NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई० (The Central Islamic Lands) Question & Answer In Hindi

NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई० (The Central Islamic Lands)

Text BookNCERT
Class  11th
Subject History
ChapterChapter – 4
Chapter Nameइस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई०
CategoryClass 11th History
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई० (The Central Islamic Lands)

?Chapter – 4?

इस्लाम का उदय और विस्तार-लगभग 570 – 1200 ई०

?Question Answer?

अभ्यास प्रश्न 

प्र०1. सातवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों में बेदुइओं के जीवन की क्या विशेषताएँ थीं?
?‍♂️उत्तर सातवीं शताब्दी में अरब का समाज अनेक कबीलों में विभाजित था। प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता
था, वह कुछ सीमा तक पारिवारिक संबंधों के आधार पर तथा व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता और उदारता (मुरव्वा) के आधार पर चुना जाता था। प्रत्येक कबीले के अपने स्वयं के अलग-अलग देवी-देवता होते थे, जो बुतों (सनम) के रूप में मस्जिदों में पूजे जाते थे। बहुत से अरब कबीले खानाबदोश या बद्दू अर्थात् बेदूइनी होते थे। ये लोग आमतौर पर मुख्यतः भोजन के खाद्य पदार्थ के रूप में खजूर और अपने ऊँटों के लिए चारे की तलाश में रेगिस्तान में सूखे क्षेत्रों से हरे-भरे क्षेत्रों ( नखलिस्तानों) की ओर जाते रहते थे।

हम जानते हैं कि नखलिस्तानों में पानी के चश्मे (झील) तथा खजूर के पेड़ों के झुंड पाए जाते हैं। इन नखलिस्तानों के आसपास बेदूइनी छोटी-छोटी खेती करके अपनी आवश्यकतानुसार अनाज उत्पन्न कर लेते थे। अनाज का भूसा ऊँटों के चारे के काम में आता था।

अरब कबीलों में राजनीतिक विस्तार तथा सांस्कृतिक समानता लाना आसान काम नहीं था। उनमें परस्पर अपने-अपने कबीलों के वर्चस्व को कायम रखने के लिए प्रायः झगड़े होते रहते थे। अतः उनका जीवन संघर्षशील और युद्धों में उलझा हुआ था।

ऊँट उनके परिवहन का मुख्य साधन तथा सुख-दुख का साथी था। ऊँट के बिना रेगिस्तान में उनका जीवित रहना असंभव था। इसके अतिरिक्त बदूइओं का जीवन रेगिस्तान की शुष्क रेत के समान ही शुष्क बन गया था। नि:संदेह रेगिस्तान की जलवायु ने उन्हें कठोर तथा बर्बर बना दिया था। अरबों में मूर्तिपूजा का प्रचलन था। प्रत्येक कबीले के अपने देवी-देवता होते थे। इनकी बुतों (सनम) के रूप में मस्जिदों में पूजा की जाती थी। मक्का कबीलों का एक प्रसिद्ध स्थान था। साथ ही मक्का में कुरैश नामक कबीलों का अत्यधिक प्रभाव था। अरबों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र काबा भी यहीं पर स्थित था।

प्र० 2. ‘अब्बासी क्रांति’ से आपका क्या तात्पर्य है?
?‍♂️उत्तरउमय्यद वंश को मुस्लिम राजनैतिक व्यवस्था के केंद्रीयकरण की सफलता के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी। ‘दवा’ नामक
एक सुनियोजित आंदोलन द्वारा उमय्यद वंश का पतन किया गया। सन् 750 में इस वंश की जगह अब्बासियों ने ले ली जो मक्का के निवासी थे। अब्बासियों में उमय्यद शासन को दुष्ट बताया और यह पेशकश की कि वे पैगंबर मुहम्मद के मूल इस्लाम की पुनस्र्थापना करेंगे। इस क्रांति से न केवल वंश परिवर्तन हुआ बल्कि इस्लाम के राजनैतिक ढाँचे और उसकी संस्कृति में भी भारी परिवर्तन आए।।

