NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 3 आय और रोजगार का निर्धारण (Production and Costs) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 3 आय और रोजगार का निर्धारण (Production and Costs)

TextbookNCERT
classClass – 12th
SubjectEconomics (Part – I)
ChapterChapter – 3
Chapter Nameआय और रोजगार का निर्धारण (Production and Costs)
CategoryClass 12th Economics
Medium Hindi
SourceLast doubt

NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 3 आय और रोजगार का निर्धारण  Notes In Hindi जिसमे हम आय और रोजगार का निर्धारण क्या है, आप आय और रोजगार स्तर कैसे निर्धारित करते हैं, आय और रोजगार के निर्धारण में कौन से अध्याय शामिल हैं, राष्ट्रीय आय का निर्धारण कैसे होता है, आय कितने प्रकार के होते हैं, राष्ट्रीय आय के पांच घटक कौन से हैं, राष्ट्रीय आय की गणना के 3 तरीके क्या हैं?राष्ट्रीय आय की परिभाषा क्या है,राष्ट्रीय आय का महत्व क्या है,भारत में राष्ट्रीय आय का जनक कौन है,अर्थशास्त्र में आय क्या है? आदि के  वाले में आप हमारे Youtude के माध्यम से भी हमसे जुड़ सकते है

NCERT Solutions Class 12th Economics (Part – I) Chapter – 3 आय और रोजगार का निर्धारण (Production and Costs)

Chapter – 3

आय और रोजगार का निर्धारण

Notes

समग्र माँग – एक अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों द्वारा एक दिए हुए आय स्तर पर एवं एक निश्चित समयावधि में समस्त अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित क्रय के कुल मूल्य को समग्र मांग कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं की कुल मांग को समग्र मांग (AD) कहते हैं इसे कुल व्यय के रूप में मापा जाता है।  

समग्र मांग के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं –

( i ) उपभोग व्यय ( c )
( ii ) निवेश व्यय ( I )
( ii ) सरकारी व्यय ( G )
( iv ) शुद्ध निर्यात ( X – M )
इस प्रकार, AD = C + I + G + ( X – M )
दो क्षेत्र वाली अर्थव्यवस्था में AD = C + I 

(Ad) समग्र पूर्ति – एक अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाईयों द्वारा एक निश्चित समयावधि में सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के नियोजित उत्पादन के कुल मूल्य को समग्र पूर्ति कहते हैं । समग्र पूर्ति के मौद्रिक मूल्य को ही राष्ट्रीय आय कहते है। अर्थात् राष्ट्रीय आय सदैव समग्र पूर्ति के समान होती है।
AD = C + S
समग्र पूर्ति देश के राष्ट्रीय आय को प्रदर्शित करती है।
AS = Y (राष्ट्रीय आय)
उपभोग फलन – उपभोग फलन आय (Y) और उपभोग (C) के बीच फलनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है।
c = f (Y)
  यहाँ
C = उपभोग
Y = आय
f = फलनात्मक सम्बन्ध
उपभोग फलन की समीकरण = C = C_ + MPC . Y
स्वायत्त उपभोग (C_) – आय के शून्य स्तर पर जो उपभोग होता है उसे स्वायत्त उपभोग कहते है। जो आय में परिवर्तन होने पर भी परिवर्तित नहीं होता है , अर्थात् यह आय बेलोचदार होता है।
प्रेरित उपभोग – इसका अभिप्राय उस उपभोग स्तर से है जो प्रत्यक्ष रूप से आय पर निभर्र करता है।

 

उपभोग प्रवृति – उपभोग प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है।

( 1 ) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)
( 2 ) सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC)

औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) – औसत उपभोग को कुल उपभोग तथा कुल आय के बीच अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।
APC = कुल उपभोग (C)/कुल आय (Y)
APC के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बिन्दु –
(i) APC इकाई से अधिक रहता है जब तक उपभोग राष्ट्रीय आय से अधिक रहता  है। समविच्छेद बिन्दु से पहले, APC > 1(ii) APC = 1 समविच्छेद बिन्दु पर यह इकाई के बराबर होता है जब उपभोग और आय बराबर होता है। C = Y(iii) आय बढ़ने के कारण APC लगातार घटती है।(iii) APC कभी भी शून्य नहीं हो सकती, क्योंकि आय के शून्य स्तर पर भी स्वायत्त उपभोग होता है।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) – उपभोग में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को , सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं ।
MPC = उपभोग में परिवर्तन = ∆C
आय में परिवर्तन        ∆Y,
MPC के सम्बन्ध में विशेष बिन्दु 
MPC का मान शून्य तथा एक के बीच में रहता है । लेकिन यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय उपभोग हो जाती है तब ∆C = ∆Y, अत : MPC = 1 . इसी प्रकार यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत कर ली जाती है तो ∆C = 0
अत : MPC = 0
बचत फलन – बचत और आय के फलनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है ।
s = f (Y)
यहाँ s = बचत
Y = आय
f = फलनात्मक सम्बन्ध
बचत फलन का समीकरण =>
S = – C + sY
or S  =S + sY  जहाँ s = MPS
बचत प्रवृत्ति दो प्रकार की होती है –  APS तथा MPS

औसत बचत प्रवृत्ति ( APS ) : कुल बचत तथा कुल आय के बीच अनुपात को APS कहते हैं।

APS = बचत = S
             आय   Y

औसत बचत प्रवृत्ति APS की विशेषताएँ –
(i) APS कभी भी इकाई या इकाई से अधिक नहीं हो सकती क्योंकि कभी भी बचत आय के बराबर तथा आय से अधिक नहीं हो सकती।
(ii) APS शून्य हो सकती है – समविच्छेद बिन्दु पर जब C = Y है तब S = 0
(iii) APS ऋणात्मक या इकाई से कम हो सकता है । समविच्छेद बिन्दु से नीचे स्तर पर APS ऋणात्मक होती है । क्योंकि अर्थव्यवस्था में अबचत (Dissavings) होती है तथा C > Y
(iv) APS आय के बढ़ने के साथ बढ़ती हैं।
सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) : आय में परिवर्तन के फलस्वरूप बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमांत बचत प्रवृत्ति कहते है।
MPS = बचत में परिवर्तन ΔS
आय में परिवर्तन ΔΥ
MPS का मान शून्य तथा इकाई (एक) के बीच में रहता है। लेकिन यदि
(i) यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय की बचत की ली जाती है, तब AS = AY, अत : MPS = 1
(ii) यदि सम्पूर्ण अतिरिक्त आय, उपभोग कर ली जाती है, तब AS = 0, अतः MPS = 0
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा औसत प्रवृत्ति (APS) में सम्बन्ध :
सदैव APC + APS = 1 यह सदैव ऐसा ही होता है, क्योंकि आय को या तो उपभोग किया जाता है या फिर आय की बचत की जाती है।
प्रमाण:- Y = C + S

दोनों पक्षों का Y से भाग देने पर
Y = C + S

Y    Y     Y
1 = APC + APS
अथवा APC = 1 – APS या APS = 1 – APC इस प्रकार APC तथा APS का योग हमेशा इकाई के बराबर होता है।
सीमांत उपभोग प्रवृत्ति (MPC) तथा सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) में सम्बन्ध :
सदैव MPC + MPS = 1; MPC हमेशा सकारात्मक होती है तथा 1 से कम होती है। इसलिए MPS भी सकारात्मक तथा 1 से कम होनी चाहिए। प्रमाण:- ∆Y = ∆C + ∆S

