NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 6 हमारा घर
Text Book | NCERT |
Class | 8th |
Subject | गृह विज्ञान |
Chapter | 6th |
Chapter Name | हमारा घर |
Category | Class 8th गृह विज्ञान |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 6 हमारा घर Notes in Hindi हम इस अध्याय में हमारा घर, आंगन तथा बरामदा, बैठक या रहने का कमरा, फर्नीचर, भोजन का कमरा, सोने का कमरा, पढ़ने का कमरा, रसोईघर, रसोईघर में कार्य व्यवस्था, भोजन तैयारी का केन्द्र, भोजन पकाने व परोसने का केन्द्र, आदि इसके बारे में हम विस्तार से पढ़ेंगे। |
NCERT Solution Class 8th (Home Science) गृह विज्ञान Chapter – 6 हमारा घर
Chapter – 6
हमारा घर
Notes
हमारा घर
• भोजन और वस्त्र के पश्चात मनुष्य की मूल आवश्यकता है, उसके रहने का स्थान अथवा “घर”। केवल मनुष्य ही नहीं अपितु पशु-पक्षी भी अपने लिए घोसलों व गुफाओं के रूप में बनाते हैं।
• घर के विभिन्न कमरों में फर्नीचर व्यवस्था प्रत्येक घर में कितने कमरे होने चाहिए यह तो परिवार की आवश्यकताओं एवं आय पर निर्भर करता है परन्तु घर पर इतना बड़ा अवश्य होना चाहिए कि परिवार के सभी सदस्य सुविधापूर्वक रह सकें।
आंगन तथा बरामदा
घर में आंगन तथा बरामदा होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे घर में पर्याप्त प्रकाश, धूप व हवा रहती है। परन्तु आजकल जगह की समस्या के कारण घरों में आंगन न के बराबर ही होता है।
यदि सम्भव हो तो घर में कमरों के आगे बरामदा भी होना चाहिए जिससे कमरे गर्मियों में ठण्डे तथा सर्दियों में ठण्ड से बचे रहें। इसके अतिरिक्त बरामदे का प्रयोग अन्य कार्यों जैसे जूतों के लिए रैक, छाते व रेनकोट आदि के लिए खुटियां या छोटी अलमारी आदि रखने के लिए किया जा सकता है। यदि बरामदा बड़ा हो तो उसमें बैठने के लिए हल्की बांस की कुर्सियां व मेज भी रखी जा सकती है।
बैठक या रहने का कमरा
• घर में अतिथियों के मिलने-जुलने के लिए बैठक का होना आवश्यक है। परिवार के सभी सदस्य इस कमरे का प्रयोग करते हैं। बैठक घर के प्रवेश द्वार के निकट होनी चाहिए जिससे अतिथियों को घर के अन्य कमरों में से हो कर न जाना पड़े।
फर्नीचर – सोफा, गद्देदार कुर्सियां, दीवान या तख़्त, बीच की मेज, कोने की मेज आदि।
फर्नीचर व्यवस्था – बैठक में फर्नीचर की व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि एक साथ छः-सात व्यक्ति बैठकर आराम से बातचीत कर सकें। सोफे के साथ बीच में एक मेज रखनी चाहिए जिससे अतिथियों को चाय, शर्बत आदि पिलाने में सुविधा हो। कोने में रखी मेजों पर फूलदान, पत्रिकाएं, कलात्मक वस्तुएं आदि रखी जा सकती है।
बैठक के दरवाज़ों व खिड़कियों पर पर्दे लगाने चाहिए जिससेकमरे की सुन्दरता के साथ-साथ गुप्तता भी रखी जा सके और बाहर से कमरे के भीतर बैठे व्यक्तियों एवं वस्तुओं पर दृष्टि न पड़े।
प्रायः बैठक को परिवार के सदस्यों के मनोरंजन के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है। अतः बैठक में टेलीविज़न, रेडियो आदि भी रखे जा सकते हैं। बैठक को सुन्दर एवं आकर्षक बनाने के लिए परिवार अपनी रूचि एवं बजट के अनुरूप सजावट के साधनों जैसे फर्श पर कालीन, दीवारों पर चित्र. एवं अन्य साधनों का प्रयोग कर सकते हैं।
