NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ (Challenges of Nation-Building)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) |
Chapter | 1st |
Chapter Name | राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ (Challenges of Nation-Building) |
Category | Class 12th Political Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ (Challenges of Nation-Building) Notes In Hindi भारत की आजादी, एकता एवं अखडता की चुनौती, भारत का विभाजन, विभाजन की आईं मुख्य समस्या, विभाजन के परिणाम, रजवाड़ो का भारत मे विलय, रजवाड़ों के विलय में समस्या, देशी रियासतों के बारे में अहम बातें, हैदराबाद का विलय, राज्यों का पुनर्गठन, आयोग की प्रमुख सिफारिशे, संघ शासित क्षेत्र जो बाद में राज्य बने? इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे।
NCERT Solutions Class 12th Political Science (स्वतंत्र भारत में राजनीति) Chapter – 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ (Challenges of Nation-Building)
Chapter – 1
राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ
Notes
भारत की आजादी (India’s independence) – लगभग 200 वर्ष तक अंग्रेजों की गुलामी के बाद 14 से 15 अगस्त सन 1947 की मध्यरात्रि को हिन्दुस्तान आजाद हुआ। लेकिन इस आजादी के साथ देश की जनता को देश के विभाजन का सामना करना पड़ा। संविधान सभा के विशेष सत्र में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘भाग्यवधु से चिर – प्रतीक्षित भेंट या ‘ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी के नाम से भाषण दिया। |
आजादी की लड़ाई के समय दो बातों पर सबकी सहमति थी।
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नए राष्ट्रे की चुनौतियाँ – मुख्य तौर पर भारत के सामने तीन तरह की चुनौतियाँ थी-
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(1) एकता एवं अखंडता की चुनौती – भारत अपने आकार और विविधता में किसी महादेश के बराबर था। यहाँ विभिन्न भाषा, संस्कृति और धर्मो के अनुयायी रहते थे, इन सभी को एकजुट करने की चुनौती थी। |
(2) लोकतंत्र की स्थापना – भारत ने संसदीय शासन पर आधारित प्रतिनिधित्व मूलक लोकतंत्र को अपनाया है। और भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार तथा मतदान का अधिकार दिया गया है। |
(3) समानता पर आधारित विकास – ऐसा विकास जिससे सम्पूर्ण समाज का कल्याण हो, न कि किसी एक वर्ग का अर्थात् सभी के साथ समानता का व्यवहार तथा समान अधिकार दिया जाए और सामाजिक रूप से वंचित वर्गो तथा धार्मिक सांस्कृतिक अल्पसंख्यक समुदायों को विशेष सुरक्षा दी जाए। |
द्वि-राष्ट्र सिद्धांत (Two-nation theory) – इस सिद्धांत के अनुसार भारत किसी एक कौम का नहीं बल्कि ‘हिन्दू‘ और ‘मुसलमान‘ नाम की दो कौमों का देश था और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानि पाकिस्तान की माँग की। |
भारत का विभाजन (Partition of India) – मुस्लिम लीग ने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत‘ को अपनाने के लिए तर्क दिया कि भारत किसी एक कौम का नहीं, अपितु ‘हिन्दु और मुसलमान‘ नाम की दो कौमों का देश है। और इसी कारण मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश यानी पाकिस्तान की मांग की। भारत के विभाजन का आधार धार्मिक बहुसंख्या को बनाया गया। • मुसलमानों की जनसंख्या के आधार पर पाकिस्तान में दो इलाके शामिल हुए पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान और इनके मध्य में भारतीय भू-भाग का बड़ा विस्तार रहेगा। • मुस्लिम बहुल प्रत्येक इलाका पाकिस्तान में जाने को राजी नहीं था। पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के नेता ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान (Abdul Ghaffar Khan) जिन्हें ‘सीमांत गांधी‘ के नाम से जाना जाता है, वह ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत‘ के एकदम खिलाफ थे। • ‘ब्रिटिश इंडिया‘ के मुस्लिम बहुल प्रान्त पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर – मुस्लिम आबादी वाले थे। ऐसे में इन प्रान्तों का बँटवारा धार्मिक बहुसंख्या के आधार पर जिले या उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार बनाकर किया गया। • भारत विभाजन केवल धर्म के आधार पर हुआ था। इसलिए दोनों ओर के अल्पसंख्यक वर्ग बड़े असमंजस में थे, कि उनका क्या होगा। वह कल से पाकिस्तान के नागरिक होगें या भारत के। |
