NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक सामाजिक जागृति (Religious Social Awakening in Colonial India) Question Answer in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक सामाजिक जागृति (Religious Social Awakening in Colonial India)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter6th 
Chapter Nameऔपनिवेशिक भारत में धार्मिक सामाजिक जागृति (Religious Social Awakening in Colonial India)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक सामाजिक जागृति (Religious Social Awakening in Colonial India) Question Answer in Hindi जसमे हम औपनिवेशिक भारत में प्रमुख सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलन क्या थे?, भारत में सामाजिक धार्मिक सुधारों की मुख्य विशेषताएं क्या थी?, औपनिवेशिक शासन की विशेषताएं क्या थी?, औपनिवेशिक से आप क्या समझते हैं?, भारत में औपनिवेशिक शासन की शुरुआत कहाँ से हुई?, भारत में औपनिवेशिक शासन की शुरूआत कहाँ से हुई?, औपनिवेशिक शासन का मुख्य उद्देश्य क्या था?, भारत का उपनिवेश किसने किया?, भारत में सामाजिक धार्मिक आंदोलन के कारण और महत्व क्या थे?, सामाजिक धार्मिक आंदोलन क्या हैं?, धार्मिक सुधार आंदोलन कब शुरू हुआ?, धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन साथ-साथ क्यों चले? आदि के बारे में पढ़ेंगे 

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक सामाजिक जागृति (Religious Social Awakening in Colonial India)

Chapter – 6

औपनिवेशिक भारत में धार्मिक सामाजिक जागृति

प्रश्न – उत्तर 

पाठात प्रश्न

प्रश्न 1. 19वीं सदी के भारत में सामाजिक प्रथाओं के अस्तित्व के बारे में बताएँ।
उत्तर – 19वीं सदी का भारत आज के भारत से बहुत भिन्न था। शिक्षा का अभाव और रूढ़िवादी सोच में समाज को संकीर्ण बना दिया था। कुछ सामाजिक प्रथाएँ, जैसे-कन्या बाल विवाह, सती प्रथा, भ्रूण हत्या और बहुविवाह आदि भारतीय समाज में प्रचलित थीं। कन्या भ्रूण हत्या एवं कन्या हत्या बहुत ही आम बात थी। बहुविवाह भी समाज प्रचलित था। देश में कुछ भागों में सती प्रथा भी प्रचलित थी। उपर्युक्त प्रथाओं के कारण महिलाओं की स्थिति समाज में और दयनीय हो गई थी। उन्हें संपत्ति में भी अधिकार प्राप्त नहीं था। दहेज और पैतृक संपत्ति में सांझेदारी से उनकी स्थिति और भी खराब हो गई।
प्रश्न 2. आपको क्यों लगता है कि सुधारों के लिए समाज को जगाने की जरूरत थी ?
उत्तर – वास्तव में समाज विभिन्न प्रकार की बुराइयों से जकड़ा था। समाज में व्याप्त कुछ कुप्रथाओं और अंधविश्वासों के कारण भारतीय समाज की प्रगति अवरुद्ध हो गई थी। इसके अतिरिक्त समाज भेदभाव, असमानता, जातिवाद जैसे भीषण बुराइयों में फँसा था। इसलिए समाज को इन कुप्रथाओं से मुक्त कराने के लिए सुधारों की अत्यधिक आवश्यकता थी।
प्रश्न 3. आपको ऐसा क्यों लगता है कि सामाजिक सुधार आंदोलन का धार्मिक सुधारों के बिना कोई अर्थ नहीं है ?
उत्तर – अधिकांशतः सामाजिक प्रथाएँ धर्म के नाम पर सने की जाती थी, इसलिए सामाजिक सुधार, धार्मिक सुधार के बिना कोई अर्थ नहीं रखता था। हमारे सामाजिक सुधारकों को में भारतीय परंपरा और दर्शन का गहन ज्ञान था और शास्त्रों का को भी अच्छा ज्ञान था। वे पश्चिमी विचारों और लोकतंत्र और समानता के सिद्धांतों के साथ सकारात्मक भारतीय मूल्यों का तो मिश्रण करने में सक्षम थे। इस ज्ञान के आधार पर उन्होंने धर्म के कठोरता तथा अंधविश्वासी प्रथाओं को चुनौती दी। उन्होंने शास्त्रों से उद्धृत करके बताया कि उन्नीसवीं सदी के दौरान की प्रचलित प्रथाओं को किसी भी प्रकार की मंजूरी नहीं मिली है। प्रबुद्ध और बुद्धिवादी लोगों ने लोकप्रचलित धर्म पर जो कि अंधविश्वासों से भरा पड़ा था तथा पुजारियों के हाथों शोषण का एक मंत्र बना हुआ था, पर अनेक प्रश्न उठाए गए। समाज सुधारक चाहते थे कि समाज तर्कसंगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्वीकार करें। उनका मानव गरिमा और सभी ये पुरुषों और महिलाओं की सामाजिक समानता सिद्धांत में भी विश्वास था।
प्रश्न 4. क्या आपको लगता है कि सुधारक भारतीय समाज में परिवर्तन लाने में सक्षम थे ?
उत्तर – नि:संदेह भारतीय समाज में कई सुधारक ऐसे थे जो समाज में परिवर्तन लाने में सक्षम थे। 19वीं सदी में कई भारतीय सुधारक और विचारक समाज में सुधार लाने के लिए हुए थे। दोनों में सकारात्मक विकास और देश में विकाम को प्राप्त करने के लिए सुधार करने की जरूरत है। इसलिए हमारे सुधारकों ने भारतीय जनता को जागृत करने की पहल की। इन सुधारकों ने जागरूकता फैलाने के लिए कुछ संगठनों की स्थापना की जिसके बारे में आप आगे पढ़ेंगे। राजाराम मोहन राय, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, सर सैयद अहमद खाँ ऐसे समाजसुधारक हुए जिनके अथक् प्रयासों से समाज में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए।

