NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 3 जीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 3 जीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease)

TextbookNCERT
Class12th
SubjectPhysical Education
Chapter3rd
Chapter Nameजीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease)
CategoryClass 12th Physical Education
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 3 जीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease)

Chapter – 3

योग और जीवन शैली

Notes

भूमिका (Introduction) – योग का इतिहास बहुत पुराना है। इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारे में कोई निश्चित जानकारी या प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि योग भारत की ही देन है। इतिहासकारों में इसकी शुरुआत को लेकर भिन्न-भिन्न मत हैं। कई इतिहासकार इसकी उत्पत्ति सिन्धु घाटी सभ्यता के समय की मानते हैं, क्योंकि उस समय की कई मूर्तियाँ किसी-न-किसी योगासन के आकार में पाई गई हैं।

योग की प्राचीनता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न वेदों, उपनिषदों, रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थों में भी योग क्रियाओं का वर्णन किया गया है। महर्षि पतंजलि ने लगभग ईसा पूर्व शताब्दी में योग पर एक व्यवस्थित ग्रंथ “योग शास्त्र योग सूत्र ” लिखा। प्राचीन कवियों एवं संतों जैसे- कबीर, सूरदास तथा तुलसीदास जी ने भी अपनी-अपनी रचनाओं में योग का वर्णन किया है। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग होने के साथ-साथ योग आज पूरे विश्व में तेजी से प्रचलित हो रहा है।

योग का अर्थ (Meaning of Yoga) – ‘योग’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘युज’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है- जोड़ना या मिलाना। योग एक संपूर्ण जीवन-शैली अथवा साधना है जिससे व्यक्ति को अपने मन, मस्तिष्क तथा स्वयं पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। मन पर नियंत्रण करके तथा शरीर को स्वस्थ रखकर व्यक्ति परम आनंद का अनुभव कर सकता है। इस प्रकार यह माना जाता है कि, योग सभी प्रकार के दुख एवं पीड़ा को नष्ट करता है। विभिन्न विद्वानों तथा ग्रंथों ने योग को निम्न रूप से परिभाषित किया है
योग की परिभाषाएँ

“योग का अर्थ है मानसिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण पाना।”पतंजलि
“योग समाधि है।”वेद व्यास
“इंद्रियों तथा मन का नियंत्रण योग है।”कठोपनिषद
“योग पीड़ा तथा दुख से मुक्ति का मार्ग है।”भगवद्गीता
“शिव और शक्ति के बारें में ज्ञान ही योग है।”आगम
“भगवान से व्यक्ति की एकता ही योग है।”भारती कृष्ण

योग का महत्त्व (Importance of Yoga) – इस बात में कोई दो राय नहीं कि आज का आधुनिक युग मानसिक दबाव, चिन्ता तथा तनाव का युग है। आज लगभग हर व्यक्ति कई समस्याओं का कारण बन चुका है। अपनी असीम भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य दिन-रात भागदौड़ कर रहा है। जिसके वह शारीरिक व मानसिक रूप से थकान महसूस करता है।

यदि किसी कारणवश यह इच्छाएं पूरी न हो तो मनुष्य तनाव ग्रस्त हो जाता है। किसी-न-किसी कारण से मानसिक परेशानियों से जूझ रहा है। मनुष्य ने जिस भौतिकतावाद पर अन्धा विश्वास किया वहीं भौतिकतावाद आज कारण मनुष्य अक्सर कई प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं भावानात्मक समस्याओं का शिकार हो जाता है। ऐसे में योग अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो सरल शब्दों में कहा जाय तो आज समाज के हर वर्ग का व्यक्ति किसी-न-किसी रूप से तनाव ग्रस्त है। इसी तनाव एवं जीवन-शैली के जाता है। क्योंकि नियमित योगाभ्यास द्वारा इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।

योग के महत्व का संक्षिप्त वर्णन (Brief Description of the Importance of Yoga)

1. शारीरिक शुद्धता (Physical Purity) – हमारे शरीर में मूल रूप से तीन गुण होते हैं- वात, पित्त तथा कफ। यदि इन तीनों का संतुलन ठीक हो तो, व्यक्ति निरोग रहता है। विभिन्न यौगिक क्रियाओं जैसे- नेति, धौति, नौलि, तथा कपालभाति आदि नियमित रूप से करने से इन मूल गुणों का संतुलन बना रहता है। जिसके कारण शरीर की आंतरिक सफाई एवं स्वच्छता होती रहती है।

2. रोगों से बचाव व उपचार (Cure and Prevention from Diseases) – विभिन्न यौगिक व्यायाम, व्यक्ति का अनेक रोगों से केवल बचाव ही नहीं करते बल्कि उनका उपचार भी करते हैं। योग द्वारा व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Power) भी बढ़ती है। नियमित रूप से योग करने से विभिन्न बीमारियों जैसे- मधुमेह (Diabates), ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), गठिया (Arthritis), मूत्र विकार, हृदय रोग, तनाव, पीठ दर्द, मासिक धर्म के विकार, तथा उच्च रक्तचाप आदि का उपचार किया जा सकता है।

3. शारीरिक सौन्दर्य बढ़ाता है (Enhances Physical Beauty) – प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त दिखना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति का सबसे सस्ता व सरल साधन केवल योग है। यौगिक व्यायाम जैसे मयूरासन द्वारा चेहरे की चमक बढ़ जाती है और चेहरा पहले की अपेक्षा अधिक सुन्दर व कान्तियुक्त हो जाता है।

4. शिथिलता प्रदान करता है (Provides Relaxation) – किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक कार्य के बाद थकावट होना एक आम बात है। मकावट महसूस होने पर व्यक्ति की कार्यक्षमता तथा उत्पादकता में कमी आती है। ऐसी स्थिति में फिर से तरोताजा तथा स्फूर्ति के लिए शिथिलन की आवश्यकता होती है। यौगिक आसन जैसे- शवासन व मकरासन शिथिलता प्राप्त करने के अच्छे आसन हैं। जबकि पद्मासन द्वारा मानसिक थकान दूर होती है।

5. शरीर के आसन को ठीक रखता है (Keeps the Correct Posture of Body) – किसी भी प्रकार का आसन संबंधी दोष (Postural Deformities) होने के कारण व्यक्ति अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकता। उसे प्रत्येक कार्य के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिसके कारण वह जल्दी थकता हैं। नियमित रूप से वज्रासन, सर्वांगासन, मयूरासन, चक्रासन, भुजंगासन व धनुरासन आदि करने से शरीर के आसन को ठीक तथा अनेक आसन संबंधी दोषों को भी ठीक किया जा सकता है।

6. लचक में वृद्धि करता है (Increases Flexibility) – लचक प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। इससे शरीर की गतियाँ कुशल व गरिमायुक्त हो जाती हैं। लचक के बढ़ने से चोटों से भी बचाव हो जाता है। विभिन्न योगासन जैसे- चक्रासन, धनुरासन, हलासन, भुजंगासन व शलभासन आदि शरीर की लचक को बढ़ाने में सहायक होते हैं। इन आसनों को करने से मांसपेशियाँ भी लचीली हो जाती

7. स्थूलता या मोटापे को कम करता है (Reduces Obesity) – मोटापे की समस्या आज एक आम समस्या बन चुकी है। मोटा व्यक्ति समाज में अक्सर उपहास का पात्र ही बनता है मोटापे के कारण ही व्यक्ति अनेक शारीरिक तथा मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाता है। यौगिक व्यायाम जैसे- प्राणायाम व ध्यानात्मक आसन मोटापे को कम करने में सहायक होते हैं।

8. स्वास्थ्य में सुधार करता है (Improves Health) – योग शरीर की सभी संस्थाओं जैसे श्वसन उत्सर्जन रक्त प्रवाह, स्नायु व ग्रन्थि संस्थाओं की कार्य-कुशलता को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में सुधार होता है।

9. मानसिक तनाव को कम करता है (Reduces Mental Tension Stress) – विभिन्न अध्ययनों द्वारा होग मानसिक तनाव (Tension) को कम करने में सहायक होता है। यौगिक क्रियाएँ जैसे प्रत्याहार, धारणा व ध्यान मानसिक शान्ति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके अतिरिक्त मकरासन, शवासन, शलभासन व भुजंगासन जैसे यौगिकभी को कम करने में लाभदायक होते हैं।

10. आध्यात्मिक विकास में सहायक (Helps in Spiritual Development) – नियमित रूप यौगिक व्यायाम करने से मस्तिष्क पर अच्छा नियंत्रण किया जा सकता है। पद्मासन व सिद्धासन आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अच्छे आसन है। ये आसन ध्यान करने की शक्ति को बढ़ाते हैं। प्राणायाम भी आध्यात्मिक विकास के लिए लाभदायक होता है।

11. नैतिक मूल्यों को बढ़ाता है (Enhances Moral Values) – नैतिक मूल्यों का हास आज की सर्वव्यापी समस्या है। यम व नियम जैसी यौगिक क्रियाए सत्य, अहिंसा, चोरी न करने तथा ब्रह्मचर्य के पथ पर चलकर नैतिक अनुशासन सिखाती हैं। इस प्रकार के गुण व्यक्ति को अधिक नैतिक व सदाचारी बनाते हैं।

12. योग आसानीपूर्वक किया जा सकता है (Yoga can be Performed Easily) – गैर यौगिक व्यायामों को करने में अधिक समय व धन खर्च होता है, जबकि आधुनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के पास समय की कमी है। यौगिक व्यायामों को आसानी से कम जगह बहुत ही कम खर्च पर घर में भी आसानी से किया जा सकता है।

निम्न बिन्दुओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि योग का अभ्यास करने से हमें प्रत्येक कार्य को कुशलतापूर्वक करने और सही ढंग से जीवन जीने की कला आती है। नियमित योगाभ्यास हमारी कार्यक्षमता को बढ़ाता है और जीवन को अनुशासित बनाता है। इससे व्यक्ति चुस्त-दुरूस्त रहता है, उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति का विकास होता है, शरीर का लचीलापन बढ़ता है, मुद्रा में सुधार होता है, तनाव कम होता है और आंतरिक शांति मिलती है।

निवारणात्मक उपायों के रूप में आसन (Asanas as Preventive Measures) – योगासनों का अभ्यास हमें विभिन्न बीमारियों से बचाने में मदद करता है। शरीर को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ यह हमारे मन-मस्तिष्क को भी शांत रखता है। इसी कारण योगाभ्यास करना आज की जरूरत बनता जा रहा है। योगासन के नियमित अभ्यास से कई बीमारियों, विकारों एवं मुद्रा दोषों से बचा जा सकता है। विभिन्न प्रकार के आसन कई बीमारियों के लिए निवारक उपाय के रूप में कार्य करते हैं, जैसे कि-

1. हृदयवाहिका संबंधी कुशलता में सुधार (Improves Efficiency of Cardiovascular System) – हृदयवाहिका संबंधी योग्यता खिलाड़ी के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए आवश्यक है। आसन व्यक्ति को हृदयवाहिका संबंधी कुशलता में सुधार लाता है। आसनों के विभिन्न प्रकार जैसे- कपालभाति, उज्जयी आदि कुशलता को बढ़ाने में लाभदायक होते हैं। यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से आसन करता है तो उसकी हृदयवाहिका संबंधी योग्यता में सुधार आता है।

2. श्वसन संस्थान में सुधार (Improves Efficiency of Respiratory System) – फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। नियमित रूप से किए गए योगासनों द्वारा फेफड़ों की शक्ति तथा कार्यक्षमता में सुधार आता है। इससे फेफड़ों को फैलने व सिकुड़ने की शक्ति बढ़ती है। जिससे अधिक से अधिक ऑक्सीजन युक्त वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त को शुद्धि कर सके। नियमित रूप से किए गए योगासनों द्वारा विभिन्न बीमारियों जैसे कि खाँसी तथा अस्थमा से बचा जा सकता है।

3. अस्थियाँ तथा जोड़ मजबूत हो जाते है (Bones and Joints becomes Strong) – नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण व्यक्ति की अस्थियाँ तथा लिगामेंट्स मजबूत होते जाते है। मजबूत अस्थियों तथा लिगामेंट्स के कारण जोड़ अधिक दबाव सहने में सक्षम हो जाते है। इसके अतिरिक्त जोड़ों की लचक में भी वृद्धि होती है। आसनों के द्वारा आसन संबंधी विकृतियों से बचा तथा उन्हें सुधारा भी जा सकता है। नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण जोड़ों के दर्द, सरवाईकल तथा साइटिका जैसी समस्याओं से भी बचा जा सकता है।

4. रक्त परिसंचरण तंत्र में सुधार (Improves Efficiency of Circulatory System) – नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण हृदय की मांसपेशियाँ अधिक शक्तिशाली तथा बेहतर ढंग से कार्य करने लगती है। इससे स्ट्रोक आयतन तथा कार्डियक आउटपुट में वृद्धि होती है। जिसके कारण रक्तप्रवाह उचित तथा रक्तदबाव सामान्य और स्थिर बना रहता है। इसके अतिरिक्त रक्त में कोलेस्ट्रोल के स्तर में भी कमी आती है।

5. पाचन तंत्र में सुधार (Improves Efficiency of Digestive System) – नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण भोजन के अवशोषण की क्रिया कुशल हो जाती है। भोजन के आवश्यक तत्वों का भंडारण हो जाता है। जैसे कि पित्ताशय (Gall Bladder) में सांद्र अवस्था में पित्त (Bile) का भंडारण हो जाता है। भूख में भी वृद्धि हो जाती है। आमाशय (Stomach) व आँतें भी शक्तिशाली हो जाती हैं। कब्ज, अपचन (Indigestion) व गैस की समस्या भी दूर हो जाती है। अतः हम कह सकते है कि नियमित रूप से आसन करने से हमारे शरीर का पाचन तंत्र उचित ढंग से कार्य करना शुरू कर देता है।

6. स्नायु तंत्र की कुशलता में सुधार (Improves Efficiency of Nervous System) – नियमित रूप से आसन करने के कारण साइनेप्स की कम खपत होती है। आसन करने से मानसिक शक्ति तथा स्मरण शक्ति में सुधार होता है। इन सबके कारण व्यक्ति में निराशा के. की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। नाड़ी पेशिय तालमेल बेहतर हो जाता है जिसके कारण किसी भी क्रिया को करने के दौरान ऊर्जा भाव का उत्पन्न होना कम हो जाता है, अर्थात् अवसाद से बचा जा सकता है।

7. उत्सर्जन तंत्र की कुशलता में सुधार ( Improves Efficiency of Excretory System) – नियमित रूप से आसन करने से उत्सर्जन तंत्र के सभी अंगों की कुशलता में वृद्धि होती है। जिसके परिणामस्वरूप व्यर्थ के पदार्थ जैसे कि- लैक्टिक एसिड, एसिड फॉस्फेट, यूरिया, युरिक एसिड व सल्फेट्स आदि सुचारू रूप से तथा जल्दी ही विसर्जित हो जाते हैं जो कि थकावट को दूर करने में सहायक होता है।

8. प्रतिरोधक क्षमता में सुधार (Improves Immune System) – नियमित रूप से आसन करने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है जिसके कारण व्यक्ति की संक्रामक रोग से ग्रस्त होने की संभावना कम हो जाती है।

