NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar निबंध लेखन
Textbook | NCERT |
Class | Class 9th |
Subject | Hindi |
Chapter | हिन्दी व्याकरण (Grammar) |
Grammar Name | निबंध लेखन |
Category | Class 9th Hindi हिन्दी व्याकरण वा प्रश्न अभ्यास |
Medium | Hindi |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar निबंध लेखन निबंध में सबसे पहले क्या लिखा जाता है? हिंदी में निबंध कौन कौन से आते हैं? निबंध में प्रस्तावना में क्या लिखते हैं? निबंध का उपसंहार कैसे लिखा जाता है? प्रस्तावना कैसे शुरू करें? प्रस्तावना के पहले कुछ शब्द क्या हैं? प्रस्तावना का मुख्य क्या है? प्रस्तावना में क्या क्या लिखा जाता है? प्रस्तावना किसे कहते हैं? प्रस्तावना कैसे डालते हैं? प्रस्तावना की भाषा कौन सी है? प्रस्तावना की भाषा क्या है? प्रस्तावना का जनक कौन है? प्रस्तावना में कौन से 3 शब्द जोड़े गए हैं? प्रस्तावना में कौन से तीन शब्द जोड़े गए हैं? प्रस्तावना के अध्यक्ष कौन है? प्रस्तावना कहाँ से लिया गया? प्रस्तावना का जनक कौन है? आदि के बारे में पढ़ेंगे और जानने के साथ हम NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar निबंध लेखन व्याकरण करेंगे। |
NCERT Solutions Class 9th Hindi Grammar निबंध लेखन
हिन्दी व्याकरण
निबंध लेखन
संकेत बिंदु-
• भूमिका
• स्वच्छता अभियान की आवश्यकता
• स्वच्छ भारत अभियान
• अभियान की शुरुआत
• उपसंहार
भूमिका – स्वच्छता और स्वास्थ्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यह बात हमारे ऋषि-मुनि भी भलीभाँति जानते थे। वे अपने आसपास साफ़-सफ़ाई रखकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास करते थे कि अन्य लोग भी अपने आसपास स्वच्छता बनाए रखें और स्वस्थ रहें। यह देखा गया है कि जहाँ लोग स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, वे बीमारियों से बचे रहते हैं।
स्वच्छता अभियान की आवश्यकता – बढ़ती जनसंख्या, व्यस्त दिनचर्या औ स्वच्छता के प्रति विचारों में आई उदासीनता के कारण पर्यावरण में गंदगी बढ़ती गई। साफ़-सफ़ाई का काम लोगों को निम्न स्तर का काम नज़र आने लगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी नहीं ऐसी सोच के कारण गंदगी बढ़ती गई। हर छोटी-बड़ी वस्तुओं को प्लास्टिक की थैलियों में पैक किया जाना तथा वस्तुओं के प्रयोग के उपरांत प्लास्टिक या खाली डिब्बों तथा उनके पैकेटों को इधर-उधर फेंकने से उत्पन्न कूड़ा-करकट तथा गंदगी, तथा लोगों की सोच में बदलाव के कारण इस अभियान की विशेष आवश्यकता महसूस की जाने लगी।
स्वच्छ भारत अभियान – स्वच्छता को बढ़ावा देने तथा इसके प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए समय-समय पर संदेश प्रसारित किए जाते हैं तथा अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसी दिशा में 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ अभियान का आरंभ किया गया। इसे 2019 तक चलाया जाएगा जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक सौ पचासवीं जयंती होगी। इस अवसर पर अर्थात् 02 अक्टूबर, 2014 को प्रधानमंत्री ने देशवासियों को शपथ दिलाते हुए कहा, “मैं स्वच्छता के प्रति कटिबद्ध रहूँगा और इसके लिए समय दूंगा। मैं न तो गंदगी फैलाऊँगा और न दूसरों को फैलाने दूंगा।” हमारे राष्ट्रपिता ने साफ़-सुथरे और विकसित भारत का जो सपना देखा था, उसी को साकार करने के लिए इस अभियान का शुभारंभ किया गया।
अभियान की शुरुआत – 2 अक्टूबर, 2014 को हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने खुद झाड़ लेकर इस अभियान की शुरुआत की। इस अभियान से विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सांसदों, विधायकों, जानी-मानी हस्तियों, प्रधानाचार्य, अध्यापक, छात्र समेत लाखों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। इस अभियान पर लगभग करोड़ों रुपये खर्च करने का बजट भी रखा गया। प्रधानमंत्री ने इस अभियान को राजनीति प्रेरित न कहकर देशभक्ति से प्रेरित बताया। उन्होंने राजपथ पर आयोजित एक समारोह में लोगों को शपथ दिलाई। उन्होंने सफाई कर्मियों की कॉलोनी बाल्मीकि कॉलोनी में झाडू लगाई। इसी दिन तात्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल के उसी स्कूल में झाडू लगाई, जहाँ उन्होंने पढ़ाई की थी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक भारतीय को वर्ष में एक सौ घंटे सफ़ाई को अवश्य देना चाहिए।
उपसंहार – देश को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की सख्त आवश्यकता थी और रहेगी। इसे महसूस करते हुए हमारे देश की अनेक हस्तियों ने इससे स्वयं को जोड़ लिया। ये हस्तियाँ हैं- सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबानी, कमल हसन, प्रियंका चोपड़ा, मृदुलासिन्हा, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की टीम तथा अन्य हस्तियाँ। हमारे राष्ट्रपिता का कहना था कि जहाँ सफ़ाई होती है, वहाँ ईश्वर का वास होता है। इस बात को ध्यान में रखकर हम प्रत्येक भारतीय को इस अभियान से जुड़ जाना चाहिए ताकि हमारा भारत ‘स्वच्छ भारत ही नहीं स्वस्थ भारत’ भी बन सके।
2. भारत का मंगल अभियान
संकेत-बिंदु-
• भूमिका
• मंगल अभियान-एक सफलता
• मंगलयान का सफ़र
• दुनिया का सबसे सस्ता मिशन
• भारत की मज़बूत वैश्विक स्थिति
• मंगलग्रह की पहली तसवीर
• उपसंहार
भूमिका – यदि आज हमारे पूर्वज स्वर्ग से झाँककर पृथ्वी को देखें तो शायद ही उस पृथ्वी को पहचान पाएँगे जिसे वे सौ-दो सौ साल पहले छोड़ गए थे। इसका सीधा-सा कारण है विज्ञान के बढ़ते चरण के कारण लगभग हर जगह आया बदलाव। अब तो यह बदलाव धरती की सीमा लाँघकर अन्य ग्रह तक जा पहुँचा है। भारत का मंगल अभियान इसका ताज़ा और प्रत्यक्ष उदाहरण है।
मंगल अभियान-एक सफलता – भारत ने 24 सितंबर, 2014 को मंगलयान को मंगलग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर एक नया इतिहास रच दिया। भारत ने यह उपलब्धि अपने प्रथम प्रयास में ही अर्जित कर ली। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि भारत ऐसा करने वाला पहला देश है। अमेरिका रूस और यूरोपीय संघ जैसी शक्तियों को यह सफलता पाने में कई प्रयास करने पड़े। इतना ही नहीं चीन और जापान को अब तक यह सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। मंगलयान भेजने वाले तीन सफल देशों के महत्त्वपूर्ण देशों के क्लब में चौथा देश बन गया है।
मंगलयान का सफर – इस मिशन को मॉम (ए.ओ.एम.) अर्थात् ‘मार्श ऑर्बिटर मिशन’ के नाम से जाना जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी की मौजूदगी में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों द्वारा मुख्य एल.ए.एम. तथा आठ छोटे थ्रस्टर्स को प्रज्ज्वलित किया गया। इसे मंगल अर्थात् लालग्रह की कक्षा में पहुँचने में तक लगभग एक साल का समय लगा। इस मिशन की सफलता के संबंध में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘एम.ओ.एम.’ हमें निराश नहीं करेगा।