प्रश्न 5. सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन ने किस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया ?
उत्तर – सामाजिक-धार्मिक सुधार आदोलन ने विभिन्न प्रकार से राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। सुधारकों ने यह महसूस किया कि आधुनिक विचारों और संस्कृति के भारतीय सांस्कृतिक धाराओं में एकीकृत करके आत्मसात् किया जा सकता है। धार्मिक सुधार आंदोलनों ने भारतीयों के मन में अधिक आत्मसम्मान और आत्मविश्वास और देश के गर्व प्रति का भाव जगाया। इन सुधार आंदोलनों से अनेक भारतीयों की आधुनिक विश्व के साथ जोड़ा।

20वीं शताब्दी में और 1919 के बाद भारतीय राष्ट्रीआंदोलन सामाजिक सुधारक मुख्य प्रचारक बन गया। स्वतंत्र ने विचारों को भारतीय भाषाओं के द्वारा जनता तक पहुँचाने लिए प्रयोग किया गया। उन्होंने 1930 में उपन्यास, नाटक लघु कथाएँ, कविता, प्रेस और सिनेमा का अपने विचारों प्रचारित करने में प्रयोग किया। आत्मविश्वास, आत्मसम्मा जागरुकता, देशभक्ति तथा एक विकसित राष्ट्रीय चेतना भावना को इन आंदोलनों द्वारा प्रोत्साहित किया गया।

प्रश्न 6. जाति व्यवस्था एवं विधवा पुनर्विवाह की वकालत में निम्न सुधारकों की भूमिका स्पष्ट करें-
(क) राजा राममोहन राय
(ख) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
(ग) ज्योतिबा फुले
उत्तर – (क) राजा राममोहन राय-राजा राममोहन राय एक ऐसे धर्म सुधारक थे जिन्होंने अन्य अनुचित सामाजिक और धार्मिक प्रचलित प्रथाओं को चुनौती देने के लिए आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने 1828 ब्रह्म समाज की स्थापना की सती प्रथा को चुनौती देने के लिए पहल करने वाले वह पहले व्यक्ति थे। उनके प्रयासों से ही 1829 में एक कानून पारित किया गया जिसमें सती प्रथा को अवैध और दण्डनीय

(ख) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर – ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एक ऐसा नाम है जिसने अपना संपूर्ण जीवन सामाजिक सुधारों के
लिए समर्पित कर दिया। 1856 में सबसे पहले हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम उनके अथक प्रयासों के कारण प्रस्तुत किया गया।

(ग) ज्योतिबा फुले – महाराष्ट्र से ज्योतिबा गोविन्द राव फुले ने किसानों और निम्न जातियों को समान अधिकार दिलाने के लिए काम किया। वह और उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने निम्न जातियों की महिलाओं को शिक्षित करने के लिए सबसे अधिक प्रयास किए।

प्रश्न 7. निम्नलिखित सुधारकों के बीच सामान्य लक्षण को पहचानें-
(क) थियोसोफिकल सोसायटी और रामकृष्ण मिशन
(ख) अकाली आंदोलन और आर्य समाज ।
उत्तर – (क ) थियोसोफिकल सोसायटी और रामकृष्ण मिशन – 1907 में एनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसायटी की साहित्यिक भाषा में काम किया जो भारतीय विरासत एवं अध्यक्ष बनी। उन्होंने भारतीय भाषा को प्रोत्साहित करने और संस्कृति में गर्व की भावना को दर्शाती था। इससे भारतीयों में राजनैतिक जागरूकता और आत्मविश्वास का उदय हुआ। रामकृष्ण मिशन के संस्थापक विवेकानंद थे। उन्होंने भाषणों और लेखन के माध्यम से हिन्दू संस्कृति और धर्म का सार बताया और महिलाओं के उत्थान और शिक्षा के लिए काम किया।

(ख) अकाली आंदोलन और आर्य समाज – स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 ई० में उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को सुधारने के लिए आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज ने सामाजिक सुधार की वकालत की और महिलाओं की दशा में के लिए काम किया। आर्य समाज की राष्ट्रीय आंदोलन सुधार प्रमुख भूमिका रही।अमृतसर और लाहौर में “दो सिंह सभा” का 1870 में गठन किया गया, जिसमें सिखों के बीच में धार्मिक सुधार आंदोलन की शुरूआत की गई। 1920 में पंजाब में अकाली आंदोलन द्वारा गुरुदारों या सिक्ख धार्मिक स्थलों के प्रबंधन को सुधारा गया।

प्रश्न 8. 19वीं सदी में महिलाओं की शिक्षा के विकास में कौन-सी बाधाएँ आईं।
उत्तर – उन्नीसवीं सदी में महिलाओं की शिक्षा के विकास में अनेक बाधाएँ थीं। उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता था। कई समाज में यह विचार प्रचलित था कि महिलाएँ शादी के पश्चात् जल्द ही विधवा हो जाएगी। दहेज तथा पैतृक संपत्ति में साझेदारी से उनकी स्थिति और भी खराब हो गई।
प्रश्न 9. मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा किसने शुरू की ? इस क्षेत्र में उनके योगदान और भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर – मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार का श्रेय सर सैयद अहमद खाँ को जाता है। उन्होंने मुसलमानों में सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए विभिन्न कार्य किए। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक सराहनीय प्रयास किए। उन्होंने मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए में एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की, जो कालांतर में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह मानविकी और विज्ञान के क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा के माध्यम शिक्षा प्रदान की गई। उन्होंने अंग्रेजी पुस्तकों के अनुवाद के लिए एक साइंटिफिक सोसाइटी की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने मुसलमानों में अंग्रेजी शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक सार्थक प्रयास किए।
प्रश्न 10. नक्शे को ध्यान से पढ़े और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।

(क) ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज और एम०ए०ओ० कॉलेज किन स्थानों पर लोकप्रिय हुए।
(ख) जो सामाजिक सुधारक पश्चिमी भारत में सक्रिय थे, उनके नाम बताएँ तथा जिस स्थान पर वे सक्रिय उनको चिन्हित करें।

