NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य (Fundamental Rights and Fundamental Duties) Question Answer In Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य (fundamental rights and fundamental duties)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter16th
Chapter Nameमौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य (fundamental rights and fundamental duties)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य (fundamental rights and fundamental duties) Question & Answer in Hindi जिसमे हम मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में क्या अंतर है?, मौलिक अधिकार और कर्तव्य कितने हैं?, मौलिक कर्त्तव्य क्या है?, कर्तव्य कौन कौन से हैं?, कर्तव्य कितने प्रकार के होते हैं?, मूल कर्तव्य कितने हैं उनके नाम?, मौलिक अधिकार कौन से हैं?, कर्तव्य का मतलब क्या होता है?, मौलिक अधिकार कितनी होती है?, मौलिक अधिकार कहाँ से लिया गया है?, मौलिक अधिकार का दूसरा नाम क्या है?, मौलिक अधिकार से क्या समझते हैं?, मौलिक अधिकार कैसे कहते हैं? आदि के बारे में पढ़ेंगे 

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य (fundamental rights and fundamental duties)

Chapter – 16

मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्तव्य

Question & Answer

पाठांत प्रश्न

प्रश्न 1. हमारे दैनिक जीवन में मूलाधिकारों के महत्त्व की व्याख्या कीजिए। किस मूल अधिकार को आप अपने जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण समझते हैं तथा क्यों ?
उत्तर- हमारे दैनिक जीवन में मूल अधिकारों का अत्यधिक महत्त्व है। इसके अभाव में हमारे जीवन का पूर्ण विकास नहीं हो पाता है। हमारे मूल अधिकार हैं-
(i) कानून के समक्ष समता,
(ii) भेदभाव से मुक्ति,
(iii) जीवन, स्वतंत्रता और वैयक्तिक सुरक्षा का अधिकार
(iv) अबाध भ्रमण का अधिकार.
(v) शिक्षा का अधिकार.
(vi) शादी व परिवार बनाने का अधिकार.
(vii) अंत:करण तथा धर्म की स्वतंत्रता,
(viii) शांतिपूर्वक सम्मेलन तथा संघ बनाने का अधिकार
(ix) समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार।
उपरोक्त सभी अधिकार बहुत महत्त्वपूर्ण है। जीवन में उपरोक्त सभी अधिकारों का बहुत महत्त्व है। व्यक्तित्व विकास के लिए प्रत्येक मानव को संविधान द्वारा ये अधिकार प्रदान किए हैं। अब प्रश्न उठता है कि हम अपने जीवन में किस मूल अधिकार को सबसे अधिक महत्वपूर्ण समझते हैं और क्यों इसका सीधा सरल उत्तर है-स्वतंत्रता। मानव जीवन में बहुत आवश्यक है। जब तक हमें स्वतंत्रता नहीं मिलेंगी, हम अपने व्यक्ति विकास के लिए कुछ भी नहीं कर सकते।
प्रश्न 2. संविधान द्वारा हमें प्रत्याभूत छः मूल अधिकारों को लिखिए।
उत्तर- भारतीय संविधान द्वारा भारतीय नागरिक को प्रदत्त मूल अधिकार निम्न हैं-
(i) समता का अधिकार.
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार.
(iii) शोषण तथा शैक्षिक अधिकार,
(iv) धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार,
(v) सांस्कृतिक तथा शैक्षिक अधिकार.
(vi) संवैधानिक उपचार का अधिकार।
प्रश्न 3. शिक्षा का अधिकार भारत में निरक्षरता दूर करने में कहाँ तक सक्षम होगा ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर- संविधान के अनुच्छेद 29-30 में शिक्षा संबंधी अधिकारों का उल्लेख किया गया है। शिक्षा का अधिकार वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा मूलाधिकारों के अध्याय में एक नया अनुच्छेद 21A के रूप में जोड़ा गया है। लंबे समय से उसकी माँग की जा रही थी ताकि 6 से 14 वर्ष तक के सभी उनके माता-पिता) मूल अधिकार के रूप में अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का दावा कर सकें। देश को निरक्षरता में मप्त करने की दिशा में उठाया गया यह एक बड़ा कदम है। तु इसे जोड़ा जाना अर्थहीन बना रहा, क्योंकि 2009 तक इसे लागू नहीं किया जा सका। 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम संसद द्वारा पारित किया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य 6 से 14 वर्ष के उन सभी बच्चों को जो भारत में स्कूलों से बाहर हैं. उन्हें स्कूलों तक लाना तथा उन्हें गुणवत्ता मुक्त शिक्षा, जो कि उनका अधिकार है, सुनिश्चित करना है।
प्रश्न 4. धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के मुख्य सावधानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- संविधान में प्रस्तावना के एक उद्देश्य के रूप में नागरिकों के लिए विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता प्राप्त का करने की घोषणा की गई। धार्मिक स्वतंत्रता के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 25-28 में उपबंध किए गए हैं। निम्नलिखित में मुख्य प्रावधानों का वर्णन किया जा रहा है-
(i) अंत:करण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता।
(i) धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता।
(iii) किसी विशिष्ट धर्म को प्रोत्साहन देने के लिए करों के भुगतान के बारे में स्वतंत्रता।
(iv) कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता।
प्रश्न 5. स्वतंत्रता के अधिकार पर लगाए गए किन्हींतीन प्रतिबंधों पर प्रकाश डालिए। आपके मत में क्या प्रतिबंध न्यायसंगत हैं ? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर- स्वतंत्रता के अधिकार पर लगाए गए किन्हीं तीन प्रतिबंधों की व्याख्या निम्नलिखित हैं-