दुनिया का सबसे सस्ता मिशन – मंगलयान अभियान को दुनिया को सबसे सस्ते मिशनों में गिना जाता है। इस मिशन पर मात्र 450 करोड़ रुपये मात्र का खर्च आया। इस यान का कुल वजन 1350 किग्रा था। इस यान ने अभियान की शुरुआत से 66.6 करोड़ किलोमीअर की दूरी तय करके अपने नियत स्थान पर पहुँचा तो भारतीय वैज्ञानिक खुशी से झूम उठे और एक-दूसरे को बधाई देने लगे। बधाई देने के क्रम में हमारे राजनेता भी पीछे नहीं रहे।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अन्य नेताओं ने इस मिशन को सफल बनाने के लिए अथक और निरंतर परिश्रम करने वाले वैज्ञानिकों को ही बधाई नहीं दी उससे जुड़े हर व्यक्ति को बधाई दी। नासा द्वारा भेजा गया मंगलयान मैवेन 22 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में प्रवष्टि हुआ था। इसकी अपेक्षा भारत द्वारा भेजे गए मंगलयान का खर्च मैवेन पर आए खर्च का दसवाँ हिस्सा था।
भारत की मज़बूत वैश्विक स्थिति – मंगलनायक लालग्रह की सतह एवं उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करने भेजे गए इस यान से पहले भी विभिन्न देशों द्वारा 51 मिशनों दवारा प्रयास किया गया था। इनमें मात्र 21 मिशन ही सफल रहे। असफलता की इस दर को देखते हुए ‘मॉम’ की सफलता उल्लेखनीय है। इससे अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हो गई। ऐसी अद्भुत सफलता का स्वाद चखने वाला भारत पहला एशियाई देश है।
मंगलग्रह की पहली तसवीर – भारत ने जिस मंगलयान को 24 सितंबर, 2014 को उसकी कक्षा में स्थापित किया था, उसने उससे अगले दिन ही मंगल ग्रह की पहली तसवीर भेजीं। दूसरो ने यह लिखकर तसवीर सार्वजनिक की कि ‘बहुत खूब है यहाँ का नज़ारा’। वहीं से भेजी एक तसवीर में मंगल ग्रह की सतह को नारंगी रंग का दिखाया गया है जिस पर गहरे धब्बे हैं।
भारत का मंगल अभियान विज्ञान की दुनिया की अदभुत उपलब्धि है। इस अभियान से ज्ञारत ने विश्व को दिखा दिया कि वह अंतरिक्ष मिशन की दुनिया में पीछे नहीं रहा। मंगलान लालग्रह के बारे में जिस तरह नई-नई जानकारियाँ दे रहा है उसी तरह भारत को अन्य अभियानों में भी सफलता मिलेगी ऐसी आशा है।
3. प्रदूषण के कारण और निवारण अथवा प्रदूषण की समस्या
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• हमारा जीवन और पर्यावरण
• पर्यावरण प्रदूषण के कारण
• प्रदूषण के प्रकार और परिणाम
• प्रदूषण रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – मानव और प्रकृति का साथ अनादिकाल से रहा है। वह अपनी आवश्यकताओं यहाँ तक कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है। मानव ने ज्यों-ज्यों स यता की ओर कदम बढ़ाए, त्यों-त्यों उसकी ज़रुरतें बढ़ती गईं। इन आवश्यकतों को पूरी करने के लिए उसने प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ शुरु कर दी, जिसका दुष्परिणाम प्रदूषण के रूप में सामने आया। आज प्रदूषण किसी स्थान विशेष की समस्या न होकर वैश्विक समस्या बन गई है।
हमारा जीवन और पर्यावरण – मानव जीवन और पर्यावरण का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। जीवधारियों का जीवन उसके पर्यावरण पर निर्भर रहता है। जीव अपने पर्यावरण में जन्म लेता है, पलता-बढ़ता है और शक्ति, सामर्थ्य एवं अन्य विशेषताएँ अर्जित करता है। इसी तरह पर्यावरण की स्वच्छता या अस्वच्छता उसमें रहने वाले जीवधारियों पर निर्भर करती है। अत: जीवन और पर्यावरण का सहअस्तित्व अत्यावश्यक है।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण – पर्यावरण प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारण है-प्राकृतिक संतुलन का तेज़ी से बिगड़ते जाना। इसके मूल में है-मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियाँ। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अविवेकपूर्ण दोहन और दुरुपयोग करने लगा है। इससे सारा प्राकृतिक-तंत्र गड़बड़ हो गया। इससे वैश्विक ऊष्मीकरण का खतरा बढ़ गया है। अब तो प्रदूषण का हाल यह है कि शहरों में सरदी की ऋतु इतनी छोटी होती जा रही है कि यह कब आई, कब गई इसका पता ही नहीं चलता है।
प्रदूषण के प्रकार और परिणाम – हमारे पर्यावरण को बनाने में धरती, आकाश, वायु जल-पेड़-पौधों आदि का योगदान होता है। आज इनमें से लगभग हर एक प्रदूषण का शिकार बन चुका है। पर्यावरण के इन अंगों के आधार पर प्रदूषण के विभिन्न प्रकार माने जाते हैं, जैसे- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि।
1. वायु प्रदूषण- जिस प्राणवायु के बिना जीवधारी कुछ मिनट भी जीवित नहीं रह सकते, वही सर्वाधिक विषैली एवं प्रदूषित हो चुकी थी। इसका कारण वैज्ञानिक आविष्कार एवं बढ़ता औद्योगीकरण है। इसके अलावा धुआँ उगलते अनगिनत वाहनों में निकलने वाला जहरीला धुआँ भी वायु को विषैला बना रहा है। उसी वायु में साँस लेने से स्वाँसनली एवं फेफड़ों से संबंधित अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं जो व्यक्ति को असमय मौत के मुंह में ढकेल देती हैं।
2. जल प्रदूषण- औद्योगिक इकाइयों एवं कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायन वाले पानी जब नदी-झीलों एवं विभिन्न जल स्रोतों में मिलते हैं तो निर्मल जल जहरीला एवं प्रदूषित हो जाता है। इसे बढ़ाने में घरों एवं नालों का गंदा पानी भी एक कारक है। इसके अलावा नदियों एवं जल स्रोतों के पास स्नान करना, कपड़े धोना, जानवरों को नहलाना, फूल-मालाएँ एवं मूर्तियाँ विसर्जित करने से जल प्रदूषित होता है, जिससे पेट संबंधी बीमारियाँ होती हैं।
3. ध्वनि प्रदूषण- सड़क पर दौड़ती गाड़ियों के हार्न की आवाजें आकाश में उड़ते विमान का शोर एवं कारखानों में मोटरों की खटपट के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। ध्वनि प्रदूषण के कारण ऊँचा सुनने, उच्च रक्तचाप तथा हृदय संबंधी बीमारियाँ बढ़ी हैं।
4. मृदा प्रदूषण- खेतों में उर्वरक एवं रसायनों का प्रयोग, फसलों में कीटनाशकों के प्रयोग, औद्योगिक कचरे तथा प्लास्टिक की __ थैलियाँ जैसे हानिकारक पदार्थों के ज़मीन में मिल जाने के कारण भूमि या मृदा प्रदूषण बढ़ रहा है। इस कारण ज़मीन की उर्वराशक्ति निरंतर घटती जा रही है।
प्रदूषण रोकने के उपाय – प्रदूषण रोकने के लिए सबसे पहले पेड़ों को कटने से बचाना चाहिए तथा अधिकाधिक पेड़ लगाने चाहिए। कल-कारखानों की चिमनियों को इतना ऊँचा उठाया जाना चाहिए कि इनकी दूषित हवा ऊपर निकल जाए। इनके कचरे को जल स्रोतों में मिलने से रोकने का भरपूर प्रबंध किया जाना चाहिए। घर के अपशिष्ट पदार्थों तथा पेड़ों की सूखी पत्तियों का उपयोग खाद बनाने में किया जाना चाहिए।
उपसंहार – प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी एवं जानलेवा समस्या है। इसे रोकने के लिए व्यक्तिगत प्रयास के अलावा सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। आइए इसे रोकने के लिए हम सब भी अपना योगदान दें।
4. भ्रष्टाचार-एक गंभीर समस्या अथवा भ्रष्टाचार-कारण और निवारण
संकेत-बिंदु-
• भूमिका
• भ्रष्टाचार का अर्थ
• भ्रष्टाचार के कारण
• भ्रष्टाचार के परिणाम
• भ्रष्टाचार रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – उपभोक्तावाद के इस दौर में मनुष्य हर तरह की सुख-सुविधा का उपभोग कर लेना चाहता है। इस मामले में वह समाज में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है। यही चाहत और दिखावे की प्रवृत्ति के कारण वह सुख पाने के हर तौर-तरीके अपनाने लगता है। इससे उसका नैतिक ह्रास होता है। इसी नैतिक हास के कारण व्यक्ति भ्रष्टाचार करने लगता है।
