NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख साधन (Population is our main resource)
Textbook | NIOS |
Class | 10th |
Subject | सामाजिक विज्ञान (Social Science) |
Chapter | 14th |
Chapter Name | जनसंख्या हमारा प्रमुख साधन |
Category | Class 10th सामाजिक विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख साधन (Population is our main resource) Notes In Hindi जनसंख्या का प्रमुख साधन क्या है?, जनसंख्या महत्वपूर्ण संसाधन क्यों है, जनसंख्या के 3 प्रकार कौन से हैं?, जनसंख्या संसाधन क्षेत्र क्या स्पष्ट करते हैं?, जनसंख्या कितने प्रकार की होती है?, जनसंख्या से क्या लाभ है?जनसंख्या क्या संसाधन है?, भारत में जनसंख्या संसाधन क्षेत्र क्या है?, जनसंख्या वितरण संसाधनों से कैसे जुड़ा है?, जनसंख्या को देश का सबसे बड़ा संसाधन क्यों कहा जाता है?, हमारे देश में कौन सा महत्वपूर्ण संसाधन है?, जनसंख्या के तीन घटक कौन से हैं?, जनसंख्या का तत्व क्या है?, जनसंख्या की सबसे अच्छी परिभाषा क्या है?, जनसंख्या का परिचय क्या है?, जनसंख्या और उनकी विशेषताएं क्या है?, जनसंख्या के उदाहरण क्या हैं?, जनसंख्या में क्या आता है?
NIOS Class 10th Social Science (213) Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख साधन (Population is our main resource)
Chapter – 14
जनसंख्या हमारा प्रमुख साधन
Notes
जनसंख्या एक संसाधन के रूप में आम तौर पर आबादी का मतलब लोगों का एक संग्रह या संख्या से है। आइये, नीचे दिए गये बॉक्स में जनसंख्या के अर्थ को पढ़े। जनसंख्या का अर्थ विभिन्न संदर्भ में अलग- अलग है। जनसंख्या का अर्थ विज्ञान या जीवविज्ञान की पाठ्यपुस्तक में बिल्कुल अलग है। अगर हम सामाजिक विज्ञान जैसे भूगोल, अर्थशास्त्र या समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तकों से तुलना करें तो। बाद में आप यह भी सीखेंगे कि सांख्यिकी में इसका अर्थ अलग है।क्या आप पता लगाना पसंद करेंगे कि यह क्या है। आप इसके लिए सांख्यिकी की किताबों को देखें। हालांकि, वर्तमान पाठ में हम जनसंख्या शब्द का प्रयोग मानव समूह या मानव संख्या रूप में किया जाएगा। जनगणना में भी यही अर्थ लिया जाता है। प्राथमिक तौर पर जनसंख्या का मतलब लोगों के समूह की संख्या से है । परन्तु जनसंख्या एक संसाधन, मानव संसाधन के रूप में भी माना जाता है। |
जनसंख्या को मानव संसाधन बनाने के कारक जनसंख्या को मानव संसाधन के रूप में प्रभावित करने वाले कारक क्या है? ऊपर की चर्चा के आधार पर आप अनुमान कर सकते है कि लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति और उनके विशेष प्रशिक्षण मानव संसाधन के रूप में जनसंख्या की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं। लेकिन इन के अलावा सामाजिक जनसांख्यिकीय कारक प्रमुख है जिसका प्रभाव जनसंख्या पर एक संसाधन के रूप में पड़ता है। ये हैं : (i) जनसंख्या वितरण, (ii) जनसंख्या परिवर्तन और (iii) जनसंख्या संरचना । हम इन तीन कारकों को समझने की कोशिश करेंगे। हम जनसंख्या के वितरण के साथ शुरू करते हैं। |
जनसंख्या का वितरण आपको पता है, संसाधन चाहे प्राकृतिक हो या कोई अन्य, उनका वितरण एकसा नहीं है। उदाहरण के लिए जंगल या लौह अयस्क या कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधन दुनिया में समान रूप से वितरित नहीं है और हमारे अपने देश में वितरण में एकरूपता नहीं है। मानव संसाधन के साथ भी यही मामला है। वे दुनिया में हर जगह समान रूप से नहीं फैले हैं और उनकी संख्या बदलते रहती हैं। एक क्षेत्र में आबादी के प्रसार को जनसंख्या वितरण कहते है चाहे वह एक राज्य हो या पूरा देश निम्न दिए गये भारत के मानचित्र (चित्र संख्या 14.1) पर नजर दौड़ाएंगे तो आपको दिलचस्प सा लगेगा।