NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 3 जीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | Physical Education |
Chapter | 3rd |
Chapter Name | जीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease) |
Category | Class 12th Physical Education |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 3 जीवनशैली संबंधी बीमारियों के निवारण हेतु योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease)
Chapter – 3
योग और जीवन शैली
Notes
भूमिका (Introduction) – योग का इतिहास बहुत पुराना है। इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारे में कोई निश्चित जानकारी या प्रमाण उपलब्ध नहीं है। परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि योग भारत की ही देन है। इतिहासकारों में इसकी शुरुआत को लेकर भिन्न-भिन्न मत हैं। कई इतिहासकार इसकी उत्पत्ति सिन्धु घाटी सभ्यता के समय की मानते हैं, क्योंकि उस समय की कई मूर्तियाँ किसी-न-किसी योगासन के आकार में पाई गई हैं। योग की प्राचीनता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभिन्न वेदों, उपनिषदों, रामायण तथा महाभारत जैसे ग्रन्थों में भी योग क्रियाओं का वर्णन किया गया है। महर्षि पतंजलि ने लगभग ईसा पूर्व शताब्दी में योग पर एक व्यवस्थित ग्रंथ “योग शास्त्र योग सूत्र ” लिखा। प्राचीन कवियों एवं संतों जैसे- कबीर, सूरदास तथा तुलसीदास जी ने भी अपनी-अपनी रचनाओं में योग का वर्णन किया है। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग होने के साथ-साथ योग आज पूरे विश्व में तेजी से प्रचलित हो रहा है। |
योग का अर्थ (Meaning of Yoga) – ‘योग’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘युज’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है- जोड़ना या मिलाना। योग एक संपूर्ण जीवन-शैली अथवा साधना है जिससे व्यक्ति को अपने मन, मस्तिष्क तथा स्वयं पर नियंत्रण करने में सहायता मिलती है। मन पर नियंत्रण करके तथा शरीर को स्वस्थ रखकर व्यक्ति परम आनंद का अनुभव कर सकता है। इस प्रकार यह माना जाता है कि, योग सभी प्रकार के दुख एवं पीड़ा को नष्ट करता है। विभिन्न विद्वानों तथा ग्रंथों ने योग को निम्न रूप से परिभाषित किया है |
योग की परिभाषाएँ
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योग का महत्त्व (Importance of Yoga) – इस बात में कोई दो राय नहीं कि आज का आधुनिक युग मानसिक दबाव, चिन्ता तथा तनाव का युग है। आज लगभग हर व्यक्ति कई समस्याओं का कारण बन चुका है। अपनी असीम भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य दिन-रात भागदौड़ कर रहा है। जिसके वह शारीरिक व मानसिक रूप से थकान महसूस करता है। यदि किसी कारणवश यह इच्छाएं पूरी न हो तो मनुष्य तनाव ग्रस्त हो जाता है। किसी-न-किसी कारण से मानसिक परेशानियों से जूझ रहा है। मनुष्य ने जिस भौतिकतावाद पर अन्धा विश्वास किया वहीं भौतिकतावाद आज कारण मनुष्य अक्सर कई प्रकार के शारीरिक, मानसिक एवं भावानात्मक समस्याओं का शिकार हो जाता है। ऐसे में योग अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो सरल शब्दों में कहा जाय तो आज समाज के हर वर्ग का व्यक्ति किसी-न-किसी रूप से तनाव ग्रस्त है। इसी तनाव एवं जीवन-शैली के जाता है। क्योंकि नियमित योगाभ्यास द्वारा इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। |
योग के महत्व का संक्षिप्त वर्णन (Brief Description of the Importance of Yoga) 1. शारीरिक शुद्धता (Physical Purity) – हमारे शरीर में मूल रूप से तीन गुण होते हैं- वात, पित्त तथा कफ। यदि इन तीनों का संतुलन ठीक हो तो, व्यक्ति निरोग रहता है। विभिन्न यौगिक क्रियाओं जैसे- नेति, धौति, नौलि, तथा कपालभाति आदि नियमित रूप से करने से इन मूल गुणों का संतुलन बना रहता है। जिसके कारण शरीर की आंतरिक सफाई एवं स्वच्छता होती रहती है। 2. रोगों से बचाव व उपचार (Cure and Prevention from Diseases) – विभिन्न यौगिक व्यायाम, व्यक्ति का अनेक रोगों से केवल बचाव ही नहीं करते बल्कि उनका उपचार भी करते हैं। योग द्वारा व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Power) भी बढ़ती है। नियमित रूप से योग करने से विभिन्न बीमारियों जैसे- मधुमेह (Diabates), ब्रोंकाइटिस (Bronchitis), गठिया (Arthritis), मूत्र विकार, हृदय रोग, तनाव, पीठ दर्द, मासिक धर्म के विकार, तथा उच्च रक्तचाप आदि का उपचार किया जा सकता है। 3. शारीरिक सौन्दर्य बढ़ाता है (Enhances Physical Beauty) – प्रत्येक व्यक्ति शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त दिखना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति का सबसे सस्ता व सरल साधन केवल योग है। यौगिक व्यायाम जैसे मयूरासन द्वारा चेहरे की चमक बढ़ जाती है और चेहरा पहले की अपेक्षा अधिक सुन्दर व कान्तियुक्त हो जाता है। 4. शिथिलता प्रदान करता है (Provides Relaxation) – किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक कार्य के बाद थकावट होना एक आम बात है। मकावट महसूस होने पर व्यक्ति की कार्यक्षमता तथा उत्पादकता में कमी आती है। ऐसी स्थिति में फिर से तरोताजा तथा स्फूर्ति के लिए शिथिलन की आवश्यकता होती है। यौगिक आसन जैसे- शवासन व मकरासन शिथिलता प्राप्त करने के अच्छे आसन हैं। जबकि पद्मासन द्वारा मानसिक थकान दूर होती है। 