NCERT Solutions Class 12th Economics (व्यष्टि) Chapter – 5 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष (Balance of Payments) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Economics (व्यष्टि) Chapter – 5 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष (Balance of Payments)

TextbookNCERT
classClass – 12th
SubjectEconomics
ChapterChapter – 5
Chapter Nameखुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष
CategoryClass 12th Economics Notes In Hindi
Medium  Hindi
Sourcelast doubt

NCERT Solutions Class 12th Economics (व्यष्टि) Chapter – 5 खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष (Balance of Payments)

?Chapter – 5?

✍खुली अर्थव्यवस्था भुगतान शेष ✍

?Notes?

भुगतान शेष – भुगतान शेष एक वर्ष की अवधि में किसी देश के सामान्य निवासियों और शेष विश्व के बीच समस्त आर्थिक लेन – देनों का एक विस्तृत एवं व्यवस्थित विवरण होता है । इसे विदेशी विनिमय के वार्षिक अन्त : प्रवाह तथा बाह्य प्रवाह का लेखा भी कहा जाता है ।

भुगतान शेष के घटक –
चालू खाता
पूँजीगत खाता

चालू खाता – भुगतान शेष का चालू खाता अल्पकालीन वास्तविक लेन – देन का लेखा – जोखा होता है । इसमें दृश्य तथा अदृश्य दोनों प्रकार की मदों के आयात – निर्यात मूल्य को शामिल किया जाता है ।

चालू खाते के लेन – देन को वास्तविक खाता भी कहा जाता है । क्योंकि इनमें शामिल की जाने वाली समस्त मदों का वास्तविक रूप से लेन – देन किया जाता है । इन मदों का अर्थव्यवस्था के उत्पादन आय तथा रोजगार पर सीधा प्रभाव पड़ता है ।

चालू खाते की मदें –

तैयार वस्तुएँ – इनसे अभिप्राय निर्यात तथा आयात की उन मदों से है जो दृश्य है इसलिए इन्हें कहते हैं । निर्यात तथा आयात मदों को प्रकट करने वाले चालू खाते को अक्सर व्यापार संतुलन खाता कहते हैं ।

अदृश्य मदे – वे मदे हैं , जो सेवाओं के रूप में शेष विश्व को दी जाती हैं । या शेष विश्व से प्राप्त होती है । सेवाओं को इसलिए अदृश्य कहा जाता है क्योंकि इन्हें छुआ तथा देखा नहीं जा सकता । जैसे : बैंकिग , बीमा , यातायात आदि को शामिल किया जाता है ।

एक पक्षीय अन्तरण – विदेशों से प्राप्त दान व उपहार आदि लेनदारी पक्ष में रखे जाते हैं तथा अन्य देशों को दिए गए , इसी प्रकार के दान तथा उपहार देनदारी पक्ष ( Debit Side ) में रखे जाते हैं इनमें निजी क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र दोनों प्रकार के अन्तरण को शामिल किया जाता है ।

निवेश आय – इससे अभिप्राय लगान , ब्याज , लाभ जैसों से है । हमारे देश द्वारा शेष विश्व से अर्जित आय “ प्राप्ति ” के रूप में तथा शेष विश्व द्वारा हमारे देश अर्जित आय को भुगतान के रूप में दिखाया जाता है ।

पूँजी खाता – भुगतान संतुलन का पूँजी खाता वित्तीय लेन – देन में संबंधित हैं । इसमें सभी प्रकार के अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन पूँजीगत अन्तरणों को शामिल किया जाता है । स्वर्ण के आदान – प्रदान को भी इसमें शामिल किया जाता है , इसका अर्थव्यवस्था के उत्पादन आय तथा रोजगार पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता ।

पूँजीगत खाते की मदें 

निजी विदेशी ऋण का लेन – देन – निजी क्षेत्र द्वारा विदेशी ऋणों की प्राप्ति की लेनदानी जमा या ( Credit Side ) तथा इन ऋणों की वापसी की देनदारी या नाम ( Debit Side ) पक्ष में लिखा जाता है ।

बैंकिग पूँजी का प्रवाह – केन्द्रीय बैंक के अतिरिक्त बैंक पूँजी का आंतरिक प्रवाह जमा मद ( Credit Side ) में तथा बाध प्रवाह नाम मद ( Debit Side ) में शामिल होता है ।

सरकारी पूँजी का लेन देन – सरकारी क्षेत्र द्वारा विदेशों से तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त ऋण की जमा खाते ( Credit Side ) में तथा वापिस किए हुए ऋणों के खाते ( Debit Side ) में शामिल किया जाता है ।

सोने का लेन – देन – जब एक देश का केन्द्रीय बैंक विदेशों से सोना खरीदता है तो उसे भुगतान संतुलन के देनदारी पक्ष में लिखा जाता है , इसके विपरीत यदि सोना बेचता है , तो उसे भुगतान संतुलन में लेनदारी पक्ष में लिखा जाता है ।