यह दर्शाता है कि जनसंख्या का विस्तार भारत के विभिन्न राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में किस प्रकार है। इसे बिन्दु द्वारा दिखाया गया है। प्रत्येक बिन्दु पाँच लाख लोगों को प्रदर्शित करता है। आप देखते है कि कुछ राज्यों में बिन्दुओं की संख्या कम है जबकि उनका क्षेत्रफल काफी बड़ा है। जिसका मतलब है कि उन राज्यों में जनसंख्या दूर-दूर या साधारण विस्तार है। परन्तु कुछ राज्यों में बिन्दु एक दूसरे के बिलकुल करीब-करीब है, इतने करीब कि मानचित्र का भाग बिन्दु से रंगा हुआ सा लगता है। उनमें जनसंख्या का विस्तार बहुत सघन है। कम आबादी, मध्यम आबादी और घनी आबादी वाले भारत के राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों की एक सूची तैयार करें। |
जनसंख्या का घनत्व ऊपर गये चित्र के आधार पर किसी भी दो राज्य के बीच जनसंख्या वितरण की तुलना बहुत ही रोचक होगा। इनमें जनसंख्या प्रसार का प्रतिरूप भिन्न है। सामान्य नजर दौड़ाने पर लगता है कि महाराष्ट्र की तुलना करने पर पश्चिम बंगाल में जनसंख्या ज्यादा है। परन्तु यह सही नहीं है। महाराष्ट्र में जनसंख्या पश्चिम बंगाल की तुलना में ज्यादा है पर महाराष्ट्र में जनसंख्या वितरण विरल सा लगता है क्योंकि यह पश्चिम बंगाल से क्षेत्र में बड़ा है। फलस्वरूप जनसंख्या की स्थिति को केवल संख्या को आधार मान कर तुलना नहीं कर सकते । क्षेत्रफल का भी विचार करना आवश्यक है। यही कारण्या है कि किसी भी देश प्रदेश या देश की जनसंख्या की तुलना जनसंख्या घनत्व द्वारा किया जाता है। |
जनसंख्या घनत्व और उसके वितरण को प्रभावित करने वाले कारक जनसंख्या का वितरण असमान क्यों है? यह मानव प्रवृति है कि जहाँ संसाधन आसानी से उपलब्ध होते हैं वहाँ लोग रहना पसंद करते है। इन संसाधनों में मीठे पानी, उपजाऊ मृदा, भोजन, आश्रय, काम के अवसर आदि हो सकता है। इन संसाधनों की उपलब्धता भौगोलिक विशेषताओं द्वारा प्रभावित करता है जो असमान वितरण के कारण हैं। इसलिए जनसंख्या का घनत्व और वितरण भी असमान है। जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले कारकों को दो प्रमुख वर्गों में रख सकते है – प्राकृतिक और सामाजिक- आर्थिक। |
प्राकृतिक कारक जनसंख्या के वितरण और घनत्व को प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख प्राकृतिक कारक है यानी उच्चावच, जलवायु और मृदा। (i) उच्चावच – आप पहाड़ी क्षेत्र या नदी घाटी और सपाट मैदानी इलाके का दौरा किये होंगे। आपने देखा होगा कि मैदानों की तुलना में पर्वतीय क्षेत्र में आबादी कम है। किसी भी दिए गये क्षेत्र का उच्च और निम्न ऊंचाई और ढाल के बीच का अंतर उच्चावच होता है। ये उच्चावच और ढाल वहाँ की सुगम्यता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जो क्षेत्र ज्यादा सुगम है वह लोगों द्वारा बसावट से भरी होने की सम्भावना है। यही कारण है कि सपाट मैदानों में ज्यादा बसावट देखी जाती है जबकि बीहड़ उच्चावच वाले पर्वतीय और पठारी भाग ऐसे नहीं है। अगर आप जनसंख्या के घनत्व और वितरण को उत्तरी मैदान और हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना करें तो आपको उच्चावच का प्रभाव प्रत्यक्ष अनुभव कर सकेंगे। उच्चावच – भूसतह की ऊंचाई में बदलाव जिसके कारण पहाड़ियों एवं घाटियों का निर्माण होता है। (ii) जलवायु – जनसंख्या के घनत्व और वितरण को प्रभावित करेन वाले कारकों में से एक महत्वपूर्ण कारक जलवायु की स्थितियों है। अनुकूल जलवायु मनुष्य के रहने के लिए सुविधाजनक स्थिति प्रदान करता है। जनसंख्या के उच्च घनत्व उन क्षेत्रों में ज्यादा है जलवायु अनुकूल पायी जाती है। लेकिन कठोर जलवायु, अर्थात