NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 1 संरचनात्मक परिवर्तन (Structural Change)
Textbook | NCERT |
class | 12th |
Subject | Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) |
Chapter | 1st |
Chapter Name | संरचनात्मक परिवर्तन |
Category | Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 1 संरचनात्मक परिवर्तन (Structural Change) Notes In Hindi संरचनात्मक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं कक्षा 12 समाजशास्त्र? भारत में सामाजिक परिवर्तन क्या है तथा भारत में सामाजिक परिवर्तन के कारण और प्रभाव की चर्चा कीजिए? सामाजिक परिवर्तन और विकास क्या है? सामाजिक परिवर्तन को अन्य प्रकार के परिवर्तन से कैसे अलग किया जाए? संरचनात्मक परिवर्तन समाजशास्त्र कक्षा 12 क्या है? संरचना में परिवर्तन और समाजशास्त्र में संरचना का परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन का सिद्धांत कौन है? सामाजिक संरचना एवं प्रकार में होने वाले परिवर्तन को क्या कहते हैं? समाजशास्त्र में परिवर्तन का अर्थ क्या है? संरचनात्मक विकास का अर्थ क्या है? समाजशास्त्र कक्षा 12 के नोट्स में उपनिवेशवाद क्या है? समाजशास्त्र कक्षा 12 में शहरीकरण क्या है? के तीन मुख्य कारण क्या हैं? शहरीकरण का अर्थ क्या है? समाज पर शहरीकरण का क्या प्रभाव है? सामाजिक परिवर्तन के 3 प्रकार कौन से हैं? सामाजिक विकास का अर्थ क्या है? समाजीकरण का क्या अर्थ है? समाजीकरण के 4 चरण क्या हैं? |
NCERT Solutions Class 12th Sociology (भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं विकास) Chapter – 1 संरचनात्मक परिवर्तन (Structural Change)
Chapter – 1
संरचनात्मक परिवर्तन
Notes
संरचनात्मक परिवर्तन – संरचनात्मक परिवर्तन से समाज की संरचना में ही परिवर्तन आ जाता है। इसका अर्थ है कि जब समाज में चल रही संस्थाओं अथवा नियमों में परिवर्तन आना शुरू हो जाए तो उसे संरचनात्मक परिवर्तन कहते हैं। उदाहरण के तौर पर – प्राचीन समय में वस्तु अथवा सेवाओं का लेन-देन चलता था परंतु आजकल विनिमय व्यवस्था नहीं बल्कि वस्तु के बदले में पैसे दिए जाते हैं।
उपनिवेशवाद – एक स्तर पर एक देश द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है। भारत में यह शासन किसी अन्य शासन से अधिक प्रभावशाली रहा। उपनिवेशवाद ने सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में परिवर्तनों के दिशा दी एवं उन पर अनेक प्रभाव डाले।
भारत मे उपनिवेशवाद के कारण आये संरचनात्मक परिवर्तन – उपनिवेशवाद का भारतीय समाज पर प्रभाव ब्रितानी उपनिवेशवाद पूँजीवाद व्यवस्था पर आधारित था। इसने आर्थिक व्यवस्था में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया, जिसके कारण इसे मजबूती मिली। वस्तुओं की उत्पादन प्रणाली व वितरण के तरीके भी बदल दिए।
• जंगल काट कर चाय की खेती की शुरूआत की तथा जंगलों को नियंत्रित एवं प्रशासित करने के लए अनेक कानून बनाए।
• उपनिवेशवाद के दौरान लोगो का आवगमन बड़ा : डाक्टर व वकील मुख्यतः बंगाल व मद्रास से चुनकर देश विदेश के विभिन्न भागों में सेवा के लिए भेजे गए। व्यवसायियों का अवागमन भी बढ़ा। यह भारत तक सीमित न रह कर सुदूर एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका उपनिवेश तक बढ़ गया।
• आज के झारखंड प्रदेश से उन दिनों बहुत से लोग चाय बागानों में मजदूरी करने के उद्देश्य से असम आए। भारतीय मजदूरों एवं दक्ष सेवाकर्मियों को जहाजों के माध्यम से सुदुर एशिया, अफ्रीका और अमेरिका भेजा गया।
• उपनिवेशवाद ने वैधानिक, सांस्कृतिक व वास्तुकला में भी परिवर्तन लाए। कुछ परिवर्तन सुनियोजित तरीकों से लाग गए थे।
• जैसे पश्चिमी शिक्षा पद्धति को भारत में इस उद्देश्य से लाया गया कि उससे भारतीयों का एक ऐसा वर्ग तैयार हो जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद को बनाए रखने में सहयोगी हो। यही पश्चिमी शिक्षा पद्धति राष्ट्रवादी चेतना एवं उपनिवेश विरोधी चेतना का माध्यम बनी।
• ब्रिटिश उपनिवेशवाद अब भी हमारे जीवन काएक जटिल हिस्सा है। हम अंग्रेजी भाषा का उदाहरण ले सकते हैं।
• बहुत से भारतीयों ने अंग्रेजी भाषा में उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाएँ की है। अंग्रेजी के ज्ञान के कारण विशेष स्थान प्राप्त है। जिसे अंग्रेजी का ज्ञान नहीं होता है उसे रोजगार के क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अंग्रेजी ज्ञान से अब दलितों के लिए भी अवसरों के द्वार खुल गए है।
