NCERT Solutions Class 12th History (Part – Ⅲ) Chapter – 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन (Mahatma Gandhi and the Nationalist Movement)
Textbook | NCERT |
Class | 12th |
Subject | History (Part) – Ⅲ) |
Chapter | 13th |
Chapter Name | महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन |
Category | Class 12th History Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 12th History (Part – Ⅲ) Chapter – 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन(Mahatma Gandhi and the Nationalist Movement)
Chapter – 13
महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आंदोलन
Notes
महात्मा गांधी – हम जानते है कि गांधी जी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद्र गांधी और माता का नाम पुतली बाई था। ये बचपन में ही शर्मीले स्वभाव के थे। इनके बचपन का नाम मनु था। इनका अल्प आयु (13 वर्ष) में कस्तूरबा से विवाह करा दिया जाता है। |
गांधी जी और दक्षिण अफ्रीका (1893-1914) – सेठ अब्दुल्ला के निमंत्रण पर 1893 में महात्मा गांधी जी दक्षिण अफ्रीका गए थे। अब्दुल्ला ने गांधी जी को एक मुकदमा लड़ने के लिए बुलाया था। गांधी जी का अफ्रीका जाने का सिललिसा यहीं से शुरू हुआ। लेकिन यहाँ भारतीयों के साथ भेदभाव देखकर गांधी जी अंदर से विचलित हो गए। यहीं कारण रहा कि उन्होंने इस भेदभाव को समाप्त करने का संकल्प लिया। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी ने रंगभेद का सामना करा गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में लगभग 20 साल बिताए और रंगभेद का खुलकर विरोध किया एवं दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले काले लोगों को इस भेदभाव से आजादी दिलाई। दक्षिण अफ्रीका में ही महात्मा गाँधी ने पहली बार अहिंसात्मक विरोध की विशिष्ट तकनीक ”सत्याग्रह” का इस्तेमाल किया। जिसमें विभिन्न धर्मो के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जाति भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार के लिए चेतावनी दी। नोट– इसलिए चन्द्रन देवनेसन ने कहा है, दक्षिण अफ्रीका ने गांधी जी को महात्मा बनाया। |
स्वदेशी आन्दोलन (1905-07) – भारत मे स्वदेशी आन्दोलन 1905 से 1907 तक चला। इस आंदोलन के प्रमुख नेता – • बाल गंगाधर तिलक (महाराष्ट्र) इन लोगो ने अंग्रेजी शासन के प्रति हिंसा का रास्ता अपनाने की सिफारिश की। |
गांधी जी का भारत आगमन – 9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में सत्यग्रह का सफल प्रयोग करने के पश्चात भारत वापस आए। नोट – इसी के उपलक्ष्य में 9 जनवरी को अप्रवासी दिवस मानते हैं। भारत लौटने के बाद गांधी जी ने राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता से मिलकर उनके साथ विचार विमर्श किया। उन्होंने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बनाया और भारतीय राजनीति के अध्ययन के लिए सारे देश का भृमण किया। नोट – गोपाल कृष्ण गोखले के आध्यात्मिक व राजनिकित गुरु महादेव गोविंद रनाडे थे। गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी को एक बर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा करने की सलाह दी। जिससे कि वे इस भूमि को और इसके लोगो को जान सके। (1915 से 1916) के दौरान महात्मा गांधी ने तीसरे दर्जे की यात्रा की और समाज के कष्टों को जानने की कोशिश की। देश मे फैली अज्ञानता, अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता तथा छुआछूत से उन्हें दुःख हुआ। अतः उन्होंने अपने आपको राष्ट्रपिता के लिए समर्पित किया। |
