NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (Environment and Natural Resources)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) |
Chapter | 8th |
Chapter Name | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (Environment and Natural Resources) |
Category | Class 12th Political Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th Political Science Chapter – 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (Environment and Natural Resources) में हम, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन क्या है?, प्राकृतिक संसाधन क्या है इसका महत्व क्या है?,प्राकृतिक संसाधन कितने प्रकार के होते हैं?,पर्यावरण संसाधनों से आप क्या समझते हैं?,प्राकृतिक स्रोत क्या है?, प्राकृतिक संसाधन क्या होते हैं कुछ उदाहरण लिखिए?,प्राकृतिक संसाधन के तीन मुख्य प्रकार कौन से हैं?, भारत में कौन से प्राकृतिक संसाधन हैं के बारे में पढ़ेंगे।
NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 8 पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन (Environment and Natural Resources)
Chapter – 8
पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
Notes
पर्यावरण (Environment) – परी (ऊपरी) + आवरण (वह आवरण) जो बनस्पति तथा जीव जन्तुओं को ऊपर से ढके हुए है। |
प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources) – प्रकृति से प्राप्त मनुष्य के उपयोग के साधन। मानव जीवन का अस्तित्व, प्रगति एवं विकास संसाधनों पर निर्भर करती है। आदिकाल से मनुष्य प्रकृति से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त कर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता रहा है। वास्तव में संसाधन वे हैं जिनकी उपयोगिता मानव के लिये हो। |
विश्व में पर्यावरण प्रदूषण के उत्तरदायी कारक - जनसंख्या वृद्धि।
- वनो की कटाई।
- उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा।
- संसाधनों का अत्याधिक दोहन।
- औद्योगिकीकरण को बढ़ावा।
- परिवहन के अत्यधिक साधन।
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पर्यावरण आंदोलन (Environmental Movement) – पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर विभिन्न देशों की सरकारों के अतिरिक्त विभिन्न भागों में सक्रिय पर्यावरणीय कार्यकताओ ने अन्तर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर कई आंदोलन किये है जैसे – दक्षिणी देशों मैक्सिकों, चिले, ब्राजील, मलेशिया, इण्डोनेशिया, अफ्रीका और भारत के वन आंदोलन। ऑस्ट्रेलिया में खनिज उद्योगों के विरोध में आन्दोलन। थाइलैंण्ड, दक्षिण अफ्रीका, इण्डोनेशिया, चीन तथा भारत में बड़े बाँधों के विरोध में आंदोलन जिनमें भारत का नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रसिद्ध है। |
पर्यावरण प्रदूषण के संरक्षण के उपाय - जनसंख्या नियंत्रण।
- वन संरक्षण।
- पर्यावरण मित्र तकनीक का प्रयोग।
- प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित प्रयोग।
- परिवहन के सार्वजनिक साधनों का प्रयोग।
- जन जागरूकता कार्यक्रम।
- अर्न्तराष्ट्रीय सहयोग।
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वैश्विक तापन (Global Warming) – वायुमंडल के ऊपर ओजोन गैस की एक पतली सी परत है जिसमे से सूर्य की रोशनी छन कर पृथ्वी तक पहुँचती है यह सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से हमे बचाती है। इस गैस की परत में छेद हो गया है जिससे अब सूरज की किरणें सीधे पृथ्वी पर आ जाती है जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, हाइड्रो फ्लोरो कार्बन ये गैस ग्लोबल वार्मिंग प्रमुख कारण है। |
जलवायु परिवर्तन (Climate change) – ग्लेशियर की बर्फ तेजी से पिघल रही है जिसके कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है इससे जलवायु परिवर्तन हो रहा है। उन स्थान पर ज्यादा खतरा है जो समुद्र के किनारे बसे हैं। |
“लिमिट्स टू ग्रोथ” नामक पुस्तक (The Limits to Growth) – वैशिवक मामलो में सरोकार रखने वाले विद्वानों के एक समूह ने जिसका नाम है ( क्लब ऑफ़ रोम ) ने 1972 में एक पुस्तक “लिमिट्स टू ग्रोथ” लिखी। इस पुस्तक में बताया गया कि जिस प्रकार से दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है उसी प्रकार संसाधन कम होते जा रहे हैं। |
