NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political Parties and Pressure Groups) Question Answer in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter21th 
Chapter Nameराजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups) Notes in Hindi जिसमे हम राजनीतिक दलों और दबाव समूहों में क्या अंतर है?, दबाव समूह क्या है दबाव समूह और राजनीतिक?, राजनीतिक दल से आप क्या समझते हैं?, राजनीतिक दल कितने प्रकार के होते हैं?, राजनीतिक दल के कार्य क्या हैं?, राजनीतिक दल की विशेषताएं क्या हैं?, राजनीतिक दल क्यों आवश्यक हैं?, राजनीतिक दल क्या है इसके घटक क्या हैं?, भारत में कितने राजनीतिक दल हैं?, राजनीतिक दल शब्द को आप कैसे लिखते हैं?, भारत में एक राजनीतिक दल का एक महत्वपूर्ण कार्य क्या है?, राजनीति किसकी रचना है? आदि के बारे में पढ़ेंगे

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह (Political parties and pressure groups)

Chapter – 21

राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह

प्रश्न – उत्तर

पाठांत प्रश्न
प्रश्न 1. हमें राजनीतिक दलों की आवश्यकता क्यों ?
उत्तर – हमें राजनीतिक दलों की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि इसके अभाव में हम लोकतांत्रिक सरकार की कल्पना भी नहीं कर सकते। राजनीतिक दल और लोकतांत्रिक सरकार में अन्योन्याश्रम संबंध है। जिन देशों में राजनीतिक दल नहीं है वहाँ की सरकार को हम लोकतंत्रीय सरकार नहीं कह सकते हैं। जैसे ओमान, लीबिया, कतर, संयुक्त अरब अमीरात ऐसे देश हैं जहाँ राजनीतिक दल को अवैध घोषित कर दिया गया है। राजनीतिक दल सरकार की संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं को सहायता प्रदान करते हैं ताकि वे वास्तव में लोकतंत्रीय स्वरूप धारण करें। वे मतदाताओं तथा नागरिकों का चुनाव में भाग लेने के योग्य बनाते और शासन में भाग लेने, शिक्षित करने तथा नीति निर्धारण आदि में सहभागी बनते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजनीतिक दल प्रतिनिध्यात्मक सरकारों की कार्य पद्धति को संभव बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 2. राजनीतिक दल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – राजनीतिक दल औपचारिक सदस्यता वाले लोगों का एक संगठित समूह होता है। इसके सदस्यों में राजनीतिक व्यवस्था से संबंधित सिद्धांतों, नीतियों तथा कार्यक्रमों में सामान्य सहमति होना आवश्यक है। यही नहीं, राजनीतिक दल संवैधानिक तरीके से राजनीतिक शक्ति को प्राप्त करना चाहता है। यह संस्था समान विचाराधारा की समर्थन ही नही, अपितु जन-समस्याओं संबंधी विषयों की एकरूपता पर बल देती है। राजनीतिक दलों को अलग-अलग विद्वानों ने परिभाषित किया है। एक विद्वान के अनुसार यह नागरिकों का संगठित समूह है, जो राजनीतिक विचारों पर एक जैसी धारणा रखते हैं तथा जो एक राजनीतिक इकाई के रूप में सरकार पर नियंत्रण रखते हैं। एक अन्य विद्वान के अनुसार, “राजनीतिक दल नागरिकों का एक समूह है, जो कमोबेश संगठित हो, जो एक राजनीतिक इकाई की तरह कार्य करते हैं और अपनी मतदान की शक्ति से सरकार को नियंत्रित करके रखते हैं तथा अपनी सामान्य नीतियों को कार्यरूप देते हैं।
प्रश्न 3. राजनीतिक दलों की चार विशेषताओं को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर – राजनीतिक दल की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) राजनीतिक दल लोगों का एक संगठित तथा व्यापक समूह है।
(ii) यह संगठित समूह समान नियमों तथा समान लक्ष्यों पर बल देता है।
(iii) जनसमुदाय के सामुहिक प्रयासों से राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं।
(iv) सरकार को नियंत्रित रखने के लिए संवैधानिक साधनों तथा चुनावों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 4. राजनीतिक दलों के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – राजनीतिक दलों के चार कार्य निम्नलिखित हैं –
(i) चुनावों के समय राजनीतिक दल अपने प्रत्याशी के समर्थन में अभियान या प्रचार करते हैं।
(ii) वे मतदाताओं के समक्ष नीतियाँ और कार्यक्रम रखते हैं ताकि मतदाता उनके दल के प्रत्याक्षी का समर्थन करें।
(iii) वे जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान नहीं करते अपितु जनमत निर्माण में भी भूमिका निभाते हैं।
(iv) चुनावों के दौरान अथवा चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन की प्रक्रिया पर उचित कदम उठाते हैं।
प्रश्न 5. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीति की संक्षिप्त में व्याख्या कीजिए।
