NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 27 शांति और सुरक्षा (Peace and Security) Notes in Hindi

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 27 शांति और सुरक्षा (Peace and Security)

TextbookNIOS
class10th
SubjectSocial Science
Chapter27th
Chapter Nameशांति और सुरक्षा (Peace and Security)
CategoryClass 10th NIOS Social Science (213)
MediumHindi
SourceLast Doubt

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 25 शांति और सुरक्षा (Peace and Security) Notes in Hindi शांति और सुरक्षा का क्या तात्पर्य है?, सुरक्षा और शांति में क्या अंतर है?, शांति और सुरक्षा का क्या महत्व है?, शांति और सुरक्षा कौन रखता है?, सुरक्षा से क्या अर्थ है?, शांति से आप क्या समझते हैं?, सुरक्षा के प्रकार क्या हैं?, हमें शांति की आवश्यकता क्यों है?, शांति की विशेषताएं क्या हैं?, 5 सुरक्षा सेवाएं कौन सी हैं?, सुरक्षा के 3 स्तर क्या हैं?, सुरक्षा का महत्व क्या है?, सुरक्षा नियम क्या है?, भारत में सुरक्षा कितने प्रकार की है?, घर हमें सुरक्षा कैसे देता है?, सुरक्षा नियंत्रण के 4 प्रकार क्या हैं?, सुरक्षा के 4 स्तर क्या हैं?, सुरक्षा विशेषताएं क्या हैं?, शांति की सबसे अच्छी परिभाषा क्या है?, शांति के पांच प्रकार कौन से हैं?, शांति का आदमी कौन है?, सुरक्षा चिन्ह कितने प्रकार के होते हैं?, सुरक्षा के कितने बिट्स?, शांति के क्या फायदे हैं?, शांति कैसे विकास में मदद करती है?, मन की शांति कितनी महत्वपूर्ण है?, भारत की सबसे अच्छी सुरक्षा कौन सी है?, भारत की सुरक्षा कौन करता है?, सुरक्षा की सीमा क्या है?, सुरक्षा और उदाहरण क्या है?, कौन सी 3 सुरक्षा विशेषताएं सर्वर सुरक्षा स्तर से मेल खाती हैं?

NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 27 शांति और सुरक्षा (Peace and Security)

Chapter – 27

शांति और सुरक्षा

Notes

शांति और सुरक्षा

अर्थ – प्रारम्भ में हम निम्नलिखित दिलचस्प कहानी की सहायता से शांति और सुरक्षा का अर्थ
समझते हैं।

शांति

एक बार एक राजा ने कलाकारों को शांति पर सबसे अच्छा रंगीन चित्र बनाने पर पुरस्कार दे की घोषणा की। कई कलाकारों ने कोशिश की। राजा ने सभी चित्रों को देखा और दो चित्र छांटे जिनमें से वह अंततः एक सबसे अच्छा चित्र चुन सके । एक चित्र में एक शांत झील को चारों तरफ के पहाड़ से एक सही दर्पण के रूप में दर्शाया गया था। ऊपर नीले आकाश में सफेद बादल को खूबसूरती से झील में दर्शाया गया था । हर किसी ने सोचा कि वह शांति का एक सही चित्र था। दूसरे चित्र में भी पहाड़ थे, लेकिन वह बीहड़ आरै नंगे थे। ऊपर आसमान से एक तूफानी बारिश गिर रही थी और बिजली चमक रही थी । नीचे पहाड़ की बगल में तीव्र गति से बहते हुए एक विशाल झरने के पानी को झाग के रूप में दर्शाया गया था। लेकिन झरने के पीछे एक झाड़ी में एक पक्षी का घोंसला बना था और पक्षी शांति से अपने बच्चों को खाना खिला रहा था। आपके अनुसार कौन से चित्र को पुरस्कार मिला होगा? राजा ने दूसरे चित्र को चुना। क्या आप जानते हो क्यों? राजा ने कारण बताया। शोर, परेशानी, या गड़बड़ी की अनुपस्थिति का तात्पर्य शांति नहीं है, शांति का अर्थ है इन सब के बीच में रहकर हृदय में शांति बनाए रखना ।

