NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar अनुच्छेद लेखन
Textbook | NCERT |
Class | Class 9th |
Subject | Hindi |
Chapter | हिन्दी व्याकरण (Grammar) |
Grammar Name | अनुच्छेद लेखन |
Category | Class 9th Hindi हिन्दी व्याकरण वा प्रश्न अभ्यास |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar अनुच्छेद लेखन अनुच्छेद लेखन कितने शब्दों का होना चाहिए? अच्छे अनुच्छेद लेखन के मूल नियम क्या है? अच्छे अनुच्छेद लेखन के मूल नियम क्या हैं? अनुच्छेद कितने प्रकार के होते हैं? भारत में कुल कितने धारा है? टोटल संविधान कितने हैं? में क्या लिखा है? कितने राज्यों ने संविधान की पुष्टि की? आर्टिकल में क्या है? भारत में आर्टिकल की संख्या कितनी है? भारत में अनुच्छेद की संख्या कितनी है? संविधान में भारत का नाम क्या है?आदि के बारे में पढ़ेंगे और जानने के साथ हम NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar अनुच्छेद लेखन व्याकरण करेंगे। |
CNCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar अनुच्छेद लेखन
हिन्दी व्याकरण
अनुच्छेद लेखन
हिंदी साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधाओं में एक है– अनुच्छेद लेखन। यह अपने मन के भाव-विचार अभिव्यक्त करने की विशिष्ट विधा है जिसके माध्यम से हम संबंधित विचारों को ‘गागर में सागर’ की तरह व्यक्त करते हैं। अनुच्छेद निबंध की तुलना में आकार में छोटा होता है, पर यह अपने में पूर्णता समाहित किए रहता है। इस विधा में बात को घुमा-फिराकर कहने के बजाए सीधे-सीधे मुख्य बिंदु पर आ जाते हैं। इसमें भूमिका और उपसंहार दोनों को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता है। इसी तरह कहावतों, सूक्तियों और अनावश्यक बातों से भी बचने का प्रयास किया जाता है। यहाँ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक बातों को छोड़ते-छोड़ते हम मुख्य अंश को ही न छोड़ जाए और विषय आधा-अधूरा-सा लगने लगे।
अनुच्छेद लेखन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
विषय का आरंभ मुख्य विषय से करना चाहिए।
वाक्य छोटे-छोटे, सरल तथा परस्पर संबद्ध होने चाहिए।
भाषा में जटिलता नहीं होनी चाहिए।
पुनरुक्ति दोष से बचने का प्रयास करना चाहिए।
विषय के संबंध में क्या, क्यों, कैसे प्रश्नों के उत्तर इसी क्रम में देकर लिखने का प्रयास करना चाहिए।
निबंध की भाँति ही अनुच्छेदों को मुख्यतया चार भागों में विभाजित कर सकते हैं
वर्णनात्मक अनुच्छेद
भावात्मक अनुच्छेद
विचारात्मक अनुच्छेद
विवरणात्मक अनुच्छेद
पराधीनता-एक अभिशाप
संकेत बिंदु-
• पराधीनता का आशय
• पराधीनता-एक अभिशाप
• पराधीनता से मुक्ति का साधन-त्याग एवं बलिदान
‘पराधीनता’ शब्द ‘पर’ और ‘अधीनता’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-दूसरों की अधीनता। अर्थात् हमारा जीवन, व्यवहार, कार्य आदि दूसरों की इच्छा पर निर्भर होना। वास्तव में पराधीनता एक अभिशाप है। पराधीन मनुष्य की जिंदगी उसी तरह हो जाती है, जैसे-पिंजरे में बंद पक्षी। ऐसा जीवन जीने वाला मनुष्य सपने में भी सुखी नहीं हो सकता है। उसे दूसरों का गुलाम बनकर अपनी इच्छाएँ और मन मारकर जीना होता है। पराधीन व्यक्ति को कितनी भी सुविधाएँ क्यों न दी जाए वह सुखी नहीं महसूस कर सकता है क्योंकि उसकी मानसिकता गुलामों जैसी हो चुकी होती है।
पराधीन व्यक्ति का मान-सम्मान और स्वाभिमान सभी कुछ नष्ट होकर रह जाता है। पराधीनता से मुक्ति पाने का साधन त्याग एवं बलिदान है। हमारा देश भी अंग्रेज़ों की पराधीनता झेल रहा था, परंतु क्रांतिकारी एवं देशभक्त युवाओं ने अपना सब कुछ त्याग कर स्वयं को संघर्ष की आग में झोंक दिया। उन्होंने अंग्रेज़ों के अत्याचार सहे, जेलों में प्राणांतक यातनाएँ सही। हज़ारों-लाखों ने अपनी कुरबानी दी। यह संघर्ष रंग लाया और हमें पराधीनता के अभिशाप से मुक्ति मिली। अब स्वतंत्र रहकर अभावों में भी सुख का अनुभव करते हैं।
जीवन में सत्संग का महत्त्व
संकेत बिंदु-
• सत्संग क्या है
• सत्संग दुर्लभ
• सत्संग के लाभ
सत्संग का अर्थ है अच्छे लोगों अर्थात् सज्जनों का साथ। सज्जनों के साथ रहना, उनकी बातें सुनना, उन्हें जीवन में उतारना ही सत्संग कहलाता है। सत्संग के कारण हमारे जीवन में परिवर्तन होने लगते हैं। इस संसार में सत्संग दुर्लभ माना जाता है। जिस पर ईश्वर की कृपा होती है, उसी को सत्संग का अवसर मिल पाता है। इससे हमारे मन, बुद्धि और मस्तिष्क का विकास होता है। इससे हमारे सोच-विचार और आचरण में बदलाव आने लगता है। व्यक्ति सत्संग के बिना विवेकवान नहीं हो सकता है। तभी तो तुलसीदास ने कहा है-बिनु सत्संग विवेक ने होई।
मनुष्य को जीने के लिए जिस प्रकार हवा और पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार जीवन में उत्थान विकास और विवेकवान बनने के लिए सत्संग आवश्यक है। सत्संग के विषय में कवि रहीम पहले ही कह चुके हैं-‘जैसी संगति कीजिए, तैसोई फल दीन।’ अर्थात् संगति के अनुसार मनुष्य को फल मिलता है। स्वाति नक्षत्र की एक बूंद केले के पत्ते पर पड़कर कपूर, हाथी के मस्तक पर पड़कर गजमौक्तिक और सीप में पड़कर मोती बन जाती है। अतः हमें भी सत्संग अवश्य करना चाहिए।
त्योहारों का महत्त्व
संकेत बिंदु-
• विभिन्न क्षेत्रों के अपने-अपने त्योहार
• विभिन्न प्रकार के त्योहार
• त्योहारों का महत्त्व
• त्योहारों के स्वरूप में परिवर्तन
भारत त्योहारों एवं पर्यों का देश है। शायद ही कोई महीना या ऋतु हो, जब कोई-न-कोई त्योहार न मनाया जाता हो। भारत एक विशाल देश है। यहाँ की विविधता के कारण ही विविध प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। यहाँ परंपरा और मान्यता के अनुसार नागपंचमी, रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा, होली, ईद, पोंगल, गरबा, वसंत पंचमी, बैसाखी आदि त्योहार मनाए जाते हैं। इसके अलावा कुछ त्योहारों को सारा देश मिलकर एक साथ मनाता है। ऐसे त्योहारों को राष्ट्रीय पर्व कहा जाता है। इन पर्यों में स्वतंत्रता दिवस, . गणतंत्र दिवस तथा गांधी जयंती प्रमुख हैं। ये त्योहार हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ये त्योहार जहाँ भाई-चारा, प्रेमसद्भाव तथा सांप्रदायिक सौहार्द्र बढ़ाते हैं, वहीं राष्ट्रीय एकता, देशप्रेम और देशभक्ति की भावना को भी प्रगाढ़ करते हैं। इनसे हमारी सांस्कृतिक गरिमा सुरक्षित रहती है। वर्तमान में इन त्योहारों के स्वरूप में पर्याप्त बदलाव आ गया है। रक्षाबंधन के पवित्र अभिमंत्रित धागों का स्थान बाज़ारू राखी ने, मिट्टी के दीपों की जगह बिजली के बल्बों ने तथा होली के प्रेम और प्यार भरे रंगों की जगह कीचड़, कालिख और पेंट ने ले लिया है। आज इन त्योहारों को सादगी एवं पवित्रता से मनाने की आवश्यकता है।
