NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 2 दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 2 दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) 

TextbookNCERT
Class12th
SubjectPolitical Science (समकालीन विश्व राजनीति)
Chapter2nd
Chapter Name दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)
CategoryClass 12th Political Science
MediumHindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter – 2 दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity) Notes In Hindi जिसमे हम, दो ध्रुवीय विश्व का अंत, दो ध्रुवीयता, अमेरिका महाशक्ति कब बना?, प्रथम महाशक्ति, पांच महाशक्ति, शक्ति का मतलब, चीन के उदय, शीत युद्ध की प्रमुख विशेषता, शीत युद्ध की शुरुआत, प्रभुत्व का क्या अभिप्राय, दो ध्रुवीयता का अंत, गुटनिरपेक्ष आंदोलन आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 12th Political Science (समकालीन विश्व राजनीति) Chapter –  2 दो ध्रुवीयता का अंत (The End of Bipolarity)

Chapter – 2

दो ध्रुवीयता का अंत

Notes

बर्लिन दीवार (Berlin Wall) – बर्लिन की दीवार पूर्वी और पश्चिमी खेमे के बीच विभाजन की निशानी थी। यूरोप महाद्वीप में जर्मनी देश की राजधानी बर्लिन है। शीतयुद्ध के प्रतीक 1961 में बनी बर्लिन की दीवार को 9 नवंबर 1989 को जनता द्वारा तोड़ दिया गया था। यह 28 वर्ष तक खड़ी रही। तथा यह 150 KM लम्बी थी।

सोवियत संघ (U.S.S.R.) – 1917 की रूसी बोल्शेविक क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य संघ (U.S.S.R.) अस्तित्व में आया। सोवियत संघ में कुल मिलाकर 15 गणराज्य थे अर्थात 15 अलग-अलग देशों को मिलाकर सोवियत संघ का निर्माण किया गया था। सोवियत संघ का निर्माण गरीबों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया गया। इसे समाजवाद और साम्यवादी विचारधारा के अनुसार बनाया गया।

1) रूस
2) यूक्रेन
3) जॉर्जिया
4) बेलारूस
5) उज़्बेकिस्तान
6) आर्मेनिया
7) अज़रबैजान
8) कजाकिस्तान
9) किरतिस्थान
10) माल्डोवा
11) तुर्कमेनिस्तान
12) ताजीकिस्तान
13) लताविया
14) लिथुनिया
15) एस्तोनिया

सोवियत प्रणालीरूस में हुई 1917 की समाजवादी क्रांति के बाद समाजवादी सोवियत गणराज्य का निर्माण हुआ जिसका उद्येश्य एक समान अधिकार वाले समाज की स्थापना करना था। इस समाज में पूंजीवाद व निजी संपत्ति का अंत करके समानता की बुनियाद पर एक नए समाज की रचना करना था। इसी व्यवस्था को सोवियत प्रणाली कहा गया

सोवियत प्रणाली की विशेषताएं

  • सोवियत प्रणाली पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध तथा समाजवाद के आदर्शों से प्रेरित थी।
  • सोवियत प्रणाली में नियोजित अर्थव्यवस्था थी।
  • कम्यूनिस्ट पार्टी का दबदबा था।
  • न्यूनतम जीवन स्तर की सुविधा बेरोजगारी न होना।
  • उन्नत संचार प्रणाली थी।
  • मिल्कियत का प्रमुख रूप राज्य का स्वामित्व।
  • उत्पादन के साधनों पर राज्य का नियंत्रण था।
दूसरी दुनिया के देश – पूर्वी यूरोप के देशों को समाजवादी प्रणाली की तर्ज पर ढाला गया था, इन्हें ही समाजवादी खेमे के देश या दूसरी दुनिया कहा गया।