क्या आपको लगता है कि राजा द्वारा चुना गया चित्र सही अर्थों में शांति को दर्शाता है? दरअसल शांति का अर्थ वह मानसिक स्थिति नहीं है जहाँ उपद्रव व टकराव का निरा अभाव हो । वास्तव में, मानवीय दुनिया में गड़बड़ी या संघर्ष का पूर्ण अभाव असंभव है । हम शांति को सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में समझने का प्रयास करते हैं न कि उस संदर्भ में जहां मनुष्य नहीं हैं। हम, इसलिए, इसे परिभाषित कर रहे हैं : शांति एक सामाजिक और राजनैतिक स्थिति है जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का विकास सुनिश्चित करती है । यह सामंजस्य की स्थिति है जिसकी विशेषता है स्वस्थ सम्बंधों का अस्तितत्व । यह वह अवस्था है जिसका सम्बन्ध सामाजिक या आर्थिक कल्याण तथा समानता से है । इसका सम्बंध एक कार्यशील राजनीतिक व्यवस्था से है जिसमें सब के सच्चे हितों की पूर्ति होती है।

सुरक्षा

शब्द ‘सुरक्षा’ हमारे दैनिक जीवन की बातचीत में, समाचार पत्रों में, अधिकारिक परिचर्चा में भी प्रकट होता रहता है। सुरक्षा की बात व्यक्तिगत, संस्थागत, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय से लेकर अन्तराष्ट्रीय स्तर तक होती है। हम सब विभिन्न उपायों के द्वारा अपने घरों या उन क्षेत्रों को जहाँ हम रहते है सुरक्षित करते हैं । हम जानते है कि मंत्रियों और अन्य अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से सुरक्षा प्रदान की जाती है । प्रमुख सरकारी और अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों या धमकी के दायरे में आने वाले क्षेत्रों के लिए भी सुरक्षा व्यवस्था की जाती है । राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रयोग उसके विभिन्न अर्थो की और संकेत करता है । सामान्यतः इसका अर्थ है सुरक्षित अवस्था या भयमुक्त भावना । व्यक्ति, संस्था, क्षेत्र, राष्ट्र, विश्व की कुशलता भी इसका अर्थ है। हालांकि मौलिक तौर पर सुरक्षा का अर्थ है बेहद खतरनाक संकटों से बचाव । यह मानवाधिकार जैसे बुनियादी मूल्यों के प्रति खतरों से भी सम्बंधित है।

शांति और सुरक्षा

दोनों शब्दो के विभिन्न अर्थ जान लेने के बाद यह तय है कि शांति और सुरक्षा अविभाज्य हैं । साथ-साथ देखने पर पता चलता है कि यह वह स्थिति है जहाँ व्यक्ति, संस्थाए, क्षेत्र, राष्ट्र व विश्व बिना किसी खतरे के एक साथ आगे बढ़ते हैं। इस अवस्था में क्षेत्र, राष्ट्र सामान्यः रूप से शासित और मानवाधिकार के प्रति आदरवान होते हैं । संघर्ष न सिर्फ संकट और भय उत्पन करता है, अपितु आर्थिक, सामाजिक या राजनीतिक प्रगति को भी बाधित करता है।

लोकतंत्र और विकास के लिए शांति और सुरक्षा

लोकतंत्र और विकास तथा शांति और सुरक्षा के बीच पारस्परिक संबंध है। शांति और सुरक्षा के अभाव में लोकत्रंत काम नहीं कर सकता और विकास नहीं हो सकता। चुनाव के संचालन के लिए शांति आवश्यक है। शांति के अभाव में लोकतांत्रिक संस्थाएँ काम नहीं कर सकतीं। शांति के वातावरण में ही नागरिक विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं । विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए शांति और भी आवश्यक है । उपद्रव, हिंसा या युद्ध के माहौल में विकास गतिविधियाँ सम्भव नहीं हैं।

