Class 10th English (Footprints without feet) Chapter – 5 Footprints Without Feet
Textbook | NCERT |
Class | 10th |
Subject | English |
Chapter | 5th |
Chapter Name | Footprints without Feet |
Category | Class 10th English Explanation In Hindi |
Medium | English |
Class 10th English (Footprints without feet) Chapter – 5 Footprints Without Feet
Chapter – 5
Footprints without Feet
Question & Answer
Footprints without Feet
An a man become invisible? This is the story of a scientist who discovers how to make himself invisible. Does he use, or misuse, his discovery? क्या कोई व्यक्ति अदृश्य हो सकता है? यह एक वैज्ञानिक की कहानी है जो खोज निकालता है कि स्वयं को अदृश्य कैसे किया जा सकता है। क्या वह अपनी खोज का सदुपयोग करता है या दुरूपयोग? |
The two boys started in surprise at the fresh muddy imprints of a pair of bare feet. What was a barefooted man doing on the steps of a house, in the middle of London? And where was the man? As they gazed, a remarkable sight met their eyes. A fresh footmark appeared from nowhere! Further footprints followed, one after another, descending the stepsand progressing down the street. The boys followed, fascinated, until the muddy impressions became fainter and fainter, and at last disappeared altogether. The explanation of the mystery was really simple enough. The bewildered boys had been following a scientist who had just discovered how to make the human body transparent. Griffin, the scientist, had carried out experiment after experiment to prove that the human body could become invisible. Finally he swallowed certain rare drugs and his body became as transparent Brilliant scientist though he was, Griffin was rather a lawless person. His landlord disliked him and tried to eject him. In revenge Griffin set fire to the house. To get away without being seen he had to remove his clothes. Thus it was that he became a homeless wanderer, without clothes, without नंगे पाँवों के कीचड़ सने ताजे पदचिह्न देखकर दो लड़के चौंक पड़े। वह नंगे पाँव वाला व्यक्ति मध्य लंदन में स्थित एक घर की सीढ़ियों पर क्या कर रहा था ? और वह व्यक्ति कहाँ था? जैसे ही उन्होंने देखा, उनकी आँखों के सामने एक विचित्र दृश्य उभरा। एक ताजा पदचिह्न प्रकट हुआ-पता नहीं कहाँ से? इसके बाद अनेक पदचिह्न बनते रहे-एक के बाद एक जो सीढ़ियों से उतरकर गली की ओर बढ़ रहे थे। लड़कों ने पीछा किया। अंततः कीचड़ सने पदचिह्न धुँधले पड़ते गए और लुप्त हो गए। इस रहस्य का स्पष्टीकरण वास्तव में बहुत सहज था। भौंचक्के लड़के एक वैज्ञानिक का पीछा कर रहे थे जिसने मानव शरीर को पारदर्शक बनाने की विधि ढूँढ ली थी। वैज्ञानिक ग्रिफिन ने प्रयोग के बाद अनेक प्रयोग किए ताकि यह सिद्ध करे कि मानव शरीर भी अदृश्य बनाया जा सकता है। अन्त में उसने कुछ दुर्लभ दवाइयाँ निगलीं तथा उसका शरीर शीशे की तरह पारदर्शी हो गया-यद्यपि वह शीशे की तरह ही ठोस भी बना रहा । ग्रिफिन, यद्यपि एक बुद्धिमान वैज्ञानिक था, फिर भी वह कानून तोड़ने वाला व्यक्ति था। उसका मकान मालिक उसे नापसन्द करता था और उसने उसे सीधा करने की कोशिश भी की। बदले में ग्रिफिन ने उसके घर को आग लगा दी। बिना और दिखे भागने के लिए उसे अपने कपड़े उतारने पड़े। इस प्रकार वह बेघर घुमक्कड़ हो गया, जो वस्त्रहीन था, धनहीन था, बिल्कुल अदृश्य-और ऐसा तब तक रहा जब तबी क उसके पाँव किसी कीचड़ में पड़े और चलते-चलते उसके पाँव के निशान बनने लगे थे। |