(1) आंगन तथा बरामदा घर में आंगन तथा बरामदा होना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे घर में पर्याप्त प्रकाश, धूप व हवा रहती है। परन्तु आजकल जगह की समस्या के कारण घरों में आंगन न के बराबर ही होता है। यदि सम्भव हो तो घर में कमरों के आगे बरामदा भी होना चाहिए जिससे कमरे गर्मियों में ठण्डे तथा सर्दियों में ठण्ड से बचे रहें।
इसके अतिरिक्त बरामदे का प्रयोग अन्य कार्यों जैसे जूतों के लिए रैक, छाते व रेनकोट आदि के लिए खुटियां या छोटी अलमारी आदि रखने के लिए किया जा सकता है। यदि बरामदा बड़ा हो तो उसमें बैठने के लिए हल्की बांस की कुर्सियां व मेज भी रखी जा सकती है।
भोजन का कमरा
प्रायः जगह के अभाव के कारण अब भोजन खाने का कमरा अलग से बनाना सम्भव नहीं है। अतः, रहने के कमरे, रसोईघर अथवा रसोईघर के बाहर के बरामदे में भोजन खाने की व्यवस्था की जाती है।
फर्नीचर – परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुरूप मेज, कुर्सियां, भोजन परोसने वाली मेज अथवा पहियों वाली ट्राली, प्लेटें आदि रखने के लिए अल्मारी।
फर्नीचर व्यवस्था – भोजन के कमरे में मेज व कुर्सियां ऐसे रखनी चाहिए कि आराम से बैठ कर खाना खाया जा सके। यदि एक ही कमरे में बैठक व भोजन खाने का कमरा बनाना हो तो व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि अलग-अलग कार्य करते समय किसी भी प्रकार की रुकावट न हो इसके लिए दोनों के बीच में लकड़ी का स्क्रीन, शैल्फ या पदां लगाकर भी विभाजन किया जा सकता है।
जगह के अभाव में रसोईघर अथवा बरामदे में ऐसी मेज़ का प्रयोग भी किया जा सकता है जिसको आवश्कता न होने पर दीवार के साथ खड़ा किया जा सके।
सोने का कमरा
फर्नीचर – सोने के लिए आवश्यकतानुसार पलंग, कोने का मेज, आराम कुर्सी, क्षृंगार मेज व स्टूल, कपड़े आदि रखने के लिए लकड़ी या लोहे की अल्मारी आदि।
फर्नीचर व्यवस्था – सोने के कमरे में एक दोहरे पलंग को दीवारों के समानांतर या कमरे के बीचोंबीच रख सकते हैं।
• दोहरे पलंग को एक दूसरे से सटाकर या अलग-अलग रखा जा सकता है। पलंग से कुछ दूरी पर दीवार के सहारे शृंगार मेज, स्टूल व अल्मारी रख सकते हैं।
• खिड़की के पास अथवा किसी अन्य सुविधाजनक जगह पर मेज व कुर्सियां रखकर बैठने, पढ़ने-लिखने, कढ़ाई सिलाई आदि का काम कर सकते हैं। जो परिवार बैठक में मनोरंजन के साधन जैसे- टेलीविजन, रेडियो आदि नहीं रखना चाहते वह इन्हें सोने के कमरे में रख सकते हैं।
(5) पढ़ने का कमरा
• घर में बच्चों के पढ़ने के लिए कोई निश्चित स्थान होना आवश्यक है जहां वे अपनी कापी किताब व अन्य पढ़ाई के साधन रख सकें और पढ़ाई कर सकें। जगह के अभाव में यदि पढ़ने के लिए अलग कमरा न हो सके तो सुविधानुसार किसी भी कमरे में एक कोना पढ़ने के लिए बनाया जा सकता है।
फर्नीचर – पढ़ने के लिए मेज, कुर्सी, लैम्प, पुस्तकें रखने के लिए अल्मारी अथवा रैक आदि।
