NCERT Solutions Class 10th Hindi (स्पर्श) New Syllabus Chapter – 13 पतझर में टूटी पत्तियाँ Question & Answer

NCERT Solutions Class 10th Hindi (स्पर्श) New Syllabus Chapter – 13 पतझर में टूटी पत्तियाँ

TextbookNCERT
Class 10th
Subject Hindi
Chapter13th
Chapter Name  पतझर में टूटी पत्तियाँ
CategoryClass 10th Hindi (स्पर्श)
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Hindi (स्पर्श) New Syllabus Chapter – 13 पतझर में टूटी पत्तियाँ Question & Answer जिसमे हम पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ में लेखक ने अनंतकाल जैसा विस्तृत किसे कहा है और क्यों?, झिन का अर्थ क्या है?, झेन की परंपरा क्या है?, पाठ का उद्देश्य क्या है?, लेखक द्वारा क्या संदेश दिया जा रहा है?, सेरेमनी में केवल तीन लोगों को प्रवेश क्यों दिया जाता है?, जापान में चाय पीने की विधि को क्या कहा जाता है?, लेखक संदेश क्या है?, पतझड़ में टूटी पत्तियाँ पाठ के लेखक कौन हैं?, मुख्य संदेश क्या है?, लेखक का उद्देश्य और संदेश क्या है? आदि के बारे में पढ़ेंगे

NCERT Solutions Class 10th Hindi (स्पर्श) New Syllabus Chapter – 13 पतझर में टूटी पत्तियाँ

Chapter – 13

पतझर में टूटी पत्तियाँ

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न – अभ्यास

मौखिक

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

I. प्रश्न 1. शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर – शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना इसलिए अलग होता है क्योंकि शुद्ध सोना 24 कैरेट वाला, लचीला और कमजोर होता है, जबकि गिन्नी का सोना 22 कैरेट वाला मज़बूत और चमकदार होता है।

प्रश्न 2. प्रैक्टिकले आइडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर – शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह होते हैं। कुछ लोग आदर्शों में व्यावहारिकता का ताँबा मिला देते हैं और फिर उसे आचरण में लाकर दिखाते हैं, तब उन्हें प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट कहा जाता है।
प्रश्न 3. पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या हैं?
उत्तर – ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श हैं-अपने सत्य, अपने मूल्यों और सिद्धांतों पर अडिग रहना तथा उनसे कोई समझौता न करना।
II. प्रश्न 4. लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर – लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात इसलिए कही है, क्योंकि जापानियों के जीवन की रफ़्तार बहुत बढ़ गई है। वहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। वहाँ कोई बोलता नहीं, बकता है। जब वे अकेले पड़ जाते हैं, तो स्वयं से ही बड़बड़ाने लगते हैं। वे एक महीने का काम एक दिन में करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने विश्व के विकसित देशों की अग्रणी श्रेणी में आने की ठान ली है।
प्रश्न 5. जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर – जापान में चाय पीने की विधि का नाम ‘टी-सेरेमनी’ है, जिसमें शांति को प्रमुखता दी जाती है। चाय बनाने और पीने का यह काम अत्यंत शांतिपूर्ण वातावरण में होता है।
प्रश्न 6. जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है ?
उत्तर – जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की यह विशेषता है कि वह एक पर्णकुटी जैसा सजा होता है तथा वहाँ बहुत शांति होती है। इस पर्णकुटी जैसे सजे स्थान पर केवल तीन लोग बैठकर चाय पी सकते हैं। यहाँ पर स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। बैठने के लिए चटाई, हाथ पैर धोने के लिए मिट्टी के बर्तन में पानी व चाय बनाने के लिए अँगीठी की व्यवस्था होती है।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए-

