NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 5 विधायिका (Legislature) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 5 विधायिका (Legislature)

TextbookNCERT
Class 11th
Subject Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार)
Chapter5th
Chapter Nameविधायिका (Legislature)
CategoryClass 11th Political Science
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 5 विधायिका (Legislature) Question Answer In Hindi विधायिका किसे कहते हैं?, विधायिका में कौन कौन आते हैं?, विधायिका के अंग क्या क्या है?, विधायिका का मुख्य कार्य क्या है?, विधायी उदाहरण क्या है?, विधायी की सबसे अच्छी परिभाषा क्या है?, विधायिका का दूसरा नाम क्या है?, विधायिका कितने प्रकार की होती है?, विधायिका के कितने भाग हैं?, भारत में विधायिका के दो प्रकार कौन से हैं?, विधायिका कैसे बनाई जाती है?, विधायी के दो प्रकार क्या हैं?, विधायिका और न्यायपालिका में क्या अंतर है?, तीन विधान क्या हैं?, संसद में कितने अंग होते हैं?, विधान में कुल कितनी धाराएं हैं?, संविधान के भाग कितने हैं?, भारत के संविधान का पिता कौन है?, संविधान को लिखने वाला कौन था?, संविधान में तीन अंग कौन से हैं?

NCERT Solutions Class 11th Political Science (भारत का संविधान : सिद्धांत और व्यवहार) Chapter – 5 विधायिका (Legislature)

Chapter – 5

विधायिका

Notes

अध्याय के मुख्य बिन्दु

(i) विधायिका की आवश्यकता।
(ii) संसद के दोनों सदन।
(iii) संसद के कार्य।
(iv) कानून निर्माण।
(v) संसद की समितियां कार्यपालिका पर नियंत्रण।

विधायिका – विधायिका (Legislature) या विधानमंडल किसी राजनैतिक व्यवस्था के उस संगठन या ईकाई को कहते है, जिसे क़ानून व जन-नीतियाँ बनाने, बदलने व हटाने का अधिकार होता है।

(i) संघ की विधायिका को संसद कहा जाता है, यह राष्ट्रपति और दो सदन सबसे पहला राज्य परिषद जो की राज्य सभा कहते है और जनता का सदन जो की लोक सभा कहलाते है, क्योंकि राज्यों की विधायिका को विधानमंडल या विधानसभा भी कहते हैं।

(ii) लोकतंत्रीय शासन में विधायिका का महत्व बहुत अधिक होता है। भारत में संसदीय शासन प्रणाली अपनायी गयी है, जो कि ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित हैं।

संसद – ‘संसदीय’ शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे ‘संसद’ कहते हैं। भारतीय लोकतंत्र में संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है। इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है। संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है और जनमत सर्वोपरि मानी जाती है।

(i) लोकसभा (निम्न सदन)
(ii) राज्यसभा (उच्च सदन)

लोकसभा (निम्न सदन) – लोक सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा सीधे वोट डालकर किया जाता है। जिसे 18 साल और उससे अधिक आयु का हर एक भारतीय नागरिक मतदान करने का हकदार होगा। लोक सभा के अधिकतम 530 सदस्य राज्यों से चुनाव क्षेत्रों की प्रत्यक्ष रीति से चुने जाएंगे।

राज्यसभा (उच्च सदन) – जैसा कि इसके नाम से पता चल रहा होगा राज्यसभा राज्यों की परिषद है। यह अप्रत्यक्ष नीतियों से लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। राज्यसभा के सदस्य का चुनाव राज्य विधान सभाओं के चुने हुए विधायक करते हैं। प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादातर उसकी जनसंख्या पर निर्भर करती है।

सरकार के तीन अंग

(i) विधायिका
(ii) कार्यपालिका
(iii) न्यायपालिका

विधायिका का कार्य – विधायिका का प्रमुख कार्य जो की कानून बनाना और बजट को पारित करना है। ब्रिटेन और भारत में विधायिका मंत्रियों को सीधे-सीधे नियंत्रित करने का अधिकार विधायिका का होता है क्योंकि निचला सदन जो लोक सभा के नाम से जाना जाता है वह प्रधानमंत्री तथा मंत्रीपरिषद को हटा सकता है। एवं विधायिकाओं को कुछ निर्वाचन शक्तियाँ भी प्राप्त हैं।

कार्यपालिका का कार्य – यह देश की अखंडता और एकता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने का कार्य करती है। कार्यपालिका राज्य की विदेश नीति भी बनाती है और विदेशी संबंधों का संचालन भी करती है। कार्यपालिका है वो कानून बनाने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वह कर कम कर सकता है, कर को लगा सकता है या समाप्त कर सकता है।