विद्यार्थी जीवन
संकेत बिंदु-
• जीवन निर्माण का काल
• विद्यार्थी के लक्षण
• विद्यार्थी के कर्तव्य
हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को चार भागों में बाँट दिया था। इनमें जीवन के जिस आरंभिक पच्चीस वर्ष को ‘ब्रह्मचर्य’ के नाम से जाना था, उसी को आज विद्यार्थी जीवन कहने में कोई विसंगति न होगी। इसी काल में बालक तरह-तरह की विद्याएँ, संस्कार और सदाचार की बातें सीखता है, अतः यह जीवन-निर्माण का काल होता है। इस समय बालक जो कुछ भी सीखता है, चाहे अच्छा या बुरा, उसका प्रभाव जीवन भर रहता है। इन्हीं गुणों पर व्यक्ति का भविष्य निर्भर करता है। विद्यार्थी जीवन विद्यार्जन का काल होता है।
इसके लिए नम्रता, जिज्ञासा, सेवा तथा कर्तव्य भावना आवश्यक है। इस समय उसे कौए-सी चेष्टा, बगुले-सा ध्यान, कुत्ते-सी निद्रा, कम भोजन करने वाला तथा घर-परिवार की मोहमाया से दूर रहने वाला होना चाहिए। जो विदयार्थी आलस्य करते हैं या असंयमित आचरण के शिर हो जाते हैं वे सफलता से दूर रह जाते हैं। अतः विद्यार्थियों को विनम्र, जिज्ञासु, संयमी, परिश्रमी तथा अध्यवसायी बनना चाहिए। उसके जीवन में सादगी और विचारों की महानता होने पर वह उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करता है।
महानगरीय जीवन-एक वरदान या अभिशाप
संकेत बिंदु-
• शहरों की ओर बढ़ते कदम
• दिवास्वप्न
• वरदान रूप
• महानगरीय जीवन-एक अभिशाप
आदिकाल में जंगलों में रहने वाले मनुष्य ने ज्यों-ज्यों सभ्यता की दिशा में कदम बढ़ाए, त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ बढ़ती गईं। उसने इन आवश्यकताओं की पूर्ति का केंद्र शहर प्रतीत हुए और उसने शहरों की ओर कदम बढ़ा दिए। महानगरों का अपना विशेष आकर्षण होता है। यही चमक-दमक गाँवों में या छोटे शहरों में रहने वालों को विशेष रूप से आकर्षित करती है। उसे यहाँ सब कुछ आसानी से मिलता प्रतीत होता है। इसी दिवास्वप्न को देखते हुए उसके कदम महानगरों की ओर बढ़े चले आते हैं। इसके अलावा वह रोज़गार और बेहतर जीवन जीने की लालसा में इधर चला आता है।
धनी वर्ग के लिए महानगर किसी वरदान से कम नहीं। उनके कारोबार यहाँ फलते-फूलते हैं। कार, ए.सी., अच्छी सड़कें, विलासिता की वस्तुएँ, चौबीसों घंटे साथ निभाने वाली बिजली यहाँ जीवन को स्वर्गिक आनंद देती हैं। इसके विपरीत गरीब आदमी का जीवन यहाँ दयनीय है। रहने को मलिन स्थानों पर झुग्गियाँ, चारों ओर फैली गंदगी, मिलावटी वस्तुएँ, दूषित हवा, प्रदूषित पानी यहाँ के जीवन को नारकीय बना देते हैं। ऐसा जीवन किसी अभिशाप से कम नहीं।
बिना विचार जो करे
संकेत बिंदु-
• सूक्ति का अर्थ कवि गिरधर की एक कुंडली की पहली पंक्ति है-
‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए, काम बिगारे आपनो जग में होत हँसाय। अर्थात् बिना सोच-विचार किए जो व्यक्ति काम करता है वह बाद में पछताता है। ऐसा करके वह अपना काम बिगाड़ लेता है जिससे संसार में उसकी हँसी होती है। वास्तव में मानव जीवन में मनुष्य की सोच ही उसके व्यवहार का आईना होती है। बिना सोचे-समझे काम करके मानव वह अपनी समस्या को और भी जटिल बना लेता है। ऐसे में वह दूसरों की सहायता लेने के लिए विवश होता है। सोच-विचार का अर्थ यह तो बिलकुल नहीं है कि वह हवाई खयालों में डूबा रहे और काम को करने के बजाए दिवास्वप्न में डूबा रहे।
ऐसा सोच-विचार किस काम का जिससे वह काम करना तो दूर काम को हाथ भी न लगाए। सोच-विचार का अर्थ है काम करने के लिए सही दिशा में बढ़ना और अपनी सोच को इस स्तर का बनाना जिससे काम सफल हो जाए और किसी को हँसने का अवसर भी न मिले। इस तरह की सोच से मनुष्य की पहचान और व्यवहार दोनों ही अच्छा बन जाता है।
कंप्यूटर-आज की आवश्यकता
संकेत बिंदु-
• कंप्यूटर एक विचित्र उपकरण
• बढ़ता उपयोग
• इंटरनेट और कंप्यूटर
• प्रयोग की सावधानियाँ
मानव जीवन को सुखमय बनाने के लिए विज्ञान ने अनेक साधन प्रदान किए हैं। कंप्यूटर इन्हीं साधनों में एक है, जिसकी कार्यप्रणाली और बढ़ते प्रयोग ने इसे अद्भुत उपकरण बना दिया है। कंप्यूटर अनेक यांत्रिक मस्तिष्कों का जटिल योग है जो काम को अत्यंत तेज़ गति, सही तरीके और कम-से-कम समय में कर सकता है। इसके काम करने की तेज़ गति इसकी लोकप्रियता का कारण बनी हुई है। गणितीय समस्याएँ हल करने में इसके जैसा दूसरा नहीं। आज कंप्यूटर हर कार्यालयों के अलावा हर घर की ज़रूरत भी बनता जा रहा है।
इसके माध्यम से आरक्षण, बिलों का भुगतान, पुस्तकों का प्रकाशन, रोगों का इलाज, विभिन्न उपकरणों के पुों का निर्माण का काम सरल हुआ है। कार्यालयों में फाइलें रखने की समस्या खत्म हो गई है। कंप्यूटर के कारण अब कार्यालयों का काम घर बैठे-बिठाए किए जा रहा है। इंटरनेट के कारण इस यंत्र की उपयोगिता और भी बढ़ गई है। हमें हर काम के लिए कंप्यूटर पर आश्रित नहीं होना चाहिए। इसका प्रयोग आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए।
अनुशासन का महत्त्व
संकेत बिंदु-
• अनुशासन का अभिप्राय
• अनुशासन का महत्त्व
• सफलता के लिए अनुशासन आवश्यक
अनुशासन का अभिप्राय है-शासन (नियम) के पीछे चलना। अर्थात् विद्वानों तथा समाज के माननीय लोगों द्वारा बनाए गए नैतिक एवं सामाजिक नियमों का पालन करते हुए जीना। जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन जीने की कला है। यह व्यक्ति का वह मार्गदर्शक है जो व्यक्ति को सुपथ पर चलाते हुए लक्ष्य की ओर ले जाता है। अनुशासन का महत्त्व हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं कि अंकुश की सहायता से महावत पागल हाथी को भी वश में कर लेता है और मनचाहे काम करवाता है। यदि महावत के पास अंकुश न हो तो पागल हाथी बेकाबू होकर विध्वंस बन जाता है।
वास्तव में अनुशासनहीन जीवन नाविक विहीन नाव के समान होता है। नाविक नाव को मध्य धारा से धीरे-धीरे किनारे लगा लेता है परंतु नाविक विहीन नाव किसी चट्टान या पत्थर से टकराकर चकनाचूर हो जाती है। अनुशासनहीन व्यक्ति न अपना भला कर पाता है और न समाज या राष्ट्र का। अनुशासनहीन व्यक्ति सफलता से कोसों दूर रह जाता है। अतः जीवन को आनंदमय बनाने के लिए अनुशासन में रहना अत्यावश्यक है।
ऋतुराज-वसंत
संकेत बिंदु-
• ऋतुराज क्यों
• जड़-चेतन में नवोल्लास
• स्वास्थ्यवर्धक ऋतु
• वसंत ऋतु के त्योहार
हमारे देश भारत में छह ऋतुएँ पाई जाती हैं। इनमें से वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। इस काल में न शीत की अधिकता होती है और न ग्रीष्म का तपन। वर्षा ऋतु का कीचड़ और कीट-पतंगों का आधिक्य भी नहीं होता है। माघ महीने की शुक्ल पंचमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक ही यह ऋतु बहुत-ही सुहावनी होती है। इस समय पेड़-पौधों में नवांकुर फूट पड़ते हैं। लताओं पर कलियाँ और फूल आ जाते हैं। चारों दिशाओं में फूलों की सुगंध, कोयल कूक तथा वासंती हवा की सरसर से वातावरण उल्लासमय दिखता है। इस ऋतु का असर बच्चों, युवा, प्रौढ़ों और वृद्धों पर दिखता है।
