NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 6 न्यायपालिका (Judiciary) Notes In Hindi

NCERT Solution Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 6 न्यायपालिका (Judiciary)

TextbookNCERT
Class11th
SubjectPolitical Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार)
ChapterChapter – 6
Chapter Nameन्यायपालिका
CategoryClass 11th Political Science
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 6 न्यायपालिका (Judiciary) Notes In Hindi न्यायपालिका कितने अंग होते हैं?, न्यायपालिका क्या है और इसका कार्य क्या है?, न्यायालय से आप क्या समझते हैं?, न्यायपालिका के तीन कार्य क्या है?, न्यायपालिका की नियुक्ति कौन करता है?, भारत में न्यायपालिका क्या है?, न्यायपालिका के कितने कार्य हैं?, न्यायपालिका का पहला कार्य क्या है?, न्यायपालिका की नियुक्ति क्या है?, न्यायपालिका कौन से भाग में है?, रिट कितने प्रकार के होते हैं?, न्यायपालिका की स्थापना कब हुई?, भारत में न्यायपालिका कितने प्रकार की है?, वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश कौन है?, भारत में न्यायपालिका का मुखिया कौन है?, भारत में कितने सुप्रीम कोर्ट हैं?, मजिस्ट्रेट और जज में क्या अंतर होता है?, भारतीय न्यायपालिका का जनक कौन है?, भारत में कुल कितने जज हैं?, कुल कितने मुख्य न्यायाधीश हैं?, जज बनने की उम्र क्या है?, कानून का जनक कौन है?

NCERT Solution Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 6 न्यायपालिका (Judiciary)

Chapter – 6

न्यायपालिका

Notes

अध्याय के मुख्य बिंदु

(1) स्वतंत्र न्यायपालिका की आवश्यकता।
(2) न्यायालय की संरचना।
(3) सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार न्यायिक पुनरावलोकन।
(4) न्यायिक सक्रियता।
(5) न्यायपालिका तथा अधिकार।
(6) न्यायपालिका तथा संसद।

न्यायाधीश

(i) न्यायपालिका जो की सरकार का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है, जिसे विभिन्न व्यक्तियों या निजी संस्थाओं ने आपसी विवादों को हल करने वाले पंच के रूप में देखा है और यह कानून के शासन की रक्षा और कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करने में सहायता करता है। इसके लिए यह जरूरी है कि न्यायपालिका किसी भी राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र निर्णय ले सकें। न्यायपालिका देश के संविधान में लोकतांत्रिक परम्परा और जनता के प्रति जवाबदेह होता है।

(ii) न्यायपालिका के कार्यों में किसी प्रकार की बाधा ना पहुँच पाए और न्यायपालिका ठीक प्रकार से कार्य कर सकें ऐसा कार्य विधायिका और कार्यपालिका को करने के लिए सौपा जाता है।

(iii) न्यायाधीशबिना किसी के दवाब और भय या भेदभाव के अपना कार्य करने का अधिकार है।

(iv) न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए व्यक्ति को वकालत का अनुभव या कानून का विशेषज्ञ होना चाहिए। इनका निश्चित कार्यकाल होता है। ये सेवा निवृत्त होने तक अपने पद पर बने रहते है। विशेष स्थितियों में न्यायधीशों को हटाया जा सकता है।

(v) न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका पर वित्तीय रूप से निर्भर नहीं है।

न्यायाधीश की नियुक्ति

(i) मंत्रिमंडल, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश – ये सभी न्यायिक नियुक्ति की प्रक्रिया को प्रभावित करते है।

(ii) मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के संदर्भ में यह परंपरा भी है कि सर्वोच्च न्यायलय के सबसे वरिष्ठ न्यायधीश को मुख्य न्यायधीश चुना जाता है किन्तु भारत में इस परम्परा को दो बार तोड़ा भी गया है।

(iii) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायधीश की सलाह से करता है। ताकि न्यायलय की स्वतंत्रता व शक्ति संतुलन दोनों बने रहे।

न्यायपालिका की पिरामिड रूपी सरंचना

(i) सर्वोच्च न्यायालय
(ii) उच्च न्यायालय
(iii) जिला न्यायालय
(iv) अधीनस्थ न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार – आरंभिक क्षेत्राधिकार

1. मौलिक अधिकार – केन्द्र व राज्यों के बीच विवादों का निपटारा।
2. रिट – मौलिक अधिकारों का संरक्षण, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धित विवाद।
3. अपीलीय – दीवानी फौजदारी व संवैधानिक सवालों से जुड़े अधीनस्थ न्यायलयों के मुकदमों पर अपील सुनना।
4. सलाहकारी – जनहित के मामलों तथा कानून के मसलों पर राष्ट्रपति को सलाह देना।