(i) विचार अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर भारत की प्रभुता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय की अवमानना, मानहानि या अपराध उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
(ii) शांतिपूर्वक और बिना हथियार सभा और सम्मेलन करने की स्वतंत्रता- शांतिपूर्वक और बिना हथियार सभा और सम्मेलन करने की स्वतंत्रता पर भारत की प्रभुता और अखण्डता या लोक व्यवस्था के हितों में यक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
(iii) भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता – भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध भ्रमण की स्वतंत्रता तथा बस जाने की स्वतंत्रता पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। उपरोक्त प्रतिबंध न्यायसंगत हैं, क्योंकि अगर ये प्रतिबंध नहीं लगाए जाएँगे तो मनुष्य अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग भी कर सकता है।
प्रश्न 6. क्या आप सहमत हैं कि भारत के संविधान में मूलाधिकारों में मानवाधिकार परिलक्षित होते हैं ?
उत्तर- सबसे पहले तो हमें यह जानना चाहिए कि मूल अधिकार क्या हैं और मानवाधिकार क्या है ? मूल अधिकार वे अधिकार हैं, जो हमें भारतीय संविधान द्वारा प्रदान किए गए हैं, जबकि मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं, जो हमें जन्म से प्राप्त हैं। संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा 1948 में मानवाधिकारों को अंगीकृत किया गया तथा मानवाधिकारों को भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को स्थान दिया गया है।
उपर्युक्त विश्लेषण के पश्चात् हम यह कह सकते हैं कि भारत के संविधान में मूलाधिकारों में मानवाधिकार परिलक्षित होते हैं।
प्रश्न 7. संविधान में उल्लेखित मूल कर्त्तव्य क्या हैं ? आपके मत में इनमें से कौन-से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं और क्यों ?
उत्तर- मानव अधिकार और मूल अधिकार की भाँति मूल कर्त्तव्य भी होते हैं। समाज अथवा देश की भी अपने नागरिकों से कुछ आशाएँ और अपेक्षाएँ होती हैं, जिन्हें संविधान में मूल कर्तव्य कहा गया है। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ तो उसमें मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख नहीं किया गया और यह आशा की गई कि नागरिक मूल कर्त्तव्यों का पालन स्वयं करेंगे। किंतु ऐसा हुआ नहीं, इसलिए 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के भाग में अनुच्छेद 51अ में दस मूल कर्त्तव्यों की व्याख्या की गई, जिसका वर्णन निम्न है- भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य होगा कि वे-
(i) संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
(ii) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखे और उनका पालन करें।
(iii) भारत की प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें ओर उसे अक्षुण्ण रखें।
(iv) देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
(v) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
(vi) हमारी मिश्रित संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्त्व समझे और उसका संरक्षण करें।
(vii) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील,नदी और वन्य जीव है, रक्षा करें।
(vii) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन सुधार की भावना का विकास करें। रहें।
(ix) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा में दूर
(x) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें। उर्पयुक्त कर्त्तव्यों में सबसे महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य हैं। क्योंकि इसको प्राप्त करने में हमें हजारों बलिदान देने पड़े, लंब संघर्ष करना पड़ा।
प्रश्न 8. निम्नलिखित कथनों को पढ़िए। इनमें से सही है। कथनों की पहचान कीजिए तथा जो कथन ठीक नहीं है. उनमें आवश्यक परिवर्तन कर पुनः लिखिए।
(i) सरकार की अनुमति के बिना कोई व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन नहीं कर सकता है।
उत्तर- भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। यहाँ सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है। यहाँ कोई भी व्यक्ति सरकार की अनुमति के बिना स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर सकता है।
(ii) प्रत्येक सरकारी अथवा सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय धार्मिक शिक्षा दे सकता है।
उत्तर- प्रत्येक सरकारी अथवा सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय धार्मिक शिक्षा नहीं दे सकता।
(iii) किसी निजी संस्था द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान के छात्र धार्मिक उपासना में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किए जा सकते।
उत्तर- सही ।
(iv) बहु-धार्मिक राज्य के रूप में भारत किसी धर्म के पक्ष में विशेषाधिकार अथवा पक्षपात कर सकता है।
उत्तर- एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र होने के रूप में भारत किसी धर्म के पक्ष में विशेषाधिकार अथवा पक्षपात नहीं कर सकता है।
(v) महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थानों के रख-रखाव के लिए सरकार द्वारा कर-अधिभार लगाया जा सकता है।
उत्तर- सही। जा सकता है, चाहे उनसे राष्ट्रीय विकास परियोजनाएं
(vi) उपासना के स्थलों का निर्माण कहीं भी किया प्रभावित ही क्यों न होती है। सकता है। किंतु उनसे राष्ट्रीय विकास की परियोजनाएँ बाधित
उत्तर- उपासना स्थलों का निर्माण कहीं भी किया ज हो।
कॉलम ‘अ’ में दिए हुए अधिकारों के साथ कॉलम ‘ब’ में दिए गए संबंधित कर्त्तव्यों का मेल कीजिए

