NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 10 खेलों में प्रशिक्षण (Training in Sports) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 10 खेलों में प्रशिक्षण (Training in Sports)

TextbookNCERT
classClass – 12th
SubjectPhysical Education
ChapterChapter – 10
Chapter Nameखेलों में प्रशिक्षण
CategoryClass 12th Physical Education Notes In Hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 10 खेलों में प्रशिक्षण (Training in Sports)

Chapter – 10

खेलों में प्रशिक्षण

Notes

भूमिका (Introduction) – प्रशिक्षण किसी कार्य की तैयारी की दीर्घकालीन प्रक्रिया है। तथा

किसी खेल अथवा प्रतियोगिता में अच्छे परिणाम प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई तैयारी को खेल प्रशिक्षण कहा जाता है। प्रशिक्षण की अवधारणा कोई नई बात नहीं है। मनुष्य द्वारा विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रशिक्षण की प्रक्रिया सदियों से अपनाई जा रही है। उसी प्रकार खेल प्रतियोगिताओं की तैयारी तथा सफलता के उद्देश्य से खिलाड़ियों द्वारा प्रशिक्षण लेना भी कोई नई बात नहीं है। प्राचीन ओलम्पिक खेलों के समय से ही प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी के उद्देश्य से खिलाड़ियों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने की परंपरा चली आ रही है। वर्तमान में खिलाड़ी सुयोग्यता, पुष्टि, खेलों में सफलता तथा लम्बे खेल कैरिअर के उद्देश्य से प्रशिक्षण को अधिक समय तथा महत्त्व देने लगे हैं।

खेल प्रशिक्षण एक दीर्घकालिक क्रिया है जिसके फलस्वरूप शरीर धीरे-धीरे अधिक भार सहने का आदी हो जाता है तथा अधिक दबाव वाली परिस्थितियों का सामना करने हेतु तैयार होता है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सुव्यवस्थित एवं योजनापूर्ण ढंग से वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित अनेक प्रकार के व्यायाम तथा विशेष आहार सम्मिलित किए जाते हैं। एक सुव्यवस्थित प्रशिक्षण कार्यक्रम खिलाड़ी की पुष्टि के स्तर को निश्चित

रूप से बढ़ाता है। हालांकि अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए शारीरिक व्यायामों के अतिरिक्त प्रशिक्षण कार्यक्रमों में विशेष पुनर्वासात्मक अतिरिक्त प्रशिक्षण का प्रयोग, पूर्व प्रतियोगिताएँ, प्रदर्शन की क्षमता को मापने के साधन और मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरण आदि को भी सम्मिलित प्रशिक्षण (weight training) से मांसपेशियों की शक्ति (muscular strength) बढ़ती है, परंतु सहनशक्ति (endurance) पर प्रभाव नहीं पड़ किया जाना अनिवार्य है। जैसे कि किसी विशेष प्रभाव अथवा उपलब्धि के लिए विशेष प्रशिक्षण विधि की आवश्यकता होती है। जैसे इसलिए प्रशिक्षण विधि का चयन, प्रशिक्षण के विशेष उद्देश्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

वर्तमान में नई प्रशिक्षण विधियों तथा प्रशिक्षण तथ्यों पर आधारित एक महत्वपूर्ण तथा अनिवार्य प्रक्रिया है, जो खिलाड़ी के सर्वागीण शारीरिक अनुकूलन द्वारा उसे खेलों में अपने उच्चतम उपकरणों के प्रयोग से बहुत उत्साहवर्धक परिणाम प्राप्त हुए हैं। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि खेल प्रशिक्षण वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं प्रदर्शन के योग्य बनाती है।

खेलों में प्रतिभा की पहचान की अवधारणा (Concept of Talent Identification in Sports) खेतों में प्रतिभा की पहचान का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है  जिसके द्वारा कम आयु के खिलाड़ियों में से ऐसे प्रतिभावन की खोज की जाती हैं जिनकी भविष्य में किसी विशिष्ट खेल में अच्छा और सफल खिलाड़ी बनने की अधिक संभावना एवं क्षमता होती है। खेतों में प्रतिभा की पहचान का तात्पर्य भविष्य में सफल खिलाड़ी बनने की क्षमता वाले युवा खिलाड़ियों की खोज से है 

पिछले कुछ वर्षों में, खेल प्रतियोगिताओं के स्तर तथा खिलाड़ियों के प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार हुआ हैं। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिय जैसे कि आंतरिक खेलों में पदक जीतना खिलाड़ी और उसके राष्ट्र दोनों के लिए एक उल्लेखनीय उपलब्धि मानी जाती है। आजकल का मानना है कि- किसी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में किसी खिलाड़ी द्वारा पदक जीतना उसके देश के लिए वैश्विक पर मान्यता और प्रतिष्ठा हासिल करने का सुनहरा अवसर होता है। वर्तमान समय में तो ओलंपिक खेलों की पदक तालिका को किसी की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलत का सूचक माना जाता है। संभवत: इसी कारण से विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में पदक हो दुनिया भर के देशों के लिए खख (Prestige) का विषय बन गया है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में पदक जीतने के महत्व को समझते हुए रूस और चीन जैसे देशों ने सबसे पहले अपने यहाँ कम प्रतियों की पहचान और उनके विकास संबंधी कार्यक्रमों की शुरूआत की। वर्षों पहले अपने यहाँ शुरू किए गए ऐसे के परिणामस्वरूप ही आज दोनों देश हर अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता की पदक तालिका में शीर्ष स्थान पर होते हैं। खेलों में प्रतिभा को पर कोलिम प्रकार से भी पाया जा सकता है यह प्रक्रिया जिसके द्वारा कुछ पूर्व-निर्धारित मापदंडों के परिणामों के आधार पर को उन खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिनमें उनके सफल होने की संभावना सबसे अधिक होती।

खेलों में प्रतिभा की पहचान संबंधी मापदंडों को खिलाड़ी की शारीरिक पुष्टि और परिपक्वता के वर्तमान स्तर को ध्यान में रखते हुए भविष्य में संभावित प्रदर्शन की क्षमता का अनुमान लगाने के लिए डिजाइन किया गया है। प्रतिभावन खिलाड़ी की खोज एक सफल अंतर्राष्ट्रीय एथलीट बनाने की शुरुआत का पहला कदम है।

खेलों में प्रतिभा पहचान का महत्व (Importance of Talent Identification in Sports)

खेल के क्षेत्र में समय रहते प्रतिभावन खिलाड़ियों की पहचान करने के निम्न लाभ होते हैं –

• भविष्य के संभावित बेहतरीन खिलाड़ियों की खोजा
• छिपी प्रतिभा की पहचान।
• प्रारंभिक अवस्था में ही प्रतिभावन खिलाड़ी को पहचाने से उसकी प्रतिभा को और अधिक निखारा जा सकता है।
• कम आयु के प्रतिभावन खिलाड़ियों की खोज देश के लिए एक बड़ी संपत्ति खोजने के समान हैं।
• सही समय पर युवा प्रतिभावन खिलाड़ियों की खोज के कारण खिलाड़ी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता के लिए स्वयं को तैयार करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता हैं जिसके चलते उसके पदक जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
• समय रहते प्रतिभावन खिलाड़ियों को खोजने से उन्हें उनकी प्रतिभा के अनुरूप ऐसे खेलों में ढालने में ज्यादा आसानी होती है जहाँ उनकी सफलता की संभावना अधिक होती हैं।

