NCERT Solutions Class 12th Economics (भारत का आर्थिक विकास) Chapter – 7 रोजगार (Employment) Notes In Hindi
Textbook | NCERT |
class | Class – 12th |
Subject | Economics (भारत का आर्थिक विकास) |
Chapter | Chapter – 7 |
Chapter Name | रोजगार |
Category | Class 12th Economics Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Economics (भारत का आर्थिक विकास) Chapter – 7 रोजगार (Employment) Notes In Hindi
?Chapter – 7?
✍ रोजगार✍
?Notes?
कार्य
हमारे व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
श्रमिक – वह व्यक्ति जो अपनी आजीविका अर्जित करने के लिये किसी उत्पादक क्रियाओं में लगा है ।
उत्पादक क्रियाएँ – वे क्रियाएँ हैं जिन्हें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है और जिससे आय का सृजन होता है ।
सकल घरेलु उत्पाद (GDP) – किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य इसका ‘सकल घरेलू उत्पाद’ कहलाता है।
श्रमिकों के प्रकार
- स्वनियोजित
- भाड़े के मजदूर
( a ) अनियमित मजदूरी
( b ) नियमित मजदूर
स्वनियोजित श्रमिक – वह व्यक्ति है जो अपने ही व्यापार में कार्य करता है तथा स्वनियोजन पुरस्कार के रूप में उन्हें लाभ प्राप्त है , स्वनियोजित श्रमिक कहलाता है ।
भाड़े के मजदूर – वे लोग जो भाड़े पर दूसरों का काम करते है तथा अपनी सेवाओं के पुरुस्कार के रूप में मजदूरी/वेतन प्राप्त करते हैं, भाड़े के मजदूर कहलाते है ।
नियमित मजदूर – जब किसी श्रमिक को कोई व्यक्ति या उद्यमी नियमित रूप से काम पर रख उसे मजदूरी (वेतन) देता है, तो वह श्रमिक नियमित मजदूर अथवा नियमित वेतन भोगी कर्मचारी कहलाता है ।
अनियमित मजदूर – वे व्यक्ति जिन्हें उनके नियोजक , नियमित रूप से कार्य में नहीं लगाते तथा उन्हें सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते अनियमित मजदूर कहलाते हैं ।
श्रम बल – श्रम बल से अभिप्राय श्रमिकों की उस संख्या से है । जो वास्तव में कार्य कर रहे हैं और कार्य करने के इच्छुक हैं ।
कार्यबल – कार्यबल से अभिप्राय वास्तव में कार्य करने वाले व्यक्तियों की संख्या से है । इसमें इन व्यक्तियों को शामिल नहीं किया जाता जो कार्य करने के इच्छुक तो हैं परन्तु बेरोजगार हैं ।
सहभागिता की दर – इसका अर्थ है उत्पादन क्रिया में वास्तव में भाग लेने वाली जनसंख्या का प्रतिशत ।
श्रम आपूर्ति
इससे अभिप्राय विभिन्न मजदूरी दरों के अनुरूप श्रम की आपूर्ति से है । इसे मनुष्य दिनों के रूप में मापा जाता है । एक मनुष्य दिन से अभिप्राय 8 घंटे का काम है ।
देश की जनसंख्या के पाँच में से दो व्यक्ति विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में लगे हैं । मुख्यतः ग्रामीण पुरूष देश के श्रमबल का सबसे बड़ा वर्ग है ।
भारत में अधिकांश श्रमिक स्वनियोजक हैं । अनियमित दिहाड़ी मजदूर तथा नियमित वेतनभोगी कर्मचारी मिलकर भी भारत की समस्त श्रमशक्ति के अनुपात के आधे से भी कम रह जाते हैं ।
भारत में कुल श्रम बल का लगभग पाँच में से तीन श्रमिक कृषि और संबंद्ध कार्यों से ही अपनी आजीविका का प्राप्त करता है ।
रोजगार रहित संवृद्धि – इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें सकल घरेलू उत्पाद की संवृद्धि दर में तो वृद्धि होती है परन्तु रोजगार में उसी अनुपात में वृद्धि नही होती ।
श्रम बल का अनियमतिकरण – इससे अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें समय के साथ कुल श्रमबल में भाड़े पर लिए गए आकस्मिक श्रमिकों के प्रतिशत में बढ़ने की प्रवृत्ति पाई जाती है ।