5. शरीर के आसन को ठीक रखता है (Keeps the Correct Posture of Body) – किसी भी प्रकार का आसन संबंधी दोष (Postural Deformities) होने के कारण व्यक्ति अपना कार्य कुशलतापूर्वक नहीं कर सकता। उसे प्रत्येक कार्य के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिसके कारण वह जल्दी थकता हैं। नियमित रूप से वज्रासन, सर्वांगासन, मयूरासन, चक्रासन, भुजंगासन व धनुरासन आदि करने से शरीर के आसन को ठीक तथा अनेक आसन संबंधी दोषों को भी ठीक किया जा सकता है। 6. लचक में वृद्धि करता है (Increases Flexibility) – लचक प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। इससे शरीर की गतियाँ कुशल व गरिमायुक्त हो जाती हैं। लचक के बढ़ने से चोटों से भी बचाव हो जाता है। विभिन्न योगासन जैसे- चक्रासन, धनुरासन, हलासन, भुजंगासन व शलभासन आदि शरीर की लचक को बढ़ाने में सहायक होते हैं। इन आसनों को करने से मांसपेशियाँ भी लचीली हो जाती 7. स्थूलता या मोटापे को कम करता है (Reduces Obesity) – मोटापे की समस्या आज एक आम समस्या बन चुकी है। मोटा व्यक्ति समाज में अक्सर उपहास का पात्र ही बनता है मोटापे के कारण ही व्यक्ति अनेक शारीरिक तथा मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाता है। यौगिक व्यायाम जैसे- प्राणायाम व ध्यानात्मक आसन मोटापे को कम करने में सहायक होते हैं। 8. स्वास्थ्य में सुधार करता है (Improves Health) – योग शरीर की सभी संस्थाओं जैसे श्वसन उत्सर्जन रक्त प्रवाह, स्नायु व ग्रन्थि संस्थाओं की कार्य-कुशलता को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य में सुधार होता है। 9. मानसिक तनाव को कम करता है (Reduces Mental Tension Stress) – विभिन्न अध्ययनों द्वारा होग मानसिक तनाव (Tension) को कम करने में सहायक होता है। यौगिक क्रियाएँ जैसे प्रत्याहार, धारणा व ध्यान मानसिक शान्ति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इनके अतिरिक्त मकरासन, शवासन, शलभासन व भुजंगासन जैसे यौगिकभी को कम करने में लाभदायक होते हैं। 10. आध्यात्मिक विकास में सहायक (Helps in Spiritual Development) – नियमित रूप यौगिक व्यायाम करने से मस्तिष्क पर अच्छा नियंत्रण किया जा सकता है। पद्मासन व सिद्धासन आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अच्छे आसन है। ये आसन ध्यान करने की शक्ति को बढ़ाते हैं। प्राणायाम भी आध्यात्मिक विकास के लिए लाभदायक होता है। 11. नैतिक मूल्यों को बढ़ाता है (Enhances Moral Values) – नैतिक मूल्यों का हास आज की सर्वव्यापी समस्या है। यम व नियम जैसी यौगिक क्रियाए सत्य, अहिंसा, चोरी न करने तथा ब्रह्मचर्य के पथ पर चलकर नैतिक अनुशासन सिखाती हैं। इस प्रकार के गुण व्यक्ति को अधिक नैतिक व सदाचारी बनाते हैं। 12. योग आसानीपूर्वक किया जा सकता है (Yoga can be Performed Easily) – गैर यौगिक व्यायामों को करने में अधिक समय व धन खर्च होता है, जबकि आधुनिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के पास समय की कमी है। यौगिक व्यायामों को आसानी से कम जगह बहुत ही कम खर्च पर घर में भी आसानी से किया जा सकता है। निम्न बिन्दुओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि योग का अभ्यास करने से हमें प्रत्येक कार्य को कुशलतापूर्वक करने और सही ढंग से जीवन जीने की कला आती है। नियमित योगाभ्यास हमारी कार्यक्षमता को बढ़ाता है और जीवन को अनुशासित बनाता है। इससे व्यक्ति चुस्त-दुरूस्त रहता है, उसकी शारीरिक और मानसिक शक्ति का विकास होता है, शरीर का लचीलापन बढ़ता है, मुद्रा में सुधार होता है, तनाव कम होता है और आंतरिक शांति मिलती है। |
निवारणात्मक उपायों के रूप में आसन (Asanas as Preventive Measures) – योगासनों का अभ्यास हमें विभिन्न बीमारियों से बचाने में मदद करता है। शरीर को मजबूती प्रदान करने के साथ-साथ यह हमारे मन-मस्तिष्क को भी शांत रखता है। इसी कारण योगाभ्यास करना आज की जरूरत बनता जा रहा है। योगासन के नियमित अभ्यास से कई बीमारियों, विकारों एवं मुद्रा दोषों से बचा जा सकता है। विभिन्न प्रकार के आसन कई बीमारियों के लिए निवारक उपाय के रूप में कार्य करते हैं, जैसे कि- 1. हृदयवाहिका संबंधी कुशलता में सुधार (Improves Efficiency of Cardiovascular System) – हृदयवाहिका संबंधी योग्यता खिलाड़ी के प्रदर्शन में सुधार लाने के लिए आवश्यक है। आसन व्यक्ति को हृदयवाहिका संबंधी कुशलता में सुधार लाता है। आसनों के विभिन्न प्रकार जैसे- कपालभाति, उज्जयी आदि कुशलता को बढ़ाने में लाभदायक होते हैं। यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से आसन करता है तो उसकी हृदयवाहिका संबंधी योग्यता में सुधार आता है। 2. श्वसन संस्थान में सुधार (Improves Efficiency of Respiratory System) – फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। नियमित रूप से किए गए योगासनों द्वारा फेफड़ों की शक्ति तथा कार्यक्षमता में सुधार आता है। इससे फेफड़ों को फैलने व सिकुड़ने की शक्ति बढ़ती है। जिससे अधिक से अधिक ऑक्सीजन युक्त वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त को शुद्धि कर सके। नियमित रूप से किए गए योगासनों द्वारा विभिन्न बीमारियों जैसे कि खाँसी तथा अस्थमा से बचा जा सकता है। 3. अस्थियाँ तथा जोड़ मजबूत हो जाते है (Bones and Joints becomes Strong) – नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण व्यक्ति की अस्थियाँ तथा लिगामेंट्स मजबूत होते जाते है। मजबूत अस्थियों तथा लिगामेंट्स के कारण जोड़ अधिक दबाव सहने में सक्षम हो जाते है। इसके अतिरिक्त जोड़ों की लचक में भी वृद्धि होती है। आसनों के द्वारा आसन संबंधी विकृतियों से बचा तथा उन्हें सुधारा भी जा सकता है। नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण जोड़ों के दर्द, सरवाईकल तथा साइटिका जैसी समस्याओं से भी बचा जा सकता है। 