He escaped easily enough from the boys who followed his footprints in London. But his adventures were by no means over. He had chosen a bad time of the year to wander about London without clothes. It was mid-winter. The air was bitterly cold and he could not do without clothes. Instead of walking about the streets he decided to slip into a big London store for warmth. Closing time arrived, and as soon as the doors were shut Griffin was able to give himself the pleasure of clothing and feeding himself without regard to expense. He broke open boxes and wrappers and fitted himself out with warm clothes. Soon, with shoes, an overcoat and a wide-brimmed hat, he उसने उन पीछा कर रहे लड़कों से अपने आपको आसानी से बचा लिया। लेकिन उसके दुस्साहसपूर्ण कार्य अभी पूरे न ‘हुए थे। बिना कपड़े लन्दन में घूमने के लिए उसने वर्ष का बुरा समय चुना था। यह अर्द्ध-सर्दी थी। वायु काफी ठण्डी थी और वह बिना कपड़ों के रह नहीं सकता था। गलियों में भटकने की बजाए उसने गरमाहट लेने के लिए विशाल लन्दन स्टोर में घुसने का निर्णय किया। बन्द होने का समय हो गया, और जैसे ही दरवाजे बन्द किए गए ग्रिफिन को बिना धन खर्च किए वस्त्र पहनने तथाखाने-पीने का आनन्द लेने का मौका मिल गया। उसने डिब्बे खोले, लिफाफे फाड़ डाले तथा अपने आपको गर्म कपड़ों में सज्जित किया। शीघ्र ही, जूतों सहित एक ओवरकोट तथा चौड़ी पट्टी का टोप पहनकर वह पूर्ण रूप से सजीला तथा दृश्य व्यक्ति बन गया। रेस्ट्रों के रसोईघर में उसे ठण्डा माँस तथा कॉफी मिली और खाने के पश्चात् उसने मिठाइयाँ खाईं तथा पंसारी के सामान से शराब लेकर पी डाली। अन्ततः वह रजाइयों के एक ढेर पर सो गया। |
If only Griffin had managed to wake up in good time all might have been well. As it was, he did not wake up until the assistants were already arriving next morning. When he saw a couple of them approaching, he panicked and began to run. They naturally gave chase. In the end he was able to escape only by quickly taking off his newly-found clothes. So once more he found himself invisible but naked in the chill January air. This time he decided to try the stock of a theatrical company in the hope of finding not only clothes but also something that would hide the empty space above his shoulders. Shivering with cold he hurried to Drury Lane, the centre of the theatre world. He soon found a suitable shop. He made his way, invisible, upstairs and came out a little later wearing bandages round his forehead, dark glasses, false nose, big bushy side-whiskers, and a large यदि ग्रिफिन समय से उठ पाता तो सब कुछ ठीक-ठाक रहता। चूँकि अगली सुबह जब सहायकों ने स्टोर में प्रवेश किया तो उसकी आँखें खुलीं। जब उसने दो सहायकों को अपनी ओर आते देखा, तो उसे घबराहट हुई और उसने दौड़ना शुरू किया। स्वाभाविक रूप से उन्होंने उसका पीछा किया। अन्त में वह अपने प्राप्त किए नए वस्त्रों को शीघ्रता से उतार कर फेंकने पर ही बच निकलने में कामयाब रहा। अतः एक बार फिर उसने अपने आपको अदृश्य पाया परन्तु वह जनवरी की ठिठुरती सर्दी में पूर्ण नग्न था। इस बार उसने एक नाटक कम्पनी के भण्डार को आजमाने का निर्णय लिया ताकि उसे वहाँ केवल कपड़े ही न मिलें बल्कि कंधों के ऊपर के नंगे भाग को ढकने का सामान भी मिल जाए। ठण्ड से काँपते हुए वह ड्ररी लेन की ओर शीघ्रता से बढ़ गया जो नाटक की दुनिया का केन्द्र थी। उसने शीघ्र ही एक उपयुक्त दुकान खोज निकाली। वह अदृश्य रूप में ही सीढ़ियाँ चढ़ गया और थोड़ी देर बाद अपने माथे पर पट्टी बाँधे, काला चश्मा, नकली नाक, बड़ी-घनी गलमूँछें लगाए तथा एक बड़ा-सा टोप पहने बाहर आया। बिना दिखे भाग जाने की ललक से उसने दुकानदार पर पीछे से निर्दयतापूर्ण हमला किया, उसके बाद उसका सारा धन लूटा, जितना भी |