फर्नीचर व्यवस्था – कमरे में मेज व कुर्सी ऐसे स्थान पर रखनी चाहिए जहां प्रकाश का उचित प्रबन्ध हो। मेज के पास ही किताबों की अल्मारी अथवा रैक रखना चाहिए जिससे पढ़ते समय आसानी से किताबें निकाली व रखी जा सकें। पढ़ने के कमरे का वातावरण शान्त होना आवश्यक है जिससे बच्चे मन लगा कर पढ़ाई कर सकें।
रसोईघर
• प्रत्येक घर का एक महत्वपूर्ण अंग है-“रसोईघर”। इसमें भोजन पकाने तथा परोसने का काम किया जाता है। चूंकि गृहिणी का अधिकांश समय रसोईघर में बीतता है अतः, रसोईघर ऐसा होना चाहिए जिसमें गृहिणी सुविधापूर्वक कार्य कर सके। रसोईघर अन्य कमरों से कुछ दूरी पर होना चाहिए जिससे धुआं खाने की कमरों में न जा सके।
• रसोईघर में पर्याप्त प्रकाश तथा वायु आवागमन का उचित प्रबन्ध होना आवश्यक है। इसके लिए रसोईघर में खिड़की व रोशनदान होना चाहिए और यदि सम्भव हो तो रोशनदान में निकासी पंखा लगवाना चाहिए।
• रसोईघर के दरवाजे व खिड़कियों पर तार की जाली लगवानी चाहिए जिससे हवा व प्रकाश आता रहे और मच्छर, मक्सी आदि से बचा जा सके।
रसोईघर में कार्य व्यवस्था –
प्रायः रसोईघर में भोजन से सम्बन्धित कार्य जैसे खाद्य पदार्थों का संग्रह तैयारी, पकाना, परोसना तथा वर्तनों की सफाई करना है।
• इन कार्यों को भली प्रकार सम्पन्न करने के लिए रसोईघर को निम्नलिखित तीन केन्द्रों में विभाजित किया जाता है-
(1) भोजन तैयारी का केन्द्र
(2) भोजन पकाने तथा परोसने का केन्द्र
(3) बर्तनों की धुलाई एवं सफाई का केन्द्र
भोजन तैयारी का केन्द्र
• भोजन पकाने से पूर्व सब्जियां काटना, आटा गूंधना, दाल-चावल चुनना आदि जैसे कार्य करने होते हैं। इन दों को करने के लिए रसोईघर में अलग केन्द्र बनाना आवश्यक है। रसोईघर में एक तरफ मेज या शैल्फ रखकर भोजन पकाने की तैयारी की जा सकती है।
• इस मेज या शैल्फ के दराजों तथा खानों में कुछ उपकरण जैसे चाक, कटुकस आदि रख सकते हैं। सुविधा के लिए मेज या शैल्फ वाली दीवार पर अल्मारी बनाई जासकती है जिसमें आटा, मैदा, चावल, दलिया आदि जैसे साथ पदार्थ जिनकी आवश्यकता तैयारी केन्द्र के पास होती है, रखे जा सकते हैं। भोजन की तैयारी सम्बन्धित वर्तन जैसे परात आदि भी इसी केन्द्र में रखने चाहिए जिससे सुविधापूर्वक प्रयोग किए जा सकें।
• यदि रसोईघर बड़ा हो तो इस केन्द्र में फ्रिज भी रखा जा सकता है अन्यथा इसे खाने के कमरे में रखना चाहिए।
• इसी केन्द्र में छिलके आदि फेंकने के लिए ढक्कनदार कूड़ेदान रखना आवश्यक है।
भोजन पकाने व परोसने का केन्द्र
• रसोईघर में भोजन पकाने व परोसने का केन्द्र सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है क्योंकि इसमें भोजन पकाने व परोसने का कार्य किया जाता है।
इस केंद्र की व्यवस्था में प्रमुख है – भोजन पकाने के लिए कोई साधन जैसे चूल्हा, स्टोव, गैस आदि शैल्फ या प्लेटफार्म पर रखते हैं। भोजन पकाने व परोसने के लिए प्रयोग में आने वाले बर्तन, जैसे पतीला भागोना, कड़ाही, कड़छी, चिमटा, संडासी प्लेट, कटोरी, चम्मच आदि इसी केन्द्र में बनी अल्मारी में रखने चाहिए जिससे आसानी से प्रयोग किए जा सकें।
• भोजन पकाते समय प्रयोग में आने वाले खाद्य पदार्थ जैसे घी, तेल, नमक, मिर्च-मसाले, पापड़ आदि भी इसी केन्द्र में बनी अल्मारी में रखने चाहिए। भोजन पकाने के पश्चात् परोसने का काम भी इसी केन्द्र में किया जाता है।
