NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 8 जीव यांत्रिकी एवं खेलकूद (Physiology and Sports) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 8 जीव यांत्रिकी एवं खेलकूद (Physiology and Sports)

TextbookNCERT
class12th
SubjectPhysical Education
Chapter8th
Chapter Nameजीव यांत्रिकी एवं खेलकूद (Physiology and Sports)
CategoryClass 12th Physical Education
Medium Hindi
Sourcelast doubt

NCERT Solutions Class 12th Physical Education Chapter – 8 जीव यांत्रिकी एवं खेलकूद (Physiology and Sports)

Chapter – 8

जीव यांत्रिकी एवं खेलकूद

Notes

भूमिका (Introduction)

आज के दौर में हर खिलाड़ी अपने प्रदर्शन में श्रेष्ठता प्राप्त कर सफल होना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए खिलाड़ियों के प्रशिक्षक व ट्रेनर उनकी तकनीकों में जीव यान्त्रिकी के सिद्धांतों (principles of biomechanics) का प्रयोग कर उन्हें अपना लक्ष्य हासिल करने में मदद कर रहे हैं। खेल प्रदर्शनों के सुधार में जीव यान्त्रिकी के महत्त्व को समझते हुए आज विद्यालय स्तर से ही विद्यार्थियों को विभिन्न आधुनिक खेलों के मूल गामक कौशलों (funda mental motor skills) को सीखने पर जोर दिया जाता है।

जीव-यान्त्रिकी का अर्थ (Meaning of Biomechanics)

1950 के बाद यह महसूस किया जाने लगा कि मानव शरीर पर लागू होने वाले यात्रिक सिद्धांत अन्य वस्तुओं पर लागू होने यांत्रिक संबंधी सिद्धांत से बिल्कुल अलग। इसलिए, 1970 के दशक की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव शरीर पर यांत्रिक सिद्धांतों के अनुप्रयोग का वर्णन करने के लिए ‘बायोमैकेनिक्स’ शब्द के प्रयोग की शुरूआत की गई। जीव-यान्त्रिकी अर्थात् बायो-मैकेनिक्स दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें, ‘बॉयो’ शब्द का अर्थ है- जीवित वस्तु तथा ‘मैकेनिक्स’ शब्द का तात्पर्य उन शक्तियों से है जो ऐसी वस्तुओं पर लागू होती हैं जो गति में होती हैं। अर्थात्-

जीव-यांत्रिकी मनुष्य के शरीर का एक मशीन के रूप में अध्ययन है। इस अध्ययन में शरीर की गति को प्रभावित करने वाली आंतरिक तथा बाहरी शक्तियों का अध्ययन किया जाता है।

जीव-यान्त्रिकी शारीरिक शिक्षा का एक उप-विषय है जो मनुष्य के शरीर की गतिविधियों को यंत्र विज्ञान के सिद्धांतों से जोड़कर समझने का ज्ञान माना जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जीव-यान्त्रिकी शक्तियों व जीवित प्राणियों पर उनके प्रभावों का अध्ययन है। शरीर की गतिविधियों का यह अध्ययन उन आन्तरिक तथा बाहरी शक्तियों को देखता है, जो शरीर पर लागू होती हैं तथा वे गतियाँ जो ये शक्तियाँ उत्पन्न करती हैं।

जीव-यान्त्रिकी की परिभाषाएँ

  • “जैव-यांत्रिकी विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो मानव शरीर पर पड़ने वाले आंतरिक और बाह्य बलों और इन बलों द्वारा पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित है।” – जेम्स जी. हे
  • “मांसपेशीय गतिविज्ञान, मानव गतियों से संबंधित यांत्रिकी और शरीर – रचना विज्ञान के सिद्धांतों का अध्ययन है। मांसपेशीय गति विज्ञान विशेषकर, मासंपेशीय गतियों की यांत्रिकी पर ध्यान केंद्रित करता है।”
    मरियम वेबस्टर शब्दकोष