‘अ’‘ब’
(अ) संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।

(ब) यदि हमें अपनी पसंद के धर्म को मानने का अधिकार है; तो

(स) यदि हमें सार्वजनिक उद्यान, कुआँ अथवा

(द) तालाब का प्रयोग करने का अधिकार है; तो
यदि हमें जीवन का अधिकार है तो;

(च) यदि हमें शिक्षा का अधिकार है; तो

(क) यह हमारा कर्त्तव्य है कि अन्य लोगों को उनके प्रयोग के लिए मना न करें।

(ख) यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम नियमों का पालन करें तथा अनुशासन बनाएँ रखें।

(ग) यह दूसरों का कर्त्तव्य है कि वे हमें न मारें तथा कोई हानि न पहुँचाएँ।

(घ) यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम दूसरों को भी उनके धर्म को मानने के लिए अनुमति दें।

(ङ) हमें यह याद रखना चाहिए तथा दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।

उत्तर-

‘अ’‘ब’
(अ) संविधान हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।

(ब) यदि हमें अपनी पसंद के धर्म को मानने का अधिकार है; तो

(स) यदि हमें सार्वजनिक उद्यान, कुआँ अथवा

(द) तालाब का प्रयोग करने का अधिकार है; तो
यदि हमें जीवन का अधिकार है तो;

(च) यदि हमें शिक्षा का अधिकार है; तो

(ङ) हमें यह याद रखना चाहिए तथा दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।

(घ) यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम दूसरों को भी उनके धर्म को मानने के लिए अनुमति दें।