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण –- रियो सम्मेलन या पृथ्वी सम्मेलन
- क्योटो प्रोटोकॉल
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रियो सम्मेलन या पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) – 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन (Earth Summit) कहा जाता है। इस सम्मेलन में 170 देश, हजारों स्वयंसेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भाग लिया। |
रियो सम्मेलन या पृथ्वी सम्मेलन की विशेषताएँ और महत्व पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकार को इसी सम्मेलन में राजनितिक दायरे में ठोस रूप मिला। रियो-सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देश अर्थात उत्तरी गोलार्द्ध तथा गरीब और विकासशील देश यानि दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग-अलग एजेंडे के पैरोकार है। उत्तरी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत को नुकसान और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर थी जबकि दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्यादा चिंतित थे। रियो-सम्मेलन में जलवायु-परिवर्तन जैव-विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए । इसमें एजेंडा-21 के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाए गए। इसी सम्मेलन में ‘टिकाऊ विकास’ का तरीका सुझाया गया जिसमें ऐसी विकास की कल्पना की गयी जिसमें विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान न पहुंचे। इसे धारणीय विकास भी कहा जाता है। |
अजेंडा – 21 (Agenda – 21) – इसमे यह कहा गया कि विकास का तरीका ऐसा हो जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे। |
अजेंडा – 21 की आलोचना – इसमे कहा गया कि Agenda – 21 में पर्यावरण पर कम और विकास पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है । |
क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) – पर्यावरण समस्याओं को लेकर विश्व जनमानस के बीच जापान के क्योटो शहर में 1997 में इस प्रोटोकॉल पर सहमती बनी। 1992 में इस समझौते के लिए कुछ सिद्धांत तय किए गए थे और सिद्धांत की इस रूपरेखा यानी यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज पर सहमति जताते हुए हस्ताक्षर हुए थे। इसे ही क्योटो प्रोटोकॉल कहा जाता है। |
भारत और क्योटो प्रोटोकॉल – भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल (1997) पर हस्ताक्षर किये और इसका अनुमोदन किया। भारत, चीन और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकॉल की बाध्यताओं से छूट दी गई है क्योंकि औद्योगीकरण के दौर में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्शन के मामले में इनका कुछ खास योगदान नहीं था। औद्योगीकरण के दौर को मौजूदा वैश्विक तापवृद्धि और जलवायु-परिवर्तन का जिम्मेदार माना जाता है। |
“अवर कॉमन फ्यूचर” नामक रिपोर्ट की चेतावनी – 1987 में आई इस रिपोर्ट में जताया गया कि आर्थिक विकास के चालू तौर तरीके भविष्य में टिकाऊ साबित नही होगे। |
पर्यावरण को लेकर विकसित और विकासशील देशों का रवैया |
विकसित देश (Developed country) – उत्तर के विकसित देश पर्यावरण के मसले पर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में पर्यावरण आज मौजूद है। ये देश चाहते हैं कि पर्यावरण के संरक्षण में हर देश की जिम्मेदारी बराबर हो। |
विकासशील देश (Developing country) – विकासशील देशों का तर्क है कि विश्व में पारिस्थितिकी को नुकसान अधिकांशतया विकसित देशों के औद्योगिक विकास से पहुँचा है। यदि विकसित देशों ने पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है तो उन्हें इस नुकसान की भरपाई की जिम्मेदारी भी ज्यादा उठानी चाहिए। इसके अलावा, विकासशील देश अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं और जरुरी है कि उन पर वे प्रतिबंध न लगें जो विकसित देशों पर लगाये जाने हैं। |
साझी संपदा (Common property) – साझी संपदा उन संसाधनो को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार होता है। जैसे, मैदान, कुआँ या नदी। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष भी शामिल है। |
इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे –- अंटार्कटिका संधि (1959)
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987)
