NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 26 पर्यावरण क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन (Environmental Degradation and Disaster Management)
Textbook | NIOS |
Class | 10th |
Subject | सामाजिक विज्ञान (Social Science) |
Chapter | 26 |
Chapter Name | पर्यावरण क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन |
Category | Class 10th सामाजिक विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 26 पर्यावरण क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन (Environmental Degradation and Disaster Management) Notes In Hindi उपयुक्त रणनीति अपनाकर प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के प्रतिकूल प्रभाव को कम करना ही आपदा प्रबन्धन कहा जाता है। आपदा प्रबन्धन प्रणाली के चार चरण है- कम करना, तैयारी, अनुक्रिया तथा पुनरुत्थान। हैं जो खतरों को आपदा बनने से रोकते हैं तथा जब आपदा आ जाती है तो उसके प्रभाव को कम करने से है।
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 26 पर्यावरण क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन (Environmental Degradation and Disaster Management)
Chapter – 26
पर्यावरण क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन
Notes
पर्यावरण का अर्थ पर्यावरणीय क्षरण की चर्चा आइए हम पर्यावरण शब्द का अर्थ समझकर करते हैं। ‘पर्यावरण’ शब्द का क्या अर्थ है? सामान्यतः वातावरण का अर्थ है वह परिवेश जिसमें हम रहते हैं । आपने सामाजिक पर्यावरण, राजनीतिक पर्यावरण, साहित्यक पर्यावरण और स्कूल पर्यावरण जैसे शब्दों को पढ़ा या सुना होगा । परन्तु उस पर्यावरण, जिसकी हम चर्चा करेंगे, का अर्थ भिन्न है। |
पर्यावरण का वर्गीकरण जब हम जानकारी के विभिन्न स्रोतों का अवलोकन करते हैं तो हम पाते हैं कि पर्यावरण को कई तरह से विभिन्न कारकों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है । हम यह पढ़ चुके हैं कि पर्यावरण को सामाजिक पर्यावरण, राजनीतिक पर्यावरण, साहित्यिक पर्यावरण और स्कूल के पर्यावरण के रूप में भी परिभाषित किया जाता है । यह वर्गीकरण विशिष्ट सन्दर्भ में जैसे सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक और स्कूल पर आधारित हैं । लेकिन वह पर्यावरण जिसे हम समझने का प्रयत्न कर रहे हैं वह उत्पत्ति या विकास की प्रक्रिया के आधार पर वर्गीकृत है। पर्यावरण को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है – प्राकृतिक पर्यावरण तथा मानव निर्मित पर्यावरण। |
प्राकृतिक पर्यावरण इसमें वे सभी जीवित और अजैविक वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाई जाती है। इसमें रहने की जगह का प्रकृति शामिल हैं यह रहने की जगह भूमि या समुद्र हो सकती है अथवा यह मिट्टी या पानी हो सकता है। इसमें रासायनिक घटक और रहने की जगह के भौतिक गुणों, जलवायु और जीवों की किस्म भी शामिल है । प्राकृतिक पर्यावरण में दोनों जैविक और अजैविक घटकों को सम्मिलित किया जाता है क्योंकि ये सभी प्राकृतिक रूप से विकसित हुए हैं। इन घटकों का विकास किसी भी मानवीय हस्तक्षेप या समर्थन के बगैर प्राकृतिक रूप से हुआ है । यह सच है कि मनुष्य एक ऐसे पर्यावरण में रहता हैं जहाँ दोनों जैविक और अजैविक कारक उन्हें प्रभावित करते हैं । हम खुद इसके अनुकूल बन जाते हैं । लेकिन मनुष्य का प्राकृतिक पर्यावरण के सृजन और विकास में कोई भूमिका नहीं है। |