9. मनोवैज्ञानिक रोगों का निवारण – मानसिक विकास जैसे कि दुश्चिंता, तनाव, अनिद्रा आदि के कारण व्यक्ति दुखा, तनावपूर्ण जीवन-शैली, कार्य की अधिकता अथवा दबाब आदि हो सकते हैं। नियमित योगाभ्यास करने से मन शांत रहता है और तनाव में कमी आती है। योगाभ्यास स्मरण शक्ति को भी बढ़ाता है, ध्यान को केंद्रित करता है, व्यक्तियों को सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करता है जिसके फलस्वरूप मानसिक विकारों में कमी आती है।

10. खेल चोटों से बचाव – खिलाड़ियों को मांसपेशियों में खिंचाव, कलाई का मुड़ना, गर्दन में तनाव, कमर दर्द इत्यादि जैसी चोटें लगना आम बात है। खेल प्रशिक्षण के दौरान योगासनों के अभ्यास से खिलाड़ियों की मांसपेशियों एवं जोड़ों, के लचीलापन बढ़ने से खिलाड़ी न केवल उपरोक्त चोटों से बच सकते हैं बल्कि उनके शारीरिक संतुलन, सहनशीलता एवं चपलता में भी वृद्धि होती है।

निवारणात्मक उपायों के रूप में योग आसनों के लाभ

शरीर क्रियात्मक लाभमनोवैज्ञानिक लाभजैव-रासायनिक लाभ
रक्त का दबाव नियंत्रित रहता है।व्यक्ति का मूड बेहतर रहता है।एकाग्रता में सुधार होता है।
शरीर की लचक में वृद्धि होती है।सफेद रक्त कोशिकाओं में कमी आती है।स्मरण शक्ति बेहतर होती है।
तंत्रिका तंत्र की कार्यक्षमता में सुधार।आत्म-बोध में वृद्धि होती है।सीखने की दक्षता में सुधार होता है।
पल्स रेट नियंत्रित रहती है।सोडियम का स्तर नियंत्रित रहता है।हीमोग्लोबिन में वृद्धि होती है।
हृदय कार्यक्षमता में सुधार होता है।सामाजिक समायोजन बेहतर होता है।थायरोक्सिन में वृद्धि होती है।
आँख और हाथों में समन्वय में सुधार।चिंता और अवसाद में कमी।विटामिन-सी में वृद्धि होती है।
निपुणता कौशल में सुधार।HDL कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि।कुल सीरम प्रोटीन में वृद्धि।
प्रतिक्रिया समय में सुधार।VDL कोलेस्ट्रॉल में कमी।
शरीर के ऊर्जा स्तर में वृद्धि।LDL कोलेस्ट्रॉल में कमी।
शारीरिक भार पर नियंत्रण।
नींद में सुधार।
रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि।
शारीरिक दर्दों में कमी।
शारीरिक क्रिया प्रणाली में सुधार।
बेहतर एवं सुड़ौल शारीरिक आकृति।

जीवनशैली सम्बन्धी बीमारियों से बचाव के लिए योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease) – आधुनिकता के इस युग में, विशेषकर शहरों में लोग एक ऐसी जीवन शैली को जाने-अन्जाने अपना रहे हैं, जिसमें उनके पास स्वयं के प्रति समय तथा नियमित शारीरिक क्रियाओं के लिए समय का बहुत आभाव है। इसी कारण लोगों में स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतें भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं। इस जीवन शैली का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों, युवाओं तथा प्रौढ़ों पर पड़ रहा है।

आजकल लोग पैदल चलने के बजाय जान को प्राथमिकता देते हैं। यहां तक कि एक जगह से उठकर पास में रखे उपकरण को भी बन्द करने के लिए रिमोट के प्रयोग को प्राथमिकता देते हैं। विभिन्न भौतिक वस्तुओं के कारण लोगों में निष्क्रियता की आदत बढ़ी है। इस प्रकार की जीवन-शैली अनेक प्रकार की बमारियों जैसे मोटापा, मधुमेह, अतिरक्तदाब, हृदय रोग, कैन्सर व पीठ दर्द आदि को जन्म देती है।

इसीलिए इस प्रकार की बीमारियों को सामान्य जीवन-शैली सम्बन्धी बीमारियाँ भी कहा जाता है। आजकल बहुत से लोग कम उम्र में ही इन जीवन-शैली सम्बन्धी बीमारियों के का मौत का शिकार हो रहे हैं। कारण जीवन-शैली सम्बन्धी इन बीमारियों से अपनी जीवन शैली में मात्र कुछ साधारण बदलाव करके बचा जा सकता है। ऐसी ही कुछ जीवन-शैली सम्बन्धी बीमारियों से बचाव व प्रबन्धन के सुझाव निम्नलिखित हैं

I. मोटापा (Obesity) – मोटापा आज एक विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह पाया गया है कि इस समस्या से सबसे अधिक बच्चे तथा युवा वर्ग प्रभावित हैं। मोटापा शरीर की वह दशा होती है जिसमें शरीर में वसा (fat) की मात्रा बहुत अधिक स्तर तक बढ़ जाती है।

मोटापे के कारण होने वाली अनेक बीमारियों जैसे– मधुमेह (Diabetes), अतिरिक्त दबाव (Hypertension), कैंसर, गठिया या जोड़ों का दर्द (Arthritis) व यकृत का ठीक प्रकार से कार्य न करने के कारण इसे एक बीमारी का दर्जा दिया गया है।

मोटापे से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Obesity) – नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम तथा योग करने से मोटापे की समस्या पर काफी हदया जा सकता है। मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते है
मोटापे से बचाव तथा नियंत्रण के लिए लाभदायक आसन

  • ताड़ासन
  • कटिचक्रासन
  • पवनमुक्तासन
  • मत्स्यासन
  • हलासन
  • पश्चिमोत्तन
  • अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  • धनुरासन
  • उष्ट्रासन
  • सूर्यभेदन प्राणायाम
1. ताड़ासन (Tadasana) – ताड़ासन, यह योग आसन करने से शरीर ताड़ के वृक्ष के समान मजबूत बनने से इसे यह नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Palm Tree Pose’ भी कहा जाता है। शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के साथ शरीर की लंबाई बढ़ाने के लिए यह श्रेष्ठ आसन माना जाता है।
विधि (Method)

  • एक समतल जगह पर अपने दोनों पैरों को आपस में मिलाकर और दोनों हथेलियों को बगल में रखकर सीधे खड़े हो जाएँ।
  • दोनों हाथों को पार्श्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठाएँ।
  • हाथों को ऊपर ले जाकर हथेलियों को मिलाये और हथेलियाँ आसमान की तरफ ऊपर की ओर होनी
    चाहिए। हाथों की उंगलियाँ आपस में मिली होनी चाहिए।
  • जैसे-जैसे हाथ ऊपर उठे वैसे-वैसे पैर की एड़िया भी ऊपर उठी रहनी चाहिए।
  • हाथ ऊपर उठाते समय पेट अंदर लेना चाहिए।
  • शरीर का भाग पंजों पर होना चाहिए।
  • शरीर ऊपर की ओर पूरी तरह से तना रहना चाहिए।
  • कमर सीधी, नजर सामने की ओर गर्दन सीधी रखनी चाहिए।
  • ताड़ासन की इस स्थिति में लम्बी सांस भरकर 1 से 2 मिनिट तक रुकना चाहिए।
  • अब धीरे-धीरे सांस छोड़कर नीचे आकर पूर्व स्थिति में आना चाहिए।
  • 1 से 2 मिनिट रुककर दोबारा इसी क्रिया को दोहराएँ।
  • इस आसन को प्रतिदिन क्षमता और अभ्यास अनुसार 10 से 15 बार करें।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से ताड़ासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-

  • फेफड़े सुदड़ एवं विस्तृत होते है।
  • शारीरिक और मानसिक संतुलन में वृद्धि।
  • पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
  • शरीर मजबूत और सुडौल बनता है।
  • आलस्य दूर करने के लिए सर्वोत्तम
  • हाथ-पैर के स्नायु मजबूत बनते है।
  • आत्मविश्वास में वृद्धि।
  • कद की वृद्धि बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम आसन
  • शरीर के समस्त स्नायु सक्रीय एवं विकसित होते है।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्नलिखित स्थितियों में यह आसन नहीं करना चाहिए-

  • पैर संबंधी किसी भी समस्या की स्थिति में।
  • बीमारी या ऑपरेशन के तुरंत बाद।
  • गर्भावस्था की स्थिति में।
  • सिरदर्द या निम्न रक्तचाप की स्थिति में।
कटिचक्रासन (Katichakrasana) – कटिचक्रासन दो शब्द मिलकर बना है- कटि जिसका अर्थ होता है ‘कमर’ और चक्र जिसका अर्थ होता है ‘पहिया’। इस आसन में कमर को दाईं तथा बाईं ओर मरोड़ना अर्थात् घुमाना होता है। ऐसा करते समय कमर पहिये की तरह घूमती है, इसलिए इसका नाम कटिचक्रासन रखा गया है।
विधि (Method)

  • पैरों को जोड़ कर सीधे खड़े हो जाएँ।
  • श्वास अंदर लेते हुए हथेलियों एक-दूसरे के सामने रखते हुए हाथों को अपने सामने जमीन के समानांतर करें।
  • अपने हाथों और कन्धों को दूरी समान रखें।
  • श्वास छोड़ते हुए, कमर दाहिनी ओर घुमाएँ और बाएं कंधे से पीछे की ओर देखें और श्वास लेते हुए पुनः सामने की ओर घूम जाएँ।
  • श्वास छोड़ते हुए इस आसन को बाएँ और घुमते हुए दोहराएँ।
  • इस आसन को कुछ समय तक दोनों तरफ करें और फिर श्वास छोड़ते हुए हाथों को नीचे ले आएँ।
लाभ (Advantages)

  • कब्ज से राहत
  • मेरुदंड और कमर के लचीलेपन में वृद्धि होती है।
  • हाथ और पैरों के मासपेशियों के लिए लाभदायक।
  • गर्दन एवं कन्धों को आराम देते हुए, पेट की मांसपेशियों एवं पीठ को शक्तिशाली बनाता है।
  • ज्यादा देर बैठकर काम करने वालों के लिए लाभदायक।
सावधानियाँ विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कमर या गर्दन में ज्यादा दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • रीढ़ की हड्डी की समस्या हो तो यह आसन नहीं करना चाहिए।
3. पवनमुक्तासन (Pavan Muktasana) – पवनमुक्तासन को अंग्रेजी में ‘Gas Release Pose’ भी कहा जाता है, यह अपने नाम के भांति ही लाभकारी आसान हैं। पवनमुक्तासन का अर्थ होता है पवन या हवा को मुक्त करना।
विधि (Method)

  • शरीर के नितम्ब भाग के सहारे जमीन पर लेट जाएँ।
  • दोनों हाथों से दोनों घुटनों को मोड़कर छाती पर रखें।
  • सांस छोड़ते समय दोनों घुटनों को हाथों से दबाकर छाती से लगाएँ तथा सिर को उठाते हुए घुटनों से नासिका (Nose) से छुएँ।
  • 10 से 30 सेकेण्ड सांस को बाहर रोकते हुए इसी स्थिति में रहकर फिर पैरों को सीधा कर यह आसान 2 से 5 बार तक करें।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पेट की पाचन, अवशोषण व निष्कासन क्रियाओं को ठीक करता है।
  • इस आसन को करने से कब्ज और गैस के कारण पेट में जमी हुई वायु/गैसे आसानी से निकल जाती हैं।
  • इससे बाल भी मजबूत होते है तथा शरीर को चुस्त तंदरूस्त रहता है।
  • इस आसन में पेट पर दबाव पड़ने से रक्त का संचार हृदय व फेफड़ो की ओर बढ़ जाता है। इससे हृदय को बल मिलता है और फेफड़ो की सक्रियता बढ़ती है, जिससे सांस फूलना, अस्थमा, कफ दोष दूर करने में मदद मिलती है।
  • घुटनों के जोड़ों में लचीलापन उत्पन्न करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्न स्थितियों में यह आसन न करें-

  • कमर दर्द की स्थिति में।
  • भोजन के तुरंत बाद।
  • घुटने में दर्द होने पर।
  • गर्दन में दर्द होने पर।
4. मत्स्यासन (Matsyasana) – मत्स्यासन योग करते समय शरीर का आकार मछली की तरह होने के कारण इसे ‘मत्स्यासन’ आर में ‘Fish Pose’ कहा जाता है। कमर और गले से संबंधित समस्या से परेशान लोगों के लिए यह एक श्रेष्ठ आसन हैं।
विधि (Method)

  • सबसे पहले पद्मासन में बैठकर दोनों पैरों को सामने की ओर सीधा करें और फिर पीछे की ओर झुककर लेट जाएँ।
  • दोनों हाथों को आपस में बांधकर सिर के पीछे रखें अथवा पीठ के हिस्से को ऊपर उठाकर गर्दन मोड़ते हुए सिर के ऊपरी हिस्से को जमीन पर टिकाएं। दोनों पैर के अंगूठे को हाथों से इस प्रकार पकड़ की कोहनियाँ जमीन से सटी हुई रहे।
  • फिर कोहनियों की सहायता लेते हुए वापस बैठ जाएँ।
  • इस आसन का एक से पाँच मिनट तक अभ्यास करें।
  • इस आसन को सर्वांगासन करने के बाद करने पर ज्यादा लाभ होता है।
  • यह आसन करते समय श्वसन को गति नियमित रखें।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से यह आसन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-

  • रीढ़ की हड्डी, घुटने के जोड़ मजबूत होते है।
  • फेफड़ों मजबूत होते हैं।
  • घुटनों का दर्द कम होता है।
  • पेट के रोगों में उपयोगी है।
  • श्वास रोग को दूर भगाता है।
  • हामोन्स का उचित मात्रा में स्राव होता है।
  • कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • थाइरॉइड, मधुमेह, अग्नाशय और पाचन प्रणाली में लाभकारी।
  • पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी कम करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-

  • घुटनों में दर्द की स्थिति में।
  • उच्च रक्तचाप की स्थिति में।
  • भरे पेट।
  • स्लिप डिस्क या रीढ़ की समस्या होने पर।
  • माइग्रेन और अनिद्रा से पीड़ित होने पर।
  • हर्निया और पेप्टिक अल्सर से पीड़ित होने पर।
5. हलासन (Halasana) – हलासन दो शब्द ‘हल’ और ‘आसन’ से मिलकर बना है जिसमें हल का अर्थ है ‘जमीन को खोदने वाला कृषि यंत्र’ और आसन का अर्थ है ‘बैठने की मुद्रा’। इस योग को करने के दौरान शरीर की मुद्रा हल की तरह प्रतीत होती है। जिसके कारण इस योगासन को हिन्दी में हलासन तथा अंग्रेजी में ‘लो पोज’ कहते हैं।
विधि (Method)