4. रक्त परिसंचरण तंत्र में सुधार (Improves Efficiency of Circulatory System) – नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण हृदय की मांसपेशियाँ अधिक शक्तिशाली तथा बेहतर ढंग से कार्य करने लगती है। इससे स्ट्रोक आयतन तथा कार्डियक आउटपुट में वृद्धि होती है। जिसके कारण रक्तप्रवाह उचित तथा रक्तदबाव सामान्य और स्थिर बना रहता है। इसके अतिरिक्त रक्त में कोलेस्ट्रोल के स्तर में भी कमी आती है। 5. पाचन तंत्र में सुधार (Improves Efficiency of Digestive System) – नियमित रूप से किए गए आसनों के कारण भोजन के अवशोषण की क्रिया कुशल हो जाती है। भोजन के आवश्यक तत्वों का भंडारण हो जाता है। जैसे कि पित्ताशय (Gall Bladder) में सांद्र अवस्था में पित्त (Bile) का भंडारण हो जाता है। भूख में भी वृद्धि हो जाती है। आमाशय (Stomach) व आँतें भी शक्तिशाली हो जाती हैं। कब्ज, अपचन (Indigestion) व गैस की समस्या भी दूर हो जाती है। अतः हम कह सकते है कि नियमित रूप से आसन करने से हमारे शरीर का पाचन तंत्र उचित ढंग से कार्य करना शुरू कर देता है। 6. स्नायु तंत्र की कुशलता में सुधार (Improves Efficiency of Nervous System) – नियमित रूप से आसन करने के कारण साइनेप्स की कम खपत होती है। आसन करने से मानसिक शक्ति तथा स्मरण शक्ति में सुधार होता है। इन सबके कारण व्यक्ति में निराशा के. की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। नाड़ी पेशिय तालमेल बेहतर हो जाता है जिसके कारण किसी भी क्रिया को करने के दौरान ऊर्जा भाव का उत्पन्न होना कम हो जाता है, अर्थात् अवसाद से बचा जा सकता है। 7. उत्सर्जन तंत्र की कुशलता में सुधार ( Improves Efficiency of Excretory System) – नियमित रूप से आसन करने से उत्सर्जन तंत्र के सभी अंगों की कुशलता में वृद्धि होती है। जिसके परिणामस्वरूप व्यर्थ के पदार्थ जैसे कि- लैक्टिक एसिड, एसिड फॉस्फेट, यूरिया, युरिक एसिड व सल्फेट्स आदि सुचारू रूप से तथा जल्दी ही विसर्जित हो जाते हैं जो कि थकावट को दूर करने में सहायक होता है। 8. प्रतिरोधक क्षमता में सुधार (Improves Immune System) – नियमित रूप से आसन करने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होती है जिसके कारण व्यक्ति की संक्रामक रोग से ग्रस्त होने की संभावना कम हो जाती है। 9. मनोवैज्ञानिक रोगों का निवारण – मानसिक विकास जैसे कि दुश्चिंता, तनाव, अनिद्रा आदि के कारण व्यक्ति दुखा, तनावपूर्ण जीवन-शैली, कार्य की अधिकता अथवा दबाब आदि हो सकते हैं। नियमित योगाभ्यास करने से मन शांत रहता है और तनाव में कमी आती है। योगाभ्यास स्मरण शक्ति को भी बढ़ाता है, ध्यान को केंद्रित करता है, व्यक्तियों को सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करता है जिसके फलस्वरूप मानसिक विकारों में कमी आती है। 10. खेल चोटों से बचाव – खिलाड़ियों को मांसपेशियों में खिंचाव, कलाई का मुड़ना, गर्दन में तनाव, कमर दर्द इत्यादि जैसी चोटें लगना आम बात है। खेल प्रशिक्षण के दौरान योगासनों के अभ्यास से खिलाड़ियों की मांसपेशियों एवं जोड़ों, के लचीलापन बढ़ने से खिलाड़ी न केवल उपरोक्त चोटों से बच सकते हैं बल्कि उनके शारीरिक संतुलन, सहनशीलता एवं चपलता में भी वृद्धि होती है। |
निवारणात्मक उपायों के रूप में योग आसनों के लाभ
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जीवनशैली सम्बन्धी बीमारियों से बचाव के लिए योग (Yoga as Preventive Measure for Lifestyle Disease) – आधुनिकता के इस युग में, विशेषकर शहरों में लोग एक ऐसी जीवन शैली को जाने-अन्जाने अपना रहे हैं, जिसमें उनके पास स्वयं के प्रति समय तथा नियमित शारीरिक क्रियाओं के लिए समय का बहुत आभाव है। इसी कारण लोगों में स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतें भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं। इस जीवन शैली का सबसे अधिक प्रभाव बच्चों, युवाओं तथा प्रौढ़ों पर पड़ रहा है। आजकल लोग पैदल चलने के बजाय जान को प्राथमिकता देते हैं। यहां तक कि एक जगह से उठकर पास में रखे उपकरण को भी बन्द करने के लिए रिमोट के प्रयोग को प्राथमिकता देते हैं। विभिन्न भौतिक वस्तुओं के कारण लोगों में निष्क्रियता की आदत बढ़ी है। इस प्रकार की जीवन-शैली अनेक प्रकार की बमारियों जैसे मोटापा, मधुमेह, अतिरक्तदाब, हृदय रोग, कैन्सर व पीठ दर्द आदि को जन्म देती है। इसीलिए इस प्रकार की बीमारियों को सामान्य जीवन-शैली सम्बन्धी बीमारियाँ भी कहा जाता है। आजकल बहुत से लोग कम उम्र में ही इन जीवन-शैली सम्बन्धी बीमारियों के का मौत का शिकार हो रहे हैं। कारण जीवन-शैली सम्बन्धी इन बीमारियों से अपनी जीवन शैली में मात्र कुछ साधारण बदलाव करके बचा जा सकता है। ऐसी ही कुछ जीवन-शैली सम्बन्धी बीमारियों से बचाव व प्रबन्धन के सुझाव निम्नलिखित हैं |
I. मोटापा (Obesity) – मोटापा आज एक विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह पाया गया है कि इस समस्या से सबसे अधिक बच्चे तथा युवा वर्ग प्रभावित हैं। मोटापा शरीर की वह दशा होती है जिसमें शरीर में वसा (fat) की मात्रा बहुत अधिक स्तर तक बढ़ जाती है। मोटापे के कारण होने वाली अनेक बीमारियों जैसे– मधुमेह (Diabetes), अतिरिक्त दबाव (Hypertension), कैंसर, गठिया या जोड़ों का दर्द (Arthritis) व यकृत का ठीक प्रकार से कार्य न करने के कारण इसे एक बीमारी का दर्जा दिया गया है। |
मोटापे से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Obesity) – नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम तथा योग करने से मोटापे की समस्या पर काफी हदया जा सकता है। मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते है |