मानव-निर्मित पर्यावरण दूसरी ओर मानव-निर्मित पर्यावरण में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं जिनका | निर्माण मनुष्य ने अपने उपयोग के लिए किया है। मनुष्य उन सभी आस-पास की चीजों का निर्माण करता है जो मानवीय अनुक्रियाओं के लिए आवश्यक हैं । यह वस्तुएँ बड़े स्तर पर नगरपालिका की सीमाओं से लेकर व्यक्तिगत मकान हो सकते हैं। उदाहरण के लिए मकान, सड़कें, स्कूल, अस्पताल, रेलवे लाइन, पुल और पार्क आदि सभी मानव-निर्मित पर्यावरण के घटक हैं । मनुष्य के रहन-सहन में ये पर्यावरण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे सामाजिक पर्यावरण कहा जाता है । सामाजिक वातावरण में सांस्कृतिक मानदण्ड और मूल्यों, मानव संस्कृति और सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक संस्थाओं जिनके साथ वह पारस्परिक सम्बन्ध रखता है, सभी सम्मिलित हैं । |
पर्यावरण की गतिशीलता और विविधता जैसा कि आप देखते हैं और पता हैं कि पर्यावरण कभी स्थिर नहीं रहता है । इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषताओं में से एक इसकी गतिशीलता है । यह लगातार बदल रहा है । पर्यावरण के दोनों घटक जैविक और अजैविक स्वभाव से गतिशील हैं। आइए यह जानते हैं कि गतिशीलता क्या है और यह कैसे कार्य करती है ? पर्यावरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा ऐतिहासिक रूप से एक समय से दूसरे समय में भिन्न होता है । उदाहरण के लिए हिमालय का पर्यावरण वृहत्त भारतीय मरुस्थल से भिन्न है और वहाँ भी वर्षों और दशकों से एक जैसा नहीं रहा है । विभिन्न मौसमों और विभिन्न स्थानों पर जलवायविक दशाएँ बदल जाती हैं। यदि आप एक ही जगह के पर्यावरण के विकास की 20 या 30 साल की अवधि में देखते हैं, तो आप पाएँगे कि उस जगह का पर्यावरण बदल गया है। कुछ परिवर्तन प्राकृतिक रूप से होते हैं जबकि दूसरे परिवर्तन मनुष्य की गतिविधियों के कारण होते हैं। यहाँ तक कि मानव-निर्मित पर्यावरण भी समय और स्थान के साथ बदल रहा है। मानव आवास में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं । गगनचुम्बी इमारतें जिन्हें आज आप कई शहरों में देखते हैं 20 साल पहले मौजूद नहीं थी । बहुत से गाँव, कस्बों, शहरों और महानगरों में बदल गए। परिवहन और संचार के साधनों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। ये सभी परिवर्तन और विकास पर्यावरण की गतिशील प्रकृति को दर्शाते हैं। जिस शहर या गाँव में आप रहते हैं वहाँ के मानव निर्मित पर्यावरण का अवलोकन करो, सोचो और समझो कि वहाँ पर पिछले कुछ वर्षों में किस प्रकार का परिवर्तन हुआ है। वहाँ जो परिवर्तन हुए हैं क्या वे उल्लेखनीय नहीं है? |
