NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands) Notes In Hindi

NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands)

Text BookNCERT
Class 11th
Subject History
Chapter4th
Chapter Nameइस्लाम का उदय और विस्तार
CategoryClass 11th History  Notes In Hindi
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class 11th History Chapter – 4 इस्लाम का उदय और विस्तार (The Central Islamic Lands)

Chapter – 4

इस्लाम का उदय और विस्तार

Notes

 

इस्लामी इतिहास की जानकारी के स्रोत 

  • इतिवृत्त अथवा तवारीख़
  • जीवन – चरित
  • पैगम्बर के कथन और कार्यों के अभिलेख
  • कुरान के बारे में टीकाएं
  • प्रत्यदर्शी वृतान्त ( जैसे अखबार )
  • ऐतिहासिक
  • अर्ध ऐतिहासिक रचनाएं
  • दस्तावेजी प्रमाण
  • प्राचीन इमारते शिलालेख , मुद्रायें

मुस्लिम समाज की शुरूआत – आज से 1400 वर्ष पहले हुई। इनका मूल क्षेत्र मिश्र से अफगानिस्तान तक का विशाल क्षेत्र है। इसी क्षेत्र के समाज व संस्कृति के लिये ”इस्लाम” का प्रयोग किया जाता है।

अरबी समाज और उनकी जीवन शैली – अरब के लोग कबीलों में बंटे थे। ये खानाबदोश जीवन व्यतीत करता था।

 इस्लाम के उदय से पहले 7 वीं शताब्दी में अरब सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ था।

 इस्लाम के उदय से पहले एक खानाबदोश जनजाति बेडौंस में अरब का वर्चस्व था।

 प्रत्येक कबीले के अपने देवी देवता होते थे। मक्का में स्थित काबा वहां का मुख्य धर्म स्थल था जिसे सभी मुसलमान इसे पवित्र मानते थे।

 प्रत्येक कबीले का नेतृत्व एक शेख द्वारा किया जाता था। जो कुछ हद तक पारिवारिक संबंधों के आधर पर लेकिन ज़्यादातर व्यक्तिगत साहस, बुद्धिमत्ता और उदारता के आधर पर चुना जाता था।

 उका खाद्धय मुख्यत: खजूर था।

 वहां के कुछ लोग शहरों में बस गए थे और व्यापार एवं खेती का काम करते थे।

पैगम्बर हजरत मुहम्मद और इस्लाम

 612 ई. में पैगम्बर मुहम्मद ने अपने आपको खुदा का संदेशवाहक घोषित किया। 622 ई. में पैगम्बर मुहम्मद और इनके अनुयायियों को मक्का के समृद्ध लोगों के विरोध के कारण मक्का छोड़कर मदीना जाना पड़ा।

 इस यात्रा को हिजरा कहा गया और इसी 622 ई . वर्ष से मुस्लिम कैलेन्डर यानि हिजरी सन की शुरूआत।

 पैगंबर मुहम्मद को विश्व इतिहास के सबसे महान व्यक्तित्वों में से एक माना जाता है। उनका जन्म 570 में मक्का में हुआ था।

 पैगम्बर मुहम्मद साहब का कबीला कुरैश था जो मक्का में रहता था तथा वहाँ के मुख्य धर्मस्थल काबा पर उसका नियंत्रण था।

 पैगम्बर मुहम्मद ने मदीना में एक राजनीतिक व्यवस्था की। अब मदीना इस्लामी राज्य की प्रशासनिक राजधानी तथा मक्का धार्मिक केन्द्र बन गया। थोड़े ही समय में अरब प्रदेश का बड़ा भू – भाग इनके अधीन हो गया।

इस्लाम में अल्लाह की इबादत की सरल विधियाँ –  सलत ( दैनिक प्रार्थना – 5 वक्त की नमाज़ ) और नैतिक सिद्धान्त – जैसे खैरात बाँटना एवं चोरी न करना ।

इस्लाम के पांच स्तंभ 

  राइमा
  नमाज
  रौजा
  जकात
  हज को याद करना इस्लाम के पांच स्तंभ हैं ।

 पैगम्बर मुहम्मद का देहान्त –  सन् 632 ई . में पैगम्बर मुहम्मद का देहान्त हो गया ।

