NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन (Globalisation and Social Change) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन (Globalisation and Social Change)

TextbookNCERT
Class 12th
Subject Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास)
ChapterChapter – 6
Chapter Nameभूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन
CategoryClass 12th Sociology Notes in Hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन (Globalisation and Social Change) Notes In Hindi भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन क्या है? भारत में सामाजिक परिवर्तन क्या है तथा भारत में सामाजिक परिवर्तन के कारण और प्रभाव की चर्चा कीजिए? भारतीय समाज पर भूमंडलीकरण का प्रभाव क्या है? सामाजिक परिवर्तन क्या है सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक एवं तकनीकी कारको का उल्लेख कीजिए? सामाजिक परिवर्तन कितने प्रकार के होते हैं? भूमंडलीकरण का दूसरा नाम क्या है? भूमंडलीकरण का

NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 6 भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन (Globalisation and Social Change)

Chapter – 6

भूमंडलीकरण और सामाजिक परिवर्तन

Notes

भूमंडलीकरण – सामाजिक परिवर्तन का केन्द्रीय बिन्दु है। यह आम लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है मध्यम वर्ग के लिए रोजगार, खुदरा व्यापार बहु राष्ट्रीय कपंनियों द्वारा शुरू करना, बड़े बिक्री भंडार, युवाओं के लिए समय बिताने की विधियां तथा अन्य क्षेत्र प्रदान कर रहा है।

इससे हमारा सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन बदल रहा है। चीन तथा कोरिया से रेशम धागों का आयात करने से बिहार के कामगारों पर प्रभाव, बड़े जहाजों द्वारा मछली पकड़ने के कारण भारतीय मछुआरों पर कुप्रभाव, सूडान से गोंद आने पर गुजरात की औरतों के रोजगार में कमी आ रही है।

भूमंडलीकरण भारत तथा विश्व के लिए नए है

आज से 2000 वर्ष पहले भी भारत, चीन, फ्रांस, रोम से सिल्क रूट द्वारा जुड़ा था। दार्शनिक, व्यापारी, विजेता आदि के रूप में हमारा विभिन्न देशों से सम्बन्ध रहा है। उपनिवेशवाद के बाद इसमे बढ़ोतरी ही हुई है। अन्य देशों में जाकर बसना, मजदूरों को बाहर ले जाना इसका विशेषीकरण पक्ष है। स्वतंत्र भारत में भी आयात निर्यात किसी न किसी रूप में विद्यमान हैं।

प्रारंभिक वर्ष में भारत आज से दो हजार वर्ष पहले भी विश्व से अलग-थलग नहीं था। प्रसिद्ध रेशम मार्ग (सिल्करूट), यह मार्ग सदियों पहले भारत को उन महान सभ्यताओं से जोड़ता था जो चीन, फ्रांस, मिस्र और रोम में स्थित था। विश्व के भिन्न-भिन्न भागों से लोग यहाँ आए थे, कभी व्यापारियों के रूप में, कभी विजेताओं के रूप में, कभी प्रवासी के रूप में।

उपनिवेशवाद और भूमंडलीय संयोजन

उपनिवेशवाद उस व्यवस्था का एक भाग था जिसे पूँजी, कच्ची सामग्री, ऊर्जा, बाज़ार के नए स्रोतों और एक ऐसे संजाल की आवश्यकता थी जो उसे सँभाले हुए था। लोगों का सबसे बड़ा प्रवसन यूरोपीय लोगों का देशांतरण था जब वे अपना देश छोड़कर अमेरिका, आस्ट्रेलिया में जा बसे थे।

भारत से गिरमिटिया मजदूरों को किस प्रकार जहाजों में भरकर एशिया, अफ्रीका और उत्तरी – दक्षिणी अमेरिका के दूरवर्ती भागों में काम करने के लिए ले जाया जाता था। दास व्यापार के अंतर्गत हज़ारों अफ्रीकियों को दूरस्थ तटों तक गाड़ियों में भरकर ले जाया गया था।

स्वतंत्र भारत और विश्व-स्वतंत्र भारत ने भूमंडलीय दृष्टिकोण को अपनाए रखा। बहुत से भारतवासियों ने शिक्षा एवं कार्य के लिए समुद्र पार की यात्राएँ की। एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया थी कच्चा माल, सामग्री और प्रौद्योगिकी का आयात और निर्यात स्वतंत्रता प्राप्ति के समय से ही देश के विकास का अंग बना रहा। विदेशी कंपनियाँ भारत में सक्रिय थी।

विश्व व्यापार संगठन – विश्व व्यापार संगठन एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसे 1955 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा स्थापित किया गया था। यह संगठन विभिन्न कानूनों, नियमों और नीतियों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और सेवाओं को नियंत्रित करता है। इसका मुख्यालय जिनेवा में है।