अन्य विधि – उपरोक्त मदों के अतिरक्ति सभी प्रकार की सरकारी प्राक्तियों को जमा पक्ष में ( Credit Side ) तथा सभी सरकार के भुगतान के नाम पक्ष मे लिखा जाता है ।

भुगतान शेष में असंतुलन – असंतुलन उस अवस्था को कहते हैं , जिसमें भुगतान शेष या तो बचत वाला हो या घाटे वाला हो । भुगतान शेष में असंतुलन तब पाया जाता है जब सभी प्राप्तियाँ भुगतान से अधिक होती हैं तो भुगतान बचत वाला होता है तथा जब सभी प्राप्तियाँ , भुगतान से होती हैं । भुगतान संतुलन घाटे वाला होता है ।

भुगतान शेष असंतुलन होने के निम्नलिखित कारण 

विकास कार्यक्रम – विकासशील देशों में सरकार द्वारा विकास कार्यक्रमों के लिए बड़े पैमाने पर आयात किए जाते हैं । जिससे भुगतान शेष में असंतुलन पैदा होता है ।

जनसंख्या में वृद्धि – विकसित देशों की तुलना में अल्पविकसित देशों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है । जिससे वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग में तेजी से वृद्धि हो रही है । परिणामस्वरूप निर्यात घट रहा है तथा आयात बढ़ रहा है , जिससे भुगतान शेष में असंतुलन उत्पादन होता है ।

मुद्रा स्फीति – घरेलू बाजार में मुद्रा स्फीति की दरें ऊँची होने से बड़ी मात्रा में आवश्यक वस्तुओं का आयात करना पड़ता है जिससे अर्थव्यवस्था के भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न होता है ।

व्यापार चक्र – मँदी अथवा तेजी के रूप में व्यापार चक्री का चलना । तेजी के समय देश में बड़ी मात्रा में निर्यात किए जाते हैं जिससे भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न होता है ।

प्राकृतिक कारण – प्राकृतिक आपदाएँ जैसे : सूखा , बाढ़ , भूकम्प आदि देश के उत्पादन पर कुप्रभाव डालते हैं । जिससे देश के परिणास्वरूप भुगतान शेष की स्थिति उत्पन्न होता है ।

भुगतान शेष तथा व्यापार में अन्तर –व्यापार शेष केवल दृश्य वस्तुओं के निर्यात आयात का अन्तर है जबकि भुगतान शेष एक देश तथा शेष विश्व के साथ किए गए आर्थिक लेन – देन का लेखा – जोखा है ।

व्यापार शेष भुगतान शेष चालू खाते का एक भाग है , जबकि भुगतान शेष चालू खाते तथा पूँजी खाते से संबंधित है ।

व्यापार शेष केवल दृश्य मदें ही शामिल होती हैं जबकि भुगतान शेष में दृश्य तथा अदृश्य दोनों प्रकार की मदें शामिल होती हैं ।

व्यापार शेष अनुकूल / प्रतिकूल या संतुलित हो सकता है , जबकि भुगतान शेष सदैव संतुलित रहता है ।

व्यापार शेष – किसी देश के सामान्य निवासियों ओर शेष विश्व के बीच दृश्य मदों ( वस्तुओं ) के आयात तथा निर्यात का अन्तर होता है ।

स्वायत्त सौदों – स्वायत्त सौदों से अभिप्राय उन आर्थिक लेन देनों से है जिन्हें लाभ के उद्देश्य से किया जाता है । इनका उद्देश्य भुगतान शेष खाते में सन्तुलन बनाए रखना नहीं होता । इन्हे रेखा के ऊपर की मदें कहा जाता है ।

समायोजन मदें – समायोजन मदें वे आर्थिक सौदें हैं जिन्हें किसी देश की सरकार द्वारा भुगतान शेष को सन्तुलित बनाए रखने के लिए किया जाता है , इनका उद्देश्य भुगतान शेष खाते के असन्तुलन को दूर करना होता है , इन्हें रेखा के नीचे की मदें भी कहा जाता है ।

भुगतान शेष में घाटा – जब स्वायत्त प्राप्तियों का मूल्य , स्वायत्त भुगतान के मूल्य से कम हो जाता है तो भुगतान शेष में घाटा कहते हैं ।

विनिमय दर – एक देश की करेन्सी का जिस दर पर दूसरे देश की करेन्सी से विनिमय किया जाता है उसे विदेशी विनिमय दर कहते हैं ।

विनिमय दर के प्रकार –
स्थिर विदेशी विनिमय दर
लोचशील या नम्य विनिमय दर

स्थिर विदेशी विनिमय दर – वह विदेशी विनिमय दर जिसका निर्धारण या तो देश की सरकार या मौद्रिक अथॉरिटी ( केन्द्रीय बैंक ) करें उसे स्थिर विदेशी विनिमय दर कहते हैं ।