बर्तनों की धुलाई एवं सफाई के केन्द्र
• रसोईघर की कार्य-व्यवस्था में तीसरा मुख्य केन्द्र है-वर्तनों की धुलाई एवं सफाई का केन्द्र। यह केन्द्र सबसे अधिक प्रयोग में आता है। इस केन्द्र में निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं।
(क) पकाने से पूर्व सब्जियों, दाल, चावल आदि को धोना।
(ख) पकानेसे पूर्व वर्तनों व उपकरणों को धोना
(ग) भोजन पकाने से पूर्व अथवा कार्य करते समय हाथों को धोना।
(घ) भोजन पकाने व पीने के लिए पानी लेना।
(ड़) भोजन खाने के पश्चात् गन्दे बर्तनों को धोना
• इस केन्द्र में उपरोक्त सभी कार्यों के लिए एक सिंक का होना आवश्यक है। सिंक के दाई ओर गन्दे वर्तन व बाई ओर धुले बर्तन रखने के लिए शैल्फ होने चाहिए।
• सिंक से गन्दे पानी की निकासी का उचित प्रबंध होना आवश्यक है।
• इस केन्द्र में सफाई करने के साधनों जैसे ब्रश, झरना, राख या वर्तन साफ करने वाले पाउडर आदि रखने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
3. घर की देख-रेख
घर को साफ-सुधरा रखना उतना ही आवश्यक है जितना कि उसमें सामान को भली-भांति सजाना। घर में कितनी भी सुन्दर व बहुमूल्य वस्तुएं क्यों न हो, जब तक उनकी झाड़-पोंछन की जाए देखने में अच्छी नहीं लगती तथा ऐसे कमरे में बैठ कर काम करने को भी मन नहीं करता।
इसके अतिरिक्त परिवार के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है। अतः रोगों से बचने के लिए और घर को शोभायमान बनाने के लिए घर की सफाई करना बहुत आवश्यक है।
घर की सफाई – तीन प्रकार से की जाती है।
(1) दैनिक सफाई
(2) साप्ताहिक सफाई
(3) वार्षिक सफाई
दैनिक सफाई
• दैनिक सफाई से अभिप्राय प्रतिदिन की सफाई से है जैसे वस्तुओं से ऊपरी धूल दूर करना, झाड़ू-पोचा लगाना और प्रतिदिन के प्रयोग की वस्तुओं को निश्चित स्थान पर रखना।
• जहां तक सम्भव हो दैनिक सफाई प्रातः काल ही कर लेनी चाहिए क्योंकि रात को धूल बैठ जाती है जिससे प्रातःकाल चलने-फिरने से पहले ही वस्तुओं को साफ़ करना आसान होता है।
दैनिक सफाई करने के दो मुख्य कारण है-
(क) गन्दी वस्तुओं को साफ करने की अपेक्षा वस्तुओं को साफ रखना अधिक आसान होता है।
(ख) जब वस्तुएं गन्दी हो जाती है तो उनको साफ करने में परिश्रम व समय अधिक लगता है। तथा वस्तुओं का जीवन भी कम हो जाता है।
दैनिक सफाई करने के लिए आवश्यक सामग्र
झाड़ू, ब्रश, झाइन, कुछ पुराने कपड़ों के टुकड़े, कीटाणुनाशक दवाई जैसे फिनाइल रसोईघर के बर्तनों को साफ करने के लिए राख, बर्तन साफ करने का पाउडर मिलमधी आदि।
विधि –
• पहले सभी दरवाजे व खिड़कियां खोल दे जिससे स्वच्छ वायु कमरों में भली प्रकार प्रवेश कर सके। फिर सफाई का सारा सामान एकत्र कर लें। इसके पश्चात् कमरों में झाडू लगा लें। दीवारों को जहां तक हाथ पहुंच सके, सारा फर्नीचर, दरवाजे व खिड़कियां, कमरे में लगे चित्र तथा सजाने की वस्तुएं सबकी कर यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि सदा ऊपर से नीचे की तरफ साफ करें नहीं तो नीचे वाला स्थान फिर से गन्दा हो जाएगा।