साम्यवादी सोवियत अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर

सोवियत अर्थव्यवस्था अमेरिका की अर्थव्यवस्था
राज्य द्वारा पूर्ण रूप से नियंत्रण होता है।राज्य का कम से कम हस्तक्षेप होता है। 
योजना के अनुसार अर्थव्यवस्था होती है। स्वतंत्र आर्थिक प्रतियोगिता पर आधारित होता है।
व्यक्तिगत पूंजी का अस्तित्व नहीं होता है।व्यक्तिगत पूंजी की महत्व होती है।
समाजवादी आदर्शो से प्रेरित होते है।अधिकतम लाभ के पूंजीवादी सिद्धांत को होता है।
उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व होता है।उत्पादन के साधनों पर बाजार का नियंत्रण होता है।
 मिखाइल गोर्बाचेव – 1980 के दशक में मिखाइल गोर्बाचेव ने राजनीतिक सुधारों तथा लोकतांत्रीकरण को अपनाया उन्होंने पुर्नरचना (पेरेस्त्रोइका) व खुलापन (ग्लासनोस्त) के नाम से आर्थिक सुधार लागू किए।
सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा – 1991 में बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में पूर्वी यूरोप के देशों ने तथा रूस, यूक्रेन व बेलारूस ने सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की। CIS (स्वतन्त्र राज्यों का राष्ट्रकुल) बना 15 नए देशों का उदय हुआ।
सोवियत संघ में कम्युनिस्ट शासन की कमियाँ – सोवियत संघ पर कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 सालों तक शासन किया और यह पार्टी अब जनता के जवाबदेह नहीं रह गई थी।

इसकी निम्नलिखित कमियाँ थी 

  • कम्युनिस्ट शासन में सोवियत संघ प्रशासनिक और राजनितिक रूप से धीमी गति से कार्य कर रहा था।
  • यहाँ भारी भ्रष्टाचार था तथा शासन व्यवस्था गलतियों को सुधारने में असफल थी।
  • विशाल देश में केंद्रीकृत शासन प्रणाली थी।
  • सत्ता का बागडोर खिसकता जा रहा था। कम्युनिष्ट पार्टी में कुछ तानाशाह प्रकृति के नेता भी थे जिनकों जनता से कोई मतलब नहीं था।
  • पार्टी के अधिकारियों को आम नागरिक से ज्यादा विशेषाधिकार मिले हुए थे।

सोवियत संघ के विघटन के कारण 

  • नागरिकों की राजनीतिक और आर्थिक इच्छाओं को पूरा न कर पाना।
  • सोवियत प्रणाली पर नौकरशाही का दबदबा।
  • कम्यूनिस्ट पार्टी का बुरा शासन।
  • सोवियत संघ ने अपना पैसा और संसाधन पूर्वी यूरोप के देशों में अधिक लगाया ताकि वह उनके ऊपर अपना नियंत्रण बनाये रखे।
  • लोगो को गलत जानकारी देना की सोवियत संघ विकास कर रहा है।
  • संसाधनों का अधिकतम उपयोग परमाणु हथियारों पर करना।
  • प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में पश्चिम के मुकाबले पीछे रहना।
  • रूस की प्रमुखता।
  • गोर्बाचेव द्वारा किए गए सुधारों का विरोध करना।
  • अर्थव्यवस्था धीमी थी तथा उपभोक्ताओं की वस्तुओं की कमी थी।
  • राष्ट्रवादी भावनाओं और स्वतंत्रता की इच्छाओं की मांग।
  • सोवियत प्रणाली का सत्तावादी होना पार्टी का जनता के प्रति जवाबदेह ना होना।

सोवियत संघ के विघटन के परिणाम 

  • शीतयुद्ध का संघर्ष समाप्त हो गया। 
  • दूसरी दुनिया का पतन हो गया।
  • एक ध्रुवीय विश्व अर्थात् अमरीकी वर्चस्व का उदय।
  • हथियारों की होड़ की समाप्ति सोवियत खेमे का अंत और 15 नए देशों का उदय।
  • विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्था ताकतवर देशों की सलाहकार बन गई।
  • रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना।
  • विश्व राजनीति में शक्ति संबंध परिवर्तित हो गए।
  • समाजवादी विचारधारा पर पूँजीवादी उदारवादी व्यवस्था का वर्चस्व।
  • शॉक थेरेपी को अपनाया गया।
  • उदारवादी लोकतंत्र का महत्व बढ़ा।
लोकतान्त्रिक राजनीति और लोकतंत्रीकरण