उत्तर –

(क) बंगाल, गुजरात, मुंबई, उत्तर प्रदेश
(ख) महादेव गोविन्द रानार्ड, पंडिता रमाबाई

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 19वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति का वर्णन 20 शब्दों में करें।
उत्तर – 19वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति निराशाजनक थी। बलिकाओं का जन्म दुर्भाग्यपूर्ण समझा जाता था। समाज में उन्हें उचित स्थान प्राप्त नहीं था।
प्रश्न 2. 19वीं शताब्दी के पाँच समाज सुधारकों के नाम बताइए।
उत्तर – राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, सर सैयद अहमद खाँ, विवेकानंद ।
प्रश्न 3. जाति व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – जाति व्यवस्था प्राचीन काल से भारतीय समाज में विद्यमान रही है। प्राचीन भारतीय समाज को चार जातियों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बाँट दिया गया था। आरंभ में जबकि चार जातियाँ थी, तब उनका आधार काम अथवा व्यवसाय था परतु धीरे-धीरे जातियों का आधार कर्म न रहकर जन्म ह गया।
प्रश्न 4. वर्ण और जाति में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर – वर्ण और जाति दो भिन्न-भिन्न शब्द हैं और दोनों में काफी अंतर है। वर्ण का आधार गुण है, जबकि जाति का -आधार जन्म है। वर्ण की धारणा संस्कृति, चरित्र तथा व्यवसाय पर आधारित है। इसमें व्यक्ति की नैतिकता और बौद्धिक क्षमता का विशेष महत्त्व है।
प्रश्न 5. संविधान के किस अनुच्छेद में समानता के अधिकार पर बल दिया गया है ?
उत्तर – संविधान के अनुच्छेद 14 में उल्लेख किया गया है कि “धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें
से किन्हीं के भी आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।” इन संवैधानिक प्रावधानों ने देश के सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक विकास में समाज के पिछड़े वर्गों (अधिकारविहीन वर्गों) की भागीदारी सुनिश्चित
की है।
प्रश्न 7. ब्रह्म समाज के मुख्य आदर्शों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – (1) ब्रह्म समाज ने हिन्दू धर्म को सुधारने और एक ईश्वर के प्रति विश्वास पर बल दिया।
(ii) इसमें मानव मर्यादा का पक्ष लिया और मूर्ति पूजा का विरोध किया।
प्रश्न 8. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कौन थे ?
उत्तर – वे एक महान समाज सुधारक थे जिन्होंने विवाह का समर्थन किया। उनके प्रयासों से हिन्दू विधव विवाह कानून 26 जुलाई 1856 में पास हुआ
प्रश्न 2. 19वीं शताब्दी के पाँच समाज सुधारकों के विवाह कानून 26 जुलाई, 1856 में पास हुआ।
उत्तर – राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी दयानंद सरस्वती, सर सैयद अहमद खाँ, विवेकानंद ।
प्रश्न 9. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का शिक्षा के क्षेत्र क्या योगदान है ?
उत्तर – ईश्वरचन्द्र  विद्यासागर ने बंगाल में 35 बालिक विद्यालय की स्थापना की। वह स्त्री शिक्षा के प्रचार-प्रसार के संस्कृत कॉलेज में गैर-ब्राह्मण छात्रों का प्रवेश हिन्दू समाज की कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष करने का प्रयास उनके प्रयास से संभव हो सका।
प्रश्न 10. आर्य समाज की स्थापना कब और किसने की। की ?
उत्तर – आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल, 1875 को की।
प्रश्न 11. समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए किन संस्थाओं ने योगदान किया ?
उत्तर – सामाजिक बुराइयों को दूर करने में ब्रह्म समाज. आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन आदि समाजसुधारकों का योगदान रहा है।
प्रश्न 12. जाति व्यवस्था का समाज गठन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – विभिन्न जातियों और उपजातियों का व्यवसाय के आधार पर उदय हुआ। इससे समाज में पृथकता आई और लोग जाति के आधार पर उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में विभाजित हो गए।

प्रश्न 13. स्वामी विवेकानंद के दर्शन की मुख्य सामाजिक प्रथाओं को दूर करने के लिए अब्दुल लतीफ ने 1863 में कलकत्ता में “मोहम्मडन साक्षरता सोसाइटी ” स्थापित विशेषताओं की समीक्षा कीजिए।
उत्तर – स्वामी विवेकानंद के दर्शन की मुख्य विशेषताएँ की अग्रलिखित हैं-

• उन्होंने जाति-प्रथा, जटिल कर्मकांडों तथा अंधविश्वासों क्या का विरोध किया।
• उन्होंने भारतीय आध्यात्मिक धरोहर पर गर्व जताना
• उन्होंने जनसाधारण के उत्थान के लिए स्कूल, अस्पताल, अनाथ आश्रम बनाए।
• उन्होंने भारतीयों  को विकास के लिए अन्य संसार से जुड़ने के लिए कहा

