NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 5 सत्य Question & Answer

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 5 सत्य

TextbookNCERT
Class 12th
Subject Hindi
Chapter5th
Grammar Nameसत्य
CategoryClass 12th Hindi अंतरा
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 5 सत्य Question & Answer इस में हम पढेंगें कविता का महत्व क्या है?, कविता की विशेषता क्या है?, कविता में क्या वर्णित है?, कविता के कितने अंग होते हैं?, कविता का मुख्य बिंदु क्या है?, कविता को हिंदी में क्या कहते हैं?, कविता कैसे बनती है?, कविता का पहला उपकार क्या है?, कविता का मूल भाव क्या है?, काव्य कितने प्रकार के होते हैं?, कविता की विधाएँ कितनी होती है?, कविता क्यों लिखते हैं?

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 5 सत्य 

Chapter – 5

सत्य

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है? युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं- महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।
उत्तर – सत्य यदि पुकारने से मिल जाता, तो आज असत्य का बोलबाला नहीं होता। सत्य पुकारने से नहीं अपितु सत्य का आचरण करने, दृढ़ निश्चय तथा उसका सामना करने से मिलता है। उसके लिए लोगों को कठिन संघर्ष से गुजरना पड़ता है। जैसे धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था। उन्होंने संपूर्ण जीवन सत्य का आचरण किया तथा सत्य को अपना धर्म समझा। यही कारण था कि वह धर्मराज कहलाए। धर्मराज कहलाने से पूर्व युधिष्ठिर भी सत्य को जानने के लिए मारे-मारे फिर रहे थे। विदुर ने उन्हें यह मार्ग दिखलाया था। जब युधिष्ठिर को ज्ञात हुआ कि विदुर सत्य के मार्ग से परिचित है, तो वह उनके पीछे हो लिए। वे विदुर के मुख से सत्य के विषय में सुनना चाहते थे। परन्तु विदुर उन्हें यह बताने से भाग रहे थे। महाभारत में विदुर एकमात्र ऐसे पात्र थे, जो विद्वान तथा महाज्ञानी थे। वह नीति-अनीति से परिचित थे। परन्तु कौरवों के प्रति उनकी निष्ठा ने उनके मुँह में पट्टी बाँध दी थी। उनके अतिरिक्त सत्य का सही ज्ञान किसी और को नहीं था। विदुर जानते थे कि सत्य का मार्ग बड़ा ही कठिन है। वे स्वयं को बहुत संतुलित रखते हुए इस मार्ग में बढ़ रहे थे। युधिष्ठिर के दृढ़ निश्चय के आगे उन्हें घुटने टेकने पड़े और वह वहीं रुक गए। जैसे ही युधिष्ठिर की आँखें विदुर की आँखों से मिली सत्य का ज्ञान रूपी प्रकाश उनकी अंतरात्मा में उतर गया और उनकी आत्मा भी उसके प्रकाश से प्रकाशित हो गई। अर्थात युधिष्ठिर को भी सत्य की महिमा का ज्ञान हो गया।
प्रश्न 2. सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – सत्य स्वयं में एक प्रबल शक्ति है। उसे दिखने से कोई नहीं रोक सकते हैं परन्तु यदि परिस्थितियाँ इसके विरोध में आ जाएँ, तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाता है। सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना संभव नहीं है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं है। यही कारण है कि यह स्थिर नहीं रह पाता और यही सबसे बड़े दुख की बात भी है। लोग अपने स्वार्थ के लिए सत्य को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं। उनके कारण सत्य कहीं ओझल हो जाता है और रह जाता है, तो असत्य। सत्य तभी प्रकट होता है, जब दृढ़तापूर्वक उसका आचरण किया जाता है या उस पर अडिग रहा जाए। युधिष्ठिर उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ा।