अब्बासियों का विद्रोह खुरासान (पूर्वी ईराम) के बहुत दूर स्थित क्षेत्र से शुरू हुआ। यह स्थान इतना ज्यादा दूर था कि दमिश्क से बहुत तीव्रगामी घोड़ों से 20 दिन में वहाँ पहुँचा जा सकता था। खुरासान में अरब ईरानियों की मिली-जुली आबादी थी। यहाँ पर अधिकांश सैनिक इराक से आए थे और वे सीरियाई लोगों के वर्चस्व से असंतुष्ट थे। खुरासान के अरब नागरिक उमय्यद शासन से घृणा करते थे। इसका कारण यह था कि अपने शासन में करों में जो रियायतें और विशेषाधिकार देने के वचन दिए गए थे, वे उसे पूरे नहीं कर सके थे। जहाँ तक ईरानी मुसलमानों या मवालियों का संबंध है, उन्हें अपनी जातीय चेतना से ग्रस्त अरबों की उपेक्षा का शिकार बनना पड़ा था और वे उमय्यदों को बाहर निकालने के किसी भी अभियान में जुड़ जाना चाहते थे।

पैगंबर के चाचा अब्बास के वंशज अब्बासियों ने विभिन्न असहमत समूहों का समर्थन प्राप्त किया और यह वचन दिया कि पैगंबर के परिवार (अहल-अल-बयत) का कोई मसीहा (महदी) उन्हें उमय्यदों के शोषणकारी शासन से आजादी दिलाएगा और सत्ता प्राप्ति के अपने तरीकों को इस्लामिक दृष्टि से वैध बताया। एक ईरानी गुलाम अबू मुस्लिम ने उनकी सेना का नेतृत्व किया और उमय्यदों के अंतिम खलीफा मारवान को जब नदी पर हुई, लड़ाई में पराजित किया।

अब्बासी शासनकाल में अरबों के प्रभाव में कमी आई और ईरानी संस्कृति का वर्चस्व बढ़ गया। अब्बासियों ने अपनी राजधानी प्राचीन ईरानी महानगर टेसीफोन के खंडहरों के पास बगदाद में स्थापित की। उन्होंने सेना व नौकरशाही का पुनर्गठन गैर-कबीलाई पृष्ठभूमि का किया। अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति और कार्यों को सुदृढ़ बनाया और इस्लामी संस्थाओं तथा विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। उन्होंने उमय्यदों के शानदार शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपरा को बनाए रखा। यही घटनाएँ इस्लाम के इतिहास में अब्बासी क्रांति के नाम से जानी जाती हैं।

प्र० 3. अरबों, ईरानियों व तुर्को द्वारा स्थापित राज्यों की बहुसंस्कृतियों के उदाहरण दीजिए।
?‍♂️उत्तर अब्बासी शासनकाल में अरबों के प्रभाव में हास होता गया है और ईरानी संस्कृति का प्रभाव काफी हद तक बढ़ गया।
अब्बासियों ने अपनी राजधानी प्राचीन ईरानी महानगर टेसीफोन के खंडहरों के पास बगदाद में स्थापित की। इराक और खुरासान की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना और नौकरशाही का पुनर्गठन गैर-कबीलाई आधार पर किया गया। अब्बासी शासकों ने खिलाफ़त की धार्मिक स्थिति व कार्यप्रणाली को सुदृढ़ बनाया और इस्लामी संस्थाओं और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया। उन्होंने उमय्यदों की उत्कृष्ट शाही वास्तुकला और राजदरबार के व्यापक समारोहों की परंपरा को बनाए रखा।

इस्लाम धर्म के प्रचार-प्रसार में अरबों, ईरानियों व तुर्को ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अरबों का वर्चस्व अरब व सीरिया, ईरानियों का इराक व ईरान तथा तुर्को का खुरासान व ऑक्सस आदि पर था। प्रत्येक राज्य में गैर-मुस्लिम लोगों से कर प्राप्त कर लेने के बाद उचित आचरण किया जाता था। उनको अपनी संपत्ति रखने और आर्थिक कार्यों की पूर्ति के लिए अधिकार प्राप्त थे।

दूर स्थित प्रांतों पर बगदाद का नियंत्रण कम होने से नौवीं शताब्दी में अब्बासी राज्य कमजोर हो गया। इस कमजोरी का एक प्रमुख कारण अरब समर्थकों व ईरान समर्थकों की आपसी विचारधारा में बदलाव आना था।

