NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 3 मैंने देखा एक बूँद Question & Answer

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 3 मैंने देखा एक बूँद

TextbookNCERT
Class Class 12th
Subject Hindi
ChapterChapter – 3
Grammar Nameमैंने देखा एक बूँद
CategoryClass 12th  Hindi अंतरा  
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 3 मैंने देखा एक बूँद Question & Answer  इस में हम पढ़ेंगे सबसे लंबा द्वीप कौन है?, बोर्नियो दुनिया में कहां है?, मुंबई कौन से द्वीप पर बसा हुआ है?, भारत का अंतिम द्वीप कौन सा है?, हैवलॉक द्वीप कहाँ पर है?, छोटा द्वीप देश कौन सा है?, भारत में कितने छोटे द्वीप हैं?, दूसरा सबसे बड़ा द्वीप कौन है?, क्या पोर्ट ब्लेयर में रहना महंगा है?, हैवलॉक में कितने दिन काफी हैं?, स्वराज द्वीप का नाम किसने रखा?

NCERT Solutions Class 12th Hindi अंतरा Chapter – 3 मैंने देखा एक बूँद

Chapter – 3

मैंने देखा एक बूँद

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. ‘सागर’ और ‘बूँद’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर – ‘सागर’ से कवि का आशय समाज से है तथा ‘बूँद’ का आशय एक मनुष्य से है। अनगिनत बूँदों के कारण सागर का निर्माण होता है। यहाँ सागर समाज है और बूँद एक मनुष्य है। मनुष्य इस समाज में रहकर अस्तित्व पाता है और समाज उसे अपनी देख-रेख में एक सभ्य मनुष्य बनाता है। दोनों का संबंध परस्पर संयोग से बनाता है। दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। कवि इनका संबंध सागर और बूँद के रूप में स्पष्ट करके उनकी संबंध की प्रगाढ़ता को दर्शाता है।
प्रश्न 2. ‘रंग गई क्षणभर, ढलते सूरज की आग से’- पंक्ति के आधार पर बूँद के क्षणभर रंगने की सार्थकता बताइए।
उत्तर – पानी की बूँद समुद्र से ऊपर छँलाग मारती है। वह क्षणभर के लिए समुद्र से अलग हो जाती है, उस समय उस पर अस्त होते सूर्य की किरणें पड़ती हैं। उसके कारण वह सोने के समान रंग वाली हो जाती है। वह सोने के रंग में क्षणभर के लिए चमकती है मगर उस थोड़े समय में वह अपना महत्व दर्शा जाती है अर्थात अपनी सार्थकता बता जाती है।
प्रश्न 3. ‘सूने विराट के सम्मुख……………दाग से!’- पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इस संसार में हर वस्तु नश्वर है। तात्पर्य है कि हर वस्तु को एक दिन समाप्त हो जाना है। इस के डर से मनुष्य भयभीत रहता है। मगर जब बूँद सागर से क्षणभर के लिए अलग होती है, तो उसे नष्ट होने का डर समाप्त हो जाता है। मुक्ति का अहसास उसके हृदय में भर जाता है। यह वह क्षण होता है, जब वह स्वयं के जीवन को या अस्तित्व को सार्थक कर देती है। मधुर मिलने से प्राप्त प्रकाश इस कलंक को धो डालता है कि मनुष्य जीवन भी एक दिन समाप्त हो जाएगा। प्रकाशित वह क्षण ही उसके जीवन को सार्थकता प्रदान कर देती है। कवि उस बूँद में उस विशालता के दर्शन के करता है, जो उसे सागर की अथाह जल राशि को देखकर भी प्राप्त नहीं होता है। उस अहसास होता है कि वह अपने समाप्त होने वाले शरीर से भी ऐसे कार्य कर सकता है, जो उसके छोटे से जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। वह ऐसा साधक बन जाता है, जिसे सभी पापों से छुटकारा मिल गया है।
प्रश्न 4. ‘क्षण के महत्व’ को उजागर करते हुए कविता का मूल भाव लिखिए।
उत्तर – यह कविता मनुष्य को क्षण का महत्व बताती है। कवि चाहता है कि मनुष्य द्वारा स्वार्थहित से स्वयं को हटाकर व्यष्टि का समष्टि में विलय कर देना चाहिए। इस संसार में विद्यमान प्रत्येक व्यक्ति दुखी है। अतः हमें चाहिए कि मिलकर लोगों के दुखों को दूर करने का प्रयास करें। इसी तरह एक बूँद सागर से अलग होकर क्षण भर में सूर्य के प्रकाश से चमक उठती है। यह हमें सीख देता है कि इस विशाल संसार में मनुष्य अपने नश्वर शरीर के साथ भी स्वयं के छोटे-से जीवन को सार्थक कर सकता है। यह क्षण ही तो है, जो उसे स्वयं को सार्थक करने के लिए अवसर प्रदान करता है। इसी क्षण के कारण वह समुद्र रूपी संसार में बूँद के समान होते हुए भी सूर्य की चमक से स्वयं को चमका जाता है। उसकी क्षण भर की चमक लोगों को प्रेरित करती है। वह नश्वरता के कलंक से आज़ाद हो जाता है। क्षण उसके जीवन में विशेष महत्व रखता है।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. अज्ञेय की कविताएँ ‘नदी के द्वीप’ व ‘हरी घास पर क्षणभर’ पढ़िए और कक्षा की भित्ति पत्रिका पर लगाइए।
उत्तर – संदर्भ – ‘मैंने देखा एक बूंद‘ कविता की पंक्तियो को कवि अज्ञेय द्वारा प्रस्तुत किया गया है इसमें अज्ञेय जी ने ‘नदी के द्वीप’ तथा ‘हरी घास पर क्षणभर’ कृत्यों की विशेषता बताई है।