शारीरिक शिक्षा तथा खेलकूद में जीव-यान्त्रिकी का महत्त्व
(Importance of Biomechanics in Physical Education and Sports) जीव-यान्त्रिकी, यंत्र विज्ञान के वैज्ञानिक सिद्धान्तों के प्रयोग पर केन्द्रित होती हैं। मनुष्य के शरीर की गतिविधियों को यंत्र विज्ञान के सिद्धांतों से जोड़कर समझने से खेलकूद में प्रदर्शन के स्तर को बेहतर किया जा सकता है। जीव यान्त्रिकी के महत्त्व का विस्तृत विवरण निम्नलिखित है-

1. तकनीक को सुधारने में सहायक (Helps to Improve Techniques) : खिलाड़ियों की तकनीकों में कुछ बदलाव के द्वारा भी उनके प्रदर्शन को बेहतर किया जा सकता है। यान्त्रिकी के अपने ज्ञान के आधार पर प्रशिक्षक खिलाड़ी की तकनीकी त्रुटियों को सुधार कर उनके कौशलों को और अधिक सम्पन्न कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त वे खेलों में अधिक प्रभावी तकनीक की खोज भी कर सकते हैं।

2. उपकरणों को सुधारने में सहायक (Helps to Improve Equipments) : हम जानते हैं कि खिलाड़ियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों का प्रभाव उनके प्रदर्शन पर पड़ता है। जीव-यान्त्रिकी के ज्ञान द्वारा खेलों में प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों के डिजाइन में सुधार कर खिलाड़ी के प्रदर्शन को और बेहतर किया जा सकता है तथा इससे चोटों की सम्भावना को भी कम किया जा सकता है। जैसे कि- अच्छे डिजाइन वाले जूतों (running shoes) के प्रयोग से धावकों के प्रदर्शन में सुधार किया जा सकता है।

3. खेलों में प्रदर्शन को बढ़ाने में सहायक (Helps to Improve Performance) : जीव-यान्त्रिकी का मुख्य उद्देश्य खेल प्रदर्शन में लाना होता है। यान्त्रिकीय सिद्धान्तों के प्रयोग द्वारा खिलाड़ी की तकनीक, उसके द्वारा प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों में सुधार करके खेल प्रदर्शन को बढ़ाया जा सकता है।

4. चोटों से बचाव में सहायक (Helps in Preventing Injuries) : जीव-यान्त्रिकी ऐसी शक्तियों को समझने में सहायक होती है, जिनके कारण चोट लग सकती है। इस प्रकार के ज्ञान से भविष्य में उन्हीं कारणों से चोट लगने की सम्भवना से बचाव किया जा सकता है। जीव-यान्त्रिकी का प्रयोग चोटों से बचाव करने के लिए तकनीक उपकरण तथा प्रशिक्षण में परिवर्तन के लिए आधार के रूप में किया जाता है।

5. प्रशिक्षण के सुधार में सहायक (Helps in Improving Training) : जीव-यान्त्रिकी का प्रयोग खिलाड़ी की तकनीकी कमियों का उचित यान्त्रिकीय विश्लेषण कर खिलाड़ी की आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षण के प्रकार का पता लगाने में सहायता कर सकता है। इससे खिलाड़ी के खेल प्रदर्शन को बेहतर किया जा सकता है।

उपरोक्त जानकारी के आधार पर हम कह सकते हैं कि जीव-यान्त्रिकी खेल प्रदर्शन को बढ़ाने, खेल चोटों के खतरों को कम करने, तकनीक तथा उपकरणों के डिजाइनों की सुधारने एवं सुरक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

न्यूटन के गति के नियम तथा खेलकूद में इनका प्रयोग
(Newton’s Laws of Motion and their Application in Sports) न्यूटन के गति के नियम (Newton’s Laws of Motion)