पर्यावरण का महत्त्व हम हमेशा कहते हैं कि पर्यावरण हमारे कल्याण और अस्तित्व के लिए महत्त्वपूर्ण है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों कहा गया है? पर्यावरण हमारे जीवन का आधार है । वास्तव में यह मानव सहित सभी जीवों की वृद्धि, विकास और उनके जीवन को प्रभावित करता है । हमारी सभी प्रकार की आवश्यकताएँ पर्यावरण से पूरी होती हैं । यह जीवन के लिए बुनियादी जरूरतों की आपूर्ति करता है और असंख्य जीवों का भरण-पोषण करता है । हम भोजन, आवास, जल, हवा, मिट्टी, ऊर्जा, दवाओं, फाइबर, कच्चे पदार्थ आदि के लिए पर्यावरण पर निर्भर हैं। पर्यावरण वायुमण्डलीय संरचना को बनाए रखता है और सौर विकिरण के हानिकारक प्रभावों से पृथ्वी पर जीवन के सभी रूपों की रक्षा करता है । लेकिन इन सभी लाभों के होते हुए पर्यावरण की गुणवत्ता बिगड़ती जा रही है और इसका लगातार क्षरण हो रहा है। पर्यावरण के संसाधनों का उपयोग विवेकहीन तरीके से हो रहा है । हम पर्यावरण के प्रदूषण में बड़े खतरनाक तरीके से योगदान दे रहे हैं। |
पर्यावरणीय क्षरण पर्यावरणीय क्षरण क्या है? आइए इसे हम समझते हैं । यह वह प्रक्रिया है जो हमारे पर्यावरण अर्थात् वायु, जल और भूमि का उत्तरोतर प्रदूषण और अतिदोहन द्वारा नष्ट होना है। जब पर्यावरण की उपयोगिता घट जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाता है, तब उसे पर्यावणीय क्षरण कहा जाता है । विशिष्ट शब्दों में पर्यावरणीय क्षरण वायु, जल, मृदा और वन जैसे संसाधनों के गुणवत्ता में कमी के द्वारा तथा पारिस्थितिक तन्त्र के नष्ट होने और वन्य जीवों के विलुप्त होने से पर्यावरण की अवनति होता है। आइए अपने दैनिक जीवन के अनुभवों को याद करते हैं । हम भविष्य की चिन्ता किए बगैर पानी, मिट्टी, पेड़, कोयला, पेट्रोल जैसे संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। हम लापरवाही से पारिस्थितिकी तन्त्र के साथ हस्तक्षेप कर रहे हैं और जानबूझकर वन्य जीवों को मार रहे हैं । वास्तव में पर्यावरणीय क्षरण के कई रूप हैं । जब भी प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं, जैव विविधता समाप्त हो जाती है अथवा प्राकृतिक संसाधन घट जाते हैं और पर्यावरण का नाश होता है। |
पर्यावरणीय क्षरण के कारण अब तक की चर्चा के आधार पर हम अब जानते हैं कि स्वस्थ वातावरण मानव समाज और अन्य जीवों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है । लेकिन पर्यावरण का क्षरण बेरोकटोक होता जा रहा है। हमें समय-समय पर पर्यावरण की अवनति या गिरावट और उसके दुष्परिणामों जैसे वैश्विक तापन, जलवायविक परिवर्तन, आसन्न जल संकट, कृषि भूमि की घटती उर्वरता और बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति सावधान किया जा रहा है। सभी सम्भव प्रयास करके पर्यावरणीय क्षरण को रोकने की तुरन्त आवश्यकता है । ऐसा करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का विचार करने से पहले यह आवश्यक है कि हम पर्यावरणीय क्षरण के कारण समझें। इसके महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं |
पर्यावरणीय क्षरण पर्यावरणीय क्षरण क्या है? आइए इसे हम समझते हैं । यह वह प्रक्रिया है जो हमारे पर्यावरण अर्थात् वायु, जल और भूमि का उत्तरोतर प्रदूषण और अतिदोहन द्वारा नष्ट होना है। जब पर्यावरण की उपयोगिता घट जाती है या क्षतिग्रस्त हो जाता है, तब उसे पर्यावणीय क्षरण कहा जाता है । विशिष्ट शब्दों में पर्यावरणीय क्षरण वायु, जल, मृदा और वन जैसे संसाधनों के गुणवत्ता में कमी के द्वारा तथा पारिस्थितिक तन्त्र के नष्ट होने और वन्य जीवों के विलुप्त होने से पर्यावरण की अवनति होता है। आइए अपने दैनिक जीवन के अनुभवों को याद करते हैं । हम भविष्य की चिन्ता किए बगैर पानी, मिट्टी, पेड़, कोयला, पेट्रोल जैसे संसाधनों का उपयोग कर रहे हैं। हम लापरवाही से पारिस्थितिकी तन्त्र के साथ हस्तक्षेप कर रहे हैं और जानबूझकर वन्य जीवों को मार रहे हैं । वास्तव में पर्यावरणीय क्षरण के कई रूप हैं । जब भी प्राकृतिक आवास नष्ट होते हैं, जैव विविधता समाप्त हो जाती है अथवा प्राकृतिक संसाधन घट जाते हैं और पर्यावरण का नाश होता है। |
