NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 तीन वर्ग (The Three Orders)
Text Book | NCERT |
Class | 11th |
Subject | History |
Chapter | 4th |
Chapter Name | तीन वर्ग (The Three Orders) |
Category | Class 11th History Notes In Hindi |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 तीन वर्ग (The Three Orders) Notes In Hindi जिसमे हम तीन वर्ग कौन कौन हैं?नाइट कौन था?, तीसरा वर्ग किसका था?, मध्य युग कब से कब तक था?, वर्ग की पहचान क्या है?, वर्ग 2 को क्या कहा जाता है?, वर्ग का परिमाप क्या होता है?, पादरी वर्ग क्या है?, वैसलेज सिस्टम क्या था?, पादरी वर्ग क्या है?, वैसलेज सिस्टम क्या था?, पादरी और कुलीन कौन थे?, चर्च में पुजारी को क्या कहते हैं?, वर्ग कितने होते है?, वर्ग का सूत्र क्या होता है? आदि के बारे में पढेंगें। |
NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 तीन वर्ग (The Three Orders)
Chapter – 4
तीन वर्ग
Notes
तीन वर्ग – यूरोप में फ्रांसिसी समाज मुख्यत : तीन वर्गों में विभाजित था जो निम्नलिखित है-
पादरी वर्ग
- ईसाई समाज का मार्गदर्शन।
- चर्च में धर्मोपदेश।
- भिक्षु : – निश्चित नियमों का पालन।
- धार्मिक समुदायों में रहना।
- आम आदमी से दूर मठों में निवास।
अभिजात वर्ग सैन्य क्षमता।
कृषक वर्ग
ये दो प्रकार के है-
- स्वतंत्र किसान – अपनी भूमि को लार्ड के काश्तकार के रूप में देखना।
- कृषि दास या सर्फ – लार्ड के भूखण्डों पर कार्य करना।
यूरोपीय इतिहास की जानकारी के स्त्रोत – भू – स्वामियों के विवरण, मूल्यों और विधि के मुकदमों के दस्तावेज जैसे कि चर्च में मिलने वाले जन्म, मृत्यु और विवाह के आलेख। चर्च से प्राप्त अभिलेखों ने व्यापारिक संस्थाओं और गीत व कहानियों द्वारा त्योहारों व सामुदायिक गतिविधियों का बोध कराया।
सामंतवाद – सामन्तवाद शब्द जर्मन शब्द फ्यूड से बना है। फ्यूड का अर्थ है – भूमि का टुकड़ा।
• सामन्तवाद एक तरह के कृषि उत्पादन को दर्शाता है जो सामंतों और कृषकों के संबंधों पर आधारित है। कृषक लार्ड को श्रम सेवा प्रदान करते थे और बदले में वे उन्हें सैनिक सुरक्षा देते थे।
• सामन्तवाद पर सर्वप्रथम काम करने वाले फ्रांसीसी विद्वान मार्क ब्लॉक के द्वारा भूगोल के महत्व पर आधारित मानव इतिहास को गढ़ने पर जोर, जिससे कि लोगों के व्यवहार और रुख को समझा जा सके।
पादरियों व बिशपों द्वारा ईसाई समाज का मार्गदर्शन
• ये प्रथम वर्ग के सदस्य थे जो चर्च में धर्मोपदेश, अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति जो चर्च के बाहर धार्मिक समुदायों में रहते थे भिक्षु कहलाते थे। ये भिक्षु मठों पर रहते थे और निश्चित नियमों का पालन करते थे।
• इनके पास राजा द्वारा दी गई भूमियाँ थी, जिनसे वे कर उगाह सकते थे। अधिकतर गाँव में उनके अपने चर्च होते थे जहाँ वे प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इक्कठा होते थे।
भिक्षु और मठ – चर्च के आलावा कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक दूसरी तरह की संस्था थी। जो मठों पर रहते थे और एकांत जीवन व्यतीत करते थे। ये मठ मनुष्य की आम आबादी से बहुत दूर हुआ करती थी।
दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठों के नाम
- 529 में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट मठ।
- 910 में बरगंडी में स्थापित क्लूनी मठ।
भिक्षुओं की विशेषताएँ
- ये मठों में रहते थे।
- इन्हें निश्चित और विशेष नियमों का पालन करना होता था।
- ये आम आबादी से बहुत दूर रहते थे।
- भिक्षु अपना सारा जीवन ऑबे में रहने और समय प्रार्थना करने, अध्ययन और कृषि जैसे शारीरिक श्रम में लगाने का व्रत लेता था।
- पादरी – कार्य के विपरीत भिक्षु की जिंदगी पुरुष और स्त्रिायाँ दोनों ही अपना सकते थे – ऐसे पुरुषों को मोंक (Monk) तथा स्त्रियाँ नन (Nun) कहलाती थी।
- पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग – अलग ऑबे थे। पादरियों की तरह, भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकती थे।
- वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम – घूम कर लोगों को उपदेश देते और दान से अपनी जीविका चलाते थे।
फ्रांसिसी समाज में मठों का योगदान
- मठों कि संख्या सैकड़ों में बढ़ने से ये एक समुदाय बन गए जिसमें बड़ी इमारतें और भू – जागीरों के साथ – साथ स्कूल या कॉलेज और अस्पताल बनाए गए।
- इन समुदायों ने कला के विकास में योगदान दिया।
- आबेस हिल्डेगार्ड एक प्रतिभाशाली संगीतज्ञ था जिसने चर्च की प्रार्थनाओं में सामुदायिक गायन की प्रथा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- तेरहवीं सदी से भिक्षुओं के कुछ समूह जिन्हें फ्रायर (Frlars) कहते थे, उन्होंने मठों में न रहने का निर्णय लिया।
अभिजात वर्ग – यूरोप के सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका थी। ऐसे महत्वपूर्ण संसाधन भूमि पर उनके नियंत्रण के कारण था। यह वैसलेज (Vassalage) नामक एक प्रथा के विकास के कारण हुआ था। बड़े भू स्वामी और अभिजात वर्ग राजा के आधीन होते थे जबकि कृषक भू – स्वामियों के अधीन होते थे। अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे।