उनका तन-मन उल्लास से भर जाता है। यह ऋतु स्वास्थ्यवर्धक मानी गई है। स्वास्थ्य के अनुकूल जलवायु, सुंदर वातावरण तथा प्राणवायु की अधिकता के कारण संचार बढ़ जाता है। इससे मन में एक नया उल्लास एवं उमंग भर उठता है। वसंत पंचमी, होली इस ऋतु के त्योहार हैं। वसंत पंचमी के दिन ज्ञानदायिनी सरस्वती की पूजा-आराधना की जाती है तथा होली के दिन रंगों में सराबोर हम खुशी में डूब जाते हैं।
बदलती दुनिया में पीछे छूटते जीवन मूल्य
संकेत बिंदु-
• संसार परिवर्तनशील
• बदलाव का प्रभाव
• खोते नैतिक मूल्य
यह संसार परिवर्तनशील है। यह पल-पल परिवर्तित हो रहा है। इस परिवर्तन के कारण कल तक जो नया था वह आज पुराना हो जाता है। कुछ ही वर्षों के बाद दुनिया का बदला रूप नज़र आने लगता है। इस परिवर्तन से हमारे जीवन मूल्य भी अछूते नहीं हैं। इन जीवन मूल्यों में बदलाव आता जा रहा है। इससे व्यक्ति का दृष्टिकोण बदल रहा है। यह बदलाव व्यक्ति के व्यवहार में स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। विज्ञान की खोजों के कारण हर क्षेत्र में बदलाव आ गया है। पैदल और बैलगाड़ी पर सफ़र करने वाला मनुष्य वातानुकूलित रेलगाड़ियों और तीव्रगामी विमानों से सफ़र कर रहा है। हरकोर और कबूतरों से संदेश भेजने वाला मनुष्य आज टेलीफ़ोन और तार की दुनिया से भी आगे आकर मोबाइल फ़ोन पर आमने-सामने बातें करने लगा है।
दुर्भाग्य से हमारे जीवन मूल्य इस प्रगति में पीछे छूटते गए। कल तक दूसरों के लिए त्याग करने वाला, अपना सर्वस्व दान देनेवाला मनुष्य आज दूसरों का माल छीनकर अपना कर लेना चाहता है। परोपकार, उदारदता, मित्रता, परदुखकातरता, सहानुभूति, दया, क्षमा, साहस जैसे मूल्य जाने कहाँ छूटते जा रहे हैं। हम स्वार्थी और आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं।
सच्चा मित्र अथवा विपत्ति कसौटी जे कसे ते ही साँचे मीत
संकेत बिंदु-
• मित्र की आवश्यकता क्यों
• सच्चे मित्र के गुण
• मित्र चयन में सावधानियाँ
• सच्चे मित्र कौन?
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। इसके जीवन में सुख-दुख आते रहते हैं। वह अपनी बातें दूसरों को बताकर दुख कम करना चाहता है। ऐसे में उसे एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत पड़ती है तो उसका सच्चा हमराज़ बन सके, उसके सुख-दुख में साथ दे। इन्हें ही मित्र कहा जाता है। एक सच्चा मित्र औषधि के समान होता है जो व्यक्ति की हर दुख-तकलीफ को हर लेता है। वह आपत्ति के समय व्यक्ति को अकेला नहीं छोड़ता है। वह अपने मित्र के कुमार्ग पर बढ़ते कदमों को रोककर सन्मार्ग की ओर अग्रसर करता है। वह अपने मित्र की कटु बातों को मन पर नहीं लेता है तथा मित्र की भलाई के विषय में ही सदैव सोचता है। मित्र का चयन करते समय सावधान रहना चाहिए।
चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले, विपत्ति के समय न टिकने वाले मित्रों से सावधान रहना चाहिए। ऐसे लोग संकटकाल में अपने मित्र को उसी प्रकार छोड़ देते हैं; जैसे-जाल पड़ने पर पानी मछलियों का साथ छोड़ देता है। आज कपटी मित्रों की भी कमी नहीं। अतः इनसे सदैव सावधान रहने की ज़रूरत है। विपत्ति के समय साथ देने वाले, नि:स्वार्थ मदद करने वाले, की हुई मदद का गान न करने वाले हमारे सच्चे मित्र होते हैं।
देश हमारा सबसे प्यारा
संकेत बिंदु-
• भारत का नामकरण
• प्राकृतिक सौंदर्य
• अनेकता में एकता
• प्राचीन परंपरा
• वर्तमान में भारत
स्वर्ग के समय जिस धरा पर मैं रहता हूँ, दुनिया उसे भारत के नाम से जानती-पहचानती है। प्राचीन काल में यहाँ आर्यों (सभ्य) का निवास था, इस कारण इसे आर्यावर्त कहा जाता था। प्राचीन साहित्य में इसे जंबूद्वीप के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि प्रतापी राजा दुष्यंत और शकुंतला के प्रतापी पुत्र भरत के नाम पर इसका नाम भारत पड़ा। भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अप्रितम है। यहाँ छह ऋतुएँ बारी-बारी से आकर अपना सौंदर्य बिखरा जाती हैं। इसके उत्तर में मुकुट रूप में हिमालय है। दक्षिण में सागर चरण पखारता है। गंगा-यमुना जैसी पावन नदियाँ इसके सीने पर धवल हार की भांति प्रवाहित होती हैं। यहाँ के हरे-भरे वन इस सौंदर्य को और भी बढ़ा देते हैं। यहाँ विभिन्न भाषा-भाषी, जाति-धर्म के लोग रहते हैं।
उनकी वेषभूषा, रहन-सहन, खान-पान और रीति-रिवाजों में पर्याप्त अंतर है फिर भी हम सभी भारतीय हैं और मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ की परंपरा अत्यंत प्राचीन, महान और समृद्धशाली है। भारतीय संस्कृति की गणना प्राचीनतम संस्कृतियों में की जाती है। वर्तमान में भारत को स्वार्थपरता, आतंकवाद, गरीबी, निरक्षरता आदि का सामना करना पड़ रहा है तथा मानवीय मूल्य कहीं खो गए-से लगते हैं। नेताओं की स्वार्थलोलुपता ने रही-सही कसर पूरी कर दी है, फिर भी हमें निराश होने की जरूरत नहीं है। भारत एक-न-एक दिन अपना खोया गौरव अवश्य प्राप्त करेगा।
इंटरनेट का उपयोग
संकेत बिंदु-
• इंटरनेट क्या है
• इंटरनेट के लाभ
• उपयोग में सावधानियाँ
इंटरनेट को विज्ञान की अद्भुत देन कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। वास्तव में इंटरनेट सूचनाओं एवं जानकारियों का विस्तृत जाल है। इसमें एक-दो नहीं करोड़ों पन्नों की जानकारी भरी है। इंटरनेट की मदद से हम अपनी इच्छित जानकारी और जिज्ञासा का हल कुछ ही पल में कंप्यूटर की मदद से पा सकते हैं। इसकी सहायता से हम कुछ ही क्षण में दुनिया से जुड़ जाते हैं। अपने विचित्र गुण के कारण इंटरनेट अत्यंत तेज़ी से युवाओं के बीच लोकप्रिय हो रहा है। यह ऐसा माध्यम है जिसमें संचार के लगभग साधनों के गुण समाए हैं। इंटरनेट अपने आप में विशाल पुस्तकालय भी है जिसमें दुर्लभ जानकारियों से भरी अनेकानेक पुस्तकें समायी हैं। इसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है।
इंटरनेट बहु उपयोगी साधन है। इसके माध्यम से मनोवांछित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तो घर बैठे सिनेमा या हवाई जहाज़ के टिकट बुक करवा सकते हैं। यह पढ़ने लिखने वालों तथा शोधकर्ताओं के लिए वरदान है। इंटरनेट का सावधानीपूर्वक उपयोग न करने पर इसके दुरुपयोग की संभावना रहती है। इंटरनेट की अश्लील सामग्री से युवाओं का कोमल मन दिग्भ्रमित हो रहा है। विवेकपूर्वक उपयोग करने पर यह वरदान सरीखा है।
पुस्तकालय कितने उपयोगी
संकेत बिंदु-
• पुस्तकालय क्या है?