मोटापे से बचाव तथा नियंत्रण के लिए लाभदायक आसन
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1. ताड़ासन (Tadasana) – ताड़ासन, यह योग आसन करने से शरीर ताड़ के वृक्ष के समान मजबूत बनने से इसे यह नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Palm Tree Pose’ भी कहा जाता है। शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के साथ शरीर की लंबाई बढ़ाने के लिए यह श्रेष्ठ आसन माना जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से ताड़ासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्नलिखित स्थितियों में यह आसन नहीं करना चाहिए-
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कटिचक्रासन (Katichakrasana) – कटिचक्रासन दो शब्द मिलकर बना है- कटि जिसका अर्थ होता है ‘कमर’ और चक्र जिसका अर्थ होता है ‘पहिया’। इस आसन में कमर को दाईं तथा बाईं ओर मरोड़ना अर्थात् घुमाना होता है। ऐसा करते समय कमर पहिये की तरह घूमती है, इसलिए इसका नाम कटिचक्रासन रखा गया है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ विपरीत संकेत (Contraindications)
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3. पवनमुक्तासन (Pavan Muktasana) – पवनमुक्तासन को अंग्रेजी में ‘Gas Release Pose’ भी कहा जाता है, यह अपने नाम के भांति ही लाभकारी आसान हैं। पवनमुक्तासन का अर्थ होता है पवन या हवा को मुक्त करना। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्न स्थितियों में यह आसन न करें-
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4. मत्स्यासन (Matsyasana) – मत्स्यासन योग करते समय शरीर का आकार मछली की तरह होने के कारण इसे ‘मत्स्यासन’ आर में ‘Fish Pose’ कहा जाता है। कमर और गले से संबंधित समस्या से परेशान लोगों के लिए यह एक श्रेष्ठ आसन हैं। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से यह आसन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-
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5. हलासन (Halasana) – हलासन दो शब्द ‘हल’ और ‘आसन’ से मिलकर बना है जिसमें हल का अर्थ है ‘जमीन को खोदने वाला कृषि यंत्र’ और आसन का अर्थ है ‘बैठने की मुद्रा’। इस योग को करने के दौरान शरीर की मुद्रा हल की तरह प्रतीत होती है। जिसके कारण इस योगासन को हिन्दी में हलासन तथा अंग्रेजी में ‘लो पोज’ कहते हैं। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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पश्चिमोत्तानासन (Paschimottanasana) – पश्चिमोत्तानासन यह आसन होता है जब हम बैठकर आगे की तरफ झुकते हैं। यह हठ योग की 12 मुद्राओं में से 5वीं मुद्रा है। पश्चिमोत्तानासन के बहुत से लाभ हैं क्योंकि यह शरीर के पिछले भाग को पूरी तरह से खींचता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications ) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-
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7. अर्ध मत्स्येंद्रासन (Ardh-Matsyendrasana) – संस्कृत में ‘अर्ध’ का मतलब ‘आधा’ होता है। इस मुद्रा में हम अपनी रोढ़ को आधा मोड़ते हैं क्योंकि पूरी तरह से मोड़ पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इस आसन का यह नाम योग के जन्मदाता मत्स्येंद्रनाथ के नाम पर पड़ा है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – आप जब तक आसानी से इस अवस्था में रह सकें तब तक रहें। यदि आप किसी तकलीफ या दर्द का अनुभव करें तो धीरे-धीरे शुरुआती मुद्रा में वापस आ जाएँ। |
धनुरासन (Dhanurasana) – यह आसन करने के दौरान शरीर की मुद्रा धनुष के समान दिखाई देती है इसलिए इसे धनुरासन कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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9. उष्ट्रासन (Ushtrasana) – ‘उष्ट्र’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘कट’ होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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10. सूर्यभेदन प्राणायाम (Suryabedhan Pranayama) – सूर्यभेदन प्राणायाम को अंग्रेजी में ‘Right Nostril Breathing’ के नाम से जाना जाता है। इस प्राणायाम का सीधा संबंध सूर्य नाड़ी से होता है। इसमें पूरक क्रिया दायीं नासिका द्वारा की जाती हैं और दायीं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी मानी गई है। इसी कारण से इसे सूर्यभेदन प्राणायाम भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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II. मधुमेह (Diabetes) – मधुमेह अर्थात् डायबिटीज मेलिट्स पोषक तत्वों का विकार है। जिसके लक्षण है-रक्त में ग्लूकोज का असामान्य रूप से बढ़ना और मूत्र द्वारा अतिरिक्त ग्लूकोज का उत्सर्ज मधुमेह का एकमात्र कारण आधुनिक जीवनशैली और दौड़ती-भागती जिन्दगी है, जिसका नकारात्मक प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। परिणामस्वरूप लोग मधुमेह का शिकार हो रहे है। इसके साथ ही लोगों ने अपनी जीवनशैली से व्यायाम तथा सैर इत्यादि बिल्कुल ही नकार दिया है जो कि मधुमेह का एक महत्वपूर्ण कारण है। यह रोग अधिक भोजन खाने, मोटापे व डिप्रेशन के कारण भी होता है। अत्यधिक खान-पान अग्नाशय (Pancreas) पर भार स्वरूप होता है जो उसको सामान्य क्रिया को बाधित करके इंसुलिन (insulin) नामक हारमोन के स्राव को असंतुलित कर देता है। इंसुलिन की कमी से ग्लूकोज ग्लाइकोजन में परिवर्तित नहीं हो पाता तथा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है व मूत्र के द्वारा शरीर से उत्सर्जित होने लगती है जिससे व्यक्ति बहुत कमजोर हो जाता है तथा आँखों की रोशनी भी अत्यन्त कम हो जाती है। इंसुलिन ही रक्त में शर्करा स्राव को नियंत्रित करता है। मधुमेह को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है- टाइप1 डायबिटीज तथा टाइप-2 डायबिटीज भारत में मधुमेह के रोगियों को संख्या लगभग 5.08 करोड़ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आने वाले बीस सालों में मधुमेह रोगियों की संख्या 8.7 करोड़ होने का अनुमान है। दुनिया भर में भारत में ही सबसे अधिक मधुमेह के रोगी पाये जाते हैं। आज इस बीमारी से बच्चों से लेकर वयस्कों तक कोई भी आयु वर्ग अछूता नहीं है। |