भ्रष्टाचार का अर्थ – भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है, जिसका अर्थ है-निकृष्ट श्रेणी का आचरण। भ्रष्टाचार के वश में आकर व्यक्ति नैतिकता का त्याग कर बैठता है और समाज एवं देश के हित का परित्याग कर अपनी जेबें भरने पर उतर आता है। जब व्यक्ति को जेबें भरने में खतरा नज़र आता है तो वह विभिन्न तरीकों से अपना स्वार्थ साधने लगता है। वह भाई-भतीजावाद तथा पक्षपात का रास्ता अपनाकर दूसरों का अहित करने लगता है।
भ्रष्टाचार के कारण – समाज में भ्रष्टाचार फैलने के अनेक कारण हैं। इनमें सबसे मुख्य कारण मानव का स्वभाव लालची होते जाना है। लालच के कारण उसका व्यवहार अर्थप्रधान हो गया है। वह हर काम में लाभ लेने का प्रयास करता है। इसके लिए वह पद और शक्ति का दुरुपयोग करने लगता है। कार्यालयों का वातावरण भ्रष्टाचार के कारण इतना दूषित हो गया है कि बाबुओं की बिना जेबें गरम किए काम करवाने की बात बेईमानी लगने लगती है। ऐसे में भ्रष्टाचार का बढ़ना स्वाभाविक ही है।
भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण बढ़ती जनसंख्या है, जिसके कारण सुविधाओं की कमी होती जा रही हैं। नौकरियों और सेवा के अवसरों की संख्या कम होती जाती है। दूसरी ओर इन्हें चाहने वालों की निरंतर बढ़ती कतार लंबी होती जा रही है। इसी बात का अनुचित फायदा नियोक्ता और बिचौलिए उठाने लगते हैं। पद के हिसाब से चढ़ावा माँगा जाने लगता है। इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है। भ्रष्टाचार का अन्य प्रमुख कारण मनुष्य में बढ़ती धनसंचय की प्रवृत्ति है।
वह निन्यानबे के फेर में पड़कर त्याग, परोपकार, उदारता बंधुत्व जैसे मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करने लगता है और अपने ही भाइयों की जेबें काटने का काम करने लगता है। वह चाहता है कि उसे पैसा मिले, चाहे जैसे भी। भ्रष्टाचार का एक कारण हमारे कुछ माननीयों का नैतिक पतन भी है। वे भ्रष्टाचार से अरबोंखरबों की संपत्ति जोड़ लेते हैं। कानून भी ऐसे लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ पाता हैं। ऐसे लोग बेईमान तथा नवभ्रष्ट लोगों के लिए नमूना बन जाते हैं।
भ्रष्टाचार के परिणाम – भ्रष्टाचार से समाज में अशांति, लोभ तथा नैतिक पतन को बढ़ावा मिलता है। मनुष्य देखता है कि उसके समाज और कभी उसी का समकक्ष हैसियत वाला व्यक्ति आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया तो वह अशांत हो उठता है। उसके मन में लोभ जागता है। इससे समाज में एक ऐसा वातावरण पैदा होता है जिससे बगावत की बू आने लगती है। इससे सामाजिक समरसता घटती जाती है। व्यक्ति नैतिक-अनैतिक आचरण का भेद करना भूलने लगता है।
भ्रष्टाचार रोकने के उपाय – भ्रष्टाचार रोकने के लिए जहाँ सरकारी उपाय आवश्यक है, वहीं लोगों में नैतिक मूल्यों के उत्थान की भी आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्टाचारियों को कड़ी सज़ा दे, किंतु इसके लिए वह सत्ता पक्ष के भ्रष्टाचारियों की अनदेखी न करे तथा वह बदला लेने की नीयत को भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठाया कदम न बताए। इनके अलावा लोगों को अपने पद, सत्ता एवं शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
उपसंहार- आज भ्रष्टाचार समाज का नासूर बनता जा रहा है। इसे समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि हमारे नेतागण आदर्श आचरण करके समाज को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने का उदाहरण प्रस्तुत करें। लोग अपनी नैतिकता बनाए रखें, तभी इस नासूर का इलाज संभव है।
5. प्रगति के पथ पर बढ़ता भारत
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति
• चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति
• रेलवे क्षेत्र में प्रगति
• अंतरिक्ष कार्यक्रम में प्रगति
• फ़िल्म क्षेत्र में प्रगति
• उपसंहार
भूमिका – परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस परिवर्तन से हमारा देश भी अछूता नहीं है। इसी परिवर्तन के कारण भारत प्रगति के पथ पर सतत् बढ़ता जा रहा है। भारत ने जब आजादी प्राप्त की थी, उस समय के स्वतंत्र भारत और आज के स्वतंत्र भारत की स्थिति में बहुत बदलाव आया है। भारत की यह उन्नति लगभग हर क्षेत्र में देखी जा सकती है।
शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति – भारत ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है। यह प्रगति हम स्वतंत्रता के तुरंत बाद की साक्षरता दर और आज की साक्षरता दर में अंतर को देखकर जान सकते हैं। उच्च शिक्षा में प्रगति के लिए सरकार ने प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक व उच्च शिक्षा हेतु नए विद्यालय तथा विश्वविद्यालय खोले। उसने इन विद्यालयों में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की। उसने अनेक तकनीकी शिक्षण संस्थान खोले। इसके लिए छात्रवृत्ति एवं अन्य सुविधाएँ देकर छात्रों को विद्यालय की ओर लाने का प्रयास किया।
चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति – भारत ने चिकित्सा की दुनिया में अभूतपूर्व प्रगति की है। इसे मृत्युदर में आई कमी के आँकड़े देखकर जाना जा सकता है। इसके लिए सरकार ने आधुनिक सुविधाओं वाले अनेक अस्पताल खोले जहाँ आधुनिक मशीनें और आपरेशन की व्यवस्था की। इन अस्पतालों में योग्य डाक्टरों की नियुक्ति की। सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों और बच्चों के इलाज हेतु प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक केंद्रों की स्थापना के अलावा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की है। दिल्ली सरकार ने इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मोहल्ला क्लिनिकों की स्थापना करके अनूठा कार्य किया है।
रेलवे क्षेत्र में प्रगति – अंग्रेजों ने 1853 में मुंबई से थाणे के बीच जिस रेल सेवा की शुरुआत की थी आज वह बहुत ही उन्नत अवस्था में पहुंच चुकी है। आज देश में पचास हज़ार किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी पटरियाँ बिछाई जा चुकी हैं। व्यस्त मार्गों पर इनके दोहरीकरण का काम किया जा रहा है। हज़ारों नए रेलवे स्टेशन बनाए जा चुके हैं। आज इन रेलों से प्रतिदिन लाखों यात्री यात्रा कर रहे हैं। रेल यात्रा को सुखद और मंगलमय बनाने का अनवरत प्रयास किया जा रहा है। अब तो देश के कई शहरों में मेट्रो रेल सेवा का विस्तार हो चुका है। देश में बुलेट ट्रेन चलाए जाने की योजना है।
अंतरिक्ष कार्यक्रम में प्रगति – आजादी से पहले देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की कल्पना करना भी अविश्वसनीय था। आज लगभग तीन दशक के समय में ही भारत ने इस क्षेत्र में अविश्वसनीय प्रगति की है। अब तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने एक दर्जन से अधिक आधुनिक उपग्रहों का निर्माण किया है। इसकी शुरुआत 1975 में प्रसिद्ध भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के नाम वाले उपग्रह से हुई। ये उपग्रह मौसम की जानकारी, संचार, प्राकृतिक संसाधनों के नक्शे तैयार करने के उद्देश्य से छोड़े गए थे। आज दूरसंचार और टेलीविजन के कार्यक्रमों का प्रसारण इनसेट के माध्यम से किया जा रहा है। मंगल ग्रह की कक्षा में 24 सितंबर 2014 को भेजा गया मंगलयान विशेष उल्लेखनीय है।
