NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (The Crisis of Democratic Order)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) |
Chapter | Chapter – 6 |
Chapter Name | लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (The Crisis of Democratic Order) |
Category | Class 12th Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (The Crisis of Democratic Order)
Chapter – 6
लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
Notes
1971 के बाद कि राजनीति – 25 जून 1975 से 18 माह तक अनुच्छेद 352 के प्रावधान आंतरिक अशांति के तहत भारत में आपातकाल लागू रहा। आपातकाल में देश की अखंडता व सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रखते हुए समस्त शक्तियाँ केंद्रीय सरकार को प्राप्त हो जाती है। |
आपातकाल के प्रमुख कारक - आर्थिक कारक
- छात्र आंदोलन
- नक्सलवादी आंदोलन
- रेल हड़ताल
- न्यायपालिका के संघर्ष
1) आर्थिक कारक - गरीबी हटाओं का नारा कुछ खास नहीं कर पाया था।
- बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ बड़ा था।
- अमेरिका ने भारत को हर तरह की सहायता देनी बंद कर दी थी।
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों के बढ़ने से विभिन्न चीजों की कीमतें बहुत बढ़ गई थी।
- औद्योगिक विकास की दर बहुत कम हो गयी थी।
- शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बहुत बढ़ गई थी।
- सरकार ने खर्चे कम करने के लिए सरकारी कर्मचारियों का वेतन रोक दिया था।
2) छात्र आंदोलन - गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतें तथा उच्च पदों पर व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ जनवरी 1974 में आंदोलन शुरू किया।
- मार्च 1974 में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया।
3) नक्सलवादी आंदोलन - इसी अवधि में संसदीय राजनीति में विश्वास न रखने वाले कुछ मार्क्सवादी समूहों की सक्रियता बढ़ी।
- इन समूहों ने मौजूदा राजनीतिक प्रणाली और पूँजीपादी व्यवस्था को समाप्त करने के लिए हथियार और राज्य विरोधी तरीकों का सहारा लिया।
- 1967 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलवादी इलाके के किसानों ने हिसंक विद्रोह किया था, जिसे नक्सलवादी आंदोलन के रूप में जाना जाता है।
- 1969 में चारू मजूमदार के नेतृत्व में सी. पी. आई. (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) पार्टी का गठन किया गया। इस पार्टी ने क्रांति के लिए गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनायी।
- नक्सलियों ने धनी भूस्वामियों से बलपूर्वक जमीन छीनकर गरीब और भूमिहीन लोंगों को दी।
- वर्तमान में 9 राज्यों के 100 से अधिक पिछड़े आदिवासी जिलों में नक्सलवादी हिंसा जारी है।
4) रेल हड़ताल - जार्ज फर्नाडिस के नेतृत्व में बनी राष्ट्रीय समिति ने रेलवे कर्मचारियों की सेवा तथा बोनस आदि से जुड़ी माँगो को लेकर 1974 में हड़ताल की थी।
- सरकार मे हड़ताल को असंवैधानिक घोषित किया और उनकी माँगे स्वीकार नहीं की।
- इससे मजदूरों, रेलवे कर्मचारियों, आम आदमी और व्यापारियों में सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा हुआ।
5) न्यायपालिका के संघर्ष - सरकार के मौलिक अधिकारों में कटौती, संपत्ति के अधिकार में कॉट–छॉट और नीति–निर्देशक सिद्धांतो को मौलिक अधिकारों पर ज्यादा शक्ति देना जैसे प्रावधानों को सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया।
- सरकार ने जे. एम. शैलट, के. एस. हेगड़े तथा ए. एन. ग्रोवर की वरिष्ठता की अनदेखी करके ए. एन. रे. को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करवाया।
- सरकार के इन कार्यों से प्रतिबद्ध न्यायपालिका तथा नौकरशाही की बातें होने लगी थी।
|
जय प्रकाश नारायण की भूमिका – जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने इस आंदोलन का नेतृत्व दो शर्तो पर स्वीकार किया। - आंदोलन अहिंसक रहेगा।
- यह विहार तक सीमित नहीं रहेगा, अतिपु राष्ट्रव्यापी होगा।
जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति द्वारा सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की बात की थी। जेपी ने भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी जैसे गैर–कांग्रेसी दलों के समर्थन से ‘संसद–मार्च‘ का नेतृत्व किया था। इसे “संपूर्ण क्रांति“ के नाम से जाना जाता है इंदिरा गांधी ने इस आंदोलन को अपने प्रति व्यक्तिगत विरोध से प्रेरित बताया था। |
राम मनोहर लोहिया- जन्म 23 march, 1910
- मृत्यु 12 October, 1967
- विचारधारा समाजवाद, समाजवादी चिंतक, गांधीवाद
|
राम मनोहर लोहिया और समाजवाद – राम मनोहर लोहिया ने पाँच प्रकार की असमानताओं को चिह्नित किया। जिनसे एक साथ लड़ने की आवश्यकता है इस सूची में उनके द्वारा दो और क्रांतियों को जोड़ा गया। यह सात क्रांतियों कुछ इस प्रकार है - स्त्री और पुरुष के बीच असमानता।
- त्वचा के रंग के आधार पर असमानता।
- जाति आधारित असमानता।
- कुछ देशों द्वारा दूसरे देशों पर औपनिवेशिक शासन।
- आर्थिक असमानता।
- नागरिक स्वतंत्रता के लिये क्रांति (निजी जीवन पर अन्यायपूर्ण अतिक्रमण के खिलाफ)।
- सत्याग्रह के पक्ष में हथियारों का त्याग कर अहिंसा के मार्ग का अनुसरण करने के लिये क्रांति।
नोट- ये सात क्रांतियाँ या सप्त क्रांति लोहिया के लिये समाजवाद का आदर्श थीं। |
पंडित दीनदयाल उपाध्याय - जन्म 25 sep, 1916
- मृत्यु 11 feb, 1968
- पेशा दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ
- राजनीतिक दल यह भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे है।
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी जुड़े।
|
दीनदयाल उपाध्याय और एकात्म मानववाद - यह सनातन तथा हिंदुत्व की विचारधारा को महत्वपूर्ण मानते थे।
- इनके अनुसार मनुष्य विकास का केंद्र होता है। व्यक्ति तथा समाज की आवश्यकता के बीच समन्वय स्थापित करते हुए प्रत्येक मानव के लिए एक गरिमामय जीवन सुनिश्चित करना एकात्म मानववाद का उद्देश्य है।
- एकात्म मानववाद के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग किया जाना चाहिए। जिससे उन संसाधनों को पुनः प्राप्त किया जा सके।
एकात्म मानववाद का दर्शन 3 सिद्धांतों पर आधारित है- - समग्रता की प्रधानता
- धर्म की स्वायत्तता
- समाज की स्वायत्तता
|
आपातकाल की घोषणा - 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के 1971 के लोकसभा चुनाव को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
- 24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले पर स्थगनादेश सुनाते हुए, कहा कि अपील का निर्णय आने तक इंदिरा गांधी सांसद बनी रहेगी परन्तु मंत्रिमंडल की बैठकों में भाग नहीं लेगी।
- 25 जून 1975 को जेपी के नेतृत्व में इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। इंदिरा गांधी के इस्तीफे की माँग की।
- जेपी ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों से आग्रह किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशों का पालन न करें।
- 25 जून 1975 की मध्यरात्रि में प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 352 (आंतरिक गडबडी होने पर) के तहत राष्ट्रपति से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की।
|
आपातकाल पर विवाद पक्ष - बार–बार धरना प्रदर्शन और सामूहिक कार्यवाही से लोकतंत्र बाधित होता है।
- विरोधियों द्वारा गैर–संसदीय राजनीति का सहारा लेना।
- सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमों में अड़चन पैदा करना।
- भारत की एकता के विरूद्ध अंतराष्ट्रीय साजिश रचना।
- इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने के कदम का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने समर्थन दिया।
विपक्ष - लोकतंत्र में जनता को सरकार का विरोध करने का अधिकार होता है।
- विरोध–आंदोलन ज्यादातर समय अहिंसक और शांतिपूर्ण रहें।
- गृह मंत्रालय ने उस समय कानून व्यवस्था की चिंता जाहिर नहीं की।
- संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग निजी स्वार्थ हेतु किया गया।
|
क्या आपातकाल जरूरी था ?- संविधान में बड़े सादे ढंग से कह दिया कि अंदरूनी गड़बड़ी के कारण आपातकाल लगाया गया । क्या यह कारण काफी था आपातकाल लगाने के लिए।