दोनों पक्षों को ∆Y से भाग करने पर

MPC = 1 – MPS अथवा
MPC = 1 – MPC
एक अर्थव्यवस्था में एक वित्तीय वर्ष में पूँजीगत वस्तुओं के स्टॉक में वृद्धि को पूँजी निर्माण / निवेश कहते हैं । इसके दो प्रकार होते है –
( i ) प्रेरित निवेश, ( ii ) स्वतंत्र निवेश
प्रेरित निवेश – प्रेरित निवेश वह निवेश है जो लाभ कमाने की भावना से प्रेरित होकर किया जाता है । प्रेरित निवेश का आय से सीधा सम्बन्ध होता है।
स्वतंत्र ( स्वायत्त ) निवेश – स्वायत्त निवेश वह निवेश है जो आय के स्तर में परिवर्तन से प्रभावित नहीं होता अर्थात् आय निरपेक्ष होता है।
नियोजित बचत – एक अर्थव्यवस्था के सभी गृहस्थ (बचतकर्ता) एक निश्चित समय अवधि में आय के विभिन्न स्तरों पर जितनी बचत करने की योजना बनाते है, नियोजित बचत कहलाती है।
नियोजित निवेश – एक अर्थव्यवस्था के सभी निवेशकर्ता आय के विभिन्न स्तरों पर जितना निवेश करने की योजना बनाते हैं , नियोजित निवेश कहलाती है।
वास्तविक बचत – अर्थव्यवस्था में दी गई अवधि के अंत में आय में से उपभोग व्यय घटाने के बाद , जो कुछ वास्तव में शेष बचता है , उसे वास्तविक बचत कहते है।
वास्तविक निवेश – किसी अर्थव्यवस्था में एक वित्तीय वर्ष में किए गए कुल निवेश को वास्तविक निवेश कहा जाता है । इसका आंकलन अवधि के समाप्ति वास्तविक पर किया जाती है।
आय का संतुलन स्तर – आय का वह स्तर है जहाँ समग्र माँग, उत्पादन के स्तर ( समग्र पूर्ति ) के बराबर होती है अत : AD = AS या s = I
पूर्ण रोजगार – इससे अभिप्राय अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति से है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति जो योग्य है तथा प्रचलित मौद्रिक मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार है , को रोजगार मिल जाता है।
ऐच्छिक बेरोजगारी – ऐच्छिक बेरोजगारी से अभिप्रायः उस स्थिति से है , जिसमें बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य उपलब्ध होने के बावजूद योग्य व्यक्ति कार्य करने को तैयार नहीं है।
अनैच्छिक बेरोजगारी – अर्थव्यवस्था की ऐसी स्थिति है जहाँ कार्य करने के इच्छुक व योग्य व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने के लिए इच्छुक है लेकिन उन्हें कार्य नहीं मिलता।
निवेश गुणक : निवेश में परिवर्तन के फलस्वरूप आय में परिवर्तन के अनुपात को निवेश गुणक कहत हैं।

K = ΔΥ या गुणक = आय में परिवर्तन      अथवा K = 1
         ΔΙ                  निवेश में परिवर्तन               1- MPC

                     1 इसका अधिकतम मान अनंत तथा न्यूनतम मान एक होता है।
अथवा K = M P C

जब समग्र मांग (AD) पूर्ण रोजगार स्तर पर समग्र पूर्ति (AS) से अधिक हो जाए तो उसे अधिमाँग कहते हैं।
जब समग्र माँग (AD) पूर्ण रोजगार स्तर समग्र पूर्ति (AS) से कम होती है, इसे अभावी माँग कहते है।
स्फीतिक अंतराल – वास्तविक समग्र मांग और पूर्ण रोजगार संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक समग्र मांग के बीच का अंतर होता है। यह समग्र मांग के आधिक्य का माप है । यह अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी प्रभाव उत्पन्न करता है।
अवस्फीति अंतराल – वास्तविक समग्र मांग और पूर्ण रोजगार संतुलन को बनाए रखने के आवश्यक समग्र मांग के बीच का अंतर होता है । यह समग्र मांग में कमी का माप है । यह अर्थव्यवस्था अवस्फीति (मंदी) उत्पन्न करता है।