(क) यह हमारा कर्त्तव्य है कि अन्य लोगों को उनके प्रयोग के लिए मना न करें।

(ग) यह दूसरों का कर्त्तव्य है कि वे हमें न मारें तथा कोई हानि न पहुँचाएँ।

(ख) यह हमारा कर्त्तव्य है कि हम नियमों का पालन करें तथा अनुशासन बनाएँ रखें। 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- अधिकार किसी व्यक्ति द्वारा अपेक्षित ऐसे अधिका हैं, जो उसके स्वयं के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्य है तथा समाज या राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त हैं।
प्रश्न 2. भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अधिका का संबंध किन बातों से है।
उत्तर- इन बातों का संबंध राजनीतिक अधिकारों सामाजिक अधिकारों से है।
प्रश्न 3. नीति निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख संविधान कहाँ किया गया है ?
उत्तर- नीति निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख संविधान के भाग में अनुच्छेद 36 से 51 तक किया गया है।
प्रश्न 4. राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- राज्य के नीति निर्देशक तत्त्व राज्य के लिए आदर्श व उपदेश हैं, जिनका पालन करना चाहिए। परंतु ये तत्त्व बाध्यकारी तथा वाद योग्य नहीं है।
प्रश्न 5. मौलिक अधिकारों तथा नीति-निर्देशक सिद्धांते के निर्माण में मौलिक अंतर क्या है ?
उत्तर- मौलिक अधिकारों नागरिकों के संविधान द्वारा प्रदान किए गए हैं। लेकिन निर्देशक तत्त्वों का उपभोग वे कानून के बाद ही कर सकते हैं।
प्रश्न 6. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर- ये सिद्धांत केंद्रीय और राज्य की सरकारों के लिए निर्देशक और सुझाव व सलाह देने का कार्य करते हैं। इनका अपनाकर राज्य कल्याणकारी राज्य बन सकता है।
प्रश्न 7. पार्कों, कुओं और तालाबों जैसे सार्वजनिक स्थानों का बिना भेदभाव का प्रयोग करने का अधिक किस मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है ?
उत्तर- समानता के मौलिक अधिकार के अंतर्गत।
प्रश्न 8. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा किए जाने वाले किन्हीं दो लेख के नाम बताइए।
उत्तर- परमादेश, बंदी प्रत्यक्षीकरण।
प्रश्न 9. भारतीय संविधान में दस मौलिक ‘कर्त्तव्य को शामिल किया गया है। इसका क्या उद्देश्य है ?
उत्तर- इन कर्त्तव्यों का लक्ष्य लोगों में राष्ट्रीय एकत सामुदायिक कल्याण और देशभक्ति के प्रति जागरुकता पैदा करना है।
प्रश्न 10. हमारे कौन-कौन से मौलिक अधिकार हैं ?
उत्तर- हमारे मौलिक अधिकार निम्न हैं-
(i) समानता का अधिकार
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार
(iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
(v) सांस्कृतिक व शैक्षणिक अधिकार
(vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
प्रश्न 11. हमारे मौलिक अधिकार को अभिरक्षक किसे कहा जाता है ?
उत्तर- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालय को
प्रश्न 12. किस परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है ?
उत्तर- युद्ध अथवा बाह्य आक्रमणों से उत्पन्न आपात्कालीन स्थिति में सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।
प्रश्न 13. बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- वह लेख जिसके द्वारा नजरबंद व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित लेख का आदेश दिया जाता है, बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख या आदेश कहते हैं।
प्रश्न 14. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए जाने वाले किन्हीं दो लेखों के नाम बताएँ।
उत्तर- (i) परमादेश-वह आदेश जिसके द्वारा न्यायालय किसी सार्वजनिक संस्था या सार्वजनिक पदाधिकारियों को अपना कानूनी कर्त्तव्य पूरा करने को कहे।
(ii) अधिकार पृच्छा लेख इसके द्वारा किसी व्यक्ति को ऐसे पद पर कार्य करने से रोका जाता है। जिसके लिए वह कानूनी तौर पर अयोग्य होता है।
प्रश्न 15. मौलिक अधिकारों के दो कार्य बताइए।
उत्तर- मौलिक अधिकार के दो कार्य निम्न हैं-
(i) लोगों को सुखी और स्वतंत्र जीवन बिताने में सहायता देते हैं।
(ii) व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करते हैं।
प्रश्न 16. सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार के अंतर्गत अल्पसंख्यकों को मिलने वाले दो अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- (1) वे अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं।
(ii) वे अपनी संस्कृति और साहित्य को विकसित एवं संरक्षित कर सकते हैं।
प्रश्न 17. भारत में सभी लोगों को कानून का समान संरक्षण तथा कानून के समक्ष समानता उपलब्ध कराने के लिए कौन-से प्रावधान किए गए हैं ?
उत्तर- (1) कानून के समक्ष समानता।