न्यायपालिका का कार्य – न्याय अधिनिर्णयन का कार्य-

1. विधायिका का चुनाव जनता द्वारा होता है। इसलिए जनता का प्रतिनिधी बनकर न्यायपालिका के पद पर आसीन व्यक्ति कानून का निर्माण करता है। इसकी बहस विरोध, प्रदर्शन, बहिर्गमन, सर्वसम्मति, सरकार और सहयोग आदि अत्यंत जीवन्त बनाए रखती है।

2. संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार भारतीय संसद में दो सदनों के साथ-साथ राष्ट्रपति को भी सम्मिलित किया गया हैं।

3. द्विसदनात्मक राष्ट्रीय विधायिका का पहला लाभ समाज के सभी वर्गो और देश के सभी क्षेत्रों को समुचित प्रतिनिधित्व दे सकें। दूसरा लाभ संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो इसका भी निर्णय न्यायपालिका का होता है।

4. भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्यसभा एवं इसके अधिकतम 250 सदस्य होते है जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत और 238 स्दस्य राज्यों द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव द्वारा निर्वाचित होते हैं। इनका निर्वाचन कार्य 6 वर्ष के उपर्रान्त पर किया जाता है। राज्य सभा एक स्थायी सदन है। जिसमे प्रत्येक 2 वर्ष बाद इसके एक तिहाई सदस्यों का चुनाव होता है। मनोनीत सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला, समाज सेवा, खेल आदि क्षेत्रों से लिए जाते है।

5. अमेरिका के द्वितीय सदन जिसे सीनेट कहा जाता है इस में प्रत्येक राज्य को समान प्रतिनिधित्व दिया गया है, भारत में अधिक जनसंख्या वाले राज्य को अधिक व कम जनसंख्या वाले राज्य को कम प्रतिनिधित्व चुनने का अधिकार दिया गया है। राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यताएं।

(i) वह भारत का नागरिक हो।
(ii) 30 वर्ष की आयु का हो।

6. इनका निर्वाचन एकल संक्रमणीय अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होता है।

7. 1951 के जन-प्रतिनिधि कानून के अनुसार राज्यसभा या लोकसभा के उम्मीदवार का नाम किसी न किसी संसदीय निर्वाचक क्षेत्र में पंजीकृत होना आवश्यक है।

वित्तीय शक्तियाँ

(i) वित्त विधेयक पर राज्यसभा 14 दिन तक विचार कर सकता है।
(ii) संविधान-संशोधन संबंधी शक्तियां।
(iii) प्रशासनिक शक्तियां – मंत्रियों से उनके विभागों के संबंध में प्रश्न राज्यसभा में जो पूछे जा सकते है।
(iv) अन्य शक्तियाँः चुनाव, महाभियोग, आपात स्थिति की घोषणा न्यायधीश को उसके पद से हटाया जाना इत्यादि पर दोनों सदनों पर अनुमति जरूरी है।

1. लोकसभा भारतीय संसद का निम्न सदन है । इसमे अधिकतम 550 सदस्य हो सकते है। वर्तमान में लोकसभा के 543 निर्वाचित सदस्य है और दो सदस्य (एंग्लो इंडियन) को राष्ट्रपति मनोनीत कर सकता है। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता हैं इसका कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित है परंतु उसे समय से पहले भी भंग किया जा सकता है।

2. भारत में संसदीय शासन प्रणाली होने के कारण लोकसभा अधिक शक्तिशाली है क्योंकि इसके सदस्यों का निर्वाचन प्रत्यक्ष रूप से होता है। इसे कार्यपालिका को हटाने को शक्ति भी प्राप्त है।

संसद के प्रमुख कार्य

1. कानून बनाना।
2. कार्यपालिका पर नियंत्रण।
3. वित्तीय कार्यः बजट पारित करना।
4. संविधान संशोधन।
5. चुनाव संबंधी कार्य, न्यायिक कार्य।
6. प्रतिनिधित्व।
7. बहस का मंच।
8. विदेश नीति पर नियन्त्रण।
9. विचारशील कार्य।

(i) लोकसभा की विशेष शक्ति धन विधेयक प्रस्तुत करना उसे संशोधित व अस्वीकार कर सकती है।
(ii) मंत्रिपरिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है।

विधेयक प्रस्तावित कानून का प्रारूप अनुच्छेद 107-112 कानून निर्माण

(i) सरकारी विधेयक
(ii) गैर सरकारी विधेयक

सरकारी विधेयक – जो मंत्रियों द्वारा पेश किए जाते है।

(i) धन विधेयक
(ii) संविधान विधेयक
(iii) संविधान संशोधन विधेयक

गैर सरकारी विधेयक – संसद का अन्य कोई सदस्य पेश करता है।

(i) साधारण विधेयक
(ii) साधारण संशोधन विधेयक

प्रक्रिया

1. प्रथम वाचन।
2. द्वितीय वाचन (समिति स्तर)
3. समिति की रिपार्ट पर चर्चा
4. तृतीय वाचन।
5. दूसरे सदन में प्रक्रिया।
6. राष्ट्रपति की स्वीकृति।