विभाजन की समस्या – भारत विभाजन की योजना में यह नहीं कहा गया कि दोनों भागों से अल्पसंख्यकों का विस्थापन भी होगा। विभाजन से पहले ही दोनों देशों के बँटने वाले इलाकों में हिन्दु – मुस्लिम दंगे भड़क उठे। • पश्चिमी पंजाब में रहने वाले अल्पसंख्यक गैर मुस्लिम लोगों को अपना घर – बार, जमीन – जायदाद छोड़कर अपनी जान बचाने के लिए वहाँ से पूर्वी पंजाब या भारत आना पड़ा। और इसी प्रकार मुसलमानों को पाकिस्तान जाना पड़ा। • विभाजन की प्रक्रिया में भारत की भूमि का ही बँटवारा नहीं हुआ बल्कि भारत की सम्पदा का भी बँटवारा हुआ। आजादी एवं विभाजन के कारण भारत को विरासत के रूप में शरणार्थियों के पुर्नवास की समस्या मिली। • लोगों के पुनर्वास को बड़े ही संयम ढंग से व्यावहारिक रूप प्रदान किया। शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सर्वप्रथम एक पुनर्वास मंत्रालय बनाया गया। |
विभाजन के परिणाम
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रजवाड़ो का भारत में विलय – स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारत दो भागों में बँटा हुआ था – ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासत। इन देशी रियासतों की संख्या लगभग 565 थी। रियासतों के शासकों को मनाने – समझाने में सरदार पटेल (गृहमंत्री) ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई और अधिकतर रजवाड़ो को उन्होंने भारतीय संघ में शामिल होने के लिए राजी किया था। |
रजवाड़ों के विलय में समस्या – आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजों ने कहा कि भारत ब्रिटिश प्रभुत्व से आजाद होने जा रहा है ऐसे में रजवाड़ों भी आजाद कर दिया जाएंगे और रजवाड़े अपनी मर्जी से चाहे तो भारत में शामिल हो जाएं चाहे तो पाकिस्तान में या फिर स्वतंत्र रह सकते हैं। यह फैसला राजा को करना था जनता की इसमें कुछ नहीं चलनी थी। ऐसे में देश की एकता और अखंडता को खतरा मंडरा रहा था अगर रजवाड़े अलग होने की मांग करते हैं तो ना जाने देश के कितने टुकड़े हो जाते त्रावणकोर के राजा ने सबसे पहले अपने राज्य को आजाद करने को कहा।अगले दिन हैदराबाद के निजाम ने ऐसा किया। भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल होना नहीं चाहते थे। |
रजवाड़ों के विलय में पटेल जी की भूमिका – भारत देश के छोटे – बड़े टुकड़े हो जाने की संभावना बनी ऐसे में सरकार ने कठोर फैसला लिया। मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया लोगों का कहना था कि रजवाड़ों को उनकी मनमर्जी का फैसला लेने के लिए छोड़ दिया जाए। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपनी चतुराई और सूझबूझ से रजवाड़ों को भारतीय संघ में शामिल कर लिया। |
देशी रियासतों के बारे में अहम बातें • अधिकतर रजवाड़ो के लोग भारतीय संघ में शामिल होना चाहते थे। • भारत सरकार कुछ इलाकों को स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी जैसे – जम्मू कश्मीर। • विभाजन की पृष्ठभूमि में विभिन्न इलाकों के सीमांकन के सवाल पर खींचतान जोर पकड़ रही थी और ऐसे में देश की क्षेत्रीय एकता और अखण्डता का प्रश्न सबसे महत्वपूर्ण हो गया था। • अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे इस सहमति पत्र को ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन‘ कहा जाता है। • जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय बाकी रियासतों की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ। |
हैदराबाद का विलय (Merger of Hyderabad) – हैदराबाद के शासक को ‘निजाम‘ कहा जाता था। उन्होंने भारत सरकार के साथ नवंबर 1947 में एक साल के लिए यथास्थिति बहाल रहने का समझौता किया। कम्युनिस्ट पार्टी और हैदराबाद कांग्रेस के नेतृत्व में किसानों और महिलाओं ने निजाम के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन को कुचलने के लिए निजाम ने एक अर्द्ध – सैनिकबल (रजाकार) को लगाया। इसके जबाव में भारत सरकार ने सितंबर 1948 को सैनिक कार्यवाही के द्वारा निजाम को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। इस प्रकार हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय हुआ। |