उत्तर – 1885 में बंबई, अब (मुंबई) में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई। स्वतंत्रता के पश्चात् कांग्रेस एक राजनीतिक दल बन गई और केंद्र तथा लगभग सभी राज्यों में 1967 तक शासन किया। कांग्रेस पार्टी लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा समाजवाद के प्रति कटिबद्ध है। एक प्रकार से यह मध्यमार्गी दल है, जहाँ एक ओर इसे निजीकरण, उदारीकरण तथा वैश्वीकरण जैसे उपाय स्वीकार्य किए हैं, वहीं दूसरी ओर यह समाज के कमजोर वर्ग के कल्याण के लिए भी कार्य करती है। यह कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था, औद्योगीकरण दोनों का समर्थन करती है। कांग्रेस पार्टी चाहती है कि स्थानीय स्तर पर स्वशासन की संस्थाओं को सुदृढ़ किया जाए और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में, विशेषता संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की जाए।
प्रश्न 6. भारत में दलीय प्रणाली की तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत में दलीय प्रणाली की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(i) दलीय प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल हैं, जो केंद्र तथा राज्यों में सत्ता प्राप्त करने के लिए सतत् प्रयास करते रहते हैं।
(ii) केंद्र में सरकार का गठन करते समय क्षेत्रीय दलों की एक प्रमुख भूमिका होती है। अब तो उनका एक राष्ट्रीय कार्यक्रम भी होता है। संबंधित राज्य में सत्ता प्राप्त करने के बदले में ये क्षेत्रीय दल, केंद्र में किसी एक अथवा दूसरे राष्ट्रीय दल को समर्थन देते हैं।
(iii) गठबंधन की राजनीति हमारी दलीय प्रणाली की एक विशेषता बन गई है। हम उस स्थिति में पहुँच गए हैं, जहाँ कुछ राज्यों के अतिरिक्त कहीं भी एकदलीय सरकार नहीं है। जैसा कि आजकल देखा जा रहा है।
प्रश्न 7. दबाव समूह क्या है ?
उत्तर – जहाँ लोकतांत्रिक सरकार होगी, वहाँ दबाव समूह होंगे। वर्तमान राजनीतिक युग की महत्त्वपूर्ण देन दबाव समूह का विकास है। साधारण भाषा में दबाव समूह विशेष हितों से संबंधित व्यक्तियों के ऐसे समूह होते हैं, जो विधायकों को प्रभावित करके अपने उद्देश्यों और हितों के पक्ष में समर्थन प्राप्त करते हैं। ये राजनीतिक दल अथवा समूह नहीं होते अपितु उससे भिन्न होते हैं। विभिन्न विद्वानों ने इसे अपने-अपने शब्दों में परिभाषित करने की कोशिश की है। ओडीगार्ड ने दबाव समूहों का अर्थ बताते हुए कहा है, एक दबाव समूह ऐसे लोगों का औपचारिक संगठन है, जिसके एक अथवा अनेक सामान्य उद्देश्य और स्वार्थ है और जो घटनाओं के क्रम में विशेष रूप से सार्वजनिक नीति का निर्माण और शासन को इसलिए प्रभावित करने का प्रयास करते हैं कि उनके अपने हितों की रक्षा और वृद्धि हो सके। बी.ओ. की. के शब्दों में, दबाव समूह सरकारी नीति को प्रभावित करने के लिए बनाए जाने वाले निजी संगठन है। “दबाव समूह की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दबाव समूह राजनीतिक दलों की भाँति किसी कार्यक्रम के आधार पर निर्वाचकों को प्रभावित नहीं करते, अपितु वे किसी विशेष हितों से संबंधित होते हैं। वे राजनीतिक संगठन नहीं होते हैं और न ही चुनाव के लिए अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। वे तो केवल अपने समूह विशेष के लिए सरकारी नीतियों और सरकारी ढाँचे को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 8. राजनीतिक दल और दबाव समूह में दो बिंदुओं पर अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – (i) दबाव समूह मूलतः राजनीतिक प्रकृति के नहीं होते। उदाहरण के लिए, यद्यपि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करता है, किन्तु यह मुख्यतः एक सांस्कृतिक संगठन है। राजनीतिक दल बुनियादी रूप से राजनीति होते हैं।
(ii) दबाव समूह चुनाव नहीं लड़ते वे केवल अपनी पसंद की पार्टी का समर्थन करते हैं। राजनीतिक दल प्रत्याशियों का नामांकन करते हैं, चुनाव लड़ते हैं तथा चुनाव प्रचार में भाग लेते हैं।
प्रश्न 9. भारत में दबाव समूह का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर – भारत में भी अन्य देशों की तरह कई हित और दबाव समूह हैं। यहाँ पारंपारिक सामाजिक संरचना पर आधारित पारंपरिक दबाव समूह है। जैसे-आर्य प्रतिनिधि सभा, सनातन धर्म सभा, पारसी अंजुमन, एंग्लो-इंडियन ईसाई संगठन इत्यादि। फिर जाति आधारित समूह हैं, जैसे-ब्राह्मण सभा, और नायर कुछ समाज, भाषा आधारित, जैसे- तमिल संघ, अंजुमन- तारीख-ए-उर्दू । अन्य प्रकार के दबाव समूह भी हैं, जैसे- भारतीय वाणिज्य और उद्योग परिसंघ अथवा मजदूर और किसानों से संबंधित संगठन. अखिल भारतीय मजदूर संघ, किसान सभा आदि। संस्थागत समूह, जैसे-सिविल सेवा संगठन तथा गैर-राजपत्रित अधिकारी यूनियन । कई बार आपको ऐसे समूह भी मिलेंगे, जैसे- अखिल असम छात्र यूनियन या अन्य जो ग्रामीण क्षेत्रों में कॉलेज या अन्य संस्थाओं को स्थगित करने की माँग कर रहे हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. दबाव समूह और हित समूह में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हित समूह और दबाव समूह में अंतर स्पष्ट करना बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि साधारणत: लोग इसे समानार्थक समझ लेते हैं।

