NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 3 जन पोषण तथा स्वास्थ्य (Public Nutrition and Health)
Textbook | NCERT |
class | 12th |
Subject | Home Science |
Chapter | 3rd |
Chapter Name | जन पोषण तथा स्वास्थ्य (Public Nutrition and Health) |
Category | Class 12th Home Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 3 जन पोषण तथा स्वास्थ्य (Public Nutrition and Health) Notes In Hindi जन स्वास्थ्य पोषण क्या है समझाइए?, पोषण क्या है परिभाषा अच्छे स्वास्थ्य के लिए क्या करना चाहिए?, अच्छे पोषण से क्या लाभ है?, पोषण हमारे शरीर के लिए क्यों जरूरी है?, पोषण कितने प्रकार के होते हैं?, पोषण की कितनी अवस्थाएं हैं?, बच्चे को दिन में कितनी बार खाना देना चाहिए?, पकाया हुआ भोजन कितनी देर तक खाने योग्य है?, आदि के बारे में पढ़ेंगे।
NCERT Solutions Class 12th Home Science Chapter – 3 जन पोषण तथा स्वास्थ्य (Public Nutrition and Health) Notes In Hindi
Chapter – 3
जन पोषण तथा स्वास्थ्य
Notes
जन स्वास्थ्य पोषण क्या है – जन स्वास्थ्य पोषण, अध्ययन का वह क्षेत्र हे जो अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से संबन्धित है। इस उद्देश्य के लिए यह पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान करने वाली सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों द्वारा पोषण संबंधी समस्याओं का समाधान करता है। समाज के संगठित प्रयासों द्वारा स्वास्थ्य को उन्नत करना और रोगो की रोकथाम करते हुए जीवन अवधि को दीर्घ बनाने की कला और विज्ञान, जन पोषण है। |
जन स्वास्थ्य की संकल्पना – जन स्वास्थ्य की संकल्पना का अर्थ है – सभी लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा और बढ़ावा देने के लिए समाज द्वारा किए गए सामूहिक प्रयास। |
जन स्वास्थ्य पोषण का लक्ष्य – जन स्वास्थ्य पोषण का लक्ष्य अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों की रोकथाम करना तथा लोगों के अनुकूलतम पोषण स्तर को बनाए रखना है। |
कुपोषण (Malnutrition) – “शरीर की आवश्यकतानुसार उचित तथा निश्चित मात्रा में पोषक तत्व न ग्रहण करना कुपोषण कहलाता है।” ‘कु’ अर्थात बुरा और कुपोषण अर्थात बुरा पोषण; जिसे ग्रहण करने से व्यक्ति को उसकी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुकूल पोषण तत्व नहीं मिलते और वह अस्वस्थ हो जाता है। |
कुपोषण के प्रकार - अत्यधिक पोषण (Over Nutrition)
- अपर्याप्त पोषण (Under Nutrition)
- असंतुलित पोषण (Unbalanced Nutrition)
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अत्यधिक पोषण (Over Nutrition) – जब व्यक्ति शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक निश्चित मात्रा में पोषक तत्वों से अधिक मात्रा अपने भोजन से प्राप्त करता है तो वह अत्यधिक पोषण से ग्रस्त होता है। अत्यधिक पोषण को सरल भाषा में मोटापा कहा जाता है और यह किसी एक या एक से अधिक पोषक तत्व की अधिकता से हो सकता है। |
अपर्याप्त पोषण (Under Nutrition) – जब व्यक्ति अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक निश्चित मात्रा में पोषक तत्वों से कम मात्रा अपने भोजन से प्राप्त करता है तो वह अपर्याप्त पोषण से ग्रस्त होता है। पर्याप्त पोषण के परिणामस्वरूप व्यक्ति का वृद्धि और विकास कम हो जाता है और उसमें कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। |
असंतुलित पोषण (Unbalanced Nutrition) – जब व्यक्ति को शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निश्चित मात्रा में पोषक तत्वों के होने के स्थान पर पोषक तत्वों की मात्रा असंतुलित होती है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति का पोषण असंतुलित पोषण कहलाता है। असंतुलित भोजन एक या एक से अधिक पोषक तत्व की अधिकता अथवा कमी के कारण पाया जाता है तथा शरीर के लिए हानिकारक होता है। |
जनपोषण एवं स्वास्थ्य का महत्त्व (Significance of Public Nutrition in Health) – 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत का मुख्य कारण कुपोषण होता है। कुछ आंकड़े निम्न है – - भारत में जन्म के समय एक तिहाई बच्चो का भार कम होता है यह बाद में उनके विकास पर प्रभाव डालता है।
- सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लगभग आधे बच्चे अल्पपोषण से पीड़ित होते है।
- बच्चे और प्रोद सूक्ष्मपोषक तत्व जैसे लोहा, जिंक, विटामिन ए, फॉलिक अम्ल आदि।
यदि समय पर इन समस्याओं को नियंत्रित नहीं किया जाता तो शारीरिक, मानसिक और संगयानातक विकास रूक जाता है। यह जीवन की उत्पादकता और गुणवत्ता पर प्रभाव डालती है। यदि हम कुपोषण का समाधान कर ले तो हम भारत के विकास और आर्थिक वृद्धि में सहायक हो सकते है। भारत में अधिक समस्या अल्पपोषण है तथा अतिपोषण भी बढ़ रहा है। धीरे-धीरे बच्चे शारीरिक गतिविधियाँ कम करने लगे है। इसके अतिरिक्त खाद्य पदार्थ कम स्वास्थ्यकर हो गए है। अतः भारत कुपोषण का दोहरा भार उठा रहा है अर्थात यहाँ अल्पपोषण तथा कुपोषण दोनों ही है। इससे डॉक्टर, आहार विशेषज्ञो और सरकार के सामने चुनौती खड़ी हो गई है। |
जन्म के समय शिशु भार 2.5 kg से भी कम – इस कमी के साथ जीवन प्रारंभ करने वाले शिशुओं का स्वास्थ्य, वृद्धि एवं विकास की सभी अवस्थाओं में भी निम्न स्तर का ही रहता है। |
कुपोषण का दोहरा भार – यदि सरकार कुपोषण की समस्या पर नियंत्रण पा लेती है तो भारत के विकास और आर्थिक प्रगति की दर में वृद्धि हो सकती है। |
भारत में पोषण की संबंधी समस्याएँ (Nutrition Related Problem in India) – - प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (P.E.M)
- सूक्षमपोषको की कमी
- लोह तत्व की कमी से अरक्तता (I.D.A.)
- विटामिन A की कमी (V.A.D.)
- आयोडीन हीनता विकार (I.D.D.)
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प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (P.E.M) – यह जरूरत से कम भोजन लेने या ऊर्जा और प्रोटीन का कम ग्रहण करने से होता है। बच्चों को प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण का खतरा अधिक होता है। भोजन और ऊर्जा की कमी से होने वाला गंभीर अल्पपोषण मरास्मरा कहलाता है और प्रोटीन की कमी से काशिओरकर रोग हो जाता है। |
सूक्षमपोषको की कमी – यदि आहार में ऊर्जा और प्रोटीन की मात्रा कम होती है तो इसमे अन्य सूक्ष्म पोषको जैसे खनिजो और विटामिनो की मात्रा कम होने की भी संभावना होती है लौहतत्व, विटामिन A, आयोडीन, जिंक, कैल्सियम, विटामिन D की कमी। |
लौह तत्व की कमी से अरक्तता (I.D.A.) – यह तब होती है जब शरीर मे हीमोग्लोबिन का बनना काफी कम हो जाता है। जिसके कारण रक्त मे हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। शरीर मे ऑक्सीजन के पहुँचने के लिए हीमोग्लोबिन की आवश्यकता होती है कोई भी शारीरिक कार्य करने पर सांस फूलने लगती है। इसकी कमी गर्भवती महिलायों, किशोरियों और बच्चों में पाई जाती है। |
विटामिन A की कमी (V.A.D.) – vitamin A स्वस्थ एपिथीलियम, सामान्य दृष्टि वृद्धि और रोग प्रतिरोधकता के लिए आवश्यक है। विटामिन A की कमी से रतौंधी हो जाती है और संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। |
आयोडीन हीनता विकार (I.D.D.) – सामान्य मानसिक और शारीरिक वृद्धि और विकास के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है। इसकी कमी के कारण थाइरोइड हारमोन कम मात्रा मे बनता है। इसकी कमी से थायराइड ग्रंथि बढ़ जाती है और यह बढ़ा हुआ थायराइड गवाइटर कहलाता है। गर्भावस्था में आयोडीन की कमी से भ्रूण में मानसिक मंदता और शारीरिक कमियाँ हो सकती है। |
पोषण समस्यायों का सामना करने के लिए कार्यनीतियाँ – राष्ट्रीए पोषण नीति (1993) - इसे महिला और बाल विकास विभाग ने तैयार किया है।
- कुपोषण की समस्या को कम करना।
- 0-6 वर्ष आयु समूह के बच्चे, गर्भवती महिलायों, दुग्धपान कराने वाली माताओं के लिए समेकित बाल विकास सेवाएँ।
- आवश्यक खाद्य पदार्थों का पुष्टीकरण।
- कम कीमत वाले घोषक पदार्थों का उत्पादन।
- संवेदनशील वर्गों में सुक्षपोषको की कमी पर नियंत्रण लाना।
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पोषण संबंधी समस्याओं से जूझने के लिए बनाई गई नीतियाँ – - आहार अथवा भोजन आधारित कार्यनीतियाँ