संसदीय नियंत्रण के साधन

1. बहस और चर्चा – प्रश्न काल, शून्य काल, स्थगन प्रस्ताव।
2. कानूनों की स्वीकृति या अस्वीकृति।
3. वित्तीय नियंत्रण।
4. अविश्वास प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव।

संसदीय समितियाँ – विभिन्न विधायी व दैनिक कार्यों के लिए समितियों का गठन संसदीय कामकाज का एक जरूरी पहलू है। ये विभिन्न मामलों पर विचार विमर्श करती है और प्रशासनिक कार्यों पर निगरानी रखती है।

वित्तीय समितियाँ

1. लोक लेखा समिति – भारत सरकार के विभिन्न विभागों का खर्च नियमानुसार हुआ है या नहीं।

2. प्राकलन समिति –
खर्च में किफायत किस तरह की जा सकती है।

3. लोक उपक्रम – सरकारी उद्योगों की रिपोर्ट की जांच करती है कि उद्योग या व्यवसाय कुशलता पूर्वक चलाया जा रहे है या नहीं।

विभागीय स्थायी समितियाँ

(i) नियमन समिति।
(ii) विशेषाधिकार समिति।
(iii) कार्य – मंत्रणा समिति।
(iv) आश्वासन समिति।

तदर्थ समितियाँ – विशिष्ट विषयों की जांच-पड़ताल करने तथा रिपोर्ट देने के लिए समय-समय पर गठन किया जाता है। बौफोर्स समझौतों से संबंधित संयुक्त समिति। समितियों द्वारा दिये गए सुझावो को संसद शायद ही नामंजूर करती है।

संसद स्वयं को किस प्रकार नियंत्रित करती है

1. संसद का सार्थक व अनुशासित होना।

2. सदन का अध्यक्ष विधायिका की कार्यवाही के मामलों में सर्वोच्च अधिकारी होता है।

3. दल बदल निरोधक कानून द्वारा 1985 में 52 वां संशोधन किया गया । 91 वें संविधान संशोधन द्वारा संशोधित किया गया। यदि कोई सदस्य अपने दल के नेतृत्व के आदेश के बावजूद – सदन में उपस्थित न हो या दल के निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करें अथवा स्वेच्छा से दल की सदस्यता से त्यागपत्र दें उसे ‘दलबदल’ कहा जाता है। अध्यक्ष उसे सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहरा सकता है।

4. भारतीय संघात्मक सरकार में 29 राज्य 7 केंद्र शासित इकाईयों को मिलाकर भारत में संघीय शासन की स्थापना करती है। दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया हैं।

5. भारत के प्रत्येक राज्य में विधानमंडल की व्यवस्था एक समान नहीं है। कुछ राज्यों में एक सदनीय तथा कुछ राज्यों में द्वि-सदनीय व्यवस्था है।

6. राज्यों में कानून निर्माण का कार्य विधानमंडलों को दिया गया है।

(i) निम्न सदन को विधानसभा।
(ii) उच्च सदन को विधान परिषद कहा जाता है।

द्विसदनीय – सरकारी व्यवथाओं में द्विसदनीयता उस विधि को कहते हैं जिसमें विधायिका में दो सदन हों। उदाहरण के लिये भारतीय संसद में दो सदन हैं। लोक सभा और राज्य सभा। इसके विपरीत फ़िलिपीन्स जैसे कुछ देशों में एकसदनीय संसदें हैं।

द्विसदनीय राज्य – उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक व आन्ध्र प्रदेश, छः राज्य बाकी सभी राज्य एक सदनीय है।

विधानसभा की शक्तियाँ

1. विधायी कार्यशक्ति।
2. वित्तीय शक्तियां।
3. कार्यपालिका शक्तियां।
4. चुनाव संबंधी कार्य।
5. संविधान संशोधन संबंधी शक्तियां।

विधान परिषद की शक्तियाँ

(i) विधायी शक्तियां।
(ii) वित्तीय शक्तियां।
(iii) कार्यपालिका शक्तियां।

दोनों सदन राज्य विधानपालिका के आवश्यक अंग होते हुए भी संविधान ने विधानसभा को बहुत शक्तिशाली व प्रभावशाली स्थित प्रदान की है।

You Can Join Our Social Account

YoutubeClick here
FacebookClick here
InstagramClick here
TwitterClick here
LinkedinClick here
TelegramClick here
WebsiteClick here