ लेते हैं और सूखने के लिए छाया में फैलाते हैं। अलग-अलग कपड़ों की अपनी अपनी विशेषताओं के कारण उन्हें धोने के ढंग भी अलग-अलग हैं। अब सूती कपड़े धोने की विधि का उल्लेख किया जाएगा।

सूती वस्त्रों की धुलाई – वस्त्रों में, सूती वस्त्रों का धोना सबसे सरल है।

वस्त्र धोने की सामग्री – साबुन, नील अथवा टिनोपाल, मांड तथा उनके साथ साथ कपड़े रगड़ने का तख्ता, कपड़े धोने का बुश, चिलमची, बाल्टी, लोटा आदि।

वस्त्र धोने की विधि

पहले सारा सामान एकत्र कर लीजिए। यदि सफेद सूती वस्त्र बहुत मैले हों तो उनको साबुन के घोल में कुछ समय के लिए भिगो दीजिए। रंगदार सूती वस्त्रों को, जिनका पानी में रंग छूटने की सम्भावना हो. धोने से पूर्व भिगोना नहीं चाहिए, नहीं तो उनका रंग खराब हो जाएगा। फिर चिलमची में थोड़ा-सा पानी लेकर उसमें साबुन का घोल बना लीजिए। जैसे पहले बताया गया है कि सूती वस्त्रों को तेज क्षार जैसे कास्टिक सोडा, कोई हानि नहीं पहुंचाता इसलिये इनको धाने के लिए किसी भी साबुन या डिटर्जेन्ट का प्रयोग किया जा सकता है।

झाग बनाने के बाद वस्त्र को खोल कर उसमें डालिए और अच्छी तरह से मलिए। मैले स्थान, विशेषकर कफ, कालर आदि पर थोड़ा-सा साबुन का चूरा लगा कर अच्छी तरह से रगड़िए। यदि वस्त्र अधिक मैला हो तो बुश और रगड़ने के तख्ते को भी काम में लाया जा सकता है। इसके उपरान्त वस्त्रों को साफ पानी में तब तक धोइए जब तक सारा साबुन वस्त्र से न निकल जाए। किसी चिलमची में थोड़ा-सा पानी, जिसमें वस्त्र अच्छी प्रकार से भीग सकें, ले लीजिए। फिर तैयार की गई मांड को किसी पतले कपड़े से छान कर पानी में अच्छी तरह मिलाइए। इसके अतिरिक्त यदि वस्त्र सफेद हो तो थोड़ा नील का प्रयोग भी करना चाहिए।

यदि वस्त्र सफेद हों तो उसे धूप में सुखाइए। इससे वस्त्र में अधिक सफेदी आ जाती है। रंगदार वस्त्र को छाया में ही सुखाना चाहिए जिससे उसका रंग खराब न होने पाए। जब वस्त्र भली प्रकार सूख जाए तो उस पर थोड़ा-सा पानी छिड़क कर उसको कुछ समय के लिए रख दीजिए ताकि वस्त्र पर पानी अच्छी तरह से फैल जाए। फिर उसको इस्त्री कर लीजिए।

FAQ

प्रश्न 1. वस्त्रोपयोगी तन्तु कितने प्रकार के होते है ?

वस्त्रोपयोगी तन्तु 3 प्रकार का होता है- प्राकृतिक तन्तु, कृत्रिम अथवा मानव-निर्मित तन्तु, मिश्रित तन्तु।

प्रश्न 2. तन्तु कितने प्रकार का होता है ?

तन्तु 3 प्रकार का होता है- प्राकृतिक, कृत्रिम, मिश्रित।

प्रश्न 3. कृत्रिम तन्तु किसे कहते है ?

कृत्रिम तन्तु विभिन्न प्रकार के रासायनिक द्रव्यों द्वारा बनाए जाते हैं।

प्रश्न 4. ऊनी कपड़ा किसे कहते है ?

ऊन प्रायः भेड़ों से प्राप्त होती है जिनमें सबसे अच्छी भेड़ मेरिनो जाति की मानी जाती है। इसके अतिरिक्त अंगोरा बकरी, खरगोश, गाय, ऊंट इत्यादि से भी थोड़ी मात्रा में ऊन मिलती है।

प्रश्न 5. ऊन की विशेषताएं लिखिए ?

ऊन की निम्नलिखित विशेषता होती है जैसे- लचक, जुड़ने या फैल्ट बनने का गुण, नमी व रगड़ने का प्रभाव, सूखा-ताप आदि।

प्रश्न 6. सूत की विशेषताएं लिखिए ?

सूत की निम्नलिखित विशेषता होती है जैसे- रगड़ने का प्रभाव, पानी सोखने की शक्ति, ताप का संचालक, सोडे का प्रभाव आदि।

प्रश्न 7. रेशमी कपड़ा किसे कहते है ?

रेशम को ‘कपड़ों की रानी’ कहा जाता है। इसे यह पदवी अपनी मजबूती, चिकनाहट, कोमलता इत्यादि गुणों के कारण प्राप्त हुई है। रेशम के तन्तु रेशम के कीड़ों द्वारा प्राप्त होते हैं। ये कीड़े शहतूत के पेड़ पर अपना जीवन-निर्वाह करते हैं।

प्रश्न 8. रेशम की विशेषताएं लिखिए ?