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय BHU गांधी जी की पहली महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी 1916 ई० में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उदघाटन समारोह में हुई। इस समारोह में आमंत्रित व्यक्तियों में वे राजा और मानव प्रेमी थे जिनके द्वारा दिये गए दान ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान दिया। समारोह में आमंत्रित व्यक्तियों में एनी बिसेट जैसे महत्वपूर्ण नेता भी उपस्थित थे। वहाँ जब गांधी जी की बोलने की बारी आई तो उन्होंने मजदूर, गरीबो की ओर ध्यान न देने के कारण भारतीय विशिष्ट वर्ग को आड़े लिया। उन्होंने कहा हमारे लिए स्वशासन का तब तक कोई अभिप्राय नही है जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग सम्पूर्ण लाभ स्वयं अथवा अन्य लोगो को ले जाने की अनुमति देते रहेंगे। हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है न तो वकील, न डॉक्टर, न जमीदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं। दिसंबर 1916 में लखनऊ में हुई वार्षिक अधिवेशन कांग्रेस ने बिहार में चंपारन से आए किसानों ने उन्हें वहाँ अंग्रेज नील उत्पादकों द्वारा किसानों के प्रति किए जाने वाले कठोर व्यवहार के बारे में बताया। |
गांधीजी का प्रारम्भिक आन्दोलन – चंपारण,अहमदाबाद, खेड़ा चम्पारण किसान आंदोलन 1917- दक्षिण अफ्रीका मे सफल सत्यग्रही गाँधी जी ने 25 माई 1915 को कोचरव (अहमदाबाद) साबरमती आश्रम के किनारे सत्याग्रही आश्रम की स्थापना की। इसलिए उन्हें साबरमती के संत कहा जाता है। इसी दौरान बाबू राजेन्द्र प्रसाद, राम कुमार शुक्ल / राजकुमार शुल्क के आग्रह पर गांधी जी ने चंपारण (बिहार) की ओर कूच किया। महात्मा गांधी जी ने 1917 में सत्याग्रह का पहला बड़ा प्रयोग ( बिहार ) 9चंपारण जिले में किया। चंपारण में किसानों को नील की खेतों के लिए काम करने पर मजबूर किया जाता था। किसानों को अपनी जमीन के कम से कम 3/20 भाग पर नील की खेती करना तथा उन मालिकों द्वारा तय दामों पर उन्हें बेचना पड़ता था। नोट – इसी को तीनकठिया पध्दति कहा जाता था। 1917 में महात्मा गांधीजी, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, मजहरूल-हक, जे. बी. कृपलानी और महादेव देसाई वहां पहुंचे और किसानों की हालत की विस्तृत जांच-पड़ताल करने लगे। चंपारण आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण सविनय अवज्ञा आंदोलन की पहली लड़ाई महात्मा गांधी जी ने जीत ली। खेत मालिकों के साथ हुए समझौते के तहत अवैधानिक तरीकों से किसानों से लिए हुए धन का 25 प्रतिशत उन्हें वापस करने की बात तय हुई। महात्मा गांधी का 1917 का अधिकांश समय किसानों के लिए बीता। नोट- चंपारण आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने के कारण गांधी जी को दी गई उपाधियाँ। (i) महात्मा – रबिन्द्रनाथ टैगोर (ii) मलंग बाबा – खान अब्दुल गफ्फार खान ने गांधी जी को मलंग बाबा की उपाधि दी जिसका अर्थ होता है नंगा फकीर। |
खेड़ा सत्याग्रह आंदोलन 1918 1918 में महात्मा गांधीजी ने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की फसल चौपट हो जाने के कारण सरकार द्वारा लगान में छूट न दिए जाने की वजह से सरकार के विरुद्ध किसानों का साथ दिया। 22 मार्च 1918 को गांधी जी ने इस आन्दोल कि भाग दौड़ संभालते हुए ब्रिटिश सरकार को लगान माफ करने के लिए मजबूर कर दिया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नही थे। नोट- इस आंदोलन को हार्डीमेन ने गांधी जी का प्रथम सफल सत्यग्रही आंदोलन कहा है। |
अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन 1918 अहमदाबाद के मिल मज़दूरो व मालिको के मध्य मार्च 1918 को प्लेग बोनस को लेकर विवाद उतपन्न हो गया। अहमदाबाद में एक श्रम विवाद में हस्तक्षेप कर कपड़ो की मीलो में काम करने वालो के लिए काम करने की बेहतर स्थितियो की माँग की। मजदूर 50% बोनस की मांग कर रहे थे परंतु मालिक 20% देने को तैयार थे। गांधी जी ने इस आंदोलन का नेतृत्व करते हुए भूख हड़ताल का सहारा लिया और इस आमरण अनशन का परिणाम मजदूरों को 35% बोनस के रूप में मिला। नोट – (i) अहमदाबाद मिल आंदोलन गांधी जी का पहला आमरण अनशन का प्रतीक माना जाता है। (ii) उलेखनीय है कि इस आंदोलन में मिल मालिक अंबालाल साराभाई व उनकी बहन अनुसुइया ने गांधी जी का साथ दिया था। |
रौलेट एक्ट (1919) गरीबी,बीमारी,नौकरशाही के दमन-चक्र,और युद्धकाल में धन एकत्र करने और सिपाहियों की भर्ती में सरकार द्वारा प्रयुक्त कठोरता के कारण भारतीय जनता में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध पनप रहे असंतोष ने उग्रवादी क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज कर दिया। बढ रही क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए सरकार ने 1917 में न्यायाधीश सिजनी रौलेट की अध्यक्षता में एक समिति को नियुक्त किया, जिसे आतंकवाद को कुचलने के लिए एक प्रभावी योजना का निर्माण करना था। रौलेट समिति के सुझावों के आधार पर फरवरी, 1919 को केन्द्रीय विधान परिषद में दो विधेयक पेश किये गये, जिसमें एक विधेयक परिषद के भारतीय सदस्यों के विरोध के बाद भी पास हो गया। 17 मार्च,1919 को केन्द्रीय विधान परिषद् से पास हुआ विधेयक रौलेट एक्ट या रौलेट अधिनियम के नाम से जाना गया। रौलेट अधिनियम के द्वारा अंग्रेजी सरकार जिसको चाहे जब तक चाहे, बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद रख सकती थी, इसलिये इस कानून को बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील का कानून कहा गया। नोट – मोतीलाल नेहरू के शब्दों में न अपील, न वकील, न दलील सिर्फ गिरफ्तारी ही रौलेट एक्ट था। रौलेट एक्ट जनता की साधारण स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष कुछाराघात था तथा अंग्रेजी सरकार की बर्बर और स्वेच्छाचारी नीति का स्पष्ट प्रमाण था। |
रौलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह (1919) रौलेट एक्ट को भारतीय जनता ने काला कानून कहकर आलोचना की। गांधी जी ने रौलेट एक्ट की आलोचना करते हुए इसके विरुद्ध सत्याग्रह करने के लिए सत्याग्रह सभा की स्थापना की। रौलेट एक्ट विरोधी सत्याग्रह के पहले चरण में स्वयं सेवकों ने कानून को औपचारिक चुनौती देते हुए गिरफ्तारियां दी। 6 अप्रैल, 1919 को गांधी जी के अनुरोध पर देश भर में हङतालों का आयोजन किया गया, हिंसा की छोटी-मोटी घटनाओं के कारण गांधी जी का पंजाब और दिल्ली में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। 9 अप्रैल को गांधी जी दिल्ली में प्रवेश के प्रयास में गिरफ्तार कर लिये गये, इनकी गिरफ्तारी से देश में आक्रोश बढ गया, गांधी जी को बंबई ले जाकर रिहा कर दिया गया। रौलेट एक्ट के विरोध के लिए गांधी जी द्वारा स्थापित सत्याग्रह सभा में जमना लाल दास, द्वाराकादास, शंकर लाल बैंकर, उमर सोमानी, बी.जी. हार्नीमन आदि शामिल थे। |
जलियाँवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रेल 1919 13 अप्रैल 1919 में अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में काफी सारे लोग इस रोलेट एक्ट के विरोध में इकट्ठा हुए। यह मैदान चारो तरफ से बंद था। शहर से बाहर होने के कारण वहाँ जूटे लोगो को यह पता नही था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है। जनरल डायर हथियारबंद सैनिको के साथ वहाँ पहुँचा और जाते ही उसने मैदान के बाहर निकलने के सारे रास्ते बन्द कर दिए। इसके बाद सिपाहियों ने भीड़ पर अंधाधुध गोलिया चलाई । जिसके परिणाम स्वरूप 1000 से ज्यादा लोगो की मृत्यु हुई और सरकारी आकड़ो में 379 बताई गई। |