प्रश्न 14. समाज सुधार के क्षेत्र में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी के योगदानों को संक्षिप्त दीजिए।
उत्तर –  ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने नागरिकों एवं दलितों की समस्याओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया और 1848 में पूना में लड़कियों को शिक्षा देने के उद्देश्य से एक स्कूल खोला। इसके अतिरिक्त ज्योतिबा फुले ने सत्य शोधक समाज का गठन किया जो निम्न जातियों को शोषण और अत्याचार से बचाती है।
प्रश्न 15. प्रार्थना समाज की स्थापना किसने की ? महत्त्वपूर्ण बताया और महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए आप इस विषय में क्या जानते हैं ?
उत्तर – प्रार्थना समाज की स्थापना न्यायमूर्ति महादेव गोविंद स्त्री को महत्त्वपूर्ण बताया। समर्थक थे। संस्कृत कॉलेज में गैर-ब्राह्मण छात्रों का प्रवेश हिन्दू समाज की कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष करने का प्रयास उनके प्रयास से संभव हो सका। किया और एक ईश्वर पर आस्था और आचरण की वकालत की।
प्रश्न 16. पंडिता रमाबाई कौन थी ? वह क्यों प्रसिद्ध हुई ?
उत्तर – पंडिता रमाबाई महाराष्ट्र में एक प्रसिद्ध समाज सुधारक थीं। उन्होंने महिलाओं के अधिकार के लिए संघर्ष किया। बालिकाओं की शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया और आर्य महिला समाज की स्थापना की।
प्रश्न 17. थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना किसने
उत्तर – थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना न्यूयार्क में श्रीमती ब्लावत्स्की और कर्नल एच.एच ओल्काट ने की।1907 में ऐनी बेसेंट इसकी अध्यक्ष बनी।
प्रश्न 18. “मोहम्मडन साक्षरता सोसाइटी” की स्थापना किसने और क्यों की ?
उत्तर – आधुनिक शिक्षा के प्रसार तथा बहुविवाह जैसी प्रथाओं को दूर करने के लिए अब्दुल लतीफ ने 1863 में कलकत्ता में “मोहम्मडन साक्षरता सोसाइटी ” स्थापित की
प्रश्न 19. खालसा कॉलेज की स्थापना का उद्देश्य उन्होंने जाति-प्रथा, जटिल कर्मकांडों तथा अंधविश्वासों क्या था ?
उत्तर – गुरुमुखी, सिख शिक्षा और पंजाबी साहित्य को प्रोत्साहन देने के लिए 1892 में अमृतसर में ‘खालसा कॉलेज” की स्थापना की गई।
प्रश्न 20. समाज में सुधार आंदोलन का क्या प्रमुख उन्होंने भारतीयों को विकास के लिए अन्य संसार परिलक्षित हुआ ? से जुड़ने के लिए कहा।
उत्तर – समाज में सुधार आंदोलनों का बहुत सार्थक प्रभाव पड़ा। सुधारकों के लगातार प्रयासों की वजह से कानून द्वारा सती प्रथा, अस्पृश्यता जैसी सामाजिक बुराइयों को समाप्त कर दिया गया था। विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन मिला। आधुनिक शिक्षा को समाज में बढ़ावा दिया गया।
प्रश्न 21: सुधारकों ने समाज में सुधार के लिए किन चीजों को महत्त्वपूर्ण बताया?
उत्तर – सभी सामाजिक और धार्मिक आंदोलनों ने समाज में सुधार के लिए आधुनिक शिक्षा और वैज्ञानिक ज्ञान को महत्त्वपूर्ण बताया और महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए स्त्री को महत्त्वपूर्ण बताया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 19वीं शताब्दी के भारत की सामाजिक जातिगत भेद हीं उसे गुलाम बनाए हुए हैं। राष्ट्रीय और स्थिति पर प्रकाश डालिए। अमानवीय है।
उत्तर – 19वीं शताब्दी का भारत अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा था। भारतीय समाज अनेक प्रकार के रूढ़िवादी विचारों से जकड़ा हुआ था। समाज में ऐसी-ऐसी प्रथाएँ प्रचलित थीं, जो मानवीय विचारों के विरुद्ध थीं। शिक्षा का अभाव और महिलाओं की दयनीय स्थिति से 19वीं शताब्दी के भारत की सामाजिक स्थिति में और भी गिरावट आ गई।
प्रश्न 2. उन्नीसवीं शताब्दी में शिक्षा की क्या स्थिति थी ?
उत्तर – उन्नीसवीं शताब्दी में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब थीं। अधिकांश महिलाएँ कम-पढ़ी लिखी होती थीं। बालिकाएँ स्कूल नहीं जाती थीं। शिक्षा केवल पाठशालाओं, दरसों, मकतबों या गुरुकुलों में दी जाती थी। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा का अभाव था। शिक्षा के अभाव के कारण ही उन्नीसवीं सदी का भारतीय समाज पिछड़ा हुआ था।

प्रश्न 3. भारत में उन्नीसवीं शताब्दी के धर्म सुधार आंदोलनों के संबंध में चार बातें बताइए।
उत्तर – उन्नीसवीं शताब्दी के धर्म सुधार आंदोलनों के संबंध में चार बातें निम्नलिखित हैं-

(i) 19वीं शताब्दी के सुधारकों में अधिकतर को भारतीय परंपराओं, दर्शनों, एवं धार्मिक ग्रंथों की गहरी जानकारी थीं। उनके विचार अधिकतर मामलों में लोकतंत्र एवं समानता के पश्चिमी विचारों एवं सिद्धांतों से प्रभावित थे।

(ii) सुधारकों की धर्म पर अलोचना, परंपरा और आधुनिकता दोनों आधार पर थी।

(iii) बहुत-सी ऐसी सामाजिक बुराइयाँ भारत में थीं जो धर्म के नाम पर समाज में व्याप्त थीं। यद्यपि इन्हें प्रयासों द्वारा समाप्त किया जा सकता था। यदि धर्म इन्हें आश्रम देना बंद कर दे अर्थात् वह उसी वक्त संभव था, जब स्वयं धर्म सुधार हो।