Eager to get away from crowded London he took a train to the village of Iping, where he booked two rooms at the local inn. The arrival of a stranger at an inn in winter was in any case an unusual event. A stranger of such uncommon appearance set all tongues wagging. Mrs. Hall, the landlord’s wife, made every effort to be friendly. But Griffin had no desire to talk, and told her, “My reason for coming to Iping is a desire for solitude. I do not wish to be disturbed in my work. Besides, an accident has affected my face.” Satisfied that her guest was an eccentric scientist, and in view of the fact that he had paid her in advance, Mrs. Hall was prepared to excuse his strange habits and irritable temper. But the stolen money did not last long, and presently Griffin had to admit that he had no more ready cash. He pretended, however, that he was expecting a cheque to arrive at any moment. Shortly afterwards a curious episode occurred. Very early in the morning a clergyman and his wife were awakened by noises in the study. Creeping downstairs, they heard the chink of money being taken from the clergyman’s desk. Without making any noise and with a poker grasped firmly in his hand, the clergyman flung open the door. भीड़ भरे लन्दन से दूर भागने को उत्सुक उसने आइपिंग गाँव के लिए रेलगाड़ी पकड़ी, जहाँ उसने एक स्थानीय साय में दो कमरे किराए पर ले लिए। सर्दी की ऋतु में किसी सराय में किसी अजनबी के पहुँचने की यह एक असाधारण घटना थी। असाधारण आकृति वाले उस अजनबी के बारे में सभी तरह-तरह की बातें करने लगे। सराय के मालिक की पत्नी श्रीमती हॉल ने उससे दोस्ती करने की हर सम्भव कोशिश की, परन्तु ग्रिफिन ने बात करने की इच्छा जाहिर न की और उसे बताया, “मेरा आइपिंग आने का केवल कारण एकान्त चाहना भर है। मैं नहीं चाहता कि कोई मेरे कार्य में हस्तक्षेप करे। इसके अतिरिक्त, एक दुर्घटना ने मेरे चेहरे को प्रभावित किया है।” इस बात से सन्तुष्ट होकर कि उसका अतिथि एक सनकी वैज्ञानिक है, और इस बात को ध्यान में रखकर कि उसने किराया उसे पहले ही दे दिया था, श्रीमती हॉल उसकी विचित्र बातों तथा चिड़चिड़े स्वभाव को माफ करने को तैयार हो गई। परन्तु उसका चुराया हुआ धन अधिक देर तक न चल सका और जल्दी ही ग्रिफिन को बताना पड़ा कि उसके पास नगदी नहीं थी। उसने बहाना बनाया, कि उसे शीघ्र ही एक चैक आने की आशा थी। इसके थोड़ी देर बाद एक विचित्र घटना घटी। एक सुबह-सवेरे पादरी तथा उसकी पत्नी अध्ययन कक्ष में शोर सुनकर जागे। सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए, उन्होंने पादरी की मेज से निकाले जा रहे धन की आवाज सुनी। बिना कोई आवाज किए तथा हाथ में मजबूती से झाड़ू पकड़कर पादरी ने दरवाजा धड़ाम से खोल दिया। “हथियार डाल दो !” |
