NCERT Solutions Class10th Social Science Civics Chapter- 5 जन संघर्ष और आंदोलन (peoples-struggle-and-movement) Notes in Hindi

NCERT Solutions Class10th Social Science Civics Chapter- 5 जन संघर्ष और आंदोलन (peoples-struggle-and-movement) 

Text BookNCERT
Class  10th
Subject  Social Science (Civics)
Chapter5th
Chapter Nameजन संघर्ष और आंदोलन (peoples-struggle-and-movement) 
CategoryClass 10th Social Science Civics
Medium Hindi
SourceLast Doubt

NCERT Solutions Class10th Social Science Civics Chapter- 5 जन संघर्ष और आंदोलन (peoples-struggle-and-movement) 

?Chapter – 5?

✍जन संघर्ष और आंदोलन

?Notes?

 नेपाल की कहानी 

नेपाल में 1990 के दशक में लोकतंत्र स्थापित हुआ।

 नेपाल के राजा औपचारिक रूप से नेपाल के प्रधान बने रहें परंतु वास्तविक सत्ता जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में आ गई शाही खानदान की रहस्यमयी मृत्यु के बाद राजा बने ज्ञानेंद्र इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे।

फरवरी 2005 में उन्होंने जनता द्वारा चुनी सरकार को अपदस्थ कर दिया।

 नेपाल में लोकतंत्र के लिए संघर्ष।

2006 में जो आंदोलन उठ खड़ा हुआ उसका उद्देश्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर जनता को दुबारा सौंपना था।

संसद के सात बड़े दलों ने मिलकर ‘ सेवन पार्टी अलांयस ‘ का निर्माण किया

नेपाल की राजधानी काठमांडू में चार दिन के बंद का ऐलान किया।

 जल्द ही इसमें माओवादी भी इस दल में शामिल हो गए और इस प्रतिरोध ने अनिश्चितका लीन बंद का रूप ले लिया।

 लोग कपूर्य तोड़कर सड़को पर आ गए । सेना जनता के दबाव के आगे झुक गई।

राजा माँगों को मानने के लिए बाध्य हो गए।

 गिरिजा प्रसाद कोईराला को अंतिरम सरकार का प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।

संसद फिर बहाल हुई और इसने अपनी बैठकों में कई कानून पास किए । जिसके तहत राजा से अधिकांश शक्तियाँ वापस ले ली गई।

 नयीं संविधान सभा के तौर – तरीकों पर एस . पी . ए और माओवादियों के मध्य सहमति बनी।

 इस संघर्ष को नेपाल का लोकतंत्र के लिए दूसरा संघर्ष कहा गया है

 नेपाल के जन – संघर्ष का उद्देश्य 

नेपाल का आंदोलन लोकतंत्र की स्थापना के लिए था।
 नेपाल में चले आंदोलन ने यह तय किया कि देश की राजनीति की नींव क्या होगी।

 बोलिविया का जल युद्ध 

बोलिविया लातिनी अमरीका का एक गरीब देश है।

विश्व बैंक ने यहाँ की सरकार पर नगरपालिका द्वारा की जा रही जलापूर्ति से अपना नियंत्रण छोड़ने के लिए दबाव डाला।

सरकार ने कोचबंबा शहर में जलापूर्ति का अधिकार एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को बेच दिए।

 इस कंपनी ने आनन – फानन में पानी की कीमत में चार गुना इजाफा कर दिया।

अनेक लोगों का पानी का मासिक बिल 1000 रुपये तक जा पहुँचा जबकि बोलिविया में लोगों की औसत आमदनी 5000 रुपये महीना है।

सन् 2000 की जनवरी में श्रमिकों , मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा सामुदायिक नेताओं के बीच एक गठबंधन ने आकार ग्रहण किया और इस गठबंधन ने शहर में चार दिनों की कामयाब आम हड़ताल की।

लगातार हड़तालों का दौर चलता रहा जिसको सरकार ने बर्बरतापूर्वक दबाया।

जनता की ताकत के आगे बहुराष्ट्रीय कंपनी के अधिकारियों को शहर छोड़कर जाना पड़ा । सरकार को आंदोलनकारियों की सारी माँगें माननी पड़ी।

जलापूर्ति दोबारा नगरपालिका को सौंपकर पुरानी दर्रे को बहाल कर दिया गया।

 बोलिवया के जन – संघर्ष का उद्देश्य 

 बोलिवया के जन संघर्ष में एक निर्वाचित और लोकतांत्रिक सरकार को जनता की मांग मानने के लिए बाध्य किया।
बोलिविया का जन – संघर्ष सरकार की एक विशेष नीति के खिलाफ था।

 नेपाल और बोलिविया के जनसंघर्षो में समानताएँ और असमानताएँ 

 समानताएँ 

•  ये दोनों लोकतांत्रिक आंदोलन थे
•  ये दोनों संघर्ष में सफल रहे
• ये दोनों पूरे विश्व के लोकतंत्रवादियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं
• ये दोनों राजनीतिक संघर्ष के उदाहरण हैं

असमानताएँ 

•  नेपाल में संघर्ष देश की राजनीति के आधार पर संबंधित था।
• बोलिविया का संघर्ष किसी विशेष नीति से संबंधित था।

लोकतंत्र और जन – संघर्ष 

 लोकतंत्र का जनसंघर्ष के जरिए विकास होता है – यह भी संभव है कि कुछ महत्वपूर्ण फैसले आम सहमति से हो जाएँ और ऐसे फैसलों के पीछे किसी तरह का संघर्ष न हो । फिर भी , इसे अपवाद कहा जाएगा लोकतंत्र की निर्णायक घड़ी अमूमन वही होती है जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहने वालों के बीच संघर्ष होता है।

लोकतांत्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के जरिए होता है – संभव है कभी – कभी इस संघर्ष का समाधान मौजूदा संस्थाओं मसलन संसद अथवा न्यायपालिका के जरिए हो जाए । लेकिन , जब विवाद ज्यादा गहन होता है तो ये संस्थाएँ स्वयं उस विवाद का हिस्सा बन जाती है । ऐसे में समाधान इन संस्थाओं के जरिए नहीं बल्कि उनके बाहर यानी जनता के माध्यम से होता है।
ऐसे संघर्ष और लामबंदियों का आधार राजनीतिक संगठन होते है – यह बात सच है कि ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं में स्वतः स्फूर्त होने का भाव कहीं न कहीं जरूर मौजूद होता है लेकिन जनता की स्वतः स्फूर्त होने का भाव कहीं न कहीं जरूर मौजूद होता है लेकिन जनता की स्वतः स्फूर्त सार्वजनिक भागीदारी संगठित राजनीति के जरिए कारगर हो पाती है।
 एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी संघर्ष के पीछे बहुत से संगठन होते है – ये संगठन दो तरह से अपनी भूमिका निभाने है । राजनीतिक दलों का निर्माण एवं दबाव समूह।

लामबंदी और संगठन 

 दबाव समूह –  लोगों का ऐसा समूह जो सरकार की नीतियों को प्रभावित करके उद्देश्यों की प्रभावित करते है । जैसेः अखिल भारतीय किसान संघ , अखिल भारतीय व्यापार मण्डल , आदि।

 फेडकोर – बोलिबिया के जल युद्ध का नेतृत्व करने वाला संगठन इंजीनियर और पर्यावरणवादी समेत स्थानीय कामाकजी लोग शामिल थे । इस संगठन को किसानों के संघ , कारखाना मजदूरों के संगठन के परिसंघ विश्वविद्यालय के छात्र तथा शहर में बढ़ती बेघर – बार बच्चों की आबादी का समर्थन था।

राजनीतिक दल औऱ दबाव समूह में अंतर 

राजनीतिक दल दबाव समूह

• ये सरकार में प्रत्यक्ष भागीदार होते है । ये सरकार में प्रत्यक्ष भागरीदर नहीं होते है।
• ये पूरी तरह संगठित होते है । इनका संगठन ढीला – ढाला होता है।
• इनका विस्तार क्षेत्र राष्ट्रीय स्तर पर होता है । इनका प्रभाव सीमित होता है।
• इनका लक्ष्य लंम्बी अवधी वाला होता है । इनका लक्ष्य छोटी अवधी वाला होता है।

 दबाव समूह की कार्यप्रणाली 

• दबाव – समूह और आंदोलन अपने लक्ष्य तथा गतिविधियों के लिए जनता का समर्थन और सहानुभूति हासिल करने की  कोशिश करते हैं । इसके लिए सूचना अभियान चलाना , बैठक आदि आयोजित करना आदि।
• ऐसी युक्तियों का सहारा लेते है जिससे सरकार का ध्यान उनकी तरफ जाएँ । उदाहरण के लिए हड़ताल , चक्का जाम ,  भारत बंद , जूलूस आदि निकालना।
• सरकार को सलाह देने वाली समितियों और आधिकारिक निकायों की बैठकों में शिरकत करते है।
• कुछ मामलों में राजनीतिक दलों की एक शाखा के रूप में कार्य करते है।
• कभी कभी आंदोलन राजनीतिक दल का रूप भी ले लेते है।