बहुत गर्म, बहुत ठंडा, बहुत सूखा, बहुत नम क्षेत्रों में कम घनत्व होता है। भारत में शुष्क क्षेत्र जैसे राजस्थान एवं अति ठंडा क्षेत्र जैसे जम्मू और कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश और उतराखण्ड में निम्न जनसंख्या घनत्व है। (iii) मृदा – मनुष्य कृषि के लिए मिट्टी की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इसलिए ऊपजाउ मृदा के क्षेत्रों, में बड़ी आबादी का भरण पोषण होता है। यही कारण है उपजाऊ मिट्टी के क्षेत्रों जैसे उत्तर भारत और तटीय जलोढ़ मैदानों में जनसंख्या के उच्च घनत्व है। दूसरी ओर कम उपजाऊ मिट्टी के क्षेत्रों जैसे राजस्थान, छत्तीसगढ; और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों में जनसंख्या का कम घनत्व है। |
2. सामाजिक आर्थिक कारक जनसंख्या का घनत्व और वितरण निम्न सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों पर भी निर्भर है : (i) औद्योगिकरण और शहरीकरण – जैसा कि आप हमेशा देखते है, उद्योग धंधों वाली जगहों पर बड़ी संख्या में लोग निवास करते है। वे शहरी क्षेत्रों और नगरों में रहना पसंद करते हैं। खनिज संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र भी बड़ी जनसंख्या को आकर्षित करते है। झारखंड के खनन क्षेत्रों में बहुत घनी आबादी है। क्योंकि इन क्षेत्रों में कई आर्थिक गतिविधियों है जो रोजगार अवसरों को बढ़ा देती है। इसके अलावा, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ भी इन क्षेत्रों में बेहतर हैं। हम जानते हैं कि भारत के बड़े नगरो जैसे दिल्ली, मुंबई, बंगलौर, हैदराबाद, चेन्नई, कोलकाता और कई अन्य जनसंख्या के उच्च घनत्व के केन्द्र है। (ii) परिवार और संचार – अन्य भागों की तुलना में देश के कुछ भागों में परिवहन और संचार सुविधाओं के साथ उत्तरी मैदानी क्षेत्र में परिवहन काफी अच्छा है परन्तु उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में यह व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं है। ऐसे सभी क्षेत्रों में जहाँ सार्वजनिक सुविधाओं का विकास अच्छा है, अपेक्षाकृत उच्च जनसंख्या घनत्व मिलता है। कभी-कभी हम पाते हैं कि सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व के स्थानों की भी घनी आबादी है। सभी उपरोक्त कारक एक संयोजन में कार्य करते हैं। हम गंगा के मैदान में उच्च जनसंख्या घनत्व का उदाहरण ले सकते हैं। यह कई कारकों के संयोजन के कारण है जैसे चौरस मैदान, उपजाऊ मृदा, अनुकूल जलवायु, औद्योगिकरण, शहरीकरण और अपेक्षाकृत अच्छी तरह से परिवहन और संचार के साधनों का विकसित होना है। दूसरी ओर बीहड़ पहाड़ी इलाके, प्रतिकूल जलवायु, निम्न परिवहन के साधन और संचार जैसे कारकों के कारण अरूणाचल प्रदेश में जनसंख्या का कम धनत्व है। |
जनसंख्या परिवर्तन किसी भी देश में मानव संसाधन के रूप में जनसंख्या का गुणात्मक सम्बन्ध यहाँ के जनसंख्या परिवर्तन के प्रतिरूप से काफी प्रभावित होता हैं। यह परिवर्तन जनसंख्या की वृद्धि या जनसंख्या में कमी के संदर्भ में हो सकता है। हालांकि दुनिया की आबादी अभी भी बढ़ रही है, कुछ ऐसे भी देश है जहाँ जनसंख्या घट रही है। जनसंख्या परिवर्तन की दोनों स्थितियों में मानव संसाधन की गुणवत्ता पर उनके प्रभाव पड़ता है। यदि जनसंख्या तेज दर से बढ़ती है, तो जनसंख्या और देश के संसाधनों के बीच एक असंतुलन की स्थिति बनेगी।भारत की जनसंख्या लंबे समय से बढ़ रही हैं। वर्ष 1901 में 238 करोड़ की आबादी से, वह वर्ष 2001 में 1028 करोड़ हो गई है। जनसंख्या में यह वृद्धि एक सदी की अवधि में चार गुना बढ़ी है। दूसरी ओर पश्चिमी यूरोपीय देशों में जनसंख्या घट रही है। ऐसा क्यों है? हम उन कारकों की पहचान करते है जो जनसंख्या में बदलाव / परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। |
