NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 7 संघवाद (Federalism) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 7 संघवाद (Federalism) 

TextbookNCERT
Class11th
SubjectPolitical Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार)
Chapter7th
Chapter Nameसंघवाद
CategoryClass 11th Political Science
Medium Hindi
SourceLast Doubt
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NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धान्त और व्यवहार) Chapter – 7 संघवाद (Federalism) 

Chapter – 7

संघवाद

Notes

संघवाद का अर्थ – साधारण शब्दों में कहें तो संघवाद संगठित रहने का विचार है। (संघ = संगठन + वाद = विचार)
संघवाद – ‘संघवाद ‘एक संस्थागत प्रणाली है जिसमें दो स्तर की राजनीतिक व्यवस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है, इसमें एक संधीय (केन्द्रीय) स्तर की सरकार और दूसरी प्रांतीय (राज्यीय) स्तर की सरकारें होती है।
भारतीय संविधान में संघवाद

(i) संविधान के अनुच्छेद – 1 में भारत को ‘राज्यों का संघ‘ कहा गया है।

(ii) भारत में जो संघवाद अपनाया गया है, उसका आधार राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान आन्दोलन कर्ताओं के द्वारा लिए उस फैसले का परिणाम है कि जब देश आजाद होगा तब विशाल भारत देश पर शासन करने के लिए शक्तियों को प्रांतीय और केन्द्रीय सरकारों के बीच बांटेगे। आज संविधान में ऐसा ही है।
भारतीय संघवाद की विशेषताएँ

(i) भारत में तीन स्तर (केन्द्रीय स्तर, राज्य तथा स्थानीय स्तर की सरकारें है।
(ii) लिखित संविधान।
(iii) शक्तियों का विभाजन (संघ सूची – 97) (राज्य सूची – 66), (समवर्ती सूची – 47) + अवशिष्ट शक्तियों।
(iv) स्वतंत्र न्यायपालिका।
(v) संविधान की सर्वोच्चता।

शक्ति विभाजन – भारतीय संविधान में दो तरह की सरकारों की बात मानी गई है पहला संघीय सरकार यानी केन्द्रीय सरकार तथा दूसरी प्रांतीय जो की राज्य सरकार कहलाती है। संविधान के अनुच्छेद 245-255 में संघ तथा राज्यों के बीच विधायी शक्तियों के वितरण का घोषणा पत्र है। संघीय सरकार के पास राष्ट्रीय महत्व के तो प्रांतीय सरकार के पास प्रांतीय महत्व के विषय हैं।
भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षण

(i) संविधान सर्वोच्च हैं कोई भी शक्ति संविधान से ऊपर नहीं हैं सभी संविधान के दायरे में रह कर ही कार्य करेंगे।
(ii) भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका हैं जो सरकार को तानाशाह नहीं होने देता हैं।
(iii) भारत में तीन स्तर की सरकारें हैं। (केंद्रीय स्तर, राज्य स्तर और स्थानीय स्तर)
(iv) संविधान संशोधन प्रणाली।
भारतीय संविधान में संघात्मक लक्षणों के साथ ही एकात्मक लक्षण भी है जो निम्न

(i) इकहरी नागरिकता।
(ii) शक्ति विभाजन में संघीय ( केन्द्रीय ) पक्ष अन्य से अधिक ताकतवर।
(iii) संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान।
(iv) एकीकृत न्यायपालिका।
(v) आपातकाल में एकात्मक शासन (केन्द्र शक्तिशाली)
(vi) राज्यों में राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति।
(vii) इकहरी प्रशासकीय व्यवस्था (अखिल भारतीय सेवाएं – IAS)
(viii) संविधान संशोधन में संघीय सरकार का महत्त्व।
भारतीय संघ में सशक्त केंद्रीय सरकार – भारत एक विशाल एवं विविधताओं से भरा हुआ देश हैं। संविधान निर्माताओं को यह आशा थी कि इतने विशाल देश को सशक्त केंद्रीय सरकार द्वारा ही नियंत्रित किया जा सकता हैं। देश में आजादी के समय 500 से अधिक देशी रियासतें थी जिनका विलय सक्त केंद्रीय सरकार द्वारा ही किया जा सका था।
भारतीय संघीय व्यवस्था में तनाव – केन्द्र–राज्य संबंध–संविधान में केन्द्र को अधिक शक्ति प्रदान करने पर अक्सर राज्यों द्वारा विरोध किया जाता है। और राज्य निम्नलिखित मांगे करते है।
1. केन्द्र-राज्य संबंध – राज्य समय-समय पर केंद्र सरकार और अधिक अधिकारों व स्वायत्ता की मांग करते रहते हैं जो निम्न रूपों में हैं

(क) वित्तीय स्वायत्ता – राज्यों के आय के साधन सीमित हैं और संसाधनों पर नियंत्रण भी सीमित ही हैं अतः राज्य सरकार आय के मामलों में और अधिक स्वायत्ता की मांग करते रहते हैं।

(ख) प्रशासनिक स्वायत्ता – राज्य सरकार दैनिक प्रशासन के मामलों में औरअधिक स्वायत्ता चाहते हैं राज्य केंद्र सरकार से और अधिकार व शक्तियां चाहते हैं ।

(ग) सांस्कृतिक और भाषाई मुद्दे – काफी राज्य हिंदी भाषा का विरोध करते हैं तथा उनके राज्य में प्रचलित भाषा को ही प्रोत्साहन देते हैं।
2. राज्यपाल की भूमिका तथा राष्ट्रपति शासन

(क) राष्ट्रपति राज्य सरकारों से परामर्श किये बिना ही राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति कर देता हैं जो राज्यों के दैनिक कार्यों में कई बार अनावश्यक हस्तक्षेप करते हैं।

(ख) केंद्र सरकार राज्यपाल पर दबाव डालकर राज्यों में अनुच्छेद 356 के माध्यम अनुचित राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है।
3. नए राज्यों की मांग – भारतीय संघीय व्यवस्था में समय – समय पर नवीन राज्योंकी मांग उठती रहती हैं जिसे राजनैतिक कारणों से संघ व राज्यों में तनाव बढ़ता है।
4. अन्तर्राज्यीय विवाद

(क) संघीय व्यवस्था में दो या दो से अधिक राज्यों में विवाद होता रहता हैं जैसे बेलगांव को लेकर कर्नाटक व महाराष्ट्र में सीमा विवाद।

(ख) दो या दो से अधिक राज्यों में नदियों के पानी के बंटवारें को लेकर विवादहोता रहता हैं, जैसे – कर्नाटक व तमिलनाडु में कावेरी नदी जल विवाद चल रहा है।
5. विशिष्ट प्रावधान – संविधान के अनुच्छेद 371 से 371 (झ) तक में नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा को विशेष दर्जा दिया गया हैं।

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