असहयोग आंदोलन, 1920 – 22 – यह आंदोलन गांधीजी का प्रथम जन आंदोलन था। उस समय गांधीजी जन जन के नेता बन गए थे। और इस आंदोलन से जनता में नया जोश आ गया था। |
इस आंदोलन के कार्यक्रम निम्न थे • सरकार से प्राप्त उपाधियां बेतनिक या अबेतनिक पदों को त्याग दिया गया। |
इस आंदोलन कुछ रचनात्मक पक्ष पर भी ध्यान दिया गया जैसे: • कॉलेज तथा स्कूलों की स्थापना करना |
चोरी चोरा और असहयोग आंदोलन स्थगित 5 फरवरी 1922 ई० को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चोरी-चोरा गांव में कांग्रेस का एक जुलूस निकाला गया। पुलिस ने जुलूस को रोका। लेकिन उत्तेजित भीड़ ने उनको थाने के अंदर अंदर खदेड़ दिया। इसमें 1 थानेदार 21 पुलिसकर्मी थे। जुलूस ने थाने में आग लगा दी। जिससे सभी लोग जलकर मर गए। कुछ ऐसी घटनाएं मुंबई तथा मद्रास में हुई थी। जिसमें गांधी जी अत्यंत दुखित हुए। और उन्हें विश्वास हो गया कि अभी लोग अहिंसात्मक आंदोलन के लिए तैयार नहीं है। अतः गांधी जी आंदोलन को स्थगित करना चाहते थे। अंततः 12 फरवरी 1922 ई० को कांग्रेस के कार्यसमिति ने आंदोलन को स्थगित कर दिया। |
नमक सत्याग्रह वर्ष 1928 में, एंटी – साइमन कमीशन मूवमेंट हुआ जिसमें लाला लाजपत राय पर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज किया गया और बाद में इसके कारण उनकी मृत्यु हो गई। वर्ष 1928 में, एक और प्रसिद्ध बोर्डोली सत्याग्रह हुआ। इसलिए वर्ष 1928 तक फिर से भारत में राजनीतिक सक्रियता बढ़ने लगी। 1929 में, लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ और नेहरू को इसके अध्यक्ष के रूप में चुना गया। इस सत्र में” पूर्ण स्वराज” को आदर्श वाक्य के रूप में घोषित किया गया, और 26 जनवरी, 1930 को गणतंत्र दिवस मनाया गया। |
नमक सत्याग्रह (दांडी) गणतंत्र दिवस के पालन के बाद, गांधीजी ने नमक कानून को तोड़ने के लिए मार्च की अपनी योजना की घोषणा की। यह कानून भारतीयों द्वारा व्यापक रूप से नापसंद किया गया था, क्योंकि इसने राज्य को नमक के निर्माण और बिक्री में एकाधिकार दिया था। 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने आश्रम से सागर तक मार्च शुरू किया। वह किनारे पर पहुंच गये और नमक बनाया और इस तरह कानून की नजर में खुद को अपराधी बना लिया। देश के अन्य हिस्सों में इस दौरान कई समानांतर नमक मार्च किए गए। आंदोलन को किसानों, श्रमिक वर्ग, कारखाने के श्रमिकों, वकीलों और यहां तक कि ब्रिटिश सरकार में भारतीय अधिकारियों ने भी इसका समर्थन किया और अपनी नौकरी छोड़ दी। वकील ने अदालतों का बहिष्कार किया, किसानों ने कर देना बंद कर दिया और आदिवासियों ने वन कानूनों को तोड़ दिया। कारखानों या मिलों में हमले होते थे। सरकार ने असंतुष्टों या सत्वग्राहियों को बंद करके जवाब दिया। 60000 भारतीयों को गिरफ्तार किया गया और गांधीजी सहित कांग्रेस के विभिन्न उच्च नेताओं को गिरफ्तार किया गया। एक अमेरिकी पत्रिका, ‘टाइम‘ को शुरू में गांधीजी के बल पर संदेह हुआ और उन्होंने लिखा कि नमक मार्च सफल नहीं होगा। लेकिन बाद में यह लिखा कि इस मार्च ने ब्रिटिश शासकों को ‘हताश रूप से चिंतित‘ बना दिया। |
कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन और पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव जब नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया गया तो उसका वास्तविक उद्देश्य ही समाप्त हो गया। अतः कांग्रेस ने कलकत्ता अधिवेशन में औपनिवेशिक स्वराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वराज्य को अपना लक्ष्य बनाया। 31 दिसम्बर, 1929 को लाहौर में रावी नदी के किनारे पूर्ण स्वराज्य ‘का प्रस्ताव पारित किया गया और पं. जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, ” हम भारत के लिये पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते हैं। कांग्रेस ने न कभी स्वीकार किया है, न कभी स्वीकार करेगी कि किसी भी प्रकार ब्रिटिश संसद हमको आदेश दे। हम उससे कोई अपील नहीं करेंगे। लेकिन हम पार्लियामेंट और विश्व की आत्मा से अपील करते हैं और उनसे घोषणा करते हैं कि भारत किसी भी विदेशी नियन्त्रण को स्वीकार नहीं करता है। इस अविस्मरणीय सम्मेलन में हजारों लोगों ने भाग लिया व पूर्ण स्वराज्य का प्रण लिया। 26 जनवरी, 1930 ई. को सम्पूर्ण भारतवर्ष में स्वतन्त्रता दिवस के प्रतीक रूप में मनाया जाये। अहिंसात्मक आन्दोलन आरम्भ करने की बात भी कही गई। |
गोलमेज सम्मेलन – सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तीव्रता को देखकर ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों एवं ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया जाएगा। इसमें साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर भारत की राजनीतिक समस्या पर विचार-विमर्श होगा। |
प्रथम गोलमेज सम्मेलन (12 नवम्बर 1930-19 जनवरी 1931) – प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड की अध्यक्षता में लन्दन में 12 नवम्बर 1930 से 19 जनवरी 1931 तक प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें कुल 89 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य भारतीय संवैधानिक समस्या को सुलझाना था। चूँकि काँग्रेस ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया, अत: इस सम्मेलन में कोई निर्णय नहीं लिया जा सका। सम्मेलन अनिश्चित काल हेतु स्थगित कर दिया गया। डॉ. अम्बेडकर एवं जिन्ना ने इस सम्मेलन में भाग लिया था। |
गाँधी इरविन समझौता • ब्रिटिश सरकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन से समझ गई कि बिना कांग्रेस के सहयोग के कोई फैसला संभव नहीं है। वायसराय लार्ड इरविन एवं महात्मा गांधी के बीच 5 मार्च 1931 को गाँधी-इरविन समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते में लार्ड इरविन ने स्वीकार किया कि • हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा कर दिया जावेगा। • भारतीयों को समुद्र किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया गया। • भारतीय शराब एवं विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना दे सकते हैं। • आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को उनके पदों पर पुन: बहाल किया जावेगा। आन्दोलन के दौरान जब्त सम्पत्ति वापस की जावेगी। |
कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने निम्न शर्तें स्वीकार की • सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया जावेगा |
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (7 सितम्बर 1931 से 1 दिसम्बर 1931) – 7 सितम्बर 1931 को लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आरंभ हुआ। इसमें गाँधीजी, अम्बेडकर, सरोजिनी नायडू एवं मदन मोहन मालवीय आदि पहुँचे। 30 नवम्बर को गांधीजी ने कहा कि काँग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो साम्प्रदायिक नहीं है एवं समस्त भारतीय जातियों का प्रतिनिधित्व करती है। गांधीजी ने पूर्ण स्वतंत्रता की भी मांग की। ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी की इस माँग को नहीं माना। भारत के अन्य साम्प्रदायिक दलों ने अपनी-अपनी जाति के लिए पृथक-पृथक प्रतिनिधित्व की माँग की। एक ओर गांधीजी चाहते थे कि भारत से सांप्रदायिकता समाप्त हो वही अन्य दल साम्प्रदायिकता बढ़ाने प्रयासरत थे। इस तरह गाँधीजी निराश होकर लौट आए। गांधीजी ने भारत लौटकर 3 जनवरी 1932 को पुन: सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ कर दिया, जो 1 मई 1933 तक चला। गाँधीजी व सरदार पटैल को गिरफ्तार कर लिया गया। काँग्रेस गैरकानूनी संस्था घोषित कर दी गई। |