खेलों में प्रतिभा पहचान के मापदंड (Parameters of Talent Identification in Sports)
खेलों में प्रतिभावन युवा खिलाड़ियों की पहचान निम्न मापदंडों पर निर्भर करती हैं-

  • शारीरिक संरचना अर्थात् युवा खिलाड़ी की शारीरिक आकृति किस खेल के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
  • मनोवैज्ञानिक धारणा अर्थात् युवा खिलाड़ी की किस खेल के प्रति अधिक रुचि हैं।
  • तकनीकी / सामरिक समझ अर्थात् युवा खिलाड़ी खेल संबंधी तकनीकों को कितना समझ सकता हैं।
  • परिणाम अर्थात् प्रतिभावन खिलाड़ियों की खोज के लिए जो मापदंड निर्धारित किए गए हैं उनके परिणाम क्या हैं।

खेलों में प्रतिभा विकास (Talent Development in Sports)

खेलों में प्रतिभा विकास का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा प्रतिभाशाली युवा खिलाड़ियों की क्षमताओं और कौशलों को उचित प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन द्वारा अधिक निखारा और विकसित किया जाता है। तथा प्रत्येक चरण में विशिष्ट प्रकार की गतिविधियों और क्रियाकलाप होते खेलों में प्रतिभा विकास की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में होती हैं

जिनमें युवा खिलाड़ी के माता-पिता और प्रशिक्षकों की चरण (stage) के अनुसार अलग-अलग प्रकार की भूमिका / भागीदारी होती है। प्रतिभा विकास की अवधारणा 1985 में ‘बेंजामिन ब्लूम’ नामक मनोवैज्ञानिक द्वारा प्रस्तावित की गई थी। उन्होंने प्रतिभा विकास के तीन चरण सुझाए जिनका विस्तृत विवरण निम्नलिखित हैं-

(i) पहला चरण इस चरण में बच्चे केवल साधारण परंतु मजेदार और मनोरंजक गतिविधियों में ही संलिप्त रहते हैं। इस चरण में वह सभी गतिविधियों से संबंधित मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश के लिए अपने शिक्षक या कोच पर ही अधिक निर्भर रहते हैं। इस चरण में माता-पिता भी बच्चे की खेल संबंधी रुचि को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

(ii) द्वितीय चरण इस चरण के दौरान बच्चे खेल संबंधी कुछ विशेष गतिविधियाँ करनी शुरू करते हैं। इस चरण के दौरान बच्चे के शिक्षक और प्रशिक्षक पिछले स्तर की तुलना में तकनीकी रूप से अधिक कुशल होते हैं। इस दौरान प्रशिक्षक कड़े अनुशासन और मेहनत के माध्यम से बच्चे की प्रतिभा को निखारने का कार्य करते हैं ताकि बच्चा अपेक्षित परिणाम देने में सक्षम हो पाएं। इस चरण में प्रशिक्षण, अभ्यास तथा प्रतिस्पर्धा के समय में धीरे-धीरे वृद्धि की जाती हैं। इस चरण के रूप से समर्थन करे उस एस किसी के लिए को बकाए

(iii) को कारण भी है। यह समय होता है जब बच्चा अपने चुने हुए मेंहद तक निपुण ही है। इस चरण के दौरान खिलाड़ा अपना असारी जिम्मेदार किसी विशिष्ट कोच या प्रशिक्षक को दी है। प्रभास के इस चरण में माता-पिता की भूमिका समय अपने खेल संबंधी कौशलों को और बेहतर करने में है। इस चरण के दौरान खिलाड़ी की प्रशिक्षण और प्रतियोगिता है इस के दौरान खिलाड़ी अपने खेलों में पूरी तरह व्यवस्था होता है तथा खेल संबंध परिणामों के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होता है।

खेल प्रशिक्षण चक्र का परिचय (माइक्रो, मेसो और मैक्रोसायकल)
Introduction To Sports Training Cycle (Micro, Meso and Macrocycles)

खेल प्रशिक्षण चक्र का तात्पर्य प्रशिक्षण सत्र की विभिन्न अवधियों से हैं जिनसे गुजर कर खिलाड़ी अपने खेल प्रदर्शन का इष्टतम स्तर प्राप्त करता है।

किसी भी खेल में सफल होने के लिए प्रशिक्षण लेना एक लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है। यदि प्रशिक्षण की संपूर्ण अवधि केद के सभी शरीर क्रियात्मक कारकों का समुचित विकास प्रभावित होता है और खिलाड़ी धीरे-धीरे उनमें अपनी रुचि भी खोने लगता है। केवल एक ही प्रकार के प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाए और उनमें एक ही प्रकार की शारीरिक गतिविधियों की जाए तो इससे स्थिति से बचने के लिए खेल प्रशिक्षण को विभिन्न चक्रों में विभाजित किया गया है जो एक साथ मिलकर खेल प्रशिक्षण का संपूर्ण बनाती हैं। इस चक्र को अवधिकरण (Periodization) भी कहा जाता है।

खेल प्रशिक्षण अवधिकरण क्या हैं? (What is Sports Training Periodization?)

खेल प्रशिक्षण अवधिकरण, अतिभार और अनुकूलन की अवधारणा पर कार्य करता है अर्थात् प्रशिक्षण के दौरान पहले अतिभार पर जोर दिया जाता है फिर खिलाड़ी को रिकवरी का समय दिया जाता है तथा उसके बाद पुनः अतिभार के साथ शुरू किया जाता है। ऐसा करने से खिलाड़ी कि पुष्टि बेहतर होती जाती हैं। अवधिकरण एक वार्षिक प्रशिक्षण योजना को विशिष्ट समय खंडों में विभाजित करने की प्रक्रिया है, जहां हर प्रशिक्षण चक्र का एक विशेष लक्ष्य होता है जो शरीर को लक्ष्य के अनुसार अतिभार प्रदान करता है।

इसमें कठिन प्रशिक्षण सत्रों के साथ-साथ अपेक्षाकृत कुछ आसान प्रशिक्षण सत्र भी होते हैं। अलग-अलग अवधि के प्रशिक्षण चरणों के फलस्वरूप खिलाड़ी को विभिन्न शारीरिक क्षमताओं को विकसित करने में भी मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, आधारभूत प्रशिक्षण (basic training) सत्र के दौरान खिलाड़ी की एरोबिक और मांसपेशीय सहनशक्ति को विकसित करने पर जोर दिया जाता हैं, जबकि, दूसरे चरण में खिलाड़ी की VO, मैक्स क्षमता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाता हैं और जैसे ही खिलाड़ी प्रतियोगिता चरण में प्रवेश करता है. उसकी एनारोविक क्षमता और न्यूरोमस्कुलर शक्ति को बढ़ाने पर अधिक जोर दिया जाता है।