- अंटार्कटिका पर्यावरणीय प्रोटोकॉल (1991) हो चुके है।
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साझी परन्तु अलग अलग जिम्मेदारी – वैश्विक साझी संपदा की सुरक्षा को लेकर भी विकसित एवं विकासशील देशों का मत भिन्न है। विकसित देश इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी देशों में बराबर बाँटने के पक्ष में है। परन्तु विकासशील देश दो आधारों पर विकसित देशों की इस नीति का विरोध करते है:- पहला यह कि साझी संपदा को प्रदूषित करने में विकसित देशो की भूमिका अधिक है। दूसरा यह कि विकासशील देश अभी विकास की प्रक्रिया में है। अतः साझी संपदा की सुरक्षा के संबंध में विकसित देशों की जिम्मेदारी भी अधिक होनी चाहिए तथा विकासशील देशों की जिम्मेदारी कम की जानी चाहिए। |
वन प्रांतर – गाँवो, देहातो में कुछ जगह ऐसी होती है जो पवित्र माने जाते है ऐसा माना जाता है कि इन जगह पर देवी देवताओं का वास होता है इसलिए यहाँ के पेड़ को काटा नही जाता है यह परम्परा चाहे जो भी हो पर इन प्रथाओं के कारण पेड़-पौधों का बचाव हुआ है। |
भारत ने भी पर्यावरण सुरक्षा के विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अपना योगदान दिया है –- 2002 क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर एवं उसका अनुमोदन ।
- 2005 में जी-8 देशों की बैठक में विकसित देशों द्वारा की जा रही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी पर जोर।
- नेशनल ऑटो-फ्यूल पॉलिसी के अंर्तगत वाहनों में स्वच्छ ईधन का प्रयोग।
- 2001 में उर्जा सरंक्षण अधिनियम पारित किया।
- 2003 में बिजली अधिनियम में नवीकरणीय उर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया गया।
- भारत में बायोडीजल से संबंधित एक राष्ट्रीय मिशन पर कार्य चल रहा है।
- भारत SAARC के मंच पर सभी राष्ट्रों द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा पर एक राय बनाना चाहता है।
- भारत में पर्यावरण की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए 2010 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) की स्थापना की गई।
- भारत विश्व का पहला देश है जहाँ अक्षय उर्जा के विकास के लिए अलग मन्त्रालय है।
- कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में प्रति व्यक्ति कम योगदान (अमेरिका 16 टन, जापान 8 टन, चीन 6 टन तथा भारत 01.38 टन।
- भारत ने पेरिस समझौते पर 2 अक्टूबर 2016 हस्ताक्षर किये हैं।
- 2030 तक भारत ने उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35% कम करने का लक्ष्य रखा है।
- COP–23 में भारत वृक्षारोपण व वन क्षेत्र की वृद्धि के माध्यम से 2030 तक 2.5 से 3 विलियन टन Co2 के बराबर सिंक बनाने का वादा किया है।
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संसाधनों की भू-राजनीति – यूरोपीय देशों के विस्तार का मुख्य कारण अधीन देशों का आर्थिक शोषण रहा है। जिस देश के पास जितने संसाधन होगें उसकी अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी। |
इमारती लकड़ी (Timber) – पश्चिम के देशों ने जलपोतो के निर्माण के लिए दूसरे देशों के वनों पर कब्जा किया ताकि उनकी नौसेना मजबूत हो और विदेश व्यापार बढ़े। |
तेल भण्डार (Oil Reserves) – विश्व युद्ध के बाद उन देशों का महत्व बढ़ा जिनके पास यूरेनियम और तेल जैसे संसाधन थे। विकसित देशों ने तेल की निर्बाध आपूर्ति के लिए समुद्री मार्गो पर सेना तैनात की। |
जल (Water) – पानी के नियन्त्रण एवं बँटवारे को लेकर लड़ाईयाँ हुई। जार्डन नदी के पानी के लिए चार राज्य दावेदार है इजराइल, जार्डन, सीरिया एवं लेबनान। |
मूलवासी (Native) – संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1982 में ऐसे लोगों को मूलवासी बताया जो मौजूदा देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे थे तथा बाद में दूसरी संस्कृति या जातियों ने उन्हें अपने अधीन बना लिया, भारत में ‘मूलवासी’ के लिए जनजाति या आदिवासी शब्द का प्रयोग किया जाता है। 1975 में मूलवासियों का संगठन (World Council of Indigenous Peoples) बना। मूलवासियों की मुख्य माँग यह है कि इन्हें अपनी स्वतंत्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाए, दूसरे आजादी के बाद से चली आ रही परियोजनाओं के कारण इनके विस्थापन एवं विकास की समस्या पर भी ध्यान दिया जाए। |
NCERT Solution Class 12th समकालीन विश्व राजनीति Notes In Hindi