पूना पैक्ट्(समझौता) अथवा कम्युनल अवॉर्ड जब दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7 sep 1931 में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा कि थी कि सांप्रदायिक समस्या को हल करने में भारतीय असफल रहे इसलिए सरकार इस समस्या का समाधान करेगी। इस घोषणा में मुसलमानों,सिक्खों,भारतीय इसाई आदि को पृथक प्रतिनिधित्व दिया गया। चुंकि इसकी घोषणा 16 August 1932 को प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने कि अतः इसे कम्युनल अवॉर्ड या सांप्रदायिक पंचाट कहा जाता है। हिन्दू समाज से हरिजनों को अलग कर दिया गया। मूल रूप से देखा जाए तो यह घोषणा फूट डालो और राज करो नीति पर काम करने वाली थी। गांधी जी ने कहा कि अगर सरकार इस सांप्रदायिक निर्णय की घोषणा करती है तो वे आमरण अनशन पर उतर जाएंगे। सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। अंततः गांधीजी ने को आमरण अनशन आरंभ करने की चेतावनी दी। अंत में सरकार को झुकना पड़ा और गांधीजी सहित,मदनमोहन मालवीय, डॉ°राजेन्द्र प्रसाद, राजगोपाल चारी, एम°सी°रज्जा के सहयोग से समझौता हुआ। 26 sep 1932 को समझौता पर हस्ताक्षर हुए। चुंकि यह समझौता भारत के पुणे में संपन्न हुआ अतः इसे पूना समझौता की संज्ञा दी गई। |
भारत छोड़ो आंदोलन क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद, गांधीजी ने अगस्त 1942 में बंबई से भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। तुरंत ही, गांधीजी और अन्य वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन पूरे देश में युवा कार्यकर्ताओं ने हमले और तोड़फोड़ की। भारत छोड़ो आन्दोलन एक जन आन्दोलन के रूप में लाया जा रहा है, जिसमें सैकड़ों हजार आम नागरिक और युवा अपने कॉलेजों को छोड़कर जेल चले गए। इस दौरान जब कांग्रेसी नेता जेल में थे, जिन्ना और अन्य मुस्लिम लीग के नेताओं ने पंजाब और सिंध में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए धैर्य से काम लिया, जहाँ उनकी उपस्थिति बहुत कम थी। जून, 1944 में गांधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया, बाद में उन्होंने मतभेदों को सुलझाने के लिए जिन्ना के साथ बैठक की। 1945 में, इंग्लैंड में श्रम सरकार सत्ता में आई और भारत को स्वतंत्रता देने के लिए खुद को प्रतिबद्ध किया। भारत में लॉर्ड वेवेल ने कांग्रेस और लीग के साथ बैठकें कीं। 1946 के चुनावों में, ध्रुवीकरण पूरी तरह से देखा गया था जब कांग्रेस सामान्य श्रेणी में बह गई थी लेकिन मुस्लिमों के लिए सीटें आरक्षित थीं। ये सीटें मुस्लिम लीग ने भारी बहुमत से जीती थीं। 1946 में, कैबिनेट मिशन आया लेकिन यह कांग्रेस को प्राप्त करने में विफल रहा और मुस्लिम लीग संघीय व्यवस्था पर सहमत हो गई जिसने भारत को एकजुट रखा और कुछ हद तक प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गई। वार्ता की असफलता के बाद जिन्ना ने पाकिस्तान के लिए मांग को दबाने के लिए सीधे कार्रवाई के दिन का आह्वान किया।16 अगस्त, 1946 को, कलकत्ता में दंगे भड़क उठे, बाद में बंगाल के अन्य हिस्सों, फिर बिहार, संयुक्त प्रांत और पंजाब तक फैल गए। दंगों में दोनों समुदायों को नुकसान हुआ। फरवरी 1947 में, वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने वेवेल की जगह ली। उन्होंने बातचीत के एक अंतिम दौर को बुलाया और जब वार्ता अनिर्णायक थी तो उन्होंने घोषणा की कि भारत को मुक्त कर दिया जाएगा और इसे विभाजित किया जाएगा। आखिरकार 15 अगस्त, 1947 को सत्ता भारत को हस्तांतरित हो गई। |