(ii) धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं।
(ii) सार्वजनिक रोजगार के मामले में सभी नागरिकों को अवसर की समानता।
(iv) छुआछूत का उन्मूलन।
(v) उपाधियों का उन्मूलन।
प्रश्न 18. मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर- जहाँ समाज द्वारा सभी अधिकारों को मान्यता दी जाती है, राज्य द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकारों को स्वीकृति भी दी जाती है। जिनका संविधान में उल्लेख किया है. ऐसे अधिकारों को मौलिक अधिकार कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मौलिक अधिकारों के महत्त्व का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर- मौलिक अधिकारों का महत्त्व निम्नलिखित है-
(i) मौलिक अधिकारों के अभाव में व्यक्ति का बहुमुखी विकास संभव नहीं है।
(ii) मौलिक अधिकार लोगों में सुखी एवं स्वतंत्र जीवन जीने की भावना विकसित करते हैं।
(iii) मौलिक अधिकार बच्चों, महिलाओं तथा समाज के दूसरे कमजोर वर्गों के हितों की देख-रेख करते हैं।
(iv) ये आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर पिछड़े लोगों को अपने जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में मदद करता है।
प्रश्न 2. भारतीय संविधान के भाग III में दिए गए धिकार को मूल अधिकार क्यों कहे जाते हैं ?
उत्तर- क्योंकि ये अधिकार मौलिक और आधारभूत होते हैं । लोकतांत्रिक देश के प्रत्येक नागरिक के संतुलित एवं उत्तरदायित्व पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए ये अधिकार नितांत आवश्यक है। मूल अधिकारों को प्रभावी बनाने की प्रक्रिया संविधान में दी गई है। यदि किसी व्यक्ति/नागरिक को इन अधिकारों से वंचित किया जाता है तो वह न्यायालय की शरण में जा सकता है।
प्रश्न 3. भारत के अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकारों से क्या मदद मिलती है ?
उत्तर- मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी इत्यादि भारत में अल्पसंख्यक कहे जाते हैं। उनकी अपनी भाषा और संस्कृति है। भारत के संविधान में उनको सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। जिस किसी समुदाय या समूह की अपनी भाषा और लिपि है, उसे सुरक्षित रखने या विकसित करने का उस अल्पसंख्यक समुदाय को अधिकार प्रदान किया गया है। बे अपनी शिक्षा संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं। अपनी संस्कृति और साहित्य की रक्षा कर सकते हैं। इसके लिए सरकार उन्हें सहयोग देने के लिए तत्पर है।
प्रश्न 4. राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करने वाले चार मौलिक कर्त्तव्य बताएँ।
उत्तर- वे मौलिक कर्त्तव्य जो राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करते हैं, निम्नलिखित हैं-
(1) संविधान का पालन करना तथा राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करना। करना।
(ii) देश की रक्षा करना।
(iii) भारत की संप्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा
(iv) उन महान आदशों का पालन करना जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष की प्रेरणा दी थी। है?
प्रश्न 5. भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य क्यों कहा जाता है?
उत्तर- भारत विभिन्न धर्मों का देश है। यहाँ विभिन्न संप्रदाय के लोग निवास करते हैं। सभी के धर्म समान नहीं। सारे धर्मों के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है। आर्थिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को अपनी पसंद का धर्म मानने की स्वतंत्रता है। इसका अर्थ है कि कोई राजकीय धर्म नहीं। कोई निर्णय धर्म के आधार पर नहीं लिया जाएगा। धर्म और राजनीति को अलग-अलग रखा जाएगा। परंतु धार्मिक समुदाय अपने धर्म के शांतिपूर्ण प्रचार और प्रसार करने के लिए परोपकारी संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं। अल्पसंख्यक समुदायों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए, सिख-संप्रदाय के लोग अपने पास एक निश्चित आकार की कृपण रख सकते हैं।
प्रश्न 6. अधिकार और कर्त्तव्य संतुलन क्यों आवश्यक हैं ?
उत्तर- अधिकार और कर्त्तव्य एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। दोनों में अन्योन्याश्रम संबंध है। यदि हमें कर्त्तव्य का बोध नहीं होगा तो अधिकार में अराजकता उत्पन्न हो जाएगी। अधिकारों के अभाव में कर्तव्य तानाशाही की ओर ले जा है। अधिकार कर्त्तव्यपरायण नागरिक तैयार करते हैं। दूसरी कर्त्तव्य नागरिकों को अधिकारों का उपयोग करने में बनाने में राज्य की सहायता करते हैं।
प्रश्न 7. मौलिक कर्त्तव्यों की प्रकृति को परिभाषि कीजिए।