I. प्रश्न 1. शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर – शुद्ध आदर्श पूरी तरह से शुद्ध होते हैं जिनसे कोई समझौता नहीं किया जाता है। यही स्थिति शुद्ध सोने की होती है। जिसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं की जाती है। चूंकि व्यावहारिकता के नाम पर आदर्शों से समझौता किया जाता है इसलिए इसकी तुलना ताँबे से की गई है।

II. प्रश्न 2. चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर – चाजीन ने टी-सेरेमनी से जुड़ी सभी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं।
वे क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. टी-सेरेमनी एक पर्णकुटी में पूरी हुई।
  2. सर्वप्रथम सभी हाथ-पैर धोकर अंदर गए। वहाँ चाजीन ने सभी का कमर झुकाकर स्वागत किया, प्रणाम किया तथा बैठने की जगह दिखाई।
  3. अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी। बगल के कमरे से बरतन लाकर उनको तौलिए से साफ़ किया।
  4. वहाँ के शांत वातावरण में चाय के उबलने की भी आवाज़ आ रही थी। चाजीन ने बड़े ही सलीके से चाय परोसी।
प्रश्न 3. ‘टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर – टी-सेरेमनी में एक साथ तीन व्यक्तियों को प्रवेश दिया जाता था, जिससे वहाँ के शांत वातावरण में खलल न पैदा हो और चाय पीने वाले चाय पीकर अद्भुत शांति और सकून की अनुभूति कर सकें।
प्रश्न 4. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया ?
उत्तर – चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में यह परिवर्तन महसूस किया कि उसके दिमाग से भूत और भविष्य दोनों उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण उसके सामने था और वह अनंतकाल जितना विस्तृत हो गया था।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

I. प्रश्न 1. गांधीजी के नेतृत्व में अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर – गांधी जी अत्यंत कुशल एवं लोकप्रिय नेता थे। उनमें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। हजारों-लाखों लोग उनके पीछे चल पड़ते थे। उन्होंने व्यावहारिकता के नाम पर कभी आदर्शों से समझौता नहीं किया। उनका प्रयास रहता था कि मानव-व्यवहार आदर्श बने। वे आदर्शों का पालन करने में आगे रहे। वे सत्य और अहिंसा का पालन करते रहे। उन्हें देखकर उनकी शरण में आने वाले अन्य लोग भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित हुए। यह गांधी जी की नेतृत्व क्षमता ही थी कि उनके अनुयायियों ने भी उनके आदर्शों को अपनाया।

प्रश्न 2. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं, जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हमारे विचार से सत्य, ईमानदारी, सच्चरित्रता, विनम्रता, सहनशक्ति, अहिंसा, परोपकार आदि शाश्वत मूल्य हैं, जिनकी प्रासंगिकता आज भी है। इन्हीं मूल्यों को अपनाकर समाज के विघटन को रोका जा सकता है और विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। आज पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति के कुप्रभाव से इन शाश्वत मूल्यों में गिरावट आ गई है। समाज पतन के गर्त में गिरता जा रहा है। खेद का विषय यह है कि हम तो शाश्वत मूल्यों से विरक्त होते जा रहे हैं और पाश्चात्य लोग शाश्वत मूल्यों से बनी हमारी संस्कृति की ओर झुक रहे हैं।
प्रश्न 3. अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब

(1) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
(2) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर –
1. मैंने अपने जीवन का आदर्श बनाया है-सत्यवादिता। मेरी हर संभव यही कोशिश रहती है कि झूठ न बोलूं। मेरे एक पड़ोसी दहेज के लिए अपनी बहू को मारते-पीटते रहते थे। एक बार किसी ने 100 नं. पर फ़ोन करके पुलिस को बुला लिया। मैंने पुलिस को सही-सही बता दिया। इससे वे अब तक नाराज हैं। अब वे हर समय मेरा अहित करने की फिक्र में रहते हैं।