  • एक साफ तथा समतल स्थान पर मैट अथवा दरी बिछाकर उस पर पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों हाथों को मैट पर रखें।
  • फिर धीरे-धीरे अपने पैरों को एक सीध में ऊपर उठाएं और कमर के सहारे अपने सिर के पीछे ले जाएं।
  • पैरों को तब तक सिर के पीछे ले जाएं जब तक वह जमीन को न छू लें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार इस मुद्रा में रहें और फिर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आ जाएं।
  • इस आसन को प्रतिदिन कम से कम 5 बार जरूर करें।
लाभ (Advantages)

  • हलासन पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करता है।
  • मेटाबॉलिज्म बढ़ाता है और वजन घटाने में मदद करता है।
  • ‘मधुमेह के मरीजों के लिए ये अच्छा आसन है क्योंकि ये रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करता है।
  • रीढ़ की हड्डी और कंधों में लचीलापन बढ़ाता और कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • तनाव और थकान से निपटने में भी मदद करता है।
  • यह आसन नपुंसकता, साइनोसाइटिस, इंसोम्निया और सिरदर्द में भी कायरा पहुंचाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • गर्दैन में चोट को स्थिति में हलासन का अभ्यास न करें।
  • उच्च रक्तचाप या अस्थमा की स्थिति में यह आसन न करें।
पश्चिमोत्तानासन (Paschimottanasana) – पश्चिमोत्तानासन यह आसन होता है जब हम बैठकर आगे की तरफ झुकते हैं। यह हठ योग की 12 मुद्राओं में से 5वीं मुद्रा है। पश्चिमोत्तानासन के बहुत से लाभ हैं क्योंकि यह शरीर के पिछले भाग को पूरी तरह से खींचता है।
विधि (Method)

  • पश्चिमोत्तानासन बैठकर शुरू किया जाता है।
  • अपने पैरों को सीधा, जोड़कर अपने सामने खींचते हुए रखें। दोनों पैरों का रुख छत की तरफ हो।
  • ध्यान दें कि बैठते समय आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी हो। कई लोगों को इस बिंदु पर यह फायदा होता है कि नीचे से मांस को खत्म कर देता है जिससे कि आपकी रौढ़ में घुमाव आए।
  • श्वास अंदर लेते समय अपनी बाँहों को सिर में ऊपर की ओर खींचें।
  • हाथों की दिशा के अनुरूप ही अपनी पूरी रीढ़ को खींचे।
लाभ (Advantages)

  • यह पैरों को मजबूत बनाता है।
  • मस्तिष्क को शांत रखता है।
  • अंदरूनी अंगों की मालिश करता है।
  • रीढ़ में खिंचाव पैदा करता है।
  • तंत्रिका तंत्र को ठीक कर एकाग्रता बढ़ाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications ) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-

  • पेट में अल्सर की शिकायत होने पर भोजन के बाद।
  • कमर में तकलीफ हो तो।
  • आंतों में सूजन होने पर।
7. अर्ध मत्स्येंद्रासन (Ardh-Matsyendrasana) – संस्कृत में ‘अर्ध’ का मतलब ‘आधा’ होता है। इस मुद्रा में हम अपनी रोढ़ को आधा मोड़ते हैं क्योंकि पूरी तरह से मोड़ पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इस आसन का यह नाम योग के जन्मदाता मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर पड़ा है।
विधि (Method)

  • पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  • बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)।
  • दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  • बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  • कमर, कन्धों व गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  • रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  • इसी अवस्था को बनाए रखें, लंबी गहरी साधारण सांस लेते रहें।
  • सांस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को ढीला छोड़ें, फिर कमर, फिर छाती और अंत में गर्दन को आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  • फिर दूसरी तरफ से भी यही प्रक्रिया पुनः दोहराएँ।
लाभ (Advantages)

  • यह मुद्रा पूरी रीढ़ की मालिश कर उसे लचीला बना देती है।
  • इस मुद्रा में प्रत्येक रौढ़ का जोड़ घूमता है, इससे रीढ़ की हड्डी ज्यादा लचीली बनती है मुख्यत: कमर का क्षेत्र।
  • हैमस्ट्रिंग, पिंडली और कूल्हों में जरूरी खिंचाव पैदा करता है।
  • शरीर में अनावश्यक चर्बी समाप्त होती है तथा शरीर सुंदर व सुडौल बनता है।
  • अस्थमा, उच्च रक्तचाप, ऑस्टियोपोरोसिस और साइनसिटिस के लिए लाभकारी है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – आप जब तक आसानी से इस अवस्था में रह सकें तब तक रहें। यदि आप किसी तकलीफ या दर्द का अनुभव करें तो धीरे-धीरे शुरुआती मुद्रा में वापस आ जाएँ।
धनुरासन (Dhanurasana) – यह आसन करने के दौरान शरीर की मुद्रा धनुष के समान दिखाई देती है इसलिए इसे धनुरासन कहा जाता है।
विधि (Method)

  • पेट के बल लेट जाएं और घुटनों को मोड़ते हुए कमर के पास ले आएं तथा अपने हाथ से दोनों टखनों को पकड़ें।
  • अब अपने सिर, छाती और जांघ को ऊपर की ओर उठाएं ताकि शरीर के भार को पेट के निचले हिस्से पर आ जाए।
  • फिर पैरों को पकड़कर शरीर को आगे की ओर खींचने की कोशिश करें।
  • अपनी क्षमतानुसार लगभग 15-20 सेकेंड तक इस आसन को करें।
  • फिर सांस को धीरे धीरे छोड़े और छाती, पैर को जमीन पर रख आराम करें।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पीठ / रीढ़ की हड्डी और पेट के स्नायु को बल प्रदान करना।
  • जननांग संतुलित रखने में सहायक होता है।
  • छाती, गर्दन और कंधों की जकड़न को दूर करता है।
  • हाथ और पेट के स्नायु को पुष्टि प्रदान करता है।
  • रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
  • तनाव और थकान कम करता है।
  • मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं को कम करता है।
  • गुर्दे की कार्यशीलता को बेहतर करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उच्च या निम्न रक्तदाब, हर्निया, कमर दर्द, सिर दर्द, माइग्रेन, गर्दन में चोट, हाल ही में पेट के ऑपरेशन की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
9. उष्ट्रासन (Ushtrasana) – ‘उष्ट्र’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘कट’ होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • एक साफ समतल स्थान पर घुटने के सहारे बैठ जाएं और दोनों हाथों को कुल्हों पर रखें।
  • घुटने कंधों के समानांतर हो तथा पैरों के तलवे आकाश की तरफ हो।
  • सांस लेते हुए मेरुदंड को पुरोनितम्ब की ओर खींचे जैसे कि नाभि से खींचा जा रहा हो।
  • गर्दन पर बिना दबाव डालें तटस्थ बैठे रहें तथा इसी स्थिति में कुछ देर सांस लेते रहे।
  • फिर सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं और हाथों को वापस अपनी कमर पर लाकर सीधे हो जाएं।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पाचन शक्ति बढ़ता है।
  • छाती को चौड़ा और उसको मजबूत बनाता है।
  • पीठ और कंधों को मजबूती देता है तथा पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा दिलाता है।
  • रीढ़ की हड्डी में लचीलेपन एवं मुद्रा में सुधार भी लाता है।
  • मासिक धर्म की परेशानी से राहत देता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उच्च रक्तचाप और हृदय रोग की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • हर्निया तथा अधिक कमर दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • साइटिका एवं स्लिप डिस्क की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
10. सूर्यभेदन प्राणायाम (Suryabedhan Pranayama) – सूर्यभेदन प्राणायाम को अंग्रेजी में ‘Right Nostril Breathing’ के नाम से जाना जाता है। इस प्राणायाम का सीधा संबंध सूर्य नाड़ी से होता है। इसमें पूरक क्रिया दायीं नासिका द्वारा की जाती हैं और दायीं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी मानी गई है। इसी कारण से इसे सूर्यभेदन प्राणायाम भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • सबसे पहले सुखासन की स्थिति में बैठकर गर्दन, मेरुदंड और कमर को सीधा करें।
  • फिर अपने बाएं हाथ को अपने घुटने पर रखें और आखें बंद कर लें।
  • इसके बाद दाएं हाथ को कोहनी से मोड़कर नाक के दाई ओर अंगूठा रखें, अनामिका व कनिष्ठा अंगुली को नाक के बाईं ओर रखें और तर्जनी व मध्यम अंगुली को ललाट रखें।
  • अब नाक के बाएं छिद्र को अनामिका व कनिष्ठ अंगुली से बन्द करके नाक के दाएं छिद्र से गहरी सांस ले और जितना हो सके स्वास को अंदर रोककर रखें।
  • सांस छोड़ने से पहले दोनों बंधों को खोलें और नाक के दाएं छिद्र को बन्द करके बाएं छिद्र से सांस को तेजी से बाहर निकालें।
  • इस क्रिया को कम से कम 4-5 बार दोहरायें।
लाभ (Advantages)

  • सूर्य भेदन प्राणायाम के नियमित अभ्यास से सकारात्मक विचारों में वृद्धि होती हैं।
  • तनाव कम करने और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए सूर्यभेदन प्राणायाम बहुत ही लाभदायक होता है।
  • नजला, खांसी, दमा, साइनस, लंग्स, हृदय और पाइल्स के लिए भी सूर्यभेदन प्राणायाम लाभदायक है।
  • इस प्राणायाम के नियमित अभ्यास से कफ के रोगों में लाभ मिलता है और शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होती है।
  • यह प्राणायाम आतों को साफ करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • पेट भरा होने पर यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  • पूरक करते समय पेट और सीने को ज्यादा न फुलाएं।
  • श्वास पर नियंत्रण रखकर ही पूरक क्रिया करें।

II. मधुमेह (Diabetes) – मधुमेह अर्थात् डायबिटीज मेलिट्स पोषक तत्वों का विकार है। जिसके लक्षण है-रक्त में ग्लूकोज का असामान्य रूप से बढ़ना और मूत्र द्वारा अतिरिक्त ग्लूकोज का उत्सर्ज मधुमेह का एकमात्र कारण आधुनिक जीवनशैली और दौड़ती-भागती जिन्दगी है, जिसका नकारात्मक प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। परिणामस्वरूप लोग मधुमेह का शिकार हो रहे है। इसके साथ ही लोगों ने अपनी जीवनशैली से व्यायाम तथा सैर इत्यादि बिल्कुल ही नकार दिया है जो कि मधुमेह का एक महत्वपूर्ण कारण है।

यह रोग अधिक भोजन खाने, मोटापे व डिप्रेशन के कारण भी होता है। अत्यधिक खान-पान अग्नाशय (Pancreas) पर भार स्वरूप होता है जो उसको सामान्य क्रिया को बाधित करके इंसुलिन (insulin) नामक हारमोन के स्राव को असंतुलित कर देता है।

इंसुलिन की कमी से ग्लूकोज ग्लाइकोजन में परिवर्तित नहीं हो पाता तथा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है व मूत्र के द्वारा शरीर से उत्सर्जित होने लगती है जिससे व्यक्ति बहुत कमजोर हो जाता है तथा आँखों की रोशनी भी अत्यन्त कम हो जाती है। इंसुलिन ही रक्त में शर्करा स्राव को नियंत्रित करता है। मधुमेह को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है- टाइप1 डायबिटीज तथा टाइप-2 डायबिटीज

भारत में मधुमेह के रोगियों को संख्या लगभग 5.08 करोड़ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आने वाले बीस सालों में मधुमेह रोगियों की संख्या 8.7 करोड़ होने का अनुमान है। दुनिया भर में भारत में ही सबसे अधिक मधुमेह के रोगी पाये जाते हैं। आज इस बीमारी से बच्चों से लेकर वयस्कों तक कोई भी आयु वर्ग अछूता नहीं है।

मधुमेह के लक्षण (Symptoms of Diabetes) – मधुमेह को रोगों में निम्न लक्षण पाए जाते हैं-

  • हर समय भूख और प्यास लगती हैं।
  • जल्दी थकान का अनुभव होता है।
  • जननांगों के पास खुजली रहती है।
  • दिन में कई बार पेशाब के लिए जाना पड़ता है।
  • शारीरिक भार नहीं बढ़ता।
  • कब्ज की शिकायत रहती है।
  • घाव जल्दी नहीं भरते।
  • हाथ और पैरों की उंगलियों में सुन्नपन रहता है।
अनियंत्रित मधुमेह के परिणाम (Effects of Uncontrolled Diabetes)

  • देखने की क्षमता में कमी या अंधापन
  • हृदयघात
  • यकृत संबंधी रोग
मधुमेह से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Diabetes) – नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम तथा योग करने से मधुमेह की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं।
मधुमेह से बचाव तथा नियंत्रण के लिए लाभदायक आसन

  • कटिचक्रासन
  • पवनमुक्तासन
  • भुजंगासन
  • शलभासन
  • धनुरासन
  • सुप्त वज्रासन
  • पश्चिमोत्तासन
  • अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  • मंडूकासन
  • गोमुखासन
  • योगमुद्रा
  • उष्ट्रासन
  • कपालभाति
1. कटिचक्रासन (Katichakrasana) – कटिचक्रासन दो शब्द मिलकर बना है- कटि जिसका अर्थ होता है ‘कमर’ और चक्र जिसका अर्थ होता है ‘पहिया’ इस आसन में कमर को दाई तथा बाईं ओर मरोड़ना अर्थात् घुमाना होता है ऐसा करते समय कमर पहिये की तरह घूमती है, इसलिए इसका नाम कटिचक्रासन रखा गया है।
विधि (Method)

  • पैरों को जोड़ कर सीधे खड़े हो जाएँ।
  • श्वास अंदर लेते हुए हथेलियाँ एक-दूसरे के सामने रखते हुए, हाथों को अपने सामने जमीन के समानांतर करें।
  • अपने हाथों और कन्धों की दूरी समान रखें।
  • श्वास छोड़ते हुए, कमर दाहिनी ओर घुमाएँ और बाएं कंधे से पीछे की ओर देखें और श्वास लेते हुए पुनः सामने की ओर घूम जाएँ।
  • श्वास छोड़ते हुए इस आसन को बाएँ ओर घुमते हुए
  • इस आसन को कुछ समय तक दोनों तरफ करें और फिर श्वास छोड़ते हुए को नीचे ले आएँ।
लाभ (Advantages)

  • कब्ज से राहत।
  • मेरुदंड और कमर के लचीलेपन में वृद्धि होती है।
  • हाथ और पैरों के मासपेशियों के लिए लाभदायक।
  • गर्दन एवं कन्धों को आराम देते हुए पेट की मांसपेशियों एवं पीठ को शक्तिशाली बनाता है।
  • ज्यादा देर बैठकर काम करने वालों के लिए लाभदायक।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कमर या गर्दन में ज्यादा दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • रौढ़ की हड्डी की समस्या हो तो यह आसन नहीं करना चाहिए।
2. पवनमुक्तासन (Pavan Muktasana) – पवनमुक्तासन को अंग्रेजी में ‘Gas Release Pose’ भी कहा जाता हैं, यह अपने नाम के भाँति ही लाभकारी आसान है। पवनमुक्तासन का अर्थ होता है पवन या हवा को मुक्त करना।
विधि (Method)