फ़िल्म क्षेत्र में प्रगति – भारत में स्वतंत्रता के पूर्व से ही फ़िल्में बनाई जा रही है पर स्वतंत्रता के बाद भारत ने इस क्षेत्र में खूब तरक्की की है। यह प्रतिवर्ष सैकड़ों फ़िल्में बनती है जो भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। उपसंहार-भारत ने प्रगति की जिन ऊँचाइयों को छुआ, उससे भारत विश्व में एक नई शक्ति के रूप में उभरा है। विदशों में भारत का मान-सम्मान बढ़ा है, जिससे हम भारतीयों को गर्वानुभूति होती है। भारत इसी तरह प्रगति के पथ पर बढ़ता रहे, हम यही कामना करते हैं।
6. व्यायाम का महत्त्व अथवा व्यायाम एक-लाभ अनेक
संकेत बिंदु –
• भूमिका
• पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक
• व्यायाम के लाभ
• व्यायाम का उचित समय
• ध्यान रखने योग्य बातें
• उपसंहार
भूमिका – गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ‘बड़े भाग मानुष तन पावा’ अर्थात् मानव शरीर बड़ी किस्मत से मिलता है। इस शरीर से सुख-सुविधाओं का आनंद उठाने के लिए इसका स्वस्थ एवं नीरोग होना अत्यावश्यक है। यूँ तो स्वस्थ शरीर पाने के कई तरीके हो सकते हैं पर व्यायाम उनमें सर्वोत्तम है।
पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए आवश्यक – मानव जीवन के चार पुरुषार्थ माने जाते हैं। ये हैं-धर्म अर्थ, काम और मोक्ष। इन्हें पाने का साधन है- स्वास्थ्य। अर्थात् यदि मनुष्य का जीवन नीरोग है तभी इन पुरुषार्थों के माध्यम से जीवन को सफल बनाया जा सकता है। रोगी और अस्वस्थ व्यक्ति न तो धर्मचिंतन कर सकता है और न उद्यम करके धनोपार्जन कर सकता है, न वह काम की प्राप्ति कर सकता है और न मोक्ष की प्राप्ति। अतः उत्तम स्वास्थ्य की ज़रूरत निस्संदेह है और उत्तम स्वास्थ्य पाने का सर्वोत्तम साधन हैव्यायाम। वास्तव में व्यायाम स्वास्थ्य का मूलमंत्र है।
व्यायाम के लाभ – उत्तम स्वास्थ्य के लिए संतुलित पौष्टिक भोजन शुद्ध जलवायु, संयमित जीवन, स्वच्छता आदि आवश्यक है, परंतु इनमें सर्वोपरि है-व्यायाम। व्यायाम के अभाव में पौष्टिक भोजन पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाता है।
व्यायाम में चिरयौवन पाने का राज छिपा है। जो व्यक्ति नियमित व्यायाम करता है, बुढ़ापा उसके निकट नहीं आता है। इससे उसका शरीर ऊर्जावान बना रहता है और लंबे समय तक चेहरे या शरीर पर झुर्रियाँ नहीं पड़ती हैं। व्यायाम हमारे शरीर की पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है। सही ढंग से पचा भोजन ही रक्त, मज्जा, माँस आदि में परिवर्तित हो पाता है। व्यायाम हमारे शरीर कर रक्त संचार भी ठीक रखता है। इससे शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं मानसिक स्वास्थ्य भी उत्तम बनता है। इसके अलावा शरीर सुगठित, फुरतीला, लचीला और सुंदर बनता है।
व्यायाम का उचित समय – व्यायाम करने का सर्वोत्तम समय प्रातः काल है। इस समय पूरब की लालिमा शरीर में नवोत्साह भर देती है। इससे मन प्रफुल्लित हो जाता है। इस समय बहने वाली शीतल मंद हवा चित्त को प्रसन्न कर देती है और शरीर को ऊर्जा से भर देती है। पक्षियों का कलख कुछ-कहकर हमें व्यायाम करने की प्रेरणा देता हुआ प्रतीत होता है। इस समय शौच आदि से निवृत्त होकर बिना कुछ खाए व्यायाम करना चाहिए। ऋतु और मौसम को ध्यान में रखकर शरीर पर सरसों के तेल की मालिश व्यायाम से पूर्व करना अच्छा रहता है। दोपहर या तेज़ धूप में व्यायाम से बचना चाहिए। यदि किसी कारण सवेरे समय न मिले तो शाम को व्यायाम करना चाहिए।
ध्यान देने योग्य बातें – व्यायाम करते समय कुछ बाते अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। व्यायाम इस तरह करना चाहिए कि शरीर के सभी अंगों का सही ढंग से व्यायाम हो। शरीर के कुछ अंगों पर ही ज़ोर पड़ने से वे पुष्ट हो जाते हैं परंतु अन्य अंग कमजोर रह जाते हैं। इससे शरीर बेडौल हो जाता है। व्यायाम करते समय श्वास फूलने पर व्यायाम बंद कर देना चाहिए, अन्यथा शरीर की नसें टेढ़ी होने का डर रहता है। व्यायाम करते समय सदा नाक से साँस लेनी चाहिए, मुँह से कदापि नहीं। व्यायाम करने के तुरंत उपरांत कभी नहाना नहीं चाहिए। इसके अलावा व्यायाम ऐसी जगह पर करना चाहिए जहाँ पर्याप्त वायु और प्रकाश हो। व्यायाम की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ानी चाहिए अन्यथा अगले दिन व्यायाम करने की इच्छा नहीं होगी।
उपसंहार – व्यायाम उत्तम स्वास्थ्य पाने की मुफ़्त औषधि है। इसके लिए बस इच्छाशक्ति और लगन की आवश्यकता होती है। हमें सवेरे देर तक सोने की आदत छोड़कर प्रतिदिन व्यायाम अवश्य करना चाहिए।
7. अभ्यास का महत्त्व अथवा करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
संकेत-बिंदु –
• भूमिका अभ्यास की आवश्यकता
• अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन
• सफलता का साधन-अभ्यास
• विद्यार्थी और अभ्यास
• उपसंहार
भूमिका – जीवन में सफलता पाने एवं किसी कार्य में दक्षता पाने के लिए बार-बार अभ्यास करना आवश्यक होता है। यह बात मनुष्य पर ही नहीं पशु-पक्षियों पर भी समान रूप से लागू होती है। कबूतर का शावक शुरू में चावल के दाने पर चोंच मारता है पर चोंच पत्थर पर टकराती है। बाद में वही पत्थरों के बीच पड़े चावल के दाने को एक ही बार में उठा लेता है।
अभ्यास की आवश्यकता – अत्यंत महीन और मुलायम तिनकों से बनी रस्सी के बार-बार आने-जाने से पत्थर से बनी कुएँ की जगत पर निशान पड़ जाते हैं। इन्हीं निशानों को देखकर मंदबुद्धि कहलाने वाले बरदराज के मस्तिष्क में बिजली कौंध गई और उन्होंने परिश्रम एवं लगन से पढ़ाई की और संस्कृति के वैयाकरणाचार्य बन गए। कुछ ऐसा ही हाल कालिदास का था, जो उसी डाल को काट रहे थे जिस पर वे बैठे थे।
बाद में निरंतर अभ्यास करके संस्कृत के प्रकांड विद्वान बने और विश्व प्रसिद्ध साहित्य की रचना की। ऐसा ही लार्ड डिजरायली के संबंध में कहा जाता है कि जब वे ब्रिटिश संसद में पहली बार बोलने के लिए खड़े हुए तो ‘संबोधन’ के अलावा कुछ और न कह सके। उन्होंने हार नहीं मानी और जंगल में जाकर पेड़-पौधों के सामने बोलने का अभ्यास करने लगे। उनका यह अभ्यास रंग लाया और संसद में जब वे दूसरी बार बोलने के लिए खड़े हुए तो उनका भाषण सुनकर सभी सांसद चकित रह गए।
अभ्यास और पशु-पक्षियों का जीवन – अभ्यास की महत्ता से मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षी भी परिचित हैं। मधुमक्खियाँ निरंतर परिश्रम और अभ्यास से फूलों का पराग एकत्र करती हैं और अमृत तुल्य शहद बनाती हैं। नन्हीं चींटी अनाज का टुकड़ा लेकर बारबार चलने का अभ्यास करती है और अंततः ऊँची चढ़ाई पर भी वह अनाज उठाए चलती जाती है। इस प्रक्रिया में कई बार अनाज उसके मुँह से गिरता है तो अनेक बार वह स्वयं गिरती है, परंतु वह हिम्मत हारे बिना लगी रहती है और अंततः सफल होती है। इसी तरह पक्षी अपना घोंसला बनाने के लिए जगह-जगह से घास-फूस और लकड़ियाँ एकत्र करते हैं, फिर अत्यंत परिश्रम और अभ्यास से घोंसला बनाने में सफल हो जाते हैं।
सफल का साधन-अभ्यास – सफलता पाने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है। खिलाड़ी बरसों अभ्यास करता और मनचाही सफलता प्राप्त करता है। पृथ्वीराज चौहान, राजा दशरथ आदि वीरों द्वारा शब्दबेधी बाण चलाकर निशाना लगाना उनके निरंतर अभ्यास का ही परिणाम था। विज्ञान की सारी दुनिया ही अभ्यास पर टिकी है। विज्ञान की खोजें और अन्य आविष्कार निरंतर अभ्यास से ही संभव हो सके हैं। यहाँ एक खोज के लिए ही अभ्यास करते-करते पूरी उम्र निकल जाती है।
