NCERT Solutions Class 10th Hindi व्याकरण Grammar समास

NCERT Solutions Class 10th Hindi व्याकरण Grammar समास

TextbookNCERT
Class 10th
Subject हिन्दी व्याकरण 
Chapterव्याकरण
Grammar Nameसमास
CategoryClass 10th  Hindi हिन्दी व्याकरण
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar (व्याकरण) समास व्याकरण हम इस अध्याय समास किसे कहते हैं कितने प्रकार के होते हैं? समास के 6 भेद कौन कौन से हैं? द्वंद समास क्या होता है?द्विगु समास की परिभाषा क्या है? तत्पुरुष समास का परिभाषा क्या है? कर्मधारय समास की परिभाषा क्या है? बहुव्रीहि समास क्या होता है? कर्मधारय समास का दूसरा नाम क्या है? अव्ययीभाव समास क्या होता है? पीतांबर में कौन सा समास होता है? चतुर्भुज में कौन सा समास होता है? निशाचर में कौन सा समास होता है? लंबोदर में कौन सा समास है?आदि के बारे में पढ़ेंगे और जानने के साथ हम NCERT Solutions Class 10th Hindi Grammar (व्याकरण) समास एवं व्याकरण करेंगे।

NCERT Solutions Class 10th Hindi व्याकरण Grammar समास

हिन्दी व्याकरण

समास

परिभाषा – दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से एक नए शब्द बनाने की विधि को समास कहते हैं।

समास- समास के माध्यम से भी नए शब्दों की रचना की जाती है। समास का अर्थ है-संक्षेपीकरण। इसके अंतर्गत दो या दो से अधिक पदों को मिलाकर विभिन्न तरीकों से एक नए शब्द की रचना की जाती है। इस क्रम में शब्दों की विभक्तियों, योजक शब्दों आदि को हटाकर बचे शब्दों को पास-पास लाया जाता है। इसी प्रक्रिया को समास कहा जाता है।

समस्तपद – सामासिक शब्दों में दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद, दूसरे पद को उत्तरपद और समास प्रक्रिया से बने पूर्ण पद को समस्तपद कहते हैं। जैसे- रातभर में रात पूर्वपद, भर उत्तरपद तथा नीलगगन समस्तपद है।

समास और संधि में अंतर- संधि दो वर्णों के मेल को कहते हैं और समास दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को।

समास के भेद

1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुव्रीहि समास

अव्ययीभाव समास – जिस समास में पहला पद अव्यय हो, उसे ‘अव्ययीभाव समास’ कहते हैं। इसका पहला पद प्रधान होता है। इस समास में दोनों पदों को मिलाकर जो नवीन शब्द बनता है, वह भी अव्यय होता है। समस्तपद ‘क्रियाविशेषण’ होता है। एक ही शब्द की आवृत्ति के कारण जो समस्तपद बनता है, वह भी अव्यय होता है। जैसे-

• यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
• आजन्म – जन्म से लेकर
• प्रतिदिन – प्रत्येक दिन
• आमरण – मरण तक
• बखूबी – खूबी के साथ
• आजवीन – जीवन भर
• रातोंरात – रात ही रात में
• दिनोंदिन – दिन ही दिन में
• घड़ी-घड़ी – हर घड़ी

तत्पुरुष समास-  तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है तथा पूर्वपद गौण होता है। विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में कर्ता और संबोधन को छोड़कर अन्य किसी भी कारक का विभक्ति चिह्न आता है। प्रायः उत्तरपद विशेष्य और पूर्वपद विशेषण होता है।

तत्पुरुष के भेद

(i) कर्म तत्पुरुष – जहाँ पूर्वपद में कर्मकारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ कर्म तत्पुरुष होता है। जैसे –

• वनगमन – वन को गमन
• ग्रामगत – ग्राम को गत
• स्वर्गगत – स्वर्ग को गया हुआ
• यशप्राप्त – यश को प्राप्त
• मरणासन्न – मरण को पहुँचा हुआ

(ii) करण तत्पुरुष – जहाँ पूर्व पक्ष में करण कारक की विभक्ति का लोप हो, वहाँ ‘करण तत्पुरुष’ होता है। जैसे –

• मनमाना – मन से माना हुआ
• रोगपीड़ित – रोग से पीड़ित
• रेखांकित – रेखा से अंकित
• प्रेमातुर – प्रेम से आतुर
• भयाकुल – भय से आकुल
• अकालपीड़ित – अकाल से पीड़ित
• रोगमुक्त – रोग से मुक्त
• मनगढ़ंत – मन से गढ़ंत
• गुणयुक्त – गुण से युक्त

(iii) संप्रदान तत्पुरुष – जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संप्रदान की विभक्ति अर्थात् ‘के लिए’ का लोप होता है, वहाँ संप्रदान तत्पुरुष समास होता है। जैसे –

• डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
• देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
• सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह
• मालगोदाम – माल के लिए गोदाम
• जेबख़र्च – जेब के लिए ख़र्च
• विद्यालय – विद्या के लिए आलय
• मालगोदाम – माल के लिए गोदाम
• बलिपशु – बलि के लिए पशु