हित समूहदबाव समूह
(i) यह औपचारिक रूप से संगठित होता है।यह कठोर संगठन है।
(ii) यह हितों पर आधारित है।यह दबाव पर अधिक ध्यान देता है।
(iii) सरकार की नीतियों को प्रभावित करे अथवा ना करें।यह सरकार की नीतियों को अवश्य प्रभावित करता है।
(iv) इसका दृष्टिकोण लचीला होता है।इसका दृष्टिकोण कठोर होता है।
(v) यह कम अथवा अधिक सुरक्षात्मक है।यह सुरक्षात्मक तथा प्रोत्साहक है।
प्रश्न 2. राजनीतिक दल का उद्देश्य क्या होता है ?
उत्तर – राजनीतिक दल का यथासंभव नागरिकों का ऐसा संगठन है जिनके राजनैतिक विचार समान होते हैं और जिनका उद्देश्य राजनैतिक सत्ता प्राप्त करना अथवा देश का शासन करने का अधिकार प्राप्त करना तथा सरकारी तंत्र पर नियंत्रण स्थापित करना होता है। एक राजनैतिक दल का उद्देश्य चुनाव प्रणाली द्वारा राजनैतिक सत्ता प्राप्त करना होता है।
प्रश्न 3. राजनीतिक दल और दबाव समूह में क्या अंतर है ?
उत्तर – (i) राजनीतिक दल राष्ट्र या लोकहित में कार्य करते हैं; जबकि दबाव समूह उन्हीं लोगों के हितों में कार्य करते हैं, जिसके लिए वे गठित होते हैं।
(ii) राजनीतिक दल का उद्देश्य सत्ता प्राप्ति है। ये सरकार पर नियंत्रण करने का प्रयास करते हैं। दबाव समूह सत्ता प्राप्ति का प्रयास नहीं करते अपितु निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
(iii) राजनीतिक दलों की सदस्यता सभी लोगों के लिए खुली रहती है, जबकि हित समूह की सदस्यता सभी लोगों के लिए खुली नहीं रहती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. राजनीतिक दल किसे कहते हैं ? भारत के कुछ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर – राजनीतिक दल-राजनीतिक दल ऐसे नागरिकों को संगठित समूह है जिनके राजनीतिक विचार एक से हो और जो एक इकाई के रूप में कार्य करके सरकार पर नियंत्रण रखने का प्रयत्न करते हैं। ये सार्वजनिक मामलों पर एक से विचार रखते हैं और संगठित होकर सरकार को अनेक सिद्धांतों के अनुसार चलाने का प्रयत्न करते हैं। किसी राजनीतिक दल की नीतियों, कार्यक्रमों और मूल्य प्राथमिकताओं के समूह को विचारधारा कहते हैं। ऐसा कोई संगठन जिसकी एक विचारधारा राष्ट्रहित अथवा जनहित में कार्य करता है। परंतु सत्ता प्राप्ति का प्रयास नहीं करता हो, उसे भी हम राजनीतिक दल नहीं कह सकते।

