NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar व्याकरण अपठित गद्यांश

NCERT Solutions Class 10th Hindi व्याकरण Grammar अपठित गद्यांश

TextbookNCERT
Class 10th
Subject हिन्दी व्याकरण
Chapterव्याकरण
Grammar Nameअपठित गद्यांश
CategoryClass 10th  Hindi हिन्दी व्याकरण 
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar अपठित काव्यांश अपठित गद्यांश कैसे सॉल्व करें? अपठित गद्यांश में प्रश्नों के उत्तर कैसे लिखने चाहिए? कौन सा विषय सबसे कठिन है? कुल कितने विषय होते हैं? कितने नंबर से पास होते हैं? क्या हम कक्षा 10 में फेल हो सकते हैं? विषयों में फेल होने पर क्या होता है? काव्यों की भाषा क्या है? अपठित गद्यांश को कैसे हल किया जाता है? पद्यांश क्या कहलाता है? काव्यांश मतलब क्या होता है? गद्यांश में क्या होता है? हिमालय को देखकर कौन सा भाव जागृत होता है? आदि के बारे में पढ़ेंगे और जानने के साथ हम NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar अपठित काव्यांश व्याकरण करेंगे।

NCERT Solutions Class 10th Hindi व्याकरण Grammar अपठित गद्यांश

हिन्दी व्याकरण

अपठित गद्यांश

प्रश्न – निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

1. मन के सशक्त होने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है। यदि मन दुर्बल है तो शरीर निष्क्रिय और निरुद्यम ही रहेगा। यह संसार शक्तिशाली का है। दुर्बल का इस संसार में कहीं ठिकाना नहीं। कायर व्यक्ति मृत्यु से पहले ही सहस्रों बार मरता है। कायरता का सम्बन्ध मन से है। कायरता और निरुत्साह का दूसरा नाम ही मन की हार है। परिणामत: मन की हार अत्यन्त भयंकर है। मनुष्य भाग्य का निर्माता है, पर कायर पुरुष नहीं। सबल ही भाग्य निर्माता की सामर्थ्य रखता है। कायर तो दैव-दैव ही पुकारता है। साहसी व्यक्ति को अपने मानसिक बल पर अभिमान होता है।

    (1) इस अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
    उत्तर –
    शीर्षक-‘मनोबल’।

    (2) इस अवतरण में भाग्य का निर्माता किसे कहा गया है?
    उत्तर –
    मानव को स्वयं अपने भाग्य का निर्माता कहा गया है।

    (3) इस अवतरण का सारांश 30 शब्दों में दीजिए।
    उत्तर –
    सारांश-मन का सबल एवं पुष्ट होना सबसे बड़ी ताकत है। मन के दुर्बल होने पर मानव भीरु (कायर) बन जाता है। ऐसे व्यक्ति का दुनिया में जीवित रहना अथवा न रहना एकसमान है। अतः मन को सशक्त बनाओ तथा अपने भाग्य की सृष्टि (निर्माण) करो।

    (4) मन के सशक्त होने पर शरीर में क्या होता है?
    उत्तर –  
    मन के सशक्त होने पर शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है।

    2. क्षमा पृथ्वी का गण-धर्म है। क्षमा वीरों का भूषण है। मनुष्य से स्वाभाविक रूप से अपराध होते रहते हैं,गलतियाँ होती रहती हैं। हमारी दृष्टि में कोई अपराधी है तो हम भी किसी की दृष्टि में अपराधी हैं। यहाँ निर्दोष कोई भी नहीं है, इसलिए परस्पर क्षमा-भावना की अति आवश्यकता है। क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा, संघर्ष का साम्राज्य छा जायेगा जिसे कोई भी स्वीकार नहीं करता है। माता-पिता, गुरु सभी क्षमाशील होते हैं। मानव जीवन में क्षमा के अवसर आते रहते हैं। क्षमा के अभाव में जीवन चलना दूभर हो जाता है। अहिंसा, करुणा, दया, मैत्री, क्षमा आदि दैवीय गुण हैं। ये गुण मानव-जीवन के लिए आवश्यक हैं।

    (1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक दीजिए।
    उत्तर –
    शीर्षक–’क्षमा दैवीय गुण’।