• इसके साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि सामान की झड़-पोंछ करते समय झारन को ओर से पटक कर उस पर नहीं मारना चाहिए। इससे सामान पर पड़ी धूल उस चीज से तो उठ जाएगी परन्तु कमरे की दूसरी चीजों पर पड़ जाएगी। कभी-कभी झारन को पटक कर मारने से कांच की साधारण चीजों के टूटने का भी भय रहता है।
• फर्श पर यदि दरी बिछी हो तो उसे ब्रश से साफ करना चाहिए कमरे में यदि पुष्प व्यवस्था की गई है तो फूलदान का पानी व फूलों को बदल दें। सारे सामान को निश्चित स्थान पर रख कर पर्श को गीले कपड़े से पोछे।
• रसोईघर की सफाई प्रायः दिन में एक से अधिक बार की जाती है। खाना बनाने के पश्चात् उस स्थान तथा बर्तनों को साफ़ कर लें। बर्तनों को निश्चित स्थान पर रख कर रसोईघर को धोकर पोंछ दे।
साप्ताहिक सफाई
यह सफाई प्रति सप्ताह जैसे रविवार को अथवा किसी अन्य दिन-जब जिसे जैसे भी आसानी हो-की जा सकती है। साप्ताहिक सफाई करने में प्रायः दैनिक सफाई की अपेक्षा अधिक समय लगता है।
छत से जाने आदि उतारना गरियों के गिलाफ बदलना इत्यादि इस सफाई से शामिल है।
वार्षिक सफाई
यह सफाई वर्ष में एक बार की जाती है। इस सफाई का बहुत अधिक महत्व है। इस सफाई के अन्तर्गत उन वस्तुओं की मुख्य स्थान प्राप्त होता है जो दैनिक अथवा साप्ताहिक सफाई केअन्तर्गत नहीं रखी जा सकती है जैसे घर में सफेदी तथा दरवाजों व खिड़कियों पर वार्निश अथवा पेन्ट इत्यादि।
कुछ विशेष वस्तुओं की देखभाल एवं सफाई
फर्नीचर – लकड़ी का फर्नीचर प्रायः शीशम, सागवान, आबनूस, ढाक, आम, कीकर, पीपल आदि की लकड़ी से बनाया जाता है।
लकड़ी के फर्नीचर की देखभाल एवं सफाई करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-
(1) फर्नीचर की सफाई प्रतिदिन करनी चाहिए।
(2) फर्नीचर को बहुत समय तक गीना नहीं रखना चाहिए तथा उस पर बहुत गर्म पानी नहीं डालना चाहिए।
(3) फर्नीचर पर बहुत अधिक साबुन व सोडे का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(4) फर्नीचर को अधिक समय तक तेज धूप में नहीं रखना चाहिए।
(5) फर्नीचर को बहुत सख्त ब्रश से रगड़ना नहीं चाहिए अन्यथा लकड़ी की सतह खराब हो जाती है।
(6) यदि फर्नीचर पर कुछ गिर जाए तो उसे तत्कान साफ कर देना चाहिए अन्यथा ध पड़ने का भय रहता है।
(7) पर्नीचर को समय-समय पर पालिश करते रहना चाहिए जिससे वह देखने में आकर्षक लगे तथा लकड़ी भी सुरक्षित रहे। जिस दिन बादल हो उस दिन पालिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसे समय में पालिश सूखती नहीं है।
लकड़ी के फर्नीचर पर पड़े धब्बे दूर करना
(1) कई बार लकड़ी के फर्नीचर पर गर्म बर्तन रखने से धब्बा पड़ जाता है। इस धब्बे पर यूकलिप्टस या सफेद का तेल कई दिन तक लगातार लगाने से धब्बा दूर हो जाता है।
(2) रंग-रोगन के धब्बे को नफेद स्प्रिट से साफ करना चाहिए। इससे फर्नीचर की पालिश भी उतर जाती है अतः फर्नीचर को पुनः पालिश करना चाहिए।
(3) स्याही के धब्बे नींबू तथा नमक या ऑग्जैलीक अम्ल के प्रयोग से दूर किए जा सकते हैं।
(4) चिकनाई के धब्बे गर्म सोडे का घोल लगाकर मलने से साफ हो जाते हैं।