  • शरीर के नितम्ब भाग के सहारे जमीन पर लेट जाएँ।
  • दोनों हाथों से दोनों घुटनों को मोड़कर छाती पर रखें।
  • सांस छोड़ते समय दोनों घुटनों को हाथों से दबाकर छाती से लगाएँ तथा सिर को उठाते हुए घुटनों से नासिका (Nose) से छुएँ।
  • 10 से 30 सेकेण्ड सांस को बाहर रोकते हुए इसी स्थिति में रहकर फिर पैरों को सीधा कर यह आसान 2 से 5 बार तक करें।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पेट की पाचन, अवशोषण व निष्कासन क्रियाओं को ठीक करता है।
  • इस आसन को करने से कब्ज और गैस के कारण पेट में जमी हुई वायु / गैसे आसानी से निकल जाती हैं।
  • इससे बाल भी मजबूत होते है तथा शरीर की चुस्त तंदरूस्त रहता है।
  • इस आसन में पेट पर दबाव पड़ने से रक्त का संचार हृदय व फेफड़ो की ओर बढ़ जाता है। इससे हृदय को बल मिलता है और फेफड़ो की सक्रियता बढ़ती है, जिससे सांस फूलना, अस्थमा, कफ दोष दूर करने में मदद मिलती है।
  • घुटनों के जोड़ों में लचीलापन उत्पन्न करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्न स्थितियों में यह आसन न करें-

  • कमर दर्द की स्थिति में।
  • भोजन के तुरंत बाद।
  • घुटने में दर्द होने पर।
  • गर्दन में दर्द होने पर।
3. भुजंगासन (Bhujangasana) – यह आसन करते समय शरीर का आकार फन उठाए हुए सर्प के समान होने के कारण इसे ‘भुजंगासन’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘Cobra Pose’ भी कहा जाता है। पीठ के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह सबसे लाभकारी आसन हैं।
विधि (Method)

  • दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पीछे की ओर अधिक-से-अधिक
  • दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर के रखें।
  • अगुलिया बाहर की ओर तथा आपस में मिली हुई हो
  • श्वास भरते हुए. छाती के भाग को धीरे-धीरे उठाएँ तथा सिर तथा गर्दन को ऊपर की और है।
  • श्वास छोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएँ।
  • अधिक देर तक रुकने पर श्वास सामान्य कर सकते हैं।
  • यह आसन 30 सेकेण्ड से 3 मिनट तक कर सकते हैं।
लाभ (Advantages)

  • शरीर में रक्त संचार ठीक करता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ती है।
  • गर्दन व कमर दर्द से छुटकारा मिलता है।
  • फेफड़ों की शक्ति का विकास होता है जिससे ऑक्सीजन की उचित मात्रा में पूर्ति होती है।
  • मासपेशियों व हड्डियों को लचीला बनाता है।
सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उन व्यक्तियों को जिन्हें हर्निया, पीठ की चोटें सिरदर्द तथा हाल ही में उदरीय सर्जरी हुई होइस आसन को नहीं करनाचाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
4. शलभासन (Shalabhasana) – शलाभासन योग करते समय शरीर का आकार शलय (Locust ) कीट की तरह होने के कारण इसे शलभासन Locust Pose’ कहते है। कमर और पीठ के स्नायु मजबूत करने के लिए यह श्रेष्ठ आसन है।
विधि (Method)

  • पेट के बल लेटे तथा अपने दोनों हाथों को जांघों के नीचे रखें।
  • ठोंडी को जमीन पर टिकाकर रखें।
  • अब दोनों पैरों को बिना मोड़े धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ।
  • अपनी क्षमतानुसार कुछ क्षण इसी स्थिति में रहें।
  • धीरे-धीरे पैरों को नीचे लाएँ और पुनः स्थिति में आएँ।
  • जमीन पर लेटते समय श्वास लेना है और पैरों को उठाते समय श्वास को रोककर रखना है। पैरों को नीचे लाते समय श्वास छोड़ना है।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूती प्रदान करता है।
  • साइटिका से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभकारी है।
  • कमर और पैरों को मजबूती मिलती है।
  • गर्दन और कंधों के स्नायु को मजबूती प्राप्त होती है।
  • यह आसन गर्दन और कमर के क्षेत्र की अतिरिक्त चर्बी कम करने में सहायक है। इससे वजन कम होने में मदद होती है।
  • पाचन (Digestion) में सुधार होता है।
5. धनुरासन (Dhanurasana) – यह आसन करने के दौरान शरीर की मुद्रा धनुष के समान दिखाई देती है इसलिए इसे धनुरासन कहा है।
विधि (Method)

  • पेट के बल लेट जाए और घुटनों को मोड़ते हुए कमर के पास ले आएं तथा अपने हाथ से दोनों टखनों को पकड़ें।
  • अब अपने सिर, छाती और जांघ को ऊपर की ओर उठाएं ताकि शरीर के भार को पेट के निचले हिस्से पर आ जाए।
  • फिर पैरों को पकड़कर शरीर को आगे की ओर खींचने की कोशिश करें।
  • अपनी क्षमतानुसार लगभग 15-20 सेकेंड तक इस आसन को करें।
  • फिर सांस को धीरे धीरे छोड़े और छाती, पैर को जमीन पर रख आराम करें।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पीठ/रीढ़ की हड्डी और पेट के स्नायु को बल प्रदान करना।
  • जननांग संतुलित रखने में सहायक होता है।
  • छाती. गर्दन और कंधों की जकड़न को दूर करता है।
  • हाथ और पेट के स्नायु को पुष्टि प्रदान करता है।
  • रीड़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
  • तनाव और थकान कम करता है।
  • मासिक धर्म की समस्या को कम करता है।
  • गुर्दे की कार्यशीलता को बेहतर करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) 

  • उच्च या निम्न रक्तदाब, हर्निया, कमर दर्द, सिर दर्द, माइग्रेन, गर्दन में चोट, हाल ही में पेट के ऑपरेशन की स्थिति में यह आसननहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
6. सुप्त वज्रासन (Supta-vajarasana) – सुप्त का अर्थ होता है ‘सोया हुआ’। इस आसन को करने के दौरान व्यक्ति को वज्रासन की मुद्रामें बैठते हुए पीछे की ओर लेट कर योगाभ्यास करना होता है, जिसके कारण इस आसन को सुप्त वज्रासन कहा गया है
विधि (Method)

  • एक साफ तथा समतल स्थान पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएं।
  • फिर अपनी कोहनी के सहारे धीरे-धीरे शरीर को पीछे की तरफ लेकर जाएं और अपनी कोहनियों को भी जमीन पर टीका दें और हाथों को सीधा फैलाकर सिर के पीछे लेकर जाएं।
  • अब आराम की स्थिति में आते हुए अपने हाथों को कंधे के नीचे लेकरआएं और गहरी लंबी सांस लें।
  • इस अवस्था में कम से कम 30 से 40 सेकंड तक रहें और उसकेबाद फिर से पुरानी अवस्था में आने के लिए सबसे पहले अपने हाथोंको ऊपर की ओर लेकर जाएं और कोहनी के बल से अपने शरीर कोऊपर की तरफ उठाएं और फिर से वज्रासन की स्थिति में बैठ जाएं।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन के अभ्यास से की समस्या ममता है।
  • यह आसन पेट से सम्बंधित बहुत सारी बिमारियों से बचाता है।
  • यह आसन रक्त संचार को बेहतर बनाता है।
  • यह आसन पेट की मांसपेशियों को मजबूती देता है।
  • यह आसन घुटनों और जांच की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।
  • यह आसन अस्थमा के निवारण में सहायक होता है।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – पेट, कूल्हों, घुटनों या कमर में दर्द होने पर इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
7. पश्चिमोत्तामासन (Paschimottasana) – पश्चिमोत्तानासन यह आसन होता है जब हम बैठकर आगे की तरफ झुकते हैं। यह हठ योग की 12 मुद्राओं में से 5वीं मुद्दा है। पश्चिमोत्तानासन के बहुत से लाभ है क्योंकि यह शरीर के पिछले भाग को पूरी तरह से खींचता है।
विधि (Method)

  • पश्चिमोत्तानासन बैठकर शुरू किया जाता है।
  • अपने पैरों को सीधा, जोड़कर अपने सामने खींचते हुए रखें। दोनों पैरों का रुख छत की तरफ हो।
  • ध्यान दें कि बैठते समय आपको रीढ़ की हड्डी सीधी हो। कई लोगों को इस बिंदु पर यह फायदा होता है कि नीचे से मांस को खत्म कर देता है जिससे कि आपकी रीढ़ में घुमाव आए।
  • श्वास अंदर लेते समय अपनी बाँहों को सिर में ऊपर की ओर खींचें। हाथों की दिशा के अनुरूप ही अपनी पूरी रीढ़ को खींचे।
लाभ (Advantages)

  • यह पैरों को मजबूत बनाता है।
  • मस्तिष्क को शांत रखता है।
  • अंदरूनी अंगों की मालिश करता है।
  • रीढ़ में खिंचाव पैदा करता है।
  • तंत्रिका तंत्र को ठीक कर एकाग्रता बढ़ाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-

  • पेट में अल्सर की शिकायत होने पर भोजन के बाद।
  • कमर में तकलीफ हो तो।
  • आंतों में सूजन होने पर
8. अर्ध-मत्स्येंद्रासन (Ardh-Matsyendrasana) – संस्कृत में ‘अर्थ’ का मतलब ‘आधा’ होता है। इस मुद्रा में हम आनी रीढ़ को आधा मोड़ते है क्योंकि पूरी तरह से मोड़ पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इस आसन का यह नाम योग के जन्मदाता मत्स्येंद्रनाथ के नाम परपड़ा।
विधि (Method)

  • पैरों को सामने की ओर फैलाते हुए बैठ जाएँ, दोनों पैरों को साथ में रखें, रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  • बाएँ पैर को मोड़ें और बाएँ पैर की एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें (या आप बाएँ पैर को सीधा भी रख सकते हैं)।
  • दाहिने पैर को बाएँ घुटने के ऊपर से सामने रखें।
  • बाएँ हाथ को दाहिने घुटने पर रखें और दाहिना हाथ पीछे रखें।
  • कमर, कन्धों व गर्दन को दाहिनी तरफ से मोड़ते हुए दाहिने कंधे के ऊपर से देखें।
  • रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
  • इसी अवस्था को बनाए रखें, लंबी गहरी साधारण सांस लेते रहें।
  • सांस छोड़ते हुए, पहले दहिने हाथ को ढीला छोड़े, फिर कमर, फिर छाती और अंत में गर्दन को। आराम से सीधे बैठ जाएँ।
  • दूसरी तरफ से प्रक्रिया को दोहराएँ।
  • सांस छोड़ते सामने की ओर वापस आ जाएँ।
लाभ (Advantages)

  • मेरुदंड को मजबूती मिलती है।
  • मेरुदंड का सचीलापन बढ़ता है।
  • छाती को फैलाने से फेफड़ों को ऑक्सीजन मात्रा में मिलती है।
सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications) – आप जब तक आसानी से इस अवस्था में रह सके तब तक रहें। यदि आप तकलीफ या दर्द का अनुभव करें तो धीरे-धीरे शुरुआती मुद्रा में वापस आ जाएं।
9. मंदुकासन (Mandukasana) – मदुकासन एक संस्कृत शब्द है, जिसमें दो शब्द ‘मंडुक’ का अर्थ है ‘मॅडक’ और आसन का अर्थ ‘मुद्रा’। मंडुकासन को अंग्रेजी में ‘फ्रॉग पोज’ (Frog Pose) भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • एक साफ तथा समतल जगह पर बज्रासन की मुद्रा में बैठ कर अपने दोनों हाथों को मुट्टियों को बांधकर अपनी नाभि के पास इस प्रकार ले जाना है कि दोनों हाथों की मुट्ठी खड़ी हो और उंगलिया पेट की तरफ हो।
  • फिर सांस छोड़ते हुए आगे की ओर इस प्रकार झुके कि जाँ छाती से टिकी हो तब तक आगे झुके जब तक की नाभी पर दबाव न बनने लगे। इस दौरान गर्दन मेंढ़क की तरह उठाकर रखनी है।
  • फिर सांस धीरे-धीरे लेनी और छोड़नी है और इस स्थिति को अपनी क्षमता अनुसार बनाए रखें।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन को करने से पेट की मांसपेशियों मजबूत होती है और शक्ति भी बेहतर बनती है।
  • मंडुकासन शरीर की जो नसें अपनी जगह से हट गई हैं उन्हें अपनी जगह लाने में मदद करता है।
  • मंडुकासन डायबिटीज को नियंत्रित करने और हृदय के स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा आसन है।
  • मंदुकासन किडनी व लीवर की कार्यक्षमता को बेहतर करता है।
  • यह आसन पेट और नितंबों की चर्बी कम करता है तथा शारीरिक भार भी नियंत्रित करता है।
  • यह आसन कमर, नितंब और घुटनों को मजबूत बनाता है।
  • तनाव व चिंता से राहत दिलाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • पेट की तकलीफ या ऑपरेशन हुआ हो तो इस आसन को न करें।
  • पीठ में दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
10. गोमुखासन (Gomukhasana) – गोमुखासन वह आसन है जिसमें हमारे पैरों की मुद्रा गाय के मुख के समान लगती है। ‘गो’ का अर्थ ‘रोशनी’ से भी है। इसलिए गोमुख का अर्थ अंदरूनी रोशनी या मस्तक की रोशनी भी है। गोमुखासन में शरीर में कई अंगों में एक साथ खिंचाव पैदा होता है। जैसे कि घुटना, जांघ, कूल्हा, छाती, गर्दन, बाहें तथा पैर।
विधि (Method)

  • सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
  • अब बाए पैर की एड़ी को दाहिने नितम्ब के पास रखें।
  • दायें पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखे कि दायें पैर का घुटना बायें पैर के ऊपर रहे तथा एड़ी और पंजे का भाग नितंब को स्पर्श करें।
  • अब बाएँ हाथ को पीठ के पीछे मोड़कर हथेलियों को ऊपर की ओर से
  • दाहिने हाथ को दाहिने कंधे पर सीधा उठा लें और पीछे की ओर घुमाते हुए कोहनी से मोड़कर हाथों को परस्पर बांध से। अब दोनों हाथों को धीरे से अपनी दिशा में
  • अपने मुदं हुए दाहिने हाथ को ऊपर की और अपने क्षमतानुसार तानकर रखें।
  • शरीर को सीधा रखें।
  • श्वास नियंत्रित रखें और इस अवस्था में यशाशक्ति रुकने का प्रयास करें।
  • इस आसन को हाथ और पैर को बदलकर पांच बार करें।
  • अंत में धीरे-धीरे श्वास छोड़कर क्रमश: फिर से सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन करने से शरीर सुडौल, लचीला और आकर्षक बनता है।
  • वजन कम करने के लिए यह आसन उपयोगी है।
  • गोमुखासन मधुमेह रोग में अत्यंत लाभकारी है।
  • निम्न रोगों में भी यह आसन लाभकारी हैं- गठिया, साइटिका, अपचन, कब्ज, धातु रोग, मन्दाग्नि, पीठदर्द, लैंगिक विकार, प्रदर रोग तथा बवासीर।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कंधे, पीठ, गर्दन, नितंब व घुटनों में दर्द होने पर यह आसन न करें।
  • आसन करते समय तकलीफ होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
  • शुरुआत में पीठ के पीछे दोनों हाथों को आपस में न पकड़ पाने पर जबरदस्ती न करें।
  • गोमुखासन के समय को अभ्यास के साथ धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
11. योगमुद्रा (Yogmudra) – योग मुद्रा शारीरिक गतिविधियों (physical movements) का एक समूह है जो मस्तिष्क के विशेष भागों में ऊर्जा का प्रवाह करने का काम करता है। हमारे शरीर में मौजूद किसी तत्व के असंतुलित (unbalanced) होने के कारण विभिन्न बीमारियां लग जाती है। ऐसी स्थिति में योग मुद्रा शरीर के पांच तत्वों को संतुलित करने में सहायक होता है।