• पुस्तकालय के प्रकार
• ज्ञान के भंडार
• आवश्यकता एवं महत्त्व
पुस्तकालय शब्द दो शब्दों ‘पुस्तक’ और ‘आलय’ के मेल से बना है। इसमें आलय का अर्थ है-घर। अर्थात् वह स्थान जहाँ बहुत सारी पुस्तकें सुरक्षित एवं व्यवस्थित ढंग से रखी जाती हैं, उसे पुस्तकालय कहते हैं। प्राचीन काल में कुछ राजा-महाराजा अपना शौक पूरा करने के लिए पुस्तकालय बनवाया करते थे। पुस्तकालय मुख्यतया दो प्रकार के होते हैं-निजी पुस्तकालय और सार्वजनिक पुस्तकालय। निजी पुस्तकालय व्यक्ति अपने सामर्थ्य, रुचि और आवश्यकता के अनुसार बनवाता है तथा स्वयं उसका उपयोग करता है। इसके विपरीत सार्वजनिक पुस्तकालय प्रायः सरकार द्वारा बनवाए एवं संचालित किए जाते हैं, जिनके दरवाज़े हर एक के लिए खुले रहते हैं।
यहाँ कोई भी जाकर उनका लाभ उठा सकता है। यहाँ विविध विषयों पर बहुत सारी उपयोगी एवं दुर्लभ पुस्तकें मिल जाती हैं। यहाँ धर्म, अर्थ, ज्ञान-विज्ञान, चिकित्सा राजनीतिक विषयों के अलावा पौराणिक पुस्तकें मिलती हैं। इस प्रकार पुस्तकालय ज्ञान के भंडार हैं। इस युग में प्रत्येक व्यक्ति पुस्तकें नहीं खरीद सकता है तथा उनका रख-रखाव नहीं करता है। ज्ञान की उपयोगिता तो सर्वविदित है। ऐसे में पुस्तकालय की आवश्यकता एवं महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
आत्मनिर्भरता
संकेत बिंदु-
• आत्मनिर्भरता क्या है
• आत्मनिर्भरता के लाभ
• आत्मनिर्भरता से जुड़ी सावधानियाँ
आत्मनिर्भरता दो शब्दों ‘आत्म’ और निर्भरता से बना है, जिसका अर्थ है-स्वयं पर निर्भर रहना। अर्थात् अपने कार्यों और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे का मुँह न ताकना। आत्मनिर्भरता उत्तम कोटि का मानवीय गुण है। इससे व्यक्ति कर्म करने लिए स्वतः प्रेरित होता है। व्यक्ति को अपनी शक्ति, योग्यता और कार्यक्षमता पर पूरा विश्वास होता है। इसी बल पर व्यक्ति उत्साहित होकर पूरी लगन से काम करता है और सफलता का वरण करता है। आत्मनिर्भरता व्यक्ति के लिए स्वतः प्रेरणा का कार्य करती है।
यह प्रेरणा व्यक्ति को निरंतर आगे ही आगे ले जाती है। इससे व्यक्ति में निराशा या हीनता नहीं आने पाती है। आगे बढ़ते रहने से हम दूसरों के लिए आदर्श और अनुकरणीय बन जाते हैं। यहाँ एक बात यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि हम अति उत्साहित होकर अति आत्मविश्वासी न बन जाएँ क्योंकि इससे हमारे कदम गलत दिशा में उठ सकते हैं। अच्छा हो कि कोई कदम उठाने से पूर्व हम अपनी कार्य क्षमता का आँकलन कर लें, इससे हम असफलता का शिकार होने से बच जाएँगे, पर हमें हर परिस्थिति में आत्म निर्भर बनना चाहिए।
नारी तेरे रूप अनेक
संकेत बिंदु-
• नारी के विविध रूप
• शिक्षा में प्रगति
• विभिन्न पदों पर नारी
• सुरक्षा की आवश्यकता
समाज में नारी के अनेक रूप हैं। वह विविध भूमिकाएं निभाकर परिवार एवं समाज के विकास में अपना योगदान देती है। वह परिवार में माँ, दादी, पत्नी, बहन, भाभी, चाची, मामी आदि भूमिकाओं में नज़र आती है। अब उसके इस कल्याणी रूप के अलावा नौकरी करने वाला रूप भी दिखने लगा है। स्वतंत्रता के बाद शिक्षा के लिए उठाए गए कदमों से नारी शिक्षा में प्रगति हुई है। साक्षरता दर में वृद्धि हुई है, जिसमें स्त्री शिक्षा का भी योगदान है। शिक्षा के कारण उसके उत्तरदायित्वों में निरंतर वृद्धि होती गई। आज नारी घर की चारदीवारी को लाँघकर नौकरी-पेशा करने लगी है। शायद ही कोई क्षेत्र हो जहाँ नारी नौकरी न कर रही हो। डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापिका, नर्स, प्रशासनिक अधिकारी, क्लर्क, विमान परिचारिका के रूप में उसे सेवा देते देखा जा सकता है।
उसे सरकारी, गैरसरकारी, सार्वजनिक संस्थानों में काम करते देखा जा सकता है। आज लोगों की सोच में बदलाव आने के कारण नारी को छेड़छाड़, अश्लीलता, छींटाकसी, हिंसात्मक घटनाओं का शिकार होना पड़ रहा है। ऐसे में नारी के प्रति सम्मानजनक सोच, आदर की भावना एवं सुरक्षा देने के लिए तत्परता की आवश्यकता है।
मैंने ग्रीष्मावकाश कैसे बिताया अथवा मेरी अविस्मरणीय यात्रा
संकेत बिंदु-
• पर्वतों का आकर्षण
• यात्रा की तैयारी एवं प्रस्थान
• मनभावन स्थल
• अविस्मरणीय स्मृतियाँ
न जाने क्यों पर्वत मुझे सदा से ही आकर्षित करते हैं। आकाश छूते उनके उन्नत शीश, विशालकाय शरीर, शरीर पर रोएँ के समान उगी वनस्पतियाँ और पेड और इनसे भी अधिक उनके पैरों के पास खड़े होकर उनकी विशालता तथा अपने छोटेपन की अनुभूति मुझे रोमांचित कर देती है। इसी बीते ग्रीष्मावकाश में हम चार-पाँच मित्रों ने परीक्षा से पूर्व ही देहरादून की यात्रा कार्यक्रम घरवालों की अनुमति से बनाया और ‘देहरादून एक्सप्रेस’ से आरक्षण करा लिया। यात्रा की सारी तैयारी करके 02 जून को हम दिल्ली से शाम को चलकर प्रात: देहरादून पहुँच गए। वहाँ होटल में रुके और नित्यकर्म से निवृत्त होकर सहस्रधारा स्नान का मन बनाया।
वहाँ की पतली-सी शीतल धारा में नहाते ही हमारी थकान छूमंतर हो गई। हमने स्वास्थ्य के लिए उपयोगी गंधक का पानी भी पिया। अगले दिन हम बस द्वारा मंसूरी गए। यहाँ की सीली पहाड़ी सड़क की यात्रा बड़ी रोमांचक थी। यहाँ हम चार दिन रुककर कैंपटीफाल समेत अनेक स्थानों को देखा। यहाँ का सौंदर्य रात्रि में और भी निखर उठता था। ‘लाल टिब्बा’ नामक स्थान देखकर हम देहरादून आए और यहाँ सप्ताह भर रुककर गंगा स्नान किया। मंसा देवी मंदिर पैदल जाना एक विचित्र अनुभव था। यहाँ बिताए ग्रीष्मावकाश की स्मृतियाँ आज भी ताज़ी हैं।
मेरे जीवन का लक्ष्य
संकेत बिंदु-
• लक्ष्य निर्धारण
• लक्ष्य के प्रति समर्पण, यही लक्ष्य क्यों?