1. जड़ता का नियम (Law of Inertia) : इसे गति का पहला नियम भी कहा जाता है। इस नियम के अनुसार, एक स्थिर वस्तु तब तक स्थिर अवस्था में रहेगी व एक गतिशील वस्तु तब तक गतिशील अवस्था में उसी दिशा में रहेगी, जब तक उस पर कोई बाहरी शक्ति ना लगाई जाए। खेलों में इस नियम के अनेक उदाहरण हैं जैसे- स्प्रिंट दौड़ों में स्टार्ट लेना और खो-खो, बॉस्केटबॉल में विरोधी खिलाड़ी को चकमा देना आदि। यदि एक वस्तु गति में होती है, तो यह तब तक गति की अवस्था में ही रहती है जब तक कोई चीज या कोई बाहरी वस्तु उसे नहीं रोकती।

2. त्वरण का नियम (Law of Acceleration) : इसे गति का दूसरा नियम भी कहा जाता है। इस नियम के अनुसार, किसी वस्तु में उत्पन्न त्वरण (acceleration) उस पर प्रहार करने वाली शक्ति के समानुपातिक होता है। यदि दो समान शक्तियाँ, भिन्न-भिन्न संहति (mass) वाली दो वस्तुओं (objects) पर लगाई जाती हैं तो कम संहति वाली वस्तु अधिक तीव्र गति से चलेगी। यह नियम भी विभिन्न खेलों में लागू होता है जैसे- हैमर थ्रो (Hammer throw) में, जो थ्रोअर अधिक शक्तिशाली होता है, वह कम शक्तिशाली थ्रोअर की अपेक्षा अधिक दूरी तक हैमर फेंक सकता है।

3. प्रतिक्रिया का नियम (Law of Reaction) : इसे गति का तीसरा नियम भी कहते हैं। इस नियम के अनुसार, प्रत्येक क्रिया की हमेशा बराबर तथा विपरीत प्रतिक्रिया होती है। यह नियम भी विभिन्न खेलों में लागू होता है, जैसे-

(a) तैराकी (Swimming) : एक तैराक आगे बढ़ने के लिए पानी को पीछे की ओर धकेलता है। यह एक क्रिया है। पानी, तैराक को आगे की ओर उतनी ही शक्ति से धक्का देता है, यह प्रतिक्रिया है।

(b) पैदल चाल (Walking) : पैदल चलते समय व्यक्ति अपने पैरों से जमीन पर पीछे की दिशा की ओर दबाव देता है (क्रिया)। जमीन भी उसे उसी शक्ति से आगे की ओर धकेलती है (प्रतिक्रिया)।

(c) शूटिंग (Shooting) : शूटिंग में, जब बन्दूक से जैसे ही फायर किया जाता है तो बन्दूक पीछे की ओर धक्का मारती है (प्रतिक्रिया)।

(d) बास्केटबॉल में ड्रिब्बलिंग करना (Dribbling in Basketball) : बास्केटबॉल में खिलाड़ी जब ड्रिब्बलिंग के दौरान बॉल को फर्श की ओर जिस शक्ति से धकेलता है बॉल उसी शक्ति के साथ फर्श से टकराकर वापिस ऊपर आती है (प्रतिक्रिया)।

संतुलन तथा खेलकूद में इनका प्रयोग
(Equilibrium and its Application in Sports) सन्तुलन ऐसी स्थिति को कहा जाता है जिसमें विरोधी शक्तियाँ एक समान/बराबर हों।

दूसरे शब्दों में कहें तों संतुलन ऐसी स्थिति को कहा जाता है जब एक बिन्दु पर लगने वाली शक्तियों का परिणाम शून्य हो। सन्तुलन की अवस्था तब होती है, जब शरीर का गुरुत्व केंद्र सहारा देने वाले आधार के ऊपर हो तथा गुरुत्व रेखा आधार में से गुजरती हो। शरीर की बड़ी सतह का मैदान के साथ सम्पर्क होने से सहारा देने वाला आधार भी बड़ा होता है। इसलिए बैठी हुई अवस्था में खड़े होने की अवस्था की अपेक्षा अधिक संतुलन होता है।संतुलन दो प्रकार के होते हैं-