श्रमबल का अनौपचारीकरण – इसका अभिप्राय उस स्थिति से है जब लोगों में अर्थव्यवस्था के औपचारिक क्षेत्र के स्थान पर अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक पाने की प्रवृति पाई जाती है ।
बेरोजगार – जब कोई सक्षम व्यक्ति प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने को इच्छुक हो, परन्तु उसे काम नहीं मिलता हो तो उस व्यक्ति को बेरोजगार कहते हैं ।
बेरोजगारी – बेरोजगारी से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें योग्य एंव इच्छित व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर कार्य नहीं मिलता है ।
बेरोजगारी के प्रकार
ग्रामीण बेरोजगारी
( a ) मौसमी बेरोजगारी
( b ) प्रच्छन्न बेरोजगारी
शहरी बेरोजगारी
( a ) औद्योगिक बेरोजगारी
( b ) शैक्षिक बेरोजगारी
मौसमी बेरोजगारी – यह बेरोजगारी ग्रामीण भारत में पाई जाती है । इसमें श्रमिक वर्ष के कुछ ही महीने काम पाता है और वर्ष के शेष महीने बेरोजगार रहता है । इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में लगे लोगों में पाई जाती है । इसके अलावा अन्य मौसमी कार्य करने वाले शादियों में कार्य करने वाले पुरोहित एवं नाई, शादियों में काम करने वाले, बैंड बजाने वाले, ईंट भट्ठे वाले, गन्ना पिराई वाले ।
मौसमी बेरोजगारी के कारण
बहुत से लोगों का काम मौसमी होता है और पुस्तैनी होता है जिन्हें वे छोड़ना नहीं चाहते है ।
वैकल्पिक रोजगार का आभाव ।
ऐसे लोगों को अन्य दूसरा काम करने का अनुभव नहीं है ।
प्रच्छन्न बेरोजगारी – प्रच्छन्न बेरोजगारी वह स्थिति है जहाँ श्रमिक कार्य करते हुए नजर आते हैं परन्तु उनकी सीमांत उत्पादकता शून्य ऋणात्मक होती है ।
प्रच्छन्न बेरोजगारी के कारण
कृषि पर आश्रित श्रमिकों की बड़ी संख्या ।
गांवों में कृषि के अलावा अन्य वैकल्पिक रोजगारों की आभाव ।
व्यावसायिक कृषि के बजाय जीवन निर्वाह कृषि का होना ।
औद्योगिक बेरोजगारी – इस श्रेणी में उन निरक्षर व्यक्तियों को शामिल किया जा सकता है जो उद्योगों, खनिज, यातायात, व्यापार तथा निर्माण आदि व्यवसायों में काम करने के इच्छुक हैं । औद्योगिक बेरोजगारी जनसँख्या में वृद्धि के साथ बढती जाती है ।
शिक्षित बेरोजगारी – ऐसी बेरोजगारी में कोई शिक्षित व्यक्ति अन्य श्रमिकों से अधिक कार्यकुशलता होते हुए भी उनकों अपनी योग्यतानुसार काम नहीं मिलता है और वे बेरोजगारी से ग्रसित रहते हैं ।
भारत में शिक्षित बेरोजगारी के प्रमुख कारण
देश में सामान्य शिक्षा का तीव्र प्रसार |
दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति जो कि रोजगार-उन्मुख नहीं हैं |
रोजगार अवसरों का अपर्याप्त सृजन |
अन्य प्रकार की बेरोजगारी
संघर्षात्मक बेरोजगारी
चक्रीय बेरोजगारी
संरचनात्मक बेरोजगारी
खुली बेरोजगारी
बेरोजगारी के कारण
धीमी आर्थिक विकास दर
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली
अल्प विकसित कृषि क्षेत्र
धीमा औद्यागिक क्षेत्र का विकास
लघु एंव कुटीर उद्योगों का अभाव अपर्याप्तता
दोषपूर्ण रोजगार नियोजन
धीमी पूँजी निर्माण दर
बेरोजगारी की समस्या को हल करने के उपाय
सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण
कृषि क्षेत्र का विकास
लघु व कुटीर उद्योगों का विकास
आधारिक संरचना में सुधार
विशेष रोजगार कार्यक्रम
तीव्र औद्योगीकरण
गरीबी व बेरोजगारी उन्मूलन विशेष कार्यक्रम
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम । ( मनरेगा )
स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना ।
प्रधानमंत्री रोजगार योजना
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना ।