NCERT Solutions Class 10th Science Chapter – 3 धातु एवं अधातु (Metals and Non-metals)
Textbook | NCERT |
Class | 10th |
Subject | Science |
Chapter | 3rd |
Chapter Name | धातु एवं अधातु (Metals and Non-metals) |
Category | Class 10th Science |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 10th science Chapter – 3 धातु एवं अधातु (Metals and Non-metals) Notes in Hindi धातु अधातु कौन कौन सी है?, धातु और अधातु में क्या अंतर है?, कुल धातु कितने है?, धातु के 10 उदाहरण क्या हैं?, धातु क्या है उदाहरण?, धातु और अधातु को कैसे पहचाने?, उपधातु की संख्या कितनी है?, ग्रेफाइट क्या है धातु या अधातु?, 7 उपधातु कौन कौन से हैं?, धातु किस चीज से बनती है?, अर्धधातु कौन से तत्व हैं?, 5 धातु उदाहरण क्या हैं?, पृथ्वी पर कितनी धातु है? आदि के बारे में पढ़ेंगे। |
NCERT Solutions Class 10th science Chapter – 3 धातु एवं अधातु (Metals and Non-metals)
Chapter – 3
धातु एवं अधातु
Notes
धातु – जो पदार्थ कठोर, चमकीले, आघातवर्ध, तन्य, ध्वानिक और ऊष्मा तथा विद्युत के सुचालक होते हैं ऐसे पदार्थ धातु कहलाते हैं। उदहारण – सोडियम (Na), पोटाशियम (K), मैग्नीशियम (Mg), लोहा (Fe), एलूमिनियम (Al), कैल्शियम (Ca), बेरियम (Ba) धातुऐं हैं।
हमारे आस-पास धातुऐं
(1) मशीन के पुर्जे और सुरक्षा उपकरण
(2) आभूषण
(3) इमारत, पुल, रेल
(4) हवाईजहाज, समुद्री जहाज
(5) बर्तन और सिक्के
धातुओं के उपयोग – धातुओं का उपयोग इमारत, पुल, रेल पटरी को बनाने में, हवाईजहाज, समुद्री जहाज, गाड़ियों के निर्माण में, घर में उपयोग होने वाले बर्तन, आभूषण, मशीन के पुर्जे आदि के निर्माण में किया जाता है।
ध्वानिक – जब धातुएँ किसी कठोर सतह से टकराती हैं तो क्या होता है? क्या वह कोई आवाज़ उत्पन्न करती हैं? जो धातुएँ कठोर सतह से टकराने पर आवाज़ उत्पन्न करती हैं, उन्हें ध्वानिक (सोनोरस) कहते हैं।
अधातु – जो पदार्थ नरम, मलिन, भंगुर, ऊष्मा तथा विद्युत के कुचालक होते हैं, एवं जो ध्वानिक नहीं होते हैं अधातु कहलाते हैं। जैसे – ऑक्सीजन (O), हाइड्रोजन (H), नाइट्रोजन (N), सल्फर (S), फास्फोरस (P), फ्लूओरीन (F), क्लोरीन (Cl), ब्रोमीन (Br), आयोडिन (I), अधातुऐं हैं।
हमारे आस-पास के अधातुऐं –
(i) ऑक्सीजन
• वसन
• धन का दहन
(ii) कार्बन
• धन रूप में
• पोषक तत्व
• इलैक्ट्रोड
• आभूषण
(iii) नाइटोजन
• विकृतगंधिता से बचाव
• अम्ल, उर्वरक और विस्फोटक जैसे पदार्थों में उपयोगी
(iv) हाइड्रोजन
• हाइड्रोकार्बन में
• वनस्पति घी, ईंधन रूप, और उर्वरक बनाने हेतु
अधातुओं के उपयोग
(1) ऑक्सीजन हमारे जीवन के लिए आवश्यक है, जिसे सजीव श्वसन के समय अन्दर लेते हैं।
(2) नाइट्रोजन का उपयोग उर्वरकों में पौधों की वृद्धि हेतु किया जाता है।
(3) क्लोरीन का उपयोग जल शुद्धिकरण प्रक्रम में किया जाता है।
(4) आयोडीन का विलयन एंटीबायोटिक के रूप में घावों पर लगाया जाता है।
धातुओं और अधातुओं में अंतर
धातुऐं | अधातुऐं |
भौतिक गुणधर्म | क्लोरीन – गैस, आयोडीन – ठोस |
तन्य और आघातवर्ध्य होते हैं। | अधातुऐं तन्य और आघातवर्ध्य नहीं होती। |
ध्वानिक और चमक दर्शाने वाले गुण होते है। | अधातुऐं ध्वानिक नहीं होती और चमकहीन होती हैं। लेकिन आयोडीन और ग्रेफाइट में चमक होती है। |
सामान्यत: उच्च घनत्व, लेकिन सोडियम और पोटाशियम का धनत्व कम होता है। | अधातुओं का घनत्व अपेक्षाकृत कम होता है। |
धातु ऑक्साइड क्षारीय या उमयधर्मी होते है। यह धातु का रासायनिक गुणधर्म है। | अधातु ऑक्साइड की प्रकृति अम्लीय होती है। |
धातुऐं तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित कर हाइड्रोजन गैस निर्मित करती है। | अधातु ऑक्साइड तनु अम्ल से हाइड्रोजन को विस्थापित नहीं करती। |
धातु ऑक्साइड आयनिक होते है। | अधातु ऑक्साइड सहसंयोजक होते है। |
धातुओं का वायु में दहन – धातु वायु में जल सकते हैं, वायु से अभिक्रिया कर सकते हैं या अप्रभावित रहते है।
धातु + ऑक्सीजन → धातु ऑक्साइड
उदाहरण:
(i) 2Na + O2 → Na2O
(ii) 2Mg + O2 → 2MgO
(iii) 2Cu + O2 → 2CuO
• Na तथा K को आकस्मिक आग से रोकने के लिये किरोसीन तेल में डुबो कर रखा जाता है।
• Mg, Al, Zn, Pb वायु के साथ धीरे अभिक्रिया करते हैं। इन धातुओं पर ऑक्साइड की पतली सुरक्षा परत चढ़ जाती है।
• Mg वायु में जलने पर सफेद MgO बनाता है।
• Fe एवं Cu वायु में गर्म करने पर प्रज्वलित नहीं होते अपितु अपने ऑक्साइड बनाते हैं। ज्वाला में लौह चूर्ण डालने पर वे तेजी से जलने लगते हैं।
• Ag तथा Au (गोल्ड) ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया नहीं करते।
उभयधर्मी ऑक्साइड – वे धातु ऑक्साइड जो अम्ल तथा क्षार के अभिक्रिया करने के बाद लवण एवं जल उत्पन्न करते हैं। जैसे – ZnO, Al2O3
(i) Al2O3 + 6HCl → 2AICI3 + 3H2O
(ii) Al2O3 + 2NaOH → 2NaAlO2 + H2O
धातुओं का एनोडीकरण –
इस प्रक्रम में एल्यूमिनियम को ऐनोड और ग्रेफाइट को कैथोड बनाया जाता है। सल्फ्यूरिक अम्ल के वैदयुत अपघटन के बाद ऑक्सीजन गैस उत्पन्न होती है। ऑक्सीजन और एल्यूमिनियम की अभिक्रिया से, धातु की बाहरी सतह पर ऑक्साइड की मोटी परत बनती है।
धातुएं एवं जल की अभिक्रिया – धातुओं एवं जल की अभिक्रिया भिन्न होती है। सभी धातुऐं जल से अभिक्रिया नहीं करती।
धातु जल के रूपो के साथ अभिक्रिया:
• ठंडे जल के साथ क्रियाशील जैसे – Na, K, Ca
• गर्म जल के साथ क्रियाशील जैसे – Mg
• केवल भाप के साथ क्रियाशील जैसे – Fe, Al
(i) 2K + 2H2O → 2KOH + H2↑
(ii) Ca + 2H2O → Ca(OH)2 + H2↑
(iii) Mg + 2H2O → Mg(OH)2 + H2↑
Ca तथा Mg की जल से अभिक्रिया के दौरान उत्पन्न हाइड्रोजन गैस के बुलबुले धातु के साथ चिपक जाते हैं तथा धातु तैरना प्रारंभ कर देती है।
(i) 2Al + 3H2O → AL2O3 + 3H2↑
(ii) 3Fe + 4H2O → Fe304 + 4H2↑
सक्रियता श्रेणी – वह सूची जिसमें धातुओं को क्रियाशीलता के अवरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है।
K > Na > Ca > Mg > Al > Zn > Fe > Pb > H > Cu > Hg > Ag > Au
निम्न होती क्रियाशीलता
Cu + AgNO3 → Cu(NO3)2 + Ag
Cu(NO3)2
= (नीला) कॉपर चाँदी से अधिक क्रियाशील होने के कारण चाँदी को विस्थापित करता है।
धातु एवं अधातु में कैसे अभिक्रिया करती है – तत्वों की अभिक्रियाशीलता, संयोजकता कोश को पूर्ण करने की प्रवृति के रूप में समझी जा सकती है।
(i) धातु के परमाणु – अपने संयोजकता कोश से इलेक्ट्रान त्याग करते हैं तथा धनायन बनाते हैं।
(ii) अधातु के परमाणु – संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ॠणायन बनाते है।
(iii) विपरीत आवेशित आयन – एक–दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा मजबूत स्थिर वैद्युत बल में बँधकर आयनिक यौगिक बनाते हैं।
MgCl2 का निर्माण:
आयनिक यौगिकों के गुणधर्म
(i) कठोर तथा भंगुर।
(ii) उच्च गलनांक एवं क्वथनांक मजबूत। अंतर – आयनिक आकर्षण को तोड़ने के लिये ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा में आवश्यकता।
(iii) सामान्यता जल में घुलनशील। किरोसीन एवं पैट्रोल में अघुलनशील।
(iv) गलित अवस्था तथा विलयन रूप में विद्युत के सुचालक। इन अवस्थाओं में मुक्त आयन उपलब्ध होने के कारण विद्युत प्रवाहित होती है।
धातुओं की प्राप्तिः
खनिज – पृथ्वी में प्राकृतिक रूप से उपस्थित तत्वों एवं धातु के यौगिकों को खनिज कहते हैं।
अयस्क – वे खनिज जिनमें कोई विशेष धातु प्रचुर मात्रा में होती है तथा उसे निकालना सरल और लाभकारी होता है।
सक्रियता श्रेणी में निचली धातुऐं – स्वतंत्र अवस्था में पाई जाती है। उदाहरण, गोल्ड, सिल्वर, कॉपर। यद्यपि कॉपर तथा सिल्वर सल्फाईड तथा ऑक्साइड अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं। सक्रियता श्रेणी में मध्य में उपस्थित धातु प्रमुखत सल्फाईड, ऑक्साईड तथा कार्बोनेट अयस्क के रूप में प्राप्त होते हैं। उदाहरण: Zn, Fe, Pb
अधिक क्रियाशील धातुऐं – स्वतंत्र रूप से नहीं मिलती। जैसे: पोटाशियम, सोडियम, कैल्शियम।
गैंग – खनिज अयस्कों में मिट्टी, रेत जैसी अशुद्धियां होती हैं, जो गैंग कहलाती है।
धात्विकः अयस्क से धातु प्राप्ति की क्रम-गत प्रक्रिया।
अयस्क का समृद्धिकरण/सांद्रिकरण।
सांद्रित अयस्क से धातु की प्राप्ति।
अशुद्ध से शुद्ध धातु की परिष्करण द्वारा प्राप्ति।
सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुओं का निष्कर्षण
सक्रियता श्रेणी में नीचे आने वाली धातुएँ काफ़ी अनभिक्रिय होती हैं। इन धातुओं के ऑक्साइड को केवल गर्म करने से ही धातु प्राप्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए — सिनाबार (HgS), मर्करी (पारद) का एक अयस्क है। वायु में गर्म करने पर यह सबसे पहले मर्क्यूरिक ऑक्साइड (HgO) में परिवर्तित होता है और अधिक गर्म करने पर मर्क्यूरिक ऑक्साइड मर्करी (पारद) में अपचयित हो जाता है।
2HgS(s) + 3O2(g)तापन> 2HgO(s) + 2SO2(g)
2HgO(s) तापन> 2Hg(l) + O2(g)
इसी प्रकार, प्राकृतिक रूप से Cu½S के रूप में उपलब्ध ताँबे (कॉपर) को केवल वायु में गर्म करके
इसको अयस्क से अलग किया जा सकता है।
2Cu2S + 3O2(g) तापन> 2Cu2O(s) + 2SO2(g)
2Cu2O + Cu2S तापन> 6Cu(s) + SO2(g)
धातुओं का परिष्करण – ऊपर वर्णित विभिन्न अपचयन प्रक्रमों से प्राप्त धातुएँ पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं होती हैं। इनमें अपद्रव्य होते हैं, जिन्हें हटाकर ही शुद्ध धातु प्राप्त की जा सकती है। धातुओं से अपद्रव्य को हटाने के लिए सबसे अधिक प्रचलित विधि विद्युत अपघटनी परिष्करण है।
अलगलम – यदि कोई एक धातु पारद है तो इसके मिश्रातू अलगलम कहते है।
मिश्रातु – वास्तव में, कोई अन्य पदार्थ मिला कर किसी भी धातु के गुणधर्म बदले जा सकते हैं। यह पदार्थ धातु या अधातु कुछ भी हो सकता है। दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण को मिश्रातु कहते हैं।
थर्मिट अभिक्रिया – वास्तव में आयरन (III) ऑक्साइड (Fe2O3) के साथ एल्युमिनियम की अभिक्रिया का उपयोग रेल की पटरी एवं मशीनी पुर्जों की दरारों को जोड़ने के लिए किया जाता है। इस अभिक्रिया को थर्मिट अभिक्रिया कहते हैं।
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