विदयार्थी और अभ्यास – विद्यार्थियों के लिए अभ्यास की महत्ता अत्यधिक है। पुराने ज़माने में जब शिक्षा पाने का केंद्र गुरुकुल होते थे और शिक्षा प्रणाली मौखिक हुआ करती थी, तब भी विद्यार्थी अभ्यास से ही श्लोक और ग्रंथ याद कर लेते थे। कोरे कागज़ की तरह मस्तिष्क लेकर पाठशाला जाने वाले विद्यार्थी अभ्यास करते-करते अपने विषय में स्नातक, परास्नातक होकर डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर जाता है।
उपसंहार – अभ्यास सफलता का साधन है। सभी जीवधारियों को सफलता पाने हेतु आलस्य त्यागकर अभ्यास में जुट जाना चाहिए।
8. समय का महत्त्व अथवा समय चूकि वा पुनि पछताने
संकेत बिंदु –
• भूमिका
• समय सदा गतिमान
• समय बड़ा बलवान
• समय का पालन करती प्रकृति
• विद्यार्थी और समय का सदुपयोग
• उपसंहार
भूमिका – प्रकृति द्वारा मनुष्य को अनेकानेक वस्तुएँ प्रदान की गई हैं। इनमें कुछ ऐसी हैं जिनका मूल्य आँका जा सकता है और कुछ ऐसी हैं जिनके मूल्य का आँकलन नहीं किया जा सकता है। कुछ ऐसा ही है-समय, जिसका न तो मूल्य आँका जा सकता है और न वापस लौटाया जा सकता है।
समय सदा गतिमान – समय निरंतर गतिमान रहता है। उसे रोका नहीं जा सकता है। समय की गतिशीलता के बारे में ही कहा गया है। Time and tide wait for none. अर्थात् समय और समुद्री ज्वार किसी की प्रतीक्षा नहीं करते हैं। जो व्यक्ति समय का लाभ नहीं उठाते हैं और अवसर आने पर चूक जाते हैं, या हाथ आए अवसर का लाभ नहीं उठा पाते हैं, वे पछताते रह जाते हैं। कहा गया है कि जो व्यक्ति समय को नष्ट करते हैं, समय उन्हें नष्ट कर देता है।
समय बड़ा बलवान – समय बड़ा बलवान माना जाता है। समय के आगे आज तक किसी की नहीं चली है। बड़े-बड़े योद्धा, राजा, धनसंपन्न व्यक्तियों की भी समय के सामने नहीं चल पाई। समय ने उन्हें भी अपना शिकार बना लिया। समय के साथ-साथ पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं, फल पककर शाखाओं का साथ छोड़ जाते है, और नीचे आ गिरते हैं।
समय का पालन करती प्रकृति – समय का महत्त्व भला प्रकृति से बढ़कर और कौन समझ पाया है। तभी तो प्रकृति के सारे काम समय पर होते हैं। सूर्य समय पर उगकर अँधेरा ही दूर नहीं करता, बल्कि धरती पर प्रकाश और ऊष्मा फैलाता है। मुरगा समय पर बाग देना नहीं भूलता है तो उचित ऋतु पाकर पौधों में नई पत्तियाँ आ जाती हैं। वसंतु ऋतु में पौधों पर फूल आ जाते हैं। छोटा पौधा जैसे ही बड़ा होता है वह फल देना नहीं भूलता है। गरमी के अंत तक बादल पानी लाकर धरती का कल्याण करना नहीं भूलते हैं, तो समय पर फ़सलें अनाज दिए बिना नहीं सूखती हैं।
महापुरुषों की सफलता का राज़ – ऋषि-मुनि रहे हों या अन्य महापुरुष अथवा सफलता के शिखर पर पहुँचे व्यक्ति, सभी की सफलता के मूल में समय का महत्त्व एवं उसके पल-पल का उपयोग करने का राज छिपा है। महात्मा गांधी, नेहरू जी, तिलक आदि ने समय के पल-पल का उपयोग किया। वैज्ञानिकों की सफलता में समय पर काम करने की सर्वाधिक आवश्यकता होती है। इसी प्रकार मात्र एक मिनट के विलंब से स्टेशन पर पहुँचने वाले लोगों की ट्रेन छूट जाती है।
समय के दुरुपयोग का दुष्परिणाम – कुछ लोगों की आदत होती है कि वे व्यर्थ में समय गँवाते हैं। वे कभी आराम करने के नाम पर तो कभी मनोरंजन के नाम पर समय का दुरुपयोग करते हैं। इस प्रकार समय गँवाने वाले सुखी नहीं रह सकते हैं। कहा जाता है कि जूलियस सीजर सभा में पाँच मिनट विलंब से पहुँचा और उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसी प्रकार कुछ ही मिनट की देरी से युद्ध स्थल पर विलंब से पहुंचने वाले नेपोलियन को नेल्सन के हाथों हार का सामना करना पड़ा, जिसकी डिक्शनरी में असंभव शब्द था ही नहीं।
विद्यार्थी और समय का सदुपयोग – विद्यार्थी जीवन, मानवजीवन के निर्माण का काल होता है। इस काल में यदि विद्यार्थी में समय के पल-पल के उपयोग की आदत एक बार पड़ जाती है तो वह आजीवन साथ रहती है। जो विद्यार्थी समय पर शय्या का त्यागकर पढ़ाई करते हैं, उन्हें अच्छा ग्रेड लाने से कोई रोक नहीं सकता है।
उपसंहार – समय अमूल्य धन है। हमें भूलकर भी इस धन का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इससे पहले कि और देर हो, हमें समय के सदुपयोग की आदत डाल लेनी चाहिए।
9. जनसंख्या विस्फोट अथवा जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• भारत में जनसंख्या की स्थिति
• जनसंख्या वृद्धि के कारण
• जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ
• जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – एक सूक्ति है–’अति सर्वत्र वय॑ते!’ अर्थात् अति हर जगह वर्जित होती है। यह सूक्ति हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि पर पूर्णतया लागू हो रही है। हाँ, जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, अब उस पर अंकुश लगाने का समय आ गया है। इसमें विलंब करने का परिणाम अच्छा नहीं होगा।
भारत में जनसंख्या की स्थिति – हमारे देश की जनसंख्या में तीव्र दर से वृद्धि हुई है। आज़ादी के समय 50 करोड़ रहने वाली जनसंख्या दूने से अधिक हो चुकी है। सन् 2011 की जनगणना के अनुसार हमारे देश की जनसंख्या 120 करोड़ की संख्या पार गई थी। वर्तमान में यह बढ़ते-बढ़ते 122 करोड़ छूने लगी है। इतनी बड़ी जनसंख्या अपने आप में एक समस्या है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण – जनसंख्या वृद्धि के कारणों के मूल में जाने से ज्ञात होता है कि इस समस्या के एक नहीं अनेक कारण हैं। इनमें अशिक्षा मुख्य है। हमारे देश के ग्रामीण अंचलों की निरक्षर जनता आज भी अशिक्षा के कारण बच्चों को भगवान की देन मानकर इस पर नियंत्रण लगाने के लिए तैयार नहीं है। इन क्षेत्रों की धार्मिकता एवं धर्मांधता के कारण जनसंख्या वृद्धि हो रही है। हिंदू धर्म में पुत्र को मोक्षदाता माना जाता है।
अपने एक मोक्षदाता को पाने के लिए वे कई-कई लड़कियाँ पैदा करते हैं और जनसंख्या वृद्धि रोकने को तैयार नहीं होते हैं। कई जातियों में व्याप्त बहुविवाह प्रथा के कारण भी जनसंख्या वृद्धि हो रही है। अशिक्षित तथा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरुकता का अभाव एवं अज्ञानता के कारण जनसंख्या वृद्धि होती रही है। गर्भ निरोधन के साधनों की जानकारी उन तक नहीं पहुँच पाती हैं।
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ – वास्तव में जनसंख्या वृद्धि एक समस्या न होकर अनेक समस्याओं की जड़ है। इसके कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों तरह की समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं। इनमें प्रमुख समस्या है-सुविधाओं का बँटवारा और कमी। देश में जितनी सुविधाएँ और संसाधन उपलब्ध हैं, वे देश की जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति करने में अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं। सरकार इन सुविधाओं को बढ़ाने के लिए योजना बनाती है और उनमें वृद्धि करती है, जनसंख्या में उससे अधिक वृद्धि हो चुकी होती है।
अतः संसाधनों की कमी बनी रह जाती है। बेरोज़गारी, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, यातायात के साधनों की भीड़, सब जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हैं। जनसंख्या की अधिकता के कारण ही व्यक्ति को न पेट भरने के लिए रोटी मिल रही है और न तन ढंकने के लिए वस्त्र। हर हाथ को काम मिलने की बात करना ही बेईमानी होगी। अब भूखा और बेरोज़गार शांत बैठने से रहा। वह हर नैतिक-अनैतिक हथकंडे अपनाकर कार्य करता है और कानून व्यवस्था को चुनौती देता है। पर्यावरण प्रदूषण और वैश्विक ऊष्मीकरण भी जनसंख्या वृद्धि की देन है।
