NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 1 राष्ट्रीय आय एवं सम्बद्ध समाहार (Introduction to Economics)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | Economics (Part – I) |
Chapter | 1st |
Chapter Name | राष्ट्रीय आय एवं सम्बद्ध समाहार (Introduction to Economics) |
Category | Class 12th Economics |
Medium | Hindi |
Source | Last doubt |
NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 1 राष्ट्रीय आय एवं सम्बद्ध समाहार (Introduction to Economics)
Chapter – 1
राष्ट्रीय आय एवं सम्बद्ध समाहार
Notes
उपभोक्ता वस्तुएँ – वे अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ जो प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता की मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट करती हैं। उपभोक्ता द्वारा क्रय की गई वस्तुएँ और सेवाएँ, उपभोक्ता वस्तुएँ हैं। |
पूँजीगत वस्तुएँ – ये ऐसी अंतिम वस्तुएँ हैं जो उत्पादन में सहायक होती हैं तथा आय सृजन के लिए प्रयोग की जाती हैं। ये उत्पादक की पूँजीगत परिसंपत्ति में वृद्धि करती हैं तथा इनकी प्रकृति टिकाऊ होती है। |
अंतिम वस्तुएँ – वे वस्तुएँ जो उपभोग व निवेश के लिए उपलब्ध होती हैं ये पुनर्विक्रय या मूल्यवर्द्धन के लिए नहीं होती। उपभोक्ता द्वारा उपयोग की गई सभी वस्तुएँ व सेवाएँ अंतिम वस्तुएँ होती है। |
मध्वर्ती वस्तुएँ – ये ऐसी वस्तुएँ और सेवायें है, जिनकी एक ही वर्ष में पुनः बिक्री की जा सकती हैं या अंतिम वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती हैं या जिनका रूपांतरण संभव है। ये प्रत्यक्ष रूप से मानव आपश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती । उत्पादक द्वारा प्रयोग की गई सेवाएँ जैसे वकील की सेवाएँ; कच्चे माल आदि मध्यवर्ती वस्तुएँ होती है। |
निवेश – एक निश्चित समय मे पूंजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि निवेश कहलाता है। इसे पूंजी निर्माण या विनियोग भी कहते हैं। |
मूल्यह्रास – सामान्य टूट-फूट अप्रचलन तथा समय प्रवाह के कारण अचल परिसंपत्तियों के मूल्य में गिरावट को मूल्यह्रास या अचल पूंजी का उपभोग कहते हैं। मूल्यह्रास स्थायी पूंजी के मूल्य को उसकी अनुमानित आयु (वर्षो में) से भाग करके ज्ञात किया जाता है। |
सकल निवेश – एक निश्चित समयावधि में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में कुल वृद्धि सकल निवेश कहलाती है। इसमें मूल्यह्रास शामिल होता है। इसे सकल पूँजी निर्माण भी कहते है। |
निवल निवेश – एक अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समयावधि में पूंजीगत वस्तुओं के स्टॉक में शुद्ध वृद्धि निवल निवेश कहलाता है। इसमें मूल्यह्रास शामिल नहीं होता है। निवल निवेश सकल निवेश – घिसावट (मूल्य ह्रास) |
आय का चक्रीय प्रवाह – अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं एवं साधन सेवाओं तथा मौद्रिक आय के सतत् प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं। इसकी प्रक्रति चक्रीय होती है क्योंकि न तो इसका कोई आरम्भिक बिन्दु है और न ही कोई अन्तिम बिन्दु। वास्तविक प्रवाह उत्पादित सेवाओं तथा वस्तुओं और साधन सेवाओं का प्रवाह दर्शाता है। मौद्रिक प्रवाह उपभोग व्यय और साधन भुगतान के प्रवाह को दर्शाता है। |
क्षरण – आय के चक्रीय प्रवाह से निकाली गई राशि (मुद्रा के रूप में) को क्षरण कहते हैं जैसे कर, बचत तथा आयात। |
भरण – आय के चक्रीय प्रवाह में जोड़ी कई राशि (मुद्रा की मात्रा) को भरण कहते हैं; जैसे निवेश, सरकारी व्यय, निर्यात। |
स्टॉक – स्टॉक एक ऐसी मात्रा (चर) है जो किसी निश्चित समय बिन्दु पर मापी जाती है; जैसे धन एवं सम्पत्ति, मुद्रा की आपूर्ति आदि। |
प्रवाह – प्रवाह एक ऐसी मात्रा (चर) है जिसे समय अवधि में मापा जाता है; जैसे राष्ट्रीय आय; निवेश आदि। |
आर्थिक सीमा – यह सरकार द्वारा प्रशासित वह भौगोलिक सीमा है जिसमें व्यक्ति, वस्तु व पूँजी का स्वतंत्र प्रवाह होता है। |
आर्थिक सीमा क्षेत्र: –
(i) राजनैतिक समुद्री व हवाई सीमा।
(ii) विदेशों में स्थित दूतावास, वाणिज्य दूतावास, सैनिक प्रततिष्ठान, राजनयिक भवन आदि।