अवधिकरण, प्रशिक्षण को और अधिक प्रभावी बनाने का सबसे बेहतर विकल्प है, क्योंकि इससे खिलाड़ी की कार्डियोपल्मोनरी और मस्कुलोस्केलेटल प्रणाली में परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उसकी गति और सहनक्षमता में वृद्धि होती है। आमतौर पर खेल प्रशिक्षण चक्र तीन चरणों में पूरा होता हैं तथा इन तीनों चरणों को समझने से खिलाड़ी की प्रशिक्षण योजना को बेहतर ढ़ंग से तैयार किया जा सकता है ताकि वह हर बार अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे सकें। एक समान्य खेल प्रशिक्षण योजना में तीन चक्र होते हैं।

जिनका विवरण निम्नलिखित हैं-

खेल प्रशिक्षण चक्र के अवधियों

माइक्रोसायकल/ सूक्ष्म चक्र

मेसोसायकल/ मिसो चक्र

मैक्रोसायकल/ मैको चक्र

1. माइक्रोसायकल/सूक्ष्म चक्र (Microcycle)

• माइक्रोसायकल सबसे छोटी अवधि का प्रशिक्षण चक्र होता है, जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनाया जाता हैं। इस प्रकार का प्रशिक्षण चक्र आमतौर पर एक सप्ताह तक की अवधि के लिए चलाया जाता है, जिस कारण इसे सप्ताहिक चक्र भी कहा जाता है।
• इस प्रशिक्षण चक्र को तब अपनाया जाता है जब प्रतियोगिता के लिए बहुत कम समय बचा हो (एक सप्ताह या उससे कुछ अधिक)।
• यह प्रशिक्षण चक्र खिलाड़ी द्वारा खेले जाने वाले खेल से संबंधित अतिधार तथा रिकवरी के सिद्धांत पर आधारित होता हैं।
• एक धावक द्वारा प्रतियोगिता से कुछ दिन पहले तक पूरी तीव्रता के साथ दौड़ लगाना और फिर रिकवरी हेतु आराम भी करना, माइक्रोसायकल प्रशिक्षण विधि का उदाहरण हैं।

2. मेसोसायकल/मिसो चक्र (Mesocycle)

• तीन से चार माइक्रोसायकल मिलकर एक मेसोसायकल प्रशिक्षण चक्र का निर्माण करती हैं।

• यह प्रशिक्षण चक्र भी खिलाड़ी द्वारा खेले जाने वाले खेल से संबंधित अतिभार तथा रिकवरी के सिद्धांत पर आधारित होता हैं।

• मेसोसायकल, प्रशिक्षण का एक विशिष्ट ब्लॉक होता है जो विशिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनाया जाता हैं। उदाहरण के लिए, सहनक्षमता वृद्धि प्रशिक्षण के दौरान, केवल पेशीय सहनक्षमता को बढ़ाने के लिए विशिष्ट व्यायाम अपनाए जाते हैं।

• मेसोसायकल आमतौर पर तीन या चार सप्ताह की अवधि तक के होते हैं। दो सबसे सामान्य मेसोसायकल में 21 और 28 दिवसीय प्रशिक्षण ब्लॉक होते हैं। उदाहरण के लिए, एक 25 वर्षीय अनुभवी प्रतियोगी 23/5 प्रशिक्षण पैटर्न (यानी, 28 दिवसीय मेसोसायकल) का उपयोग कर सकता है। इसमें 23 दिनों तक की कड़ी मेहनत के बाद 5 दिनों का रिकवरी अवधि होती है। इसके विपरीत, एक वृद्ध या कम अनुभवी साइकिल चालक 16/5 प्रशिक्षण पैटर्न (यानी, 21 दिवसीय मेसोसायकल) का विकल्प चुन सकता है जिसमें 16 दिनों का कठिन प्रशिक्षण और उसके बाद 5 दिनों की रिकवरी अवधि होती है।

3. मैक्रोसाइकिल / मैक्रो चक्र (Macrocycle)

• मैक्रोसायकल, प्रशिक्षण चक्र के तीनों चक्रों में से सबसे लंबा चक्र होता है जिसमें एक दीर्घावधि प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाया जाता है ताकि शारीरिक पुष्टि के सभी घटको जैसे कि शक्ति, लचक, गति तथा सहनक्षमता इत्यादि को विकसित किया जा सके

• मैक्रोसायकल प्रशिक्षण की वार्षिक योजना साल के सभी 52 सप्ताहों में विभाजित होती हैं अर्थात् यह दीर्घ अवधि लक्ष्यों के लिए अपनाया जाने वाला प्रशिक्षण चक्र हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई खिलाड़ी एक वर्ष बाद किसी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मैडल जीतना चाहता है तो उसे कैलेंडर पर प्रतियोगिता की तिथि को चिह्नित कर एक ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाना चाहिए जो उसे प्रतियोगिता के दौरान प्रदर्शन का उच्चतम प्रदर्शन स्तर प्रदान करें।

शक्ति- प्रकार तथा शक्ति विकसित करने की विधियाँ (Strength- Types and Methods to Develop Strength)

शक्ति का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Strength)- किसी प्रतिरोध का सामना करने की मांसपेशियों की योग्यता को शक्ति कहते है। दूसरे शब्दों में कहें तो शक्ति शरीर की मांसपेशियों द्वारा उत्पन्न किया गया वह बल होता है जिसके कारण व्यक्ति कार्य करने के योग् जाता है। निम्न परिभाषाओं द्वारा शक्ति के अर्थ को अच्छी तरह समझा जा सकता है।

शक्ति की परिभाषाएँ

  • “संपूर्ण शरीर अथवा इसके किसी अंग द्वारा बल लगाने की क्षमता को शक्ति कहा जाता है।
  • “मांसपेशीय शक्ति वह बल है जो अधिकतम एक प्रयास के दौरान प्रतिरोध के विरुद्ध किसी एक मांसपेशी अथवा मांसपेशियों के समूह द्वारा लगाया जाता है।” – मैथ्यूज
  • “मांसपेशीय शक्ति को, मांसपेशियों द्वारा एक ही अधिकतम प्रयास में उत्पन्न किए जा सकने वाले बल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” -डेविड आर. लैब हर व्यक्ति को अपने सुगम जीवनयापन के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है। लेकिन एक खिलाड़ी के लिए तो शक्ति का होना आवश्यक है। हालांकि विभिन्न खेलों में आवश्यक शक्ति की मात्रा उस खेल की प्रकृति पर निर्भर करती है। आमतौर पर शरीर की शकि को पाउंड (pounds) या डेन्स (dynes) में मापा जाता है।

शक्ति के प्रकार (Types of Strength) – विभिन्न प्रकार के खेलों में अलग-अलग प्रकार की शक्ति की आवश्यकता होती है। इसलिए शक्ति को अच्छी तरह समझने के लिए दीये गए 
निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है-