जनसंख्या वृद्धि रोकने के उपाय – जनसंख्या की समस्या ने निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। सरकार कानून बनाकर उसे ईमानदारी से लागू करवाए तथा युवा वर्ग इसकी हानियों पर विचार कर स्वयं ही समझदारी दिखाएँ।
उपसंहार- जनसंख्या वृद्धिदेश, समाज और विश्व सबके लिए हानिकारक है। इसे रोकने के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए। इसके लिए आज से ही सोचने की ज़रूरत है, क्योंकि कल तक तो बहुत देर हो चुकी होगी।
10. बढ़ती महँगाई-एक विकट समस्या अथवा महँगाई की समस्या
संकेत-बिंदु-
• भूमिका
• महँगाई के दुष्परिणाम
• सामाजिक समरसता के लिए घातक
• महँगाई वृद्धि के कारण
• महँगाई रोकने के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – आज देश को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है, उनमें महँगाई सर्वोपरि है। यह ऐसी समस्या है जिससे मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर सभी पीड़ित हैं। गरीब और निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए महँगाई जानलेवा बनी हुई है।
महँगाई के दुष्परिणाम – महँगाई के कारण उपयोग और उपभोग की हर वस्तु के दाम आसमान छूने लगते हैं। ऐसे में जनसाधारण की मूलभूत आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती हैं। न भरपेट भोजन और न शरीर ढंकने के लिए वस्त्र, आवास की समस्या की बात ही क्या करना। उसका सारा ध्यान और शक्ति प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने में ही निकल जाता है। उसे कला, संस्कृति, साहित्य, सौंदर्य बोध आदि के बारे में सोचने का समय नहीं मिल पाता है। ऐसे में व्यक्ति की स्थिति ‘साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात नर पुच्छ विषाण हीनः’ की होकर रह जाती है। ऐसा लगता है कि उसका जीवन आर्थिक समस्याओं से जूझने में ही बीत जाता है।
सामाजिक समरसता के लिए घातक – महँगाई के कारण जब समाज को रोटी मिलना कठिन हो जाता है तो वर्ग संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। समाज में छीना-झपटी, लूटमार की स्थिति बन जाती है। ऐसे में सामाजिक समरसता का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाता है। इसके अलावा समाज में कानून व्यवस्था की चुनौती उत्पन्न हो जाती है।
महँगाई वृद्धि के कारण – महँगाई बढ़ाने के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। इनमें जनसंख्या वृद्धि प्रमुख कारण है। अर्थशास्त्र का एक सिद्धांत है कि जब वस्तु की माँग बढ़ती है तो उसके मूल्य में वृद्धि हो जाती है। ऐसे में ‘एक अनार सौ बीमार’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। बढ़ती जनसंख्या की माँग पूरा करने के लिए जब वस्तुओं की कमी होती है तो महँगाई बढ़ने लगती है।
कुछ व्यापारियों की लोभ प्रवृत्ति भी महँगाई बढ़ाने के लिए उत्तरदायी होती है। ऐसे व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं की जमाखोरी करते हैं और कृत्रिम कमी दिखाकर वस्तुओं का मूल्य बढ़ा देते हैं, और बाद में बढ़े दामों पर बेचते हैं।
मौसम की मार, प्राकृतिक आपदा आदि के कारण जब फ़सलें नष्ट होती हैं, तो महँगाई बढ़ जाती है। इसके अलावा सरकार की कुछ नीतियों के कारण भी महँगाई बढ़ती जाती है।
महँगाई रोकने के उपाय – महँगाई वह समस्या है जिससे देश की बहुसंख्यक जनता दुखी है। ऐसे में महँगाई रोकने के लिए सरकार को प्राथमिकता के आधार पर कदम उठाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह जमाखोरों तथा कालाबाज़ारी करने वालों के विरुद्ध ठोस कार्यवाली करे और जमाखोरी की वस्तुओं का वितरण सार्वजनिक प्रणाली के अनुसार करे।
जिन वस्तुओं के मूल्य में अचानक उछाल आ रहा हो उनका आयात करके जनता में वितरित करवाना चाहिए तथा लोगों से धैर्य बनाए रखने की अपील करनी चाहिए। राजनीतिज्ञों को चाहिए कि वे चुनाव में खर्च को कम करें, काले धन का प्रयोग न करें। चुनाव का खर्च बढ़ने पर तथा ‘येन केन प्रकारेण’ चुनाव जीतने की लालसा के कारण वे बेतहाशा पैसा खर्च करते हैं। उन्हें इस प्रवृत्ति पर स्वयं अंकुश लगाने की ज़रूरत है।
उपसंहार – महँगाई व्यक्ति का जीना मुश्किल कर देती है। भूखा व्यक्ति अपनी जठराग्नि शांत करने के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर हो जाता है। समाज के अमीर वर्ग को उदारता एवं दयालुता का परिचय देकर दीन-हीनों की मदद कर महँगाई की मार से उन्हें बचाने के लिए आगे आना चाहिए।
11. अच्छा पड़ोसअथवा अच्छा पड़ोस कितना आवश्यक
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• पड़ोसी का महत्त्व
• पड़ोसी से हमारा व्यवहार
• पड़ोसी से व्यवहार खराब होने के कारण
• महानगरों का पड़ोस
भूमिका – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह लोगों के साथ मिल-जुलकर रहता है। वह अपना दुख-सुख दूसरों को बताता है और उनके सुख-दुख में शामिल होता है। ऐसे में जो व्यक्ति उसके सबसे निकट होता है और उसके सुख-दुख में तुरंत हाज़िर हो जाता है, वह है उसका पड़ोसी। कहते हैं कि अच्छा पड़ोसी किस्मत वालों को ही मिलता है।
पड़ोसी का महत्त्व – जीवन में दुख-सुख का आना-जाना लगा रहता है। व्यक्ति को दुख के समय मददगार व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में पड़ोसी ही हमारा निकटतम रिश्तेदार एवं मददगार होता है। अच्छा पड़ोसी मिलने से जिंदगी चैन से कट जाती है, जबकि बुरा पड़ोसी सिरदर्द बन जाता है।
पड़ोसी से हमारा व्यवहार – एक लोकोक्ति है कि ताली दोनों हाथों से बजती है। अर्थात् पड़ोसी हमारे साथ अच्छा व्यवहार करे इसके लिए आवश्यक है कि हम भी उसके साथ अच्छा व्यवहार करें। हमारे व्यवहार में स्वार्थभाव आने पर संबंधों में किसी भी समय कटुता आने की स्थिति बन जाती है। हमें पड़ोसी के साथ यथासंभव निःस्वार्थ व्यवहार करना चाहिए। हमें पड़ोसी के दुख-सुख में अवश्य शामिल होना चाहिए। हमें उसकी विपत्ति और संकट को अपना दुख मानकर उसके समाधान का प्रयास करना चाहिए। हमें हर स्थिति में पड़ोसी से संबंध बनाकर रखना चाहिए। ऐसा करना हमारे लिए हितकर होता है। कभी-कभी अनजान लोगों के मन में वही छवि बन जाती है जो हमारा पड़ोसी उनसे बता देता है।
पड़ोसी से व्यवहार खराब होने के कारण – पड़ोसी के साथ व्यवहार खराब होने के लिए जो बातें अक्सर सामने आती हैं, उनमें प्रमुख हैं-हमारा स्वार्थभरा व्यवहार। ऐसा हम पड़ोसी से रोजमर्रा की वस्तुएँ माँगकर करते हैं। कभी चीनी, कभी चाय और कभी कुछ और। अक्सर हम उनका अखबार माँगकर तो पढ़ते हैं, पर उसे लौटाना भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति उन्हें बुरी तो लगती है पर वे चाहकर भी कुछ कह नहीं पाते हैं। इसके अलावा गली में खेलने या अपने घर में खट-पट करने पर अक्सर पड़ोसी के बच्चों को डाँट-फटकार देते हैं। यह व्यवहार पड़ोसी को बिल्कुल नहीं सुहाता है। इसके अलावा अक्सर रुपये की माँग जब पड़ोसी से कर बैठते हैं और समय पर नहीं लौटाते हैं, तो व्यवहार खराब होना तय समझ लेना चाहिए।