सामाजिक कारक बढ़ती जनसंख्या – बढ़ती जनसंख्या किसी देश का सबसे बड़ा संसाधन है और उसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देनेवाला है लेकिन इसके बावजूद यह पर्यावरणीय क्षरण का सबसे बड़ा कारण है । जैसा कि हम सभी जानते हैं, जनसंख्या वृद्धि की तीव्र गति से प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है । विशाल जनसंख्या विशाल कचरे का उत्पादन करती है । इसके परिणाम स्वरूप ध्वनि, वायु, जल और मिट्टी का प्रदूषण और कृषि योग्य भूमि पर विविध प्रकार दवाब बढ़ रहा है। ये सभी पर्यावरण पर बहुत अधिक दवाब डाल रहे हैं। यदि आप भारत उदाहरण ले, तो यह विश्व के कुल भूमि क्षेत्र के 2.4 प्रतिशत भाग पर विश्व की कुल जनसंख्या के 17 प्रतिशत भाग भरण-पोषण कर रहा है । |
गरीबी – गरीबी पर्यावरण क्षरण का कारण भी हे और परिणाम भी । आपने देखा होगा कि गरीब लोग अमीर लोगों की अपेक्षा प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग करते हैं । वे अपनी झोंपड़ियों के निर्माण, खाना पकाने के लिए, अपने भोजन के लिए और कई अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए इनका उपयोग करते हैं । इस तरह से ये लोग अमीर लोगों की अपेक्षा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तेजी से कर रहे हैं। अमीर लोग अन्य संसाधनों का प्रयोग कर लेते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, संसाधनों का अधिक उपयोग पर्यावरण का अधिक क्षरण करता है । पर्यावरण में जितनी गिरावट आ रही है गरीब उतना ही अधिक गरीब होता जा रहा है । |
नगरीकरण – आपने देखा होगा कि बहुत बड़ी संख्या में गरीब लोग आजीविका की तलाश में गाँव से कस्बों, शहरों और महानगरों की ओर आ रहे हैं। इससे शहरों का तेजी से अनियोजित विस्तार हुआ है और मूलभूत सुविधाओं पर अत्यन्त दवाब पड़ा है। यदि आप शहर में रहते हैं, तो आपने पानी आवास और बिजली की आपूर्ति और सीवेज पर इन दवाबों का अनुभव किया होगा। आपको बढ़ती हुई मलिन बस्तियों के बारे में पता होगा । शहरी मलिन बस्तियाँ प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं और निम्नतम स्तर की अस्वच्छ दशाओं से घिरी हुई हैं । शहरीकरण की तेज गति, जंगलों के घटने और अन्य संसाधनों के विवेकहीन इस्तेमाल के लिए जिम्मेदार है । |
जीवन शैली में परिवर्तन – लोगों की जीवन शैली में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है । यह परिवर्तन न केवल शहरों और कस्बों में रहने वाले लोगों में दिखाई देता है बल्कि गाँवों में रहने वाले लोगों में भी दिखाई देता है । लोगों की जीवन शैली में परिवर्तन ने संसाधनों के उपभोग का स्तर बहुत बढ़ा दिया है। इसके परिणामस्वरूप मानवीय अनुक्रियाएँ बढ़ गई हैं जिससे पर्यावरण को कई तरह से बहुत नुकसान हो रहा है। उसने हवा, पानी, ध्वनि, वाहनों और औद्योगिक प्रदूषण को बढ़ाया है । रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर की तरह के आधुनिक उपकरणों के तेजी से बढ़ते उपयोग का नतीजा वातावरण में हानिकारक गैसों का मिलना है। इससे वैश्विक तापन हो रहा है जो बहुत खतरनाक है । वास्तव में, आधुनिक उपकरणों के तेजी से बढ़ते उपयोग खतरनाक है । आधुनिक उपकरणों के अधिक उपयोग से कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों का रिसाव होता है जो वायुमण्डल में मिलकर वैश्विक तापन का कारण बनता है । |