मधुमेह के लक्षण (Symptoms of Diabetes) – मधुमेह को रोगों में निम्न लक्षण पाए जाते हैं-
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अनियंत्रित मधुमेह के परिणाम (Effects of Uncontrolled Diabetes)
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मधुमेह से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Diabetes) – नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम तथा योग करने से मधुमेह की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। मधुमेह से ग्रस्त व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं। |
मधुमेह से बचाव तथा नियंत्रण के लिए लाभदायक आसन
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1. कटिचक्रासन (Katichakrasana) – कटिचक्रासन दो शब्द मिलकर बना है- कटि जिसका अर्थ होता है ‘कमर’ और चक्र जिसका अर्थ होता है ‘पहिया’ इस आसन में कमर को दाई तथा बाईं ओर मरोड़ना अर्थात् घुमाना होता है ऐसा करते समय कमर पहिये की तरह घूमती है, इसलिए इसका नाम कटिचक्रासन रखा गया है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications)
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2. पवनमुक्तासन (Pavan Muktasana) – पवनमुक्तासन को अंग्रेजी में ‘Gas Release Pose’ भी कहा जाता हैं, यह अपने नाम के भाँति ही लाभकारी आसान है। पवनमुक्तासन का अर्थ होता है पवन या हवा को मुक्त करना। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्न स्थितियों में यह आसन न करें-
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3. भुजंगासन (Bhujangasana) – यह आसन करते समय शरीर का आकार फन उठाए हुए सर्प के समान होने के कारण इसे ‘भुजंगासन’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘Cobra Pose’ भी कहा जाता है। पीठ के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह सबसे लाभकारी आसन हैं। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications)
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4. शलभासन (Shalabhasana) – शलाभासन योग करते समय शरीर का आकार शलय (Locust ) कीट की तरह होने के कारण इसे शलभासन Locust Pose’ कहते है। कमर और पीठ के स्नायु मजबूत करने के लिए यह श्रेष्ठ आसन है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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5. धनुरासन (Dhanurasana) – यह आसन करने के दौरान शरीर की मुद्रा धनुष के समान दिखाई देती है इसलिए इसे धनुरासन कहा है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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6. सुप्त वज्रासन (Supta-vajarasana) – सुप्त का अर्थ होता है ‘सोया हुआ’। इस आसन को करने के दौरान व्यक्ति को वज्रासन की मुद्रामें बैठते हुए पीछे की ओर लेट कर योगाभ्यास करना होता है, जिसके कारण इस आसन को सुप्त वज्रासन कहा गया है |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – पेट, कूल्हों, घुटनों या कमर में दर्द होने पर इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए। |
7. पश्चिमोत्तामासन (Paschimottasana) – पश्चिमोत्तानासन यह आसन होता है जब हम बैठकर आगे की तरफ झुकते हैं। यह हठ योग की 12 मुद्राओं में से 5वीं मुद्दा है। पश्चिमोत्तानासन के बहुत से लाभ है क्योंकि यह शरीर के पिछले भाग को पूरी तरह से खींचता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-
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8. अर्ध-मत्स्येंद्रासन (Ardh-Matsyendrasana) – संस्कृत में ‘अर्थ’ का मतलब ‘आधा’ होता है। इस मुद्रा में हम आनी रीढ़ को आधा मोड़ते है क्योंकि पूरी तरह से मोड़ पाना बहुत ही मुश्किल होता है। इस आसन का यह नाम योग के जन्मदाता मत्स्येंद्रनाथ के नाम परपड़ा। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications) – आप जब तक आसानी से इस अवस्था में रह सके तब तक रहें। यदि आप तकलीफ या दर्द का अनुभव करें तो धीरे-धीरे शुरुआती मुद्रा में वापस आ जाएं। |
9. मंदुकासन (Mandukasana) – मदुकासन एक संस्कृत शब्द है, जिसमें दो शब्द ‘मंडुक’ का अर्थ है ‘मॅडक’ और आसन का अर्थ ‘मुद्रा’। मंडुकासन को अंग्रेजी में ‘फ्रॉग पोज’ (Frog Pose) भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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10. गोमुखासन (Gomukhasana) – गोमुखासन वह आसन है जिसमें हमारे पैरों की मुद्रा गाय के मुख के समान लगती है। ‘गो’ का अर्थ ‘रोशनी’ से भी है। इसलिए गोमुख का अर्थ अंदरूनी रोशनी या मस्तक की रोशनी भी है। गोमुखासन में शरीर में कई अंगों में एक साथ खिंचाव पैदा होता है। जैसे कि घुटना, जांघ, कूल्हा, छाती, गर्दन, बाहें तथा पैर। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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11. योगमुद्रा (Yogmudra) – योग मुद्रा शारीरिक गतिविधियों (physical movements) का एक समूह है जो मस्तिष्क के विशेष भागों में ऊर्जा का प्रवाह करने का काम करता है। हमारे शरीर में मौजूद किसी तत्व के असंतुलित (unbalanced) होने के कारण विभिन्न बीमारियां लग जाती है। ऐसी स्थिति में योग मुद्रा शरीर के पांच तत्वों को संतुलित करने में सहायक होता है। |