मणिपुर रियासत का विलय – मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता बनी रहे, इसको लेकर महाराजा बोधचंद्र सिंह व भारत सरकार के बीच विलय के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए। जनता के दबाव में निर्वाचन करवाया गया इस निर्वाचन के फलस्वरूप संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ। नोट – मणिपुर भारत का पहला भाग है जहाँ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाकर जून 1948 में चुनाव हुए। |
कश्मीर का विलय – सरदार पटेल को एकीकरण में मुख्यतः तीन राज्यों हैदराबाद, जूनागढ़ तथा कश्मीर द्वारा चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हीं के नेतृत्व में भारतीय सेनाओं ने हैदराबाद तथा जूनागढ़ को भारत में विलय के लिए तैयार किया। पाकिस्तान की मंशा, जो कि जिन्ना के विभाजनकारी “द्विराष्ट्र सिद्धांत” पर आधारित थी, से भली-भांति परिचित होने के कारण, सरदार पटेल की कश्मीर पर राय अन्य नेताओं से भिन्न थीं। हैदराबाद की भांति वें कश्मीर को भी सैन्य अभियान के द्वारा ही भारत में मिलाना चाहते थे। परंतु कुछ महत्वपूर्ण नेताओं के अदूरदर्शी राजनीतिकं निर्णयों के कारण सरदार पटेल कश्मीर का भारत में पूरी तरह से विलय कराने में सफल नही हो पाए। तथापि सरदार पटेल सदैव एक ऐसे अद्भुत नेता के रूप में जाने जाते रहेंगे जो स्वयं में राष्ट्रवाद, परिवर्तक तथा यथार्थवाद के सम्मिश्रण थे जिन्हें भारतीय राजनीतिक इतिहास में एनसीआर (NCR – Nationalist Catalyst Realist) के रूप में जाना जाता है। |
राज्यों का पुनर्गठन – औपनिवेशिक शासन के समय प्रांतो का गठन प्रशासनिक सुविधा के अनुसार किया गया था, लेकिन स्वतंत्र भारत में भाषाई और सांस्कृतिक बहुलता के आधार पर राज्यों के गठन की माँग हुई। नोट – भाषा के आधार पर प्रांतो के गठन का राजनीतिक मुद्दा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन (1920) में पहली बार शामिल किया गया था। |
आंध्र प्रदेश राज्य का निर्माण – तेलगुभाषी, लोगों ने मांग की कि मद्रास प्रांत के तेलुगुभाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्र प्रदेश बनाया जाए। आंदोलन के दौरान कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता पोट्टी श्री रामुलू की लगभग 56 दिनों की भूख-हड़ताल के बाद मृत्यु हो गई। इसके कारण सरकार को दिसम्बर 1952 में आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने की घोषणा करनी पड़ी। इस प्रकार आंध्रप्रदेश भाषा के आधार पर गठित पहला राज्य बना। |
राष्ट्र निर्माण पर नेहरू का दृष्टिकोण – नेहरू ने लोगों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये राज्य पुनर्गठन समिति की स्थापना की ताकि उनके राष्ट्र से अलग होने की संभावना कम हो जाए। |
राज्य पुनर्गठन आयोग (SRC) – 1953 में केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। |
आयोग की प्रमुख सिफारिशें – त्रिस्तरीय (भाग ABC) राज्य प्रणाली को समाप्त किया जाए। केवल 3 केन्द्रशासित क्षेत्रों (अंडमान और निकोबार, दिल्ली, मणिपुर) को छोड़कर बाकी के केन्द्रशासित क्षेत्रों को उनके नजदीकी राज्यों में मिला दिया जाए। राज्यों की सीमा का निर्धारण वहाँ पर बोली जाने वाली भाषा होनी चाहिए। परिणाम – इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1955 में प्रस्तुत की तथा इसके आधार पर संसद में राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 पारित किया गया और देश को 14 राज्यों एवं 6 संघ शासित क्षेत्रों में बाँटा गया। |
संघ शासित क्षेत्र जो बाद में राज्य बने
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NCERT Solutions Class 12th Political Science All Chapter Notes in hindi
- Chapter – 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ
- Chapter – 2 एक दल के प्रभुत्व का दौर
- Chapter – 3 नियोजित विकास की राजनीति
- Chapter – 4 भारत के विदेशी सम्बन्ध
- Chapter – 5 कांग्रेस प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापन
- Chapter – 6 लोकतान्त्रिक व्यवस्था का संकट
- Chapter – 7 जन आंदोलन
- Chapter – 8 क्षेत्रीय आकांक्षाये
- Chapter – 9 भारतीय राजनीति नए बदलाव
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