CIS (Commonwealth of Independent States) स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल – स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रकुल CIS-Commonwealth of Independent States 1991 में सोवियत संघ के पूर्व देशों के बीच बनाया गया एक अंतर सरकारी संगठन है आर्मीनिया, अजरबैजान, बेलारूस, इस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान।

CIS के सहयोग एवं कार्य

  • राजनीतिक क्षेत्र में
  • आर्थिक क्षेत्र में
  • पर्यावरण क्षेत्र में
  • मानवीय कार्य क्षेत्र में
  • सांस्कृतिक कार्य के क्षेत्र में

स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल का इतिहास (CIS) – 1991 में सोवियत संघ को भंग कर दिया गया था, जिसके कारण Commonwealth of Independent States (CIS) की नींव पड़ी। सीआईएस के संस्थापक राज्यों में बेलारूस, रूस और यूक्रेन शामिल हैं। (CIS) की बैठकें समय-समय पर CIS देशों की राजधानियों में आयोजित की जाती हैं मंचों में राज्य के प्रमुखों की परिषद, प्रधानमंत्रियों की परिषद और विदेश मंत्रियों की परिषद शामिल होती है।

भारत जैसे विकासशील देशों में सोवियत संघ के विघटन के परिणाम

  • विकासशील देशों की घरेलू राजनीति में अमेरिका को हस्तक्षेप का अधिक अवसर मिल गया।
  • कम्युनिस्ट विचारधारा को धक्का लगा।
  • विश्व के महत्वपूर्ण संगठनों पर अमेरिकी प्रभुत्व (I.M.F., World Bank)।
  •  बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत व अन्य विकासशील देशों में अनियंत्रित प्रवेश की सुविधा।

एक ध्रुवीय विश्व (A Polar World)

  •  विश्व में एक महाशक्ति का होना।
  •  1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय विश्व की स्थापना हुई।
  • उस वक्त विश्व में अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने वाला कोई देश नहीं था।
  • विश्व में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का बोलबाला हो गया क्योकि समाजवादी अर्थव्यवस्था असफल हो गयी।
  • अमेरिका का सैन्य खर्च और सैन्य प्रौद्योगिकी की गुणवत्ता का इतना अच्छा होना की विश्व में कोई भी देश उसको चुनौती नहीं दे सकता था।
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) और विश्व बैंक (World Bank) जैसे अन्तर्राष्ट्रीय संघटनो पर भी उसका वर्चस्व था।
  •  उसकी जींस, कोक, पेप्सी आदि विश्व भर की संस्कृतियों पर हावी हो रहे थे।
हथियारों की होड़ की कीमतसोवियत संघ ने हथियारों की होड़ में अमरीका को कड़ी टक्कर दी परन्तु प्रोद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे के मामले में वह पश्चिमी देशों से पिछड़ गया। उत्पादकता और गुणवता के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे छूट गया।

अफ़ग़ानिस्तान के बारे में

अफ़ग़ानिस्तान चारो तरफ जमीन से घिरा हुआ देश है।

अफ़ग़ानिस्तान के संस्थापक अहमद शाह या अहमद शाह दुर्रानी अब्दाली है।

यहाँ की जमीन बिलकुल भी उपजाऊ नहीं है यहां की जनसंख्या का 42% हिस्सा पश्तून, 27% हिस्सा ताजिक और कुछ हिस्सा उज्बेक, हज़ारा आदि है।

अफ़ग़ानिस्तान का संकट

सन 1978 में अफगानिस्तान की दाऊद खान की सरकार थी जिसने वहाँ की कम्युनिस्ट पार्टी (PDPA) People’s Democratic Party of Afghanistan द्वारा गिरा दिया जाता है।