विधि (Method) (i) योगमुद्रा आसन करने के लिए सबसे पहले पद्मासन की मुद्रा में बैठते हैं और फिर दोनों बाहों को मोड़कर हाथों को पीठ के पीछे ले जाकर एक हाथ से दूसरे हाथ की कलाई पकड़ लेते है। (ii) फिर अपनी कमर, रीढ़, पीठ एवं गर्दन को सीधा रखते हुए लम्बी साँस लेते हुए पेट को पिचकाकर सामने की ओर झुकाते है ताकि सिर भूमि को छुए। (iii) साँस को रोकते या धीरे-धीरे लेते हुए इस मुद्रा में क्षमतानुसार देर तक रहने का प्रयास करना चाहिए और फिर सांस छोड़ते हुए पुनः सामान्य स्थिति में आ जाते है। |
लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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12. उष्ट्रासन (Ushtrasana) – उष्ट्र संस्कृत भाषाकसका अर्थ ‘कट’ होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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13. कपालभाती (Kapalabhati) – कपालभाती एक ऐसा योगासन है जो शरीर की अनेक प्रकार की बीमारियों को खत्म करता है। यह एक बहुत ही आसान प्राणायाम है जिसे कोई भी स्वस्थ व्यक्ति आसानी से कर सकता है। कपाल का सम्बन्ध हमारे मस्तक से होता है और भाति का सम्बन्ध कान्ति से होता है। यदि इस योग को नियमित किया जाये तो इससे मस्तक पर आभा आती है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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III. अस्थमा (Asthma) – अस्थमा फेफड़ों (Lungs) से संबंधित एक बीमारी है जिसमें वायु नलियाँ अवरूद्ध या संकरी (Narrow) हो जाने के कारण व्यक्ति को साँस लेने में कठिनाई होती है। अस्थमा के दौरान वायु नलियों में सूजन आ जाती है जिसके कारण उनमें अतिरिक्त श्लेष्मा (Mucus) उत्पन्न होने लगती है जिसके कारण वायु नली संकरी हो जाती है। अस्थमा का प्रभाव रात तथा सुबह के समय सबसे अधिक होता है। कई व्यक्तियों में यह समस्या काफी जटिल रूप धारण कर उनके दैनिक क्रियाकलापों को भी काफी हद तक प्रभावित कर सकती है। |
अस्थमा के लक्षण खाँसी – घरघराहट (Wheezing), साँस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना तथा श्वास का छोटापन (Shortness of Breath) अस्थमा के मुख्य लक्षण है। |
अस्थमा के कारण – यह समस्या अनुवाशिक कारक, किसी पदार्थ से ऐलजी, धुएँ, स्प्रे अथवा परफ्यूम की खुशबू, श्वसन संबंधी किसी संक्रमण, ठण्डे मौसम अथवा किसी दवाई से संक्रमण के कारण भी हो सकती है। |
अस्थमा से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Asthma) – अस्थमा की समस्या से पीड़ित व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते है-
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1. ताड़ासन (Tadasana) – ताड़ासन, यह योग आसन करने से शरीर ताड़ के वृक्ष के समान मजबूत बनने से इसे यह नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Palm Tree Pose’ भी कहा जाता है। शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के साथ शरीर की लंबाई बढ़ाने के लिए यह श्रेष्ठ आसन माना जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से ताड़ासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्नलिखित स्थितियों में यह आसन नहीं करना चाहिए-
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2. ऊर्ध्वहस्तोलासन (Urdhwahastottansana) – ऊर्ध्वहस्तोलासन तीन शब्दों के मेल से बना है जिसमें उ का अर्थ है “ऊपर” हस्त का अर्थ है “हाथ” और आसन का अर्थ है “मुद्रा” इस आसन को अंग्रेजी में सूर्य सलाम (sun salutation) भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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3. उत्तानमंडुकासन (Uttanmandukasana) – उत्तानमंडुकासन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ‘उत्तान’ का अर्थ है ‘तना हुआ’ और ‘मंडुक’ का अर्थ है ‘मेंढ़क’। इस आसन की अंतिम मुद्रा में शरीर सीधे तने हुए मेढक के समान लगता है, जिस कारण इसे यह नाम दिया गया है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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4. भुजंगासन (Bhujangasana) – यह आसन करते समय शरीर का आकार फन उठाए हुए सर्प के समान होने के कारण इसे ‘भुजगासन’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे Cobra Pose’ भी कहा जाता है। सूर्यनमस्कार करते समय क्रमांक 7 में यह आसन किया जाता हैं। पीठ के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह सबसे लाभकारी आसन हैं। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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5. धनुरासन (Dhanurasana) – यह आसन करने के दौरान शरीर की मुद्रा धनुष के समान दिखाई देती है इसलिए इसे धनुरासन कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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6. उष्ट्रासन (Ushtrasana) – उष्ट्र’ संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ‘कंट’ होता है। उष्ट्रासन को अंग्रेजी में “Camel Pose” भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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7. वक्रासन (Vakarasana) – संस्कृत भाषा का शब्द है। ये दो शब्दों वक्र (Vakra) और आसन (Asana) से मिलकर बना है। जहां वक्र का अर्थ टेढ़ा होने या मोड़ने (Twist) से है। वहीं दूसरे शब्द आसन का अर्थ ‘आसन (Asana) ‘ का अर्थ किसी विशेष परिस्थिति में बैठने, लेटने या खड़े होने की मुद्रा स्थिति या ‘पोश्चर (Posture)’ से है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications)