व्याख्या – नदी के द्वीपसे कवि काआशय है किये जो नदियांहैं, हम इन्हींनदियों की संतानेहैं, इनकी वजहसे ही हमसभी की उत्त्तिहुई है| हरि घासपर क्षणभर सेकवि का आशयहै जो हरीघास है मैदानमें वह मानवताकी तरह बिछीहुई है उसपर बैठकर प्रत्येकव्यक्ति को एकसहानुभूति सी प्राप्तहोती है।

प्रश्न 2. ‘मानव और समाज’ विषय पर परिचर्चा कीजिए।
उत्तर – मानव के जीवन में समाज का विशेष महत्व होता है। मानव ने ही समाज का निर्माण किया है। समाज में रहकर वह स्वयं का विकास करता है इसलिए उसे सामाजिक प्राणी कहा जाता है। समाज में रहकर उसकी हर प्रकार की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। उसका चरित्र निर्माण होता है। उसको अपने सुख-दुख बाँटने के लिए किसी न किसी की आवश्यकता होती है और समाज इसमें मुख्य भूमिका को निभाता है। पशु-पक्षियों का भी अपना समाज होता है। अतः हम समझ सकते हैं कि समाज कितना आवश्यक है। समाज में रहकर ही वह सभ्य कहलाता है। समाज उसके लिए उचित-अनुचित की सीमा तय करता है। उसके गलत कदमों को रोकता है तथा उसे उचित-अनुचित का ज्ञान करवाता है। जैसे यदि एक मनुष्य एक से अधिक विवाह करता है, तो समाज इसे अनैतिक बताते हुए उसे ऐसा करने से रोकता है। ऐसे बहुत से कार्य हैं, जिसे समाज द्वारा किया जाता है। समाज मानव के विकास के लिए कार्य करता है। यह ऐसी संस्था है, जो मानव द्वारा निर्मित है और मानव ही इसके अंग है। यदि इस पृथ्वी में मानव जाति का अंश न रहे, तो समाज भी नहीं रहेगा। दोनों सदियों से एक-दूसरे में मिले हुए कार्य करते आ रहे हैं।
प्रश्न 3. भारतीय दर्शन में ‘सागर’ और ‘बूँद’ का संदर्भ जानिए।
उत्तर – भारतीय दर्शन का अर्थ भारत के अंदर किसी भी संप्रदाय, धर्म, जाति आदि के द्वारा किए गए विचार-विमर्श तथा चिंतन-मनन को कहते हैं। सदियों से भारत में विभिन्न धर्म, संप्रदाय तथा जातियों का उद्भव और विकास हुआ है। इनके मध्य आत्मा-परमात्मा, जन्म-मरण, स्वर्ग-नरक, सत्य-असत्य, उचित-अनुचित, सुख-दुख इत्यादि विषयों पर चिंतन-मनन किया गया है। यह संचित ज्ञान दर्शन कहलाता है चूंकि यह भारतभूमि से संबंधित है। अत: इसे भारतीय दर्शन कहते हैं। यह मात्र हिन्दुत्व तक सीमित नहीं है। इसमें वेदों, उपनिषदों तथा आर्यों द्वारा वर्णित ज्ञान को रखना दूसरे धर्म तथा संप्रदाय के साथ अन्याय करना होगा। भारतीय दर्शन बहुत ही विशाल है। यह स्वयं सागर के समान है, जिसकी गहराई में जितने उतरते जाओ उतना ही ज्ञान भरा पड़ा है। परन्तु प्रश्न यह है कि भारतीय दर्शन में सागर और बूँद का किस संदर्भ में प्रयोग किया गया है?भारतीय दर्शनिकों ने सागर का प्रयोग संसार की विशालता, उसमें व्याप्त दुख, मोह इत्यादि को दर्शाने के लिए किया है। सागर का क्षेत्र विशाल और अनन्त है, उसमें अनगिनत जीव विद्यमान हैं, वैसे ही संसार का स्वरूप है। यह ऐसा स्थान है जहाँ आकर जीवात्मा कर्म करती हैं और उनके अनुसार फल पाती हैं। अत: भारतीय दर्शन शास्त्रियों ने संसार को सागर की संज्ञा दी है। कहीं-कहीं दुख को भी सागर के समान माना गया है। दार्शनिकों का मानना था कि सागर की तरह ही दुख का कोई अंत नहीं है। जीवात्मा दुख के दलदल में फंस कर दारूण ताप पाती है। वह मोह, वासना, प्रेम इत्यादि भावनाओं से ग्रस्त होकर जन्म-मरण के चक्र में फँसी रहती है। ‘बूँद’ को जीवात्मा या आत्मा के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। सागर (संसार) में अनगिनत बूँद (जीवात्मा) विद्यमान है। जीवात्मा संसार रूपी सागर में अपने अस्तित्व के लिए प्रयासरत रहती है। कुछ बूँद स्वयं को स्थापित कर पाती हैं और मानवता का भला करती हैं और मुक्ति को प्राप्त हो जाती हैं। परन्तु अधिकतर जीवात्मा इस संसार रूपी सागर में फंसकर जन्म-मृत्यु के चक्र को भोगती रहती हैं।

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