NCERT Solutions Class 12th Economics (भारत का आर्थिक विकास) Chapter – 6 ग्रामीण विकास (Rural development)
Textbook | NCERT |
class | Class – 12th |
Subject | Economics (भारत का आर्थिक विकास) |
Chapter | Chapter – 6 |
Chapter Name | ग्रामीण विकास |
Category | Class 12th Economics Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Economics (भारत का आर्थिक विकास) Chapter – 6 ग्रामीण विकास (Rural development)
?Chapter – 6?
ग्रामीण विकास
Notes
ग्रामीण विकास – ग्रामीण विकास से अभिप्राय उस क्रमबद्ध योजना से है जिसके द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के जीवन स्तर तथा आर्थिक व सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जाती है ।
ग्रामीण विकास के मुख्य तत्व –
भूमि के प्रति इकाई कृषि उत्पादकता को बढ़ाना
कृषि विपणन प्रणाली को सुधारना ताकि किसान को उसके उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त हो सके ।
ज्यादा मूल्य वाली फसलों के उत्पाद को बढ़ावा देना ।
कृषि विविधीकरण को बढ़ावा देना ।
उत्पादन की गतिविधियों का विविधीकरण ताकि फसल – खेती के अलावा रोजगार के वैकल्पिक साधनों को ढूंढा जा सके ।
ग्रामीण क्षेत्रों में साख को सुविधाएँ उपलब्ध कराना ।
ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि तथा गैर – कृषि रोजगारों द्वारा निर्धनता को कम करना ।
जैविक खेती को बढ़ावा देना ।
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओ
भारत में ग्रामीण साख के स्रोत –
गैर – संस्थागत अथवा अनौपचारिक स्रोत
संस्थागत अथवा औपचारिक स्रोत
गैर – संस्थागत अथवा अनौपचारिक स्रोत – इसमें साहकार , व्यापारी , कमीशन एजेंट , जमींदार , संबंधी तथा मित्रों को शामिल किया जाता है ।
संस्थागत अथवा औपचारिक स्रोत –
सहकारी साख समितियाँ
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया व अन्य व्यापारिक बैंक ।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ।
कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए राष्ट्रीय बैंक ( NABARD )
स्वयं सहायता समूह ।
कृषि विपणन – कृषि विपणन में उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जो फसल के संग्रहण , प्रसंस्करण , वर्गीकरण , पैकेजिंग , भण्डारण , परिवहन तथा बिक्री से सम्बन्धित है ।
कृषि विपणन के दोष –
अपर्याप्त भण्डार ग्रह
परिवहन व संचार के कम साधन
अनियमित मण्डियों में गड़बड़ियाँ
बिचौलियों की बहुलता
फसल के उचित वर्गीकरण का अभाव
पर्याप्त संस्थागत वित्त का अभाव
पर्याप्त विपणन सुविधाओं का अभाव
विपणन प्रणाली को सुधारने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम –
नियमित मण्डियों की स्थापना
कृषि उत्पादों के संग्रहण के लिए भण्डार गृह की सुविधाओं का प्रावधान ।
मानक बाट और नाप – तौल की अनिर्वायता ।
रियायती यातायात की व्यवस्था ।
कृषि व संबद्ध वस्तुओं की श्रेणी विभाजन एंव मानकीकरण की व्यवस्था ( केन्द्रीय श्रेणी नियंत्रण प्रयोगशाला महाराष्ट्र के नागपुर में है ) ।
भण्डार क्षमता को बढाने के उद्देश्य से सार्वजनिक में भारतीय खाद्य निगम ( FCI ) , केंद्रीय गोदाम निगम ( CWC ) आदि की स्थापना ।
न्यूनतम समर्थन कीमत नीति
विपणन सूचना का प्रसार
विविधीकरण – कृषि क्षेत्र में बढ़ती हुई श्रम शक्ति के एक बड़े हिस्से के अन्य और कृषि क्षेत्रों में वैक्लपिक रोजगार में अवसर ढूंढ़ने की प्रक्रिया को विविधिकरण कहते हैं ।
इसके दो पहलू है :
1 ) फसलों के उत्पादन का विविधीकरण – इसके अन्तर्गत एक फसल की बजाए बहु – फसल के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है । इसके दो लाभ है :-
मानसून की कमी के कारण होने वाले खेतों के जाखिम को कम करती है ।
यह खेतों के व्यापारीकरण को बढ़ावा देती है ।
उत्पादन गतिविधियों अथवा रोजगार का विविधिकरण – इसमें श्रम शक्ति को कृषि क्षेत्र से हटाकर गैर – कृषि कार्यों जैसे – पशुपालन , मत्स्य पालन , बागवानी आदि में लगाया जाता है ।
ग्रामीण जनसंख्या के लिए रोजगार के गैर – कृषि क्षेत्र –
पशुपालन
मछली पालन
मुर्गी पालन
मधुमक्खी पालन
बागवानी
कुटीर और लघु उद्योग
जैविक कृषि – जैविक कृषि खेती की वह पद्धति है जिसमें खेतों के लिए जैविक खाद ( मुख्यतः पशु खाद और हरी खाद ) का प्रयोग किया जाता है । इसके अन्तर्गत रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को हतोत्साहित करते हुए जैविक खाद के उपयोग पर बल दिया जाता है । यह खेत करने की वह पद्धति है जो पर्यावरण के सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उसका संरक्षण एंव संवर्धन करती है ।
जैविक कृषि के लाभ – जैविक खादों के प्रयोग से मृदा का जैविक स्तर बढ़ता है और मृदा काफी उपजाऊ बनी रहती है ।
जैविक खाद पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ प्रदान करती है , जो मृदा में मौजूद सूक्ष्म जीवों द्वारा पौधों को मिलाते हैं । जिससे पौधे स्वस्थ बनते हैं और उत्पादन बढ़ता है ।
रसायनिक खादों के मुकाबले जैविक खाद सस्ते और टिकाऊ होते हैं ।
जैविक खादों के प्रयोग से हमें पौष्टिक व स्वास्थ्य वर्धक भोजन प्राप्त होता है ।
जैविक खाद पर्यावरण मिश्र होते हैं । इनमें रासायनिक प्रदूषण नही फैलता ।
छोटे और सीमान्त किसानों के लिए सस्ती प्रक्रिया है ।
यह पद्धति धारणीय कृषि को बढावा देती है ।
जैविक खेती श्रम प्रधान तकनीक पर आधारित है ।