दूसरी और लोकतंत्र में विकास की अनुपस्थिति में शांति की स्थापना नहीं हो सकती। मोटे तौर पर देखा गया है कि लोकतंत्र युद्ध के पक्ष में नहीं होते। कहा जा सकता है कि किसी क्षेत्र के सभी देशों में यदि लोकतंत्र हो तो क्षेत्रीय शांति की सम्भावना बढ़ जाती है। जन असंतोष को बढ़ावा देने वाली शर्तों को दूर करने के लिए भी लोकतंत्र बेहतर माना जाता है। ऐसा इसलिए लोकतांत्रिक प्रणाली लोगों को शासन और निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने का समान अवसर प्रदान करती है। विकास भी शांति को बढ़ावा देता है । विकास के माध्यम से ही राष्ट्र लोगों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित कर सकता है तथा उनके जीवन की गुणवत्ता सुधार ला सकता है । यह सुनिश्चित करता है कि लोग अभाव ग्रस्तता की भावना से पीड़ित नहीं हैं जो उन्हें विरोध और हिंसक गतिविधियों की और प्रेरित करती है। किसी क्षेत्र के सभी देशों में जब विकास गतिविधियाँ चलती हैं तो प्रत्येक देश यह सुनिश्चित करता है कि शांति भंग न हो; नहीं तो उसका असर विकास पर पड़ेगा। विकास की पहल देशों में शांति, सुरक्षा तथा स्थिरता लाने में योगदान करती है।

शांति और सुरक्षा : भारतीय उपागम

किसी अन्य देश की तरह भारत में भी शांति और सुरक्षा चिन्ता का एक प्रमुख विषय रहा है । आप आखबारों में पढते होंगे या रेडिया और टेलीविजन से जानकारी प्राप्त करते होंगे कि हमारे देश में शांति और सुरक्षा को बाह्य और आंतरिक खतरे का सामना करना पड़ रहा है। भारत की भौगोलिक स्थिति तथा विश्व शक्ति के रूप में इसका उदय इसे बाहरी खतरों के प्रति अतिसंवेनशील बनाता है । भारत को सिर्फ चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ युद्ध ही नहीं लडना पड़ा है बल्कि अन्तराष्ट्रीय आंतकवाद से भी जूझना पड़ा है । आजादी से ही भारत विद्रोही एवं अलगाववादी आंदोलनों के आंतरिक खतरे का सामना करता रहा है । अपनी स्वतंत्रता के दो दशकों के बाद ही भारत ने नक्सली गतिविधियों का अनुभव किया जिसने अब भयावह रूप धारण कर लिया है। इस संदर्भ में शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करने का उपागम काफी पहले से, वास्तव में स्वतंत्रता आंदोलन से ही शुरू हो गया था । संविधान में भी यह उपागम देखा जा सकता है। हालांकि जरूरतों और आवश्यकताओं के अनुरूप इस उपागम में कालांतर में परिवर्त्रन होते रहें हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शांति और सुरक्षा के उपागम का विकास

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपागम के विचार और दृष्टि की शुरूआत हुई । नेतृत्व ने यह अनुभव किया कि स्वतंत्रता के उपरान्त लोकतांत्रिक व्यवस्था की शर्तो को पूरा किया जाये । शांति कायम रखते हुए ही विकास प्रक्रिया को गति दी जा सकती है। इसलिए स्वाधीनता आंदोलन के नेतृत्व ने विचार व्यक्त किया कि स्वतंत्र भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को कायम रखने तथा बढ़ावा देने के लिए एड़ी चोटी का जोड़ लगा देगा। उन्होने विश्व में उपनिवेशवाद विरोधी तथा जातिभेद विरोधी सभी आंदोलनों का खुलकर समर्थन किया तथा लोकतंत्र को बढ़ावा दिया। उन्होने विश्व में उपनिवेशवाद विरोधी तथा जातिभेद विरोधी सभी आंदोलनों का खुलकर समर्थन किया तथा लोकतंत्र को बढ़ावा दिया। सामाजिक न्याय तथा पंथनिरपेक्षता पर बल देते हुए सामाजिक आर्थिक विकास के लिए समाजवादी उपागम अपनाने पर हुई आम सहमति का लक्ष्य ऐसी शर्तें तैयार करना था जो शांति के लिए आंतरिक खतरों के विरूद्ध सुरक्षा को बढ़ावा दें।

संविधान में शांति और सुरक्षा

संविधान निर्माण की प्रक्रिया काफी हद तक स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विकसित विचारों से प्रभावित है। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व अध्याय में शांति और सुरक्षा की चर्चा की गई है। संघीय व्यवस्था तथा ग्रामीण और शहरी स्थानीय सरकारों की स्थापना ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि शक्ति का और केन्द्रीकरण न हो क्योंकि केन्द्रीकरण क्षेत्रीय और स्थानीय असंतोष को जन्म देता है जो आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है । संघीय व्यवस्था में सामाजिक आर्थिक विकास से संबंधित निर्णय राज्य सरकारें लेती हैं जो राज्य के लोगों की सभी आशा और आकांक्षाओं को पूरा करने की स्थिति में हैं। स्थानीय सरकारें विकास के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में जन सहभागिता सुनिश्चित करती हैं तथा सभी जरूरतों और आवश्यकताओं का ख्या रखती हैं।

शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत ने इसतरह एक बहुआयामी उपागम और विधि अपनायी। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसने अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढावा देने की नीति अपनायी। शांति, न्यायोचित आर्थिक विकास, मानवाधिकार को बढावा तथा आतंकवाद का उन्मूलन करने वाले प्रयासों का समर्थन करता है । राष्ट्रीय स्तर पर, यह स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय, पंथनिरपेक्षता, न्यायोचित आर्थिक विकास तथा सामाजिक विषमाताओं को दूर करने के प्रति बचनबद्ध है। यह अपने सभी नागरिकों को सिर्फ चुनावों में ही नहीं बल्कि विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी भाग लेने का समान अवसर प्रदान करता है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है ताकि समाज का कोई भी वर्ग यह अनुभव न करे कि उसके विरूद्ध कोई भेदभाव हो रहा है या उनके हितों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा क्योंकि यही भेदभाव की भावना असंतोष को जन्म देती है और विद्रोह और राजनीतिक हिंसा की ओर ले जाती है जो शांति और सुरक्षा के लिए प्रमुख खतरा है।

शांति और सुरक्षा के आंतरिक खतरे

आपने देखा होगा कि जब भी जान-माल को क्षति पहुँचाते हुए कोई आक्रमक विरोध एवं प्रदर्शन या हिसंक गतिविधयाँ होती हैं तो यह शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती हैं । किन्तु ऐसी कई घटनाएँ कानून व्यवस्था की समस्याएँ होती हैं जिन्हें पुलिस स्थानीय रूप से सुलझाती है। हमारे लोकतंत्र में ऐसे विराध, प्रदर्शन, हड़ताल, बंद और अन्य आंदोलन सरकार या अन्य सम्बधित अधिकारियों का ध्यान विशेष मांगो और चिंताओं के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए किए जाते हैं। हालांकि भारत आतंकवाद या विद्रोह या नक्सल आंदोलन के वेष में कई तरह की हिंसक गतिविधियों का अनुभव करता रहा है जो शांति और सुरक्षा के लिए अधिक गम्भीर खतरे हैं।

शांति और सुरक्षा के आंतरिक खतरे

आपने देखा होगा कि जब भी जान-माल को क्षति पहुँचाते हुए कोई आक्रमक विरोध एवं प्रदर्शन या हिसंक गतिविधयाँ होती हैं तो यह शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती हैं । किन्तु ऐसी कई घटनाएँ कानून व्यवस्था की समस्याएँ होती हैं जिन्हें पुलिस स्थानीय रूप से सुलझाती है। हमारे लोकतंत्र में ऐसे विराध, प्रदर्शन, हड़ताल, बंद और अन्य आंदोलन सरकार या अन्य सम्बधित अधिकारियों का ध्यान विशेष मांगो और चिंताओं के प्रति ध्यान आकर्षित करने के लिए किए जाते हैं। हालांकि भारत आतंकवाद या विद्रोह या नक्सल आंदोलन के वेष में कई तरह की हिंसक गतिविधियों का अनुभव करता रहा है जो शांति और सुरक्षा के लिए अधिक गम्भीर खतरे हैं।

आंतकवाद

आतंकवाद हमारे देश में शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 26 नवम्बर, 2008 जो आम तौर पर 26/11 के नाम से जाना जाता है, का मुम्बई पर आंतकवादी हमला बहुत ही घिनौनी घटना का प्रतीक है। वास्तव में, स्वतंत्रता से ही देश के विभिन्न भागों में ऐसी गतिविधियाँ होती रही है । ये आतंकवादी जो हिंसक गतिविधियाँ करते है वे या तो विदेशी लोग है या ऐसे भारतीय युवक पड़ोसी देशों में प्रशिक्षित, उनके द्वारा समर्थित तथा पथ भ्रष्ट हैं । कभी-कभी हम आतंकवादी गतिविधियों की परिभाषा करने में भ्रमित हो जाते है । वास्तव में आतंकवाद की परिभाषा को लेकर कोई आम समहति नहीं है । हालांकि भारत के संदर्भ में मोटे तौर पर आंतकवाद आवश्यक रूप से एक आपराधिक गतिविधि है जिसके द्वारा भय का माहौल बनाने के लिए तथा सामान्य रूप से राजनीतिक तथा वैचारिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आम नागरिकों पर घातक हमला किया जाता है। आतंकवाद एक अपराधी कार्य है। ये कार्य किसी भी परिस्थिति में अन्यायसंगत है चाहे इसको उचित ठहराने के लिए राजनीतिक, दार्शनिक, वैचारिक, नस्लीय, प्रजातीय, धार्मिक या अन्य किसी प्रकार का तर्क दिया जाय।

विद्रोह

विद्रोह, सरकार जैसी गठित एक संस्था के विरूद्ध एक सशस्त्र विद्रोह है । आजादी से ही भारत ने विद्राही आन्दोलन से संबंधित हिंसा का अनुभव किया है। मोटे तौर पर उन्हे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है : राजनीतिक उद्देश्य से चलाए गए आंदोलन तथा सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए आन्दोलन। सबसे प्रमुख उग्रवादी गुट है: जम्मू और कश्मीर तथा असम में कार्यरत हिंसक चरमपंथी अलगावादी, तथा भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों; अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा में विभिन्न उग्रवादी गुट। हालांकि इन गुटों के सभी सदस्य भारतीय है, परन्तु उन्हें पड़ोसी देशों से सहायता मिलती है । ये उग्रवादी आंदोलन चल रहें है क्योंकि इनमें शामिल गुट अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं जबकि कुछ ऐसे भी गुट है, विशेषकर जम्मू-कश्मीर और असम में, जिनका राजनीतिक एजेंडा है। वे देश से पृथक होने लिए संघर्षशील हैं। उन गुटों को पड़ोसी देशों तथा कुछ अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी गुटों का सक्रिय सहयोग प्राप्त है।

नक्सलवादी आंदोलन

विभिन्न प्रकार की जटिलवाओं के कारण नक्सलवादी आंदोलन चिंता का विषय है। इसकी शुरूआत पश्चिम बंगाल के एक गाँव से हुई, किन्तु अब यह लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हुए बारह राज्यों के 125 जिलों में फैल गया है। नक्सलवादी अक्सर सार्वजनिक सम्पत्ति, सरकारी अधिकारियों, पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों तथा ऐसे लोगों पर जिन्हें वे अपना दुश्मन समझते हैं, हमला करते हैं । वे वन क्षेत्र के अंतर्गत किसी विकास कार्य के भी खिलाफ है। सरकार गाँवों तथा जंगलों में पक्की सड़क बनाना चाहती है परन्तु नक्सलवादी किसी भी विकास कार्य को हतोत्साहित करते हैं। उन्हें पता है एक बार विकास हो जाता है तो वे शायद लोगों का समर्थन खों बैठेंगे। इसलिए वे निर्दोष लोगों को मुमराह करते हैं कि सरकार उनसे खनिज सम्पदा तथा उनके जंगल उनसे छीनना चाहती है। दुर्भाग्य से इस आंदोलन के उद्भव और प्रसार का बुनियादी कारण समाज के कुछ वर्गों के बीच असंतोष है। वे युवक जो इस आन्दोलन की हिंसक गतिविधियों में लगे हुए हैं मोटे तौर पर समाज के उन वर्गों से जुड़े हुए है युगों से सामाजिक भेदभाव और आर्थिक अभाव का खामियाजा भुगत रहें है जैसे अनुसूचित जन जाति, अनुसूचित जाति तथा दलित। आपको पता होगा या आपने अनुभव भी किया होगा कि किस तरह इन वर्गों के सदस्यों को समाज में भेदभावपूर्ण व्यवहार सहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त, भारत में हो रहें विकास के लाभ उन वर्गो तक पूरी तरह नहीं पहुँच रहे है । कारण जो भी हो, विकास उन लोगों की आशा और आकांक्षाएँ पूरा करने में सफल नहीं है।

