NCERT Solution Class 12th History (Part – III) Chapter – 12 औपनिवेशिक शहर (Colonial City)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | History (Part III) |
Chapter | 12th |
Chapter Name | औपनिवेशिक शहर (Colonial City) |
Category | Class 12th History |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solution Class 12th History (Part – III) Chapter – 12 औपनिवेशिक शहर (Colonial City) Question & Answer In Hindi ब्रिटिश भारत से क्यों गए?, ब्रिटिश भारत क्यों आए?, भारत का सबसे बड़ा हिल स्टेशन कौन सा है?, भारत का नंबर वन हिल स्टेशन कौन सा है?, भारत का सबसे ऊंचा हिल स्टेशन कौन सा है?, ऐसा कौन सा देश है जिसके तीन राजधानी है?, भारत में कुल कितने राज्य है?, भारत की राजधानी कब बनी थी?, दुनिया का सबसे पुराना स्टेशन कौन सा है?, विश्व में सबसे लंबा स्टेशन कौन सा है?, विश्व का सबसे लंबा स्टेशन कौन सा है?, दिल्ली के नजदीक पहाड़ी राज्य कौन सा है?, चंबा एक हिल स्टेशन है?
NCERT Solution Class 12th History (Part – III) Chapter – 12 औपनिवेशिक शहर (Colonial City)
Chapter – 12
औपनिवेशिक शहर
प्रश्न – उत्तर
अभ्यास-प्रश्न
प्रश्न 1. औपनिवेशिक शहरों में रिकॉडर्स संभाल कर क्यों रखे जाते थे?
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प्रश्न 2. औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
इस प्रकार, जनसंख्या संबंधी आँकड़ों से औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है। जनगणना संबंधी आँकड़ों की भ्रामकता–विद्वान इतिहासकारों के विचारानुसार जनगणना संबंधी आँकड़े अनेक रूपों में भ्रामक सिद्ध हो सकते हैं, इसलिए उनका प्रयोग अत्यधिक सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। |
प्रश्न 3. “व्हाइट” और “ब्लैक” टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था? भारतीय किलेबंद क्षेत्र के बाहर जिस भाग में रहते थे उसे “ब्लैक टाउन” के नाम से जाना जाता था। 1857 ई० के विद्रोह के परिणामस्वरूप भारत में औपनिवेशिक अधिकारी इतने अधिक आतंकित हो गए थे कि वे सुरक्षा की दृष्टि से “देशियों” अर्थात् भारतीयों के खतरे से, दूर पृथक् एवं पूर्णरूप से सुरक्षित बस्तियों में रहना चाहते थे। अतः “सिविल लाइंस” नामक नए शहरी क्षेत्र विकसित किए गए। ये क्षेत्र अत्यधिक सुरक्षित थे और इनमें केवल गोरे ही निवास करते थे। निःसंदेह व्हाइट और ब्लैक टाउन नस्ली विभाजन के प्रतीक थे। |
प्रश्न 4. प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया? 1. यूरोपीयों से लेन-देन करने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर एवं कामगार औपनिवेशिक शहरों में बसने लगे। वे किलेबंद क्षेत्र से बाहर स्थापित अपनी पृथक् बस्तियों में रहते थे। 2. भारत में राजनैतिक सत्ता एवं संरक्षण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ जाने पर दुभाषिए, बिचौलिए, व्यापारी तथा माल की आपूर्ति करने वाले भारतीय भी इन शहरों के महत्त्वपूर्ण अंग बन गए। 3. 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में रेलवे नेटवर्क का तीव्र गति से विस्तार होने के कारण औपनिवेशिक नगर शेष भारत से जुड़ गए और कच्चे माल एवं श्रम के स्रोत देहाती एवं दूरवर्ती क्षेत्र भी इन बंदरगाह शहरों से जुड़ने लगे। अतः भारतीय व्यापारी इन नगरों में अपने उद्योग स्थापित करने लगे। उदाहरण के लिए 1850 के दशक के बाद भारतीय व्यापारियों एवं उद्यमियों द्वारा बंबई में सूती कपड़ा मिलों की स्थापना की गई। 