1. स्थिर संतुलन (Static Equilibrium) : स्थिर अवस्था में संतुलन में की स्थिति को स्थिर संतुलन कहते हैं। स्थिर संतुलन के लिए यह आवश्यक होता है कि शरीर का गुरुत्वाकर्षण केंद्र (centre of gravity) आधार के भीतर होना चाहिए। जैसे कि जिम्नास्टिक्स में फ्लोर इवेन्ट्स के प्रारम्भ में स्थिर अवस्था में हैंड स्टैंड (Hand Stand) करना।

2. गतिशील संतुलन (Dynamic Equilibrium) : विभिन्न शारीरिक गतिविधियाँ करते समय शरीर का संतुलन बनाए रखने को गतिशील संतुलन कहते हैं। गतिशील संतुलन में गुरुत्व केन्द्र गति की अवस्था में होता है, जैसे कि दौड़ते समय संतुलन बनाए रखना।

संतुलन के सिद्धांत (Principles of Equilbrium)

खेलों के दौरान किसी खिलाड़ी के शरीर का संतुलन निम्न सिद्धांतों पर निर्भर करता है-

1. गुरुत्व केन्द्र सहारा देने वाले आधार के जितना पास होगा स्थिरता उतनी ही अधिक होगी। जैसे कि- तेजी से दौड़ता हुआ एथलीट तभी आसानी से व जल्दी से रुक पाता है जब वह अपने घुटनों को थोड़ा मोड़ते हुए अपने पैरों को आगे की ओर स्ट्राइड लेने की अवस्था में रखता है।

2. गुरुत्व केन्द्र सहारा देने वाले आधार के मध्य के जितना पास होगा शरीर उतना ही अधिक स्थिर होगा। जैसे कि बैलेन्स बीम पर प्रदर्शन के दौरान यदि जिम्नास्ट एक ओर अधिक झुक जाता है तो उसका संतुलन बिगड़ जाता है, क्योंकि वह सहारा प्रदान करने वाले आधार की सीमाओं से अपने गुरुत्व केन्द्र को बाहर ले आता है। जिसके कारण उसका संतुलन बिगड़ जाता है।

3. सहारा प्रदान करने वाला आधार जितना अधिक चौड़ा होगा शरीर उतना अधिक स्थिर होगा। जैसे कि- पैरों को जब गति की दिशा में फैलाकर खड़े होते हैं तो शरीर उतना अधिक स्थिर रहता है।

गुरुत्व केन्द्र तथा खेलकूद में इनका प्रयोग
(Centre of Gravity and its Application in Sports) गुरुत्व केन्द्र एक काल्पनिक बिन्दु होता है जिस पर किसी व्यक्ति या वस्तु का भार केंद्रित होता है। हर व्यक्ति एवं वस्तु का अपना एक गुरुत्व केन्द्र होता है, जो उनकी गति या स्थिति के अनुसार बदलता रहता है। मानव शरीर में भार के मध्य (centre) का गुरुत्व केन्द्र माना जाता है। यह शरीर की आकृति पर भी निर्भर करता है। यह शरीर के अन्दर या शरीर के बाहर भी हो सकता है। खेलों में खिलाड़ी के शरीर का गुरुत्वाकर्षण केंद्र, उसकी खेलने की क्षमता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे कि कुश्ती प्रतियोगिता के समय रक्षात्मक स्थिति को अपनाने के लिए शरीर के गुरुत्वाकर्षण केंद्र को नीचे रखना तथा आधार से पैर दूर रखकर फैलाना बहुत आवश्यक होता है। इसी प्रकार यदि कुश्ती लड़ने वाला प्रतियोगी गद्दे पर गिरा हो तथा उसकी भुजाएँ कंधों जितनी फैली हों व उसके दोनो घुटने एवं पैर गद्दे पर हों, तो ऐसी स्थिति में वह एक स्थिर अवस्था प्राप्त कर लेता है इस स्थिति में उसे प्रतिद्वंद्वी द्वारा उखाड़ना बहुत कटिन हो जाता है।

घर्षण एवं खेलकूद (Friction and Sports)