सरकार की रणनीति

भारत सरकार आंतकवाद विद्रोह और नक्सलवादी आन्दोलन से निपटने कि लिए रणनीतियाँ और तरीके अपना रहीं है। यह आतंकवाद से लडने के लिए सभी राष्ट्रों के प्रयासों का समर्थन करती रही है तथा कभी भी आतंकवादी हमले होने पर उनका समर्थन मांगती है । कूटनीतिक दृष्टि से भारत पाकिस्तान तथा अन्य पड़ोसी देशों पर अर्राष्ट्रीय दबाव बनाती है कि वे ऐसे आतंकवादी गुटों को अपना सक्रिया समर्थन न दें। जहाँ तक राजनीतिक उद्देश्यों के दृष्टिगत विद्रोही गतिविधियों का सवाल है, भारत सरकार इससे कूटनीति से निपटने की कोशिश बांग्लादेश के साथ संधि की है कि वे विद्रोही आंदोलन को सहायता और समर्थन देने से बचें। ऐसा करने के लिए भारत पाकिस्तान पर भी अर्राष्ट्रीय दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। नक्सलवादी आंदोलन के संदर्भ में राज्य सरकारों ने प्रारम्भ में इसे कानून-व्यवस्था की समस्या माना। लेकिन यह महसूस किया गया कि यह एक ज्यादा गम्भीर मुद्दा है जिसके गहरे सामाजिक आर्थिक आयाम हैं। उन क्षेत्रों में विकास के गति बढ़ाने तथा युवकों को मुख्य धारा में लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

भारत और अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा

भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को लेकर समान रूप से परेशान रहा है । यह इसकी प्रगति के लिए आवश्यक है। अन्य राष्ट्रो की तरह, भारत की विदेश नीति भी राष्ट्रीय हित पर आधारित है। भारत ने एक ऐसी विदेश नीति अपनाई है जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर और विशेष कर हमारे पड़ोस में तथा हमारे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा मुख्य चिंता का विषय है । वास्तव में स्वतंत्रता से ही भारत के विदेश नीति के मुख्य दद्देश्य हैं

(क) विदेश नीति निर्माण में स्वतंत्रता
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढावा
(ग) अन्य राष्ट्रों तथा विशेषकर पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध
(ड) शस्त्रीकरण; उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और जाति भेद का विरोध
(च) विकासशील देशों में सहयोग।

इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जिस विदेश नीति का भारत ने निरन्तर पालन किया उसे गुट निरपेक्षता की नीति कहते है, हालांकि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में बदलाव के संदर्भ में इसमें बदलाव भी लाए गये हैं।