महात्मा गांधी के अंतिम वीर दिवस – गांधीजी ने आजादी के दिन को 24 घंटे के उपवास के साथ चिह्नित किया। स्वतंत्रता संग्राम देश के विभाजन के साथ समाप्त हो गया और हिंदू और मुसलमान एक दूसरे का जीवन चाह रहे थे। सितंबर और अक्टूबर के महीनों में गांधीजी अस्पतालों और शरणार्थी शिविरों में घूमे और लोगों को सांत्वना दी। उन्होंने सिखों, हिंदुओं और मुसलमानों से अतीत को भूलने और मित्रता, सहयोग और शांति का हाथ बढ़ाने की अपील की। गांधीजी और नेहरू के समर्थन में, कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों के अधिकार पर प्रस्ताव पारित किया। इसने आगे कहा कि पार्टी ने विभाजन को कभी स्वीकार नहीं किया, लेकिन इस पर उसे मजबूर किया गया। कांग्रेस ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश होगा , प्रत्येक नागरिक समान होगा। कांग्रेस ने भारत में अल्पसंख्यकों को आश्वस्त करने का प्रयास किया कि भारत में उनके अधिकारों की रक्षा की जाएगी। 26 जनवरी, 1948 को, गांधी जी ने कहा, पहले स्वतंत्रता दिवस इसी मनाया जाता था, अब स्वतंत्रता आ गई है लेकिन इसका गहरा मोहभंग हो गया है। उनका मानना था कि सबसे बुरा है। उन्होंने स्वयं को यह आशा करने की अनुमति दी कि यद्यपि भौगोलिक और राजनीतिक रूप से भारत दो में विभाजित है, पर हम कभी भी मित्र और भाई होंगे जो एक दूसरे की मदद और सम्मान करेंगे और बाहरी दुनिया के लिए एक होंगे। गांधीजी की हिंदू उग्रवादी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। नाथूराम गोडसे हिंदू चरमपंथी, अखबार के एक संपादक थे जिन्होंने गांधीजी को मुसलमानों के एक अपीलकर्ता के रूप में निरूपित किया था। गांधीजी की मृत्यु से शोक की असाधारण अभिव्यक्ति हुई, भारत में राजनीतिक स्पेक्ट्रम पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई और जॉर्ज ऑर्वेल, आइंस्टीन, आदि टाइम पत्रिका से सराहना करते हुए टाइम पत्रिका ने उनकी मृत्यु की तुलना अब्राहम लिंकन से की। |
महात्मा गांधी को जानना – अलग-अलग स्रोत हैं जिनसे राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास और गांधीजी के राजनीतिक कैरियर का पुनर्निर्माण किया जा सकता है। घटनाओं को जानने के लिए महात्मा गांधी और उनके समकालीनों के लेखन और भाषण महत्वपूर्ण स्रोत थे। हालाँकि एक अंतर है, भाषण सार्वजनिक करने के लिए थे, जबकि निजी पत्र भावनाओं और सोच को व्यक्त करने के लिए थ, जिन्हें सार्वजनिक रूप से व्यक्त नहीं किया जा सकता था। व्यक्तियों को लिखे गए कई पत्र व्यक्तिगत थे लेकिन वे जनता के लिए भी थे। पत्र की भाषा को इस जागरूकता से आकार दिया गया था कि इसे प्रकाशित किया जा सकता है, इसलिए यह अक्सर लोगों को स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने से रोकता है। आत्मकथाएँ हमें अतीत का लेखा-जोखा देती हैं, लेकिन इसे पढते और व्याख्या करते समय सावधानी बरतने की ज़रूरत है। वे लेखक की स्मृति के आधार पर लिखे गए हैं। सरकारी अभिलेख, आधिकारिक पत्र भी इतिहास को जानने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत थे। लेकिन इसकी सीमाएं भी हैं क्योंकि ये ज्यादातर पक्षपाती थे इसलिए इसे सावधानी से व्याख्या करने की आवश्यकता है। अंग्रेजी और अन्य वर्नाक्यूलर में समाचार पत्र की भाषाओं ने गांधीजी के आंदोलन, राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता आंदोलन और गांधीजी के बारे में भारतीयों की भावना को ट्रैक किया। समाचार पत्र को उतने अयोग्य के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि वे उन लोगों द्वारा प्रकाशित किए गए थे जिनके पास अपनी राजनीतिक राय और विचार थे। |