जनसंख्या परिवर्तन के कारक किसी भी देश की जनसंख्या में वृद्धि या कमी के तीन प्रमुख जनसांख्यिकीय कारक होते है। (क) जन्म दर जन्मदर और मृत्युदर को प्रभावित करने वाले अनेकों सामाजिक-आर्थिक कारक है जो अंततः जनसंख्या परिवर्तन को प्रभावित करते है। हालांकि चित्र संख्या 14.5 से आप स्वयं ही देख सकते है कि भारत में तीव्र गति से वृद्धि का कारण उच्च जन्मदर एवं निम्न मृत्युदर है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रवास जनसंख्या वृद्धि में एक नगण्य कारक है। |
जन्मदर मृत्यु दर – एक विशेष क्षेत्र के तहत दिए गए वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या में से हाने वाली मृत्यु दर = किसी क्षेत्र में एक वर्ष के अंतर्गत मरने वाले लोगों की संख्या/उसी क्षेत्र में मध्य वर्ष की जनसंख्या ⨯ 1000 मान लीजिए किसी एक जिले में एक वर्ष के दौरान मरने वाले व्यक्तियों की संख्या 600 मृत्यु दर = 600/25,000 ⨯ 1000 = 24 प्रति हजार जनसंख्या प्राकृतिक वृद्धि दर – प्राकृतिक वृद्धि दर जन्म दर और मृत्यु दर के बीच का अंतर है। इसलिए प्राकृतिक वृद्धि दर = जन्म दर – मृत्यु दर। मान लीजिए कि किसी खास वर्ष में एक क्षेत्र के लिए जन्म दर 32 है ओर मृत्यु दर 24 है। तो प्राकृतिक वृद्धि 32 – 21 = 8 प्रति हजार जनसंख्या होगी। |
जनसंख्या संरचना जनसंख्या हमारा प्रमुख संसाधन हमने अभी तक जनसंख्या के वितरण, घनत्व और वृद्धि का अध्ययन किया है। आप समझते हैं कि जन्म दर और मृत्यु दर के बीच का अंतर जनसंख्या परिवर्तन की गति और प्रवृत्ति का निर्धारण करता है। वास्तव में यह प्रभाव जनसंख्या संरचना को प्रमाणित करता है। यह न केवल जनसंख्या वृद्धि की गति बल्कि मानव संसाधन की गुणवत्ता को निर्धारित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है। क्या आप जानते हैं-जनसंख्या संरचना क्या हे? जनसंख्या संरचना जनसंख्या का वर्णन करता है जिसमें विभिन्न विशेषताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है जैसे- उम्र, लिंग, ग्रामीण, शहरी या साक्षरता की स्थिति। इसलिए हम, भारत में जनसंख्या संरचना के निम्नलिखित पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे। (i) आयु संरचना, |
आयु संरचना देश के वर्तमान और भविष्य के विकास के लिए आबादी की उम्र संरचना का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सामान्यतया आबादी को तीन वर्गों में रखा जाता है- बच्चे (0-14 वर्ष), वयस्क (15-60 वर्ष) और वृद्ध (60 वर्ष की उम्र से ज्यादा)। इन तीन वर्गों में भारतीय आबादी की उम्र संरचना को चित्र संख्या 14.7 दर्शाता है। यदि हम 1971 के आंकड़ों की तुलना करें तो यह स्पष्ट है कि बच्चों की संख्या में गिरावट और वयस्कों की संख्या में वृद्धि हो रही है। |
‘किशोर’ एक अलग जनसंख्या समूह के रूप में जनसंख्या के उम्र संरचना को समझने के लिए विशिष्ट समूह के रूप में युवावर्ग पर जोर देना नविनतम दृष्टिकोण है। परंपरागत रूप से जनसंख्या को हम तीन चरणों में विभाजित करते हैं। बचपन, व्यस्कता और बुढ़ापा। लेकिन जैसा कि हम देखते हैं, कुछ लोग न तो बच्चे और न ही वयस्क। यदि आप अपने जीवन के उस दौर में हैं, तो आप अपने माता-पिता या अन्य वयस्कों से कहते हुए सुना होगा, ‘क्यों तुम यह कर रहे हो?’ अब तुम एक बच्चा नहीं हो। दूसरे समय वे ही वयस्क भी कहते होंगे, ‘यह तुम कैसे कर सकते हो?’ तुम अभी वयस्क नहीं हो। वास्तव में, बचपन और वयस्कता के बीच जीवन के चरण को (10 साल और 19 या कुछ और साल के बीच) किशोरावस्था के रूप में जाना जाता है। इस आयु वर्ग के व्यक्तियों को किशोर के रूप में पहचानते हैं। किशोर के बारे में बेहतर जानकारी के लिए बॉक्स में दिए गये उदाहरण को आप पढ़ सकते है। |