गुट निरपेक्षता की नीति

गुट निरपेक्षता भारत की विदेश नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता मानी जाती है। भारत ने उस युग में गुट निरपेक्षता की अवधारणा की विकास प्रक्रिया का नेतृत्व किया जब विश्व दो परस्पर विरोधी गुटों में विभाजित थाः प्रथम गुट संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमों देशों और दूसरा गुट सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवादी देशों का था। यह दोनों गुटों के बीच शीत युद्ध की स्थिति के रूप में जाना जाता था। सीधे तौर पर युद्ध में टकराए बिना शीत युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के मध्य अफ्रिका, एशिया तथा लैटिन अमेरिका के देशों को अपने गुट में शामिल करने की होड़ थी । यह द्वितीय विश्व युद्ध के तुरन्त बाद प्रारम्भ हुआ और 45 वर्षो तक चला। ये दोनों शक्तिशाली देश दो विपरीत ध्रुव बन गए और विश्व राजनीति इनके इर्द गिर्द घुमने लगी । वास्तव में विश्व द्विध्रुवीय बन गया । अमेरिका तथा सोवियत संघ द्वारा गठित दो सैन्य संधियों में बिना शामिल हुए गुट निरपेक्षता का उद्देश्य विदेश नीति के मामले में स्वतंत्र रहने का था । गुट निरपेक्षता न तो तटस्थता थी, और न ही अलगाववाद । यह एक ऐसी गतिशील सक्रिय अवधारणा थी जिसका अर्थ था किसी सैन्य गुट से प्रतिबद्ध हुए बिना हर मामले के गुण-दोष के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र राय रखना । विकासशील देशों में गुट निरपेक्षता की नीति के कई समर्थक थे क्योंकि इसने उन्हें अपनी प्रभुसत्ता सुरक्षित रखने का अवसर प्रदान किया, साथ ही इसने तनाव युक्त शीत युद्ध की अवधि में उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अवसर दिया । गुट निरपेक्षता के मुख्य निर्माता तथा गुट निरपेक्षता आंदोलन के अग्रणी सदस्य के रूप में भारत ने इसके विकास में सक्रिय भूमिका निभाई। आकार और महत्व को नजर अन्दाज करते हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन सभी सदस्य देशों को वैश्विक निर्णय निर्धारण तथा विश्व रातनीति में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।

संयुक्त राष्ट्र को समर्थन

भारत ने हमेशा संयुक्त राष्ट्र को विश्व राजनीति में शांति और सुरक्षा तथा शांतिपूर्ण परिवर्तन के वाहक के रूप में देखा है । संयुक्त राष्ट्र के 51 में से एक संस्थापक संदस्य के रूप में, भारत अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा तथा निशस्त्रीकरण के उसके प्रयासों का खुलकर समर्थन करता रहा है। भारत ये आशा करता है कि संयुक्त राष्ट्र वार्ता के द्वारा देशों के बीच मतभेद को कम करने के लिए प्रयास करता रहेगा । इसके अतिरिक्त भारत ने विकासशील देशों के विकास प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र की सक्रिय भूमिका की भी वकालत की है । इसने संयुक्त राष्ट्र में इन देशों की सामान्य एकजुटता की बात की है। इसका मानना है कि गुट निरपेक्ष देश अपनी संख्या के दम पर महाशक्तियों को अपने हित में इस विश्व संस्था का इस्तेमाल करने से रोककर संयुक्त राष्ट्र में एक सकारात्मक तथा अर्थपूर्ण भूमिका निभा सकते है । संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण अंग सुरक्षा परिषद अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के रखरखाव में एक अहम भूमिका निभाती है। इसलिए इसके सुधार की प्रक्रिया की पहल की गई है तथा इसके स्थायी सदस्यों की संख्या को बढाने की सम्भावना है। सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के लिये भारत की प्रमुख दावेदारी है।

आपने क्या सीखा

शांति और सुरक्षा एक व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । यह वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति, संस्था, क्षेत्र, राष्ट्र और विश्व बिना किसी खतरे के आगे बढ़ते हैं।

शांति एक सामाजिक तथा राजनीतिक अवस्था है जो व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र का विकास सुनिश्चित करता है । यह सद्भावना की स्थिति है जिसमें निम्न बातें पाईजाती हैं

(क) स्वस्थ अन्तरवैयक्रिक या अन्तर समूह या अन्तर क्षेत्रीय या अन्तर राज्य या अन्तरराष्ट्रीय सम्बंधों का अस्तित्व
(ख) सामाजिक या आर्थिक कल्याण में समृद्धि
(ग) समानता की स्थापना
(घ) सभी के सच्चे हितों की रक्षा करने वाली कार्यशील राजनीतिक व्यवस्था।