    (2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
    उत्तर –
    सारांश-क्षमा पृथ्वी का गुण है। पृथ्वी अनेक आघातों को सहकर भी मानव सेवा में तत्पर रहती है। क्षमा वीरों का आभूषण है। मनुष्य स्वाभाविक रूप से जाने-अनजाने में अपराध करता रहता है। सब एक-दूसरे की दृष्टि में अपराधी हैं। अत: मानव को अपने मन मानस में क्षमा को प्रथम वरीयता देनी चाहिए। जीवन में क्षमा के अनेक अवसर आते हैं। अहिंसा, दया, मित्रता, क्षमा आदि ईश्वरीय गुणों के परिचायक हैं।

    (3) क्षमा के अभाव में किसका साम्राज्य छा जाता है?
    उत्तर –
    क्षमा के अभाव में क्रोध, हिंसा और संघर्ष का साम्राज्य छा जायेगा।

    3. मानव का अकारण ही मानव के प्रति अनुदार हो उठना न केवल मानवता के लिए लज्जाजनक है, वरन् अनुचित भी है। वस्तुतः यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना जानता है, कर सकता है। केवल इसलिए कि कोई मनुष्य बुद्धिहीन है अथवा दरिद्र वह घृणा का तो दूर रहा, उपेक्षा का भी पात्र नहीं होना चाहिए। मानव तो इसलिए सम्मान के योग्य है कि वह मानव है, भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना है।

    (1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक दीजिए।
    उत्तर –
    शीर्षक-‘आदर्श मानव’।

    (2) यथार्थ मनुष्य किसे कहा गया है?
    उत्तर –
    यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना जानता है।

    (3) उक्त गद्य खण्ड का सारांश लिखिए।
    उत्तर –
    सारांश-मानव का उदारता रहित होना मानवता के लिए लज्जाजनक ही नहीं अपितु अनुचित भी है। वास्तव में सच्चा मनुष्य वही है जिसके मन मानस में मानवता के प्रति संवेदना हो। वह प्रत्येक व्यक्ति का आदर करना जानता हो। बद्धिहीन निर्धन व्यक्ति के प्रति भी उपेक्षा की भावना नहीं होनी चाहिए अपितु उनको भी यथेष्ट सम्मान प्रदान करना चाहिए।

    4. राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर अभिषिक्त होने के कारण हिन्दी का दायित्व कुछ बढ़ जाता है। अब वह मात्र साहित्य की भाषा ही नहीं रह गयी है, उसके माध्यम से ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई उपलब्धियों का भी ज्ञान विकास करना तथा प्रशासन की भाषा के रूप में उसका नव-निर्माण करना हमारा दायित्व है। यह बड़ा महान् कार्य है और इसके लिए बड़ी उदार और व्यापक दृष्टि तथा कठिन साधना की अपेक्षा है।

    (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
    उत्तर –
    शीर्षक-राष्ट्रभाषा हिन्दी।’

    (2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
    उत्तर –
    सारांश-आज हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन है। आज हिन्दी भाषा से ज्ञान विज्ञान एवं तकनीकी की जानकारी मिल रही है। प्रशासकीय स्तर पर भी हिन्दी का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है। हिन्दी सभी क्षेत्रों में एक गौरवशाली भाषा के रूप में प्रतिष्ठित है। हमें अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाकर हिन्दी को पूरा सम्मान देना होगा। इसी में सबका हित-साधन है।

    (3) हिन्दी भाषा किस पद पर अभिषिक्त है?
    उत्तर –
    हिन्दी भाषा राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर अभिषिक्त है।

    (4) हिन्दी का दायित्व क्यों बढ़ गया है?
    उत्तर –
    राष्ट्रभाषा और राजभाषा के पद पर अभिषिक्त होने से हिन्दी का दायित्व बढ़ जाता है, क्योंकि अब यह ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की भाषा बन चुकी है।

    5. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परिचित तो बहुत होते हैं,पर मित्र बहुत कम हो पाते हैं,क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव है जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है, परस्पर विश्वास। मित्र ऐसा सखा, गुरु और माता है जो सभी स्थानों को पूर्ण करता है।

    (1) उपर्युक्त गद्यांश का एक सटीक शीर्षक दीजिए।
    उत्तर –
    शीर्षक ‘सच्चा मित्र’।

    (2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
    उत्तर –
    सारांश-मानव एक समाज में रहने वाला प्राणी है। उसका अस्तित्व ही समाज पर है। समाज में परिचित तो अनेक होते हैं लेकिन मित्रों की संख्या कम होती है। सच्ची मित्रता में त्याग एवं समर्पण की भावना प्रमुख रूप से निहित होती है। मित्रता में आपसी विश्वास का होना अपेक्षित है। सच्चा मित्र गुरु एवं माता के समान है जो समस्त स्थानों की पूर्णता का द्योतक है।