लिंग संरचना मानव संसाधन के रूप में किसी भी देश की जनसंख्या की लिंग संरचना एक महत्वपूर्णा गुणात्मक सूचक है। वास्तव में, यह मुख्य रूप से लिंग अनुपात के आधार पर समझा जाता है। लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है। किसी भी समय पर पुरुषों और महिलाओं के बीच मौजूदा समानता स्थिति मापने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक सूचक है। लिंग अनुपात अनुकूल होना चाहिए। लेकिन हमारे देश में लिंग अनुपात हमेशा से महिलाओं के लिए प्रतिकूल बनी हुई है, और चिंता की बात है कि यह गिरावट लगातार बनी हुई है। वर्ष 1901 में प्रति 1000 पुरूषों पर 972 महिलाये थी। वर्ष 2001 में, यह घटकर 933 आ गया है। |
बाल लिंग अनुपात देश में बाल लिंग अनुपात में गिरावट की प्रवृत्ति बड़ी चिंता की बात है। 0-6 वर्ष की आयु (बच्चा जनसंख्या) में लिंग अनुपात लगातार कम होता जा रहा है। जबकि 1991 और 2001 की जनगणना के अनुपात समग्र लिंग अनुपात में मामूली सा सुधार दर्शाता है जबकि 0-6 वर्ष के बीच की अवधि में लिंग अनुपात में तेजी से कमी आई है। 28 राज्यों और 7 संघ शासित क्षेत्रों में से केवल चार राज्यों, यानी केरल, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और लक्षद्वीप केन्द्र शासित क्षेत्र में ही बाल लिंग अनुपात समग्र लिंग अनुपात के अनुरूप है। बुरी तरह से प्रभावित राज्यों में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, पंजाब और उत्तराखंड और संघ शासित क्षेत्रों में चंडीगढ़ और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली हैं। बाल लिंग अनुपात इस बात को दर्शाता है कि इन राज्यों में कन्या भ्रूणहत्या और कन्या शिशुहत्या की प्रथा आज भी है। पता चलता है कि यह व्यवहार एक सभ्य समाज के नियमों के खिलाफ है। |
ग्रामीण-शहरी संरचना भारत किसानों की भूमि और गांवों का देश रहा है। बीसवीं सदी के शुरूआत में दस लागों में से नौ लोग गांवों में रहते थे। हमारी आबादी का लगभग तीन चौथाई लोग अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। भारत में शहरी क्षेत्र उन्हें कहा जाता है जहाँ तीन-चौथाई से ज्यादा लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गैर कृषि कार्य में संलग्न हों, जनसंख्या कम से कम 5000 तथा जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी हो । ऐसा लगता है, (चित्र संख्या 14.9 देखें) हम लोग शहरीकरण की ओर बहुत ही तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। परन्तु इसके साथ इसके दुष्परिणाम जैसे आवास की कमी जल, और पर्यावरण पर अतिक्रमण आदि सन्निहित हैं। |
साक्षरता साक्षरता किसी भी समाज के विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। जैसा कि जनगणना रिपोर्ट में परिभाषित किया गया है- सात वर्ष या उससे ज्यादा का व्यक्ति किसी भी भाषा में समझदारी के साथ लिखना और पढ़ना जानें। 1951 में हमारे देश में साक्षरता दर 18.83 प्रतिशत थी। यह 2001 में बढ़कर 65.38 प्रतिशत हो गई है। हमारे देश के विभिन्न राज्यों में केरल में उच्चतम साक्षरता 90.86 प्रतिशत है। यह मिजोरम में 88.49 प्रतिशत और लक्षद्वीप में 97.52 प्रतिशत है। लेकिन सामान्य रूप से पुरुषों की तुलना में महिला साक्षरता दर कम है। |