इस्लामी समाज सन् 950 से 1200 के मध्य किसी एकल राजनीतिक व्यवस्था और संस्कृति की एकल भाषा (अरबी) से एकजुट नहीं रहा, बल्कि सामान्य आर्थिक व सांस्कृतिक प्रतिरूपों द्वारा उनमें एकजुटता बनी रही। फ़ारसी का विकास इस्लामी संस्कृति की उच्च भाषा के रूप में किया गया। इस एकता के निर्माण में बौद्धिक परम्पराओं के मध्य संवाद की परिपक्वता ने भी अहम भूमिका निभाई। विद्वान व व्यापारी वर्ग इस्लामी राज्यों में स्वतंत्र रूप से भ्रमण कर सकते थे तथा-विचारों व तौर-तरीकों में खास भूमिका निभाते थे, कुछ लोग धर्मान्तरण के फलस्वरूप गाँवों के स्तर तक नीचे पहुँच गए थे।

दसवीं व ग्यारहवीं शताब्दियों में तुर्की सल्तनत के उदय के परिणामस्वरूप अरबों व ईरानियों के साथ तीसरा प्रजातीय समूह तुर्की लोगों का भी जुड़ाव हुआ। तुर्की तुर्किस्तान के मध्य एशियाई घास के क्षेत्रों के खानाबदोश कबीलाई थे और इन लोगों द्वारा शनैः-शनै इस्लाम धर्म कबूल कर लिया गया। वे कुशल घुड़सवार व योद्धा थे और वे गुलामों और सैनिकों के रूप में अब्बासी, सुमानी और बुवाही प्रशासनों में सम्मिलित हो गए।

इस प्रकार वर्तमान समाज का बहुसांस्कृतिक स्वरूप उभरकर सामने आया जो अरबों, ईरानियों व तुर्को द्वारा सिंचित हुआ था।

प्र० 4. यूरोप वे एशिया पर धर्मयुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
?‍♂️उत्तर पोप अर्बन द्वितीय (Urban II) और बाइजेंटाइन सम्राट एलेक्सियम प्रथम (Alexius I) ने 1095 से 1291 के मध्य पूर्वी भूमध्यसागर के तटवर्ती मैदानों में मुस्लिम शहरों के विरुद्ध धर्म के नाम पर मुसलमानों के साथ कई लड़ाइयाँ लड़ीं जिन्हें धर्मयुद्ध या जेहाद कहा गया।

इन धर्मयुद्धों का विवरण निम्नलिखित है

1. प्रथम धर्मयुद्ध (1098-1099)-फ्रांस और इटली के सैनिकों ने सीरिया में एंटीओफ और जेरूसलम पर
कब्ज़ा कर लिया। इस युद्ध के दौरान मुसलमानों और यहूदियों की निर्मम हत्याएँ की गई। मुस्लिम लेखकों ने ईसाइयों को फिरंगी अथवा इफ्रिजी कह कर संबोधित किया। इन्होंने सीरिया-फिलिस्तीन के क्षेत्र में चार राज्य स्थापित किए, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आउटरैमर’ अर्थात समुद्रपारीय भूमि कहा जाता है। यह याद रखने योग्य है कि बाद के धर्मयुद्ध इसी प्रदेश की रक्षा और विस्तार के लिए लड़े गए थे।

2. द्वितीय धर्मयुद्ध (1145-49)-इस युद्ध के दौरान जर्मन और फ्रांसीसी सेना ने दमिश्क पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें हारकर घर लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। परिणामतः आउटरैमर की शक्ति कम होती चली गई और धर्मयुद्ध का जोश अब खत्म हो गया। लेकिन अंत में ईसाई तीर्थयात्रियों के लिए जेरूसलम में स्वतंत्र रूप से प्रवेश करने का अधिकार मिल गया।

3. तीसरा धर्मयुद्ध (सन् 1291 में) – ईसाइयों को फिलिस्तीन से बाहर भगा दिया गया और उनके विरुद्ध मुस्लिम राज्यों का रुख सख्त और मुस्लिम सत्ता की पुनः बहाली हो गई।
धीरे-धीरे यूरोप की इस्लाम में सैनिक दिलचस्पी समाप्त हो गई। अब उसका ध्यान अपने आंतरिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास की ओर केंद्रित हो गया।