विधि (Method)

(i) योगमुद्रा आसन करने के लिए सबसे पहले पद्मासन की मुद्रा में बैठते हैं और फिर दोनों बाहों को मोड़कर हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर एक हाथ से दूसरे हाथ की कलाई पकड़ लेते है।

(ii) फिर अपनी कमर, रीढ़, पीठ एवं गर्दन को सीधा रखते हुए लम्बी साँस लेते हुए पेट को पिचकाकर सामने की ओर झुकाते है ताकि सिर भूमि को छुए।

(iii) साँस को रोकते या धीरे-धीरे लेते हुए इस मुद्रा में क्षमतानुसार देर तक रहने का प्रयास करना चाहिए और फिर सांस छोड़ते हुए पुनः सामान्य स्थिति में आ जाते है।

लाभ (Advantages)

  • योगमुद्रा आसन में ध्यान लगाने से मन्दाग्नि समाप्त होती है तथा ध्यान लगाने की क्षमता में वृद्धि होती है।
  • योगमुद्रा का अभ्यास करने से बदहजमी खत्म होती है।
  • शरीर की पेशियाँ, नाड़ियाँ, स्नायु आदि मजबूत, लचीले एवं स्वस्थ होते हैं।
  • इस मुद्रा को करने से मधुमेह एवं मोटापा की समस्या लगभग खत्म हो जाती है।
  • इस मुद्रा को करने से त्वचा की चमक में वृद्धि तथा बालों की बीमारियाँ खत्म हो जाती है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • हर्निया उच्च रक्तचाप, गर्भावस्था से पीड़ित आसन नहीं करना चाहिए।
  • योगमुद्रा को शुरूआत में किसी निपुण योग प्रशिक्षक की देखरेख में ही करना चाहिए।
12. उष्ट्रासन (Ushtrasana) – उष्ट्र संस्कृत भाषाकसका अर्थ ‘कट’ होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • एक साफ समतल स्थान पर घुटने के सहारे बैठ जाएं और दोनों हाथों को कुल्हों पर रखें।
  • घुटने कंधों के समानांतर होता पैरों के तने आकाश की तरफ हो
  • सांस लेते हुए मेरुदंड को पुरोनितम्ब की ओर खींचे जैसे कि नाभि से खींचा जा रहा हो।
  • गर्दन पर बिना दबाव डालें तटस्थ बैठे रहें तथा इसी स्थिति में कुछ देर सांस लेते रहे।
  • फिर सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं और हाथों को वापस अपनी कमर पर लाकर सीधे हो जाएं।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पाचन शक्ति बढ़ता है।
  • छाती को चौड़ा और उसको मजबूत बनाता है।
  • पीठ और कंधों को मजबूती देता है तथा पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा दिलाता है।
  • रीढ़ की हड्डी में लचीलेपन एवं मुद्रा में सुधार भी लाता है।
  • मासिक धर्म की परेशानी से राहत देता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उच्च रक्तचाप और हृदय रोग की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • हर्निया तथा अधिक कमर दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • साइटिका एवं स्लिप डिस्क की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
13. कपालभाती (Kapalabhati) – कपालभाती एक ऐसा योगासन है जो शरीर की अनेक प्रकार की बीमारियों को खत्म करता है। यह एक बहुत ही आसान प्राणायाम है जिसे कोई भी स्वस्थ व्यक्ति आसानी से कर सकता है। कपाल का सम्बन्ध हमारे मस्तक से होता है और भाति का सम्बन्ध कान्ति से होता है। यदि इस योग को नियमित किया जाये तो इससे मस्तक पर आभा आती है।
विधि (Method)

  • ध्यान की मुद्रा में बैठ जाए. पद्मासन में बैठना ज्यादा लाभकारी होता है।
  • रीढ़ की हड्डी को सीधा रखे और अपने हाथों को घुटने पर रख लीजिये ।
  • अब अपनी आँखों को बंद करके पूरे शरीर को एकदम हल्का छोड़ दीजिये।
  • गहरी साँस ले। (इस समय आपका पेट बाहर होना चाहिए)
  • फिर साँस को धीरे-धीरे बाहर छोड़े, साँस बाहर छोड़ने के साथ ही पेट अंदर की तरफ खींचे।
  • इसके एक क्रम में साँस को 20 बार ले और बाहर छोड़े।
  • कपालभाती पूरा होने के बाद 1 मिनट तक शांति की अवस्था में बैठे रहे।
लाभ (Advantages)

  • कपालभाती योग के द्वारा वजन कम करने में मदद मिलती है। यह आपके पेट की चर्बी को कम करता है।
  • पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है।
  • डायबिटीज के मरीजों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद होता है।
  • अस्थमा के रोग को जड़ से समाप्त करने में सहायक होता है।
  • कपालभाति शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करता है।
  • कपालभाती योग करने से कब्ज की शिकायत दूर होती है।
  • कपालभाति योग रक्त के संचरण को सही करता है जिससे चेहरे की आभा बढती है।
  • कफ सम्बन्धित समस्या को ठीक करता है, फेफड़ों की क्षमता को ठीक करता है।
  • कपालभाति योग करने से मन को शांति प्रदान होती है।
  • कपालभाति योग शरीर फुर्तीला होता है। थकान को कम करने में भी लाभकारी होता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • बंद कमरे में, गर्म वातावरण में, धूल-धुंए वाली जगह पर कपालभाति करने पर इसका विपरीत प्रभाव भी हो सकता है।
  • पेट का ऑपरेशन के कुछ समय बाद तक यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • हृदय संबंधी रोग की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • रीढ़ की हड्डी की समस्या होने पर यह आसन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
  • मासिक धर्म के दौरान यह आसन नहीं करना चाहिए।
III. अस्थमा (Asthma) – अस्थमा फेफड़ों (Lungs) से संबंधित एक बीमारी है जिसमें वायु नलियाँ अवरूद्ध या संकरी (Narrow) हो जाने के कारण व्यक्ति को साँस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा के दौरान वायु नलियों में सूजन आ जाती है जिसके कारण उनमें अतिरिक्त श्लेष्मा (Mucus) उत्पन्न होने लगती है जिसके कारण वायु नली संकरी हो जाती है। अस्थमा का प्रभाव रात तथा सुबह के समय सबसे अधिक होता है। कई व्यक्तियों में यह समस्या काफी जटिल रूप धारण कर उनके दैनिक क्रियाकलापों को भी काफी हद तक प्रभावित कर सकती है।
अस्थमा के लक्षण खाँसी – घरघराहट (Wheezing), साँस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना तथा श्वास का छोटापन (Shortness of Breath) अस्थमा के मुख्य लक्षण है।
अस्थमा के कारण – यह समस्या अनुवाशिक कारक, किसी पदार्थ से ऐलजी, धुएँ, स्प्रे अथवा परफ्यूम की खुशबू, श्वसन संबंधी किसी संक्रमण, ठण्डे मौसम अथवा किसी दवाई से संक्रमण के कारण भी हो सकती है।
अस्थमा से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Asthma) – अस्थमा की समस्या से पीड़ित व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते है-

  • ताड़ासन
  • ऊर्ध्वहस्तोत्नसन
  • उत्तानमंडूकासन
  • भुजंगासन
  • धनुरासन
  • उष्ट्रासन
  • वक्रासन
  • कपालभाति
  • गोमुखासन
  • मत्स्यासन
  • अनुलोम-विलोम
1. ताड़ासन (Tadasana) – ताड़ासन, यह योग आसन करने से शरीर ताड़ के वृक्ष के समान मजबूत बनने से इसे यह नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Palm Tree Pose’ भी कहा जाता है। शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के साथ शरीर की लंबाई बढ़ाने के लिए यह श्रेष्ठ आसन माना जाता है।
विधि (Method)

  • एक समतल जगह पर अपने दोनों पैरों को आपस में मिलाकर और दोनों हथेलियों को बगल में रखकर सीधे खड़े हो जाएँ।
  • दोनों हाथों को पार्श्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठाएँ।
  • हाथों को ऊपर ले जाकर हथेलियों को मिलाये और हथेलियाँ आसमान की तरफ ऊपर की ओर होनी चाहिए। हाथों की उंगलियाँ आपस में मिली होनी चाहिए।
  • जैसे-जैसे हाथ ऊपर उठे वैसे-वैसे पैर की एड़िया भी ऊपर उठी रहनी चाहिए।
  • हाथ ऊपर उठाते समय पेट अंदर लेना चाहिए।
  • शरीर का भाग पंजों पर होना चाहिए।
  • शरीर ऊपर की ओर पूरी तरह से तना रहना चाहिए।
  • कमर सीधी, नजर सामने की ओर गर्दन सीधी रखनी चाहिए।
  • ताड़ासन की इस स्थिति में लम्बी सांस भरकर 1 से 2 मिनिट तक रुकना चाहिए।
  • अब धीरे-धीरे सांस छोड़कर नीचे आकर पूर्व स्थिति में आना चाहिए।
  • 1 से 2 मिनिट रुककर दोबारा इसी क्रिया को दोहराएँ।
  • इस आसन को प्रतिदिन क्षमता और अभ्यास अनुसार 10 से 15 बार करें।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से ताड़ासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-

  • फेफड़े सुदृढ़ एवं विस्तृत होते है।
  • शारीरिक और मानसिक संतुलन में वृद्धि।
  • हाथ-पैर के स्नायु मजबूत बनते है।
  • आत्मविश्वास में वृद्धि।
  • पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
  • शरीर मजबूत और सुडौल बनता है।
  • आलस्य दूर करने के लिए सर्वोत्तम
  • की वृद्धि के लिए
  • शरीर के समस्त स्नायु एवं होते हैं।
सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्नलिखित स्थितियों में यह आसन नहीं करना चाहिए-

  • पैर संबंधी किसी भी समस्या की स्थिति में।
  • बीमारी या ऑपरेशन के तुरंत बाद।
  • गर्भावस्था की स्थिति में।
  • सिरदर्द या निम्न रक्तचाप की स्थिति में।
2. ऊर्ध्वहस्तोलासन (Urdhwahastottansana) – ऊर्ध्वहस्तोलासन तीन शब्दों के मेल से बना है जिसमें उ का अर्थ है “ऊपर” हस्त का अर्थ है “हाथ” और आसन का अर्थ है “मुद्रा” इस आसन को अंग्रेजी में सूर्य सलाम (sun salutation) भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • साफ समतल सतह पर इस प्रकार सौधे खड़े हो जाएं कि दोनों पैरों के बीच दूरी न रखें और रीढ़ की हड्डी व गर्दन बिल्कुल सीधी हो।
  • फिर दोनों हाथों को सीधे रखते हुए जोड़कर एक साथ आगे से ऊपर की ओर इस प्रकार ले जाएं कि दोनों हाथ, पीठ, गर्दन एक सीध में हो।
  • फिर गर्दन को सीधा रखते हुए सिर को पीछे की तरफ ले जाए और हाथों की तरफ देखें।
  • कुछ देर तक इसी स्थिति में बने रहे और फिर धीरे-धीरे पहले जैसी मुद्रा में आ जाए।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन के अभ्यास से कमर पतली और छाती चौड़ी हो जाती है।
  • इस आसन को करने से कमर तथा नितम्बों से अनावश्यक मांस कम हो जाता है।
  • इस आसन के अभ्यास से शरीर की लम्बाई बढ़ती है।
  • कब्ज की समस्या और पसलियों के दर्द को अति शीघ्र दूर करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • खाना खाने के तुरंत बाद यह योगासन न करें।
  • कमर या गर्दन में दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • कंधों में जकड़न या दर्द होने पर यह आसन नहीं करना चाहिए।
3. उत्तानमंडुकासन (Uttanmandukasana) – उत्तानमंडुकासन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ‘उत्तान’ का अर्थ है ‘तना हुआ’ और ‘मंडुक’ का अर्थ है ‘मेंढ़क’। इस आसन की अंतिम मुद्रा में शरीर सीधे तने हुए मेढक के समान लगता है, जिस कारण इसे यह नाम दिया गया है।
विधि (Method)

  • सबसे पहले एक साफ समतल जगह पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएं और दोनों घुटनों को फैलाएं।
  • फिर दाई बांह उठाकर मोड़ते हुए दाएं कंधे के ऊपर से पीछे की ओर ले जाकर हथेली को बाएं कंधे के नीचे रख दें।
  • उसी तरह से आप बाई बांह को मोड़ें तथा ऊपर से लेकर जाकर हथेली को दाएं कंधे के नीचे रख दें।
  • फिर शरीर को ऊपर की ओर खीचें और अपनी क्षमता के अनुरूप इस स्थिति में कुछ देर के लिए बने रहे।
  • वापस आते समय धीरे-धीरे बाईं बांह और फिर दाई बांह हटाते हुए घुटनों को आरंभिक अवस्था मे ले आएं।
  • इस पूरे चक्र को कम-से-कम 3 से 5 बार करना चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन के नियमित अभ्यास से पीठ दर्द में आराम मिलता है।
  • यह योगाभ्यास गले के दर्द में लाभकारी है।
  • इसके अभ्यास से घुटने मजबूत होते है।
  • इस आसन के नियमित अभ्यास से कंधे का दर्द ठीक हो सकता है।
  • देर तक यह आसन करने से पेट के बगल के चर्बी कम हो जाती है।
  • श्वसन सम्बन्धी परेशानियों को दूर करने में यह आसन लाभकारी हैं।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • ज्यादा कमर दर्द या घुटने में परेशानी की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • कोहनी या कंधों में दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
4. भुजंगासन (Bhujangasana) – यह आसन करते समय शरीर का आकार फन उठाए हुए सर्प के समान होने के कारण इसे ‘भुजगासन’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे Cobra Pose’ भी कहा जाता है। सूर्यनमस्कार करते समय क्रमांक 7 में यह आसन किया जाता हैं। पीठ के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह सबसे लाभकारी आसन हैं।
विधि (Method)

  • दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पीछे की ओर अधिक-से-अधिक खिंचाव दें।
  • दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर कांधों के नीचे रखें।
  • अंगुलिया बाहर की ओर तथा आपस में मिली हुई हो।
  • श्वास भरते हुए, छाती के भाग को धीरे-धीरे उठाएँ।
  • सिर तथा गर्दन को भी ऊपर की ओर खिंचाव दें।
  • श्वास जोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएँ।
  • अधिक देर तक रुकने पर श्वास सामान्य कर सकते हैं।
  • यह आसन 30 सेकेण्ड से 3 मिनट के कर सकते हैं।
लाभ (Advantages)