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8. कपालभाती (Kapalabhati) – कपालभाती एक ऐसा योगासन है जो शरीर की अनेक प्रकार की बीमारियों को खत्म करता है। यह एक बहुत ही आसान प्राणायाम है जिसे कोई भी स्वस्थ व्यक्ति आसानी से कर सकता है। कपाल का सम्बन्ध हमारे मस्तक से होता है और भाति का सम्बन्ध कान्ति से होता है। यदि इस योग को नियमित किया जाये तो इससे मस्तक पर आभा आती है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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9. गोमुखासन (Gomukhasana) – गोमुखासन यह आसन है जिसमें हमारे पैरों की मुद्रा के समान लगती है।” का अर्थ ‘रोशनी’ से भी है। इसलिए गोमुख का अर्थ अंदरूनी रोशनी या मस्तक की रोशनी भी है। में शरीर में कई अंगों में एक साथ खिंचाव पैदा होता है। जैसे कि- घुटना, जांघ, कुल्हा, छाती, गर्दन, बाहें तथा पैर। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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10. मत्स्यासन (Matsyasana) – मत्स्यासन योग करते समय शरीर का आकार मछली की तरह होने के कारण इसे ‘मत्स्यासन’ और अंग्रेजी में ‘Fish Pose’ कहा जाता हैं। कमर और गले से संबंधित समस्या से परेशान लोगों के लिए यह एक श्रेष्ठ आसन है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से यह आसन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – यह आसन निम्न स्थितियों में नहीं करना चाहिए-
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11. अनुलोम विलोम (Anulom Vilom) – अनुलोम विलोम नासिका के द्वारा किए जाने वाला आसन है। यह आसन अत्यंत गुणकारी व्यायाम है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि अनुलोम-विलोम प्राणायाम अभ्यास के द्वारा अपनी कुण्डलिनी शक्तियां जागृत करते थे। अनुलोम-विलोम प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से ध्यान करने की शक्ति का अद्भुत विकास होता है। इस गुणकारी प्राणायाम को करने के बाद शरीर में फुर्ती आती है और एक नई ऊर्जा का संचार होता है। अनुलोम-विलोम करने से मन प्रफुल्लित हो जाता है तथा मन में अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं। यह व्यायाम व्यक्ति में सकारात्मक विचारों का सर्जन करके, उसे आत्मविश्वासी बनाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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IV. उच्च रक्तचाप (Hypertension) – उच्च रकाचा आधुनिक युग को तेजी से फैलती हुई बीमारी है। आज के आधुनिक युग में जीवन की तेज गति, औद्योगिक तथा वातावरण के कारण मनोवैज्ञानिक तनाव होना एक आम बात है। चिंता और मानसिक तनाव रक्त प्रवाह में एनलाइन की मात्रा को बढ़ाते हैं जिससे रक्तदाब बढ़ जाता है। हमारे शरीर में धमनियों द्वारा प्रवाहित रक्त प्रत्येक कोशिका को पोषण उपलब्ध करवाता है। जब हृदय बड़ी धमनियों में रक्त को प्रवाहित करता है तब वह बल का प्रयोग करता है जिससे रक्त में दाव पैदा होता है। इसको रक्तचाप कहते हैं। शरीर में रक्त में परिसंचरण के लिए रक्तचाप का एक निश्चित स्तर आवश्यक है। कभी-कभी छोटी रक्त वाहिनियों में संकुचन के कारण भी रक्तचाप बढ़ जाता है। इस संकुचन के हृदय को रक्तवाहिनियों में धकेलने के लिए ज्यादा बल प्रयोग करना पड़ता है। जिसके कारण रक्त को धकेलने के लिए आवश्यक बल भी हृदय पर पड़ने वाले दाव के अनुपात में बढ़ता है। |
उच्च रक्तचाप के कारण (Causes of Hypertension) – उच्च रक्तचाप का मुख्य कारण तनाव व गलत जीवनशैली है। इसके अतिरिक्त धूम्रपान, चाय कॉफी का अधिक सेवन, भोजन में अधिक तेल तथा मसालों का सेवन तथा कोलायुक्त पेय पदार्थ का सेवन उच्च रक्तचाप के कारण माने जाते हैं। ये पदार्थ हमारे शरीर की प्राकृतिक गतिविधियों को बाधित करते हैं जिसके कारण शरीर में से मल व विषैले पदार्थ के उत्सर्जन में बाधा उत्पन्न होती है। इससे शरीर की धमनियां तथा शिराएं मंद पड़ जाती है। धमनियों का सख्त होना, मोटापा, मधुमेह / डायबिटीज, अत्यन्त कब्ज तथ्था अनुवांशिकता भी उच्च रक्तचाप के कारण हैं। |
उच्च रक्तचाप के लक्षण (Symptoms of Hypertension)
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उच्च रक्तचाप से बचाव तथा नियंत्रण के लिए उपयोगी आसन (Asanas for Prevention and Management of Hypertension) – नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम तथा योग करने से उच्च रक्तचाप की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। उच्च रक्तचाप से ग्रस्त व्यक्ति के लिए निम्न योगासन अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं। |
उच्च रक्तचाप से बचाव तथा नियंत्रण के लिए लाभदायक आसन
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1. ताड़ासन (Tadasana) – ताड़ासन, यह योग आसन करने से शरीर ताड़ के वृक्ष के समान मजबूत बनने से इसे यह नाम दिया गया हैं। अंग्रेजी में इसे ‘Palm Tree Pose’ भी कहा जाता हैं। शरीर को मजबूत और सुडौल बनाने के साथ शरीर की लंबाई बढ़ाने के लिए यह श्रेष्ठ आसन माना जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से ताड़ासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्नलिखित स्थितियों में यह आसन नहीं करना चाहिए-