महानगरों का पड़ोस – महानगरों का जीवन अत्यंत व्यस्त होता है। लोगों को अपने काम से अवकाश नहीं होता है। इसके अलावा शहर के लोग ज़्यादा आत्मकेंद्रित होते हैं। इस कारण वे पड़ोस की ओर ध्यान नहीं देते हैं। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि पड़ोसी के घर में चोरी या कोई दुर्घटना हो जाती है तो कई घंटे तक पता ही नहीं चल पाता है या हम उदासीन बने रहते हैं। इस भौतिकवादी युग में लोगों की बढ़ती स्वार्थ प्रवृत्ति ने पड़ोस के मायने ही बदलकर रख दिया है। हमारी आधुनिक बनने की सोच ने भी पड़ोस धर्म पर असर डाला है। इससे हम अपनी पुरानी बातें और मान्यताएँ बदलते जा रहे हैं। आधुनिक होने के साथ-साथ यह आवश्यक है कि हम पड़ोसी धर्म निभाना भी सीखें।
उपसंहार – हम एक अच्छे पड़ोसी बनें, इनके लिए हमें सहनशील बनना होगा। हमें पड़ोसी या उसके बच्चों की छोटी-छोटी बातों की उपेक्षा करके सद्भाव बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहने से अच्छा पड़ोस बनने से रहा। अतः हमें अपना व्यवहार सुधारकर अच्छा पड़ोसी बनने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
12. आधुनिक समाज में नारी अथवा समाज में नारी की बदलती भूमिका
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• प्राचीन काल में नारी की स्थिति
• मध्यकाल में नारी की स्थिति
• आधुनिक काल में नारी
• नारी में बढ़ी आत्मनिर्भरता
भूमिका – स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। आदिकाल से ही ये दोनों पहिए मिलकर जीवन की गाड़ी को सुचारु रूप से खींचते आए हैं। समय बदलने के साथ ही स्त्री की स्थिति में बदलाव आता गया। उसकी सीमा अब घर के अंदर तक ही सीमित नहीं रही। वह घर-परिवार के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करती नज़र आती है।
प्राचीन काल में नारी की स्थिति – प्राचीन काल में नारी को मनुष्य के समान ही समानता का दर्जा प्राप्त था। भले ही उस समय शिक्षा का प्रचार-प्रसार अधिक नहीं था, परंतु स्त्रियों को दबाए रखने का प्रचलन भी नहीं था। उस समय स्त्रियाँ घर के काम-काज करती थीं। वे पुरुष द्वारा कमाए धन को सँभालती थी। खाना बनाने जैसे घरेलू कार्य तथा बच्चों की देखभाल का काम उनके जिम्मे रहता था। पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन आदि में वे पुरुषों का साथ देती थीं।
मध्यकाल में नारी की स्थिति – मध्यकाल आते-आते नारी की स्थिति में बदलाव आता गया। इस समय देश को आक्रमण और युद्धों का सामना करना पड़ रहा था। नारी को आतताइयों के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए उस परदे में रखा जाने लगा। उसे घर की चार दीवारी में कैद कर दिया गया। मुगलकाल में परदा प्रथा और बाल-विवाह की कुप्रथा की वृद्धि हुई। इस काल में नारी को शिक्षा से वंचित रखकर उसे उपभोग की वस्तु बना दिया गया।
आधुनिक काल में नारी – अंग्रेज़ी शासनकाल के उत्तरार्ध से नारी की स्थिति में सुधार आना शुरू हो गया। सावित्री बाई फुले एवं ज्योतिबा फुले ने नारी की शिक्षा के लिए जो प्रयास किया था, वह स्वतंत्रता के बाद रंग लाने लगा। सरकारी प्रयासों से नारी शिक्षा एवं उसके स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए अनेक ठोस कदम उठाए गए और योजनाबद्ध तरीके से काम किया गया। इसका परिणाम भी सामने आने लगा।
आधुनिक काल में नारी पुरुषों की भाँति उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। वह विभिन्न कौशलों का शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। आज नारी घर की सीमा लाँघकर स्कूल, कॉलेज, कार्यालय, अस्पताल, बैंक, उड्डयन क्षेत्र आदि में अपनी योग्यतानुसार कार्य कर रही है। इतना ही नहीं, राजनीति, वैज्ञानिक संस्थान खेल जगत, सेना, पुलिस, पर्वतारोहण, विमानन, पर्यटन आदि कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ नारी के कदम न पहुँचे हों। आज स्थिति यह है कि नारी द्वारा नौकरी करने के कारण पुरुष बेरोज़गारी में वृद्धि हुई है।
नारी में बढ़ी आत्मनिर्भरता – नारी की शिक्षा और नौकरी ने उसके आत्मविश्वास में वृधि की है। इससे वह पुरुषों की निरंकुशता से मुक्त हो रही है। नौकरी के कारण वेतन उसके हाथ में आया है। इस आर्थिक स्वावलंबन ने उसके आत्मविश्वास में वृद्धि की है। अब पुरुषों के समान ही अपनी कार्यक्षमता से समाज को प्रभावित कर रही है। कुछ रुढ़िवादी और परंपरागत सोच-विचार वाले पुरुष जिन्हें उसकी कार्यक्षमता और कौशल पर विश्वास न था, वे चकित होकर उसे देख ही नहीं रहे हैं, बल्कि उसकी योग्यता के कायल भी हो रहे हैं।
अब तो सरकार ने निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में पुरुष और महिला का वेतनमान बराबर कर दिया है। कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहाँ महिलाएं पुरुषों से भी दो कदम आगे बढ़कर काम कर रही हैं। उनकी कार्यकुशलता देखकर पुरुष समाज नारी के प्रति अपनी बनी-बनाई परंपरागत सोच में बदलाव लाना शुरू कर दिया है।
उपसंहार- इसमें कोई संदेह नहीं कि आज समाज में नारी की स्थिति उन्नत हुई है। अब पुरुषों को यह ध्यान रखना है कि कार्यालय में काम करने के बाद उसे घर की चक्की में पिसने के लिए विवश न करे। यथासंभव घर में नारी का साथ देकर घरेलू कार्यों और जिम्मेदारियों में हाथ बटाएँ तथा उसे सम्मान की दृष्टि से देखने का प्रयास करें
13. कंप्यूटर के लाभ अथवा कंप्यूटर-आज की आवश्यकता
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र
• शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर
• बैंकों में कंप्यूटर
• विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर
• व्यक्तिगत उपयोग
• कंप्यूटर से हानियाँ
• उपसंहार
भूमिका- विज्ञान ने मुनष्य को ऐसे अनेक उपकरण प्रदान किए हैं जिनकी कभी वह कल्पना किया करता था। इन उपकरणों ने मानव-जीवन को नाना प्रकार से सुखमय बनाया है। ये उपकरण इनते उपयोगी हैं कि वे मनुष्य की आवश्यकता बनते जा रहे हैं। इन्हीं उपकरणों में एक है-कंप्यूटर। कंप्यूटर विज्ञान का चमत्कारी यंत्र है।
कंप्यूटर-एक बहुउपयोगी यंत्र – कंप्यूटर का आविष्कार विज्ञान के चमत्कारों में से एक है। यह ऐसा यंत्र है जिसका उपयोग लगभग हर जगह किया जाता है। यह व्यक्तिगत उपयोग में लाया जा रहा है। शायद ही ऐसा कोई कार्यालय हो जहाँ किसी न किसी रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। अब इसे लाना-ले जाना भी सुगम होता जा रहा है, क्योंकि इसके मॉडल में बदलाव आता जा रहा है।
शिक्षण कार्यों में कंप्यूटर – आने वाले समय में शिक्षण का अधिकांश कार्य कंप्यूटर से किया जाने लगेगा। यद्यपि प्रोजेक्टर के माध्यम से आज भी वभिन्न कोसों की पढ़ाई कंप्यूटर से करवाई जा रही है तथा छात्र-छात्राएँ इसकी मदद से प्रोजेक्ट बनाने आदि का काम कर रहे हैं, पर आने वाले समय में छात्रों को बस्ते के बोझ से मुक्ति मिल जाएगी। उनकी सारी पुस्तकें और पाठ्यसामग्री कंप्यूटर पर ही उपलब्ध हो जाएगी। अब वह समय भी दूर नहीं जब शिक्षक भी कंप्यूटर ही होगा। वह छात्रों को निर्देश देकर विभिन्न विषयों की पढ़ाई करवाएगा। आज भी छात्र अपनी मोटी-मोटी पुस्तकें पी.डी.एफ.फार्म में करके कंप्यूटर से पढ़ाई कर रहे हैं।