गिरमिटिया मजदूर 

• पारित रहने और भोजन के भुगतान के बदले एक विदेशी देश में एक निश्रित अवधि के लिए रोजगार के एक पुनः अनुबंध के तहत श्रमिक कार्य।

• दासता के उन्मूलन के बाद 1939 से कैरिएवियन में चीनी बागान पर रोजगार के लिए भारत से श्रमिकों के व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया।

भूमंडलीकरण के  आयाम –

• आर्थिक
• राजनीतिक
• सांस्कृतिक

उदारीकरण की आर्थिक नीति – उदारीकरण शब्द का तात्पर्य ऐस अनेक नीतिगत निर्णयों से है जो भारत राज्य द्वारा 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार के लिए खोल देने के उद्देश्य से लिए गए थे। अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का अर्थ था भारतीय व्यापार को नियमित करने वाले नियमों और वित्तीय नियमनों को हटा देना। उदारीकरण की प्रक्रिया के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आई.एम.एफ.) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से ऋण लेना भी जरूरी हो गया।

भूमंडलीकरण व राजनीतिक परिवर्तन – समाजवादी विश्व का विघटन एक बड़ा राजनीतिक परिवर्तन था इसके कारण भूमंडलीकरण की प्रक्रिया की गति काफी बढ़ गई है। इससे एक विशेष आर्थिक व राजनीतिक दृष्टिकोण बना है। इन परिवर्तनों को ‘नव उदारवादी’ उपाय कहते है।

भूमंडलीकरण के साथ ही एक अन्य राजनीतिक घटनाक्रम भी हो रहा है। वह है राजनीतिक सहयोग के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय रचना तन्त्र। जैसे यूरोपीय संघ (E.U) दक्षिण एशियाई राष्ट्र संघ (एशियान), दक्षिण एशियाई व्यापार संघ (बोर्डस) अन्तर्राष्ट्रीय सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों के विशिष्ट पारराष्ट्रीय कार्यक्षेत्र का प्रबंध करता है।

अतः सरकारी संगठन सहभागी सरकारों के विशिष्ट पारराष्ट्रीय कार्यक्षेत्र का प्रबंध करता है। जैसे विश्व व्यापार संघ व्यापार नियमों पर निगरानी रखता है अन्य उदाहरण है- ग्रीनपीस, रेडक्रास, एम्नस्टी इंटरनेशनल फ्रंटियरिस, डाक्टर्स विदाउट बोर्डस।

भूमंडलीकरण तथा संस्कृति – पिछले दशकों में काफी सांस्कृतिक परिवर्तन हुए है, जिसके कारण यह डर पैदा हो गया कि कहीं हमारी संस्कृति पीछे न रह जाए, परन्तु आज भी हमारा देश में राजनीतिक व आर्थिक मुद्दों के अलावा कपड़ो, शैलियों, संगीत, फिल्म, हावभाव, भाषा आदि पर खूब बहस होती है।

पार राष्ट्रीय निगम – ये कंपनीया एक से अधिक देशों में अपने माल का उत्पाद करती है। या बाजार में सेवाएं प्रदान करती है इनके कारखाने उस देश से बाहर भी होते है जिससे ये मूल रूप से जुड़ी होती है। जैसे कोका कोला, पैप्सी, जनरल मोटर, कोडक, कोलगेट, बाटा आदि।

इल्कट्रोनिक अर्थव्यवस्था – कम्प्यूटर द्वारा या इंटरनेट द्वारा बैकिंग, निगम, निवेशकर्ता, अपनी निधि को अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर इधर-उधर भेज सकते हैं।

भार रहित या ज्ञानात्मक अर्थव्यवस्था – इसमें उत्पाद सूचना पर आधारित होते है, न कि कृषि तथा उद्योग पर जैसे इन्टरनेट सेवाएं, मनोरंजन के उत्पाद, मीडिया, साफ्टवेयर, आदि। वास्तविक कार्यबल भौतिक उत्पादन तथा वितरण में नहीं होता है। यह इनके डिजाईन, विकास, प्रौद्योगिकी, विपणन, बिक्री तथा सर्विस आदि में होता है।

वित्त का भूमंडलीकरण – सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति के कारण वित्त का भूमंडलीकरण हुआ है। भूमंडलीय आधार पर एकीकृत वित्तीय बाज़ार इलेक्ट्रानिक परिपथों, कुछ क्षणों में अरबों-खरबों डालर के लेन-देन होते है। पूँजी और प्रतिभूति बाजारों में चौबीसों घंटे बाजार चलता रहता है। न्यूयार्क, टोकियों और लंदन जैसे नगर वित्तीय व्यापार के प्रमुख केन्द्र है।