• विकास में योगदान
लक्ष्यहीन जीवन भटकाव से भरा रहता है। ऐसा जीवन लोगों की दृष्टि में अच्छा नहीं माना जाता है। निरुददेश्य घूमते रहने से अच्छा है कि हम अपने जीवन का एक लक्ष्य बना लें। बचपन से ही मैं एक अच्छा इंजीनियर बनने के लिए सोचा करता था। अब यही मेरा जीवन लक्ष्य है। इसे मैं पूरा करके ही रहूँगा। इसके लिए मैंने आठवीं कक्षा से ही विज्ञान, गणित, अंग्रेज़ी जैसे विषयों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। मैंने दसवीं में ‘ए’ ग्रेड लाने का फैसला किया है, ताकि ग्यारहवीं में विज्ञान पढ़ने में कोई परेशानी न आए। यह लक्ष्य मैंने इसलिए चुना क्योंकि समाज में इंजीनियर का स्थान ऊँचा माना जाता है। वह समाज और प्रकृति को सुंदर बनाने में अपना सहयोग देता है।
इसमें नौकरी और स्वतंत्र व्यवसाय दोनों के रास्ते खुले रहते हैं। यह आय और सम्मान दोनों ही पाने का साधन है। एक इंजीनियर बनकर औद्योगिक विकास में अपना योगदान देना चाहता हूँ। अपने परिश्रम और नई खोज द्वारा देश के विकास में तनमन से प्रयास करूँगा। मैं प्रसिद्ध भारतीय इंजीनियर सर गंगा राम के कार्यों की तरह समाज के लिए हितकारी काम करना चाहता हूँ।
भ्रष्टाचार की समस्या एवं समाधान
संकेत बिंदु-
• भूमिका
• भ्रष्टाचार की परिभाषा
• भ्रष्टाचार फैलने के कारण
• समाधान
वर्तमान समय में समाज को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। भ्रष्टाचार की समस्या उनमें सर्वोपरि है, जिससे किसीन-किसी मोड़ पर दो-चार होना पड़ता है। भ्रष्टाचार का अर्थ है-भ्रष्ट आचरण करना अर्थात् स्वार्थ के वशीभूत होकर नैतिक मापदंडों के विरुद्ध आचरण करना ही भ्रष्टाचार है। आज यह समाज में अपनी जड़ें जमा चुका है। बेईमानी, चोरबाज़ारी, रिश्वतखोरी, मिलावट, जमाखोरी, जैसी बुराइयाँ भ्रष्टाचार की ही देन है। सरकारी एवं राजनैतिक अधिकारों का दुरुपयोग कर लोग भ्रष्टाचार में आकर डूबकर अपने भले में लग जाते हैं और दूसरों के हित से उनका कोई लेना-देना नहीं रह जाता है। भौतिकवाद के प्रभावस्वरूप लोगों की सोच में बदलाव आया है और वे येन-केन प्रकारेण अधिकाधिक धन कमाना अपने जीवन का लक्ष्य मान बैठे हैं।
रही-सही कसर उपभोक्तावादी संस्कृति ने पूरी कर दी है, जिसके लोभ में फँसकर व्यक्ति बिना परिश्रम किए अधिकाधिक सुख-सुविधाओं का उपभोग कर लेना चाहता है। भ्रष्टाचार के समाधान के लिए सरकार को कठोर कदम उठाने चाहिए। भ्रष्टाचारियों द्वारा अर्जित संपत्ति जब्त कर उन्हें पदों से हटा देना चाहिए। भ्रष्ट नेताओं की सदस्यता समाप्त कर उनके चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगा देना चाहिए। इसके अलावा लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा तथा युवाओं को आगे आना चाहिए।
मेरी प्रिय पुस्तक
संकेत बिंदु-
• प्रिय पुस्तक
• प्रिय होने का कारण
• मर्मस्पर्शी कथ्य
• पथ-प्रदर्शक
अब तक मैंने कहानी, नाटक के अलावा कविताओं की अनेक पुस्तकें पढ़ी हैं, पर जिस पुस्तक ने मुझे सर्वाधिक आकर्षित किया, वह है-गोस्वामी तुलसीदास की अमरकृति रामचरित मानस। इस महाकवि ने रामचरित मानस की रचना चार सौ वर्ष से भी अधिक समय पूर्व की थी परंतु इस पुस्तक की प्रासंगिकता में कोई कमी नहीं आई है। वर्तमान परिस्थितियों में इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। इसमें पिता-पुत्र, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य, स्वामी-सेवक, भाई-भाई और मित्र आदि के संबंधों का सुंदर निरूपण करते हुए उन्हें कर्तव्यबोध भी कराती है। यह सब व्यावहारिक धरातल पर किया गया है।
इसमें भारतीय संस्कृति की मूल भावना ‘एकता’ और समन्वय का घनीभूत रूप है। इसका कथ्य भगवान राम की पावन जीवनगाथा है जो जनमानस को कदम-कदम पर प्रेरित करती है और कर्तव्यबोध एवं उत्तरदायित्व की भावना जगाती है। इसकी भाषा-शैली अत्यंत सहज-सरल है, जिसे आसानी से समझा जा सकता है। यह पुस्तक मानव को आजीवन सदाचार की राह दिखाती है।
मोबाइल फ़ोन की क्रांति
संकेत बिंदु-
• भूमिका
• बढ़ता उपयोग
• उपयोगिता
• दुरुपयोग
विज्ञान ने मनुष्य को नाना प्रकार के उपकरण दिए हैं, उनमें मोबाइल फ़ोन बहुत तेज़ी से लोकप्रिय हुआ है। इसने संचार की दुनिया में क्रांति ला दी है। शहर तो शहर गाँवों में इसका प्रयोग करते लोगों को देखा जा सकता है। उच्च अधिकारियों के साथ-साथ साधारण लोग इसका प्रयोग कर रहे हैं। बड़े उद्योगपति से रिक्शेवाले तक के पास मोबाइल फ़ोन मिल जाता है। युवा वर्ग में मोबाइल फ़ोन रखने का ज़बरदस्त क्रेज है। मोबाइल फ़ोन संचार का अद्भुत उपकरण है, जिसकी उपयोगिता निस्संदेह है। इसकी मदद से हम हर समय किसी व्यक्ति की पहुँच में बने रहते हैं। हम घर-दफ्तर से जुड़े रहते हैं। दफ्तर में रहकर भी अपने वृद्ध माता-पिता से जुड़े रहते हैं। उनकी आवश्यकताओं को जान सकते हैं। इससे व्यक्ति से सीधे बात हो जाने के कारण हम परिजनों, मित्रों की असमय मदद कर सकते हैं और मदद ले सकते हैं।
इसके अलावा यह हमारे मनोरंजन का साधन बन गया है, जिस पर संगीत सुनना, फ़िल्म देखना, यादगार पलों की फ़ोटो देखना, फ़ोटो खींचना, इंटरनेट का प्रयोग आदि कर सकते हैं। आज लोगों की शांति भंग करने में मोबाइल फ़ोन सबसे आगे है। असमय फ़ोन की घंटी बज जाने से हम परेशान हो उठते हैं, फिर भी मोबाइल फ़ोन के कारण आज क्रांति का आ चुकी है।
विज्ञापनों का प्रभाव
संकेत बिंदु
• विज्ञापनों का बोलबाला
• विज्ञापन के लाभ, हानियाँ
• विज्ञापनों का हमारी जेब पर प्रभाव
आज हम विज्ञापन की दुनिया में जी रहे हैं। हमारे चारों ओर इसका बोलबाला है। सड़क के किनारे लगे बोर्ड, बैनर घर की दीवारें, बस स्टेशन, रेलवे स्टेशन तथा सार्वजनिक जगहों पर वस्तुओं पर प्रचार-प्रसार करते हुए विज्ञापन दिखाई देते हैं। विज्ञापन क्रेता और विक्रेता दोनों के लिए लाभदायक होते हैं। इससे लोगों को वस्तुओं के गुण-दोष का ज्ञान होता है तथा विकल्प उपलब्ध हो जाते हैं। उत्पादकों को अपनी वस्तुएँ बेचने के लिए विस्तृत बाज़ार तथा इसे अच्छा लाभ कमाने का साधन मिल जाता है। इससे लोगों को रोज़गार का साधन मिल जाता है और वे अपनी आजीविका चलाते हैं।