यूरोप वे एशिया पर धर्मयुद्धों का प्रभाव – यूरोप व एशिया महाद्वीपों के जनजीवन पर धर्मयुद्धों का अत्यधिक व्यापक वे गहरा प्रभाव पड़ा।

सही प्रभाव – धर्मयुद्धों के विनाशकारी व भयंकर होने के बावजूद कुछ सही प्रभाव जनजीवन पर पड़े; जैसे-

  • युद्धों के फलस्वरूप यूरोपीय सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ। अरबों के साथ मिलने से ज्ञान का व्यापक विस्तार हुआ।
  • पश्चिम और पूर्व में आपसी व्यापारों में बढ़ोतरी व नए-नए पदार्थों का ज्ञान हुआ। यूरोपवासियों ने रेशम, कपास, चीनी, सीसे के बर्तनों, गरम मसालों व दवाओं आदि से परिचय प्राप्त किया।
  • यूरोपीय व एशियाई लोगों में धैर्य व उत्साह की वृद्धि हुई।
  • अनेक नवीन भौगोलिक खोजें हुई।

गलत प्रभाव – धर्मयुद्धों के कारण यूरोप व एशिया महाद्वीपों पर कुछ गलत प्रभाव भी पड़े; जैसे –

  • व्यापक स्तर पर जन व धन की हानि हुई।
  • ईसाइयों की कमजोरी सिद्ध हुई और पोप के सम्मान में भी भारी क्षति आई।

प्र० 5. रोमन साम्राज्य के वास्तुकलात्मक रूपों से इस्लामी वास्तुकलात्मक रूप कैसे भिन्न थे?
?‍♂️उत्तर रोमन साम्राज्य की वास्तुकला की विशेषताएँ-रोमन साम्राज्य की वास्तुकला अत्यधिक कुशलतापूर्ण थी। रोमन साम्राज्य
के भवन निर्माण या वास्तुकला के प्रारूप रोमन शासकों के महान क़लात्मक प्रेम को प्रदर्शित करती हैं। उनकी वास्तुकला की निम्न विशेषताएँ देखने को मिलती हैं-रोमन वास्तु कलाकारों द्वारा ही सर्वप्रथम कंक्रीट का प्रयोग किया गया था। उन कलाकारों ने दुनिया को ईंट व पत्थर के टुकड़ों को मजबूती से जोड़ने की कला का ज्ञान कराया गया। रोमन कलाकारों ने वास्तुकला निर्माण के क्षेत्र में दो नए प्रयोग किए-(i) डाट का प्रयोग और (ii) गुम्बदों का आविष्कार।

रोमन वास्तुकला में निपुण कलाकार डाट की सहायता से दो-तीन मंजिला इमारतें बनाते चले गए। डाटों का इस्तेमाल पुल, द्वार और विजय स्मारकों के निर्माण में अधिक किया गया था।

उदाहरण के लिए

  • रोम के फोरम जूलियस की दुकानें। पुराने रोमन फोरम के विस्तार के लिए 51 ई० के बाद स्तंभों वाले इस चौक (पिआजा) को बनाया गया।
  • चित्र नाइम्स के पास पान दु गार्ड फ्रांस, प्रथम शताब्दी ई० के रोम इंजीनियरों ने तीन महाद्वीपों के पार पानी ले जाने के लिए विशाल जलसेतुओं (Aqueducts) का निर्माण किया।

पोम्पई – एक मदिरा व्यापारी का भोजन कक्ष। कमरे की दीवारों पर मिथक पशु बनाए गए हैं। 79 ई० में बना कोलोसिथम जहाँ तलवारिये (तलवार चलाने के निपुण योद्धा) जंगली जानवरों का मुकाबला करते थे। यहाँ एक साथ 60,000 दर्शक बैठ सकते थे।

रोमन कलाकारों द्वारा बनाए गए कोलोसियम और पेथियन नामक भवन वास्तुकला के उत्कृष्ट प्रारूप हैं। कोलोसियम एक प्रकार का गोलाकार थियेटर की आकृति का था जहाँ रोमवासी पशुओं व जंगली तथा दासों के मध्य होने वाली लड़ाइयों को बैठकर देखते थे। थियन एक गोल गुम्बद है। इसकी ऊँचाई व चौड़ाई लगभग 142 फीट है और इसका निर्माण रोम सम्राट हैड्रियन द्वारा कराया गया था।