2. मैं बच्चों को यही सीख देता हूँ कि वे झूठ न बोलें। बच्चे भी इस बात को ध्यान में रखते हैं पर बाल स्वभाव के
कारण यदि एकाध बार झूठ बोल दिए तो उनका ध्यान उस झूठ की ओर आकर्षित कराकर छोड़ देता हूँ। वे भविष्य में फिर झूठ न बोलने का वायदा करते हैं। इस तरह की व्यावहारिकता के मेल से वे सत्य बोलना अपनी आदत में शामिल कर लेते हैं।

प्रश्न 4. “शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना’, गांधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – गांधी जी ने जीवन भर आदर्शों को ही व्यावहारिक रूप दिया था। उन्होंने कहीं भी व्यवहार में ताँबे रूपी असत्य, | हिंसा, बेईमानी जैसी मिलावट को नहीं आने दिया था। उदाहरण के लिए जब वे विद्यार्थी थे, तो ‘परीक्षा में ‘कैटल शब्द अशुद्ध लिखने पर अध्यापक ने उन्हें पड़ोसी बच्चे की नकल करके ठीक करने को कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। ऐसे अनेक उदाहरणों से उनका जीवन भरा पड़ा है।
प्रश्न 5. ‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी को सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसको महत्त्व है?
उत्तर – यह पूर्णतया सत्य है कि मनुष्य के व्यवहार में कुशलता होनी चाहिए परंतु उसका अपना आदर्श होना चाहिए। इस आदर्श से उसे कभी भी डिगना नहीं चाहिए। इस आदर्श को बनाए रखते हुए उसे अपने व्यवहार को विनम्र मधुर बनाना चाहिए। उसे अवसरानुकूल व्यवहार को लचीला बनाना चाहिए पर आदर्श को अवश्य बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न 6. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोगों के कई कारण बताए, जो निम्नलिखित हैं-

  1. जापानी लोग हमेशा प्रगति के लिए अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  2. जीवन की गति अधिक बढ़ने से वे चलने के स्थान पर दौड़ते हैं।
  3. महीने का काम एक दिन में करने का प्रयास करते हैं।
  4. जापानी लोग बोलते नहीं, बकते हैं, अकेला होने के कारण बड़बड़ाते हैं।
  5. विकसित देशों से प्रतिस्पर्धा के कारण वे लोग दिमाग को बड़ी तेजी से दौड़ाते हैं।

हम इन सभी कारणों से सहमत हैं, क्योंकि बहुत जल्दी-जल्दी करने से भी तनाव बढ़ता है, अशांति बढ़ती है, जिससे मानसिक रोग बढ़ते हैं। आज महानगरीय जीवन तो कुछ-कुछ जापान जैसा ही होता जा रहा है।

प्रश्न 7. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – लेखक का मानना है कि भूतकाल तो बीत चुका है। उसकी अच्छी या बुरी बातें याद करने से मनुष्य को दुख होता है। वह तनाव में जीता है। इसी प्रकार भविष्य जो न तो हमारे सामने है और न जिसे हमने देखा है के बारे में रंगीन कल्पनाएँ। हमारे वर्तमान के दुख को बढ़ाती हैं। वे सच भी नहीं होती हैं। वर्तमान काल हमारे सामने होता है। हम उसी में जीते हैं। यही वास्तविक और सत्य है। वर्तमान काल की वास्तविकता और सत्यता देखकर ही लेखक ने ऐसा कहा होगी।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

I. प्रश्न 1. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है, तो वह आदर्शवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उत्तर – व्यवहारवादी लोग ‘येनकेन प्रकारेण’ अपनी ही उन्नति के बारे में सोचते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं। उन्हें दूसरों से कुछ लेना-देना नहीं होता है। वास्तव में होना यह चाहिए कि वे अपनी उन्नति के अलावा दूसरों के बारे में भी कुछ सोचें। आदर्शवादी अपने आदर्शों के कारण ऐसा ही सोचते और करते हैं। इनके व्यवहार में त्याग, अहिंसा, समता, बंधुता, समानता दिखाई देती है। समाज में शाश्वत मूल्य ऐसे लोगों के कारण ही बचे हैं।