उत्तर- ये कर्त्तव्य प्रकृति से आचार-संहिता है। चूँकि ? न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है। अतः इनके पीछे कानून अनुशासित नहीं है जैसाकि आप देखेंगे, इनमें कुछ कर्तव अस्पष्ट हैं। उदाहरण के लिए, मिश्रित संस्कृति, गौरवशाल परंपरा, मानववाद अथवा व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियं के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष आदि का अर्थ एक सामान्य नागरिक की समझ से परे है। वे इन कर्तव्यों के महत्त्व को तभी समझ सकते हैं, जब इनको स्पष्ट रूप में वर्णित किया जाए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मौलिक अधिकार हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक हैं ?
उत्तर- मौलिक अधिकार मनुष्य के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक हैं। इसके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास संभव नहीं है। ये अधिकार नैतिक बल प्रदान करते हैं. तथा कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों पर अंकुश लगाते हैं। ये लोगों के बीच शांति और मेल सुनिश्चित करते हैं। ये आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर पिछड़े लोगों की अपने जीवन- को ऊँचा उठाने में मदद मिलती है। ये इस देश के अल्पसंखका के बीच सुरक्षा की भावना को सुनिश्चित करते हैं। ये अधिका लोगों के बीच समानता और स्वतंत्रता स्थापित करने का रास्ता साफ करते हैं। हमारे देश में अनेक प्रकार की सामाजिक धार्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक समस्याएँ हैं। ऐसे में मौलिक अधिकारों के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता सरकार या कोई भी अगर इन अधिकारों को छीनता है तो इनको सुरक्षा के लिए हर व्यक्ति न्यायालय जा सकता है। इसी कारण से इन अधिकारों को न्याय क्षेत्र के अधीन कहा जाता है। मौलिक अधिकारों को कुछ सीमाएँ भी हैं। विपरीत परिस्थित में इसे निलंबित अथवा प्रतिबंधित भी किया जा सकता है। यदि प्रतिबंध सही अथवा न्यायोचित नहीं है तो सर्वोच्च न्यायाल द्वारा उन्हें समाप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 2. कौन-सा मौलिक अधिकार हमारे अन्य अधिकारों को सुरक्षित करता, और कैसे ? -संवैधानिक उपचारों का अधिकार- यह अधिकार रिकों के अन्य पाँच मौलिक अधिकारों का संरक्षक है। इसके में शेष अधिकार अर्थहीन हैं। अतः नागरिकों को
उत्तर- विधान में संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रदान किया गया इस अधिकार का अर्थ है कि न्यायालयों की सहायता से मकार द्वारा नागरिकों के अधिकारों की अवहेलना के लिए किए कार्यों के विरुद्ध नागरिक न्याय एवं उपचार प्राप्त कर सकते के संविधान में नागरिकों को अपने-अपने अधिकारों की सुरक्षा लिए न्यायालय की सहायता लेने का अधिकार दिया गया है। सारिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार के किसी भी कार्य को जो अधिकारों के विरुद्ध हो, न्यायालय में चुनौती दे सकता है। अवैध रूप से नजरबंद या गिरफ्तार कोई भी व्यक्ति नेपालय से अपनी रिहाई की प्रार्थना कर सकता है। वह अपनी रिहाई के लिए अनेक प्रकार की याचिकाएँ न्यायालय में प्रस्तुत करके अपने को रिहा करवा सकता है। अधिकारों की सुरक्षा के उच्च तथा सर्वोच्च न्यायालय बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख, परमादेश, निषेध लेख, अधिकारपृच्छा लेख तथा उत्प्रेषणा लेख जारी शके अवैध और अनुचित रूप से नजरबंद व गिरफ्तार व्यक्ति को रिहा करने के आदेश दे सकते हैं। वास्तव में संवैधानिक उपचारों का अधिकार हमारे अन्य अधिकारों की छीनने के विरुद्ध एक गारंटी है। यदि यह अधिकार होता तो शेष सभी अधिकारों का कोई औचित्य नहीं होता। कर इसके बावजूद आपात्काल में नागरिकों के कुछ अधिकारों और संवैधानिक उपचारों को स्थगित किया जा सकता है। काल के बाद नागरिकों को ये अधिकार पुनः मिल जाते
प्रश्न 3. हमारे संविधान द्वारा दिए गए समानता के अधिकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर- हमारे समाज के लिए समानता का अधिकार बहुत पूर्ण है। इस अधिकार का उद्देश्य कानून का शासन करना है। यहाँ पर कानून के समक्ष सभी नागरिकों के समानता उपलब्ध करने के लिए प्रावधान किए गए हैं।
समानता का अधिकार भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार के अंतर्गत अनुच्छेद 14-18 तक समानता के अधिकार वर्णन किया गया है। भारतीय संविधान में उल्लेखित मानव में समानता का अधिकार एक आवश्यक अंग है। की धारा 14 के अंतर्गत “भारत के राज्य क्षेत्र में राज्य भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” अर्थात् भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, भाषा, लिंग, कुल, नस्ल इत्यादि के आधार पर भेद-भाव नहीं किया जा सकता। सभी नागरिकों को वैधानिक नागरिक समानता प्रदान की गई है। अनुच्छेद 16 में विस्तृत रूप से कहा गया है कि “सभी नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे और किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना सरकारी नौकरी या पद प्राप्त करने में भेदभाव नहीं किया जाएगा।” इसी प्रकार धारा 17 और 18 में राज्य को छुआछूत तथा पदवियों के उन्मूलन का निर्देश दिया गया है।