    (3) मैत्री में कौन-कौन से भाव सम्मिलित हैं?
    उत्तर –
    मैत्री में प्रेम भाव के साथ-साथ समर्पण, त्याग और परस्पर विश्वास होना आवश्यक है।

    6. अमृत तो प्रत्येक प्राणी के हृदय में समाया हुआ है, जरूरत है तो उसे जानने की। इस काया के अन्दर भरपूर अमृत है। गुरु के शब्द पर विचार करके ही उसे प्राप्त किया जा सकता है। जो प्रभु की खोज करते हैं वह इस अमृत को देह से ही प्राप्त करते हैं लेकिन गुरु के शब्द पर विचार न कर पाने के कारण अज्ञानी जीव व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है। इस शरीर के नौ द्वार हैं परन्तु इन नौ द्वारों में से हमें अमृत प्राप्ति नहीं हो सकती क्योंकि वह दसवें द्वार में स्थित है। मनुष्य नौ द्वारों के रहस्य को तो जानता है परन्तु गुरु रूपी दसवें द्वार को भूला हुआ है। गुरु का कार्य उस द्वार को प्रकट करना है। यदि अन्तर में परमपिता परमात्मा से हमें प्रेम है, परन्तु जब तक हमें परमात्मा के दर्शन नहीं होते हम तब तक अमृतपान नहीं कर सकते।

    (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
    उत्तर –
    शीर्षक–’अमृत की अभिलाषा।’

    (2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
    उत्तर –
    सारांश इस गद्यांश के द्वारा लेखक ने यह बताने का प्रयत्न किया है, कि प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में ईश्वर का निवास है। लेकिन ईश्वर तक पहुँचने का साधन गुरु है। गुरु के द्वारा ही व्यक्ति अपने गन्तव्य तक पहुँच सकता है। व्यक्ति अज्ञानता के कारण इधर-उधर भटकता रहता है और अपने जीवन को बेकार ही नष्ट कर लेता है। लेखक के अनुसार मानव उसके शरीर में मौजूद नौ द्वारों के रहस्य को तो जानता है किन्तु अमृत से तृप्त दसवें द्वार को वह भूला हुआ है, जिसे बिना गुरु के मार्गदर्शन के वह प्राप्त नहीं कर सकता है। सच्चे गुरु का कर्त्तव्य उस दसवें द्वार को प्रकट कर शिष्य भगवानरूपी अमृत से साक्षात्कार करवाना है।

    (3) व्यक्ति अमृतपान कब कर सकता है?
    उत्तर –
    व्यक्ति गुरु के सानिध्य में रहकर अमृत पान कर सकता है।

    7. यदि हम समय का सदुपयोग करना सीख लें,तो इससे लाभ ही लाभ हैं। व्यर्थ ही समय व्यतीत करके जो काम दिन भर में कर पाते हैं,उसे कुछ घण्टों में ही कर सकते हैं। इस प्रकार पूरे जीवन में हम कई गुना कार्य करके अपना विकास और मानवता की सेवा कर सकते हैं। अधिक कार्य करके हम अधिक धन,यश, सम्मान अर्जित कर सकते हैं। निरन्तर ऊँचे उठते हुए जीवन को सार्थक बना सकते हैं। हममें कर्मठता आती है, चरित्र में दृढ़ता आती है। सच्चे अर्थों में हम मनुष्य बन जाते हैं। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं,सभी ने समय के महत्व को समझा तथा उसका सम्पूर्ण उपयोग किया था।

    (1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक लिखिए।
    उत्तर –
    शीर्षक-‘समय का सदुपयोग।

    (2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
    उत्तर –
    सारांश-मानव जीवन में समय का पालन करना नितान्त आवश्यक है। समय के सदुपयोग से कार्य पूर्ण होने में समय की बचत होती है। समय के सदुपयोग से स्वयं का विकास एवं मानवता की सेवा भी सम्भव है। समय के सदुपयोग से हमारी कर्मशीलता एवं चरित्र का विकास होता है। हम सच्चे अर्थों में मानव कहे जाने के अधिकारी बन सकते हैं।

    (3) जीवन को सार्थक किस प्रकार बनाया जा सकता है?
    उत्तर –
    अधिक कार्य करके धन, यश, सम्मान अर्जित करके निरन्तर ऊँचे उठते हुए जीवन को सार्थक बना सकते हैं।