राजनीतिक दल के प्रकार – भारत में मुख्यतः दो प्रकार के राजनीतिक दल हैं-राष्ट्रीय, तथा क्षेत्रीय। परंतु इस संदर्भ में विशेष बात यह है कि राष्ट्रीय दलों का कार्यक्रम क्षेत्रीय है और क्षेत्रीय दलों का कार्यक्रम राष्ट्रीय है।

(i) राष्ट्रीय राजनीतिक दल – साधारणतः राष्ट्रीय राजनीतिक दल पूरे देश में प्रभावी होते हैं। राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दलों का दर्जा निर्वाचन आयोग द्वारा दिया जाता है। कोई भी राजनीतिक दल यह दर्जा तब प्राप्त करता है जब उसे कम से कम चार राज्यों में 4 प्रतिशत मत प्राप्त कर चुके होते हैं। अक्टूबर, 2004 में राष्ट्रीय राजनीतिक राजनीतिक दल थे-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय (आई०एन०सी०), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एन०सी०पी०), साम्यवादी दल (मार्क्सवादी) (सी०पी०आई०एम०), तथा बहुजन समाज पार्टी।

(ii) क्षेत्रीय राजनीतिक दल – निर्वाचन आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त वे राजनीतिक दल हैं, जिन्हें किसी राज्य में एक निश्चित संख्या में मत अथवा सीटें प्राप्त होती हैं। निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों अथवा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह प्रदान करता है। भारत देश में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संख्या काफी अधिक है।

प्रश्न 2. राजनीतिक दलों के कार्यों की विवेचना कीजिए ।
उत्तर – लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की कार्य एवं भूमिका बड़ी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
राजनैतिक दल के कार्य निम्नलिखित हैं-
1. सार्वजनिक नीतियों का निर्माण – राजनीतिक दलों का सबसे पहला कार्य सार्वजनिक नीतियों का निर्माण करना है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं पर सोच-विचार करना और निश्चय पर पहुँचना उसका काम है।

2. जनमत का निर्माण और अभिव्यक्ति – सार्वजनिक मामलों पर अपना मत निश्चित करने के बाद राजनीतिक दल उसका प्रचार करते हैं और अधिक-से-अधिक लोगों का विश्वासप्राप्त करके जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। अत: जनमत का निर्माण व अभिव्यक्ति राजनीतिक दलों का दूसरा मुख्य कार्य है।

3. चुनाव लड़ना और सरकार बनाना – राजनीतिक दल देश में समय-समय पर होने वाले चुनावों को लड़ते हैं। आधुनिक युग में चुनाव राजनीतिक दलों के आधार पर ही लड़े जाते हैं। व्रत जिस राजनीतिक दल का विधानमंडल में बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह सरकार की स्थापना करता है।