(iii) जहाज तथा वायुयान जो दो या अधिक देशों के बीच आपसी सहमति से चलाए जाते हैं।
(iv) मछली पकड़ने की नौकाएँ, तेल व गैस निकालने वाले यान तथा तैरन वाले प्लेटफार्म जो देशवासियों द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय जलक्षेत्र चलाए जाते हैं। |
सामान्य निवासी – किसी देश का समान्य निवासी उस व्यक्ति अथवा संस्था को माना जाता है जिसके आर्थिक हित उसी देश की आर्थिक सीमा मे केन्द्रित हों, जिसमें वह सामान्यतः एक वर्ष से रहता है। |
उत्पादन का मूल्य – एक उत्पादन इकाई द्वारा एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं व सेवाओं का बाजार मूल्य उत्पादन का मूल्य कहलाता है। उत्पादन का मूल्य = बेची गई इकाई × बाजार कीमत + स्टॉक में परिवर्तन। |
साधन आय – उत्पान के साधनों (श्रम, भूमि, पूँजी तथा उद्यम) द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में प्रदान की गई सेवाओं से प्राप्त आय, साधन आय कहलाती है। जैसे, वेतन व मजदूरी, किराया, ब्याज आदि। |
हस्तांतरण भुगतान – यह एक पक्षीय भुगतान होते हैं जिनके बदले में कुछ नहीं मिलता है। बिना किसी उत्पादन सेवा के प्राप्त आय । जैस वृद्धावस्था पेंशन, कर, छात्रवृत्ति आदि। |
पूँजीगत लाभ – पूँजीगत सम्पत्तियों तथा वित्तिय सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि, जो समय बीतने के साथ होती है, यह क्रय मूल्य से अधिक मूल्य होता है। यह सम्पत्ति की बिक्री के समय प्राप्त होता है। |
कर्मचारियों का पारिश्रमिक – श्रम साधन द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में प्रदान की गई साधन सेवाओं के लिए किया गया भुगतान (नकद व वस्तु के रूप में) कर्मचारियों का परिश्रमिक कहलाता है। इसमें वेंतन, मजदूरी, बोनस, नियोजकों द्वारा सामाजिक सुरक्षा में योगदान शामिल होता है। |
परिचालन अधिवेष – उत्पादन प्रक्रिया में श्रम को कर्मचारियों का पारिश्रमिक का भुगतान करने के पश्चात् जो राशि बचती है वह परिचालन अधिशेष कहलाता है। यह किराया, ब्याज व लाभ का योग होता है। |
सहायिकी – सरकार द्वारा उत्पादकों को सीधे दी जाने वाली वह धन राशि जो उत्पादन तथा उपभोग को बढ़ावा देती है तथा बाजार कीमत को कम करती है, सहायिकी कहलाती है। |
बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) : एक लेखा वर्ष की अवधि में अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा के अन्तर्गत उत्पादित समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाज़ार मूल्यों के योग को बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहते है। |
बाज़ार कीमत पर निवल देशीय उत्पाद ( NDPMP) :
NDP MP = GDP,MP – मूल्यह्रास (स्थायी पूंजी का उपभोग) |
कारक लागत पर निवल देशीय उत्पाद या घरेलू आय (NDPFC) – एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में उत्पादन कारकों की आय का योग, जो कारकों द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के बदले प्राप्त होती है को देशीय आय कहते हैं।
NDPFC = GDPMP – मूल्यह्रास निवल अप्रत्यक्ष कर (NIT) |
बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP ) – एक देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में देश की घरेलू सीमा व विदेशों में उत्पादित अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के बाजार मूल्यों के योग को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद GNPMP कहते हैं।
GDPMP + NFIA = GNPMP
बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)
NNPMP = GNPMP – मूल्यह्रास |
राष्ट्रीय आय (NNP) – एक देश में सामान्य निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा व शेष विश्व से अर्जित कारक आय का योग राष्ट्रीय आय कहलाती है ।
NNPFC = NDPFC + NFIA = राष्ट्रीय आय |
वर्धित मूल्य ( मूल्यवृद्धि ) – किसी उत्पादन इकाई द्वारा निश्चित समय में किए गए उत्पादन के मूल्य तथा प्रयुक्त मध्यवर्ती उपभोग के मूल्य का अंतर वर्धित मूल्य कहलाता है। |