लोचशील या नम्य विनिमय दर – लोचशील या नम्य विनिमय दर का निर्धारण विदेशी विनिमय की मांग तथा पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करता है । विदेशी मुद्रा की मांग तथा नम्य विनिमय दर में विपरीत सम्बन्ध होता है । यदि विनिमय दर ऊँची है तो विदेशी मुद्रा की मांग कम होगी ।

और विलोमशः इसके विपरीत विदेशी विनिमय दर व विदेशी मुद्रा की पूर्ति में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है । यदि विदेशी विनिमय दर अधिक है , तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति अधिक होगी ।

नम्य विनिमय दर के गुण –
विदेशी मुद्राओं के भण्डार की आवश्यकता नहीं
संसाधनों का सर्वोत्तम आबंटन
भुगतान सन्तुलन खाते में स्वतः समायोजन
व्यापार ओर पूँजी के आवागमन में आने वाली रूकावटों को दूर करना

नम्य विनिमय दर के दोष –
विदेशी विनिमय दर में अस्थिरता
सट्टेबाजी को बढ़ावा

नम्य विनिमय दर का निर्धारण –
नम्य विनिमय दर प्रणाली के अन्तर्गत , विदेशी विनिमय दर का निर्धारण बाजार शक्तियों द्वारा होता हैं । दूसरे शब्दों में सन्तुलन विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग तथा उसकी पूर्ति द्वारा होता है ।

विदेशी विनिमय की मांग तथा विनिमय दर में विपरीत सम्बन्ध होता है । इसलिए विदेशी विनिमय की मांग वक्र ऋणात्मक ढाल की होती है । विदेशी विनिमय की पूर्ति तथा विनिमय दर में धनात्मक ( प्रत्यक्ष ) सम्बन्ध होता है ।

इसलिए विदेशी विनिमय की पूर्ति वक्र धनात्मक ढाल की होती है । दोनों वक्रों के अतः क्रिया द्वारा सन्तुलन विदेशी विनिमय दर का निर्धारण होता है ।

विदेशी मुद्रा मांग के स्रोत –
विदेशों में वस्तुओं व सेवाएँ खरीदने के लिए
विदेशों में वित्तीय परिसम्पत्तियां ( जैसे बांड , शेयर ) खरीदने के लिए
विदेशी मुद्राओं के मूल्यों पर सट्टेबाजी के लिए
विदेशो में प्रत्यक्ष निवेश ( जैसे – दुकान , मकान , फैक्टरी खरीदना ) के लिए

विदेशी मुद्रा की पूर्ति के स्रोत –
विदेशियों द्वारा घरेलू बाजार में प्रत्यक्ष ( वस्तुओं व सेवाओं की ) खरीद
विदेशियों द्वारा प्रत्यक्ष निवेश
विदेशी पर्यटकों का हमारे देश में भ्रमण
विदेशों में रहने वाले अनिवासी भारतीय द्वारा भेजा गया धन या प्रेषणाएँ ( एक पक्षीय हस्तातरण )
वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात

सन्तुलन विनिमय दर – वह विदेशी विनिमय दर जिस पर विदेशी विनिमय की मांग और पूर्ति दोनों बराबर होते हैं उसे सन्तुलन विदेशी विनिमय दर कहते हैं ।

प्रबंधित तरणशीलता – एक ऐसी प्रणाली है , जिसमें केन्द्रीय बैंक विदेशी विनिमय दर के निर्धारण को बाजार शक्तियों पर छोड़ देता है परन्तु समय – समय पर आवश्यकता के अनुसार दर को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप भी करता है । जब विदेशी विनिमय की दर अत्यधिक निम्न हो केन्द्रीय बैंक विदेशी विनिमय का क्रय करना शुरू कर देता है और जब विदेशी विनिमय की दर अधिक हो तो विदेशी विनिमय का विक्रय शुरू कर देता है ।

अवमूल्यन – जब देश की सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक घरेलू मुद्रा का बाह्य मूल्य घटाती है तो उसे अवमूल्यन कहते हैं । इससे आयात महंगी तथा निर्यात सस्ती हो जाती है । सामान्यतः यह स्थिर विनियम दर प्रणाली में होता है ।

अधिमूल्यन – जब सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक घरेलू मुद्रा के बाह्य मूल्य को बढ़ाती है तो मुद्रा का अधिमूल्यन कहलाता हैं । सामान्यतः यह स्थिर विनिमय दर में होता हैं ।

मुद्रा का मूल्यहास – जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मुद्रा की माँग तथा पूर्ति के फलस्वरूप घरेलू मुद्रा के मूल्य में विदेशी मुद्रा के मूल्य के सापेक्ष गिरावट आती है तो यह मुद्रा को मूल्यहास कहलाता है ।

मुद्रा की मूल्यवृद्धि – अंतर्राष्ट्रीय बाजार में , मुद्रा की मांग तथा पूर्ति के फलस्वरूप घरेलू मुद्रा के मूल्य में विदेशी मुद्रा के सापेक्ष बढ़ोतरी होती है तो यह मुद्रा की मूल्यवृद्धि कहलाती है ।