4. धनी भारतीय एजेंटों एवं बिचौलियों ने बाजारों के आस-पास ब्लैक टाउन में परंपरागत शैली के आधार पर दालानी मकानों का निर्माण करवाया। 5. उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने और अधिकांश लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से शहर के अंदर बड़ी-बड़ी जमीनों को भी खरीद लिया। 6. शीघ्र ही वे पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुकरण करने लगे। अपने अंग्रेज़ स्वामियों को प्रभावित करने के उद्देश्य से उन्होंने त्योहारों के अवसरों पर रंगीन दावतों का आयोजन करना प्रारंभ कर दिया। 7. समाज में अपनी हैसियत दिखाने के लिए वे मंदिरों का भी निर्माण करवाने लगे। नए-नए व्यवसायों के विकसित होने के कारण शहरों में क्लर्को, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अकाउंटेंट्स आदि की माँग में निरन्तर वृद्धि होने लगी। ‘मध्यवर्ग’ का विस्तार होने लगा और औपनिवेशिक शहरों में शिक्षित भारतीयों का महत्त्व बढ़ने लगा। |
प्रश्न 5. औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल गए थे? अतः विविध प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले अनेक समुदाय यहाँ आए और यहीं बस गए। दुबाश, तेलुगू कोमाटी और वेल्लालार इसी प्रकार के समुदाय थे। दुबाश स्थानीय भाषा और अंग्रेज़ी दोनों को बोलने में कुशल थे। अतः वे भारतीयों एवं गोरों के बीच मध्यस्थ का काम करते थे। वेल्लालार नवीन अवसरों का लाभ उठाने वाली एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी और तेलुगू कोमाटी अनाज व्यापार में लगा एक प्रभावशाली व्यावसायिक समुदाय था। 18वीं शताब्दी से गुजराती बैंकर भी यहाँ बस गए थे। पेरियार एवं वन्नियार गरीब श्रमिक वर्ग के अंतर्गत आते थे। समीप ही स्थित ट्रिप्लीकेन मुस्लिम जनसंख्या का केंद्र था। अर्काट के नवाब भी यहाँ रहते थे। माइलापुर तथा ट्रिप्लीकेन जाने-माने हिंदू धार्मिक केंद्र थे। अनेक ब्राह्मण अपनी आजीविका यहीं से प्राप्त करते थे। सानथोम तथा वहाँ का बड़ा गिरजाघर रोमन कैथोलिक लोगों का केंद्र था। ये सभी बस्तियाँ मद्रास शहर का भाग बन गई थीं। इस प्रकार, अनेक ग्रामों को मिला लिए जाने के कारण मद्रास दूर-दूर तक फैली शहर बन गया। भारत में ब्रिटिश सत्ता मजबूत हो जाने पर यूरोपीय किलेबंद क्षेत्र से बाहर, माउंट रोड और पूनामाली रोड पर अपने-अपने रहने के लिए गार्डन हाउसेस अर्थात् बगीचों वाले मकानों का निर्माण करवाने लगे। अंग्रेजों की जीवन-शैली का अनुकरण करते हुए सम्पन्न भारतीय इसी प्रकार के निवास स्थान बनवाने लगे। इस प्रकार, मद्रास के आस-पास स्थित ग्रामों के स्थान पर नए उपशहरी क्षेत्र विकसित होने लगे। गरीब लोग अपने काम के स्थान के निकट स्थित ग्रामों में रहने लगे। इस प्रकार, मद्रास के क्रमिक शहरीकरण के परिणामस्वरूप इन ग्रामों के मध्य स्थित शहर के अंतर्गत आ गए। इस प्रकार मद्रास का स्वरूप एक अर्ध ग्रामीण शहर जैसा हो गया। |
प्रश्न 6. अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ? छोटे गाँव कस्बे और कस्बे छोटे-बड़े शहर बन गए। आस-पास के किसान तीर्थ करने के लिए शहरों में आते थे। अकाल के दिनों में प्रभावित लोग कस्बों और शहरों में इकट्ठे हो जाते थे, लेकिन जब कस्बों पर हमले होते थे तो कस्बों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में शरण लेने के लिए चले जाते थे। व्यापारी और फेरी वाले लोग कस्बों से गाँव में जाकर कृषि उत्पाद और कुछ कुटीर व छोटे पैमाने के उद्योग-धंधों में तैयार माल बिक्री के लिए शहरों और कस्बों में लाते थे। इससे बाज़ार का विस्तार हुआ। भोजन और पहनावे की नयी शैलियाँ विकसित हुईं। अनेक शहरों की चारदीवारियों को 1857 के विद्रोह के बाद तोड़ दिया गया; जैसे-दिल्ली का शाहजहाँनाबाद। दक्षिण भारत में मदुरई, काँचीपुरम् मुख्य धार्मिक केन्द्र थे। धीरे-धीरे वह महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र भी बन गए। 