शक्ति प्रकार

गतिशील शक्ति

स्थिर शक्ति

अधिकतम शक्ति

विस्फोटक शक्ति

सहन क्षमता शक्ति

1. गतिशील शक्ति (Dynamic strength) : गतिशील शक्ति शरीर की विभिन्न गतियों के लिए उत्तरदायी होती है तथा इसे आइसोटोनिक शक्ति भी कहते हैं। किसी शारीरिक क्रिया, जैसे कि पुल-अप्स और पुश-अप्स को करने में गतिशील शक्ति का प्रयोग होता है। हालांकि इस प्रकार की क्रियाओं को ज्यादा देर तक करने के कारण मांसपेशियों की गतिशीलता में कमी आने लगती है बाद मांसपेशियाँ और अधिक कार्य करने में सक्षम नहीं रहतीं। विभिन्न प्रकार के खेलों में खेलों की प्रकृति के गतिशील शक्तियों की आवश्यकता होती है। जैसे कि- जिसके कारण कुछ अनुसार निम्न प्रकार। 

(a) अधिकतम शक्ति (Maximum strength) : ऐसी शक्ति अधिक प्रतिरोध के प्रतिक्रिया करने के लिए प्रयोग की जाती है ऐसी शक्ति जो शरीर एक ही बार में जुटा से, अधिकतम शक्ति कहलाती है। इस प्रकार की शक्ति की आवश्यकत से उन खेलों में होती है, जिनमें अधिक प्रतिरोध करना होता है, जैसे- भारोोलन, शॉटपुट, डिस्कस प्रो ईमराक्षे आदि। जिम्नास्टिक तथा छोटी दूरी को दौड़ों में इस प्रकार की शक्ति की आवश्यकता केवल कुछ ही धर्म के लिए होती है।

(b)विस्फोटक शक्ति (Explosive strength) शारीरिक शक्ति तथा गति के योग के कारण गति से शारीरिक क्रिया करने की मांसपेशियों की शक्ति को विस्फोटक शक्ति (explosive strength) कहा जाता है। इस प्रकार की मांसपेशीय शक्ति अत्यंत तीव्र गति से कार्य करती है। विस्फोटक शक्ति की आवश्यकता प्रिंट दौड़ों भागतोलन, टि-पुट. हम्मर तथा चक्का फेंक दि जैसी प्रतियोगिताओं के दौरान होती है। लंबी दौड़ों की शुरुआत के लिए भी इस प्रकार की शक्ति की आवश्यकता होती है।

(c) सहन क्षमता शक्ति (Strength endurance): शारीरिक शक्ति तथा सहन क्षमता (endurance) के योग के कारण उत्पन्न शक्ति सहन क्षमता शक्ति कहलाती है। इस प्रकार की शक्ति थकान की स्थिति में भी शरीर को अवरोध के विरुद्ध क्रिया करने की क्षमता प्रदान करती है। इस प्रकार की शक्ति की आवश्यकता लंबी दूरी की दौड़ों, लंबी अवधि की तैराकी, साइक्लिंग, मुक्केबाजी तथा कुश्ती जैसी प्रतियोगिताओं में होती है।

2. स्थिर शक्ति (Static strength) कुछ समय के लिए बिना अधिक हिले-डुले निरंतर रूप से लगाई गई अधिकतम मांसपेशीय शक्ति, स्थिर शक्ति या आइसोमीट्रिक शक्ति कहलाती है। इस प्रकार की शक्ति लगाते समय कार्य प्रत्यक्ष रूप से होता हुआ दिखाई नहीं पड़ता।

इस प्रकार की शक्ति का प्रयोग भारोत्तोलन जैसी प्रतियोगिताओं में किया जाता है।

शक्ति को विकसित करने की विधियां (Methods of Improving Strength)
शक्ति के विकसित करने के लिए निम्न विधियों अपनाई जाती हैं-

1. आइसोमैट्रिक व्यायाम (Isometric exercises) लैटिन भाषा में ‘आइसो’ का अर्थ है ‘समान या स्थिर’ व ‘नैट्रिक’ का अर्थ है ‘लम्बाई’। इस प्रकार से आइसोमैट्रिक का शाब्दिक अर्थ हुआ समान या स्थिर लंबाई अर्थात् जिन क्रियाकलापों को करने से मांसपेशियों की लम्बाई में कोई परिवर्तन नहीं होता है. वे आइसोमैट्रिक व्यायाम कहलाते हैं। ये ऐसे व्यायाम होते हैं जिनको करते समय क्रियाओं या गतियों को स्पष्ट रूप से देखा नहीं जा सकता है, अर्थात् इन व्यायामों में क्रिया तो होती है परंतु गति नहीं होती है। इसलिए इन्हें गतिहीन व्यायाम भी कहते हैं। वैज्ञानिक रूप से इन व्यायामों का विश्लेक्षण करें तो हमें पता चलता है कि किया गया कार्य, वस्तु पर लगाया गया बल तथा उस वस्तु की दिशा में हुए विस्थापन के गुणनफल के बराबर होता है। अर्थात्किया गया कार्य वस्तु पर आरोपित बल x वस्तु का बल की दिशा में विस्थापन Workdone (W) – Force (F) Distance in the direction of Force (D)

क्योंकि यह व्यायाम गतिहीन होते हैं। इसलिए विस्थापन भी शून्य होता है अर्थात् किया गया कार्य भी शून्य होता है। जैसे कि – हिलती यदि हम किसी दीवार को दोनों हाथों से अपना पूरा बल लगाकर विस्थापित ( धकेलने) की कोशिश करेंगे तो अपना पूरा बल लगाकर भी हम उस दीवार को धकेल नहीं पाते हैं। इस स्थिति में हम दीवार पर बल तो लगा रहे होते हैं परंतु दीवार अपनी जगह तक नहीं अर्थात् बल लगाने के बावजूद भी दीवार का विस्थापन शून्य (Zero) रहता. अर्थात् कोई कार्य नहीं हुआ।

विभिन्न प्रकार के आइसोमैट्रिक व्यायाम

आइसोमैट्रिक व्यायाम के लाभ : हालाँकि आइसोमैट्रिक व्यायाम खेलों में अधिक उपयोगी नहीं होते, परंतु इन व्यायामों से स्थिर शक्ति का विकास होता है। इस प्रकार के व्यायाम जिम्नास्टिक जैसे खेलों के लिए उपयोगी होते हैं क्योंकि इन खेलों में शरीर को कुछ देर तक एक ही मुद्रा में रोकना पड़ता है। खेल चोटों के पुनर्वास में भी आइसोमैट्रिक व्यायाम बहुत लाभदायक होते हैं ठीक होने पश्चात् इन व्यायामों द्वारा खिलाड़ियों को जल्दी वाय खेलने योग्य बनाया जाता है। दिखाई देती है। इन व्ययों को करने से मांसपेशीय संकुचन तथा शिथिलन होता है जिसके कारण मांसपेशियों की लंबाई में परिवर्तन