दो वस्तुओं की सतह के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने पर जो बल उत्पन्न होता है, जिसके कारण वस्तु की गति में परिवर्तन आता है, वह घर्षण कहलाता है।

गति के पहले नियम के अनुसार ‘एक स्थिर वस्तु स्थिर ही रहेगी तथा एक गतिशील वस्तु उसी दिशा में तथा उसी चाल पर गति में रहेगी, जब तक की उस पर कोई बाहरी शक्ति न लगाई जाए।’ हालांकि व्यवहारिक रूप से इसका उलटा होता है। जैसे कि जब एक फुटबॉल को किक मारी जाती है तो वह उस दिशा में तेजी से जाएगी जिस दिशा में बल लगाया गया हो। लेकिन कुछ समय हवा में आगे जाने के बाद वह नीचे आ जाती है। इसका मतलब यह है कि कोई ऐसी अदृश्य शक्ति है जो फुटबॉल की गति का अवरोध करती है। इस अवरोध करने वाली शक्ति को ही ‘घर्षण’ कहा जाता है। दो सतहों के बीच घर्षण की मात्रा निम्न कारकों पर निर्भर करती है।

(a) एक-दूसरे के संपर्क में आने वाली वस्तुओं की सतह जितनी अधिक खुरदरी अथवा अनियमित होगी उनकी बीच घर्षण उतना ही अधिक होगा।

(b) दो सतहों के संपर्क बिन्दुओं के बीच परमाणुओं शक्तियों के प्रति आकर्षण जितना अधिक होगा उनके बीच घर्षण उतना ही अधिक होगा।

घर्षण मुख्यतः दो प्रकार का होता है-

(a) स्थिर घर्षण (Static friction) : जब एक वस्तु दूसरी वस्तु की सतह पर बढ़ना शुरू करती है, हालाँकि तब तक वास्तविक गति आरंभ न हुई हो तो एक विरोधी शक्ति (opposing force) लागू होती है, इसे स्थिर घर्षण कहा जाता है।

(b) गतिशील घर्षण (Dynamic friction) : गतिशील घर्षण वह प्रतिकूल शक्ति होती है जो तब उत्पन्न होती है जब एक वस्तु दूसरी वस्तु की सतह पर वास्तविक रूप में बढ़ना शुरू करती है। गतिशील घर्षण भी दो प्रकार का होता है। जैसे कि-

(i) स्लाइडिंग घर्षण (Sliding friction) : स्लाइडिंग घर्षण वह प्रतिकूल शक्ति होती है जो तब उत्पन्न होती है जब एक वस्तु दूसरी वस्तु की सतह पर सरकने लगती है। जैसे कि- बर्फ या सड़क पर स्केटिंग करना।

(ii) रोलिंग घर्षण (Rolling friction) : रोलिंग घर्षण वह प्रतिकूल शक्ति होती है जो तब उत्पन्न होती है जब एक वस्तु दूसरी वस्तु की सतह पर लुढ़कने लगती है। जैसे कि हिट करने पर मैदान पर लुढ़कती बॉल का रोलिंग घर्षण के कारण रुक जाना।