भूमंडलीय संचार – इसके कारण बाहरी दुनिया के साथ संबंध बने है। टेलीफोन, फैक्स मशीन, डिजीटल तथा केबल टेलीविजन, इंटरनेट आदि इसमें सहायक बने। डिजिटल विभाजन दुनिया के सम्बन्ध बनाए रखने के बहुत से साधन मौजूद है, लेकिन कुछ जगह ऐसी भी हैं जहाँ ये साधन बिल्कुल भी नहीं है। इसे डिजिटल विभाजन कहा जाता है।

भूमंडलीय तथा श्रम – भूमंडलीकरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक नया श्रम विभाजन पैदा हुआ है। इसमें तीसरी दुनिया के शहरों में नियन्त्रित निर्माण, उत्पादन व रोजगार दिया जाता है ‘नाइके’ कम्पनी 1960 के दशक में जूतों का आयात करने वाली कम्पनी के रूप में विकसित हुई। इसका मालिक फिल नाईक जापान से जूते आयात करते तथा खेल आयोजनों पर बेचते थे। अब यह कम्पनी बन गई नाईक ने दक्षिण कोरिया में उत्पादन शुरू किया। इसी प्रकार 1980 में थाईलैंड व इंडोनेशिया तथा 1990 भारत में उत्पाद शुरू कर दिया।

फोर्डवाद – एक केन्द्रीय स्थान पर विशाल पैमाने पर उत्पादन फोर्डवाद कहलाती है।

फोर्डवादोत्तर – केन्द्रीय स्थान की बजाय अलग-अलग स्थानों पर उत्पादन लचीली प्रणाली के अन्तर्गत पोस्ट फोर्डवाद (फोर्डवादोत्तर) कहलाता है।

सजातीय बनाम संस्कृति का भू-स्थानीयकरण (ग्लोकलाइजेशन) – यह माना जाता है कि कुछ समय बाद सब संस्कृतियाँ एक समान हो जाएगी, कुछ मानते है की संस्कृति का भू-स्थानीयकरण की प्रवृत्ति बढ़ रही है। अर्थात् भूमंडल के साथ स्थानीय मिश्रण, मैकडोनाल्ड भी भारतीयों की परम्परा के अनुसार उत्पाद बेचता है। संगीत के क्षेत्र में भी भांगड़ा पोप, इंडियाफ्यूजन म्यूजिक आदि लोकप्रियता बढ़ रही है। इस प्रकार भूमंडलीकरण के कारण स्थानीय परमपराओं के साथ-साथ भूमंडलीकरण परम्पराएं भी पैदा हो रही है।

लिंग तथा संस्कृति – परम्परागत संस्कृति का समर्थन करने वाले कुछ व्यक्ति महिलाओं के प्रति भूमंडलीकरण का प्रभाव नकारात्मक मानते है। फैशन व खुलापन की सांस्कृतिक पहचान के नाम पर विरोध करते है तथा शंकालु बनाते है सौभाग्य से भारत अपनी लोकतान्त्रिक परम्परा कायम रखते हुए समावेशात्मक नीति विकसित करने मे सफल रहा है।

उपयोग की संस्कृति – सांस्कृतिक उपभोग (कला, फैशन, खाद्य, संगीत) नगरीं की वृद्धि की आकार देता है। भारत के बड़े शहरों में बड़े-बड़े शापिंग माल, मल्टीप्लेक्स सिनेमाघर, मनोरंजन, उद्यान, जल क्रीड़ास्थल (Water Pump) आदि इसके उदाहरण है।

निगम संस्कृति (कॉरपोरेट)

प्रबंध सिद्धान्त जिसमें फर्म के सभी सदस्यों को साथ लेकर एक विशेष संगठन की संस्कृति का निमार्ण करके उत्पादकता और प्रतियोगिता का बढ़ावा देते है। इससे कम्पनी के कार्यक्रम रीतियाँ, तथा परंपराएँ शामिल है। ये कर्मचारियों में वफादारी व एकता को बढ़ाती हैं।

स्वदेशी शिल्प, साहित्यिक परम्पराओं व ज्ञान व्यवस्थाओं को खतरा-भूमंडलीकरण के कारण हमारी साहित्यिक पराम्पराओं एवं ज्ञान व्यवस्थाओं पर भी कुप्रभाव आए है।

जैसे – कपड़ा मिले (बम्बई) बन्द होने के कारण थिएटर समुह समाप्त या निष्क्रिय हो गए है लेकिन कृषि, स्वास्थ्य संबंधी परम्परा गत ज्ञान सुरक्षित रखे जाते है। तुलसी, हल्दी, बासमती चावल, रूद्राक्ष आदि को विदेशी कम्पनियों पेटेन्ट कराने की कोशिश करती रहती है।

इसी तरह से डोमबारी समुदाय की हालत भी काफी खराब हो चुकी है। इनके करतब आज कल प्रसन्द नहीं किए जाते क्योकि अन्य मनोरंजन के साधन उपलब्ध है।