प्रश्न 4. सुधार आंदोलनों का जाति प्रथा पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर – जाति प्रथा की बुराइयों के कारण समाज सुधार आंदोलन ने इस पर प्रहार किया। हिन्दुओं की जनसंख्या का एक-चौथाई भाग अछूत समझा गया। समाज सुधार आंदोलनों ने इसे अमानवीय बताया। यह स्पष्ट किया कि हिन्दू समाज में सामाजिक जातिगत भेद हीँ उसे गुलाम बनाए हुए हैं। राष्ट्रीय और सामाजिक एकता के लिए मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण की समस्याओं अमानवीय है।
प्रश्न 5. वर्ण व्यवस्था पर आधारित समाज और उनके व्यवसाय का विशषलेण कीजिए।
उत्तर – वर्ण व्यवस्था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र पर आधारित थी। इस व्यवस्था के अनुसार लोगों को उनके व्यवसाय के आधार पर अलग किया गया था। ब्राह्मणों का कार्य अध्ययन, वेदों की शिक्षा, ईश्वर की प्रार्थना और पूजा-पाठ करना था। क्षत्रियों का काम युद्ध करना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, न्याय करना इत्यादि था। जिनका व्यवसाय कृषि तथा व्यापार था, वे वैश्य के रूप में जाने जाते थे। शुद्रों के लिए केवल एक ही कार्य निर्धारित था-उपयुक्त तीनों वर्णों की सेवा करना ।
प्रश्न 6. आश्रम व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – प्राचीन काल में प्रत्येक व्यक्ति का जीवन आश्रम व्यवस्था पर आधारित था। मनुष्य के जीवन को चार आश्रमों में विभाजित किया गया था। ये चार आश्रम थे- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। किन्तु ये आश्रम व्यवस्था निम्न वर्ग पर लागू नहीं थी। क्योंकि उन्हें धार्मिक ग्रंथ पढ़ने का अधिकार नहीं था। शेष सभी पर यह नियम लागू होता था।
प्रश्न 7. सती प्रथा को समाप्त करने के लिए राजा राम मोहन राय के प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – प्राचीन भारत में सती प्रथा प्रचलित थी। इस प्रथा अनुसार हिन्दू विधवा को अपने पति की चिता पर जिंदा जला दिया जाता था। यह एक अमानवीय प्रथा थी। राजा राम मोहन राय ने 1818 के बाद इस व्यवस्था के विरुद्ध जनमत तैयार किया। उन्होंने प्राचीनतम धर्म ग्रंथों से उदाहरण प्रस्तुत कर सिद्ध किया कि हिन्दु धर्म सती प्रथा के विरुद्ध था। उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध जनमत तैयार करने के लिए उन्होंने बंगाल में सभाएँ करते, जुलूस निकालते तथा प्रार्थना पत्र भेजते थे। अतः उनके प्रयासों से 4 दिसम्बर, 1829 को इस प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया।
प्रश्न 8. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने समाज सुधार क्षेत्र में क्या कार्य किए ? थे, जिन्होंने नारी उत्थान के लिए महान कार्य किया।
उत्तर – ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एक महान समाज सुधारक विधवा विवाह का समर्थन किया और अपना सारा जीवन इस औपनिवेशिक भारत में धाार्मिक एवं सामाजिक जागृति धोखा- एक रंग कार्य पर न्यौछावर कर दिया। उनके प्रयासों से 26 जुलाई, 1956 को हिन्दू विधवा विवाह-कानून पास किया गया। इस कानून ने हिन्दू विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराया। उन्होंने स्वयं इस प्रकार के कई विवाहों का आयोजन किया और नारी शिक्षा का समर्थन किया। उन्होंने बंगाल में 35 बालिका विद्यालयों की स्थापना में सहयोग दिया। वह स्त्री-शिक्षा के प्रचार-प्रसार के समर्थक थे। संस्कृत कॉलेज में गैर-ब्राह्मण छात्रों का प्रवेश इनके प्रयासों से ही संभव हो सका।
प्रश्न 9. राजा राम मोहन राय एवं ईश्वरचन्द्र विद्यासागर  ने नारी मुक्ति में क्या भूमिका अदा थी ?
उत्तर – राजा राम मोहन राय एवं ईश्वरचन्द्र विद्यासागर को आधुनिक भारत के इतिहास में विशेष महत्त्व दिया गया है। क्योंकि इन दोनों ने 19वीं शताब्दी में हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का सफल प्रयास किया। विशेषकर नारी की दशा सुधारने में उनके योगदानों को भुलाया नहीं जा सकता है। राजा राम मोहन राय ने नारी की दशा सुधारने के लिए “ब्रह्म समाज” की स्थापना की। उन्होंने सती प्रथा का विरोध किया और लॉर्ड विलियम बैंटिक की सहायता इसके विरुद्ध कानून का निर्माण किया। इतना ही नहीं, उन्होंने बाल विवाह, बहु-विवाह, कन्या वध इत्यादि की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। उसी प्रकार का प्रयास ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने भी किया और नारी शिक्षा पर महत्त्व दिया।

प्रश्न 10, राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का पिता क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के पिता के रूप में-राजा राममोहन राय विशेष महत्त्व के योग्य हैं। बहुत अधिक साहित्यिक योग्यता के स्वामी और भारतीय संस्कृति इस्लाम और ईसाई मत के बारे में गहरी रुचि रखते थे। वह सती-प्रथा के कट्टर विरोधी थे जिसमें हिन्दू स्त्रियाँ अपने पति की चिता के साथ जल जाती थीं। उनकी कोशिशों से 1829 ई० में ब्रिटिश साम्राज्य ने उस पर प्रतिबंध ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया। वह कहा करते थे कि ईश्वर एक है, उन्होंने बंगाली और अंग्रेजी में बहुत कुछ लिखा। वह अंग्रेजी शिक्षा को विकसित करने के भी पक्ष में थे।

उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की जो हिन्दू धर्म को शुद्ध करने और ईश्वर पर विश्वास की शिक्षा देता था। उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध किया। देवेन्द्र नाथ टैगोर (1817 ई० से 1905 ई०) ब्रह्म समाज के नेता से राजा राममोहन राय के उत्तराधिकारी हुए।

प्रश्न 11. सामाजिक सुधार के क्षेत्र आर्य समाज की भूमिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को सुधारने के लिए आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज ने सामाजिक सुधार की वकालत की और महिलाओं की दशा में सुधार के लिए काम किया। इन्होंने अस्पृश्यता और वंशानुगत जाति व्यवस्था के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की तथा सामाजिक समानता को आगे बढ़ाया। आर्य समाज की भूमिका जनता मध्य शिक्षा को प्रोत्साहन देने में सराहना की। आर्य समाज ने संस्कृत और वैदिक शिक्षा के साथ अंग्रेजी और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया।

प्रश्न 12. सामाजिक व राष्ट्रीय जागरण लाने में स्वामी विवेकानंद की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – भारतीय जनता को जागृत करने में स्वामी विवेकानंद जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

1. 1893 ई० में वह शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि बनकर गए। उन्होंने इंग्लैण्ड में हिन्दू धर्म का प्रचार किया।

2. उन्होंने अपने गुरु की मृत्यु के पश्चात् कलकत्ता के समीप वैलूर में ‘राम-कृष्ण मिशन’ की स्थापना की। इस संस्था ने हिन्दू धर्म में खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से स्थापित किया। स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों में अपने धर्म के प्रति फिर से श्रद्धा पैदा कर दी।

3. स्वामी जी ने भारतीयों को प्रेरणा दी कि अपनी श्रेष्ठता तथा प्राचीन सभ्यता की पश्चिमी विचारों से रक्षा करें।

4. स्वामी विवेकानंद ने भारत में राजनीतिक चेतना लाने में भी काफी योगदान दिया। वे कहा करते थे, “दुर्बलता को
दूर करो, दुर्बलता पाप है, दुर्बलता मृत्यु है।” इस प्रकार उन्होंने भारतीयों की सोई हुई आत्मा को जगाया।