खेल-कूद के क्षेत्र में घर्षण के लाभ तथा हानियों का तुलनात्मक विवेचन-

अपने दैनिक जीवन तथा खेलों में हमें घर्षण के अनेकों उदाहरण देखने को मिलते हैं। अधिकतर लोग घर्षण को एक बुराई के रूप में देखते हैं। परंतु यदि ध्यान से देखा जाए तो घर्षण हमारे दैनिक जीवन तथा खेलों में जितना हानिकारक है उतना ही लाभदायक भी है। इसलिए कई लोग इसे एक आवश्यक बुराई भी कहते हैं। खेल-कूद के क्षेत्र में घर्षण की उपयोगिता अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेलों के दौरान चलने तथा दौड़ने की क्रियाएँ घर्षण के कारण ही संभव हो पाती हैं जो कि खेल-कूद की क्रियाओं का मूल आधार हैं। घर्षण के अभाव में उत्तम खेल प्रदर्शन कर पाना संभव नहीं है। उदाहरण के लिए, हर धावक उचित घर्षण के लिए स्पाइक्स का प्रयोग करता है। वहीं भारोत्तोलन तथा जिम्नास्टिक इत्यादि में खिलाड़ियों द्वारा हथेलियों पर चूने अथवा मिट्टी का प्रयोग उचित घर्षण प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इसी तरह तेजी से दौड़ने की क्रिया में उचित घर्षण प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी रबड़ सोल के जूते, फुटबॉल खिलाड़ी स्टड्स आदि का प्रयोग करते हैं जो उन्हें फिसलने से बचाते हैं। इस प्रकार घर्षण की खेल-कूद में उपयोगिता अथवा आवश्यकता के अनेकों उदाहरण देखे जा सकते हैं।

खेल-कूद के क्षेत्र में घर्षण बल का महत्व-

घर्षण बल का खेल-कूद के क्षेत्र में बहुत महत्व है। यदि उचित घर्षण न हो तो हम खेल-कूद के उपकरणों को प्रभावपूर्ण तरीके से पकड़ नहीं पाएँगे जिसके कारण खेल प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

विभिन्न प्रकार के खेलों में घर्षण बल के निम्न लाभ हैं-

1. क्रिकेट : क्रिकेट खिलाड़ी विशेषकर क्षेत्ररक्षक ऐसे जूते पहनते हैं जिनकी तली में कीलें लगी होती है। ये विशेष प्रकार के जूते घर्षण बल बढ़ाने में सहायता करते हैं और खिलाड़ी भागते समय फिसलते नहीं हैं।

2. बैडमिंटन : बैडमिंटन रैकेट के हत्थे पर कपड़ों की मूठ (grip) होती है जो खिलाड़ी के हाथ का घर्षण बल बढ़ा देती है। इससे रैकेट फिसलता नहीं है।

3. बास्केट बॉल : खेल क्षेत्र और जूतों के बीच घर्षण बल, खिलाड़ियों के जमीन से पकड़ मजबूत बनाए रखता है। खिलाड़ी बार-बार अपने जूते पोछते रहते हैं ताकि वे फिसले नहीं।

4. साइक्लिंग : साइकिल के टायर और सड़क के बीच घर्षण बल साइकिल को फिसलने से रोकता है। ब्रेक और पहिए के बीच उपस्थित घर्षण बल साइकिल की गति कम करने में खिलाड़ी की सहायता करता है।

5. फुटबॉल : फुटबॉल के खेल में, घर्षण बल फुटबॉल को फेकने, किक मारने और पकड़ने या रोकने में मदद करता है। उसके अतिरिक्त यह खिलाड़ी के मैदान में दौड़ने अथवा फुटबॉल की गति की दिशा को परिवर्तित करने में भी सहायक होता है।

6. जिमनास्टिक : घर्षण बल के कारण ही जिमनास्ट छड़ (bar) पर विभिन्न प्रकार के करतब दिखा सकता है। वस्तुतः छड़ और हाथ के बीच घर्षण बल बढ़ाने के लिए वह चूने का प्रयोग करता है ताकि उसका हाथ छड़ से फिसले नहीं।

7. दौड़ना : खिलाड़ी के जूतों और जमीन के बीच घर्षण बल खिलाड़ी के दौड़ने, रूकने और दिशा बदलने में सहायता करता है। यदि घर्षण बल कम होगा तो खिलाड़ी के फिसलने का डर रहेगा।

उपर्युक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि खेल-कूद में अच्छे प्रदर्शन के लिए पर्याप्त घर्षण बल आवश्यक है। हालांकि घर्षण बल के कारण कुछ हानियां भी हो सकती है।

घर्षण – बल से होने वाली हानियाँ इस प्रकार है-

1. भारोत्तोलन के खिलाड़ियों का पैर, भार उठाते समय फिसलने कर डर रहता है। उसके लिए उन्हें अच्छी पकड़ वाले जूते पैरो को रगड़कर जमीन और जूतों के बीच घर्षण बल बढ़ाने की सलाह दी जाती है।