पूँजीवाद – एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसके उत्पादन के साधनों का स्वामित्व कुछ विशेष लोगों के हाथ में होता है। इसमें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर जोर दिया जाता है इसे गतिशीलता, वृद्धि, प्रसार, नवीनीकरण, तकनीक तथा श्रम के बेहतर उपयोग के लिए जाना गया। इससे बाजार को एक विस्तृत भूमंडलीकरण रूप में देखा जाने लगा। भारत में भी पूँजीवाद के विकास के कारण उपनिवेशवाद प्रबल हुआ और इस प्रक्रिया का प्रभाव भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना पर पड़ा।
औद्योगीकरण – औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है। जिसके तहत उत्पादन मानवीय श्रम के आधार पर ना होकर मशीनों से होता है। यहां उत्पादन बहुत बड़े स्तर पर होता है। औद्योगिक समाजों में ज्यादा से ज्यादा रोजगार वृत्ति में लगे लोग कारखानों, ऑफिस और दुकानों में काम करते हैं।
प्रवास – काम खोजने या रहने के लिए व्यक्तियों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना।
आधुनिक लौह एवं इस्पात केंद्र – भिलाई, बोकारो, दुर्गापुर, राउरकेला।
संस्कृतिकरण – उस प्रक्रिया का संदर्भ लें जिसके द्वारा मध्यम या निचली जातियां अपने ऊपर की जातियों के कर्मकांडों और सामाजिक व्यवहार/प्रथाओं को सीमित करके ऊपर की ओर सामाजिक गतिशीलता चाहती हैं।
अंग्रेजों द्वारा विकसित व्यापार केंद्र – मुंबई, कोलकाता, चेन्नई।
शहरीकरण – वह प्रक्रिया जिसके द्वारा शहरों में जनसंख्या बढ़ती है और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी शहरी समाज की जीवन शैली को आत्मसात करते है।
नगरीकरण को औद्योगीकरण से जोड़कर देखना – औद्योगीकरण का सम्बन्ध यान्त्रिक उत्पादन के उदय से जो ऊर्जा के गैर मानवीय संसाधनों पर निर्भर होता है इसमें ज्यादातर लोग कारखानों दफ्तरों तथा दुकानों में काम करते है तथा इसके कारण कृषि व्यवसाय में लोगों की संख्या कम होती जा रही है। औपनिवेशिक काल के नगरीकरण में पुराने शहरों का अस्तित्व कमजोर होता गया और उनकी जगह पर नए औपनिवेशक शहरों का उद्भव और विकास हुआ। नगरीकरण को औद्योगीकरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दोनों एक साथ होने वाली प्रकियाएँ है कई बार औद्योगिक क्षरण भी देखा गया है। भारत में कुछ पुराने, पंरपरात्मक नगरीय केन्द्रों का पतन हुआ। जिस तरह ब्रिटेन में उत्पादन व निर्माण में बढ़ावा आया उसके विपरीत भारत में गिरावट आई। प्राचीन नगर जैसे- सूरत ओर मसुलीपट्टनम का अस्तित्व कमजोर हुआ।
उपनिवेशवाद के दौरान औद्योगीक परिवर्तन
• आधुनिक नगर जैसे बंबई, कलकत्ता, मद्रास जो उपनिवेशवादी शासन में प्रचलित हुए मजबूत होते गए।
• बंबई से कपास, कलकत्ता से जूट, मद्रास से कहवा, चीनी, नील तथा कपास ब्रिटेन को निर्यात किया जाता था।
• प्रारम्भ में भारत के लोग औद्योगीकरण के कारण ब्रिटिशों के विपरीत कृषि क्षेत्र की ओर आए।
• इस प्रकार नए सामाजिक समूह तथा नए सामाजिक सम्बन्धों का उदय हुआ।
• स्वतंत्रता के बाद भारत की आर्थिक स्थिति को औद्योगीकरण के द्वारा ही सुधारा जा सका।
चाय की बागवानी – अधिकारिक रिपोर्ट से पता चलता है कि औपनिवेशिक सरकार गलत तरीकों से मजदूरों की भर्ती करती थी। मजदूरों को बलपूर्वक बागानों में सस्ते में काम कराया जाता था। इससे बागान वालो को फायदा मिलता था। बगानों के मालिक अंग्रेज और उनकी मेम विशाल बंगलों में रहते थे। सारा जरूरत का सामान उनके पास मौजुद था। उनकी जिंदगी चकाचौंध में भरी थी।
स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण
• औद्योगीकरण को स्वतंत्र भारत ने सक्रियतौर पर बढ़ावा दिया।
• स्वदेशी आंदोलन ने भारत की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के प्रति निष्ठा को मजबूत किया।
• तीव्र और वृहद् औद्योगीकरण के द्वारा आर्थिक स्थिति में सुधार और सामाजिक न्याय हो पाया।
• भारी मशीनीकृत उद्योगों का विकास हुआ। इन्हें बनाने वाले उद्योग, पब्लिक सेक्टर के विस्तार और बड़े को ऑपरेटिव सेक्टर को महत्वपूर्ण माना गया।
स्वतंत्र भारत में नगरीकरण – भूमण्डलीकरण द्वारा शहरों का अत्यधिक प्रसार हुआ।
एम. एस. ए. राव के अनुसार भारतीय गाँव पर नगरों के प्रभाव
• कुछ गाँव ऐसे है जँहा से अच्छी खासी संख्या में लोग दूरदराज के शहरों में रोज़गार ढूँढ़नें के लिए जाते है। बहुत सारे प्रवासी केवल भारतीय नगरों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रहते हैं।
• शहरी प्रभाव उन गाँवों में देखा जाता है जो औद्योगिक शहरों के निकट स्थित है जैसे भिलाई।
• महानगरों का उद्भव और विकास तीसरे प्रकार का शहरी प्रभाव है जिससे निकटवर्ती गाँव प्रभावित होते है। कुछ सीमावर्ती गाँव पूरी तरह से नगर के प्रसार में विलीन हो जाते है। जबकि वे क्षेत्र जहाँ लोग नहीं रहते नगरीय विकास के लिए प्रयोग कर लिए जाते हैं।