विज्ञापन से हानियाँ भी हैं। इससे वस्तुओं की उत्पादन लागत बढ़ जाती है जिससे वे महँगी बिकती हैं। विज्ञापनों की लुभावनी भाषा में फँसकर मनुष्य आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ खरीदकर हानि उठाता है। विज्ञापन हमारे मनोमस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते हैं। हम उनके आकर्षण में आकर अपनी जेब की सीमा को लाँघ जाते हैं जिससे हमारा बजट प्रभावित होता है।
जीवनमूल्यों की बढ़ती आवश्यकता
संकेत बिंदु-
• जीवन मूल्यों का अर्थ
जीवन मूल्यों का अर्थ उन आदर्शों और मान्यताओं से है जिन्हें हमारे ऋषि-मुनियों ने जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए बनाया था। ये जीवन मूल्य ही हैं जो मनुष्य को मनुष्य बनाए रखते हैं अन्यथा मनुष्य तथा पशुओं में भेद करना मुश्किल हो जाएगा। किसी तरह छीन-झपटकर अपना पेट भरना, घूमने, सोने जैसे काम तो पशु भी कर लेते हैं, पर जीवन मूल्यों के कारण ही व्यक्ति अपने आगे की थाली किसी भूखे के आगे सरका देता है। कार्ल मार्क्स ने अपनी मेज़ की दराज़ में रखी ब्रेड को दूसरों को खिला दिया। लेनिन ने दूसरों के हक के लिए संघर्ष किया।
कर्ण और राजा हरिश्चंद की दानशीलता उनके जीवन मूल्यों के कारण ही थी। गांधी जी ने दूसरों को अधनंगा देखकर एक धोती से काम चलाया तो, राजा शिवि ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर का मांस काटकर बाज को दिया। दुर्भाग्य से पाश्चात्य सभ्यता के कारण लोग इन जीवन-मूल्यों की उपेक्षा करते हैं। त्याग, परोपकार, उदारता पर दुख कातरता इतिहास की बातें होती जा रही हैं, इससे व्यक्ति एवं समाज में असंतोष एवं तृष्णा बढ़ रही है।
दूरदर्शन की उपयोगिता
संकेत बिंदु-
• दूरदर्शन की आवश्यकता
• दूरदर्शन का महत्त्व
• शिक्षा और दूरदर्शन
• सांस्कृतिक प्रदूषण
जे.एल. बेयर्ड ने जब दूरदर्शन की खोज की थी तो यह बिलकुल भी नहीं सोचा था कि उनकी खोज एक दिन हर घर की आवश्यकता बन जाएगी। सचमुच आज दूरदर्शन हर परिवार, क्या हर व्यक्ति के लिए आवश्यक बनता जा रहा है। यह लोगों के थके-हारे मन एवं शरीर को मनोरंजन प्रदान कर नवीन उत्साह से भर देता है। दूरदर्शन केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि नित नई-नई जानकारियों का साधन भी है। इससे अपने देश की घटनाओं के अलावा विदेश की जानकारी भी प्राप्त की जाती है और घटनाओं को प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है।
वर्तमान में यह बच्चे, बूढ़े और युवाओं सभी का चेहता बन गया है। छात्रों के लिए एन.सी.ई.आर. टी. द्वारा शैक्षिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। इनमें विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान जैसे विषय मुख्य हैं। विद्यार्थियों को इन कार्यक्रमों का लाभ उठाना चाहिए। दूरदर्शन के अनेक कार्यक्रमों में फूहड़ता, अश्लीलता, हिंसा, मारकाट, लूट आदि के दृश्य होते हैं, जो युवा मन पर कुभाव डालते हैं। इससे सांस्कृतिक प्रदूषण में वृद्धि हुई है परंतु क्या देखना है, कितना देखना है, यह तो मनुष्य के ही हाथ में है।
समय का सदुपयोग
संकेत बिंदु-
• समय सदुपयोग का महत्त्व
• आलस्य का महान शत्रु
• विद्यार्थी जीवन में समय की महत्ता
• सफलता का रहस्य
समय निरंतर चलने वाली गतिशील शक्ति है। बुद्धिमान इसका महत्त्व समझकर सदुपयोग करते हैं जबकि अज्ञानी इसे व्यर्थ में गँवा देते हैं। समय का सदुपयोग करने वाले लोग ही समय पर अपना काम पूरा कर पाते हैं। जो समय की महत्ता समझता है, समय उसे महत्त्वपूर्ण बना देता है। परिश्रमी एवं कर्मशील व्यक्ति समय का एक-एक पल नियोजित कर सदुपयोग करते हैं। आलसी व्यक्ति आलस करते हुए समय गँवाते हैं और काम अपूर्ण रह जाने पर समय की कमी का रोना रोते हैं। उनका आलस्य उन्हें समय पर काम करने में अवरोध उत्पन्न करता है।
आलस्य व्यक्ति का महान शत्रु है। विद्यार्थी जीवन में समय के सदुपयोग की महत्ता और भी बढ़ जाती है। उसे प्रत्येक विषय के लिए समय नियोजन करना पड़ता है। इस काल में विद्यार्थी में जो आदतें पड़ जाती हैं वे आजीवन साथ रहती हैं। ऐसे समय के सदुपयोग की आदत और भी महत्त्वपूर्ण बन जाती है। संसार में जितने भी लोगों ने सफलता का शिखर छुआ, उसके पीछे समय का सदुपयोग करने का रहस्य छिपा था। गांधी, नेहरू, टैगोर, तिलक, नेपोलियन बोनापार्ट आदि की सफलता का मूलमंत्र समय का सदुपयोग ही था।
बच्चों के कंधों पर बढ़ता बोझ
संकेत बिंदु-
• प्रतियोगिता का दौर
• बच्चों पर प्रभाव
• स्वार्थी प्रवृत्ति
वर्तमान समय में प्रतियोगिता का दौर है। इस दौर में हर माता-पिता की यह इच्छा रहती है कि उसका बच्चा सबसे आगे निकल जाए। इसी सोच के कारण आज स्कूल जाने वाले बच्चों के कंधे पर बस्ते का बोझ बढ़ता जा रहा है। कमज़ोर शरीर वाले बच्चे तो अनुच्छेद लेखन अपना बस्ता भी नहीं उठा पाते हैं। जो उठा भी पाते हैं वे कमर झुकाए चल रहे हैं पर माता-पिता देखकर भी इसे अनदेखा कर रहे हैं। शिक्षाविद् तथा विद्वानों ने समय-समय पर सुझाव दिया है कि बस्ते का बोझ कम किया जाए, पर माता-पिता की सोच स्कूल तथा पब्लिशर की लालच के कारण उनके सुझाव कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं।
माता-पिता अपने बच्चे को अल्पकाल में सबसे होशियार बना देना चाहते हैं तो स्कूल के प्रधानाचार्य और प्रबंधक पुस्तकें बेचकर लाभ कमाना चाहते हैं। जब ज़्यादा पुस्तकें चाहिए तो प्रकाशक संस्थानों (Publishers) को काम मिलेगा और उन्हें भी दो का चार बनाने का मौका मिलेगा। अब इसी लोभ में बच्चे की कमर टूटे या वह बस्ता उठाए झुककर चले, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं रह जाता है। अब समय आ गया है कि बच्चों के बस्ते का बोझ अविलंब कम किया जाए।