रेशम की निम्नलिखित विशेषता होती है जैसे- रगड़ने का प्रभाव, नमी का प्रभाव, सूखा ताप, ताप का संचालक, सोडे का प्रभाव आदि।

प्रश्न 9. कृत्रिम तन्तु किसे कहते है ?

कृत्रिम तन्तु विभिन्न प्रकार के रासायनिक द्रव्यों द्वारा बनाए जाते है। इन्हें बनाने में काफी परिश्रम की आवश्यकता होती है। मशीनों द्वारा रासायनिक द्रव्यों के लम्बे-लम्बे तन्तु बनाए जाते हैं। फिर इन तन्तुओं को गीला कर दिया जाता है जिससे कुछ तन्तु एक साथ मिलकर एक लम्बा धागा बनाते हैं। उन धागों को रील पर लपेट कर बाद में कपड़ा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 10. कृत्रिम तन्तुओं की विशेषताएं लिखिए ?

कृत्रिम की निम्नलिखित विशेषता होती है जैसे- रगड़ने का प्रभाव, नमी का प्रभाव, सूखा ताप, जलाने पर, ताप का संचालक, मजबूती और हल्कापन, सिलवटों का प्रभाव, सोडे का प्रभाव आदि।

प्रश्न 11. हमें कैसे वस्त्र पहनने चाहिए ?

वस्त्रों के सम्बन्ध में हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए- वस्त्र ऋतु अनुकूल हों, वस्त्र बहुत तंग न हों, वस्त्रों का स्वच्छ होना, वस्त्रों का अवसर अनुसार होना आदि।

प्रश्न 12. बच्चों के वस्त्रों का चुनाव कैसे करना चाहिए ?

बच्चों के लिए कपड़ें लेते समय हमें निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखना चाहिए जैसे- कोमलता तथा हल्कापन, नमी सोखने के गुण, रंग आदि देख कर लेना चाहिए।

प्रश्न 13. वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है ?

वस्त्र दो प्रकार से गन्दे होते है- शारीरिक मैल द्वारा और बाहरी मैल द्वारा।

प्रश्न 14. वस्त्रों की धुलाई में सहायक पदार्थ लिखिए ?

पानी, साबुन, डिटर्जेन्ट आदि।

प्रश्न 15. सूती वस्त्रों की धुलाई ?

वस्त्रों में, सूती वस्त्रों का धोना सबसे सरल है।

प्रश्न 16. वस्त्र धोने की सामग्री ?

साबुन, नील अथवा टिनोपाल, मांड तथा उनके साथ साथ कपड़े रगड़ने का तख्ता, कपड़े धोने का बुश, चिलमची, बाल्टी, लोटा आदि।

प्रश्न 17. जो तंतु खानों व भूमि से प्राप्त होते हैं उन्हें क्या कहते हैं ?

जो तंतु खानों व भूमि से प्राप्त होते हैं उन्हें खान से प्राप्त तंतु कहते है।

प्रश्न 18. ऐसे वस्त्र जिनमे सोना व चाँदी प्रयोग में लाए जाते हैं उन्हें क्या कहते है ?

ऐसे वस्त्र जिनमे सोना व चाँदी प्रयोग में लाए जाते हैं उन्हें ज़रीदार वस्त्र कहते है।

प्रश्न 19. प्राणित तंतु का उदाहरण दीजिये ?

ऊनी व रेशमी वस्त्र।

प्रश्न 20. कृत्रिम तंतु का उदाहरण दीजिये ?

नायलॉन, पॉलिएस्टर और ऐक्रेलिक।

प्रश्न 21. सूती तंतु की लम्बाई कितनी होती है ?

सूती तंतु कि लम्बाई 1.5cm से 5cm होती है।
NCERT Solution Class 6th Home Science All Chapters Notes in Hindi
Chapter – 1 गृह विज्ञान का अर्थ एवं महत्व
Chapter – 2 हमारे स्वस्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वछता
Chapter – 3 हमारा भोजन
Chapter – 4 हमारे वस्त्र
Chapter – 5 सिलाई कढ़ाई एवं बुनाई
Chapter – 6 प्राथमिक सहायता
Chapter – 7 उपभोक्ता ज्ञान
Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध
NCERT Solution Class 6th Home Science All Chapters Question & Answer in Hindi
Chapter – 1 गृह विज्ञान का अर्थ एवं महत्व
Chapter – 2 हमारे स्वस्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वछता
Chapter – 3 हमारा भोजन
Chapter – 4 हमारे वस्त्र
Chapter – 5 सिलाई कढ़ाई एवं बुनाई
Chapter – 6 प्राथमिक सहायता
Chapter – 7 उपभोक्ता ज्ञान
Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध
NCERT Solution Class 6th Home Science All Chapters MCQ in Hindi
Chapter – 1 गृह विज्ञान का अर्थ एवं महत्व
Chapter – 2 हमारे स्वस्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वछता
Chapter – 3 हमारा भोजन
Chapter – 4 हमारे वस्त्र
Chapter – 5 सिलाई कढ़ाई एवं बुनाई
Chapter – 6 प्राथमिक सहायता
Chapter – 7 उपभोक्ता ज्ञान
Chapter – 8 पारिवारिक सम्बन्ध

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