- पोषण आधारित दृष्टिकोण
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आहार अथवा भोजन आधारित कार्यनीतियाँ – आहार अथवा भोजन आधारित कार्यनीतियाँ ये व्यापक योजनाएँ है जो पोषण हीनता को कम करने के लिए भोजन को माध्यम के रूप में प्रयोग करती है। ये सूक्ष्म पोषको की कमी को रोकने के लिए सुक्षपोषक समृद्ध खाद्यपदार्थों के उपभोग को बढ़ावा देती है। इस योजना के लाभ लंबी अवधि तक मिलते रहेंगे और ये लागत प्रभावी है। कुछ महत्वपूर्ण भोजन आधारित उपयोग है आहार में परिवर्तन, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, घरेलू बागवानी आदि। |
पोषण आधारित दृष्टिकोण – पोषण आधारित दृष्टिकोण इसमे संवेदनशील समूहों को पोषक पूरक भोजन पदार्थ दिये जाते है। यह भारत में विटामिन A और लौह तत्व के लिए उपयोग की जाने वाली एक अल्पावधि नीति है। |
देश मे चल रहे पोषण कार्यक्रम - एकीकृत बाल विकास योजनाएँ
- पोषण हीनता नियंत्रण कार्यक्रम
- आहार पूरक कार्यक्रम
- भोजन सुरक्षा कार्यक्रम
- स्वरोजगार और वैतनिक रोजगार योजनाएँ (सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम)
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स्वास्थ्य देखभाल (Health Care) – स्वास्थ्य एक मूलभूत अधिकार है यह सरकार का दायित्व है कि वह नागरिकों को समुचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराएं। भारत में स्वास्थ्य देखभाल तीन स्तरों पर की जाती है। |
प्राथमिक स्वास्थ सेवाएँ (Primary Health Services) – यह सेवा सरकार द्वारा लगभग सभी गावों तथा जिलों में उपलब्ध करवाई जाती है जहाँ पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध डॉक्टरों लोगों से निःशुल्क स्वास्थ्य जाँच एवं इलाज करते हैं। हालांकि अधिकतर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में केवल सामान्य बीमरिया का ही इलाज किया जाता है। |
द्वितीय स्तर/माध्यमिक स्वास्थ्य सेवाएँ (Secondary Level Health Services) – माध्यमिक स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत जिला अस्पतालों को शामिल किया जाता है। कई बार कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनके लिए रोगी को विशेष जाँच, कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती होने तथा अपेक्षाकृत लंबे समय तक इलाज की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर उपलब्ध डॉक्टर रोगी को बड़े अस्पताल में जाने की सलाह देते हैं जहां पर उसके इलाज के लिए सभी सुविधाएं एवं विशेष डॉक्टर उपलब्ध होते हैं। |
तृतीय स्तर/उच्च स्तरीय स्वास्थ सेवाएँ (Specialised Health Services) – उच्च स्तरीय अर्थात विशेष स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत रोगी को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा जिला अस्पतालों से विशिष्ट विशेषज्ञों द्वारा जाँच, इलाज का तथा देखरेख को शामिल किया गया है। इस प्रकार के स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत गंभीर रोगों की जाँच के लिए एम.आर.आई (MRI) कैट स्कैनिंग (Cat Scaning) आदि के लिए बड़े शहरों में सरकारी अस्पताल में जाँच/इलाज के लिए रोगी को भेजा जाता है। |
जन पोषण तथा स्वास्थ्य का कार्यक्षेत्र (Scope of Public Nutrition and Health) – जन पोषण विशेषज्ञ की भूमिका – पोषण स्वास्थ्य का महत्वपूरण निर्धारक है। जन पोषण विशेषज्ञ सामुदायिक पोषण विशेषज्ञ भी कहलाते हैं। वे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में परिशिक्षित और साधन सम्पन्न होते है। एक सामुदायिक पोषण विशेषज्ञ निम्न परिस्थितियों में कार्य कर सकता है – - अस्पतालो द्वारा रोकथाम तथा शिक्षा के लिए किए जाने वाले कार्यक्रमों में भाग लेने के रूप में।
- राष्ट्रीय समेकित बाल विकास सेवाओं में भाग लेने के रूप में।
- सरकारी स्तर पर परामर्शदाता के रूप में।
- सरकार के सारे विकासात्मक कार्यक्रमों में कार्य करने के रूप में।
- पोषण विशेषज्ञ या स्कूल में स्वास्थ्य परामर्शदाता के रूप में।
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