आर्थिक कारण – कृषि विकास हमारे जैसे देश के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है । लेकिन यह पर्यावरण पर प्रतिकूल असर रहा है। बहुत-सी कृषि पद्धतियाँ विशेषकर कृषि उत्पादन बढ़ाने वाली पर्यावरण को सीधे प्रभावित कर रही हैं । इन गतिविधियों से मृदा अपरदन, भूमि कालवर्णीकरण, क्षारीयता और पोषक तत्वों की कमी हो रही है। जैसा कि हम भारत में अनुभव कर रहे हैं, हरित क्रान्ति से भूमि और जल संसाधनों का दोहन बहुत अधिक बढ़ा है । उर्वरकों और कीटनाशकों का व्यापक इस्तेमाल जल निकायों के प्रदूषण और भूमि क्षरण का कारण बन रहा है । |
औद्योगीकरण – पर्यावरणीय क्षरण का प्रमुख कारण तीव्र औद्योगीकरण भी है। विभिन्न स्रोतों के माध्यम से एकत्रित जानकारी के आधार पर, हम पाते हैं कि अधिकतर उद्योगों ने ऐसी प्रौद्योगिकी अपनाई हुई है जिससे पर्यावरण पर भारी दवाब पड़ता है । इन प्रौद्योगिकी से संसाधनों और ऊर्जा का ज्यादा उपयोग होता है। औद्योगीकरण की वर्तमान गति से प्राकृतिक संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन, खनिज और लकड़ी घट रही हैं और जल, वायु और भूमि प्रदूषित हो रही हैं । ये सभी पारिस्थितिक तन्त्र को गम्भीर नुकसान पहुँचा रहे हैं और स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं । |
आर्थिक विकास – यह एक तथ्य है कि आर्थिक विकास का प्रतिरूप भी पर्यावरणीय समस्याओं को पैदा कर रहा है। आर्थिक विकास की गति संसाधनों पर भारी दवाब डाल रही है । आज की अर्थव्यवस्था उपभोगवादी बन गई है जिसे अधिक संसाधनों की आवश्यकता होती है और ऐसी शैली को जन्म देती है जिससे अधिक अपव्यय होता है। संसाधनों का विवेकहीन उपयोग और उनका अपव्यय पर्यावरण की अवनति के लिए उत्तरदायी है |
पर्यावरणीय क्षरण के परिणाम पर्यावरणीय क्षरण एक बहुत गम्भीर चिन्ता का विषय है । यह मुख्य रूप से प्राकृतिक साधन का अत्यधिक और लापरवाही पूर्वक दोहन और उनके अवैज्ञानिक प्रबन्धन के कारण उत्पन्न हो रहा है। वास्तव में, यह दुनिया के सभी देशों के लिए एक वैश्विक चुनौती के रूप में उभरा है। जैसा ऊपर कहा गया है; हवा, पानी और हानिकारक गैसों का उत्सर्जन, औद्योगिक अपशिष्ट, शहरी कचरे, रेडियो सक्रिय कचरे, उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल करने के कारण आधुनिक सभ्यता का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है। यदि आप निम्न बॉक्स में दिए गए तथ्यों को पढ़ें तो आपको पर्यावरणीय क्षरण की गम्भीरता का एहसास हो सकता है । पर्यावरणीय क्षरण के प्रमुख कारणों में से ठोस कचरे का उत्पादन प्रमुख है। क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में लोग प्रतिवर्ष 10 अरब टन ठोस कचरा फेंक देते हैं। अगर हम सभी कचरे को समुद्र तल पर एक शंकु के आकार में इकट्ठा करें तो एक किलोमीटर के क्षत्र में एक पिरामिड बन जाएगा जिसका शीर्ष माउण्ट एवरेस्ट से भी ऊँचा होगा । इस तरह से हम प्रतिवर्ष कूड़े-कचरे का एक माउण्ट एवरेस्ट बना रहे हैं । हम वस्तुओं के पुनर्चक्रण, दोबारा प्रयोग और उपयोग को घटाकर न केवल धनोपार्जन कर सकते हैं बल्कि अपने पर्यावरण को क्षरण से भी बचा सकते हैं। नीचे दिए गए बॉक्स में इसका विवरण दिया गया है। |