दोहरी गणना की समस्या – राष्ट्रीय आय आंकलन में जब किसी वस्तु के मूल्य की एक से अधिक बार गणना की जाती है उसे दोहरी गणना कहते हैं। इससे राष्ट्रीय आय अधिमूल्यांकन दर्शाता है। इसलिए इसे दोहरी गणना की समस्या कहते हैं। |
कुछ महत्वपूर्णं समीकरण –
सकल = निवल (शुद्ध) + मूल्यह्रास (स्थायी पूँजी का उपयोग)
राष्ट्रीय = घरेलू + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय। (NFIFA)
बाज़ार कीमत = साधन लागत + निवल अप्रत्यक्ष कर (NIT)
निवल अप्रत्यक्ष कर (NIT) = अप्रत्यक्ष कर – सहायिकी (आर्थिक सहायता )
विदेशों से शुद्ध साधन (कारक) आय = विदेशों से साधन आय – विदेशों को साधन आय |
राष्ट्रीय आय अनुमानित ( मापने ) करने की विधियाँ:-
1. आय विधि
(i) प्रथम चरण – साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (निवल घरेलू साधन आय) (NDPFC) = कर्मचारियों का परिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + स्व-नियोजित स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय।
(ii) द्वितीय चरण – साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय आय (राष्ट्रीय आय) = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद + विदेशों से
प्राप्त निवल साधन आय।
NNPFC = NDPFC + NFIA |
2. उत्पाद विधि अथवा मूल्य वर्द्धित विधि प्रथम चरण – बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMp) = प्राथमिक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य + द्वितीयक क्षेत्र
द्वारा सकल वर्धित मूल्य + तृतीयक क्षेत्र द्वारा सकल वर्धित मूल्य।
या
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती उपभोग। |
द्वितीय चरण – बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPMP) – बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDPMP- मूल्यह्रास। |
तृतीय चरण – कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPF) = बाज़ार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPMP) – शुद्ध
अप्रत्यक्ष कर (NIT) |
चतुर्थ चरण – कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (राष्ट्रीय आय) (NNPFC)= कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDP) + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय (NFIA) |
3. व्यय विधि प्रथम चरण – बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) निजी अंतिम उपयोग व्यय सरकारी अंतिम उपयोग व्यय + सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध ( निवल ) निर्यात GDPMP = C + G + I + (X – M) |
द्वितीय चरण – बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद ( NDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) – मूल्यह्वास |
तृतीय चरण – कारक लागत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPc) = बाजार कीमत पर निवल घरेलू उत्पाद (NDPMP) – शुद्ध
अप्रत्यक्ष कर (NIT) |
चतुर्थ चरण – कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद (राष्ट्रीय आय ) ( NNPC) = साधन लागत पर निवल घरेलू उत्पाद
(NDPřc) + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय (NFIA) |
विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय (NFIA ) – देश के सामान्य निवासियों द्वारा विदेशों को प्रदान की
गई साधन सेवाओं से प्राप्त आय तथा विदेशों को दी गई साधन आय के बीच के अंतर को विदेशों
से प्राप्त निवल साधन आय कहते हैं। इसके निम्न घटक होते हैं-
1. कर्मचारियों का निवल पारिश्रमिक
2. सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से निवल आय तथा
3. विदेशों से निवासी कम्पनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय। |
चालू हस्तांतरण – वह गैर- अर्जित आय जो देने वाले (Doner) के चालू आय में से निकलता है और प्राप्त करने वाले (Recipient) के चालू आय में जोड़ा जाता है, उसे हस्तांतरण आय कहते हैं। |
पूँजीगत हस्तांतरण – वह गैर-अर्जित आय जो देने वाले के धन तथा पूँजी से निकलता है तथा प्राप्त करने वाले के धन तथा पूँजी में शामिल होता है, उसे पूंजीगत हस्तांतरण कहते हैं। |
सावधानियाँ
1. मूल्यवर्द्धित विधि –
(i) दोहरी गणना से बचें।
(ii) वस्तुओं के पुनः विक्रय को सम्मिलित नहीं करते ।