4. कार्यकर्त्ता तैयार करना – राजनैतिक दल ऐसे नेता और कार्यकर्ता तैयार करते हैं जो विधायक और ससंद्में मंत्री के रूप में कार्य करते हैं।

5. सरकार पर नियंत्रण – जो दल बहुमत में नहीं आते, वे विरोधी दल की भूमिका निभाते हैं और सरकार की गतिविधियों पर नियंत्रण रखते हैं।

प्रश्न 3. भारत में राजनीतिक दलों के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारत में राजनीतिक दलों का विकास 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से शुरू हुआ। इसने एक राजनीतिक दल के रूप में कार्य करना वास्तव में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शुरू किया। 1967 तक यह प्रभुत्वशाली बना रहा। 1977 के पश्चात् भारत में मुख्य रूप से द्वि-दलीय प्रणाली का दौर शुरू हो गया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा जनता पार्टी, लेकिन यह स्थिति बहुत थोड़े दिनों तक बनी रही। जनता पार्टी कई टुकड़ों में बँट गई और 1980 में एक बार पुन: कांग्रेस पार्टी केंद्र में सत्ता में आ गई और 1989 तक वह सत्ता में बनी रही। हालाँकि कांग्रेस अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति को पुनः प्राप्त न कर सकी। 1999 के पश्चात् भारत में मुख्य रूप से दो गठबंधन अस्तित्व में आए-भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन तथा दूसरा कांग्रेस का नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ।

प्रश्न 4. क्षेत्रीय दल किसे कहते हैं ? वह राष्ट्रीय दल से किस प्रकार भिन्न है ? किन्हीं तीन क्षेत्रीय दलों के नाम बताइए। उन राज्यों के भी नाम बताइए जहाँ यहाँ क्षेत्रीय दल विद्यमान हैं ?
उत्तर – क्षेत्री दलों से अभिप्राय उन दलों से है, जिनका प्रभाव पूरे देश में न हो, पर कुछ निश्चित क्षेत्रों में होता है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम और महाराष्ट्र में शिवसेना क्षेत्रीय राजनीतिक दल है।

क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीय दल में विभिन्नता – क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दलों से अनेक स्तर पर भिन्न होते हैं। जैसे क्षेत्रीय दलों का प्रभाव किसी विशेष क्षेत्र तक ही सीमित रहता है। परंतु राष्ट्रीय दल पूरे देश में प्रभाव रखते हैं। उसी तरह क्षेत्रीय दल माँगों और समस्याओं को लेकर चुनाव लड़ते हैं, परंतु राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के सामने राष्ट्रीय समस्याएँ होती हैं।

प्रश्न 5. लोकतंत्र में दलीय व्यवस्था कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर – लोकतंत्र में दलीय व्यवस्था तीन प्रकार की होती हैं –
(i) एकदलीय व्यवस्था
(ii) द्वि-दलीय व्यवस्था
(iii) बहुदलीय व्यवस्था।
विस्तृत विवरण निम्नलिखित हैं –
(i) एकदलीय व्यवस्था – इस व्यवस्था के अंतर्गत देश में केवल एक राजनीतिक दल होता है। दूसरे दलों को संगठित होने का अधिकार नहीं होता। जैसे-रूस और चीन में केवल एक दल है – साम्यवाद ।

(ii) द्वि-दलीय व्यवस्था – इस प्रणाली के अंतर्गत देश में केवल दो दल होते हैं। वे दोनों ही चुनाव लड़ते हैं। इन दोनों में से एक सरकार बना लेता है। दूसरा विरोधी दल का काम करता है। द्वि-दलीय पद्धति के होते हुए भी देश में दो से अधिक दल हो सकते हैं। नए दलों को संगठन का पूरा अधिकार होता है। लेकिन उनका महत्त्व अधिक नहीं होता। इंग्लैण्ड, अमेरिका और कनाड़ा में द्वि-दलीय व्यवस्था है।