अतिथि देवो भव
संकेत बिंदु-
• अतिथि भगवान का रूप
• अतिथि कौन
• पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
भारतीय संस्कृति की ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं जो इसे अन्य संस्कृतियों से विशिष्ट बनाती है। इनमें एक है अतिथि को देवता मानने की सोच। इस धारणा के कारण लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार अतिथि का स्वागत करते हैं और उसे संतुष्ट रखने का प्रयास करते हैं। अतिथि कौन होता है? अतिथि वह व्यक्ति होता है जिसके आने की कोई तिथि नहीं होती है। वह अचानक आ धमकता है, बिना किसी पूर्व सूचना के। इस स्थिति में जब हम अतिथि का भरपूर स्वागत सत्कार करते हैं तो अतिथि पर ही नहीं समाज पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भारतीय संस्कृति की परंपरानुसार अतिथि का स्वागत-सत्कार करना हर भारतीय का दायित्व बनता है। हमें इस परंपरा का निर्वाह करना ही चाहिए। आजकल टूटते परिवार, बढ़ती, महँगाई, समयाभाव काम-काज की अधिकता और भागमभाग की जिंदगी के बीच अतिथि का सत्कार करना मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव के कारण हम इसे भूलते जा रहे हैं। कुछ भी हो पर हमें अतिथि सत्कार की परंपरा को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
ट्रैफिक जाम की समस्या
संकेत बिंदु-
• ट्रैफिक जाम की वर्तमान स्थिति
• जाम से निपटने के उपाय
• ‘आड-इवेन’ योजना
दिल्ली को देश का दिल कहा जाता है। जो यहाँ आता है वह यहीं का होकर रह जाता है। इस कारण इस महानगर में सरकारी और व्यक्तिगत वाहनों की संख्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। इससे यहाँ हर चौराहे पर लगभग जाम की स्थिति देखने को मिलती है। सुबह-शाम के समय मुख्य मार्गों पर कई-कई किलोमीटर लंबी वाहनों की कतारें देखने को मिलती हैं। ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए सरकार और पुलिस द्वारा समय-समय पर कदम उठाए जाते हैं। दिल्ली में मेट्रो रेल की शुरुआत इसी दिशा में उठाया एक कदम था।
जाम से बचाने के लिए व्यस्त चौराहों पर फ़्लाई ओवर बनाए जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली सरकार ने ‘ऑड और इवेन’ योजना शुरू की थी। इससे शुरू में लोगों को परेशानी तो हुई, पर जाम की समस्या में कमी आई थी। इससे निपटने के लिए सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग, कार पूलिंग तथा व्यक्तिगत वाहनों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए।
प्रदूषण एक-समस्या अनेक
संकेत बिंदु-
• प्रदूषण क्या है?
• प्रदूषण के कारण
• प्रदूषण के परिणाम
• प्रदूषण रोकने में हमारी भूमिका
‘दूषण’ शब्द में ‘प्र’ उपसर्ग लगाने से प्रदूषण शब्द बना है, जिसका अर्थ है-हमारे वातावरण एवं अन्य संसाधनों का शुद्ध न रह पाना। आज विभिन्न कारणों से प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि यह जीवन के लिए घातक बन गया है। विज्ञान ने मनुष्य की सुविधाएँ बढ़ाई। इन सुविधाओं को बढ़ाने में मशीनीकरण का योगदान रहा है। इसके लिए वनों को काटा गया, जिससे वायुमंडल में जहरीली गैसें बढ़ती गईं। इन गैसों का पान करने वाले वृक्ष कम होते गए। इसके अलावा कल-कारखानों के अपशिष्ट एवं दूषित पानी के कारण जल स्रोत दूषित हुए। प्रदूषण के कारण वायु, जल, भूमि, सब पर बुरा असर हुआ है।
इस कारण मनुष्य और अन्य प्राणी तरह-तरह की बीमारियों से परेशान हो रहे हैं तथा असमय काल कवलित हो रहे हैं। प्रदूषण रोकने के लिए हमें अपने आसपास की खाली ज़मीन में खूब सारे पेड़ लगाने चाहिए। फैक्ट्रियों के दूषित पानी को जल स्रोतों में मिलाने से पूर्व शोधित करने का उपाय करना चाहिए। हमें यात्रा के सार्वजनिक साधनों का उपयोग करते हुए शोर-शराबे पर अंकुश लगा चाहिए।
महँगाई की समस्या या जान लेवा महँगाई
संकेत बिंदु-
• महँगाई का अर्थ
• महँगाई वृद्धि के कारण
• महँगाई का प्रभाव
दैनिक उपयोग की वस्तुओं के मूल्य का निरंतर बढ़ते जाना ही महँगाई है। महँगाई की यह वृद्धि आम आदमी की जेब पर भारी पड़ने लगती है। गरीब एवं मजदूर के लिए दो जून की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता है, किंतु महँगाई के कारण वस्तुओं के दाम बढ़ते जाते हैं। महँगाई के कारणों में जनसंख्या वृद्धि प्रमुख है। इस वृद्धि के कारण खाद्यान्न और वस्तुओं का उत्पादन जितना बढ़ाया जाता है उससे अधिक जनसंख्या बढ़ जाती है।
ऐसे में एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति में महँगाई बढ़ना तय हो जाती है। इसका फायदा कुछ बड़े व्यापारी, साहूकार आदि उठाते हैं। वे आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी शुरू करते हैं और उनका कृत्रिम अभाव दिखाते हैं। इधर लोग उन वस्तुओं के लिए परेशान होते हैं तो व्यापारी इन्हें ऊँचे दाम पर बेचते हैं। बढ़ती महँगाई के कारण लोगों में आक्रोश, छीना-झपटी की घटनाएँ, लूट-खसोट तथा अन्य अपराध बढ़ते हैं जिससे सामाजिक समरसता में कमी आती है। इससे लोग संघर्ष के लिए विवश हो जाते हैं।
पाश्चात्य सभ्यता की गिरफ्त में आते युवा
संकेत बिंदु-
• पाश्चात्य संस्कृति का अर्थ
• पाश्चात्य संस्कृति का आकर्षण
• मानवीय मूल्यों पर बुरा असर
पाश्चात्य संस्कृति को पश्चिमी देशों की संस्कृति भी कहा जाता है। अर्थात् पश्चिमी देशों के रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार, आधुनिक जीवन शैली आदि का मिला-जुला नाम पाश्चात्य संस्कृति है। पश्चात्य संस्कृति से युवा वर्ग सम्मोहित हो गया है। वह पाश्चात्य संस्कृति को ललचाई नज़रों से देख रहा है। वह अपना सोच-विचार रहन-सहन, आचार-विचार आदि पश्चिमी देशों जैसा करता जा रहा है। युवाओं के लिए धोती-कुरता या कुरता-पजामा पिछड़ी पोशाकों का प्रतीक है। वे जींस और टी-शर्ट पहनने लगे हैं। ‘प्रणाम’ और ‘चरण-स्पर्श’ की जगह हाय हैलो लेता जा रहा है।