अधिकांशतया दबाव – समूह और आंदोलनों का राजनीतिक दलों से प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता।
 दबाव समूह और आंदोलन – दबाव समूह का निर्माण तब होता है जब समान पेशे , रुचि , महात्वाकांछा या मतों वाले लोग किसी समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिये एक मंच पर आते हैं।
 जन आंदोलन के कुछ उदाहरण हैं  नर्मदा बचाओ आंदोलन , सूचना के अधिकार के लिये आंदोलन , शराबबंदी के लिये आंदोलन , नारी आंदोलन , पर्यावरण आंदोलन।

 वर्ग विशेष के हित समूह और जन सामान्य के हित समूह

वर्ग विशेष के हित समूह – जो दबाव समूह किसी खास वर्ग या समूह के हितों के लिये काम करते हैं उन्हें वर्ग विशेष के समूह कहते हैं ।  उदाहरण ट्रेड यूनियन , बिजनेस एसोसियेशन , प्रोफेशनल ( वकील , डॉक्टर , शिक्षक , आदि ) के एसोसियेशन।

 ऐसे समूह किसी खास वर्ग की बात करते हैं – जैसे मजदूर , शिक्षक , कर्मचारी , व्यवसायी , उद्योगपति , किसी धर्म के अनुयायी , आदि।

•  ऐसे समूहों का मुख्य उद्देश्य होता है अपने सदस्यों के हितों को बढ़ावा देना और उनके हितों की रक्षा करना।

जन सामान्य के हित समूह 

जो दबाव समूह सर्व सामान्य जन के हितों की रक्षा करते हैं उन्हें जन सामान्य के हित समूह कहते हैं।

 ऐसे दबाव समूह का उद्देश्य होता है पूरे समाज के हितों की रक्षा करना । उदाहरण ट्रेड यूनियन , स्टूडेंट यूनियन , एक्स आर्मीमेन एसोसियेशन , आदि।

दबाव / आंदोलन समूहों और राजनीतिक दलों के बीच संबंध 

दबाव समूह और आंदोलन राजनैतिक पार्टियों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं । किसी भी ज्वलंत मुद्दे पर उनका एक खास राजनैतिक मत और सिद्धांत होता है । हो सकता है कि कोई दबाव समूह किसी राजनैतिक पार्टी से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी जुड़ा हुआ हो।

भारत के अधिकांश ट्रेड यूनियन और स्टूडेंट यूनियन किसी न किसी मुख्य पार्टी से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं । इस तरह के समूहों के कार्यकर्ता सामान्यतया किसी पार्टी के कार्यकर्ता या नेता भी होते हैं।

कई बार किसी जन आंदोलन से राजनैतिक पार्टी का भी जन्म होता है । इसके कई उदाहरण हैं ; जैसे असम गण परिषद , डीएमके , एआईडीएमके , आम आदमी पार्टी , आदि।

असम गण परिषद का जन्म असम में बाहरी लोगों के खिलाफ चलने वाले छात्र आंदोलन के कारण 1980 के दशक में हुआ था

डीएमके और एआईडीएमके का जन्म तामिलनाडु में 1930 और 1940 के दशक में चलने वाले समाज सुधार आंदोलन के कारण हुआ था।

आम आदमी पार्टी का जन्म सूचना के अधिकार और लोकपाल की मांग के आंदोलन के कारण हुआ था।

अधिकांश मामलों में दबाव समूह और किसी राजनैतिक पार्टी के बीच का रिश्ता उतना प्रत्यक्ष नहीं होता है । अक्सर यह देखा जाता है कि दोनों एक दूसरे के विरोध में ही खड़े होते हैं । राजनैतिक पार्टियाँ भी दबाव समूहों द्वारा उठाये जाने वाले अधिकांश मुद्दों को आगे बढ़ाने का काम करती हैं । कई बड़े राजनेता किसी दबाव समूह से ही निकलकर आये हैं।

NCERT Solution Class 10th राजनीतिक शास्त्र Notes in Hind