(5) रक्त के धब्बे ठण्डे पानी से साफ करने चाहिए अथवा धब्बे वाले स्थान नमक डाल कर हल्का-हल्का रगड़ने से भी धब्बा दूर हो जाता है।
कांच
कांच रसोईघर में प्रयोग आने वाले बर्तन, फूलदान, खिड़कियों तथा दरवाजों के शीशे, क्षृंगार मेज आदि के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
कांच से बनी वस्तुओं की देख रेख व सफाई करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. बर्तन सादे डिज़ाइन के होने चाहिए जिससे वे आसानी से धोए जा सकें।
2. कांच के बर्तनों को रसोई के अन्य वर्तनों से अलग होना चाहिए जिससे वे टूटें नहीं।
3. इनको धोते समय बहुत गर्म व उबलता हुआ पानी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए, नहीं तो उनके टूटने की सम्भावना हो सकती है।
4. यदि कुछ बर्तनों को अलमारी में कुछ समय के लिए रखाना है तो उनको उल्टा करके अथवाप्रत्येक बर्तन को अलग-अलग किसी कागज में लपेट कर रखना चाहिए।
कांच के बर्तनों की सफाई
1. प्रयोग करने के पश्चात कांच के बर्तनों को तुरन्त साफ कर लेना चाहिए तथा अन्यथा बर्तनों में पानी डाल कर कुछ समय के लिए रख दें। विशेषकर दूध वाले बर्तनों में ठंडा पानी तथा चिकनाई वाले बर्तनों में गर्म पानी जिससे उनको बाद में धोने में आसानी होती है।
2. इन बर्तनों को साबुन या वर्तन साफ करने वाले पाउडर के घोल से साफ किया जा सकता है। यदि वर्तन बहुत चिकने हों तो धोते समय इस घोल में थोड़ा-सा सोडा भी डाल दें।
3. फिर गुनगुने स्वच्छ पानी में खंगारें और शीघ्रता से साफ झाड़न से पोंछ दें।
4. इसके अतिरिक्त खिड़कियां तथा दरवाज़ों के शीशों को पुराने गीने अखबार या कपड़े में मैचलेटिड स्पिरिट लगा कर रगड़ कर साफ किया जा सकता है। चुने का पाउडर (सफ़ेदी) तथा एमोनिया का गाढ़ा घोल बना कर शीशों पर लगा दें और उसको सूखने दें। उसके पश्चात् उनको सूखे झाड़न से उतार दें। इस विधि से शीशे बहुत अच्छी तरह से साफ हो जाते हैं।
5. शीशे की बोतलों अथवा फुलदानों को साफ करने केलिए साबुन और गर्म पानी प्रयोग में लाएं। यदि फुलदान में कोई धब्बे लगे हों तो उसमें साबुन या चूना तथा पानी कुछ समय के लिए छोड़ दें-सब धब्बे सुगमता से दूर हो जाएंगे।
बेंत
• यह ताड़ के पेड़ के तने से प्राप्त होता है और इसमें लचक होने के कारण कुर्सियों के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
• बेंत को साफ रखने के लिए प्रतिदिन झारन से पोछना चाहिए। यदि कुछ मैला हो जाए तो उसको गुनगुने पानी में नमक डाल कर धो दें और फिर नमक वाले ठण्डे पानी से संगाले नमक के प्रयोग से बेंत में कड़ापन आ जाता है तथा उसमें यदि कोई धब्बा हो तो वे भी उतर जाते हैं।
• यदि बेंत बहुत अधिक मैला हो तो उसको गुनगुने पानी में साबुन का घोल बना कर धो सकते है किन्तु इससे बेंत नर्म हो जाता है।
• बेंत को कसने के लिए उस पर उबलते हुए सोडे का पानी कपड़े से लगाएं। थोड़ी देर के पश्चात पोंछ कर खुली हवा में सुखाएं। इतना ध्यान रखना चाहिए कि सोडे का पानी लकड़ी वाले भाग को न छुए, नहीं तो उसका पालिश खराब हो जाएगा।
• इसके अतिरिक्त बेंत को साफ़ करते समय उसको किसी कपड़े से नीचे से दबाएं जिससे वह नीचे झुके नहीं तथा ढीली न होने पाए।