भारतीय पकवानों की जगह बर्गर, पीज्जा, चाउमीन, नूडलस, समोसा, मोमोज़, पेटीज आदि रुचिकर लगते हैं। पाश्चात्य संस्कृति का सबसे बुरा असर हमारे जीवन मूल्यों पर पड़ रहा है। त्याग, प्रेम, सद्भाव, भाईचारा, उदारता परोपकार आदि की जगह स्वार्थपरता, आत्मकेंद्रितता और संवेदनहीनता लेती जा रही है। समाज के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।
पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र
संकेत बिंदु-
• पुस्तकों का महत्त्व
• ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार
• सच्चा मनुष्य बनने में सहायक
मनुष्य ज्ञान पिपासु एवं जिज्ञासु प्राणी है। उसकी ज्ञान पियासा और जिज्ञासा को शांत करने का सर्वोत्तम साधन पुस्तकें हैं। पुस्तकों में विविध प्रकार का ज्ञान भरा होता है जिससे मनुष्य अच्छा इनसान बनता है तथा उन्नति करता है। इस प्रकार पुस्तकों का बहुत महत्त्व है। पुस्तकें दुविधाग्रस्त व्यक्ति का मार्गदर्शन करती हैं। इससे दुविधाओं से मुक्ति मिलती है। पुस्तकें ज्ञान एवं मनोरंजन का भंडार होती हैं। इनसे व्यक्ति ज्ञानवान बनता है। जब वह कामकाज से थक जाता है तो पुस्तकों से अपना मनोरंजन करता है और थकानमुक्त महसूस करता है। पुस्तकें हमारे सच्चे विवेकशील मित्र की तरह होती हैं। वे हमें सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, ज्ञान-अज्ञान तथा न्याय-अन्याय में अंतर करना सिखाती हैं।
पुस्तकें मानसिक शांति प्रदान करती हैं तथा कर्म का संदेश देती हैं। रामचरितमानस, महाभारत श्रीमद् भागवत गीता, कामायनी, निर्मला, साकेत आदि ऐसी ही पुस्तकें हैं। पुस्तकें हमें धर्म की ओर मोड़कर नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं। हमें पुस्तकें पढ़कर फेंकने के बजाय किसी व्यक्ति या पुस्तकालय को दे देनी चाहिए।
जीवन में त्योहारों का महत्त्व
संकेत बिंदु-
• त्योहारों की आवश्यकता
• त्योहारों के प्रकार
• त्योहारों से प्राप्त संदेश
भारत त्योहारों का देश है। यहाँ के निवासी त्योहार मनाने का कोई न कोई बहाना ढूँढ लेते हैं और हर्षोल्लास से मिल-जुलकर त्योहार मनाते हैं। त्योहार मनुष्य को घिसी-पिटी जिंदगी से छुटकारा दिलाते हैं। ये त्योहार मानव के नीरस एवं शुष्क जीवन को सरसता से भर देते हैं। हमारे देश में ऋतु-महीने, फ़सल की कटाई, धर्म-समुदाय आदि से जुड़े त्योहार मनाए जाते हैं। रक्षाबंधन, दशहरा दीपावली, गुडफ्राइडे, पोंगल, ओणम, लोहड़ी, होली, वसंत पंचमी, ईद, बैसाखी आदि कुछ ऐसे ही त्योहार हैं।
इनके अलावा यहाँ कुछ राष्ट्रीय पर्व भी मनाए जाते हैं। इन पर्वो को बिनी किसी भेदभाव के सारा राष्ट्र मिल-जुलकर मनाता है। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त), गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) तथा गांधी जयंती (02 अक्टूबर) ऐसे ही पर्व हैं। ये पर्व हमें एकता, अखंडता बनाए रखते हुए मिल-जुलकर रहने का संदेश देते हैं। इनसे हमारे मन से राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना प्रगाढ़ होती है। हमें भी हर्षोल्लास से पर्व-त्योहार मनाने चाहिए।
औद्योगीकरण का पर्यावरण पर प्रभाव
संकेत बिंदु-
• औद्योगीकरण एक आवश्यकता
• वनों को क्षति
• पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि
हमारा देश विकासशील राष्ट्र है। विकास के पथ पर बढ़ते हुए यहाँ अनेक औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की गईं। स्वतंत्रता के बाद औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इससे हमारे देश में ही सुई से हवाई जहाज़ तक का निर्माण किया जाने लगा। इससे एक ओर लोगों को रोजगार मिला तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई। इसके लिए पर्याप्त भूमि की आवश्यकता हुई जिसकी पूर्ति के लिए वनों को काटा गया। इतना ही नहीं इन इकाइयों तक पहुँचने के लिए और इनमें बना माल लाने ले जाने के लिए सड़कें बनाईं गई जिससे हरे-भरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की गई।
इसके अलावा इन औद्योगिक इकाइयों से निकले धुएँ से हवा में प्रदूषक तत्व मिले जिससे हवा जहरीली होती है। इनसे निकला अपशिष्ट पदार्थ और दूषित जल ने आस-पास के जल स्रोतों को प्रदूषित किया। इससे पानी ही नहीं मृदा प्रदूषण भी बढ़ा। इन इकाइयों में लगे उच्च क्षमता के मोटरों ने ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा दिया। औद्योगीकरण एक आवश्यकता है परंतु पर्यावरण का ध्यान रखकर इनकी स्थापना की जानी चाहिए।
संतोष-सबसे बड़ा धन
संकेत बिंदु-
• भौतिकवाद का असर
मनुष्य की प्रवृत्ति ही है कि वह अधिक से अधिक सुख-सुविधाएँ पा लेना चाहता है। वह दूसरों के हिस्से की सुविधाएँ अपना बनाता जा रहा है। भौतिकवाद ने उसकी तृष्णा और भी बढ़ा दिया है। इससे व्यथित होकर वह सुख के पीछे भागता जा रहा है। वह मृगतृष्णा का शिकार हो रहा है। इसके बाद भी वह सुखी नहीं है, क्योंकि मनुष्य के मन में संतोष नामकी चीज़ ही नहीं बची है। कहा भी गया है- ‘गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धन खान। जब आए संतोष धन सब धन धूरि समान।। अर्थात् संतोष रूपी धन के सामने सभी धन तुच्छ हैं। जो व्यक्ति संतोषी होता है वही सच्चा सुख पाता है।
धन का लालच व्यक्ति को चैन से बैठने नहीं देता है। लालच के कारण व्यक्ति भूखे पशु की भाँति यहाँ-वहाँ घूमता है। इसके विपरीत यदि व्यक्ति के मन में संतोष की भावना आ गई तो वह प्रसन्नता की अनुभूति करता है। वह उतने ही पैसों की आवश्यकता महसूस करता है जितना कि उसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज़रूरी होती है। ऐसे ही लोग कहते हैं-‘साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।
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