प्रश्न 2. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है, तब ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उत्तर – जब हम व्यावहारिकता की बात करने लगते हैं या व्यावहारिकता पर बल देने लगते हैं, तो आदर्श फीके पड़ जाते | हैं, पीछे छूटने लगते हैं। लोगों की सोच व्यावहारिकता का समावेश करने लगती है। ‘प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट में से आइडियालिस्ट शब्द गायब होने लगता है और वे व्यावहारिकता को ही सब कुछ मानने लगते हैं।
II. प्रश्न 3. हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। जब हम अकेले पड़ते हैं, तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उत्तर – जापानी लोग जल्दी से जल्दी तरक्की करने के लिए दिन-रात काम में लगते हैं। वे स्वाभाविक रूप से तेज सोचते हैं पर वे इसमें स्पीड’ का इंजन लगाकर मस्तिष्क की गति बढ़ा देना चाहते हैं। वे महीनों का काम दिनों में करना चाहते हैं। उनके हर काम में जल्दबाजी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। अधिकाधिक काम करने के चक्कर में चलने की जगह भागते हैं और बोलने की जगह बड़बड़ाते हैं और तनावग्रस्त जीवन जीते हैं।
प्रश्न 4. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था, मानों जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।
उत्तर – इसका आशय है कि जब लेखक अपने दो मित्रों सहित ‘टी सेरेमनी में गया, तो वहाँ ‘चाजीन’ ने उनका स्वागत किया तथा बैठाया। इसके बाद उसने अँगीठी सुलगाई, उसपर चायदानी रखी, बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया तथा तौलिए से बरतने साफ़ किए। यह सब देखकर लेखक को अनुभव हुआ कि ‘चाजीन’ ने सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा तथा गतिविधि से लगता था कि जैसे जयजयवंती के सुर गूंज रहे हों।

भाषा अध्ययन

I. प्रश्न 1. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए-

1. व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ,विलक्षण, शाश्वत।
उत्तर –
1. व्यावहारिकता – गांधी जी व्यावहारिकता को पहचानते थे।
2. आदर्श – मानव को हमेशा अपने आदर्श ऊँचे रखने चाहिए।
3. सूझबूझ – हमें हमेशा सूझ-बूझ से काम लेना चाहिए।
4. विलक्षण – गांधी विलक्षण प्रतिभा वाले थे।
5. शाश्वत – शाश्वत मूल्य आदर्शवादी लोगों ने दिए हैं।

प्रश्न 2. लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि।
यहाँ द्वंद्व समास है, जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए दूवंद्व समास का विग्रह कीजिए-1. माता-पिता    = ………………..
2. पाप-पुण्य     =  ………………..
3. सुख-दुख      =  ………………..
4. रात-दिन      =  ………………..
5. अन्न-जल      =  ………………..
6. घर-बाहर     =  ………………..
7. देश-विदेश   =  ………………..
उत्तर –
1. माता-पिता = माता और पिता
2. पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
3. सुख-दुख  = सुख और दुख
4. रात-दिन  = रात और दिन
5. अन्न-जल = अन्न और जल
6. घर-बाहर  = घर और बाहर
7. देश-विदेश = देश और विदेश
प्रश्न 3. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-

(क)  सफल             = ……………..
(ख) विलक्षण लक्षण  = ……………..
(ग) व्यावहारिक       = ……………..
(घ) सजग               = ……………..
(ड़) आदर्शवादी       = ……………..
(च) शुद्ध                 = ……………..
उत्तर –
1. सफल = सफलता
2. विलक्षण = विलक्षणता
3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता। जग सजगता
4. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
5. शुद्ध = शुद्धता

प्रश्न 4. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
  1. शुद्ध सोना अलग है।
  2. बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।