2. बाँस कद के खिलाड़ियों का हाथ कम घर्षण की वजह से फिसल सकता है जिसके कारण उनका प्रदर्शन खराब होने तथा घायल होने का डर रहता है। घर्षण बल बढ़ाने के लिए उन्हें हथेलियों में चिपकने वाला पदार्थ (adhesive) लगाने की सलाह दी जाती है।

3. जिमनास्टिक अथवा भारोत्तोलन के खिलाडियों की हथेलियाँ घर्षण बल के कारण छड़ (bar) से रगड़ रखाकर चोटिल हो जाती है। इसके लिए उन्हें हथेलियों में पाउडर लगाने की सलाह दी जाती है जिससे उनकी हथेलियों और छड़ के बीच उचित घर्षण बल बना रहे।

4. साइकिल ट्रैक पर तेज गति से चलती साइकिल के पहिए घर्षण के कारण अत्यधिक गर्म हो जाते हैं जिससे पहिये फट सकते हैं और कोई दुर्घटना भी हो सकती है।

खेलों में प्रक्षेप्य
(Projectile in Sports)प्रक्षेप्य / प्रोजैक्टाइल (Projectile)जब किसी वस्तु को आकाश की तरफ न्यून कोण (Acute Angle) पर फेंका जाता है, तथा इनरशिया (Inertia) के कारण वह गतिमान हो तो उसे प्रक्षेप्य/प्रोजैक्टाइल कहा जाता है। सभी प्रकार की प्रक्षेपित वस्तुओं पर दो प्रकार की शक्तियाँ, गुरुत्वाकर्षण शक्ति (gravitational force) तथा वायु प्रतिरोध शक्ति (air resistance) कार्य करती है। हालांकि प्रक्षेपित वस्तुओं पर वायु प्रतिरोध आकार तथा वातावरणीय दशाओं पर निर्भर करती है। किसी शक्ति उस वस्तु के प्रक्षेप्य द्वारा तय किए गए पथ/मार्ग को ट्रैजक्ट्री (Trajectory) कहा जाता है, जिसका आकार पैराबोला (Parabola) होता है। खेल-कूद के क्षेत्र में हैमर या जैवलिन थ्रो, फुटबॉल को किक मारना, बॉस्केटबॉल में बॉल को बॉस्केट की ओर फेंकना तथा ऐथलीट द्वारा लंबी कूद लगाना इत्यादि प्रक्षेप्य के उदाहरण है।

प्रक्षेप्य पथ को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors Affecting Projectile Trajectory)

किसी वस्तु की उड़ान /प्रक्षेप्य पथ को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-

1. प्रक्षेपण का कोण (Angle of projection) : एक ही वस्तु को जब अलग-अलग कोणों से एक समान प्रारंभिक वेग (initial velocity) द्वारा प्रक्षेपित किया जाता है, तो वह अलग-अलग दूरी तय करती है। जैसे कि दिए गए चित्र में जब एक वस्तु को 15° के कोण से प्रक्षेपित किया जाता है तो वह कम दूरी तय करती है परंतु जब उसी वस्तु को उसी वेग से 45° के कोण से प्रक्षेपित किया जाता है तो वह अपेक्षाकृत अधिक दूरी तय करती है। विभिन्न अध्ययनों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि, यदि किसी वस्तु को 45° के कोण से प्रक्षेपित किया जाए तो वह संभवतः सबसे अधिक दूरी तय करेगी। जबकि उसी वस्तु को यदि 90° के कोण से प्रक्षेपित करें तो वह लगभग उसी स्थान पर गिरेगी जहाँ से उसे प्रक्षेपित किया गया था।

2. प्रक्षेपण की ऊँचाई तथा लैंडिंग सतह में संबंध (Relation between projection height and landing surface) : किसी प्रक्षेपित वस्तु द्वारा तय की गई दूरी प्रक्षेपण की ऊँचाई व लैडिंग सतह पर निर्भर करती है। इसलिए वस्तु द्वारा अधिक दूरी तय करने के लिए-