रोमन वास्तुकला के लोग इंजीनियरी कला से भी आगे निकल चुके थे। उनके द्वारा बनाए गए पुल व सड़कें आज भी विद्यमान हैं।

इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएँ – अरब या मुस्लिम वास्तुकला निर्माताओं ने मेहराब, गुम्बद का निर्माण करना रोमन लोगों से सीखा। उन्होंने उनकी नकल पर अनेक उत्कृष्ट मस्जिदों या इबादतगाहों तथा मकबरों व मेहराबों या मदरसों का निर्माण किया। इस्लामी वास्तुकला की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

दसवीं शताब्दी की अवधि तक इस्लामी जगत् का ऐसा स्वरूप उभरा जिसे पहचानना आसान था। इस्लामी साम्राज्यों में अनेक धार्मिक इमारतें, इस्लामी जगत की पहचान बनीं। मध्य एशिया से लेकर स्पेन तक जितनी भी मस्जिदें, मदरसे व मकबरे बने उन सभी का मूल प्रारूप एक जैसा था। उन्होंने वास्तुकला के निर्माण में नवीनता मीनारों और खुले सहन आदि के क्षेत्र में दिखलायी। ये सभी इमारतें मुस्लिम समुदाय की आध्यात्मिकता और व्यावहारिक आवश्यकताओं की जरूरतें थीं।

इस्लाम की पहली सदी में मस्जिद ने एक विशेष वास्तुशिल्पीय रूप (खंभों के सहारे वाली छत) प्राप्त कर लिया था। इसे हम प्रादेशिक भिन्नताओं से अलग कर सकते हैं। प्रत्येक मस्जिद में एक खुला प्रांगण (आँगन) होता था जहाँ एक फव्वारा अथवा जलाशय का निर्माण किया जाता था। यह प्रांगण एक बड़े कक्ष की ओर खुलता था जिसमें इबादत करने वालों की लम्बी पंक्तियों और नमाज के नेतृत्व करने वाले इमाम के लिए विस्तृत स्थान होता था। बड़े कक्षों की दो विशेषताएँ थीं

  • दीवार में एक मेहराब होती थी जो मक्का (किबला) की ओर निर्देशित करती थी।
  • एक मंच या मिम्बर जिसका प्रयोग शुक्रवार को दोपहर की नमाज के समय प्रवचन देने के लिए किया जाता था।

इमारत मुख्य रूप से मीनार से जुड़ी होती है। इस मीनार का प्रयोग नियत समयों पर प्रार्थना हेतु बुलाने के लिए किया जाता है। मीनार नए धर्म के अस्तित्व का प्रतीक था। शहरी और ग्रामीण स्थलों में समय का अनुमान पाँच दैनिक प्रार्थनाओं व साप्ताहिक प्रवचनों की मदद से लगाते थे।

 

यह है दूसरी अब्बासी राजधानी समारा की अल-मुतव्वकिल की महान मस्जिद। इसका निर्माण सन् 850 ई० में हुआ था। इसकी ऊँचाई 50 मीटर है। इसका निर्माण ईंटों द्वारा हुआ है तथा मेसोपोटामिया की वास्तुकला की परंपराओं के प्रति प्रेरित यह महान मस्जिद कई शताब्दियों तक संसार की सबसे बड़ी मस्जिद थी।

 

यह है 1233 में स्थापित मुस्तनसिरिया मदरसे (महाविद्यालय) का आँगन। मदरसे मस्जिदों से जुड़े होते थे, लेकिन बड़े मदरसों की अपनी मस्जिदें होती थीं।

पथरीले टीले के ऊपर अल-मलिक चट्टान का गुंबद, इस्लामी वास्तुकला का पहला बड़ा नमूना है। जेरूसलम नगर की मुस्लिम के प्रतीक रूप में इस स्मारक का निर्माण किया गया।

केंद्रीय प्रांगणों के चारों ओर निर्मित इमारतों के निर्माण का प्रारूप न केवल मस्जिदों व मकबरों में बल्कि काफिलों की सरायों, अस्पतालों और महलों में भी पाया जाता था। उमय्यदों ने नखलिस्तानों में ‘मरुस्थली महलों का निर्माण कराया; जैसे–फिलिस्तीन में खिरबत अल-मफजर व जोर्डन में कुसाईर अमरा। ये सभी शानदार व विलासपूर्ण निवास स्थानों और शिकार तथा मनोरंजन के लिए विश्राम-स्थलों के रूप में काम में आते थे।