प्रश्न 3. सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – सत्य और संकल्प में भक्त और भगवान के समान संबंध है। जैसे भक्त के बिना भगवान और भगवान के बिना भक्त का कोई अस्तित्व नहीं होता, वैसे ही सत्य के मार्ग में बढ़ते हुए यदि मनुष्य में संकल्प शक्ति की कमी है, तो सत्य तुरंत दम तोड़ देता है। सत्य का मार्ग बहुत कठिन और संघर्ष युक्त है। सत्य का आचरण करना लोहे के चने चबाने के समान है। इस पर चलते हुए विरोधों तथा विरोधियों का सामना करना पड़ता है। लोगों की प्रताड़ना तथा उलाहनाओं को भी झेलना पड़ता है। आज के युग में लोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए अधर्म तथा अनीति का सहारा लेते हैं। ऐसे में सत्य के लिए कोई स्थान नहीं है क्योंकि अधर्म तथा अनीति में असत्य फलता-फूलता है। परन्तु जो लोग दृढ़ संकल्प होकर इस मार्ग में बढ़ते हैं, सत्य का परचम वहाँ सदैव लहराता रहता है। उनके रहते सत्य दिनोंदिन प्रगति करता हुआ अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करता है। अत: सत्य और संकल्प में घनिष्ट संबंध है।
प्रश्न 4. ‘युधिष्ठिर जैसा संकल्प’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – युधिष्ठिर जैसा संकल्प से तात्पर्य है: सत्य के मार्ग पर अडिग होकर चलने की शक्ति। युधिष्ठिर ने अपने जीवन में सत्य का मार्ग चुना था। इसके लिए उन्होंने विदुर तक को अपने सम्मुख झुकने पर विवश कर दिया था। वे उम्रभर इस मार्ग पर ही नहीं चले बल्कि उन्होंने इसे अपने आचरण में भी आत्मसात किया। उन्होंने कठिन से कठिन समय में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। इसी कारण उन्होंने कष्टों को गले लगाया तथा अपनो का विरोध सहा। परन्तु फिर भी वह दृढ़तापूर्वक इस मार्ग पर बढ़ते चले गए तथा धर्म की स्थापना की। अपने दृढ़ संकल्प के कारण ही उन्हें धर्मराज की उपाधि से नवाज़ा गया। उनका जैसा संकल्प महाभारत के इतिहास में अन्य किसी और में देखने को नहीं मिलता है।
प्रश्न 5. सत्य की पहचान हम कैसे करें? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – कविता के अनुसार सत्य हमारे अंतकरण में विद्यमान होता है। उसे खोजने के लिए हमें अपने भीतर झाँकना आवश्यक है। सत्य के प्रति हमारे मन में संशय उत्पन्न हो सकता है परन्तु यह संशय हमारे भीतर व्याप्त सत्य को धूमिल नहीं कर पाता। हमें सदैव परिस्थिति, घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए सत्य को पहचानना चाहिए। मनुष्य परिस्थिति तथा घटनाक्रमों के अनुसार सत्य-असत्य के मध्य फंसा रहता है। जो स्वयं को इस स्थिति से निकालकर सत्य के स्वरूप को पहचानकर अडिग होकर इस मार्ग पर चलता है, वही सत्य के समीप पहुँच पाता है। सत्य का स्वभाव स्थिर नहीं है, उसे हमारे द्वारा स्थिरता प्रदान की जाती है। हम यदि उसे संकल्पपूर्वक अपने जीवन में व्यवहार में लाते हैं, तो इसका तात्पर्य है कि हमने सत्य को पहचान लिया है।
प्रश्न 6. कविता में बार-बार प्रयुक्त ‘हम’ कौन है और उसकी चिंता क्या है?
उत्तर – कविता में हम शब्द ऐसे लोगों का सूचक है, जो सारी उम्र सत्य की खोज के लिए मारे-मारे फिरते हैं। वे सत्य को पहचानना तथा जानना चाहते हैं। उनकी मुख्य चिंता यह है कि वे सत्य का स्थिर रूप-रंग और पहचान नहीं खोज पा रहे हैं। यदि वे इन्हें खोज लेते हैं, तो वे सत्य को स्थायित्व प्रदान कर सकेगें। परन्तु सत्य की पहचान और स्वरूप तो घटनाओं, स्थितियों तथा लोगों के अनुरूप बदलती रहती है। कहीं पर वे किसी के लिए सत्य है, तो कहीं पर किसी के लिए कुछ भी नहीं। हम इसी चिंता में ग्रस्त होकर उसकी पहचान पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। परन्तु हर बार उनको निराशा हाथ लग रही है।
प्रश्न 7. सत्य की राह पर चल। अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़। इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।
उत्तर – कवि कहता है कि मनुष्य को सच्चाई की राह पर चलना चाहिए। इसी से उसका भला होता है। यही बात इस कविता में कही गई है। आज सत्य का निश्चित रूप नहीं है। सत्य के प्रति संशय बढ़ गया है, परंतु इसके बावजूद यह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है। इसी आंतरिक शक्ति के आधार पर व्यक्ति जीवन में कुछ कर पाता है।