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2. कटिचक्रासन (Katichakrasana) – कटिचक्रासन दो शब्द मिलकर बना है- कटि जिसका अर्थ होता है ‘कमर’ और चक्र जिसका अर्थ होता है ‘पहिया’। इस आसन में कमर को दाई तथा बाई ओर मरोड़ना अर्थात् घुमाना होता है। ऐसा करते समय कमर पहिये की तरह घूमती है, इसलिए इसका नाम कटिचक्रासन रखा गया है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications)
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3. उत्तानपादासन (Uttanpadasana) – उत्तानपादासन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें उत्तान का अर्थ है ‘ऊपर उठा हुआ, पाद का अर्थ है ‘पांव’ तथा आसन का अर्थ है मुद्रा इस आसन में पीठ के बल लेटकर पांव ऊपर उठाते हैं, इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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4. अर्ध-हलासन (Ardha Halasana) – बेहतर स्वास्थ्य के लिए नियमित योग करना जरूरी है। ऐसे कई योग आसन है जो आपको चुस्त और दुरुस्त बनाए रख सकते हैं। इनमें से अर्ध-हलासन भी एक है। अर्ध-हलासन से आपके पैर, पेट और पीठ के निचले भाग को मजबूती मिलेगी। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियां विपरीत संकेत (Contraindications)
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5. सरल मत्स्यासन (Sarala Matyasana) विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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6. गोमुखासन (Gomukhasana) – गोमुखासन वह आसन है जिसमें हमारे पैरों की मुद्रा गाय के मुख के समान लगती है। ‘गो’ का अर्थ ‘रोशनी’ से भी है। इसलिए गोमुख का अर्थ अंदरूनी रोशनी या मस्तक की रोशनी भी है। गोमुखासन में शरीर में कई अंगों में एक साथ खिंचाव पैदा होता है। जैसे कि घुटना, जांघ, कूल्हा, छाती, गर्दन, बाहें तथा पैर। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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7. उत्तानमंडुकासन (Uttanmandukasana) – उत्तानमंडुकासन दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें ‘उत्तान’ का अर्थ है ‘तना हुआ’ और ‘मंडुक’ का अर्थ है ‘मेंढ़क’। इस आसन की अंतिम मुद्रा में शरीर सीधे तने हुए मेढक के समान लगता है, जिस कारण इसे यह नाम दिया गया है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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8. वक्रासन (Vakarasana) विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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9. भुजंगासन (Bhujangasana) – यह आसन करते समय शरीर का आकार फन उठाए हुए सर्प के समान होने के कारण इसे ‘भुजंगासन’ कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे ‘Cobra Pose’ भी कहा जाता है। सूर्य नमस्कार करते समय क्रमांक 7 में यह आसन किया जाता हैं। पीठ के दर्द से पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह सबसे लाभकारी आसन हैं। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से भुजंगासन करने के निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियाँ/विपरीत संकेत (Contraindications) – निम्न स्थितियों में भुजंगासन नहीं करना चाहिए-
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10. मकरासन (Makarasana) – संस्कृत में मकर का अर्थ मगरमच्छ होता है। इस आसन में शरीर मगरमच्छ के समान दिखता है इसलिए इसको मकरासन का नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Crocodile Pose’ भी कहते हैं। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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11. शवासन (Shavasana) – आजकल के दौड़ भाग के युग में लोग शारीरिक और मानसिक थकान और तनाव से पीड़ित रहते हैं। शरीर की थकान दूर करने के लिए और मन को शिथिल करने के लिए शवासन योग सर्वश्रेष्ठ आसन हैं। इस आसन में हमें शव के समान निचेष्ठ लेटना होता हैं और इसीलिए इसे शवासन नाम दिया गया है। अंग्रेजी में इसे ‘Corpse Pose’ भी कहा जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages) – नियमित रूप से शवासन करने के लिए निम्नलिखित लाभ होते है-
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सावधानियां / विपरीत संकेत (Contraindications) – ऐसे तो हर कोई शवासन कर सकता है और शवासन करने से कोई हानि नहीं होती है पर अगर डॉक्टर ने आपको पीठ के बल लेटने से किसी कारणवश मना किया है तो यह आसन नहीं करना चाहिए। |
12. नाड़ी शोधन प्राणायाम (Nadishodhana Pranayam) – नाड़ी शोधन प्राणायाम को अनुलोम-विलोम के रूप में भी जाना जाता है। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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13. शीतली प्रायाणाम (Sheetli Pranayam) – शीतली का अर्थ है शीतल। इसका अर्थ शांत, विरक्त और भावहीन भी होता है। जैसा कि- नाम से ही स्पष्ट है, यह प्राणायाम पूरे शरीर को शीतल करता है। शीतकारी प्राणायाम की तरह ही यह प्राणायाम भी विशेष तौर पर शरीर का ताप कम करने के लिए बनाया गया है। इस प्राणायाम का अभ्यास गर्मी में ज्यादा-से-ज्यादा करना चाहिए और सर्दी के मौसम में नहीं के बराबर करना चाहिए। |
विधि (Method)
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लाभ (Advantages)
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सावधानियाँ / विपरीत संकेत (Contraindications)
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