बर्तनों की सफाई
हमें ऐसा कोई भी घर दिखाई नहीं देगा जहाँ पर किसी न किसी प्रकार के बर्तन न हों। वे बर्तन मुख्यतः दो प्रकार के धातुओं के बने होते हैं जो निम्नलिखित है:
1. कोमल धातुः ये वे धातु हैं जिन पर खरोंच व लाइनें आसानी से पड़ जाती है जैसे चांदी, टिन, अल्मीनियम आदि।
2. कठोर धातुः कठोर धातुओं पर लाइनें आसानी से नहीं पड़तीं जैसे पीतल, स्टील, लोहा आदि।
बर्तनों की सफाई व सुरक्षा के कुछ सामान्य नियम
बर्तन चाहे किसी भी धातु के बने हों अथवा किसी भी काम आने वाले हों उनको साफ़ करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:-
(1) भोजन पकाने खिलाने व खाने के अनन्तर उपयोग में आये सभी वर्तनों को एकदम साफ कर देना चाहिए। यदि ऐसा न किया गया तो उनमें लगे हुए भोजन के कण सूख जाते हैं तथा बर्तन साफ करना कठिन हो जाता है। यदि इतना अवकाश न हो तो उन बर्तनों में पानी भर देना चाहिए।
(2) विभिन्न प्रकार के बर्तनों को अलग-अलग करके धोना चाहिए। इससे चीनी, कांच आदि के बर्तन टूटने का भय नहीं रहता।
(3) खाने में प्रयोग आने वाले बर्तनों में यदि कोई चिकनाई हो तो उसे किसी पुराने कपड़े के टुकड़े से पोंछ दें। फिर उसको गर्म पानी तथा साबुन अथवा राख से साफ़ कर दें। कांच के वर्तन अधिक गर्म पानी के प्रयोग से टूट जाते हैं इसलिए उनके लिए बहुत गर्म पानी प्रयोग नहीं करना चाहिए।
(4) ऐसे बर्तन जिनके दरारों में भोजन, राख आदि के कण भर जाने की संभावना होती है बुश से साफ करने चाहिए।
(5) खाने में प्रयोग आने वाले बर्तनों में प्रायः बाजार की बनी पालिश नहीं लगाई जाती विशेषकर अन्दर के भाग में, किन्तु यदि पालिश करनी भी हो तो केवल बाहरी भाग में ही करनी चाहिए।
(6) सजाने वाली वस्तुओं की पालिश करने से पूर्व कपड़े से धूल पोंछ लेनी चाहिए।
(7) पालिश करने के लिए बर्तन बिल्कुल सूखे होने चाहिए।
(8) थोड़ी-सी पालिश लगा कर बर्तन को भली प्रकार रगड़ें। इससे उनमें चमक आ जाती है।
(9) बर्तन साफ करने के बाद प्रयोग में लाई हुई विविध वस्तुओं को यथास्थान रखना चाहिए तथा झाड़न को धोकर सुखा देना चाहिए।
पीतल (बर्तन)
सामग्री – गर्म पानी तथा रास, बर्तन साफ करने वाला पाउडर, साबुन, इमली या नींबू, नमक सोडा, सफेदी व पालिश, झाड़न व चीथड़े आदि। रगड़ने के लिए नारियल के छिलके, सूखा घास, स्टील-वूल आदि।
विधि – चिकनाई दूर करने के लिए बर्तनों को गर्मपानी से धो लें। फिर राख, बर्तन साफकरने का पाउडर अथवा साबुन से नारियल के छिलके के साथ रगड़ लें।यदि कहीं पर धब्बे हों तो इमली व नींबू को नमक के साथ रगड़ कर धोया जा सकता है। पालिश करने के लिए सूखी सफेदी अथवा पालिश से रगड़ना चाहिए।
स्टील (बर्तन)
सामग्री – गर्म पानी, बर्तन साफ करने का पाउडर, विम अथवा साबुन, रगड़ने के लिए पुराना कपड़ा, झाड़न आदि।
विधि – यदि बर्तन चिकने हों तो गर्म पानी मेंभिगो दें। फिर साबुन अथवा बर्तन साफ करने के पाउडर से रगड़ कर धो दें। इनके साथ सोडे का प्रयोग भी किया जा सकता है। स्वच्छ पानी में खंगाले तथा फिर किसी झाड़न से पोंछ दें।
5. घर की स्वच्छता