योग्यता- विस्तार

प्रश्न 1. आप सत्य को अपने अनुभव के आधार पर परिभाषित कीजिए।
उत्तर – सत्य को कोई भी परिभाषित करे लेकिन सत्य हमेशा सही ही होता है। सत्य की हमारे जीवन में अहम भूमिका है। हमें हमेशा सत्य के रास्ते पर चलना चाहिए। हर व्यक्ति अपने जीवन में यही पाता है कि अगर वह सत्य के साथ रहता है तो सदैव ही आगे बढ़ता है और उसे सम्मान भी मिलता है। मैंने भी अपने जीवन में यही अनुभव किया है। सत्य का राह हो सकता है कि कठिन हो लेकिन अंत में जरूर सत्य की जीत होती है। एक बार किसी ने मुझे झूठे केस में फंसाने कि कोशिश की थी लेकिन मैं जानता था कि मैं सही हूं इसलिए मैं घबराया नहीं और अंत में उस केस में मेरी जीत हुई।
प्रश्न 2. आज़ादी के बाद बदलते परिवेश का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करने वाली कविताओं का संकलन कीजिए तथा एक विद्यालय पत्रिका तैयार कीजिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 3. ‘ईमानदारी और सत्य की राह आत्म सुख प्रदान करती है’ इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए।
उत्तर – ‘ईमानदारी और सत्य की राह आत्म सुख प्रदान करती है’ यह बात बहुत अच्छी कही गई है। एक बेईमान और झूठ बोलने वाला व्यक्ति सफलता की सीढ़िया चढ़ सकता है, इस तरह वह धनवान बन सकता है परन्तु अपने हृदय में वह कभी सुखी नहीं रह पाता। उसका मन उसे धिक्कारता रहता है। वह लोगों से कितना छुपाए परन्तु उसकी आँच हमेशा उसे हृदय में जलाती रहती है। इसका उदाहरण हम अपने जीवन में देख सकते हैं। यदि हम अपने स्वार्थ के लिए किसी से झूठ बोलते हैं, तो हम स्वयं को कचोटते रहते हैं। हर समय यह डर लगा रहता है कि कहीं हमारी पोल न खुल जाए। इसके विपरीत जब हम ईमानदारी से सत्य के साथ अपनी बात कहते हैं, तो सुनने वालों को वह कड़वी अवश्य लगती है लेकिन हम स्वयं अपने हृदय में प्रसन्न होते हैं और किसी प्रकार का भय हमें भयभीत नहीं कर पाता। सत्य बोलने वालों का जीवन सरल हो जाता है। सत्य उन्हें ईमानदारी की भावना की ओर प्रवृत करता है। इन दोनों भाव से जीवन में शांति और आत्म सुख प्रदान होता है। गांधी जी ने पूरी ईमानदारी और सत्य से अपना कर्तव्य निभाया था। यही कारण है कि आज लोगों द्वारा उन्हें पूजा जाता है।
प्रश्न 4. गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ की कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर – महात्मा गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ गांधीजी ने अपने जीवन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करते हुए सत्य पर आधारित उनके प्रयोगों के बारे में बताया है। गांधीजी ने यह किताब मूलतः गुजराती भाषा में लिखी थी और यह विश्व की अनेक भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। ये पुस्तक विश्व की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने ईश्वर को समझने और समझाने का प्रयास किया है।
प्रश्न 5. ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ फ़िल्म पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ एक मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षाप्रद फ़िल्म है। यह गाँधी जी के मूल्यों उनके विचारों को व्यक्त करती हुई हमारी आँखों पर लगी झूठ और बेईमानी की पट्टी को उतार देती है। यह हमें सोचने पर विवश करती है कि गाँधी जी के मूल्यों तथा सिद्धान्तों को हमने भूला दिया है। इस फ़िल्म के निर्देशक ने अहिंसा, ईमानदारी और सत्य के मूल्यों की विशेषता तथा जीवन में उनके महत्व को उजागर किया है। यह फ़िल्म हमारा मार्गदर्शन करती है। संजय दत्त और अरशाद वारसी ने मुन्नाभाई तथा सरकिट के रूप में फ़िल्म में जान डाल दी है। एक ऐसा व्यक्ति जो झूठ, बेईमानी, मारपीट, दादगिरि इत्यादि में विश्वास रखता है और समाज में गुंडे के रूप में विख्यात है। वह अचानक कैसे गाँधी जी के द्वारा बताए अहिंसा, सत्य और ईमानदारी के सिद्धान्तों पर चलता हुआ आगे बढ़ता है। उसे इस मार्ग पर चलते हुए बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है मगर वह इससे हटता नहीं है। वह बढ़ता चला जाता है और सफल होता है।
प्रश्न 6. कविता में आए महाभारत के कथा-प्रसंगों को जानिए।
उत्तर – कविता में आया महाभारत का एक कथा-प्रसंग इस प्रकार है– कौरव और पांडव चचेर भाइयों में जब राज्य का बँटवारा हुआ तो बसा-बसाया एवं सुसज्जित इंद्रस्थ कौरवों को और ऊबड़-खाबड़ जंगली भाग खांडवप्रस्थ पांडवों को मिला। इसी अन्याय को बताने के लिए युधिष्ठिर विदुर को पुकार रहे थे, पर इस अन्याय का विरोध करने का साहस विदुर में न था। युधिष्ठि से पीछा न छूटता देख विदुर एक पेड़ से पीठ टिकाकर खड़े हो गए, परंतु कुछ बोल न सके। वे युधिष्ठिर को अपलक देखते रहे। युधिष्ठिर विदुर से सत्य का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे। युधिष्ठिर ने आत्मज्ञान से सत्य का ज्ञान प्राप्त कर लिया और वापस जाकर सोचने लगे कि यदि विदुर चाहते तो सत्य का ज्ञान वहीं दे सकते थे।

NCERT Solutions Class 12th हिंदी अंतरा Chapter – 5 विष्णु खरे