- सरकार का कहना था कि भारत मे लोकतंत्र है और इसके अनुकूल विपक्षी दल को चाहिए कि वह चुनी हुई सरकार को अपनी नीतियों के अनुसार शासन चलाने दे।
- सरकार का कहना था कि बार–बार धरना प्रदशर्न, सामूहिक कार्यवाही लोकतंत्र के लिए ठीक नही होता। ऐसे में प्रशासन का ध्यान विकास के कामो से भंग होता है।
- इंदिरा गांधी ने शाह आयोग को चिट्ठी में लिखा कि विनाशकारी ताकते सरकार के प्रगतिशील कार्यक्रमो में अड़ंगे डाल रही थी और मुझे गैर–सवैधानिक साधनों के बूते सत्ता से बेदखल करना चाहती थी।
- आपातकाल के दौरान C.P.I. पार्टी ने इंदिरा का साथ दिया लेकिन बाद में उसने भी यह महसूस किया कि उसने कांग्रेस का साथ देकर गलती की।
|
आपातकाल के दौरान किए गए कार्य - बीस सूत्री कार्यक्रम में भूमि सुधार, भू–पुनर्वितरण, खेतिहर मजदूरों के पारिश्रमिक पर पुनः विचार, प्रबंधन में कामगारों की भागीदारी, बंधुआ मजदूरी की समाप्ति आदि जनता की भलाई के कार्य शामिल थे।
- विरोधियों को निवारक नज़र बड़ी कानून के तहत बंदी बनाया गया।
- मौखिक आदेश से अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई।
- दिल्ली में झुग्गी बस्तियों को हटाने तथा जबरन नसबंदी जैसे कार्य किये गये।
|
आपातकाल के सबक – आपातकाल के दौरान भारतीय लोकतंत्र की ताकत और कमजोरियाँ उजागर हो गई थी, लेकिन जल्द ही कामकाज लोकतंत्र की राह पर लौट आया। इस प्रकार भारत से लोकतंत्र को विदा कर पाना बहुत कठिन है। आपातकाल की समाप्ति के बाद अदालतों ने व्यक्ति के नागरिक अधिकारों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाई है तथा इन अधिकारों की रक्षा के लिए कई संगठन अस्तित्व में आये है। संविधान के आपातकाल के प्रावधान में ‘आंतरिक अशान्ति‘ शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह‘ शब्द को जोड़ा गया है। इसके साथ ही आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिपरिषद् राष्ट्रपति को लिखित में देगी। आपातकाल में शासक दल ने पुलिस तथा प्रशासन को अपना राजनीतिक औजार बनाकर इस्तेमाल किया था। ये संस्थाएँ स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पाई थी। |
आपातकाल के बाद- जनवारी 1977 में विपक्षी पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया।
- कांग्रेसी नेता बाबू जगजीवन राम ने “कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी ‘दल का गठन किया, जो बाद में जनता पार्टी में शामिल हो गया।
- जनता पार्टी ने आपातकाल की ज्यादतियों को मुद्दा बनाकर चुनावों को उस पर जनमत संग्रह का रूप दिया।
|
1977 के चुनाव- 1977 के चुनाव में कांग्रेस को लोकसभा में 154 सीटें तथा जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 330 सीटे मिली।
- आपातकाल का प्रभाव उत्तर भारत में अधिक होने के कारण 1977 के चुनाव में कांग्रेस को उत्तर भारत में ना के बराबर सीटें प्राप्त हुई।
|
जनता पार्टी की सरकार- जनता पार्टी की सरकार में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री तथा चरण सिंह व जगजीवनराम दो उपप्रधानमंत्री बने।
- जनता पार्टी के पास किसी दिशा, नेतृत्व व एक साझे कार्यक्रम के अभाव में यह सरकार जल्दी ही गिर गई।
- 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 353 सीटें हासिल करके विरोधियों को करारी शिकस्त दी।
|
जनता पार्टी के कार्य शाह आयोग – आपातकाल की जाँच के लिए जनता पार्टी की सरकार द्वारा मई 1977 में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जे . सी . शाह की अध्यक्षता में एक जाँच आयोग की नियुक्ति की गई। शाह आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट - आपातकाल की घोषणा का निर्णय केवल प्रधानमंत्री का था।
- सामाचार पत्रों के कार्यालयों की बिजली बंद करना पूर्णतः अनुचित था।
- प्रधानमंत्री के निर्देश पर अनेक विपक्षी राजनीतिक नेताओं की गिरफ्तारी गैर–कानूनी थी।
- मीसा (MISA) का दुरुपयोग किया गया था।
- कुछ लोगों ने अधिकारिक पद पर न होते हुए भी सरकारी काम–काज में हस्तक्षेप किया था।
|