घर और उसमें रखे सामान की सफाई अथवा देख-भाल करना अत्यन्त आवश्यक है। घर के भीतर अथवा बाहर आस-पास के स्थानों के गन्दे रहने से वहां की वायु दूषित हो जाती है तथा ऐसी वायु में सांस लेने से स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।
गन्दे स्थानों पर रहने से मक्खियों और मच्छरों से रक्षा करनी भी जरूरी है। मक्खियां तथा मच्छर बीमारी की जड़ हैं अः रोगों से बचने और स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए घर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
घर की स्वच्छता मुख्यतः दो बातों पर निर्भर होती है
भीतरी स्वच्छता-
• भीतरी स्वच्छता से अभिप्राय है घर में विभिन्न कमरों की स्वच्छता सभी कमरों तथा रसोईघर की सफाई प्रतिदिन की जानी चाहिए। घर में एक कूड़ेदान या ढक्कनदार दोन का प्रबन्ध होना चाहिए जिससे सफाई करने के पश्चात् घर का सारा कूड़ा उस कूड़ेदान में फेंका ज सके।
• रसोईघर के कूड़े को एक डोल व किसी अन्य वर्तन में इकट्ठा कर लेना चाहिए जिसको बाद में दूसरे बड़े कूड़ेदान में, जो सारे घर का कूड़ा एकत्र करने के लिए रखा गया हो, डाला जा सकता है। यह कूड़ा किसी सड़क या अन्य स्थान पर नहीं फेंकना चाहिए बल्कि एक निर्धारित स्थान पर एकत्र करके बाद में जलाया जा सकता है।
• रसोईघर के दरवाजों तथा खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए। खाने-पीने की वस्तुओं को सदा ढक कर रखना चाहिए। खाना बनाने के एकदम बाद ही उस स्थान को साफ कर देना चाहिए। एक और बात ध्यान देने योग्य है कि हमें अपने खाना खाने वाले बर्तनों को मिट्टी आदि से साफ़ नहीं करना चाहिए क्योंकि उनमें रोगाणुओं के होने की सम्भावना होती है।
• इसके अतिरिक्त पानी के समुचित निकास के लिए घर के भीतर पक्की नालियां होनी चाहिए। ये नालियां ढकी हुई होनी चाहिए तथा इनमें प्रतिदिन फिनायल डालते रहना चाहिए जिससे उनमें से दुर्गन्ध न आए। इन नालियों का गली की नालियों से सम्बन्ध होना भी आवश्यक है।
• घर की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए घर के सामान को कभी-कभी धूप भी लगवाते रहना चाहिए। इससे मक्सी, मच्छर आदि को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि कमरों के फर्श फिनायल के बोल से साफ करना आवश्यक है।
आस-पास की स्वच्छता
• अपने घर के आस-पास के स्थान को स्वच्छ रखना भी नितान्त आवश्यक है। इसका यह अर्थ नहीं कि आप अपने घर का कूड़ा किसी अन्य घर के सामने डाल दें यदि घर के बाहर कूड़ा-कर्कट पड़ा रहेगा तो मक्खियां तथा मच्छर घर में प्रवेश कर जायेंगे और इनसे छुटकारा पाना कठिन हो जाएगा।
• इसलिए घर की सफाई के बाद सारे कूड़े को एक ढक्कनदार कूड़ेदान में डाल देना चाहिए। यदि घर के आस-पास कोई गड्ढे हों तो उनमें मिट्टी भरवा देनी चाहिए। घर के आस-पास गली में कूड़े-कबंट के ढेर न लगने पाएं समय-समय पर कूड़े को तुरन्त उठवा देना चाहिए।
• इस प्रकार हम देखते हैं कि हमें अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए तथा घर को आकर्षित बनाने के लिए उसको अवश्य स्वच्छ रखना चाहिए।
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