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सतत् विकास पर्यावरण क्षरण के और भी अधिक गम्भीर परिणाम हैं । यह एक चिन्ता का विषय है। अक्सर यह विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है । यह एक सशक्त विचार है जो मानव समाज द्वारा अपनाया गया विकास का मॉडल पर्यावरणीय क्षरण का प्रमुख कारण है। सतत विकास की अवधारणा एक विकल्प के रूप में सामने आई है जो पर्यावरणीय क्षरण को रोक सकेगी। हालाँकि सतत विकास का प्रयोग विभिन्न अर्थों के साथ विभिन्न सन्दर्भों में किया गया है। लेकिन पर्यावरण और विकास के सन्दर्भ में इसका एक विशेष अर्थ है। यह एक ऐसे विकास के रूप में परिभाषित किया जाता है जो भविष्य की पीढ़ियों के अपनी आवश्यकताओं को पूरी करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इस सन्दर्भ में यह आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधनों के विवेकहीन उपयोग को समाप्त किया जाए जिससे पर्यावरणीय रिक्तीकरण होता है । सततता का अर्थ है कि विकास की आवश्यकताओं का ऐसा प्रबन्धन हो जिससे जिस प्राकृतिक वातावरण पर हम निर्भर है उसे नष्ट किए बगैर यह सुनिश्चित करें कि अर्थव्यवस्था और समाज दोनों बने रहे। हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का वैज्ञानिक तरह से उपयोग करके सतत विकास का लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। |
आपदा प्रबन्धन पर्यावरणीय क्षरण के और भी अधिक गम्भीर परिणाम हैं। क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में आपदा के कारण बढ़ता विध्वंस पर्यावरणीय क्षरण और संसाधन के कुप्रबन्धन की वजह से उत्पन्न परिणाम है। आपदाएँ सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं, लेकिन उन्हें नियन्त्रित किया जा सकता है। हम आपदा शब्द का अर्थ समझकर आपदा प्रबन्धन को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। आपदा एक त्रासदी है जो नकारात्मक रूप से समाज और पर्यावरण को प्रभावित करता है। आपदाओं का अनुपयुक्त प्रबन्धन जोखिम के परिणाम के रूप में देखा जाता है । अपनी उत्पत्ति के आधार पर इन्हें दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है – प्राकृतिक आपदा और मानव निर्मित आपदा । प्राकृतिक आपदा तब होता है जब प्राकृतिक जोखिम (जैसे ज्वालामुखी विस्फोट या भूकम्प या बाढ़) मानव जीवन को प्रभावित करता है । मावीय क्रियाओं जैसे, लापरवाही, त्रुटि या एक प्रणाली की विफलता के द्वारा उत्पन्न आपदा को मानव निर्मित आपदा कहा जाता है। भोपाल गैस त्रासदी, हमारे देश के भिन्न भागों में होने वाले भूस्खलन के कारण आई बाढ़ ऐसी आपदाओं के उदाहरण हैं। वैश्विक तापन एक महान् आपदा होने जा रहा है, और यह भी प्राकृतिक पर्यावरण के साथ मानव हस्तक्षेप का परिणाम है। हालाँकि एक आपदा के परिणाम बहुत सारे हैं, परन्तु इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। उपयुक्त रणनीति अपनाकर प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के प्रतिकूल प्रभाव को कम करना ही आपदा प्रबन्धन कहा जाता है। आपदा प्रबन्धन प्रणाली के चार चरण है – कम करना, तैयारी, अनुक्रिया तथा पुनरुत्थान । |