18वीं शताब्दी में शहरी जीवन में अनेक बदलाव आए। 1. राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर; जैसे-आगरा, लाहौर, दिल्ली पतनोन्मुख हुए तो नए शहर मद्रास (चेन्नई), मुम्बई, कलकत्ता (कोलकाता) शिक्षा, व्यापार, प्रशासन, वाणिज्य आदि के महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गए। विभिन्न समुदायों, जातियों, वर्गों, व्यवसायों के लोग यहाँ रहने लगे। 2. नयी क्षेत्रीय ताकतों के विकास से क्षेत्रीय राजधानी; जैसे-अवध की राजधानी लखनऊ, दक्षिण के अनेक राज्यों की राजधानियाँ; जैसे-तंजौर, पूना, श्रीरंगपट्टनम, नागपुर, बड़ौदा के बढ़ते महत्त्व दिखाई दिए। 3. व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केंद्रों से नयी राजधानियों की ओर काम तथा रोजगार की तलाश में आने लगे। 4. नए राज्यों और उदित होने वाली नयी राजनीतिक शक्तियों में प्रायः निरंतर लड़ाइयाँ होती रहती थीं। इसका परिणाम यह हुआ। कि भाड़े के सिपाहियों को भी तैयार रोजगार मिल जाता था। 5. कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से संबंधित अधिकारियों ने भी इस मौके का उपयोग करके ‘पुरम्’ और ‘गंज’ जैसी शहरी बस्तियों में अपना विस्तार किया। 6. राजनैतिक विकेन्द्रीयकरण का प्रभाव सर्वत्र एक जैसा नहीं था। कई स्थानों पर नए सिरे से आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं, कुछ अन्य स्थानों पर लूटपाट तथा राजनीतिक अनिश्चितता, आर्थिक पतन में बदल गई। जो शहर व्यापार तंत्रों से जुड़े हुए थे, उसमें परिवर्तन दिखाई देने लगे। यूरोपीय कम्पनियों ने अनेक स्थानों पर अनेक आर्थिक आधार या फैक्ट्रियाँ स्थापित कर लीं। 18वीं शताब्दी के अंत तक एकल आधारित साम्राज्य का स्थान, शक्तिशाली यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद और पूँजीवाद शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगी थीं। मध्य अठारहवीं शताब्दी से परिवर्तन का नया चरण शुरू हुआ। अब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगीं। मुगल काल में जो तीन शहर बहुत प्रगति पर थे-सूरत, मछलीपट्नम और ढाका, उनका निरंतर पतन होता चला गया। नए शहरों में नयी-नयी संस्थाएँ विकसित हुईं और शहरी स्थानों को नए ढंग से व्यवस्थित किया गया। अनेक जगहों पर (पश्चिमी शिक्षा केन्द्र, अस्पताल, रेलवे दफ्तर, व्यापारिक गोदाम, सरकारी कार्यालय आदि) नए-नए रोजगार विकसित हुए। दूर-दूर के प्रदेशों और गाँवों से पुरुष, महिलाएँ औपनिवेशिक शहरों की ओर उमड़ने लगे। देखते-ही-देखते 1800 तक जनसंख्या की दृष्टि से औपनिवेशिक शहर देश के सबसे बड़े शहर बन गए। |
प्रश्न 7. औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे? 1. औपनिवेशिक शहर अर्थात् मुम्बई, मद्रास और कलकत्ता में फैक्ट्रियाँ या व्यापारिक केंद्र स्थापित किए गए जहाँ पर व्यापारिक गतिविधियाँ, सामान का लेन-देन और गोदामों में उन्हें रखा जाता था। इन फैक्ट्रियों में कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी भी रहते थे। 2. इन शहरों को बन्दरगाहों के रूप में इस्तेमाल किया गया। यहाँ जहाजों को लादने और उनसे उतारने का काम होता था। 