प्रश्न 13. शिक्षा के क्षेत्र में सर सैयद के योगदानों को याद कीजिए।
उत्तर – सर सैयद अहमद खाँ मुस्लिम जगत् में अपने शिक्षा प्रसार के लिए जाने जाते हैं। उनका मानना था कि केवल आधुनिक शिक्षा ही मुसलमानों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने 1817 में अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना की जो आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 14. प्रार्थना समाज की स्थापना किसने की और इसके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर – न्यायमूर्ति महादेव गोविंद रानाडे ने पूना में सार्वजनिक सभा की तथा 1867 बंबई में प्रार्थना समाज को धार्मिक सुधारों को लाने के लिए स्थापना की इसके मुख्य उदेश्य निम्नलिखित हे-

1. इसका उद्देश्य विवेकपूर्ण पूजा, आराधना और समाज सभा” या धार्मिक सुधार संगठन की स्थापना की गई। सुधार करना था।

2. यह संस्था भोज, अंतर्जातीय विवाह, विधवा पुनर्विवाह, महिलाओं तथा दलित वर्ग के उत्थान जैसे सुधार के कार्य करती थी।

3. प्रार्थना समाजों को संसार की अग्रिम कृति नहीं मानतो वह पुनर्जन्म और अवसरवाद के सिद्धांत में विश्वास नहीं करती। यह संस्था एकेश्वरवाद में विश्वास करती थी।

प्रश्न 15. भारतीय लोगों में आत्मसम्मान और भारत संतोषजनक नहीं थी। बालिकाओं का जन्म अशुभ समझ के प्राचीन सभ्यता के प्रति गर्व उत्पन्न करने में थियोसोफिकल सोसाइटी की भूमिका का परीक्षण कीजिए। में महिलाओं के संपत्ति और विरासत का अधिकार प्राप्त
उत्तर – थियोसोफिकल सोसाइटी-1879 ई० में कर्नल आकार और मैडम ब्लावत्सको ने न्यूयार्क में थियोसोफिकल
था। पर्दा प्रथा भी समाज में प्रचलित थीं। हिन्दू समाज में दूसरी अमानवीय प्रथाएँ प्रचलित सोसाइटी की स्थापना की। 1882 ई० में इसकी एक शाखा उनमें से एक सती प्रथा थी। इस प्रथा के अंतर्गत पति मद्रास में खोली गयी। आयरिश महिला श्रीमती ऐनी बेसेंट ने के पश्चात् उसकी पत्नी पति के साथ चिता पर जलने इसके लिए कार्य किया। इसके निम्नलिखित सिद्धांत और लिए बाध्य किया जाता था। इस अतिरिक्त समाज में उद्देश्य थे-

1. ईश्वर की एकता तथा सर्वव्यापकता पर बल देना।
2. मूर्तिपूजा तथा कर्मकाण्ड का विरोध करना।
3. जीवन की शुद्धता पर बल देना तथा सदाचार को अपनाना।
4. शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करना।
5. भारतीय स्वतंत्रता के लिए कार्य करना।

प्रश्न 16. उन्नीसवीं शताब्दी में सिक्ख समुदाय में जो सुधार आंदोलन चला, उसका विवरण दीजिए।
उत्तर – उन्नीसवीं शताब्दी में सिक्ख आंदोलन भी शुरू हुआ। यह एक समाज सुधार आंदोलन था। यह आंदोलन अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना के साथ शुरू हुआ। इन आंदोलन का मुख्य उद्देश्य गुरुद्वारों के प्रबंधन का शुद्धिकरण करना था जिन पर भ्रष्ट महन्तों ने कब्जा कर रखा था। 1921 में अकालियों के नेतृत्व में सिक्खों ने गुरुदारों के भ्रष्ट प्रबंधन के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया। सरकार ने गुरुद्वारों के प्रबंध को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने और पवित्र स्थलों को भ्रष्ट महंतों के चंगुल से आजाद कराने की मुहिम छोड़ दी। विवाह, बहुविवाह भी प्रचलित थी।

प्रश्न 17, 19वीं सदी में पारसियों के बीच में सुधार आंदोलन की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर – 19वीं सदी के बीच नौरोजी फरदोजी नौरोजी, एस.एस. बंगाली और दूसरी पारसियों के बीच धार्मिक सुधारों की शुरूआत हुई। सन् 1851 में “रहनुमाया सभा” या धार्मिक सुधार संगठन की स्थापना की गई। शिक्षा के प्रसार में विशेष रूप से लड़कियों के बीच महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. 19वीं शताब्दी में महिलाओं की स्थिति विस्तृत विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर – 19वीं शताब्दी तक भारत में महिलाओं को स्थिति  तोषजनक नहीं थीं। बालिकाओं का जन्म अशुभ समझ जाता था। वे अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थी। हिन्दू समाज  में महिलाओं के संपत्ति और विरासत का अधिकार प्राप्त नही था। पर्दा प्रथा भी समाज में प्रचलित थीं। हिन्दू समाज में दूसरी अमानवीय प्रथाएँ प्रचलित थी  उनमें से एक सती प्रथा थी। इस प्रथा के अंतर्गत पति की  मृत्यु  के पश्चात् उसकी पत्नी पति के साथ चिता पर जलने लिए बाध्य किया जाता था। इस अतिरिक्त समाज में बल  विवाह, बहु-विवाह भी प्रचलित थी।
प्रश्न 2. अधिकतर समाज सुधारकों ने जन्म आधारित जाति व्यवस्था पर क्यों कुठाराघात किया ?
उत्तर – 19वीं शताब्दी के भारत में जाति व्यवस्था अपनी जड़ें काफी हद तक जमा चुकी थी। संपूर्ण भारतीय समाज जातियों एवं उपजातियों में विभक्त था। विभिन्न जातियों एवं उपजातियों का व्यवसाय के आधार उदय हुआ। इससे सम में पृथकता आई और लोग अपनी जाति एवं उपज्ञात क आधार पर निम्न एवं उच्च वर्गों में विभाजित हो गए। को उच्च वर्ग में रखा गया, जबकि शुद के साथ असमानत शोषण तथा अमानवीयता का व्यवहार आरंभ हुआ। कुछ अपवित्र या दूषित माना जाने लगा। उन्हें अपनी पर का व्यवसाय छोड़ना पड़ा और वे समाज से अलग रहने से सामाजिक व धार्मिक सुधारक तथा संगठनों बहुत सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए आगे ब्राह्मण समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, राम कृष्णा जैसे समाज सुधारका ने जाति व्यवस्था में व्याप्त बुराइयों को शारीरिक विज्ञान की भी शिक्षा दी जाती थी। उन्होंने उच्च सक्त विरोध किया। केरल में जातीय असमानता की समाप्ति शिक्षा के लिए 1857 ई० में कलकत्ता में एक हिन्दू कॉलेज में नारायण गुरू की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। की स्थापना करने में योगदान दिया। उन्होंने शिक्षा की उदार