(iv) अपादान तत्पुरुष – जहाँ समास के पूर्व पक्ष में अपादान की विभक्ति अर्थात् ‘से’ का भाव हो, वहाँ अपादान तत्पुरुष समास होता है। जैसे –

• गुणहीन – गुणों से हीन
• धनहीन – धन से हीन
• दृष्टिहीन – दृष्टि से हीन
• भयभीत – भय से भीत
• धर्मविमुख – धर्म से विमुख
• आशातीत – आशा से अतीत
• पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट

(v) संबंध तत्पुरुष – जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संबंध तत्पुरुष की विभक्ति अर्थात् का, के, की का लोप हो, वहाँ संबंध तत्पुरुष समास होता है। जैसे –

• गृहस्वामी – गृह का स्वामी
• गंगाजल – गंगा का जल
• घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़
• मृत्युदंड – मृत्यु का दंड
• प्राणपति – प्राण का पति
• जलधारा – जल की धारा
• भारतरत्न – भारत का रत्न
• गंगातट – गंगा का तट
• देशवासी – देश का वासी

(v) संबंध तत्पुरुष – जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संबंध तत्पुरुष की विभक्ति अर्थात् का, के, की का लोप हो, वहाँ संबंध तत्पुरुष समास होता है। जैसे –

• गृहस्वामी – गृह का स्वामी
• गंगाजल – गंगा का जल
• घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़
• मृत्युदंड – मृत्यु का दंड
• प्राणपति – प्राण का पति
• जलधारा – जल की धारा
• भारतरत्न – भारत का रत्न
• गंगातट – गंगा का तट
• देशवासी – देश का वासी

कर्मधारय समास-  कर्मधारय समास में पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है अथवा एक पद उपमान और दूसरा पद उपमेय होता है।  इसका उत्तरपद प्रधान होता है। विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में ‘के समान’, ‘है जो’, ‘रूपी’ शब्दों में से किसी एक का प्रयोग होता है। जैसे –

• महाराजा – महान है जो राजा
• श्वेतांबर – श्वेत है जो अंबर
• नीलगाय – नीली है जो गाय
• परमानंद – परम है जो आनंद
• महात्मा – महान है जो आत्मा
• अंधविश्वास – अंधा है जो विश्वास
• महापुरुष – महान है जो पुरुष
• महादेव – महान है जो देव
• घनश्याम – घन के समान श्याम
• देहलता – देह रूपी लता

द्विगु समास-  जहाँ समस्तपद के पूर्वपक्ष में संख्यावाचक विशेषण होता है, वहाँ द्विगु समास होता है। विग्रह करते समय इस समास में समूह अथवा समाहार शब्द का प्रयोग होता है। जैसे –

• त्रिकोण – तीन कोणों का समाहार
• दोपहर – दो पहरों का समूह
• पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समूह
• त्रिफला – तीन फलों का समूह
• त्रिभुज – तीन भुजाओं का समाहार
• सप्ताह – सात दिनों का समाहार
• नवग्रह – नौ ग्रहों का समाहार
• चौराहा – चार राहों का समूह
• पंचतत्व – पाँच तत्व
• पंजाब – पाँच आबों का समूह

द्वंद्व समास – जिस समस्तपद में दोनों पद समान हों, वहाँ द्वंद्व समास होता है। इसमें दोनों पदों को मिलाते समय मध्य-स्थित योजक लुप्त हो जाता है। विग्रह करते समय दोनों पदों के बीच में ‘और’, ‘तथा’, ‘या’, ‘अथवा’ शब्दों में से किसी एक का प्रयोग होता है। जैसे –

• दिन-रात – दिन और रात
• जल-वायु – जल और वायु
• माता-पिता – माता और पिता
• तन-मन – तन और मन
• नर-नारी – नर और नारी
• दादा-दादी – दादा और दादी
• लाभ-हानि – लाभ या हानि
• अमीर-गरीब – अमीर और गरीब

बहुव्रीहि समास-  जहाँ पहला पद और दूसरा पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, वहाँ बहुव्रीहि समास होता है। दोनों पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता। तीसरा पद प्रधान होता है तथा दिए गए दोनों पदों का विशेष्य होता है। कर्मधारय व द्विगु समास में एक विशेषण होता है और दूसरा विशेष्य, जबकि बहुव्रीहि समास में दोनों पद विशेषण होते हैं तथा कोई तीसरा पद विशेष्य होता है।

• पीतांबर – पीले हैं वस्त्र जिसके (श्रीकृष्ण)
• चतुर्भुज – चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु)
• त्रिलोचन – तीन आँखों वाला (शिव)
• दीर्घ-बाहु – लम्बी भुजाओं वाला (विष्णु)
• नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका (शिव)
• गजानन – गज जैसा आनन वाला (गणेश)
• गिरिधर – गिरी को धारण करने वाला (श्रीकृष्ण)
• दसकंठ – दस हैं कंठ जिसके (रावण)
• कमलनयन – कमल के समान नयनों वाला (राम)