अन्तर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों के संदर्भ में शांति केवल युद्ध या संघर्ष का अभाव नहीं है बल्कि सामाजिक सांस्कृति तथा आर्थिक समझ और एकता की भी उपस्थिति है सच्ची शांति की प्राप्ति के लिए सम्बंधों में सहिष्णुता की भावना होती है।

सामान्य अर्थो में, सुरक्षा का अर्थ है भयमुक्त सुरक्षित अवस्था या भावना । इसका अर्थ एक व्यक्ति, संस्था, क्षेत्र, राष्ट्र या विश्व की सुरक्षा भी है। हलांकि सुरक्षा का मौलिक अर्थ है अत्यधिक भयानक खतरे से बचाव | इसका संबंध उन संकटों से भी है जिससे मानवधिकार जैसे आधारभूत मूल्यों को खतरा है।

पारम्परिक रूप से शांति और सुरक्षा युगों से सैनिक, सशस्त्र संघर्ष या धमकी के खतरों पर केन्द्रित रहा है। परन्तु नई समझ मानवीय शांति और सुरक्षा या वैश्विक शांति और सुरक्षा पर केन्द्रित है । यह मूलरूप से व्यक्ति को सम्बोधित करता है तथा सामाजिक आर्थिक विकास तथा मानव गरिमा के रखरखाव की पूर्व शर्त है।

शांति और सुरक्षा लोकतंत्र और विकास की आवश्यक शर्त है । वास्तव में, लोकतंत्र और विकास तथा शांति व सुरक्षा में पारस्परिक संबंध है। शांति और सुरक्षा के अभाव में लोकतंत्र काम नहीं कर सकता और विकास के अभाव में शांति की स्थापना नहीं हो सकती।

भारत में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपागम और तरीके काफी पहले, वास्तव में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही विकसित होने शुरू हो गए थे । यह उपागम संविधान में भी परिलक्षित होता है। हलांकि जरूरतों के अनुसार कालान्तर में इस उपागम में बदलाव आ रहे हैं।

शांति और सुरक्षा के गम्भीर खतरे के रूप में भारत आतंकवाद, विद्रोह या नक्सलवादी आंदोलन के भेस में कई तरह के हिंसात्मक गतिविधियों का अनुभव करता रहा है। भारत सरकार आंतकवाद, विद्रोह और नक्सलवादी आंदोलन से निपटने के लिए विभिन्न रणनीतियाँ तथा तरीके अपनाती रही है।

भारत अर्न्तराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को लेकर भी चिंतित रहा है। राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व ने घोषणा की कि भारत अंतर्राष्ट्रीय शांति की नीति को विकास के लिए आवश्यक मानता है। यही कारण है कि अन्य देश की तरह, भारत की विदेशी नीति राष्ट्रीय हित तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है।

गुट निरपेक्षता भारत की विदेश नीति की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है । विश्व जब दो गुटों में विभाजित था उस अवधि में भारत ने गुट निरपेक्षता की अवधारणा के विकास की प्रक्रिया को नेतृत्व प्रदान किया। आकार और महत्व को नजर अंदाज करते हुए गुट निरपेक्ष आंदोलन सभी सदस्य देशों को विश्व निर्णय निर्माण तथा विश्व राजनीति में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।

भारत संयुक्त राष्ट्र की शांति वहाली कार्रवाई को तथा निरस्त्रीकरण जैसे अन्य प्रयासों में अपना पूरा समर्थन देता रहा है । साथ ही, भारत विकासशील देशों के विकास प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र की सक्रिय भूमिका की वकालत करता है । भारत दूसरी सबसे तेजी से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था है, इसका सभी अन्तर्राष्ट्रीय विवादों में शांति बहाली, तथा विकासशील देशों के हितों को बढावा देने का रिकार्ड रहा है, इसलिए भारत का सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बनने का मजबूत दावा है।

NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Notes in Hindi

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