इस फर्श को चित्रों, प्रतिमाओं एवं पच्चीकारी की सुंदर कला से सुसज्जित किया गया था। इनका निर्माण नि:संदेह रोमन व ससानी वास्तुशिल्प के प्रभावस्वरूप हुआ था।

प्र० 6. रास्ते में पड़ने वाले नगरों का उल्लेख करते हुए समरकंद से दमिश्क तक की यात्रा का वर्णन कीजिए।
?‍♂️उत्तरसमरकंद से दमिश्क तक यात्रा करने में हमें अनेक देशों; जैसे-उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, इराक और सीरिया आदि से होकर जाना पड़ेगा।

सड़क मार्ग द्वारा यात्रा के दौरान पड़ने वाले शहर – समरकन्द से सड़क मार्ग द्वारा यात्रा करने पर हम कर्मी (उजबेकिस्तान), करकी (तुर्कमेनिस्तान), तेहरान (ईरान), बगदाद (इराक) से होते हुए दमिश्क पहुँचते हैं।

रेलमार्ग द्वारा यात्रा के दौरान पड़ने वाले शहर – समरकन्द से रेलमार्ग द्वारा यात्रा के दौरान पड़ने वाले शहरों में बुखारा (उजबेकिस्तान), करकी (तुर्कमेनिस्तान), मशाद (ईरान), तेहरान (ईरान), बोआन (ईरान), बगदाद (इराक), अनाम (इराक) जैसे शहर प्रमुख हैं।

नि:संदेह समरकंद, तेहरान, बग़दाद तथा दमिश्क आदि इस यात्रा के महत्त्वपूर्ण नगर हैं जिनका वर्णन निम्नवत् किया जा सकता है

समरकंद मध्य एशिया का सबसे प्राचीन नगर है और अपने पुराने भवनों, मस्जिदों, मकबरों आदि के कारण प्रसिद्ध है। तैमूर का मकबरा यहीं पर है। आज यह एक औद्योगिक नगर बन गया है और यह नगर चाय, शराब, वस्त्र उद्योग और मोटरसाइकिल उद्योग के लिए जाना जाता है।

तेहरान ईरान की राजधानी है जबकि बगदाद इराक की राजधानी है और दमिश्क सीरिया की राजधानी है। ये सभी राजधानियाँ हैं। ये सभी राजधानियाँ अनेक राजनीतिक, औद्योगिक, शैक्षणिक, सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र तथा प्राचीनता और आधुनिकता के लक्षणों से युक्त हैं।

इसके अतिरिक्त ईरान एक प्राचीन और महान देश है और यह अपनी सभ्यता एवं वीरता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस्लाम इस देश का धर्म है। यहाँ फ़ारसी, कुर्दिश और, अरबी भाषाओं का प्रचलन है। इसके साथ ही, ईरान एक इस्लामिक गणराज्य भी है। विशेषतः यह देश अपने गलीचों के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है।

इराक, ईरान का पड़ोसी देश है। मुख्य थल और जलमार्ग पर स्थित होने के कारण इसकी राजधानी बगदाद, खिलाफत का एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं आर्थिक केंद्र बन गया था। खलीफा हारून-अल-रशीद के शासनकाल में बगदाद समृद्धि की चरम पर पहुँच गया था। इस देश की भाषा अरबी और धर्म इस्लाम है। पेट्रोलियम इस देश की अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मद है। इसके अतिरिक्त यह देश विश्व में खजूर निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है।

कहा जाता है कि दमिश्क मस्जिदों का शहर है। यहाँ मस्जिदों की संख्या करीब दो हजार से भी अधिक है। उमैय्यद मस्जिद यहाँ की सबसे प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह मस्जिद विश्व की सर्वाधिक विशाल मस्जिदों में से एक है। वर्तमान समय में दमिश्क सीरिया की राजधानी है। इस्लाम यहाँ का धर्म है और यहाँ अरबी, कुर्दिश तथा आमेनियन भाषाओं का व्यापक प्रयोग किया जाता है। कृषि और पशुपालन यहाँ के लोगों के मुख्य जीविका के साधन हैं।

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