Then to his amazement he realised that the room appeared to be empty. He and his wife looked under the desk, and behind the curtains, and even up the chimney. There wasn’t a sign of anybody. Yet the desk had been opened and the housekeeping money was missing. “Extraordinary affair!” the clergyman kept saying for the rest of the day. All of a sudden Mrs. Hall heard a sniff close to her ear. A moment later the hat on the bedpost leapt up and dashed itself into her face. Then the bedroom chair became alive. Springing into the air it charged straight at her, legs foremost. As she and her husband turned away in terror, the extraordinary chair pushed them both out of the room and then appeared to slam and lock the door after them. उसे आश्चर्य हुआ कि कमरा खाली प्रतीत होता था। वह और उसकी पत्नी ने मेज के नीचे, पर्दों के पीछे तथा चिमनी के ऊपर सभी जगह देखा। कहीं किसी का भी कोई चिह्न न था। फिर भी डेस्क खोला गया था और घर के खर्च के लिए रखी गई धनराशि गायब थी। “असाधारण मामला है !” पादरी सारा दिन यह कहते सुना गया। परन्तु यह उतना असाधारण मामला न था जितना कि थोड़ी देर के बाद श्रीमती हॉल के कमरे के फर्नीचर की स्थिति हुई। सराय का मालिक तथा उसकी पत्नी सुबह-सवेरे जागे और उन्हें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वैज्ञानिक का दरवाजा चौपट खुला था। साधारणतया यह बन्द रहता था और ताला लगा रहता था और यदि कोई उसके कमरे में प्रवेश करता तो वह गुस्से में आ जाता था। मौका इतना अच्छा था कि वे इसे गँवाना नहीं चाहते थे। उन्होंने दरवाजे से झाँका, कोई न था और अन्दर घुसकर निरीक्षण करने का निर्णय किया। पलंग पर बिछे वस्त्र ठण्डे थे- जो यह दिखाते थे कि वैज्ञानिक बहुत समय पूर्व ही जाग गया था, और आश्चर्य की बात इतनी थी कि कपड़े तथा पट्टियाँ जो वह हमेशा पहने रहता था -कमरे में इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं। अचानक श्रीमती हॉल ने अपने कान के पास छींक सुनी। एक क्षण के पश्चात बिस्तर की खूंटी से टोप उछला और सीधा उसके चेहरे पर आ टकराया। तब कमरे की कुर्सी सजीव हो उठी। वायु में झूलते हुए उसने सीधे उसकी अगली टांगों पर वार किया। ज्योंहि वह तथा उसका पति डर में पीछे मुड़े, उस असाधारण कुर्सी ने उन्हें कमरे से बाहर धकेल दिया और तब, उसके बाद, धड़ाम से दरवाजा बन्द हुआ और ताला लगा दिया गया। |
Mrs. Hall almost fell down the stairs in hysterics. She was convinced that the room was haunted by spirits, and that the stranger had somehow caused these to enter into her furniture. “My poor mother used to sit in that chair,” she moaned. “To think it should rise up against me now!” The feeling among the neighbours was that the trouble was caused by witchcraft. But witch craft or not, when news of the burglary at the clergyman’s home became known, the strange scientist was strongly suspected of having had a hand in it. Suspicion grew even stronger when he suddenly produced some ready cash, though he had admitted not long before that he had no money. The village constable was secretly sent for. Instead of waiting for the constable, Mrs. Hall went to the scientist, who had somehow mysteriously appeared from his empty bedroom. “I want to know what you have been doing to my chair upstairs,” she demanded. “And I want to know how it is you came out of an empty room and how you entered a locked room.” श्रीमती हॉल लगभग बेहोश-सी होकर सीढ़ियों पर गिर सी