2. आइसोटोनिक व्यायाम (Isotonic exercises) आइनमें खिलाड़ी के द्वारा किए गए व्यायामों की गतिविधि प्रत्य होता है। क्योंकि यह व्यायाम गतिशील शक्ति प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम माने जाते है इसलिए खेल-कूद के क्षेत्र में इस प्रकार व्यायामों का प्रयोग सबसे अधिक होता है। इन व्यायामों को करने से मांसपेशियों में लचीलापन, लंबाई तथा कार्यक्षमता में वृद्धि है। एक ही स्थान पर कूदना भार प्रशिक्षण के व्यायाम, मेडिसन बल के साथ व्यायाम आदि आइसोटोनिक व्यायाम के ही है। ये व्यायाम उपकरणों के द्वारा या बिना उपकरणों के भी किए जा सकते हैं।
विभिन्न प्रकार के आइसोटोनिक व्यायाम

3. आइसोकाइनेटिक व्यायाम (lsokinetic exercises) : आइसोकाइनेटिक शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसमें ‘Is’ अर्थात् ब तथा ‘Kinetic’ अर्थात् गतिविधि है। यह व्यायाम विधि 1968 में जे. जे. पराइन द्वारा विकसित की गई है। आइसोकाइनेटिक व्यायाम विप्रकार से निर्मित मशीनों द्वारा किए जाते हैं। इन व्यायामों में मांसपेशियों द्वारा अधिकतम बल लगाया जाता है। ये व्यायाम सामान्य व्यावस से अलग होते हैं, क्योंकि इनमें विशेष कोण पर शक्ति लगाई जाती है। इन व्यायामों में मांसपेशीय संकुचन बहुत तीव्र होता है इसलिए ये व्यायाम अधिकतम शक्ति तथा विस्फोटक शक्ति के विकास के उद्देश्य से किए जाते हैं। इन व्यायामों को निरंतर रूप से करने शक्ति तथा सहनशक्ति का भी विकास होता है। इस प्रकार के व्यायाम जल संबंधित खेल, जैसे- तैराकी और नाव चलाने वाले खिलादित
के लिए अधिक लाभदायक होते हैं।

सहनक्षमता प्रकार तथा सहनक्षमता विकसित करने की विधियाँ (Endurance- Types and Methods to Develop Endurance)

सहन क्षमता का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Endurance)
किसी शारीरिक क्रिया अथवा गतिविधि को लंबी अवधि तक जारी रखने की शारीरिक योग्यता सहनक्षमता कहलाती है।

थकान की स्थिति में आवश्यक गुण तथा गति के साथ क्रिया करने की क्षमता को सहनक्षमता (endurance) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो सहनक्षमता खिलाड़ी की थकान की स्थिति में भी कार्य जारी रखने की योग्यता होती है। किसी खिलाड़ी / व्यक्ति की सहनक्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि उसकी मांसपेशियाँ कितनी लंबी अवधि तक
कार्य कर सकती हैं। सहनक्षमता को आंतरिक बल (Stamina) भी कहा जाता है।

सहनक्षमता के प्रकार (Types of Endurance)
सहनक्षमता को मुख्यतः दो आधारों पर वर्गीकृत किया गया है-

गतिविधि की प्रकृति के अनुसार सहनक्षमता सहनक्षमता के प्रकार

गतिविधि की अवधि के ‘अनुसार सहनक्षमता गति
सहनक्षमता
अल्प अवधि
सहनक्षमता
मध्य-अवधि
दीर्घ अवधि
सहनक्षमता
मूलभूत
सहनक्षमता
सामान्य
विशिष्ट
सहनक्षमता
सहनक्षमता
सहनक्षमता
गतिविधि की प्रकृति के अनुसार सहनक्षमता (Endurance according to nature of activity): गतिविधि की प्रकृति के अनुसार सहनक्षमता को निम्न रूप से विभाजित किया गया है :

(a) मूलभूत सहनक्षमता (Basic endurance) : किसी व्यक्ति/खिलाड़ी की वह सहनक्षमता जो उसे लंबी अवधि तक के क्रियाकलापों को जारी रखने के योग्य बनाती है, उसकी मूलभूत सहनक्षमता कहलाती है। लंबी अवधि तक जोगिंग करना. चलना, धीमी गति से दौड़ना अथवा तैराकी करना व्यक्ति की मूलभूत सहनक्षमता के कारण ही संभव हो पाता है। व्यक्ति की अन्य प्रकारों की सहनक्षमता भी इसी मूलभूत सहनक्षमता के कारण ही संभव हो पाती है।

(b) सामान्य सक्षमता (General endurance) तथागतकों के कारण हुई मकान को सहन करने की को है। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी खिलाड़ी/व्यक्ति की लम्बे समय तक बना
किलप करने की क्षमता सामान्य क्षमता कहलाती है।

(c) विशिष्ट (Specific endurance) किसी विशिष्ट क्रियाकलाप या गतिविधि के कारण होने वाली थकान को हकी योग्यता विशिष्ट सहनक्षमता कहलाती है। खिलाड़ियों की विशिष्ट सनक्षमता उनके द्वारा खेले जाने वाले खेल की प्रकृति अवधि पर निर्भर करती है। जैसा कि क्रिकेट खिलाड़ी की विशिष्ट सहनक्षमता फुटबाल खिलाड़ी की विशिष्ट क्षमता की अपेक्षा अलग होगी, क्योंकि दोनों खेलों की अवधितथा गतिविधियों की तीव्रता में बहुत अंतर होता है।

2. गतिविधि की अवधि के अनुसार सहनक्षमता (Endurance according to the duration of activity) : गतिविधि की अवधि में अनुसार सहनक्षमता को निम्न रूप से विभाजित किया गया है।

(a) गति सहयता (Speed endurance) 45 सेकंड तक चलने वाली तीव्र शारीरिक गतिविधियों के कारण हुई थकान को सहने की क्षमता गति सहनक्षमता कहलाती है। इस प्रकार की सनक्षमता की आवश्यकता स्प्रिंट दौड़ के लिए होती है। यह सहन खिलाड़ी की शक्ति एवं ऊर्जा के उत्पादन की क्षमता पर निर्भर करती है।

(b) अल्प-अवधि सहनक्षमता (Short-term endurance) : 45 सेकंड से 2 मिनट तक चलने वाली तीव्र शारीरिक गतिविधियों में कारण हुई थकान को सहने की क्षमता अल्प अवधि सहनक्षमता कहलाती है। इस प्रकार की सहनक्षमता की आवश्यकता 800 मीटर की दौड़ के लिए होती है। यह क्षमता खिलाड़ी को शक्ति सहन क्षमता तथा गति सहनक्षमता पर निर्भर करती है।

(C) मध्यम अवधि की सहनक्षमता (Middle-term endurance) : 2 मिनट से 11 मिनट तक चलने वाली शारीरिक गतिविधिक्षं | थकान को सहने की क्षमता, मध्यम अवधि सहनक्षमता कहलाती है। इस प्रकार की सहनक्षमता की आवश्यकता 1500 मीटर की दौड़ तथा स्टिपल चेज दौड़ के लिए होती है। यह क्षमता भी खिलाड़ी की शक्ति सहनक्षमता तथा गति सहन-क्षमत पर ही निर्भर करती है। के कारण