प्रश्न 3. “राजा राम मोहन राय आधुनिक भारत के व्यवस्था की वकालत की। पिता कहे जाते हैं।” उक्त कथन के आलोक में राजा राम मोहन राय के कार्यों की समीक्षा की कीजिए।
उत्तर – राजा राम मोहन राय एक शिक्षित और आधुनिक विचारों से परिपूर्ण व्यक्ति थे। इसलिए समाज में उत्पन्न हुई थे। इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इनका बुराई को देख नहीं पा रहे थे और इसीलिए समाज में जकड़ी असली नाम नरेंद्र था। वे अपने गुरु के प्रभाव से काली देवी बुराई को दूर करने के लिए आवाज उठाई। उन्होंने सुधार के उपासक बन गए। धीरे-धीरे अपने गुरु के आशीर्वाद और उठाई।

कहा जाता है कि जब उनके भाई की मृत्यु हुई तो उनकी विधवा भाभी को उनकी इच्छा के विरुद्ध सती होने के लिए मजबूर किया गया। वे इसे देखकर बहुत दुःखी हुए और उन्होंने इस घृणित प्रथा को समाप्त करने का निश्चय किया। इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध जीवनभर संघर्ष किया। जनता में जागरूकता पैदा की। उन्होंने धार्मिक पुस्तकों का उदाहरण देकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि हिन्दू धर्म में सती प्रथा के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने लोगों को मानवीय और जागरूक होने के लिए प्रोत्साहन दिया। सती प्रथा को समाप्त करने के उनके प्रयत्नों के कारण उन्हें रूढ़िवादी हिन्दुओं की शत्रुता और विरोध का सामना करना पड़ा। तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिक ने उनके कार्य का समर्थन किया। उनकी सहायता से राममोहन राय 1829 ई० में एक कानून पास करने में सफल हुए जिसमें सती प्रथा को गैर-कानूनी और दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। उन्होंने विधवा विवाह की वकालत की और बाल विवाह को रोकने के लिए प्रयास किए। राजा राम मोहन राय ने भारत के आधुनिकीकरण के लिए अंग्रेजी भाषा साहित्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अध्ययन पर सख्ती से बल दिया। उन्होंने 1817 में अपने खर्च पर एक अंग्रेजी स्कूल स्थापित किया। उन्होंने 1825 में एक वेदांत कॉलेज की भी स्थापना की। इस कॉलेजमें भारतीय ज्ञान के साथ-साथ पश्चिमी, सामाजिक और

प्रश्न 4. स्वामी विवेकानंद के विषय में आप क्या जानते हैं ?  
उत्तर – स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे प्रयासों को वेदों, वेदांतों और उपनिषदों द्वारा प्रमाणित किया। वे विचारों से आध्यात्मिक जीवन ग्रहण कर लिया। नरेंद्र ने 1887 एकेश्वरवाद के समर्थक थे। इसलिए उन्होंने मूर्ति पूजा और के बाद अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। उन्होंने धार्मिक कर्मकाण्डों का जमकर विरोध किया। उन्होंने ब्रह्म सर्वधर्म समानता की घोषणा की। उन्होंने भारतीय राष्ट्र की समाज की स्थापना कर समाज में व्याप्त धार्मिक बुराइयों को प्राप्ति के लिए हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दूर करने का नया उपाय ढूँढा और सामाजिक बुराइयों के सौहार्द और सद्भावना पर बल दिया। उनकी हिन्दू धर्म में पूर्ण विरुद्ध जमकर संघर्ष किया। राजा राम मोहन राम ही वह आस्था थी। उन्होंने धर्म के संकीर्ण विचारों और रूढ़िवादी व्यक्ति थे जिन्होंने सबसे पहले सतीप्रथा के विरुद्ध आवाज विचारों की निंदा की जाति प्रथा व छुआछूत का समर्थन किया। अंधविश्वास पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र आदि को गलत बताया. और अपने गुरु के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की भारतीय समाज पर बेलूर उनका गहरा प्रभाव पड़ा। रामकृष्ण मिशन देशभर में समाज सेवा के लिए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, अनाथाश्रम और पुस्तकालय बनाए ।
प्रश्न 5. शिक्षा के क्षेत्र में उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीयों ने क्या प्रयास किए ?
उत्तर – शिक्षा के क्षेत्र में उन्नीसवीं शताब्दी में भारतीयों ने बहुत प्रयास किए। अधिकतर समाज सुधारकों ने यह महसूस किया कि आधुनिक शिक्षा के प्रसार के बिना हमारे समाज में सामाजिक और धार्मिक सुधार सफल नहीं होगा। लोकतंत्र और समानता पर आधारित वैज्ञानिक और तर्कसंगत आधुनिक विचार को परिवर्तन के लिए आवश्यक समझा गया। राजा राम मोहन राय ने भारत के आधुनिकीकरण के लिए अंग्रेजी भाषा, साहित्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अध्ययन पर सख्ती से बला दिया। उन्होंने 1817 में कलकत्ते में अपने खर्च पर एक अंग्रेजी स्कूल आरंभ किया। सन् 1825 में उन्होंने वेदांत कॉलेज स्थापित किया। इसमें भारतीय ज्ञान के साथ-साथ पश्चिम शारीरिक और सामाजिक विज्ञान की शिक्षा दी जाती 1857 में उन्होंने कलकत्ता में उच्च शिक्षा के लिए प कॉलेज स्थापित किया। तरुण बंगाल आंदोलन का आधुनिक शिक्षा के प्रसार में प्रभावी योगदान है। उन्होंने अपने छात्रों में राष्ट्रीयता, उदारता, स्वतंत्रता, समानता की भावना पैदा की। वे चाहते थे कि उनके छात्र भारत की आजादी के समर्थक बने। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का समर्थन किया। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने 35 बालिका विद्यालयों की स्थापना की। वह स्त्री शिक्षा के समर्थक थे। स्त्री-शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी ने आधुनिक शिक्षा के प्रसार का सशक्त प्रयास किया। शिक्षा के प्रसार में आर्य समाज को भूमिका अत्यंत सहराहनीय है। स्वामी दयानंद चाहते थे कि लोग पश्चिमी विज्ञान और भाषा का अध्ययन करें। सर सैयद अहमद खाँ ने मुसलमानों के सख्त विरोध के बावजूद अंग्रेजी भाषा के अध्ययन की जोरदार वकालत की। उन्होंने 1864 में गाजीपुर में एक अंग्रेजी स्कूल की स्थापना की। 1817 में उन्होंने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना की।
प्रश्न 6. मुस्लिम समाज के विकास में सर सैय अहमद खाँ के योग्दानों को याद कीजिए। 
उत्तर – सर सैयद अहमद खाँ मुसलमानों के महत्त्वपूर्ण से समाज सुधारक थे। उन्होंने मुसलमानों के सामाजिक जीवन में तर्कसंगत दृष्टिकोण एवं आधुनिक विचारों को लाने का प्रयास किया। उन्होंने समय के अनुकूल कुरान की तर्कपूर्ण व्याख्या में रा का समर्थन किया। उन्होंने दुराग्रह, अज्ञानता तथा संकीर्णता के विरुद्ध आवाज उठायी। उन्होंने मोहम्मडन एंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना अलीगढ़ में 1857 ई० में की जो आगे चलकर अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के नाम से प्रख्यात हुआ। यद अहमद खान का धार्मिक सहनशीलता में विश्वास था। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम सांप्रदायिक सौहार्द्र की हमेशा वकालत । कुछ भ्रांतियों के कारण बाद में उनके विचारों में बदलाव आया और उन्होंने मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने से भी मना कर दिया. परंतु वह सांप्रदायिक मानसिकता के नहीं थे। उनकी चिंता केवल मुसलमानों के सामाजिक एवं अ शैक्षिक पिछड़ेपन को समाप्त करना था। अतः उनका यह मानना था कि ब्रिटिश विरोध के द्वारा यह संभव नहीं है। उन्होंने मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने और उनमें शिक्षा का प्रसार करने तथा पर्दा प्रथा को समाप्त करने पर बल दिया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा के अध्ययन की वकालत की। उनका मानना था कि केवल आधुनिक शिक्षा से ही मुसलमानों का विकास हो सकता है। उन्होंने अंग्रेजी पुस्तकों के अनुवाद के लिए एक संस्था स्थापित की। उन्होंने 1817 में अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज की स्थापना की।