  • शरीर में रक्त संचार ठीक करता है जिससे कार्यक्षमता बढ़ती है।
  • गर्दन व कमर दर्द से छुटकारा मिलता है।
  • फेफड़ों की शक्ति का विकास होता है जिससे ऑक्सीजन की उचित मात्रा में पूर्ति होती है।
  • मांसपेशियों व हड्डियों को लचीला बनाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उन व्यक्तियों को जिन्हें हर्निया, पीठ की चोटें सिर दर्द तथा हाल ही में उदरीय सर्जरी हुई हो उन्हें इस आसन को नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
5. धनुरासन (Dhanurasana) – यह आसन करने के दौरान शरीर की मुद्रा धनुष के समान दिखाई देती है इसलिए इसे धनुरासन कहा जाता है।
विधि (Method)

  • पेट के बल लेट जाएं, और घुटनों को मोड़ते हुए कमर के पास ले आएं तथा अपने हाथ से दोनों टखनों को पकड़ें।
  • अब अपने सिर, छाती और जांप को ऊपर की ओर उठाएं ताकि शरीर के भार को पेट के निचले हिस्से पर आ जाए।
  • फिर पैरों को पकड़कर शरीर को आगे की ओर खींचने की कोशिश करें।
  • अपनी क्षमतानुसार लगभग 15-20 सेकेंड तक इस आसन को करें।
  • फिर सांस को धीरे धीरे छोड़े और छाती पैर को जमीन पर रख आराम करें।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पीठ/रीढ़ की हड्डी और पेट के स्नायु को प्रदान करना।
  • जननांग संतुलित रखने में सहायक होता है।
  • छाती, गर्दन और कंधों की जकड़न को दूर करता है।
  • हाथ और पेट के स्नायु की पुष्टि प्रदान करता है।
  • रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
  • तनाव और थकान कम करता है।
  • मासिक धर्म की समस्या को कम करता है।
  • गुर्दे की कार्यशीलता को बेहतर करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उच्च या निम्न रक्तदाब, हर्निया, कमर दर्द, सिर दर्द, माइग्रेन, गर्दन में चोट, हाल ही में पेट के ऑपरेशन की स्थिति में यह आसननहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
6. उष्ट्रासन (Ushtrasana) – उष्ट्र’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘कंट’ होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • एक साफ समतल स्थान पर घुटने के सहारे बैठ जाएं और दोनों हाथों को कुल्हों पर रखें।
  • घुटने कंधों के समानांतर हो तथा पैरों के तलवे आकाश की तरफ हो।
  • सांस लेते हुए मेरुदंड को पुरोनितम्ब की ओर खींचे जैसे कि नाभि से खींचा जा रहा हों।
  • गर्दन पर बिना दबाव डालें तटस्थ बैठे रहें तथा इसी स्थिति में कुछ देर सांस लेते रहे।
  • फिर सांस छोड़ते हुए अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाएं और हाथों को वापस अपनी कमर पर लाकर सीधे हो जाएं।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पाचन शक्ति बढ़ता है।
  • छाती को चौड़ा और उसको मजबूत बनाता है।
  • पीठ और कंधों को मजबूती देता है तथा पीठ के निचले हिस्से में दर्द से छुटकारा दिलाता है।
  • रीढ़ की हड्डी में लचीलेपन एवं मुद्रा में सुधार भी लाता है।
  • मासिक धर्म की परेशानी से राहत देता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • उच्च रक्तचाप और हृदय रोग की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • हर्निया तथा अधिक कमर दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • साइटिका एवं स्लिप डिस्क की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
7. वक्रासन (Vakarasana) – संस्कृत भाषा का शब्द है। ये दो शब्दों वक्र (Vakra) और आसन (Asana) से मिलकर बना है। जहां वक्र का अर्थ टेढ़ा होने या मोड़ने (Twist) से है। वहीं दूसरे शब्द आसन का अर्थ ‘आसन (Asana) ‘ का अर्थ किसी विशेष परिस्थिति में बैठने, लेटने या खड़े होने की मुद्रा स्थिति या ‘पोश्चर (Posture)’ से है।
विधि (Method)

  • अपने पाँव को फैलाकर जमीन पर बैठे।
  • बायें पाँव को घुटने से मोड़ और उठाकर दायें घुटने के बगल में रखें।
  • रीढ़ सीधी रखे तथा सांस छोड़ते हुए कमर को बाई और मोहें।
  • हाथ की कोहनी से बायें पैर के घुटने को दबाव के साथ अपनी ओर
  • पैर को खोथे और पेट में दबाव आने दें।
  • सांस छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में आएँ।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन डायबिटिज को रोकने में कारगर है।
  • वजन नियंत्रित रहता है।
  • पाचन क्रिया सुधारता है।
  • गर्दन दर्द व कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • डिप्रेशन से मुक्ति।
  • रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications)

  • पेट दर्द में वकासन नहीं करनी चाहिए।
  • ज्यादा कमर दर्द में इसे न करें।
  • गर्दन दर्द होने पर भी इसको करने से बचें।
  • घुटने का दर्द होने पर इस आसन के करने से बचना चाहिए।
  • कोहनी में दर्द होने पर इसको करने से इसको बचना चाहिए।
8. कपालभाती (Kapalabhati) – कपालभाती एक ऐसा योगासन है जो शरीर की अनेक प्रकार की बीमारियों को खत्म करता है। यह एक बहुत ही आसान प्राणायाम है जिसे कोई भी स्वस्थ व्यक्ति आसानी से कर सकता है। कपाल का सम्बन्ध हमारे मस्तक से होता है और भाति का सम्बन्ध कान्ति से होता है। यदि इस योग को नियमित किया जाये तो इससे मस्तक पर आभा आती है।
विधि (Method)

  • ध्यान की मुद्रा में बैठ जाए, पद्मासन में बैठना ज्यादा लाभकारी होता है।
  • रोड़ की हड्डी को सीधा रखे और अपने हाथों को घुटने पर रख लीजिये।
  • अब अपनी आँखों को बंद करके पूरे शरीर को एकदम हल्का छोड़ दीजिये।
  • गहरी साँस ले। (इस समय आपका पेट बाहर होना चाहिए)
  • फिर साँस को धीरे-धीरे बाहर छोड़े, साँस बाहर छोड़ने के साथ ही पेट अंदर की तरफ खाँचे।
  • इसके एक क्रम में साँस को 20 बार ले और बाहर छोड़े।
  • कपालभाती पूरा होने के बाद । मिनट तक शांति की अवस्था में बैठे रहे।
लाभ (Advantages)

  • कपालभाती योग के द्वारा वजन कम करने में मदद मिलती है। यह आपके पेट की चर्बी को कम करता है।
  • पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है।
  • डायबिटीज के मरीजों के लिए यह बहुत ही फायदेमंद होता है।
  • अस्थमा के रोग को जड़ से समाप्त करने में सहायक होता है।
  • कपालभाति शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करता है।
  • कपालभाती योग करने से कब्ज की शिकायत दूर होती है।
  • कपालभाति योग रक्त के संचरण को सही करता है जिससे चेहरे की आभा बढती है।
  • कफ सम्बन्धित समस्या को ठीक करता है, फेफड़ों की क्षमता को ठीक करता है।
  • कपालभाति योग करने से मन को शांति प्रदान होती है।
  • कपालभाति योग शरीर फुर्तीला होता है। थकान को कम करने में भी लाभकारी होता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • बंद कमरे में गर्म वरण में परमत करने पर इसका प्रभाव भी है।
  • पेट का ऑपरेशन के कुछ समय बाद यह नहीं करना।
  • हृदय संबंधी रोग की स्थिति में यह आसन नहीं करना।
  • रीढ़ की हट्टी की समस्या होने पर यह आसन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
  • मासिक धर्म के दौरान यह आसन नहीं करना चाहिए।
9. गोमुखासन (Gomukhasana) – गोमुखासन यह आसन है जिसमें हमारे पैरों की मुद्रा के समान लगती है।” का अर्थ ‘रोशनी’ से भी है। इसलिए गोमुख का अर्थ अंदरूनी रोशनी या मस्तक की रोशनी भी है। में शरीर में कई अंगों में एक साथ खिंचाव पैदा होता है। जैसे कि- घुटना, जांघ, कुल्हा, छाती, गर्दन, बाहें तथा पैर।
विधि (Method)

  • सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
  • अब बाए पैर की एड़ी को दाहिने नितम्ब के पास रखें।
  • दायें पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखे कि दायें पैर का घुटना पैर के ऊपर रहे तथा एड़ी और पंजे का भाग नितंब को स्पर्श करें।
  • अब बाएँ हाथ को पीठ के पीछे मोड़कर हथेलियों को ऊपर कीओर ले जाएँ।
  • दाहिने हाथ को दाहिने कंधे पर सीधा उठा लें और पीछे की ओर घुमाते हुए कोहनी से मोड़कर हाथों को
    परस्पर बांध लें। अब दोनों हाथों को धीरे से अपनी दिशा में खींचें।
  • अपने मुड़े हुए दाहिने हाथ को ऊपर की और अपने क्षमतानुसार तानकर रखें।
  • शरीर को सीधा रखें।
  • श्वास नियंत्रित रखें और इस अवस्था में यशाशक्ति रुकने का प्रयास करें।
  • इस आसन को हाथ और पैर को बदलकर पांच बार करें।
  • अंत में धीरे-धीरे श्वासछोड़कर क्रमश: फिर से सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन करने से शरीर सुडौल, लचीला और आकर्षक बनता है।
  • वजन कम करने के लिए यह आसन उपयोगी है।
  • गोमुखासन मधुमेह रोग में अत्यंत लाभकारी है।
  • निम्न रोगों में भी यह आसन लाभकारी हैं- गठिया, साइटिका, अपचन, कब्ज, धातु रोग, मन्दाग्नि, पौठदर्द, लैंगिक विकार, प्रदर रोग तथा बवासीर।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कंधे, पीठ, गर्दन, नितंब व घुटनों में दर्द होने पर यह आसन न करें।
  • आसन करते समय तकलीफ होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
  • शुरुआत में पीठ के पीछे दोनों हाथों को आपस में न पकड़ पाने पर जबरदस्ती न करें।
  • गोमुखासन के समय को अभ्यास के साथ धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
10. मत्स्यासन (Matsyasana) – मत्स्यासन योग करते समय शरीर का आकार मछली की तरह होने के कारण इसे ‘मत्स्यासन’ और अंग्रेजी में ‘Fish Pose’ कहा जाता हैं। कमर और गले से संबंधित समस्या से परेशान लोगों के लिए यह एक श्रेष्ठ आसन है।
विधि (Method)

  • सबसे पहले पद्मासन में बैठकर दोनों पैरों को सामने की ओर सीधा करें और फिर पीछे की ओर झुककर लेट जाएँ।
  • दोनों हाथों को आपस में बांधकर सिर के पीछे रखें अथवा पीठ के हिस्से को ऊपर उठाकर गर्दन मोड़ते हुए सिर के ऊपरी हिस्से को जमीन पर टिकाएँ। दोनों पैर के अंगूठे को हाथों से इस प्रकार पकड़ें की कोहनियाँ जमीन से सटी हुई रहे।
  • फिर कोंहनियों की सहायता लेते हुए बैठ जाएं।
  • इस आसन का एक से अभ्यास करें।
  • इस आसन को सर्वांगासन करने के बाद करने पर ज्यादा लाभ होता है।
  • यह आसन करते समय श्वसन की नियमित रखें।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से यह आसन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-

  • रोड़ की हड्डी, घुटने के जोड़ मजबूत होते है।
  • फेफड़ों मजबूत होते हैं।
  • घुटनों का दर्द कम होता है।
  • पेट के रोगों में उपयोगी है।
  • श्वास रोग को दूर भगाता है।
  • हार्मोन्स का उचित मात्रा में स्राव होता है।
  • कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • थाइरॉइड, मधुमेह, अग्नाशय और पाचन प्रणाली में लाभकारी।।
  • पेट पर जमी अतिरिक्त चर्बी कम करता है।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-

  • घुटनों में दर्द की स्थिति में।
  • उच्च रक्तचाप की स्थिति में।
  • भरे पेट।
  • स्लिप डिस्क या रीढ़ की समस्या होने पर।
  • माइग्रेन और अनिद्रा से पीड़ित होने पर।
  • हर्निया और पेप्टिक अल्सर से पीड़ित होने पर।
11. अनुलोम विलोम (Anulom Vilom) – अनुलोम विलोम नासिका के द्वारा किए जाने वाला आसन है। यह आसन अत्यंत गुणकारी व्यायाम है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि अनुलोम-विलोम प्राणायाम अभ्यास के द्वारा अपनी कुण्डलिनी शक्तियां जागृत करते थे। अनुलोम-विलोम प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से ध्यान करने की शक्ति का अद्भुत विकास होता है। इस गुणकारी प्राणायाम को करने के बाद शरीर में फुर्ती आती है और एक नई ऊर्जा का संचार होता है। अनुलोम-विलोम करने से मन प्रफुल्लित हो जाता है तथा मन में अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं। यह व्यायाम व्यक्ति में सकारात्मक विचारों का सर्जन करके, उसे आत्मविश्वासी बनाता है।
विधि (Method)

  • अनुलोम विलोम का अभ्यास करने के लिए सबसे पहले ध्यान की अवस्था में बैठ जाएं।
  • इस दौरान पालथी मारकर जमीन पर बैठें और आंखें बंद रखें।
  • कमर और स्पाइन को सीधा रखें और हाथों को घुटनों पर रखें और अपनी सांसो को स्थिर करें।
  • अपने शरीर को आराम की मुद्रा में लाए और एक गहरी सांस लें।
  • सांस लेने में जोर न लगाएं, जितना हो सके उतनी गहरी सांस लें।
  • फिर अपने दाएं हाथ की उंगलियों को ज्ञान मुद्रा में लाएं और बाएं हाथ की उंगलियों से नासिकाग्र मुद्रा बनाएं।
  • उसके बाद अब बाएं हाथ की अनामिका उंगली से दांए नथुने को बंद करें और बाएं नथुने से सांस लें। अब बाएं हाथ के अंगूठे से बाएं नथुने को बंद करें और दाएं नथुने से सांस छोड़ें।
  • अब बाएं नथुने को बंद रखते हुए ही दाएं नथुने से फिर एक गहरी सांस भरें। फिर अनामिका उंगली से दाएं नथुने को बंद कर लें और बाएं नथुने से सांस छोड़ें।
  • इसी अभ्यास को कम से कम पांच से सात बार दोहराएं।
  • यह आसन प्रतिदिन कम से कम 10 मिनट तक जरूर करना चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • अनुलोम विलोम प्राणायाम करने से नाड़ियों की शुद्धि होती है इसीलिए इसे नाडीशुद्धि प्राणायाम भी कहते है।
  • इस प्राणायाम से हृदय को शक्ति मिलती है साथ ही कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है।
  • प्राणायाम के कारण शुद्ध रक्त शरीर के सभी अंगो में जाकर पोषण देता है।
  • वात, पित्त, कफ के विकार दूर कर गठिया, जोड़ों का दर्द, सूजन आदि में राहत मिलती है।
  • इसके नियमित अभ्यास से नेत्रज्योति बढ़ती है।
  • अनिद्रा में लाभदायक है तथा तनाव को घटाकर शान्ति तथा सकारात्मक सोच को बढ़ाता हैं।
  • माइग्रेन, हाई तथा लो ब्लड प्रेशर, तनाव, क्रोध, कम स्मरणशक्ति से पीड़ित लोगो के लिए यह विशेष लाभकर है।
  • यह प्राणायाम मस्तिष्क के दोनों गोलार्धो में संतुलन के साथ ही विचारशक्ति और भावनाओं में समन्वय लाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • साँस लेने व छोड़ने की प्रक्रिया में आवाज नही होना चाहिए।
  • कमजोर एवं अनैमिया पीड़ित व्यक्ति में यह आसन करते वक्त दिक्कत हो सकती है अतः सावधानीपूर्वक करे।

IV. उच्च रक्तचाप (Hypertension) – उच्च रकाचा आधुनिक युग को तेजी से फैलती हुई बीमारी है। आज के आधुनिक युग में जीवन की तेज गति, औद्योगिक तथा वातावरण के कारण मनोवैज्ञानिक तनाव होना एक आम बात है। चिंता और मानसिक तनाव रक्त प्रवाह में एनलाइन की मात्रा को बढ़ाते हैं जिससे रक्तदाब बढ़ जाता है।

हमारे शरीर में धमनियों द्वारा प्रवाहित रक्त प्रत्येक कोशिका को पोषण उपलब्ध करवाता है। जब हृदय बड़ी धमनियों में रक्त को प्रवाहित करता है तब वह बल का प्रयोग करता है जिससे रक्त में दाव पैदा होता है। इसको रक्तचाप कहते हैं। शरीर में रक्त में परिसंचरण के लिए रक्तचाप का एक निश्चित स्तर आवश्यक है। कभी-कभी छोटी रक्त वाहिनियों में संकुचन के कारण भी रक्तचाप बढ़ जाता है। इस संकुचन के हृदय को रक्तवाहिनियों में धकेलने के लिए ज्यादा बल प्रयोग करना पड़ता है। जिसके कारण रक्त को धकेलने के लिए आवश्यक बल भी हृदय पर पड़ने वाले दाव के अनुपात में बढ़ता है।

उच्च रक्तचाप के कारण (Causes of Hypertension) – उच्च रक्तचाप का मुख्य कारण तनाव व गलत जीवनशैली है। इसके अतिरिक्त धूम्रपान, चाय कॉफी का अधिक सेवन, भोजन में अधिक तेल तथा मसालों का सेवन तथा कोलायुक्त पेय पदार्थ का सेवन उच्च रक्तचाप के कारण माने जाते हैं। ये पदार्थ हमारे शरीर की प्राकृतिक गतिविधियों को बाधित करते हैं जिसके कारण शरीर में से मल व विषैले पदार्थ के उत्सर्जन में बाधा उत्पन्न होती है। इससे शरीर की धमनियां तथा शिराएं मंद पड़ जाती है। धमनियों का सख्त होना, मोटापा, मधुमेह / डायबिटीज, अत्यन्त कब्ज तथ्था अनुवांशिकता भी उच्च रक्तचाप के कारण हैं।
उच्च रक्तचाप के लक्षण (Symptoms of Hypertension)

  • चक्कर आना।
  • हाथों, पैरों, कंधों व पीठ में दर्द होना।
  • सुबह उठने पर सिर के पीछे व गर्दन में दर्द होना।
  • थकावट व नींद न आना।
उच्च रक्तचाप से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Hypertension) – नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम तथा योग करने से उच्च रक्तचाप की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। उच्च रक्तचाप से ग्रस्त व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं।
उच्च रक्तचाप से बचाव तथा नियंत्रण के लिए लाभदायक आसन

  • ताड़ासन
  • कटिचक्रासन
  • उत्तानपादासन
  • अर्थ-हलासन
  • सरल मत्स्यासन
  • गोमुखासन
  • उत्तानमंडूकासन
  • वक्रासन
  • भुजगासन
  • मक्रासन
  • शवासन
  • नाड़ीशोध प्राणायाम
  • शीतली प्रायाणाम
1. ताड़ासन (Tadasana) – ताड़ासन, यह योग आसन करने से शरीर ताड़ के वृक्ष के समान मजबूत बनने से इसे यह नाम दिया गया हैं। अंग्रेजी में इसे ‘Palm Tree Pose’ भी कहा जाता हैं। शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के साथ शरीर की लंबाई बढ़ाने के लिए यह श्रेष्ठ आसन माना जाता है।
विधि (Method)

  • एक समतल जगह पर अपने दोनों पैरों को आपस में मिलाकर और दोनों हथेलियों को बगल में रखकर सीधे खड़े हो जाएँ।
  • दोनों हाथों को पार्श्वभाग से दीर्घ श्वास भरते हुए ऊपर उठाएँ।
  • हाथों को ऊपर ले जाकर हथेलियों को मिलाये और हथेलियाँ आसमान की तरफ ऊपर की ओर होनी चाहिए। हाथों की उंगलियों आपस में मिली होनी चाहिए।
  • जैसे-जैसे हाथ ऊपर उठे वैसे-वैसे पैर की एड़िया भी ऊपर उठी रहनी चाहिए।
  • हाथ ऊपर उठाते समय पेट अंदर लेना चाहिए।
  • शरीर का भाग पंजों पर होना चाहिए।
  • शरीर ऊपर की ओर पूरी तरह से तना रहना चाहिए।
  • कमर सीधी नजर सामने की ओर गर्दन सीधी रखनी चाहिए।
  • ताड़ासन की इस स्थिति में लम्बी सांस भरकर 1 से 2 मिनिट तक रुकना चाहिए।
  • अब धीरे-धीरे सांस छोड़कर नीचे आकर पूर्व स्थिति में आना चाहिए।
  • 1 से 2 मिनिट रुककर दोबारा इसी क्रिया को दोहराएँ।
  • इस आसन को प्रतिदिन क्षमता और अभ्यास अनुसार 10 से 15 बार करें।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से ताड़ासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-

  • फेफड़ें सुदृढ़ एवं विस्तृत होते है।
  • हाथ-पैर के स्नायु मजबूत बनते है।
  • शारीरिक और मानसिक संतुलन में वृद्धि।
  • आत्मविश्वास में वृद्धि।
  • पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
  • कद की वृद्धि बढ़ाने के लिए सर्वोत्तम आसन
  • शरीर मजबूत और सुडौल बनता है।
  • शरीर के समस्त स्नायु सक्रीय एवं विकसित होते है।
  • आलस्य दूर करने के लिए सर्वोत्तम
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्नलिखित स्थितियों में यह आसन नहीं करना चाहिए-

  • पैर संबंधी किसी भी समस्या की स्थिति में।
  • बीमारी या ऑपरेशन के तुरंत बाद
  • गर्भावस्था की स्थिति में।
  • सिरदर्द या निम्न रक्तचाप की स्थिति में।
2. कटिचक्रासन (Katichakrasana) – कटिचक्रासन दो शब्द मिलकर बना है- कटि जिसका अर्थ होता है ‘कमर’ और चक्र जिसका अर्थ होता है ‘पहिया’। इस आसन में कमर को दाई तथा बाई ओर मरोड़ना अर्थात् घुमाना होता है। ऐसा करते समय कमर पहिये की तरह घूमती है, इसलिए इसका नाम कटिचक्रासन रखा गया है।
विधि (Method)

  • पैरों को जोड़ कर सीधे खड़े हो जाएँ।
  • श्वास अंदर लेते हुए, हथेलियाँ एक-दूसरे के सामने रखते हुए, हाथों को अपने सामने जमीन के समानांतर करें।
  • अपने हाथों और कन्धों की दूरी समान रखें।
  • श्वास छोड़ते हुए, कमर दाहिनी ओर घुमाएँ और बाएं कंधे से पीछे की ओर देखें और श्वास लेते हुए पुनः सामने की ओर घूम जाएँ।
  • श्वास छोड़ते हुए इस आसन को बाएँ ओर घुमते हुए दोहराएँ।
  • इस आसन को कुछ समय तक दोनों तरफ करें और फिर श्वास छोड़ते हुए हाथों को नीचे ले आएँ।
लाभ (Advantages)

  • कब्ज से राहत।
  • मेरुदंड और कमर के लचीलेपन में वृद्धि होती है।
  • हाथ और पैरों के मासपेशियों के लिए लाभदायक।
  • गर्दन एवं कन्धों को आराम देते हुए, पेट की मांसपेशियों एवं पीठ को शक्तिशाली बनाता है।
  • ज्यादा देर बैठकर काम करने वालों के लिए लाभदायक।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कमर या गर्दन में ज्यादा दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • रोड़ की हड्डी की समस्या हो तो यह आसन नहीं करना चाहिए।
3. उत्तानपादासन (Uttanpadasana) – उत्तानपादासन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें उत्तान का अर्थ है ‘ऊपर उठा हुआ, पाद का अर्थ है ‘पांव’ तथा आसन का अर्थ है मुद्रा इस आसन में पीठ के बल लेटकर पांव ऊपर उठाते हैं, इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है।
विधि (Method)

  • साफ समतल जमीन पर आराम से लेटकर दोनों को तथा दोनों हाथों को शरीर के निकट रखे रहने दें।
  • फिर सांस लेते हुए पांवों को मोड़े बगैर धीरे-धीरे 30 डिग्री के कोण तक उठाएं और क्षमतानुसार कुछ देर उसी मुद्रा में रहें।
  • फिर सांस छोड़ते हुए दोनों पांव को धीरे-धीरे नीचे लाएं।
  • इस चक्र को कम-से-कम 3 से 5 बार करना चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन को करने से पेट की चर्बी कम होती है तथा पेट दर्द में राहत मिलती है।
  • पाचन संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।
  • नाभि को संतुलित रखने में यह आसन सबसे अधिक लाभदायक है।
  • इस आसन के नियमित अभ्यास से कब्ज की समस्या दूर होती है तथा कमर दर्द में भी राहत मिलती है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कमर में दर्द या हाल में हुई पेट के ऑपरेशन की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • साइटिका या रीढ़ की हड्डी से संबंधित समस्या की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भावस्था में इस आसन को बिल्कुल न करें।
4. अर्ध-हलासन (Ardha Halasana) – बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य के ल‍िए न‍ियम‍ित योग करना जरूरी है। ऐसे कई योग आसन है जो आपको चुस्‍त और दुरुस्‍त बनाए रख सकते हैं। इनमें से अर्ध-हलासन भी एक है। अर्ध-हलासन से आपके पैर, पेट और पीठ के निचले भाग को मजबूती मिलेगी।
विधि (Method)

  • पीठ के बल जमीन पर इस प्रकार लेटते है कि हथेलियाँ जमीन की और और जांघों के बगल में रहें।
  • फिर दोनों पैरों को आपस में मिलाते हैं और एक पैर को धीरे-धीरे उठाते हुए 90° के कोण तक ले जाते है।
  • 90° की मुद्रा में क्षमता अनुसार समय तक ठहरने का प्रयास करें।
  • फिर धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आए और कुछ सैकेण्ड आराम के बाद इसी प्रक्रिया को दूसरे पैर के साथ दोहराते हैं।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन पेट की आंतों को ताकतवर बनाता है और कब्ज से राहत प्रदान करता है।
  • यह आसन भोजन को पचाने में, गैस की समस्या से आराम और मोटापे को कम करने में लाभकारी है।
  • यह आसन रीढ़ की हड्डी तथा कमर के भाग को मजबूती प्रदान करता है।
  • यह आसन पैरों और जांघों की मांसपेशियों को भी मजबूत बनाता है।
सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications)

  • माईग्रेन, कमर दर्द या घुटनों के दर्द की स्थिति इस आसन को न करें।
  • हाल में हुई किसी तरह के ऑपरेशन की स्थिति में भी यह आसन नहीं करना चाहिए।

5. सरल मत्स्यासन (Sarala Matyasana)

विधि (Method)

  • एक साफ समतल जमीन पर पीठ के बल लेट जाए और दोनों एड़ियों को एक-दूसरे के समीप रखते हुए बाँहों तथा हतियों को भूमि पर रखे।
  • फिर हथेलियों को कूल्हे के निचे लेकर कुहनियों को मोड़ ले तथा समस्त शरीर का भार उन पर डालते हुए सिर को फर्श से थोड़ा ऊपर उठाये।
  • फिर सिर की चोटी को भूमि पर रखे तथा नितम्बों को पीछे खींचते हुए तथा कुहनियों का सहारा देते हुए सिर एवं नितम्बों के बीच धनुषाकार बनाने का प्रयत्न करे और इसी स्थिति में 6 से 7 सैकेण्ड तक विश्रामावस्था में रहे।
  • फिर अपनी हथेलियों को पुनः कूल्हों के नीचे लाकर कुहनियां मोड़ ले तथा पहले सिर को ऊपर उठाये तदुपरांत नितम्बों का सहारा लेते हुए सिर को पुनः भूमि पर ले आये।
  • जब सिर और पीठ भूमि पर आ जाये तब हथेलियों और बाँहों को पुनः भूमि पर लाकर उन्हें शरीर के दोनों और बगल में फैला ले तथा पैरो को भी फैलाकर सीधा कर ले।
  • इस विधि के अनुसार सरल मत्स्यासन का एक चक्र पूरा हो जायेगा।
  • इस आसन को रोज कम से कम 3 बार दोहराना चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन सम्पूर्ण मेरुदंड को प्रभावित करता है और उसकी गड़बड़ियों को दूर कर देता है।
  • गर्दन तथा कंधों की तकलीफो को दूर करने में भी यह आसन लाभदायक है।
  • इस आसन के अभ्यास से पेट की मासपेशियाँ सक्रिय होती है तथा सुचारु रूप से कार्य करती है।
  • यह कब्ज को दूर करता है, भूख को बढ़ाता है, भोजन को पचाने और गैस को नष्ट करता है।
  • इसके प्रभाव से शरीर में शुद्ध रक्त का निर्माण एवं संचारण होता है जिसके कारण चेहरे पर चमक आ जाती है।
  • यह दिमागी कमजोरी को भी दूर करता है और टाँगो तथा बाँहों की मासपेशियों को सशक्त बनाता है।
  • इसके नियमित अभ्यास से श्वास नली का रोग तथा खांसी और टानिसल भी ठीक हो जाते है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कमर दर्द या गर्दन की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • कोहनियों को मोड़ने में यदि कोई समस्या हो तो कुछ समय के लिए यह आसन नहीं करना चाहिए।
6. गोमुखासन (Gomukhasana) – गोमुखासन वह आसन है जिसमें हमारे पैरों की मुद्रा गाय के मुख के समान लगती है। ‘गो’ का अर्थ ‘रोशनी’ से भी है। इसलिए गोमुख का अर्थ अंदरूनी रोशनी या मस्तक की रोशनी भी है। गोमुखासन में शरीर में कई अंगों में एक साथ खिंचाव पैदा होता है। जैसे कि घुटना, जांघ, कूल्हा, छाती, गर्दन, बाहें तथा पैर।
विधि (Method)

  • सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
  • अब बाए पैर की एड़ी को दाहिने नितम्ब के पास रखें।
  • दायें पैर को मोड़कर बायें पैर के ऊपर इस प्रकार रखे कि दायें पैर का घुटना बायें पैर के ऊपर रहे तथा एड़ी और पंजे का भाग नितंब को स्पर्श करें।
  • अब बाएँ हाथ को पीठ के पीछे मोड़कर हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाएँ।
  • दाहिने हाथ को दाहिने कंधे पर सीधा उठा लें और पीछे की ओर घुमाते हुए कोहनी से मोड़कर हाथों को परस्पर बांध लें। अब दोनों हाथों को धीरे से अपनी दिशा में खींचें।
  • अपने मुद्दे हुए दाहिने हाथ को ऊपर की और अपने क्षमतानुसार तानकर रखें।
  • शरीर को सीधा रखें।
  • श्वास नियंत्रित रखें और इस अवस्था में यशाशक्ति रुकने का प्रयास करें।
  • इस आसन को हाथ और पैर को बदलकर पांच बार करें। अंत में धीरे-धीरे श्वास छोड़कर क्रमशः फिर से सुखासन की स्थिति में बैठ जाएँ।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन करने से शरीर सुडौल, लचीला और आकर्षक बनता है।
  • वजन कम करने के लिए यह आसन उपयोगी है।
  • गोमुखासन मधुमेह रोग में अत्यंत लाभकारी है।
  • निम्न रोगों में भी यह आसन लाभकारी हैं- गठिया, साइटिका, अपचन, कब्ज, धातु रोग, मन्दाग्नि, पीठदर्द, लैंगिक विकार, प्रदर रोग तथा बवासीर।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • कंधे, पीठ, गर्दन, नितंब व घुटनों में दर्द होने पर यह आसन न करें।
  • आसन करते समय तकलीफ होने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।
  • शुरुआत में पीठ के पीछे दोनों हाथों को आपस में न पकड़ पाने पर जबरदस्ती न करें।
  • गोमुखासन के समय को अभ्यास के साथ धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
7. उत्तानमंडुकासन (Uttanmandukasana) – उत्तानमंडुकासन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ‘उत्तान’ का अर्थ है ‘तना हुआ’ और ‘मंडुक’ का अर्थ है ‘मेंढ़क’। इस आसन की अंतिम मुद्रा में शरीर सीधे तने हुए मेढक के समान लगता है, जिस कारण इसे यह नाम दिया गया है।
विधि (Method)

  • सबसे पहले एक साफ समतल जगह पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएं और दोनों घुटनों को फैलाएं।
  • फिर दाई बाह उठाकर मोड़ते हुए दाएं कंधे के ऊपर से पीछे की ओर ले जाकर हथेली को बाएं कंधे के नीचे रख दें।
  • उसी तरह से आप बाई वाह को मोड़ें तथा ऊपर से लेकर जाकर हथेली को दाएं कंधे के नीचे रख दें।
  • फिर शरीर को ऊपर की ओर खीचें और अपनी क्षमता के अनुरूप इस स्थिति में कुछ देर के लिए बने रहे।
  • वापस आते समय धीरे-धीरे बाई वाह और फिर दाई बांह हटाते हुए घुटनों को आरंभिक अवस्था मे ले आएं।
  • इस पूरे चक्र को कम-से-कम 3 से 5 बार करना चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • इस आसन के नियमित अभ्यास से पीठ दर्द में आराम मिलता है।
  • यह योगाभ्यास गले के दर्द में लाभकारी है।
  • इसके अभ्यास से घुटने मजबूत होते है।
  • इस आसन के नियमित अभ्यास से कंधे का दर्द ठीक हो सकता है।
  • दर तक यह आसन करने से पेट के बगल के चर्बी कम हो जाती है।
  • श्वसन सम्बन्धी परेशानियों को दूर करने में यह आसन लाभकारी है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • ज्यादा कमर दर्द या घुटने में परेशानी की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।
  • कोहनी या कथों में दर्द की स्थिति में यह आसन नहीं करना चाहिए।

8. वक्रासन (Vakarasana)

विधि (Method)

  • अपने पाँव को फैलाकर जमीन पर बैठें।
  • बायें पाँव को घुटने से मोड़ और उठाकर दायें घुटने के बगल में रखें।
  • रीढ़ सीधी रखे तथा सांस छोड़ते हुए कमर को बाई और मोड़।
  • हाथ की कोहनी से बायें पैर के घुटने को दबाव के साथ अपनी ओर खींचें।
  • पैर को खीचे और पेट में दबाव आने दें।
  • सांस छोड़ते हुए प्रारंभिक अवस्था में आएँ।
लाभ (Advantages)

  • यह आसन डायबिटिज को रोकने में कारगर है।
  • वजन नियंत्रित रहता है।
  • पाचन क्रिया सुधारता है।
  • गर्दन दर्द व कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • डिप्रेशन से मुक्ति।
  • रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • पेट दर्द में वक्रासन नहीं करनी चाहिए।
  • ज्यादा कमर दर्द में इसे न करें।
  • गर्दन दर्द होने पर भी इसको करने से बचें।
  • घुटने का दर्द होने पर इस आसन के करने से बचना चाहिए।
  • कोहनी में दर्द होने पर इसको करने से इसको बचना चाहिए।
9. भुजंगासन (Bhujangasana) – यह आसन करते समय शरीर का आकार फन उठाए हुए सर्प के समान होने के कारण इसे ‘भुजंगासन’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘Cobra Pose’ भी कहा जाता है। सूर्य नमस्कार करते समय क्रमांक 7 में यह आसन किया जाता हैं। पीठ के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह सबसे लाभकारी आसन हैं।
विधि (Method)

  • दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पीछे की ओर अधिक-से-अधिक खिंचाव दें।
  • दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर कंधों के नीचे रखें।
  • अंगुलिया बाहर की ओर तथा आपस में मिली हुई हो।
  • श्वास भरते हुए. छाती के भाग को धीरे-धीरे उठाएँ।
  • सिर तथा गर्दन को भी ऊपर की ओर खिंचाव दें।
  • श्वास जोड़ते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएँ।
  • अधिक देर तक रूकने पर श्वास सामान्य कर सकते हैं।
  • यह आसन 30 सेकेण्ड से 3 मिनट क कर सकते हैं।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से भुजंगासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-

  • शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है।
  • गर्दन व कमर दर्द में आराम मिलता है।
  • फेफड़ों की कार्यक्षमता में सुधार होता है।
  • मांसपेशियों व हड्डियों के लचीलेपन में वृद्धि होती है।
सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्न स्थितियों में भुजंगासन नहीं करना चाहिए-

  • हर्निया, पीठ की चोट की स्थिति में।
  • गर्भावस्था के दौरान।
  • सिर दर्द या हाल ही में हुई उदरीय सर्जरी की स्थिति में।
10. मकरासन (Makarasana) – संस्कृत में मकर का अर्थ मगरमच्छ होता है। इस आसन में शरीर मगरमच्छ के समान दिखता है इसलिए इसको मकरासन का नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Crocodile Pose’ भी कहते हैं।
विधि (Method)

  • पेट के बल इस प्रकार लेट जाएं कि ठोड़ी (Chin), छाती एवं पेट जमीन से स्पर्श होते रहें।
  • पैरों के बीच में दूरी बनाते हुए अपने सिर को उठाएं और दोनों हाथों को गाल पर लाते हुए कप का आकार बनाएं।
  • धीरे-धीरे दोनों पैरों को नीचे से ऊपर अपने नितम्बों की ओर लेकर आएं और फिर धीरे धीरे नीचे लेकर जाएं।
  • प्रतिदिन इस प्रकार के कम से कम दस चक्र करने चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • यह रीढ़ की हड्डी के लिए अतिउत्तम योगाभ्यास है।
  • कमर दर्द और स्लिप डिस्क की समस्या से छुटकारा पाने के लिए यह एक बेहतरीन आसन है।
  • यह आसन अवसाद और थकावट को दूर करने में बहुत लाभप्रद है।
  • यह आसन फेफड़े की क्षमता बढ़ाने में तथा अस्थमा को नियंत्रित करने में अत्यंत लाभकारी है।
  • यह अपच को दूर कर पाचन-तंत्र को ठीक रखता है।
  • यह उच्च रक्तचाप में लाभप्रद है।
  • यह आसन शरीर में रक्त संचार को ठीक रखने में लाभदायक सिद्ध होता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • अधिक कमर दर्द होने पर इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
  • हर्निया की बीमारी में इस आसन को न करे।
11. शवासन (Shavasana) – आजकल के दौड़ भाग के युग में लोग शारीरिक और मानसिक थकान और तनाव से पीड़ित रहते हैं। शरीर की थकान दूर करने के लिए और मन को शिथिल करने के लिए शवासन योग सर्वश्रेष्ठ आसन हैं। इस आसन में हमें शव के समान निचेष्ठ लेटना होता हैं और इसीलिए इसे शवासन नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Corpse Pose’ भी कहा जाता है।
विधि (Method)

  • एक स्वच्छ और समतल जगह पर पीठ के बल लेट जाएँ और दोनों हाथों को शरीर से 6 इंच की दूरी पर रखें।
  • हथेलियों को आसमान की ओर खुली रखें तथा दोनों पैरों को एक-दूसरे से एक फुट दूर रखें।
  • अब मुँह और आँख बंद कर धीरे-धीरे पूरे शरीर को शिथिल करें।
  • फिर धीरे-धीरे प्रयत्नरहित श्वसन करे। सारा ध्यान केवल श्वसन पर रखे और मन में किसी और विचार को नहीं आने देना है।
  • आसन करते समय नींद आने लगे तो लंबी और गहरी श्वास लेनी चाहिए।
लाभ (Advantages) – नियमित रूप से शवासन करने के लिए निम्नलिखित लाभ होते है-

  • मानसिक और शारीरिक तनाव दूर होता है।
  • एकाग्रशक्ति, याददाश्त को सुधारता है।
  • शरीर को नवचैतन्य प्राप्त होता है।
  • अवसाद, मनोविकार, अनिद्रा आदि बीमारियों में लाभदायक
  • आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
सावधानियां / विपरीत संकेत (Contraindications) – ऐसे तो हर कोई शवासन कर सकता है और शवासन करने से कोई हानि नहीं होती है पर अगर डॉक्टर ने आपको पीठ के बल लेटने से किसी कारणवश मना किया है तो यह आसन नहीं करना चाहिए।
12. नाड़ी शोधन प्राणायाम (Nadishodhana Pranayam) – नाड़ी शोधन प्राणायाम को अनुलोम-विलोम के रूप में भी जाना जाता है।
विधि (Method)

  • ध्यान वाली मुद्रा में इस प्रकार बैठे को कमर, सिर और रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए।
  • फिर अपनी आंखें बंद कर दाहिने अंगूठे से दाहिनी नासिका को बंद करें और बायीं नासिका से धीरे-धीरे श्वास लें।
  • जब पूरा श्वास भर लें तो बायीं नासिका को भी बंद करें और अपनी क्षमता के अनुसार श्वास को रोकें।
  • श्वास को और अधिक न रोक पाने पर दाहिनी नासिका से धीरे धीरे श्वास छोड़े और फिर दाहिनी नासिका से ही श्वास लें और बायीं नासिका को बंद रखें।
  • जब पूरा श्वास भर जाये तो दाहिनी नासिका को बंद करें और कुम्भक करें।
  • फिर धीरे धीरे बायीं नासिका से श्वास को निकाले।
  • नाड़ीसोधन प्राणायाम के इस चक्र शुरूआत में कम-से-कम 5 बार करना चाहिए और फिर धीरे-धीरे इसे बढ़ाया जा सकता है।
लाभ (Advantages)

  • इस प्राणायाम के अभ्यास से संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
  • यह चिंता एवं तनाव को कम करने के लिए रामबाण है।
  • यह मस्तिष्क के दोनों भागों में संतुलन स्थापित करता है और सोचने एवं समझने की क्षमता में सुधार करता है।
  • यह मानसिक शांति, ध्यान और एकाग्रता में सुधार लाने के लिए उत्तम प्राणायाम है।
  • मस्तिष्क को रक्त की आपूर्ति बढ़ाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
  • उच्च रक्तचाप का प्रबंधन करने में मदद करता है।
  • शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी विषैली गैसों को निकलने में मदद करता है।
  • यह प्राणायाम अस्थमा के नियंत्रण में भी लाभकारी है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • यह प्राणायाम खाली पेट नहीं करना चाहिए।
  • शुरुआत में श्वास को रोकने (कुंभक) से बचना चाहिए।
  • इस प्राणायाम को करते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
  • जहाँ तक भी हो सके इसे बहुत ही शांत भाव में करना चाहिए।
13. शीतली प्रायाणाम (Sheetli Pranayam) – शीतली का अर्थ है शीतल। इसका अर्थ शांत, विरक्त और भावहीन भी होता है। जैसा कि- नाम से ही स्पष्ट है, यह प्राणायाम पूरे शरीर को शीतल करता है। शीतकारी प्राणायाम की तरह ही यह प्राणायाम भी विशेष तौर पर शरीर का ताप कम करने के लिए बनाया गया है। इस प्राणायाम का अभ्यास गर्मी में ज्यादा-से-ज्यादा करना चाहिए और सर्दी के मौसम में नहीं के बराबर करना चाहिए।
विधि (Method)

  • एक साफ समतल जगह पर पद्मासन की मुद्रा में बैठें और अपनी आँखे बंद कर लें।
  • फिर अपने हाथों को ज्ञानमुद्रा या अंजलिमुद्रा में घुटनों पर रखें।
  • इसके बाद दोनों किनारों से जीभ को मोड़कर नली का आकार बना लें।
  • नली के आकार की जीभ से श्वास अंदर खींचकर फेफड़ों को अपनी पूरी क्षमता के साथ भर लें और मुंह बंद कर लें।
  • इस स्थिति में अपनी क्षमतानुसार सांस रोके रखें और धीरे-धीरे नासिका से श्वास छोड़ते हुए इस चक्र को पूरा करें।
  • इस चक्र को शुरुआत में 10 से 15 बार करना चाहिए और फिर धीरे-धीरे इसे बढ़ाना चाहिए।
लाभ (Advantages)

  • यह प्राणायाम तनाव और अवसाद को कम करने में अहम भूमिका निभाता है।
  • यह प्राणायाम भूख प्यास और गुस्से की समस्या को कम करने में अत्यंत लाभकारी है।
  • यह आसन पित्त दोष के असंतुलन को संतुलित करने में तथा हार्मोन्स के स्राव को नियंत्रित करने में लाभकारी है।
  • यह वासना के मानसिक और भावनात्मक प्रभाव को कम करता है।
  • इस प्राणायाम के नियंत्रित अभ्यास से बहुत-सी शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं से बचा जा सकता है।
  • यह प्राणायाम रक्त को शुद्ध करता है।
सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)

  • ठण्ड के मौसम में यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  • खांसी या टॉन्सिल से पीड़ित व्यक्तियों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  • कब्ज के पुराने मरीजों को भी ये प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  • जिनका रक्तचाप कम रहता हो उन्हें इस प्राणायाम को नहीं करनी चाहिए।