काबा – काबा एक घनाकार ढाँचा वाला अरबी समाज का धार्मिक स्थल था । इसे ही काबा कहा जाता था जो मक्का में स्थित था ।

 जिसमें बुत रखे हुए थे और हर वर्ष वहाँ के लोग इस इबादतगाह धार्मिक यात्रा ( हज ) करते थे । मक्का यमन और सीरिया के बीच के व्यापारी मार्गों के एक चौराहे पर स्थित था ।

 काबा को एक ऐसी पवित्र जगह ( हरम ) माना जाता था , जहाँ हिंसा वर्जित थी और सभी दर्शनार्थियों को सुरक्षा प्रदान की जाती थी ।

हिजरा – इस्लाम के शुरूआती दिनों में पैगम्बर मुहम्मद का मक्का और उसके इबादतगाह पर कब्ज़ा था । मक्का के समृद्ध लोग जिन्हें देवी – देवताओं का ठुकराया जाना बुरा लगा था और जिन्होंने इस्लाम जैसे नए धर्म को मक्का की प्रतिष्ठा और समृद्धि के लिए खतरा समझे थे उन लोगों ने पैगम्बर मुहम्मद का जबरदस्त विरोध किया जिससे वे और उनके अनुयायियों को मक्का छोड़ कर मदीना जाना पड़ा । उनकी इस यात्रा को हिजरा कहा जाता है । इसी दिन से मुसलमानों का हिजरी कैलेण्डर की शुरुआत हुई ।

पैगम्बर मुहम्मद द्वारा इस्लाम की सुरक्षा – किसी धर्म का जीवित रहना उस पर विश्वास करने वाले लोगों के जिन्दा रहने पर निर्भर करता है । इस लिए पैगम्बर मुहम्मद ने निम्नलिखित तीन तरीकों से इस्लाम और मुसलमानों की रक्षा की :-
इस समुदाय के लोगों को आतंरिक रूप से मजबूत बनाया और उन्हें बाहरी खतरों से बचाया ।
उन्होंने सुदृढ़ीकरण और सुरक्षा के लिए मदीना में एक राजनैतिक व्यवस्था को बनाया ।
उन्होंने ने शहर में चल रही कलह को सुलझाया और उम्मा को एक बड़े समुदाय के रूप में बदला गया ।

 हजरत मुहम्मद की प्रमुख शिक्षाएँ – प्रत्येक मुस्लमान को इस बात में विश्वास रखना चाहिए अल्लाह एक मात्र पूजनीय है और पैगम्बर मुहम्मद उसके पैगम्बर है ।

प्रत्येक मुसलमान को दिन में पांच बार नमाज अदा करना अनिवार्य है ।

 निर्धनों को जकात ( एक प्रकार का दान ) देना चाहिए ।

 इस्लाम को मानने वाले को रमजान के महीने में रोजे रखना चाहिए ।

 प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन – काल में एक बार काबा की हज यात्रा अवश्य करना चाहिए ।

 खिलाफत की शुरुआत –  सन् 632 ई . में पैगम्बर मुहम्मद का देहान्त हो गया और अगले पैगम्बर की वैधता के अभाव में राजनीतिक सत्ता उम्मा को अंतरित कर दी गयी । इस प्रकार खिलाफत संस्था का आरंभ हुआ । समुदाय का नेता पैगम्बर का प्रतिनिधि अर्थात खलीफा बन गया ।

खिलाफत के दो प्रमुख उद्वेश्य – कबीलों पर नियंत्रण कायम करना जिनसे मिलकर उम्मा का गठन हुआ ।
राज्य के लिए संसाधन जुटाना ।

पहले चार खलीफाओं –

( 1 ) हज़रत अबुबकर
( 2 ) हज़रत उमर
( 3 ) हज़रत उस्मान
( 4 ) हजरत अली

खिलाफत का अंत – सन 632 में पैगम्बर हजरत मुहम्मद के देहांत के बाद खिलाफत की गद्दी को चार खलीफाओं ने सुसज्जित किया । अंतिम और चौथे खलीफा हजरत अली की हत्या के बाद खिलाफत को समाप्त कर दिया गया ।

उमय्यद वंश की स्थापना – उमय्यद राजवंश की स्थापना 661 में मुआविया ने की थी । इस राजवंश का शासन 750 तक जारी रहा । 50 में अब्बासिडस सत्ता में आए ।