3. शहरों के नक्शे बनवाए गए, आँकड़े इकट्ठे किए गए, सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित की गई। ये सभी दस्तावेज प्रशासनिक दफ्तरों में होते थे। शहरों के रख-रखाव के लिए नगरपालिकाएँ बनाई गईं जो शहरों में जलापूर्ति, सड़क निर्माण, स्वास्थ्य जैसी सेवाएँ उपलब्ध करवाती थीं तथा लोगों की मृत्यु और जन्म के रिकॉर्ड भी रखती थीं।। 4. 1853 के बाद से इन शहरों में रेलवे स्टेशन, रेलवे वर्कशाप और रेलवे कॉलोनियाँ और रेलवे लाइन के नेटवर्क बिछाए गए। इस प्रकार नए शहर बंदरगाहों, किलों, सेवा केन्द्रों और रेलवे स्टेशनों जैसे सार्वजनिक स्थानों से भर गए। 5. 19वीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को दो हिस्सों में बाँट दिया गया जिन्हें क्रमशः सिविल लाइन या श्वेत लोगों का क्षेत्र और देसियों के क्षेत्र या अश्वेत टाउन कहा गया। इनमें क्रमशः श्वेत रंग के यूरोपीय और दूसरे भाग में अश्वेत रंग के देसी या भारतीय लोग रहते थे। 6. भूमिगत पाइप द्वारा जलापूर्ति की व्यवस्था करने के साथ-साथ पक्की नालियाँ भी निर्मित की गईं। इसका उद्देश्य सफाई को सुनिश्चत करना था। 7. कुछ शहरों को औपनिवेशिक हिल स्टेशनों के रूप में विकसित किया गया; जैसे-शिमला, दार्जिलिंग, माउट आबू, मनाली। इनका उद्देश्य गर्मी के दिनों में प्रशासनिक गतिविधियों को चलाना और उच्च अधिकारियों को स्वास्थ्यवर्धक जलवायु और वातावरण वाला आवास प्रदान करना था। 8. नए शहरों में घोड़ागाड़ी, ट्राम, बसें, टाउन हाल, सार्वजनिक पार्क, सिनेमा हाल, रंगशालाएँ, प्रत्येक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विभिन्न सेवक, कर्मचारी, शिक्षक, एकाउंटेंट और शिक्षा से जुड़ी संस्थाएँ; जैसे-स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी आदि उपलब्ध थे। कुछ सार्वजनिक केन्द्र या सामुदायिक भवन भी थे यहाँ समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ आदि लोगों को उपलब्ध हो सकती थीं। |
प्रश्न 8. उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन-सी थीं? 1.नगर को समुद्र के निकट बसाना 19वीं शताब्दी के नगर-नियोजन की एक प्रमुख चिंता थी। औपनिवेशिक सरकार नगरों को समुद्र के निकट विकसित करना चाहती थी ताकि यूरोपीयों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति भली-भाँति की जा सके। भारत का माल सरलतापूर्वक यूरोप में भेजा जा सके और यूरोपीय माल बिना किसी कठिनाई के भारत लाया जा सके। 2. नगर-नियोजन की दूसरी महत्त्वपूर्ण चिंता सुरक्षा से संबंधित थी। वास्तव में 1857 ई० के विद्रोह ने भारत में औपनिवेशिक अधिकारियों को इतना अधिक आतंकित कर दिया था कि उन्हें सदैव विद्रोह की आशंका बनी रहती थी। अतः सुरक्षा की दृष्टि से वे “देशियों” अर्थात् भारतीयों के खतरे से दूर, पृथक् एवं पूर्ण रूप से सुरक्षित बस्तियों में रहना चाहते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुराने कस्बों के आस-पास स्थित चरागाहों एवं खेतों को साफ करवा दिया गया। सिविल लाइंस के नाम से नए शहरी क्षेत्र विकसित किए गए जिनमें केवल यूरोपीय ही निवास कर सकते थे। 3. शहरों के नक्शे अथवा मानचित्र तैयार करवाना नगर-नियोजन की एक अन्य महत्त्वपूर्ण चिंता थी। किसी भी स्थान की बनावट अथवा भू-दृश्य को समझने के लिए मानचित्रों का होना नितांत आवश्यक था। विकास की योजना को तैयार करने, व्यवसायों का विकास करने, औपनिवेशिक सत्ता को मजबूती से स्थापित करने तथा रक्षा संबंधी उद्देश्यों के लिए योजना तैयार करने के लिए भी मानचित्रों की आवश्यकता थी। 4. रंग-भेदभाव तथा जाति-भेदभाव के आधार पर शहरों का विभाजन तथा उनमें सार्वजनिक सुविधाओं के अलग-अलग स्तर को बनाए रखना भी नगर-नियोजन की एक चिंता थी। अंग्रेज़ों की दृष्टि में भारतीय असभ्य थे। वे उन्हें अपने क्लबों और सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देना चाहते थे। 5. शहर के भारतीय आबादी वाले भाग की भीड़-भाड़, आवश्यकता से अधिक हरियाली, गंदे तालाबों, बदबू और नालियों की खस्ता हालत आदि भी नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ थीं। यूरोपीयों का विचार था कि दलदली जमीन एवं ठहरे हुए पानी के तालाबों से विषैली गैसें उत्पन्न होती थीं जो विभिन्न बीमारियों का प्रमुख कारण थीं। यूरोपीय उष्णकटिबंधीय जलवायु को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते थे। अतः शहर को अधिक स्वास्थ्य कारक बनाने का एक उपाय शहर में खुले स्थान छोड़े जाने के रूप में ढूंढ निकाला गया। 6. नगरों की सुव्यवस्था के लिए विभिन्न कमेटियों का संगठन करना, शहर को साफ-सुथरा बनाने के लिए बाजारों, घाटों, कब्रिस्तानों और चर्म-शोधन इकाइयों को साफ करना आदि नगर-नियोजन की अन्य चिंताएँ थीं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शहरों की सफाई एवं नगर-नियोजन की सभी परियोजनाओं में ‘जन-स्वास्थ्य के लिए विचार पर बार-बार बल दिया जाने लगा। 7. शहरों के रख-रखाव के लिए पर्याप्त धन को जुटाना नगर-नियोजन की एक अन्य चिंता थी। इसके लिए कलकत्ता जैसे महत्त्वपूर्ण नगर के रख-रखाव के लिए 1817 ई० में लॉटरी कमेटी का गठन किया गया। यह कमेटी नगर सुधार के लिए आवश्यक पैसे का प्रबंध जनता में लॉटरी बेचकर करती थी, इसलिए लॉटरी कमेटी के नाम से प्रसिद्ध थी। शहरों में यातायात के अच्छे साधनों की व्यवस्था करना, शिक्षा संस्थानों की स्थापना करना आदि नगर-नियोजन की अन्य चिंताएँ थीं। |
प्रश्न 9. नए शहरों में सामाजिक संबंध किस हद तक बदल गए? । शहरों में नवीन सामाजिक समूह विकसित हो जाने के परिणामस्वरूप पुरानी पहचानें अपना महत्त्व खाने लगीं। लगभग सभी वर्गों के सम्पन्न लोग शहरों की तरफ उमड़ने लगे। नए-नए व्यवसायों के विकसित होने के कारण शहरों में क्लर्को, शिक्षकों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अकाउंटेंट्स आदि की माँग में निरन्तर वृद्धि होने लगी। इस प्रकार मध्यवर्ग’ का विस्तार होने लगा। यह वर्ग बौद्धिक एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न वर्ग था। इस वर्ग के लोगों की स्कूलों, कॉलेजों एवं पुस्तकालयों जैसे नए शिक्षा संस्थानों तक पहुँच थी। शिक्षित होने के कारण उनका समाज में महत्त्व बढ़ने लगा। वे अख़बारों, पत्रिकाओं एवं सार्वजनिक सभाओं में अपनी राय व्यक्त करने लगे। इस प्रकार, बहस एवं चर्चा का एक नया सार्वजनिक दायरा विकसित होने लगा। सामान्य जागरूकता का विकास होने लगा और सामाजिक रीति-रिवाजों, कायदे-कानूनों एवं तौर-तरीकों की उपयोगिता पर अनेक प्रश्नचिह्न लगाए जाने लगे। नवीन शहरों के विकास ने महिलाओं के सामाजिक जीवन को अनेक रूपों में प्रभावित किया। उल्लेखनीय है कि नए शहरों में महिलाओं को अनेक नए अवसर उपलब्ध थे। मध्यवर्ग की महिलाओं ने पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं एवं पुस्तकों के माध्यम से समाज में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के प्रयास प्रारंभ कर दिए थे। किन्तु पितृसत्तात्मक भारतीय समाज ऐसे प्रयासों का स्वागत करने के लिए तैयार नहीं था। परम्परागत भारतीय समाज में महिलाओं का स्थान घर की चारदीवारी के अन्दर था। अतः शिक्षित महिलाओं के ऐसे प्रयासों को अनेक लोगों ने परम्परागत पितृसत्तात्मक कायदे-कानूनों को बदलने के प्रयास समझा। रूढ़िवादियों को भय था कि शिक्षित महिलाएँ सामाजिक रीति-रिवाजों को उलट-पुलट कर रख देंगी जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था का आधार ही डावाँडोल हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि महिलाओं की शिक्षा की पुरजोर वकालत करने वाले सुधारक भी महिलाओं को केवल माँ और पत्नी की परम्परागत भूमिकाओं में ही देखना चाहते थे। किन्तु शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं में जागरूकता को उत्पन्न किया और धीरे-धीरे सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं की उपस्थिति में वृद्धि होने लगी। महिलाएँ सेविकाओं, फैक्ट्री मजदूरों, शिक्षिकाओं, रंगकर्मियों और फिल्म कलाकारों के रूप में शहर के नए व्यवसायों में भाग लेने लगीं। किन्तु घर से बाहर सार्वजनिक स्थानों में जाने वाली महिलाओं को पर्याप्त समय तक सामाजिक दृष्टि से सम्मानित नहीं समझा जाता था। नए-नए व्यवसायों के अस्तित्व में आने के परिणामस्वरूप शहरों में शारीरिक श्रम करने वाले गरीब मजदूरों अथवा कामगारों का एक नया वर्ग अस्तित्व में आने लगा। कुछ लोग रोजगार के नए अवसरों की खोज में शहर की ओर भागने लगे, तो कुछ एक भिन्न जीवन-शैली के आकर्षण से प्रभावित होकर शहर की ओर उमड़ने लगे। मजदूरों एवं कामगारों के लिए शहर का जीवन अनेक संघर्षों से परिपूर्ण था। वस्तुएँ महँगी होने के कारण यहाँ रहने का खर्च उठाना सरल नहीं था और फिर नौकरी पक्की न होने के कारण सदा काम मिलने की गारंटी भी नहीं होती थी। इसलिए रोजगार की खोज में गाँवों से शहर में आने वाले अधिकांश पुरुष अपने परिवारों को ग्रामों में ही छोड़कर आते थे। उल्लेखनीय है कि शहरों में रहने वाले गरीबों ने वहाँ अपनी एक पृथक् संस्कृति की रचना कर ली थी जो जीवन से परिपूर्ण थी। वे उत्साहपूर्वक धार्मिक उत्सवों, तमाशों और स्वांग आदि में भाग लेते थे। तमाशों और स्वांगों में वे प्रायः अपने भारतीय एवं यूरोपीय स्वामियों का मजाक उड़ाते थे। इस प्रकार निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि नए शहरों में सामाजिक संबंध पर्याप्त सीमा तक परिवर्तित हो गए। |
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10. भारत के नक्शे पर मुख्य नदियों और पर्वत-शृंखलाओं को पारदर्शी काग़ज लगाकर रेखांकित करें। बम्बई, कलकत्ता और मद्रास सहित इस अध्याय में उल्लिखित दस शहरों को चिनित कीजिए और उनमें से किन्हीं दो शहरों के बारे में संक्षेप में लिखिए कि उन्नीसवीं सदी के दौरान उनका महत्त्व किस तरह बदल गया? (इनमें एक औपनिवेशक शहर तथा दूसरा उससे पहले का शहर होना चाहिए।) उपर्युक्त स्थलों को भारत के नक्शे पर स्वयं चिनित करें। 19वीं शताब्दी के दौरान का एक औपनिवेशिक शहर- बम्बई (मुंबई) – बम्बई भारत के पश्चिमी तट पर स्थित भारत का सर्वाधिक विशाल बन्दरगाह शहर है। 17 वीं शताब्दी में यह सात द्वीपों का शहर पुर्तगालियों के अधीन मात्र एक द्वीप समूह था। सन् 1661 में पुर्तगाली राजकुमारी के साथ अंग्रेज राजा चार्ल्स द्वितीय का विवाह हुआ तब यह द्वीप समूह उपहार स्वरूप अंग्रेजों के पास चला आया। 1818 में जब चतुर्थ अंग्रेज-मराठा युद्ध में मराठा पराजित हो गए तो अंग्रेजों के पास बम्बई का पूर्ण नियंत्रण आ गया। ब्रिटिश सरकार के स्थापित होते ही इस शहर ने शक्ति एवं सम्मान की दृष्टि से बहुत ही ख्याति एवं महत्ता प्राप्त कर ली। कारण-
महत्त्व-