(iii)स्वउपयोग के लिए उत्पादित वस्तु को सम्मिलित किया जाता है। 2. आय विधि –
(i) हस्तांतरण आय को सम्मिलित नहीं करते है
(ii) पूँजीगत लाभ को सम्मिलित नहीं करते।
(iii) स्वउपयोग के लिए उत्पादित वस्तु से उत्पन्न आय को सम्मिलित करते हैं।
(iv) उत्पादनकर्ता द्वारा प्रदान मुफ्त सेवाओं को सम्मिलित करते हैं। 3. व्यय विधि –
(i) मध्यवर्ती व्यय को सम्मिलित नहीं करते है।
(ii) पूनः विक्रय वस्तुओं की खरीद पर व्यय को सम्मिलित नहीं करते ।
(iii) वित्तिय परिसम्पतियों पर व्यय सम्मिलित नहीं करते ।
(iv) हस्तांतरण भुगतान को सम्मिलित नहीं करते । |
GDP का स्वरूप दो प्रकार का होता है। 1. वास्तविक GDP – एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा के अंतर्गत एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्यांकन आदि आधार वर्ष की कीमतों (स्थिर कीमतों) पर किया जाता हैं तो उसे वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। इसे स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद भी कहते हैं। यह केवल उत्पादन मात्रा में परिवर्तन के कारण परिवर्तित होता है इसे आर्थिक विकास का एक सूचक माना जाता है। |
2. मौद्रिक GDP – एक अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा के अंतर्गत एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एव सेवाओं का मूल्यांकन यदि चालू वर्ष की कीमतों (चालू कीमतों) पर किया जाता है, उसे मौद्रिक GDP कहते हैं। इसे चालू कीमतों पर GDP भी कहते हैं। यह उत्पादन मात्रा तथा कीमत स्तर दोनों में परिवर्तन से प्रभावित होता है। इसे आर्थिक विकास का एक सूचक नहीं माना जाता है।
चूँकि कीमत सूचकांक चालू कीमत अनुमानों को घटाकर स्थिर कीमत अनुमान के रूप में लाने हेतु एक अपस्फायक की भूमिका अदा करता है । इसलिए इसे सकल घरेलू उत्पाद अपस्फायक कहा जाता है। |
सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याणः सामान्यत – सकल घरेलू उत्पाद एवं कल्याण में प्रत्यक्ष संबंध होता है। उच्चतर GDP का अर्थ है, वस्तुओं एव सेवाओं का अधिक उत्पादन होना । इसका तात्पर्य है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक उपलब्धता । परन्तु इसका अर्थ यह निकालना, कि लोगों का कल्याण पहले से अच्छा है, आवश्यक नही है। सरल शब्दों में, उच्च्तर GDP का तात्पर्य लोगों के कल्याण में वृद्धि का होना, आवश्यक नहीं है। |
कल्याण – इसका तात्पर्य लोगों के भौतिक सुख-सुविधाओं से है। यह अनेक आर्थिक एवं गैर-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है। आर्थिक कारक जैसे राष्ट्रीय आय उपभोग का स्तर आदि और गैर-आर्थिक कारण जैसे पर्यावरण प्रदूषण, कानून व्यवस्था, सामाजिक शांति आदि । वह कल्याण जो आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे आर्थिक कल्याण तथा जो गैर-आर्थिक कारकों पर निर्भर करता है उसे गैर आर्थिक कल्याण कहा जाता है। दोनों के योग को सामाजिक कल्याण कहा जाता हैं । निष्कर्ष: GDP एवं कल्याण में प्रत्यक्ष सम्बन्ध है परन्तु यह संबंध निम्नलिखित कारणों से अपूर्ण एवं अधूरा है। GDP की आर्थिक कल्याण के सूचक के रूप में सीमाएँ निम्न हैं- |
1. बाह्यताएँ – इसे तात्पर्य व्यक्ति या फर्म द्वारा की गई उन क्रियाओं से है जिनका बुरा (या अच्छा) प्रभाव दूसरों पर पड़ता है लेकिन इसके लिए उन्हें दण्डित (लाभान्वित) नहीं किया जाता। उदाहरण – कारखानों का धुँआ (नकारात्मक बाह्यताएँ) तथा फ्लाईओवर का निर्माण (सकारात्मक बाह्यताएँ) । |
2. GDP की संरचना – GDP अर्थव्यवस्था में उत्पाद की संरचना को नहीं दर्शाया जाता है यदि GDP में वृद्धि, युद्ध सामग्री के उत्पादन में वृद्धि के कारण हैं तो GDP में वृद्धि कल्याण में वृद्धि नहीं होगी । |
3. GDP का वितरण – GDP में वृद्धि से कल्याण में वृद्धि नहीं होगी यदि आय का असमान वितरण है, अमीर अधिक हो जाएंगे तथा गरीब अधिक गरीब हो जाएंगे। |
4. गैर-मौद्रिक लेन-देन – GDP में कल्याण को बढ़ाने वाले गैर मौद्रिक लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता है। |
NCERT Solution Class 12th समष्टि अर्थशास्त्र (भाग – 1) Notes In Hindi