(d) बीर्घ-अवधि सहनक्षमता (Long term endurance) 11 मिनट से अधिक अवधि तक चलने वाली शारीरिक गतिविधियों में कारण हुई थकान को सहने की क्षमता दीर्घ अवधि सहनक्षमता कहलाती है। इस प्रकार की सहनक्षमता की आवश्यकता 5000 मीटर, 10,000 मीटर, क्रॉस कंट्री तथा मैराथन दौड़ आदि के लिए होती है।

सहनक्षमता विकसित करने की विधियाँ (Methods to Develop Endurance)
सहनक्षमता विकसित करने के लिए मुख्य रूप से निम्न विधियाँ अपनाई जाती हैं-

सहन क्षमता विकसित करने की विधियाँ

निरंतर प्रशिक्षण विधि
अंतराल प्रशिक्षण विधि
फार्टलेक प्रशिक्षण विधि

1. निरंतर प्रशिक्षण विधि (Continuous Training Method)
सहनक्षमता विकसित करने के लिए निरंतर प्रशिक्षण विधि को सबसे उत्तम माना गया है। निरंतर प्रशिक्षण विधि में व्यायाम बिना रुके लंबे समय तक किए जाते हैं, जैसे कि क्रॉस कंट्री दौड़ इस विधि के दौरान व्यायाम करने की अवधि 30 मिनट से अधिक होती है। हालाँकि यह अवधि खिलाड़ी की सहनक्षमता के अनुरूप बढ़ाई भी जा सकती है। इस विधि में व्यायाम की सघनता कम होने के कारण हृदय दर 140 से 160 धड़कन प्रति मिनट के बीच होती है। निरंतर प्रशिक्षण विधि को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-

(a) धीमी निरंतर प्रशिक्षण विधि इस विधि में खिलाड़ी बिना रुके अधिक लंबे समय तक व्यायाम करता है।
(b) तीव्र निरंतर प्रशिक्षण विधि तीव्र निरंतर विधि में व्यायाम को लंबे समय तक अपेक्षाकृत तेज गति से बिना रुके तथा अधिक सघनता से किया जाता है।
(c) परिवर्तनीय गति प्रशिक्षण विधि इस विधि में व्यायाम निरंतर परंतु परिवर्तित गति के साथ किया जाता है। यह विधि प्रशिक्षितखा के लिए उपयोगी रहती है। यह विधि ऐरोबिक तथा एनैरोबिक दोनों प्रकार की क्षमताओं का विकास करती है।

निरंतर प्रशिक्षण विधि के लाभ

(a)”इस विधि के अनुसार प्रशिक्षण लेने से हृदय तथा फेफड़ों की कार्यक्षमता में कुशलता आती है।
(b) इस विधि के अनुसार प्रशिक्षण लेने से मांसपेशियों में लाल रक्त कण (R.B.C.) की मात्रा में वृद्धि होती है।
(c) इससे थकावट की दशा में भी कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होती है। जिसके कारण व्यक्ति अधिक दृढ़ निश्चयी बनता है।
(d) यह विधि सहन क्षमता बढ़ाने का सबसे अच्छा विकल्प है।

2. अंतराल प्रशिक्षण विधि (Interval Training Method)

यह प्रशिक्षण विधि प्रयास एवं पुनः शक्ति प्राप्ति (recovery time), फिर प्रयास एवं पुनः शक्ति प्राप्ति (effort and recovery) के सिद्धांत पर आधारित है। अंतराल प्रशिक्षण विधि में खिलाड़ी हर बार तीव्र गति से व्यायाम करता है फिर उसे पुनः शक्ति प्राप्ति का समय दिया जाता है और फिर से वह तीव्र गति से व्यायाम करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस विधि में हर बार व्यायाम तेज गति के साथ किया जाता है तथा अधूरा आराम दिया जाता है। इस विधि में व्यायाम की गति एवं अवधि इतनी होती है, कि हृदय की गति 180 धड़कन प्रति मिनट तक पहुंच जाए। इसके पश्चात् अधूरा आराम दिया जाता है अर्थात् जब तक हृदय गति 120 से 130 धड़कन प्रति मिनट तक नहीं हो जाती, तथा फिर से तीव्रता के साथ व्यायाम प्रारंभ कर दिया जाता है। यह प्रशिक्षण विधि मध्यम दूरी की दौड़ों फुटबॉल तथा हॉकी इत्यादि खेलों के लिए बहुत उपयोगी रहती है।

अंतराल प्रशिक्षण विधि के लाभ

(a) इस विधि के अनुरूप व्यायाम करने से खिलाड़ी कम समय में अधिक कार्य करने के योग्य बन जाता है।
(b) यह विधि श्वसन तंत्र तथा रक्त संचार के लिए लाभदायक है।
(c) इस विधि द्वारा खिलाड़ी कम समय में अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकता है।
(d) इस विधि के अनुसार व्यायाम करने से खिलाड़ी की सहन-क्षमता में भी वृद्धि होती हैं।

अंतराल प्रशिक्षण विधि की हानियाँ

(a) इस विधि के अनुसार प्रतिदिन प्रशिक्षण लेने से हृदय संबंधी बीमारियाँ हो सकती है।
(b) इस प्रशिक्षण विधि में चोट लगने की संभावना अधिक होती है।

3. फार्टलेक प्रशिक्षण विधि (Fartlek Training Method)

फार्टलेक प्रशिक्षण विधि का प्रयोग सहन क्षमता विकसित करने के लिए किया जाता है। इस विधि को गोस्टा होमर ने 1937 ई० में विकसित किया था। फार्टलेक एक स्वीडिश शब्द है, जिसका अर्थ है ‘गति खेल’। यह प्रशिक्षण विधि निरंतर तथा अंतराल प्रशिक्षण विधि का सम्मिश्रण है। इसमें खिलाड़ी अपने आसपास की परिस्थिति को ध्यान में रखकर दौड़ता है। जैसे- कच्ची-पक्की सड़कें, पथरीले रास्ते, कीचड़ व कँटीले रास्ते, पहाड़, नदियों के किनारे आदि। इसमें खिलाड़ी दौड़ के आधार को ध्यान में रखकर गति परिवर्तन करता है, अर्थात् गति से खेलता है, इसलिए प्रशिक्षण को गति खेल भी कहा जाता है। इसमें गति में परिवर्तन पूर्व निर्धारित नहीं होता, बल्कि खिलाड़ी परिस्थिति को ध्यान में रखकर स्वयं गति परिवर्तित कर लेता है, क्योंकि खिलाड़ी को अपनी गति कम या ज्यादा करने की छूट होती है। इसलिए थकान की अवस्था में वह तेज चाल से पैदल चलकर पुनः शक्ति प्राप्ति (recovery) तेजी से कर सकता है। सहनशक्ति विकास के लिए यह प्रशिक्षण बहुत उपयोगी है। इसमें हृदय की गति 140 से 180 धड़कन प्रति मिनट रहती है तथा अवधि सामान्यतः 15 मिनट से 1 घंटे तक हो सकती है। इस प्रशिक्षण के द्वारा खिलाड़ी अपनी एरोबिक या एनोरोबिक क्षमता या फिर दोनों ही क्षमताएँ एक साथ विकसित कर सकता है।