(PDPA) पार्टी ने अफ़ग़ानिस्तान में भूमि सूधार शुरू किया जिसके तहत भूमि की एक अधिकतम सीमा को निर्धारित किया गया और निर्धारित सीमा से अधिक भूमि जिस भी व्यक्ति के पास थी उससे भूमि लेकर उस व्यक्ति को भूमि दी गई जिसके पास कम भूमि थी।

भूमि सुधार के फैसले से वहाँ पर विरोध हो गया लोगों ने सरकार के खिलाफ जिहाद शुरू कर दिया इससे ही अफ़ग़ानिस्तान संकट की शुरुआत होती है अफ़ग़ानिस्तान संकट दिसंबर 1979 से शुरू हुआ और फरवरी 1989 में समाप्ति हो गई।

अफगानिस्तान संकट एवं आक्रमण

जब ये विरोध बहुत ज्यादा बढ़ गया तब अफ़ग़ानिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी ने सोवियत संघ (उस वक्त यहां पर भी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था) से मदद मांगी।

सोवियत संघ ने 24 दिसंबर 1979 में अफ़ग़ानिस्तान में अपनी सेना को भेजा तालिबान ने अलकायदा (आतंकवादी संगठन) जिसके प्रमुख ओसामा बिन लादेन थे उसको समर्थन दे दिया।

1998 में केन्या और तंजानिया में अमेरिकी दूतावास पर हमले हुए इन हमलों के लिए अमेरिका ने अलकायदा को जिम्मेदार माना और अलकायदा के खिलाफ अमेरिका ने ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच शुरू कर दिया।

जिसमें अफगानिस्तान पर मिसाइलों से हमले किए गए थे।

9/11 हमले के बाद अमेरिकी सेना ने जब अलकायदा और तालिबान के खिलाफ कार्रवाई के लिए Operation Enduring Freedom चलाया तो उसके परिणामस्वरूप दिसंबर 2001 में अफ़ग़ानिस्तान तालिबान की सरकार गिर गयी और अफ़ग़ानिस्तान संकट 1979-89 की समाप्ति हो गयी।

 शॉक थेरेपी (Shock Therapy) शॉक थेरेपी शाब्दिक अर्थ है आघात पहुँचाकर उपचार करना। साम्यवाद के पतन के बाद सोवियत संघ के गणराज्यों को विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित साम्यवाद से पूंजीवाद की ओर संक्रमण (परिवर्तन) के मॉडल को अपनाने को कहा गया। इसे ही शॉक थेरेपी कहते है।

शॉक थेरेपी की विशेषताएँ 

  • मिल्कियत का प्रमुख रूप निजी स्वामित्व। राज्य की संपदा का निजीकरण।
  • सामूहिक फार्म को निजी फार्म में बदल दिया गया।
  • पूंजीवादी पद्धति से खेती की जाने लगी।
  • मुक्त व्यापार व्यवस्था को अपनाना।
  • मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता।
  • पश्चिमी देशों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ाव।
  • पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया गया।

शॉक थेरेपी के परिणाम 

  • पूरी तरह से रूस का औद्योगिक ढांचा चरमरा गया।
  • रूसी मुद्रा रूबल में गिरावट।
  •  समाज कल्याण की पुरानी व्यवस्था नष्ट हो गई।
  • सरकारी रियायत खत्म हो गई ज्यादातर लोग गरीब हो गए।
  • 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कम्पनियों को कम दामों (औने-पौने) में बेचा गया जिसे इतिहास का सबसे बड़ी गराज सेल कहा जाता है।
  •  आर्थिक विषमता बढ़ी।
  • खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ।
  •  माफिया वर्ग का उदय।
  • अमीर और गरीब के बीच तीखा विभाजन हो गया।
  •  कमजोर संसद व राष्ट्रपति को अधिक शक्तियाँ जिससे सत्तावादी राष्ट्रपति शासन।
गराज सेल (Garage Cell) शॉक थेरेपी से उन पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई जिनमें पहले साम्यवादी शासन थी। रूस में, पूरा का पूरा राज्य-नियंत्रित औद्योगिक ढाँचा चरमरा उठा। लगभग 90 प्रतिशत उद्योगों को निजी हाथों या कंपनियों को बेचा गया। आर्थिक ढाँचे का यह पुनर्निर्माण सरकार द्वारा निर्देशित औद्योगिक नीति के बजाय बाजार की ताकतें कर रही थीं, इसलिए यह कदम सभी उद्योगों को मटियामेट करने वाला साबित हुआ। इसे ‘इतिहास की सबसे बड़ी गराज सेल’ के नाम से जाना जाता है।