पड़ी। उसे विश्वास हो गया था कि कमरे में भूत-प्रेत का वास था और उस अजनबी ने किसी तरह उनको उनके फर्नीचर में प्रवेश कर दिया था। “मेरी माँ इस कुर्सी पर बैठा करती थी,” उसने कराहते हुए कहा, “कि यही कुर्सी उसके विरुद्ध खड़ी हो गई थी, अब !” पड़ोसियों के मध्य यह भावना जागृत हुई कि यह मुसीबत किसी भूतनी द्वारा लाई गई है। जादू-टोने की बात छोड़कर जब पादरी के घर की डकैती की खबर आम हुई तो यह सन्देह किया जाने लगा कि उसमें अजनबी वैज्ञानिक का ही हाथ है और यह सन्देह तब प्रगाढ़ हो गया, जब उसने कुछ नकदी पेश की, जबकि वह पहले ही यह स्वीकार कर चुका था कि उसके पास नकदी नहीं थी। गाँव के सिपाही को गुप्त रूप से बुलावा भेजा गया। सिपाही का इन्तजार किए बिना श्रीमती हॉल सीधे वैज्ञानिक के पास पहुँची, जो अपने खाली शयनकक्ष में रहस्यमय ढंग से प्रकट हो चुका था । “मैं जानना चाहती हूँ कि तुम मेरी कुर्सी के साथ क्या कर रहे थे ऊपर,” उसने माँग की। “और मैं यह भी जानना चाहती हूँ कि तुम एक खाली कमरे में किस प्रकार प्रकट हुए और किस प्रकार ताला बंद कमरे में प्रविष्ट हुए।” |
The scientist was always quick-tempered; now he became furious. Mr. Jaffers, the constable, now arrived, and was quite surprised to find that he had to arrest a man without a head. But Jaffers was not easily prevented from doing his duty. If a magistrate’s warrant ordered a person’s arrest, then that person had to be arrested, with or without his head. There followed a remarkable scene as the policeman tried to get hold of a man who was becoming more and more invisible as he threw off one garment after another. Finally a shirt flew into the air, and the constable found himself struggling with someone he could not see at all. Some people tried to help him, but found themselves hit by blows that seemed to come from now here. In the end Jaffers was knocked unconscious as he made a last attempt to hold on to the unseen scientist. There were nervous, excited cries of “Hold him!” But this was easier said than done. Griffin had shaken himself free, and no one knew where to lay hands on him. वैज्ञानिक को हमेशा जल्दी ही क्रोध आ जाता था। वह क्रोध में भड़क उठा। एकाएक उसने अपनी पट्टियाँ, गलमूँछें ऐनक तथा नाक तक उतार फेंके। उसे ऐसा करने में केवल मिनट भर लगा। बाद में भौंचक्के लोगों ने देखा कि वे एक सिरविहीन व्यक्ति को घूर रहे थे। पुलिस सिपाही मि. जैफर्स पहुँचा, और उसे जानकर यह आश्चर्य हुआ कि उसे बिना सिर के एक व्यक्ति को गिरफ्तार करना था। परन्तु जैफर्स को अपना कर्त्तव्य करने से आसानी से रोका नहीं जा सकता था। यदि एक न्यायाधीश ने एक व्यक्ति को पकड़ने का वारन्ट दिया था, तब उस व्यक्ति को पकड़ा ही जाना था, भले ही वह सिर रहित हो या सिर सहित। उसके बाद एक विस्मयकारी दृश्य उभरा जब सिपाही ने उस व्यक्ति को पकड़ने की कोशिश की जो अधिक और अधिक अदृश्य होता जा रहा था जैसे-जैसे वह अपने कपड़े एक एक करके उतार कर फेंक रहा था। अन्त में एक कमीज हवा में उड़ती दिखाई दी, और सिपाही ने अपने आपको उस अदृश्य व्यक्ति को पकड़ने के लिए संघर्षरत पाया। कुछ लोगों ने उसकी सहायता “उसे पकड़ो !” नामक घबराहट भरी तथा उत्तेजनापूर्ण चीखें उभरी थीं। परन्तु यह कहना सहज था और करना कठिन। ग्रिफिन ने अपने आपको मुक्त कर लिया था और कोई नहीं जानता था कि उसे किस प्रकार पकड़ा जाए। |
Word – Meaning
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