फाटलेक प्रशिक्षण विधि के लाभ

(a) इस विधि के अनुसार व्यायाम के दौरान हृदय गति बढ़ने के कारण हृदयवाहिका सहन क्षमता में सुधार होता है।
(b) इस व्यायाम विधि में दौड़ने की गति तथा तीव्रता में निरंतर परिवर्तन के कारण खिलाड़ी छोटी दूरी की दौड़ तीव्रता से की दौड़ आसानी से दौड़ सकता है।
(c) इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम में कई खिलाड़ी एक साथ भाग ले सकते हैं।
(d) इस प्रकार की प्रशिक्षण विधि बिना किसी उपकरण के आसानी से आयोजित किया जा सकता है।
(e) भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमि पर दौड़ने के कारण खिलाड़ी के जोड़ अधिक शक्तिशाली बनते हैं।

गति- परिभाषा, प्रकार तथा गति विकसित करने की विधियाँ
(Speed- Types and Methods to Develop Speed)

गति का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Speed)
कम से कम समय में अधिक दूरी को तय करने की क्षमता को गति कहते हैं।
गति एक ऐसा वेग है जिससे व्यक्ति अपनी क्रियाएँ करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो शरीर के भागों या पूरे शरीर को अधिकतम वेग से घुमार की क्षमता को गति कहते हैं। निम्न परिभाषाओं द्वारा ‘गति’ शब्द के अर्थ को और अच्छी तरह समझा जा सकता है –

गति का अर्थ की परिभाषाएँ

  •  “गति वह दर है जिस पर व्यक्ति अपने शरीर अथवा शरीर के अंगों को संचालित कर सकता है।”-जॉनसन
  • “एक ही नमूने की गतिविधि को तीव्रता से बार-बार करने की व्यक्ति की योग्यता को गति कहते हैं।” -वैरो

परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि गति का संबंध व्यक्ति की कार्य करने की दर से है। जिसमें व्यक्ति अधिकतम तीव्रता से अपने अंगों को संचालित करता है। खेलों में गति एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शारीरिक क्षमता के परीक्षण में गति ऐसा घटक है जिसका अवलोकन कुछ क्रियाओं द्वारा स्पष्ट देखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर एथलेटिक्स (athletics) की प्रतियोगिताओं में सफलता के लिए गतिविधि की शुरुआत तेजी से करना अति आवश्यक होता है।

गति के प्रकार (Types of Speed)
विभिन्न प्रकार के खेलों में विभिन्न गतियों की आवश्यकता होती है। जिनका विवरण निम्नलिखित सरल प्रतिक्रिया

गति के प्रकार

  • योग्यता
  • प्रतिक्रिया
  • योग्यता
  • त्वरण
  • शारीरिक क्रियाओं
  • योग्यता
  • की योग्यता
  • गति क्षमता
  • योग्यता
  • गति
  • सहनक्षमता
  • जटिल प्रतिक्रिया
  • योग्यता

1. प्रतिक्रिया योग्यता (Reaction ability) किसा कार्य अथवा संकेत के प्रति तुरन्त प्रभावी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की योग्यता को प्रतिक्रिया योग्यता कहते हैं। चूँकि इस प्रकार की योग्यता खिलाड़ी की समन्वय प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है, इसलिए इसे समन्वय योग्यता (Coordination ability) भी कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के खेलों में विभिन्न प्रकार के संकेतों (दिखाई अथवा सुनाई देने वाले संकेत) का प्रयोग होता है। इन संकेतों के प्रति प्रतिक्रिया के आधार पर प्रतिक्रिया योग्यता को सरल तथा जटिल प्रतिक्रिया योग्यता में वर्गीकृत किया गया है।

(a) सरल प्रतिक्रिया योग्यता (Simple reaction ability) : यह पहले से निर्धारित किसी संकेत के प्रति तीव्र प्रतिक्रिया देने की योग्यता होती है। जैसे कि निर्देश मिलते ही धावक द्वारा दौड़ शुरू करना।

(b) जटिल प्रतिक्रिया योग्यता (Complex reaction ability): यह खेलों के दौरान स्थिति के अनुरूप अप्रत्याशित संकेतों (unexpected signs) के प्रति तुरन्त सटीक प्रतिक्रिया देने की योग्यता होती है। जैसे कि बल्लेबाज द्वारा फेंकी गई बॉल की प्रकृति के अनुरूप शॉट खेलना।

2. त्वरण योग्यता (Acceleration ability): यह विराम अथवा कम गति की अवस्था से अधिकतम गति प्राप्त करने की योग्यता होती है। खिलाड़ियों में इस प्रकार की योग्यता उनकी विस्फोटक शक्ति, तकनीक तथा लचीलेपन पर निर्भर करती है। यह योग्यता तेज गति की दौड़ों, तैराकी, हॉकी, फुटबॉल तथा जिम्नास्टिक जैसे खेलों के लिए अनिवार्य है।

3. शारीरिक क्रियाओं की गति (Speed of physical movements) इसका तात्पर्य किसी शारीरिक क्रिया को कम-से-कम समय में पूरा करने की योग्यता से है। मुक्केबाजी, कुश्ती, फेंकने, कूदने, जिम्नास्टिक, तैराकी में मुड़ने तथा स्प्रिंट दौड़ों के दौरान इस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता पड़ती है।

4. गति क्षमता योग्यता (Locomotor ability) : यह लंबे समय तक अपनी अधिकतम गति बनाए रखने की योग्यता है। छोटे दूरी की तथा स्प्रिंट दौड़ों, साइक्लिंग, तैराकी तथा नौका चालन जैसी प्रतियोगिताओं के दौरान इस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है।

5. गति सहनक्षमता (Speed endurance) : यह खिलाड़ी के थकने के बावजूद तीव्र गति से गतिविधियाँ करने की योग्यता है। इस प्रकार की योग्यता खिलाड़ी की शक्ति, सहन क्षमता तथा तकनीक पर निर्भर करती है। किसी फुटबॉल या रग्बी खिलाड़ी तथा मुक्केबाज द्वारा लंबे समय तक खेलते रहने के लिए इस प्रकार की योग्यता की आवश्यकता होती है।

गति के विकास की विधियों (Methods to Develop Speed)

किसी मनुष्य की गति उसके अनुवाशिकरणीय कारकों पर निर्भर करती है। इनमें से अनुवांशिक कारकों को बदला नहीं है। जैसे कि हर रूप से दो प्रकार के रेशे (ती तथा धीमी गति से सिकुड़ने वाले रेशो) पाए जाते है।जिन जबकि व्यक्तियों में भीमी गति से सिकुड़ने वाले देशों (slow twitch fibre) का प्रतिशत अधिक होता है, उनमें गति की में तीव्र गति से सिकुड़ने वाले रेशों (fast twitch fibre) का प्रतिशत अधिक होता है. वह तीव्र गति से गतिविधियों करने में सहन क्षमता अधिक होती है। तीव्र गति से गतिविधियों करने में सक्षम होते हैं। अतः अनुवारिक कारक किसी व्यक्ति की गति को एक की गति को निश्चित रूप से बढ़ा सकते हैं। तेज गति की खेतओं जैसे स्प्रिंट इवेन्ट्स (100 मीटर तथा 200 मीटर आदि) के लिए तक प्रभावित करते हैं। कई कारक जैसे कि तकनीक, लचक, अभिप्रेरण, एकाग्रता तथा इच्छाशक्ति इत्यादि एक को विकसित करने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग प्रायः किया जाता है-