गराज सेल जैसी हालात उत्पन्न होने का कारण 

  • महत्त्वपूर्ण उद्योगों की कीमत कम से कम करके आंकी गई और उन्हें औने-पौने दामों में बेच दिया गया।
  • हालाँकि इस महा-बिक्री में भाग लेने के लिए सभी नागरिकों को अधिकार-पत्र दिए गए थे, लेकिन अधिकांश नागरिकों ने अपने अधिकार पत्र कालाबाजारियों के हाथों बेच दिये क्योंकि उन्हें धन की जरुरत थी।
  • रूसी मुद्रा रूबल के मूल्य में नाटकीय ढंग से गिरावट आई। मुद्रास्फीति इतनी ज्यादा बढ़ी कि लोगों की जमापूँजी जाती रही।
संघर्ष व तनाव के क्षेत्र –  पूर्व सोवियत संघ के अधिकांश गणराज्य संघर्ष की आशंका वाले क्षेत्र है। इन देशों में बाहरी ताकतों की दखलंदाजी भी बढ़ी है। रूस के दो गणराज्यों चेचन्या और दागिस्तान में हिंसक अलगाववादी आन्दोलन चले। चेकोस्लोवाकिया दो भागों-चेक तथा स्लोवाकिया में बंट गया।

अरब स्प्रिंग (Arab Spring) – 21 वीं शताब्दी में पश्चिम एशियाई देशों में लोकतंत्र के लिए विरोध प्रदर्शन और जन आंदोलन शुरू हुए इसी आंदोलन को अरब स्प्रिंग के नाम से जाना जाता है इसकी शुरुआत ट्यूनीशिया में 2010 में मोहम्मद बउज़िज़ी के आत्मदाह के साथ हुई। इसकी आग की लपटें पहले-पहले अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आस-पास के क्षेत्र में फैल गई इन विरोध प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा।

बहरीन, सीरिया, अल्जीरिया, इराक, सूडान, कुवैत,मोरक्को तथा इजरायल में भारी जनविरोध हुए, तो वहीं मैरितानिया, ओमान, सऊदी अरब, पश्चिमी सहारा तथा फिलिस्तीन भी इससे अछूते न रहे। हालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी,परंतु इनके विरोध प्रदर्शनों के तौर-तरीके में कई समानताएँ थीं जैसे- हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली। विशेषज्ञों के मुताबिक अरब स्प्रिंग की मुख्य वजह आम जनता की वहाँ की सरकारों से असंतोष एवं आर्थिक असमानता थीं। इनके अलावा तानाशाही, मानवाधिकार उल्लंघन, राजनैतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बदहाल अर्थव्यवस्था एवं स्थानीय कारण भी प्रमुख थे।

विरोध प्रदर्शन के तरीके 

(i) हड़ताल
(ii) धरना
(iii) मार्च
(iv) रैली

विरोध का कारण 

(i) जनता का असंतोष
(ii) गरीबी
(iii) तानाशाही
(iv) मानव अधिकार उल्लंघन
(v) भ्रष्टाचार
(vi) बेरोजगार

प्रथम खाड़ी युद्ध (First Gulf  War)