मुआविया ने वंशगत उत्तराधिकार की परंपरा शुरू की और अरबी भाषा को प्रशासन की भाषा घोषित किया । दमिश्क को राजधानी बनाया गया और इस्लामी सिक्के जारी किए गये । इन पर अरबी भाषा में लिखा गया ।

उमय्यदों का शासन – उमय्यद ने दमिश्क को अपना राजधानी बनाया और 90 वर्ष तक शासन किया । उमय्यद राज्य अरब में एक साम्राज्यिक शक्ति बनकर उभरा । वह सीधे इस्लाम पर आधारित नहीं था । बल्कि यह शासन शासन – कला और सीरियाई सैनिकों की वफ़ादारी के बल पर चल रहा था । फिर भी इस्लाम उमय्यद शासन को मान्यता प्रदान कर रहा था ।

उमय्यद शासन व्यवस्था की विशेषताएँ –

इसके सैनिक वफादार थे ।
प्रशासन में ईसाई सलाहकार और इसके अलावा जरतुश्त लिपिक और अधिकारी भी शामिल थे ।
उन्होंने अपनी अरबी सामाजिक पहचान बनाए रखी ।
यह खिलाफत पर आधारित शासन नहीं था अपितु यह राजतन्त्र पर आधारित था ।
उन्होंने वंशगत उतराधिकारी परंपरा की शुरुआत की ।

उमय्यद वंश का अंत – दावा नामक एक सुनियोजित आन्दोलन ने उमय्यद वंश को 750 ई . में उखाड़ फेंका ।

अब्बासी वंश की सुरुआत – 750 ई . में उमय्यद वंश के अंत के बाद अब्बासी वंश की नींव रखी गई । इन्होंने बगदाद को राजधानी बनाया , सेना और नौकरशाही का पुनर्गठन किया , इस्लामी संस्थाओं और विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया । अब्बासियों के अंतर्गत अरबों के प्रभाव में गिरावट आई , जबकि ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया ।

अब्बासी क्रांति – उमय्यादों के शासन को अब्बासियों में दुष्टों का शासन बताया और यह दावा किया कि वे पैगम्बर मुहम्मद के मूल इस्लाम की पुनर्स्थापना करेंगे | अब्बासियों ने ‘ दवा ‘ नामक एक आन्दोलन चला कर उमय्यद वंश के इस शासन को उखाड़ फेंका | इसी के साथ इस क्रांति से केवल वंश का परिवर्तन ही नहीं हुआ बल्कि इस्लाम के राजनैतिक ढाँचे और उसकी संस्कृति में भी बदलाव आये | इसे ही अब्बासी क्रांति के नाम से जाना जाता है ।

अब्बासी क्रांति के कारण – अरब सैनिक अधिकांशत : जो ईरान से आये थे और वे सीरियाई लोगों के प्रभुत्व से नाराज थे ।

उमय्यादों ने अरब नागरिकों से करों में रियायतों और विशेषाधिकार देने के वायदों को पूरा नहीं किया था |

ईरानी मुसलमानों को अपनी जातीय चेतना से ग्रस्त अरबों के तिरस्कार का शिकार होना पड़ा था जिससे वे किसी भी अभियान में शामिल होने के इक्षुक थे ।

 उमय्यद शासन राजतन्त्र पर आधारित शासन था ।

अब्बासियों की विशेषताएँ – अब्बासी शासन के अंतर्गत अरबों के प्रभाव में गिरावट आई । इसके विपरीत ईरानी संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया ।

अब्बासियों ने अपनी राजधानी बगदाद में स्थापित किया ।

 प्रशासन में इराक और खुरासान की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सेना तथा नौकरशाही का गैर – कबीलाई आधार पर पुर्नगठन किया गया ।

अब्बासी शासकों ने खिलाफत की धार्मिक स्थिति तथा कार्यों को और मजबूत बनाया और इस्लामी संस्थाओं एवं विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया ।

अब्बासियों ने भी उमय्यादों की तरह राजतन्त्र को ही जारी रखा ।

अब्बासी राज्य का अंत –  9 वीं शताब्दी में अब्बासिद साम्राज्य का पतन देखा गया । इसका फायदा उठाते हुए कई सल्तनतें उभरीं । मध्ययुगीन काल में इस्लामी दुनिया की आर्थिक स्थिति बहुत समृद्ध थी ।