विशेषाधिकार

(1) किसी भारतीय अदालत के दिये गये फैसले पर स्पेशल लीव पिटीशन के तहत अपील पर सुनवाई।

(2) भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जन हित याचिका या सामाजिक व्यवहार याचिका रही है।

(3) 1979-80 के बाद जनहित याचिकाओं और न्यायिक सक्रियता के द्वारा न्यायधीश ने उन मामलें में रूचि दिखाई जहां समाज के कुछ वर्गों के लोग आसानी से अदालत की सेवाएँ नहीं ले सकते । इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु न्यायलय ने जन सेवा की भावना से भरे नागरिक, सामाजिक संगठन और वकीलों को समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों की ओर से याचिकाएं दायर करने को इजाजत दी।

(4) न्यायिक सक्रियता ने न्याय व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाया और कार्यपालिका उत्तरदायी बनने पर बाध्य हुई।

(5) चुनाव प्रणाली को भी ज्यादा मुक्त और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया।

(6) चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की अपनी संपत्ति आय और शैक्षणिक योग्यताओं के संबंध में शपथ पत्र देने का निर्देश दिया, ताकि लोग सही जानकारी के आधार पर प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकें।

सक्रिय न्यायपालिका का नकारात्मक पहलू

(i) न्यायपालिका में काम का बोझ बढ़ा।

(ii) न्यायिक सक्रियता से विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों के बीच अंतर करना मुश्किल हो गया जैसे – वायु और ध्वनि प्रदूषण दूर करना, भ्रष्टाचार की जांच व चुनाव सुधार करना इत्यादि विधायिका की देखरेख में प्रशासन को करना चाहिए।

(iii) सरकार का प्रत्येक अंग एक-दूसरे की शक्तियों और क्षेत्राधिकार का सम्मान करें।

न्यायिक पुनराक्लोकन का अधिकार

(i) न्यायिक पुनरावलोकन का अर्थ है कि सर्वोच्च न्यायलय किसी भी कानून की संवैधानिक जांच कर सकता है यदि यह संविधान के प्रावधान के तो उसे गैर-संवैधानिक घोषित कर सकता है।

(ii) संघीय संबंधी (केंद्र-राज्य संबंध) के मामलें में भी सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

(iii) न्यायपालिका विधायिका द्वारा पारित कानूनों की और संविधान की व्याख्या करती हैं तथा प्रभावशाली ढंग से संविधान की रक्षा करती है।

(iv) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है।

(v) जनहित याचिकाओं द्वारा नागरिकों के अधिकारी की रक्षा ने न्यायपालिका की शक्ति में बढ़ोतरी की है।

न्यायपालिका और संसद

(i) भारतीय संविधान में सरकार के प्रत्येक अंग का एक स्पष्ट कार्यक्षेत्र है। इस कार्य विभाजन के बावजूद संसद व न्यायपालिका तथा कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव भारतीय राजनीति की विशेषता रही है।

(ii) संपत्ति का अधिकार

(iii) ससद की संविधान को संशोधित करने की शक्ति के संबंध में।

(iv) इनके द्वारा मौलिक अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता।

(v) निवारक नजरबंदी कानून।

(vi) नौकरियों में आरक्षण संबंधी कानून।

1973 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

(i) संविधान का एक मूल ढांचा है और संसद सहित कोई भी इस मूल ढांचें से छेड़-छाड़ नहीं कर सकती। संविधान संशोधन द्वारा भी इस मूल ढाँचें को नहीं बदला जा सकता।

(ii) संपत्ति के अधिकार के विषय में न्यायलय ने कहा कि यह मूल ढाँचें का हिस्सा नहीं है उस पर समुचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

(iii) न्यायलय ने यह निर्णय अपने पास रखा कि कोई मुद्दा मूल ढांचे का हिस्सा है या नहीं यह निर्णय संविधान की व्याख्या करने की शक्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है।

(iv) संसद व न्यायपालिका के बीच विवाद के विषय बने रहते है । संविधान यह व्यवस्था करती है कि न्यायधीशों के आचरण पर संसद में चर्चा नहीं की जा सकती लेकिन कुछ अवसरों पर न्यायपालिका के आचरण पर उंगली उठाई गई है। इसी प्रकार न्यायपालिका ने भी कई अवसरों पर विधायिका की आलोचना की है।

(v) लोकतंत्र में सरकार के एक अंग का दूसरे अंग की सत्ता के प्रति सम्मान बेहद जरूरी है।

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