कम करना ‘मिटीगेशन’ आपको एक तकनीकी या कठिन शब्द लग सकता है। इसका अर्थ उस प्रयत्न से हैं जो खतरों को आपदा बनने से रोकते हैं तथा जब आपदा आ जाती है तो उसके प्रभाव को कम करने से है । यह चरण अन्य चरणों से अलग है क्योंकि यह जोखिम को कम करने या नष्ट करने के लिए लम्बी अवधि के उपायों पर केन्द्रित है । इस चरण से पहले भी, जोखिम की पहचान का एक चरण हो सकता है । इससे पहले कि आप योजना और आपदा के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयास करें, जोखिम की पहचान करना बेहतर है । उदाहरण के लिए, बरसात के मौसम के दौरान, वहाँ एक नदी में बाढ़ की सम्भावना हो सकती है । यदि संभावित बाढ़ की वजह से होनेवाली क्षति की पहचान कर ली जाए तो नुकसान को कम करने और उसके लिए आवश्यक कदम उठाने की योजना बनाई जा सकती है । |
तैयारी तैयारी चरण में आपदा प्रबन्धकों द्वारा आपदा आने पर योजनाएँ बनाई जाती हैं। इसमें शामिल है (क) आसानी से समझ में आने वाली शब्दावली और विधियों के साथ संचार की योजना, (ख) उचित रखरखाव और आपातकालीन सेवाओं का प्रशिक्षण, (ग) आपातकालीन आश्रयों और निकासी की योजना का विकास, (घ) आपदा के लिए वस्तुओं और उपकरणों की आपूर्ति बनाए रखना और (ङ) आम जनता में से प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के संगठनों का विकास करना। |
अनुक्रिया जब आपदा आ जाती तो अनुक्रिया चरण के तहत कार्रवाई की जाती है । इसके अन्तर्गत आवश्यक आपातकालीन सेवाओं और लोगों को संगठित करना है जो आपदा क्षेत्र में कार्य करने के लिए तैयार होते हैं। इसमें आपातकालीन सेवाओं जैसे अग्निशमन, पुलिस और एम्बुलेन्स कर्मचारियों के रूप में शामिल होने की सम्भावना है। तैयारी चरण के रूप में अच्छी तरह से नियोजित कार्यनीति वचाव कार्य में सफल समन्वयन सिद्ध होती है । |
पुनरुत्थान पुनरुत्थान चरण का उद्देश्य प्रभावित क्षेत्र को उसकी पहली जैसी दशा में लौटाना है । यह अपने कार्य में अनुक्रिया चरण से भिन्न है । पुनरुत्थान प्रयासों के मुख्य रूप से उन कार्यों से सम्बन्धित होते हैं जिनमें नष्ट सम्पत्ति को दोबारा बनाना, पुनः रोजगार और आवश्यक बुनियादी ढाँचे की मरम्मत या पुनर्निर्माण शामिल है |
आपने क्या सीखा
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NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 2) Notes in Hindi
- Chapter – 15 संवैधानिक मूल्य तथा भारत की राजनीतिक व्यवस्था
- Chapter – 16 मौलिक अधिकार तथा मौलिक कर्त्तव्य
- Chapter – 17 भारत एक कल्याणकारी राज्य
- Chapter – 18 स्थानीय शासन तथा क्षेत्रीय प्रशासन
- Chapter – 19 राज्य स्तर पर शासन
- Chapter – 20 केन्द्रीय स्तर पर शासन
- Chapter – 21 राजनीतिक दल तथा दवाब समूह
- Chapter – 22 जनता की सहभागिता तथा लोकतान्त्रिक प्रक्रिया
- Chapter – 23 भारतीय लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियाँ
- Chapter – 24 राष्ट्रीय एकीकरण तथा पंथ निरपेक्षता
- Chapter – 25 सामाजिक आर्थिक विकास तथा अभावग्रस्त समूहों का सशक्तीकरण
- Chapter – 26 पर्यावरणीय क्षरण तथा आपदा प्रबन्धन
- Chapter – 27 शान्ति और सुरक्षा
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