दिल्ली – दिल्ली भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। इसके प्रारंभ के चिह्न हमें महाभारत युग में भी दिखाई देते हैं। उस समय (महाकाव्य काल) में इस शहर को इन्द्रप्रस्थ कहा जाता था। यह एक स्वीकृत ऐतिहासिक तथ्य है कि इस शहर की अनेक बार नींव रखी गई और अनेक बार उजाड़ा गया। 17वीं शताब्दी में शाहजहाँनाबाद नाम से जिसे आजकल (पुरानी दिल्ली) कहा जाता है, इसे मुगल सम्राट शाहजहाँ ने बसाया था। इस शहर के चारों ओर ऊँची, मोटी और सुदृढ चारदीवारी थी जिसमें शहर में प्रवेश और निकासी के लिए स्थान-स्थान पर विशाल द्वार बने हुए थे। इनमें से कुछ इमारतों पर उस विशाल दीवार और द्वार के अवशेष देखे जा सकते हैं। अंग्रेज़ों के शासनकाल में नयी दिल्ली की नींव रखी गई और इसका खूब विस्तार हुआ और इस नए शहर को 1911 में अंग्रेजों ने ब्रिटिश राजधानी के रूप में चुना। आजकल दिल्ली भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण महानगर है। यह भारत की राजधानी है। यहाँ राष्ट्रप्रमुख (प्रधानमंत्री) के आवास हैं। यह शहर यमुना नदी के किनारे स्थित है। यद्यपि दिल्ली को ‘डी’ श्रेणी का राज्य घोषित किया गया है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर इसे संघीय प्रदेश में शामिल किया जाता है। आधिकारिक तौर पर दिल्ली शहर को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। राजधानी होने के कारण इस शहर में अनेक नागरिक, प्रशासनिक, सैनिक और गैर-प्रशासनिक कार्यालय और बड़ी संख्या में दफ्तर हैं। इस शहर में देश के लगभग सभी प्रांतों और संघीय प्रदेशों के लोग, विभिन्न सैन्य बल, विभिन्न प्रकार के सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारी रहते हैं। |
परियोजना कार्य (कोई एक)
प्रश्न 11. पता लगाइए कि आपके कस्बे या गाँव में स्थानीय प्रशासन कौन-सी सेवाएँ प्रदान करता है? क्या जलापूर्ति, आवास, यातायात और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता आदि सेवाएँ भी उनके हिस्से में आती हैं? इन सेवाओं के लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे की जाती है? नीतियाँ कैसे बनाई जाती हैं? क्या शहरी मज़दूरों या ग्रामीण इलाकों के खेतिहर मजदूरों के पास नीति-निर्धारण में हस्तक्षेप का अधिकार होता है? क्या उनसे राय ली जाती है? अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। उत्तर – स्वयं करें। |
प्रश्न 12. अपने शहर या गाँव में पाँच तरह की इमारतों को चुनिए। प्रत्येक के बार में पता लगाइए कि उन्हें कब बनाया गया? उनको बनाने का फैसला क्यों लिया गया? उनके लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे की गई, उनके निर्माण का जिम्मा किसने उठाया और उनके निर्माण में कितना समय लगा? उन इमारतों के स्थापत्य या वास्तु शैली संबंधी आयामों का वर्णन कीजिए और औपनिवेशिक स्थापत्य से उनकी समानताओं या भिन्नताओं को चिनित कीजिए। |
NCERT Solution Class 12th भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग – Ⅰ Question & Answer in Hindi
- Chapter – 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ
- Chapter – 2 राजा, किसान और नगर
- Chapter – 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग
- Chapter – 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें
NCERT Solution Class 12th भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग – Ⅱ Question & Answer In Hindi
- Chapter – 5 यात्रियों के नज़रिए
- Chapter – 6 भक्ति सूफी परंपराएँ
- Chapter – 7 एक साम्राज्य की राजधानी : विजयनगर
- Chapter – 8 किसान, जमींदार और राज्य
- Chapter – 9 राजा और इतिवृत्तः
NCERT Solution Class 12th भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग – Ⅲ Question Answer in Hindi