सेन्योर / लॉर्ड – सेन्योर / लॉर्ड (लॉर्ड एक ऐसे शब्द से निकला जिसका अर्थ था रोटी देने वाला) दास (Vassal) की रक्षा करता था और बदले में वह उसके प्रति निष्ठावान रहता था । इन संबंधों में व्यापक रीति रिवाजों और शपथ लेकर की जाती थी।
अभिजात वर्ग की विशेषताएँ
- अभिजात वर्ग की एक विशेष हैसियत थी। उनका अपनी संपदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियंत्राण था।
- वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे उनके पास अपनी सामंती सेना थी।
- वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे।
- यहाँ तक कि अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।
- वे अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक थे।
कृषक वर्ग – स्वतंत्र और बंधकों (दासों) का वर्ग था। यह वर्ग एक विशाल समूह था जो पहले दो वर्गों पादरी और अभिजात वर्ग का भरण पोषण करता था।
काश्तकार दो प्रकार के होते थे
(i) स्वतंत्र किसान
(ii) सर्फ़ (कृषि दास)
स्वतंत्र कृषकों की भूमिका
• स्वतंत्र कृषक अपनी भूमि को लॉर्ड के काश्तकार के रुप में देखते थे।
• पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था (वर्ष में कम से कम चालीस दिन)।
• कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘श्रम – अधिशेष (Labour rent) कहते थे, सीधे लार्ड के पास जाता था।
• इसके अतिरिक्त, उनसे अन्य श्रम कार्य जैसे – गढ्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इक्कठी करना, बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करने की भी उम्मीद की जाती
थी और इनके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी।
• खेतों में मदद करने के अतिरिक्त, स्त्रियों व बच्चों को अन्य कार्य भी करने पड़ते थे। वे सूत कातते, कपड़ा बुनते, मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के उपयोग हेतु अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे।
टैली (Taile) – राजा द्वारा कृषकों पर लगाये जाने वाले प्रत्यक्ष कर को टैली (Taille) कहा जाता था।
श्रम अधिशेष – कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे। इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे ‘श्रम – अधिशेष‘ (Labour rent) कहते थे, सीधे लार्ड के पास जाता था।
कृषि दास – वे कृषक जो लार्ड के स्वामित्व में ही कार्य कर सकते थे कृषि दास कहलाते थे।
ग्यारहवीं शताब्दी तक यूरोप में विभिन्न प्रौद्योगिकी में बदलाव
- लकड़ी के हल के स्थान पर लोहे के भारी नोक वाले हल और साँचेदार पटरे का प्रयोग।
- पशुओं के गले के स्थान पर जुआ अब कंधे पर।
- घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल का प्रयोग।
- कृषि के लिये वायु और जलशक्ति का प्रयोग।
- संपीडको व चक्कियों में भी वायु तथा जलशक्ति का प्रयोग।
- दो खेतों की व्यवस्था के स्थान पर तीन खेतों वाली व्यवस्था का उपयोग। कृषि उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी।
- भोजन की उपलब्धता दुगुनी।
- कृषकों को बेहतर अवसर।
- जोतों का आकार छोटा।
- इससे अधिक कुशलता के साथ कृषि कार्य होना व कम श्रम की आवश्यकता।
- कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय।
चौदहवीं शताब्दी का संकट – चौदहवीं शताब्दी के आरंभ में यूरोप को आर्थिक विस्तार धीमा पड़ने के कारण-
- तेरहवीं सदी के अंत तक उत्तरी यूरोप में तेज ग्रीष्म ऋतु का स्थान ठंडी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया।
- पैदावार के मौसम छोटे, तूफानों व सागरीय बाढ़ों से फार्म प्रतिष्ठान नष्ट। सरकार को करों से आमदनी में कमी।
- पहले की गहन जुताई के तीन क्षेत्रीय फसल चक्र से भूमि कमजोर।
- चरागाहों की कमी से पशुओं की संख्या में कमी।
- जनसंख्या वृद्धि के कारण उपलब्ध संसाधन कम पड़ना।
- 1315 – 1317 में यूरोप में भयंकर अकाल, 1320 ई. में अनेक पशुओं की मौत। आस्ट्रिया व सर्बिया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी।
- धातु – मुद्रा में कमी से व्यापार प्रभावित।
- जल पोतों के साथ चूहे आए जो ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण लाए। लाखों लोग ग्रसित।
- विनाशलीला के साथ आर्थिक मंदी से सामाजिक विस्थापन हुआ। मजदूरों की संख्या में कमी आई इससे मजदूरी की दर में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि।
राजनीतिक परिवर्तन
नए शक्तिशाली राज्यों का उदय – संगठित स्थायी सेना, एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया आरंभ।
नई शासन व्यवस्था पूरानी व्यवस्था से भिन्न – शासक अब पिरामिड के शिखर पर नहीं था जहाँ राज भक्ति विश्वास और आपसी निर्भरता पर टिकी थी। वह अब व्यापक दरबारी समाज और आश्रयदाता – अनुयायी तंत्र का केन्द्र बिन्दु था।
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