(iii) बहुदलीय व्यवस्था – इस व्यवस्था में देश में बहुत अधिक दल होते हैं और सारे चुनाव लड़ते हैं। जिस दल को बहु मिल जाता है, वह सरकार बनाता है। शेष सभी दल विरोधी दल कहलाते हैं। भारत और फ्रांस में बहुदलीय व्यवस्था है।

प्रश्न 6. क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उदय के उदय के क्या उद्देश्य थे ? इसकी विशेषता बताइए।
उत्तर – क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए हुआ था। तथापि, उनमें से कुछ ने समय के साथ-साथ स्वायता का पक्ष लेना आरंभ कर दिया। क्षेत्रीय राजनीतिक दल अपने-अपने क्षेत्र में इतने लोकप्रिय हो गए कि अब राज्य की नीतियों में तथा राज्यों में सत्ता प्राप्त करने में उनका प्रभुत्व दिखाई देने लगा। उनके बढ़ते राजनीतिक दबदबे ने राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र में गठबंधन सरकारें स्थापित करने में कई बार सहायता प्रदान की। यह क्षेत्रीय दलों के कारण ही हुआ है कि हमारी राजनीतिक दलीय प्रणाली संघात्मक रूप धारण कर चुकी है। अब क्षेत्रीय दल शायद ही कभी राष्ट्रीय एकता को चुनौती देते हैं। अथवा अपने राज्य के लिए स्वायत्तता की माँग करते हैं। केंद्र ने भी उनकी समस्याओं को समझने तथा उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति करना शुरू कर दिया है। हमारी दलीय प्रणाली की विवेकशील प्रकृति ने हमारी संघात्मक व्यवस्था के सहकारितावादी रुझान को सुदृढ़ बनाया है।

प्रश्न 7. हित समूह किसे कहते हैं ? कब यह दबाव समूह बन जाता है ? किसी एक दबाव तकनीक की चर्चा कीजिए।
उत्तर – हित समूह लोगों द्वारा संगठित वे समूह होते हैं, जिन्हे अपने हितों की पूर्ति करनी होती है। उन्हें ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि-

(क) वे संगठित होते हैं,
(ख) उनके कुछ समान हित होते हैं,
(ग) सदस्यों को जोड़ने वाले हित विशिष्ट तथा खास होते हैं,
(घ) ऐसे संगठित समूहों के सदस्य अपने हितों की पूर्ति, रक्षा तथा बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं, जिनके लिए वे इकट्ठे हुए हैं। साधारणत: हित समूहों और दबाव समूहों को समानार्थक समझा जाता है, परंतु ऐसा है नहीं। सभी दबाव समूह हित समूह तो होते हैं, परंतु सभी हित समूह दबाव समूह नहीं होते, हित समूह का दृष्टिकोण लचीला होता और दबाव समूह का बहुत कठोर। दोनों में स्पष्ट अंतर हैं-

हित समूह कब दबाव समूह बन जाते हैं ? – निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए ये हित समूह कई बार सरकार दबाव बनाने का प्रयास करते हैं। जब हित समूह सरकार पर अपने हित में निर्णय के लिए दबाव डालते हैं तो उन्हें हम दबाव समूह कहते हैं।

दबाव तकनीक – समान सामाजिक-आर्थिक हितों के लोग समूह में गठित होकर अपने हितों की रक्षा करते हैं तथा सरकार के निर्णयों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। जब कभी शिकायतें दूर नहीं होतीं या माँगें पूरी नहीं होतीं, तो ये समूह कुछ दबाव तकनीकों को अपनाते हैं। जैसे

प्रदर्शन – हित/दबाव समूह अपनी माँगों को प्रदर्शित करने के लिए धरना, मार्च, नारेबाजी, पुतला जलाना आदि का आयोजन करते हैं। आपने अपने इलाके में सरकारी कर्मचारियों को इन तकनीकों को अपनाते हुए देखा होगा। हड़ताल के दौरान वे जोर-जोर से नारे लगाते हैं, जैसे-“वेतन सुविधा बढ़ाओ नहीं तो गद्दी छोड़ दो।” कभी-कभी वे सार्वजनिक संपत्ति, जैसे-स, रेलवे, पोस्ट ऑफिस, सरकारी वाहनों आदि को क्षति भी पहुंचाते हैं।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Question Answer in Hindi

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