(a) प्रक्षेपण की ऊँचाई व लैंडिंग सतह समान होने पर वस्तु को 45° के कोण से प्रक्षेपित करना चाहिए।

(b) लैंडिंग सतह का स्तर प्रक्षेपण की ऊँचाई से अधिक होने पर वस्तु को 45° से अधिक के कोण से प्रक्षेपित करना चाहिए।

(c) लैडिंग सतह का स्तर प्रक्षेपण की ऊँचाई से कम होने पर वस्तु को 45º से कम के कोण से प्रक्षेपित करना चाहिए।

उपरोक्त स्थितियों में प्रक्षेपण के कोण बदलने से वस्तु अधिक देर तक हवा में रहेगी जिससे उसे अधिक दूरी तय करने का अच्छा अवसर मिलेगा। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए जैवलिन थ्रोअर्स, जैवलिन को ऊपर की ओर से पकड़ते है ताकि फेंकते हुए जैवलिन अधिक ऊँचाई प्राप्त कर सकें।

3. प्रारंभिक वेग (Initial velocity) : प्रारंभिक वेग अधिक होने पर वस्तु अधिक दूरी तय करती है जबकि प्रारंभिक वेग कम होने पा वस्तु कम दूरी तय करती है।

4. गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational pull) : प्रक्षेपित वस्तु का भार जितना अधिक होगा उस पर लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल भी उतना ही अधिक होगा। गुरुत्वाकर्षण बल जितना अधिक होगा वस्तु की प्रक्षेपित ऊँचाई उतनी ही कम होगी।

5. वायु प्रतिरोध (Air resistance) : जब प्रक्षेपित वस्तु हवा में गतिमान होती है तो हवा का प्रतिरोध उसकी गति को कम कर देता है।हवा का प्रतिरोध जितना अधिक होगा वस्तु की गति उतनी ही कम हो जाएगी। हालांकि वायु प्रतिरोध की मात्रा विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। जैसे कि-

(a) यदि प्रक्षेपित वस्तु की सतह खुरदरी होगी तो उसपर लगने वाला प्रतिरोध अधिक होगा, जबकि चिकनी सतह होने पर उसपर लगने वाला प्रतिरोध कम होगा।

(b) प्रक्षेपित वस्तु की गति बढ़ने के अनुरूप उसपर लगने वाला प्रतिरोध भी बढ़ता जाएगा।

(c) प्रक्षेपित वस्तु की संहति (mass) जितना कम होगा उसपर लगने वाला प्रतिरोध उतना ही अधिक होगा।

6. स्पिन/घूर्णन (Spin) : जब प्रक्षेपित वस्तु हवा में घूमते हुए गतिमान होती है तो वस्तु के ऊपरी हिस्से पर उच्च वायुदाब तथा निचले हिस्से पर कम वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। वायु के उच्च से निम्न वायुदाब की ओर गति करने के कारण वस्तु नीचे की ओर गोता लगाते हुए कम दूरी तय कर पाती है।

ऐसी प्रतियोगिताएँ, जिनमें फेंकने या प्रक्षेपण से जुड़ी गतिविधियाँ होती है, ऊपर दिए गए कारक सहायक सिद्ध होते हैं। ये कारक लंबी कूद अथवा बाँस-कूद आदि प्रतियोगिताओं में भी लागू होते हैं। गोला फेंक प्रतियोगिता में गोला फेंकते समय, यदि गोले का प्रक्षेपण, धरती की समानान्तर रेखा से 43° के कोण पर होना चाहिए। अन्य वस्तुओं के लिए प्रक्षेपण का कोण 45° पर अधिकतम दूरी तय करेगा।

अतः इसमें कोई दो मत नहीं है कि- कूदने, फेंकने तथा किक मारने वाली गतिविधियों में, वस्तु के वेग में वृद्धि तथा प्रक्षेपण के कोण में समाकलन होना चाहिए।