1. त्वरण दौड़े (Acceleration Runs)

त्वरण दौड़े विशेष रूप से अधिकतम गति प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। यह विशेष रूप से स्थिर अवस्था से अधिकतम गति प्राप्त करने के लिए की जाती है। त्वरण दौड़ों के लिए एथलीट 50 या 60 मी. की दौड़ अपनी अधिकतम गति से लगाता है। ये त्वरण दौड़ें बार-बार दौड़ी जाती है तथा इन दौड़ों के बीच में अंतराल का समय भी काफी होता है। त्वरण दौड़ों की संख्या एथलीट की आयु. उसके अनुभव व उसकी क्षमता के अनुसार निश्चित की जाती है। यह संख्या में 6-12 तक हो सकती है। त्वरण दौड़ों से पहले उचित गर्माना आवश्यक होता है। प्रत्येक त्वरण दौड़ के बाद उचित अंतराल भी होना चाहिए ताकि एथलीट अगली दौड़ बिना थकावट के लगा सके। सामान्यतया इस इस प्रकार की दौड़ों के बीच 4 से 5 मिनट का अंतराल (आराम) होना चाहिए।

2. पेस दौड़ (Pace Runs)

पेस दौड़ों का अर्थ है कि एक दौड़ की पूरी दूरी को एक निश्चित गति से दौड़ना। पेस दौड़ों में एक एथलीट दौड़ को समरूप या समान रूप से दौड़ता है। सामान्यता 800 मी. व इससे अधिक दूरी की दौड़ पेस दौड़ों में शामिल होती हैं ऐसी दौड़ों का प्रारंभिक भाग बहुत तेज गति से नहीं दौड़ना चाहिए अन्यथा दौड़ या दूसरा भाग पूरा नहीं किया जा सकता दौड़ की दूरी के अनुसार ही ऊर्जा का वितरण करना चाहिए इसलिए पेस दौड़ के प्रशिक्षण के लिए एक एथलीट को दौड़ की कुल दूरी से 10-20 प्रतिशत अधिक दूरी की दौड़ अधिकतम निरंतर गति बनाए हुए लगानी चाहिए। वैसे तो एक एथलीट 300 मी. की दौड़ लगभग पूरी गति से दौड़ सकता है परन्तु मध्यम या लम्बी दौड़ों में उसे अपनी गति में कमी करके अपनी ऊर्जा को संरक्षित रखना जरूरी है। पुनरावृत्ति दौड़ के बीच का अंतराल इतना अवश्य होना चाहिए ताकि दूसरी पुनरावृत्ति के समय एथलीट तरोताजा हो सके।

गति विकास के लाभ (Advantages of Speed Development)

गति विकास प्रशिक्षण के निम्नलिखित लाभ होते हैं-

(i) भावक के प्रतिक्रिया-समय में कमी आती हैं।
(ii) घावक को अपनी अधिकतम गति को अतिशीघ्र प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
(ii) शारीरिक गतिविधियों में सामंजस्य और बेहतर होता है।
(iv) घावक द्वारा अपनी अधिकतम गति को अधिक देर तक बनाए रखने की क्षमता में वृद्धि होती है।

लचक- प्रकार तथा लचक को बढ़ाने की विधियाँ
(Flexibility- Types and Methods to Improve Flexibility)

लचक का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Flexibility) किसी व्यक्ति के शरीर के जोड़ों की गतियों के विस्तार को लचक कहते हैं। शरीर के जोड़ों के अधिकतम विस्तार के साथ गति की क्षमता को लचक कहते है। लचक मांसपेशियों की लंबाई, जुड़ों की संरचना, कंडराओं तथा लिगामेंट्स जैसे कारकों द्वारा निर्धारित होती है। केवल अधिक लचक वाला व्यक्ति ही अपने कार्यों को ज्यादा आसानी से कुशलतापूर्वक तथा आकर्षक ढंग से कर सकता है। लचक चोटों से बचाव करने में आसन को सुधारने में, पीठ दर्द को कम करने में, जोड़ों को स्वस्थ रखने में तथा शारीरिक गतिविधियों के दौरान संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अतः व्यक्ति के जोड़ों की पूर्ण रूप से गतिविधियाँ कर पाने की क्षमता को ‘लचक’ कहते है। अपवर्तन (abduction) तथा आवर्तन (rotation) आदि तकनीकी नाम दिए गए हैं। इन्हें इस प्रकार समझा जोड़ों की गतिविधियों को आकुंचन (flexion), विस्तरण (extension), अभिवर्तन (adduction), जा सकता है-

(i) आंकुचन : अंग को शरीर की ओर मोड़ना।
(iii) अभिवर्तन : एक अंग को दूसरे अंग के पास लाना।
(v) आवर्तन : अंग को अक्ष पर घुमाना।
(ii) विस्तरण : अंग को शरीर से दूर ले जाना।
(iv) अपवर्तन : एक अंग को दूसरे अंग से दूर ले जाना।

लचक के प्रकार (Types of Flexibility)
लचक के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-

1. अक्रिय लचक (Passive flexibility): किसी बाहरी सहायता से शरीर के जोड़ों की अधिक दूरी तक गति करने की योग्यता, अक्रिय लचक कहलाती है। जैसे- किसी सहयोगी की सहायता से खिंचाव वाले व्यायाम करना। किसी खिलाड़ी की अक्रिय लचक उसकी सक्रिय लचक की अपेक्षा हमेशा अधिक होती है। इसी कारण यह सक्रिय लचक का आधार भी होती है। 

2. सक्रिय (Active flexibility) प्राकृतिक रूप से अर्थात् बिना किसी बाहरी सहायता के शरीर के जोड़ों की अधिकतगति करने की योग्यता सक्रिय चक कहलाती है। जैसे किसी की सहायता के खिंचाव वाले व्यायाम करना। सक्रिय लचक भी

(a) स्थिर लचक (Static flexibility) इस प्रकार की लवक की आवश्यकता स्थिर अवस्था में होती है। जैसे कि बैठने, लेटने दो प्रकार की होती है- दौड़ के लिए स्टेट लेते समय

(b) गतिशील लचक (Dynamic flexibility): इस प्रकार की आवश्यकता चलते या दौड़ते समय होती है। गतिशील लचक को खिचानक व्यायामों द्वारा बढ़ाया भी जा सकता है। लचक को बढ़ाने की विधियाँ (Methods to Improve Flexibility) सामान्यतः तथक को निम्न विधियों द्वारा बढ़ाया/सुधारा जा सकता है-