भारत में जनसंख्या नीतियां क्या आप जानते हैं कि भारत में जनसंख्या वृद्धि और जनसंख्या नीति अपनाने की जरूरत पर विचार-विमर्श स्वतंत्रता से पहले भी शुरू हो गया था? अंतरिम सरकार द्वारा 1938 में एक राष्ट्रीय योजना समिति स्थापित की गई जिसने जनसंख्या पर एक उप-समिति बनाई। इस समिति ने 1910 में अपने संकल्प में कहा, “सामाजिक अर्थव्यवस्था परिवार की खुशी और राष्ट्रीय योजना के हित में परिवार नियोजन और बच्चों की सीमा आवश्यक है।” 1952 में भारत दुनिया का पहला देश बना जो राष्ट्रीय जन्म जनसंख्या परिवार नियोजन पर बल देते हुए कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यक्रम का उद्देश्य जनम दर को कम कर “राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के स्तर पर जनसंख्या को स्थिर करना” था। भारत जब से समय-समय पर जनसंख्या नीति में सुधार करता रहा है जिसके विस्तार से जानकारी संगत किताबों से प्राप्त कर सकते हैं अथवा आप उच्च कक्षा में पढ़ सकते हैं। वर्तमान में हम नवीनतम जनसंख्या नीति को समझने की कोशिश करेंगे जो भारत सरकार द्वारा 2000 में अपनाया गया था। |
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 जनसंख्या के मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण में गुणात्मक परिवर्तन दर्शाता है। यह सीधे जनसंख्या नियंत्रण पर जोर नहीं देता है। इसमें कहा गया है कि आर्थिक और सामाजिक विकास का उद्देश्य लोगों के जीवन में गुणात्मक सुधार करना, उनके कल्याण में वृद्धि करना, समाज में लोगों को सुअवसर विकल्प प्रदान कर उन्हें उत्पादनकारी परिसम्पति के रूप में विकसित करना है। जनसंख्या स्थिर करना सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए अनिवार्य आवश्यकता है। राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 के तात्कालिक उद्देश्य गर्भनिरोधक, स्वास्थ्य देशभाल में बुनियादी सुविधाओं, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के अपूर्ण जरूरतों को पूरा करना है। इसके साथ ही साथ प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य की देखभाल के लिए एकीकृत सेवा प्रदान करना है। मध्यकालीन उद्देश्य कुल प्रजनन दर को 2010 तक प्रति स्थापन दर तक लाना है जिसके लिए अंतर क्षेत्रीय संचालन रणनीतियों की जोरदार कार्यान्यवन नीति है। 2045 तक सतत आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के साथ एक स्थिर जनसंख्या प्राप्त करना है। |
प्रतिस्थापन स्तर पर कुल जननक्षमता दर यह कुल प्रजनन दर है जिसमें एक नवजात बच्ची अपने जीवन काल में औसतन एक बेटी को जन्म देती है। अधिक परिचित शब्दों में हर औरत उतने ही बच्चे को जन्म देती है जिससे वह प्रतिस्थापित हो रही है। इसका परिणाम शून्य जनसंख्या वृद्धि होता है। इस प्रकार की जनसंख्या उम्र के आधार पर वितरण एक-सा होता है जहां समान दर से जनसंख्या में वृद्धि होती है। जहाँ जन्म और मृत्युदर एक-सा है जनसंख्या स्थिर रहती है। और एक स्थिर दर से बढ़ती है। जहां प्रजनन और मृत्यु दर बराबर हैं, जनसंख्या स्थिर रहती है। |
आपने क्या सीखा
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NIOS Class 10th सामाजिक विज्ञान (पुस्तक – 1) Notes in Hindi
- Chapter – 1 प्राचीन विश्व
- Chapter – 2 मध्यकालीन विश्व
- Chapter – 3 आधुनिक विश्व – Ⅰ
- Chapter – 4 आधुनिक विश्व – Ⅱ
- Chapter – 5 भारत पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव : आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृति (1757-1857)
- Chapter – 6 औपनिवेशिक भारत में धार्मिक एवं सामाजिक जागृति
- Chapter – 7 ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लोकप्रिय जन प्रतिरोध
- Chapter – 8 भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन
- Chapter – 9 भारत का भौतिक भूगोल
- Chapter – 10 जलवायु
- Chapter – 11 जैव विविधता
- Chapter – 12 भारत में कृषि
- Chapter – 13 यातायात तथा संचार के साधन
- Chapter – 14 जनसंख्या हमारा प्रमुख संसाधन
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