धर्मयुद्ध – ईसाई जगत और इस्लामी जगत के बीच शत्रुता बढ़ने लगी । जिसका कारण आर्थिक संगठनों में परिवर्तन था । 1095 ई . में पुण्यभूमि को मुक्त कराने के लिए ईश्वर के नाम पर जो युद्ध लड़े गये उन्हें धर्मयुद्ध कहा गया । ये युद्ध 1095 ई . से 1291 ई . के बीच लड़े गये ।

तीन धर्मयुद्ध – पवित्र भूमि में मुक्त कराने के लिए –

ईसाई एवं इस्लाम ( जेरुसलम )
प्रथम धर्मयुद्ध 1098-1099
द्वितीय धर्मयुद्ध 1145-1149
तृतीय धर्मयुद्ध 1189 से

युद्ध के प्रभाव –

•  मुस्लिम राज्यों का ईसाई प्रजाजनों की तरफ कठोर रुख ।
मुस्लिम सत्ता की बहाली के बावजूद व्यापार में इटली का अधिक प्रभाव ।
सूफियों का उदय ।
दर्शन शास्त्र और विज्ञान में रूचि में वृद्धि ।
अरबी कविता का पुनः अविष्कार हुआ ।
फारसी भाषा का विकास हुआ ।
गजनी फारसी साहित्य का केन्द्र बन गया ।
फिरदौसी द्वारा शाहनामा ग्रंथ लिखा गया ।
महिला सूफी संत राबिया ।
सूफीवाद का द्वार सभी के लिए खुल गया ।
धार्मिक इमारतें इस्लामी दुनिया की पहचान बनीं ।
इन इमारतों में मस्जिदें , इबादतगाह और मकबरे शामिल थे ।
मस्जिदों का एक वास्तुशिल्पीय रूप था – गुम्बद , मीनार , खुला प्रांगण और खंभों के सहारे छत , मेहराब , मिम्बर ।

कागज का आविष्कार – कागज चीन से आया । कागज के आविष्कार के बाद इस्लामी जगत में लिखित रचनाओं का व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा । समूचे मानव इतिहास से संबंधित दो प्रमुख ग्रंथ – अनसब अल – अशरफ ( सामंतो की वंशावलियाँ ) बालाधुरी द्वारा और तारीख अल – रसूल वल मुल्क ( पैगम्बरों और राजाओं का इतिहास ) ताबरी द्वारा लिखा गया ।

इस्लाम में प्राणियों के चित्रण की मनाही से कला के दो रूप – खुशनवीसी ( खत्ताती अथवा सुंदर लिखने की कला )

अरबेस्क ( ज्यामितीय और वनस्पतीय डिजाइन ) को बढ़ावा मिला । इमारतों को सजाने के लिए भी इनका प्रयोग किया गया ।

मध्यकालीन इस्लामी जगत में शहरीकरण की मुख्य विशेषताओं –

शहरो की संख्या में तेजी से वृद्धि ।

इस्लामी सभ्यता का फलना फूलना ।

मुख्य उद्देश्य – अरब सैनिकों ( जुड ) को बसाना , कुफा , बसरा , फुस्तात काहिरा , बगदाद और समरकंद जैसे फौजी शहर ।

शहरों के विकास एवम् विस्तार के लिए खाद्यान्न उत्पादन व उद्योगों को बढ़ावा । दो प्रकार के भवन समूह – एक मस्जिद ( मस्जिद अल जामी ) दूसरा केन्द्रीय मंडी ( सुक ) ।

केन्द्रीय मंडी में दुकानों की कतारें , व्यापारियों के आवास ( फंदुक ) , सर्राफ का कार्यालय , प्रशासकों और विद्ववानों एवम् व्यापारियों के घर ।

मण्डी की प्रत्येक ईकाई की अपनी मस्जिद गिरजाघर अथवा सिनेगोग ( यहूदी प्रार्थनाघर ) ।

शहर के बाहरी इलाकों में गरीबों के मकान , सब्जी फल के बाजार , काफिलों के ठिकाने , दुकाने आदि ।

शहर की चार दिवारी के बाहर कब्रिस्तान व सराय । शहरों के नक्शों में समानता का अभाव ।

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