  • प्रथम खाड़ी युद्ध (Gulf war) 2 अगस्त 1990 से 28 फरवरी 1991 के बीच लड़ा गया था।
  • खाड़ी युद्ध 34 संयुक्त देशों और इराक के बीच में हुआ था।
  • 1990 में इराक ने कुवैत पर हमला कर के उस पर कब्जा कर लिया था।
  • इराक ने कुवैत पर हमला उसके खनिज और तेल के भंडार के लिए किया था।
  • प्रथम खाड़ी युद्ध का यह उदेश्य था कि इराक से कुवैत को आज़ाद करवाना।

द्वितीय खाड़ी युद्ध (Second Gulf  War)

  • द्वितीय खाड़ी युद्ध (Second Gulf war) 19 मार्च 2003 को लड़ा गया था।
  • द्वितीय खाड़ी युद्ध अमेरिका और इराक के बीच में हुआ था।
  • द्वितीय खाड़ी युद्ध में 40 देशों से भी ज्यादा देश शामिल थे।
  • इस युद्ध में अमेरिका असफल रहा और इस युद्ध से इराक कि आम जनता अमेरिका के खिलाफ भड़क उठी जिसमे अमेरिका के लगभग 3000 सैनिक मारे गए।
  • इस युद्ध का पहला उदेश्य इराक में मौजूद तेल भंडार पर कब्जा करना और दूसरा उदेश्य इराक में अमेरिका अपनी मन चाहा सरकार को स्थापित करना चाहता था।

खाड़ी युद्ध के कारण – खाड़ी युद्ध के दो कारण थे

  • खाड़ी युद्ध का पहला कारण कुवैत को इराक से आज़ाद कराना था।
  • खाड़ी युद्ध का दूसरा कारण इराक में मौजूद तेल के भंडार पर कब्जा करना था।
बाल्कन क्षेत्र (Balkan Region) – बाल्कन गणराज्य यूगोस्लाविया गृहयुद्ध के कारण कई प्रान्तों में बँट गया। जिसमें शामिल बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोएशिया ने अपने को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
 बाल्टिक क्षेत्र (Baltic Region) – बाल्टिक क्षेत्र के लिथुआनिया ने मार्च 1990 में अपने आप को स्वतन्त्र घोषित किया। एस्टोनिया , लताविया और लिथुआनिया 1991 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के सदस्य बने। 2004 में नाटो में शामिल हुए।
 मध्य एशिया (Central Asia) – मध्य एशिया के तज़ाकिस्तान में 10 वर्षों तक यानी 2001 तक गृहयुद्ध चला। अज़रबैजान, अर्मेनिया, यूक्रेन, किरगिझस्तान, जार्जिया में भी गृहयुद्ध की स्थिति हैं। मध्य एशियाई गणराज्यों में पेट्रोल के विशाल भंडार है। इसी कारण से यह क्षेत्र बाहरी ताकतों और तेल कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है।
पूर्व साम्यवादी देश और भारत 

पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे है, रूस के साथ विशेष रूप से प्रगाढ़ है।

दोनों का सपना बहुध्रवीय विश्व का है।

दोनों देश सहअस्तित्व, सामूहिक सुरक्षा, क्षेत्रीय सम्प्रभुता, स्वतन्त्र विदेश नीति, अन्तराष्ट्रीय झगड़ों का वार्ता द्वारा हल, संयुक्त राष्ट्रसंघ के सुदृढ़ीकरण तथा लोकतंत्र में विश्वास रखते है।

2001 में भारत और रूस द्वारा 80 द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर भारत रूसी हथियारों का खरीददार।

रूस से तेल का आयात। परमाण्विक योजना तथा अंतरिक्ष योजना में रूसी मदद।

कजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ उर्जा आयात बढ़ाने की कोशिश।

गोवा में दिसम्बर 2016 में हुए ब्रिक्स (BRICS) सम्मलेन के दौरान रूस-भारत के बीच हुए 17 वें वार्षिक सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतीन के बीच रक्षा, परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष अभियान समेत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने एवं उनके लक्ष्यों की प्राप्ति पर बल दिया गया।

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