प्रश्न 4. स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत भारतीय नागरिक को कौन-सी स्वतंत्रताएँ प्राप्त हैं ?
उत्तर- स्वतंत्रता का अधिकार सबसे मूलभूत अधिकार है। यह प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है। भारतीय संविधान देश के सभी नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक में इस अधिकार का पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया गया है। अनुच्छेद 19 में छः स्वतंत्रताएँ दी गई हैं-
(i) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,
(ii) शस्त्रहीन और सभा करने की स्वतंत्रता,
(iii) संघ या समुदाय गठन करने की स्वतंत्रता.
(iv) भारतीय सीमा के भीतर मुक्त विचरण करने की स्वतंत्रता,
(v) भारत के किसी भी भाग में निवास या बसने की स्वतंत्रता
(vi) कोई भी व्यवसाय, कारोबार या धंधा करने की स्वतंत्रता।
(vii) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- एक नागरिक विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए लेख लिख सकता है। वह किसी भी स्थान पर सभा कर सकता है, लेकिन वह उत्तेजक भाषण नहीं कर सकता।
(viii) शस्त्रहीन एवं शांतिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता- वह हथियारों के बिना शांतिपूर्ण सभा कर सकता है। केवल सिखों को शस्त्र सहित सभा करने की छूट दी गई है। वे कृपाण रख सकते हैं।
(ix) संघ या समुदाय गठन करने की स्वतंत्रता – भारतीय नागरिकों को समान विचारों वाले का गठन करने की स्वतंत्रता है। व्यक्तियों का संघ या समुदाय
(x) भारतीय सीमा के भीतर मुक्त विचरण की स्वतंत्रता- भारतीय नागरिक को देश के किसी भी भाग में आने-जाने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
(xi) भारत के किसी भाग में निवास या बसने की स्वतंत्रता – भारतीय नागरिक भारत के किसी भी भाग में जाकर रह सकता या किसी राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में बस सकता है।
(xii) कोई भी व्यवसाय, कारोबार या धंधा करने की स्वतंत्रता – भारतीय नागरिक अपनी इच्छानुसार कोई भी काम कर सकता है और छोड़ सकता है।
प्रश्न 5. संविधान में शोषण के विरुद्ध किए गए प्रावधानों को वर्णन कीजिए।
उत्तर- संविधान में शोषण के विरुद्ध अनेक प्रावधान किए गए हैं। अनुच्छेद 23 और 24 में इसका पूर्ण विवरण मिलता है। जिसका वर्णन निम्नलिखित में किया जा रहा है- कुछ
(i) बेगार के विरुद्ध अधिकार पहले समय पिछड़े क्षेत्रों के प्रभावशाली और धनी व्यक्ति निर्धन लोगों से बलपूर्वक बेगार लिया करते थे अर्थात् उनसे नबर्दस्ती काम कराते थे और बदले में कोई वेतन आदि नहीं देते थे। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए हमारे संविधान में बेगार को ‘गैर-कानूनी’ घोषित किया गया है और बेगार दण्डनीय अपराध माना गया है।
(ii) चौदह वर्ष के कम उम्र के बच्चों से मजदूरी लेने के विरुद्ध अधिकार बच्चे समाज की संपत्ति हैं और इनकी रक्षा की जानी चाहिए जिससे लालची स्वामी अधिक मुनाफा कमाने के लिए उन्हें कम वेतन पर अपने कारखानों में खतरनाक काम करने के लिए नौकर न रख सकें। इसलिए संविधान ने इस बात पर रोक लगा दी है कि चौदह वर्ष से कम उम्र के लड़के कारखानों और खानों में काम पर न रखे जाएँ।
(iii) भिक्षावृत्ति के विरुद्ध अधिकार- भिक्षावृत्ति एक पाप है और किसी को भी यह अधिकार नहीं कि वह किसी दूसरे को भीख माँगने के लिए मजबूर कर सके।
(iv) मानव के क्रय-विक्रय पर प्रतिबंध इसके अंतर्गत मानव के क्रय-विक्रय को कानूनन निषिद्ध कर दिया गया। इस अनैतिक कार्य को दण्डनीय अपराध बना दिया है। ताकि किसी का शोषण न हो, सभी सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें।
प्रश्न 6. “ संवैधानिक उपचारों का अधिकार अत्यंत विशिष्ट अधिकार है”। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- संवैधानिक उपचारों का अधिकार अत्यंत विशेष प्रकार का अधिकार है। क्योंकि यह अधिकार नागरिकों को इस बात के लिए अधिकृत करता है कि इन मूल अधिकारों में से में किसी भी अधिकार को वंचित किए जाने की दशा में न्यायालय की शरण में जा सकते हैं। यदि सरकार किसी नागरिक के विरुद्ध अपनी शक्ति का प्रयोग अन्यायपूर्ण ढंग से करती है अथवा उसे गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी कारण के दंडित करती है अथवा बंदी बना लेती है तो संवैधानिक उपचारों का अधिकार, पीड़ित व्यक्ति को सरकार द्वारा किए गए ऐसे कार्य के विरुद्ध न्यायालय से न्याय पाने में सशक्त बनाता है। संविधान प्रत्येक नागरिकों को अपने मूल अधिकारों रक्षा के लिए न्यायालय जाने का अधिकार प्रदान करत उदाहरण के लिए, बंदी बनाए जाने की स्थिति में न्यायालय से प्रार्थना पत्र कर देकर पूछताछ कर सकता है क्या उसकी गिरफ्तारी देश के अनुकूल है ? यदि यात समझता है कि ऐसा नहीं है, तो उस व्यक्ति को रिहा कर जाएगा। नागरिकों द्वारा मूल अधिकारों के संरक्षण के न्यायालय के शरण में जाने की विभिन्न विधियाँ है। इसके लिए न्यायालय विभिन्न प्रकार की रिट जारी करता हैं। ये रिट क प्रत्यक्षीकरण परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा तथा उत्प्रेषण कहे जाते हैं। अन्य मूल अधिकारों की भाँति संवैधानिक उपचारों के अधिकार के संबंध में भी एक महत्त्वपूर्ण अपवाद है। जब आपातकाल की घोषणा हो जाती है तो केंद्र सरकार द्वारा अधिकार निलंबित कर दिया जाता है। आपात्काल के पश्च यह अधिकार फिर से प्रभावी हो जाता है।
प्रश्न 7. मानवाधिकारों के महत्त्व को बताइए।
उत्तर- मानवाधिकारों के महत्त्व को निम्नलिखित अ पर स्पष्ट किया जा सकता है-
(i) मानव की गरिमा और प्रतिष्ठा के लिएआवश्यक-ये अधिकार मौलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकार हैं जिन पर व्यक्ति के जीने का अधिका टिका है।
(ii) लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के लिए आवश्यक समाज के निरंतर विकास के लिए सामविक आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार आवश्यक है। लोकत शासन प्रणाली में ये अधिकार सभी को समान रूप से नि किसी भेदभाव के प्राप्त होने चाहिए। निर्धनता और अभाव स्थिति में इन अधिकारों का कोई महत्त्व नहीं है।
(iii) समाज में पूर्ण शांति की स्थापना सहायक- मानव अधिकारों के अभाव में केवल व्यक्तिगत ही नहीं होती अपितु सामाजिक और राजनीतिक अशांति परिस्थितियाँ भी पैदा हो जाती हैं जिससे समाज और राष्ट्र हिंसा, अपराध और तनाव के तत्त्व पैदा हो जाते हैं।। में मानवीय मूल्यों को व्यक्त करते हैं, परंतु इनकी उपयोग
(iv) मानवाधिकारों का संबंध मानव से है- ये तब और भी अधिक हो जाती है जब व्यक्ति की भलाई के ि इन्हें समाज के संदर्भ में लागू हो जाता है।
(1) व्यक्तिगत विकास में सहायक- मानवाधिकार व्यक्ति की योग्यता, क्षमता, बुद्धिमत्ता, प्रतिभा, गुणवत्ता और विवेक का पूर्ण विकास करने के साथ-साथ हमारी आध्यात्मिक संतुष्टि और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
प्रश्न 8. मौलिक अधिकारों और मानवाधिकारों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मौलिक अधिकार-वे अधिकार जो व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होते हैं। ये व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा को स्थापित रखते हैं। जीवन सुरक्षा, स्वतंत्रता सुरक्षा, पराधीनता और दासता से मुक्ति कानून के सामने समानता का अधिकार समुदाय बनाने और समाप्त करने का अधिकार, विचार अंत:करण तथा धर्म की स्वतंत्रता, मत देने का अधिकार, ये सभी अधिकार मानव को प्राप्त होने आवश्यक हैं। मौलिक अधिकार- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन है। व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए ये आवश्यक है। ये अधिकार राजनीतिक अधिकार हैं। इन अधिकारों में समानता का अधिकार राजनीतिक अधिकार है। इन अधिकारों में समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार, संवैधानिक उपचारों का अधिकार हैं।
प्रश्न 9. रिट किसे कहते हैं ? किन्हीं तीन प्रकार की रिटों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- कोई भी व्यक्ति सरकार के उस किसी भी कार्य को चुनौती दे सकता है जो उसके मौलिक अधिकारों के रास्ते में आता है। नागरिकों के अधिकारों को सुरक्षा देने के लिए। न्यायालयों से अपील विभिन्न ढंग से की जा सकती है। न्यायालयों द्वारा सरकार को दिए जाने वाले आदेशों को कानूनी तौर पर रिट अथवा याचिका कहा जाता। रिट चार प्रकार के होते हैं-
(i) नियोग समादेश-अगर निचली संस्था अपना कार्य नहीं कर रही है तो न्यायालय उसे अपना कर्त्तव्य निभाने का आदेश दे सकता है।
(ii) निषेधाज्ञा-निचली संस्था को यह आदेश दिया जाता है कि वह उन कामों को न करे जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।
(iii) उत्प्रेषण- यह आदेश निचली संस्था को दिया जाता है कि वो मामले को उसे या किसी दूसरी संस्था के हवाले कर दे ताकि उस पर समुचित विचार किया जा सके।
(iv) अधिकार-पृच्छा यह रिट किसी व्यक्ति को उस सरकारी कार्यालय में काम करने से रोकने के लिए जारी की जाती है जिसके लिए वह अधिकृत नहीं है।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Question Answer in Hindi

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