ऊपर दिए गए वाक्यों में ‘सोना’ का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
उत्तर, कर, अंक, नंगे।
उत्तर –

  1. उत्तर –
    1. मुझे प्रश्न का उत्तर दो।
    2. उत्तर दिशा की ओर देखो।
  2. कर –
    1. तुम माला कर में पकड़ लो।
    2. तुम पर कितना कर लगा है?
  3. अंक –
    1. नाटक के तीन अंक हैं।
    2. तुम्हें परीक्षा में कितने अंक मिले?
  4. नग –
    1. यह अँगूठी नग वाली है।
    2. पहाड़ों को नग कहते हैं।
II. प्रश्न 5. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
  1. (क)
    1. अँगीठी सुलगायी।
    2. उस पर चायदानी रखी।
  2. (ख)
    1. चाय तैयार हुई।
    2. उसने वह प्यालों में भरी।
  3. (ग)
    1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
    2. तौलिये से बरतन साफ किए।

उत्तर –

  1. (क) अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी।
  2. (ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
  3. (ग) वह बगल के कमरे से कुछ बर्तन लाया और उसने तौलिये से बर्तन साफ किए।
प्रश्न 6. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
  1. (क)
    1. चाय पीने की यह एक विधि है।
    2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
  2. (ख)
    1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बतरन था।
    2. उसमें पानी भरा हुआ था।
  3. (ग)
    1. चाय तैयार हुई।
    2. उसने वह प्यालों में भरी।
    3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।

उत्तर –

  1. (क) जापानी में इसे चा-नो-यू कहते हैं, जोकि चाय पीने की एक विधि है।
  2. (ख) बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था, जो पानी से भरा हुआ था।
  3. (ग) उसने प्याले हमारे सामने रख दिए, जो तैयार की गई चाय से भरे हुए थे।

योग्यता विस्तार

I. प्रश्न 1. गांधीजी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए; जैसे- महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’ ।
उत्तर-छात्र स्वयं करें।
II. प्रश्न 2. पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर – हिंदी भाषा में जिसे चाय पीने की विधि कहते हैं, उसे जापानी भाषा में ‘चा-नो-यू’ और अंग्रेज़ी भाषा में ‘टी-सेरेमनी’ कहा जाता है।
छः मंजिली ऊँची इमारत, उस भवन की छत पर दफ्ती की दीवारें व चटाई की ज़मीन वाली एक बहुत सुंदर पत्तों की झोंपड़ी थी। उस पर्णकुटी के बाहर एक असुंदर मिट्टी का बर्तन था। उसे बर्तन के पानी से लेखक और उसके मित्र ने अपने हाथ-पैर धोए। इसके बाद वे अंदर गए। वहाँ उन्होंने एक ‘चाजीन’ को बैठे देखा। उसने दोनों को प्रणाम किया और कहा-• तशरीफ लाइए (बैठिए)। उसने लेखक को बैठने की जगह दिखाई। चाजीन ने फिर अँगीठी सुलगाई और उस पर चायदानी रखी। उसने कुछ बर्तन लाकर कपड़े से बर्तन साफ किए। उसकी इस प्रक्रिया को देखकर लगा कि लेखक व उनके मित्र किसी राग का आनंद ले रहे हैं। वहाँ वातावरण इतना शांतमय था कि चायदानी के पानी का खदबदना भी सुनाई दे रहा है। इसके बाद चाय सामने रखी गई और वे चाय की चुस्कियों का आनंद डेढ़ घंटे तक लेते रहे। यह दृश्य व क्षण आनंदकारी था।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए, जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियाँ क्या हैं और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लगाइए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।

NCERT Solutions Class 10th हिंदी All Chapters स्पर्श

You Can Join Our Social Account

YoutubeClick here
FacebookClick here
InstagramClick here
TwitterClick here
LinkedinClick here
TelegramClick here
WebsiteClick here