प्रश्न 7. उन्नीसवीं शताब्दी के समाज के प्रभावी का वर्णर करे 
उत्तर- उन्नीसवीं शताब्दी के सामाजिक सुधार स्वतंत्रता, समानता की भावना पैदा की। वे चाहते थे कि उनके सुधार आंदोलन के प्रभावों का वर्णर करें।

1. धार्मिक अंधविश्वासों तथा कुरीतियों का विरोध – इन तिवाकले और उनकी आंदोलनों के द्वारा तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त अनेक मका अत्यंत सहराहनीय वध, बाल-विवाह, जाति-प्रथा आदि का विरोध किया गया। सशक्त प्रयास किया। धार्मिक अंधविश्वासों तथा सामाजिक कुरीतियों, जैसे-कन्या पश्चिमी विज्ञान और तथा उन्हें समाप्त करने के लिए सामाजिक चेतना जागृत की गई।

2. जाति-प्रथा तथा छुआछूत का विरोध – इन गाजीपुर में एक अंग्रेजी सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों द्वारा जाति प्रथा तथा छुआछूत अलीगढ़ में मोहम्मडन का विरोध किया गया। छुआछूत को अमानवीय बताया गया। धर्मग्रंथों द्वारा उदाहरण देकर यह सिद्ध किया गया कि की विकास में सर सैयद जाति-व्यवस्था तथा छुआछूत धर्म के विरुद्ध हैं।

3. नारी मुक्ति हेतु प्रयास भरतीय समाज में शताब्दियों सलमानों के महत्त्वपूर्ण से नारी उत्पीड़न तथा शोषण का शिकार रही हैं। सभी के सामाजिक जीवन में सामाजिक तथा धार्मिक सुधारकों द्वारा नारी की सामाजिक रों को लाने का प्रयास स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास किए गए। इन समाज-सुधारकों न की तर्कपूर्ण व्याख्या में राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद जनता तथा संकीर्णता के स्वामी दयानंद सरस्वती, प्रोफेसर कर्वे आदि प्रमुख हैं।

4. आधुनिक शिक्षा का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बल – 19वीं शताब्दी के समस्त सामाजिक तथा धार्मिक आंदोलनों द्वारा आधुनिक शिक्षा तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल दिया गया। आधुनिक शिक्षा की प्रकृति जनातांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष थी। उनके द्वारा यह बताया गया कि भारतीय समाज की प्रगति का मूलाधार जीवन के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना है।

5. राष्ट्रीय जागृति में सामाजिक – धार्मिक सुधार आंदोलनों का योगदान भारत में राष्ट्रीय जागृति सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों का महत्त्व निःसंदेह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। आंदोलनों के द्वारा भारतीयों में सामाजिक तथा सांस्कृतिक चेतना उत्पन्न की गई। उनमें आत्मसम्मान तथा आत्मगौरव की भावना भरी हुई। स्वामी दयानंद तथा आर्य समाज द्वारा इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया गया। ब्रिटिश की वकालत की। सरकार द्वारा डी.ए.वी. विद्यालयों तथा कॉलेजों को राजद्रोह का क्षा से ही मुसलमानों केंद्र समझा गया। स्वामी विवेकानंद द्वारा भी भारतीय संस्कृति पुस्तकों के अनुवाद की अतीत की विरासत पर गर्व करने का आह्वान किया गया। उन्होंने भारतीयों में देश-प्रेम को जागृत किया।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Question Answer in Hindi

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