बैंकों में कंप्यूटर – कंप्यूटर बैंकिंग क्षेत्र के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ है। अब कंप्यूटर के कारण क्लर्कों को न हाथ से काम करना पड़ रहा है और न फाइलें और लेजर सँभालने का झंझट रहा। सभी ग्राहकों के खाते अब कंप्यूटर की फाइलों में सिमट आए हैं। कंप्यूटर में न इनके खोने का डर है और न चूहों के काटने का। इसके अलावा एक कंप्यूटर कई-कई क्लर्कों का काम बिना थके करता है। कंप्यूटर न तो हड़ताल करता है और वेतन बढ़ाने के लिए कहता है। यह ऐसा यंत्र है जो बिना गलती किए अधिकाधिक कार्य कम से कम समय में पूरा कर देता है।
विभिन्न कार्यालयों में कंप्यूटर – कंप्यूटर अपनी उपयोगिता के कारण हर सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों में प्रयोग किया जाने लगा है। आज इसे वैज्ञानिक, आर्थिक युद्ध, ज्योतिष, मौसम विभाग, इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जा रहा है। इसका प्रयोग बिल बनाने, कर्मचारियों के वेतन, पी.एफ. का हिसाब रखने, खातों के संचालन आदि में खूब प्रयोग किया जा रहा है। इसी प्रकार रेलवे, वायुयान, समुद्री जहाजों के संचालन के लिए भी कंप्यूटर की मदद ली जा रही है।
व्यक्तिगत उपयोग – आज कंप्यूटर का व्यक्तिगत उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। छात्र इसका उपयोग पढ़ाई के लिए कर रहे हैं, तो चित्रकार और कलाकार इसका प्रयोग अपनी कला को निखारने के लिए कर रहे हैं। गीत-संगीत की रिकॉर्डिंग और संकलन का कार्य कंप्यूटर से बखूबी किया जा रहा है। कंप्यूटर से हानियाँ-कंप्यूटर का एक पक्ष जितना उजला है, दूसरा पक्ष उतना ही श्याम भी है। ‘अति सर्वत्र वय॑ते’ की उक्ति इस पर पूरी तरह लागू होती है। इसका अधिक उपयोग मोटापा बढ़ाता है। इस पर ज़्यादा देर काम करना आँख और कमर के लिए हानिकारक होता है। इसके अलावा इस पर सारी गणनाएँ सरलता से हो जाने के कारण अब मौखिक दक्षता और याद करने की क्षमता में कमी आने लगी है।
उपसंहार – कंप्यूटर अद्भुत तथा अत्यंत उपयोगी यंत्र है, पर इसका अधिक प्रयोग हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसका प्रयोग व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बनाता है। इसका आवश्यकतानुसार सोच-समझकर प्रयोग करना चाहिए।
14. भारत का प्राकृतिक सौंदर्य अथवा दुनिया से न्यारा देश हमारा
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• पावन एवं गौरवमयी देश
• प्राकृतिक सौंदर्य
• ऋतुओं का अनुपम उपहार
• स्वर्ग से भी बढ़कर
• उपसंहार
भूमिका – हमारे देश का नाम भारत है। दुनिया इसे हिंदुस्तान, इंडिया, आर्यावर्त आदि नामों से जानती है। यह देश एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसकी संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। अपनी विभिन्न विशेषताओं के कारण यह देश, दुनिया में विशिष्ट स्थान रखता है।
पावन एवं संदर देश – हमारा देश पावन है। यह देश गौरवमयी है। इस गौरवमयी देश में जन्म लेने को देवता भी लालायित रहते हैं। भगवान श्रीराम, कृष्ण, नानक कबीर, बुद्ध गुरुगोविंद सिंह आदि ने इसी पावन भूमि पर जन्म लिया है। यहीं उन्होंने अपनी लीलाएँ रची और दुनिया को ज्ञान और सदाचार का सन्मार्ग दिखाया।
प्राकृतिक सौंदर्य – प्राचीन काल में इसी देश में दुष्यंत नामक राजा राज्य करते थे। दुष्यंत और शकुंतला का पुत्र भरत अत्यंत वीर एवं प्रतापी था। उसी के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। भौगोलिक दृष्टि से इस देश का प्राकृतिक स्वरूप अत्यंत मोहक है। इसके उत्तर में पर्वतराज हिमालय है जिसकी हिमाच्छादित चोटियाँ भारत के मुकुट के समान प्रतीत होती है। इसके दक्षिण में हिंद महासागर है। ऐसा लगता है जैसे सागर इसके चरण पखार रहा है।
इसके सीने पर बहती गंगा-यमुना इसका यशगान करती- सी प्रतीत हो रही हैं। भारत भूमि शस्य श्यामला है। नभ में उड़ते कलरव करते पक्षी इस देश का गुणगान दुनिया को सुनाते हुए प्रतीत होते हैं। भारत के दक्षिणी भाग में समुद्री किनारे नारियल के पेड़ हैं, तो मध्य भाग में हरे-भरे वन और फलदायी वृक्ष। इनसे भारत का सौंदर्य द्विगुणित हो जाता है। इसके उत्तरी भाग जम्मू-कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यहाँ स्थित डलझील और उसमें तैरते शिकारे, शालीमार बाग, निशात बाग हमें धरती पर स्वर्ग की अनुभूति कराते हैं।
ऋतुओं का अनुपम उपहार – हमारे देश भारत को ऋतुओं का अनुपम उपहार प्रकृति से मिला है। यहाँ छह (6) ऋतुएँ-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत बारी-बारी से आती हैं और अपना सौंदर्य बिखरा जाती हैं। यह दुनिया का इकलौता देश है, जहाँ ऋतुओं में इतनी विविधता है। गरमी की ऋतु हमें शीतल पेय और तरह-तरह के फलों का आनंद देती है, तो वर्षा ऋतु धरती पर सर्वत्र हरियाली बिखरा जाती है। शरद ऋतु संधिकाल होती है।
शिशिर और हेमंत हमें सरदी का अहसास करवाते हैं, तो वसंत ऋतु अपने साथ हर्षोल्लास लेकर आती है और सर्वत्र खुशियों के फूल खिला जाती है। इस ऋतु में धरती का सौंदर्य अन्य ऋतुओं से बढ़ जाता है। स्वर्ग से भी बढ़कर हमारी भारत भूमि स्वर्ग से बढ़कर है। इसी भूमि के बारे में कहा गया है-‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। इसका भाव यह है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। इसी भूमि के बारे में श्रीकृष्ण ने अपने सखा उद्धव से कहा था
ऊधौ! मोहि ब्रज बिसरत नाहीं। हंससुता की सुंदर कगरी और कुंजन की छाहीं। भगवान राम ने भी अयोध्या की सुंदरता के बारे में कहा है –अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
उपसंहार- भारत देश अत्यंत विशाल है। यह जितना विशाल है उससे अधिक सुंदर एवं पावन है। पर्वत, सागर, नदी, रेगिस्तान का विशाल मैदान आदि इसकी सुंदरता में वृद्धि करते हैं। इसकी प्राकृतिक सुंदरता इसे स्वर्ग-सा सुंदर बनाती है। हम भारतीयों को भूल से भी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे इसकी गरिमा एवं सौंदर्य को ठेस पहुँचे। हमें अपने देश पर गर्व है।
15. लड़कियों की संख्या में आती कमी अथवा गिरता लिंगानुपात
संकेत-बिंदु –
• भूमिका
• महिलाओं की संख्या में आती गिरावट
• आर्थिक संपन्नता और लिंगानुपात में विपरीत संबंध
• कमी आने का कारण
• सुधार के उपाय
• उपसंहार
भूमिका – मानव जीवन एक गाड़ी के समान है। स्त्री और पुरुष इस गाड़ी के दो पहिए हैं। जिस प्रकार एक पहिए पर गाड़ी चलना कठिन हो जाता है उसी तरह समाज में स्त्रियों की संख्या कम होने पर सामाजिक ढाँचा चरमरा जाता है। यह स्थिति मनुष्य और समाज दोनों में से किसी के लिए अच्छी नहीं समझी जाती है।
महिलाओं की संख्या में आती गिरावट – हमारे देश की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। 2011 में यह संख्या 120 करोड़ पार गई थी। वर्तमान में यह 122 करोड़ से भी ज़्यादा हो चुकी है, परंतु दुखद बात यह है कि जनसंख्या की इस बेतहाशा वृद्धि के बाद भी स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। आज स्थिति यह है देश में एक हजार पुरुषों के पीछे नौ सौ से भी कम स्त्रियाँ हैं। केरल एक मात्र राज्य है जहाँ लिंगानुपात देश के अन्य राज्यों से बेहतर है। देश के शेष अन्य राज्यों में लिंगानुपात अर्थात लड़कियों की संख्या पुरुषों से कम है।
आर्थिक संपन्नता और लिंगानुपात में विपरीत संबंध – जनसंख्या संबंधी आँकड़े देखने से एक विडंबनापूर्ण स्थिति हमारे सामने यह आती है कि जो राज्य आर्थिक रूप से और शिक्षा की दृष्टि से जितने आगे समझे जाते हैं, लिंग अनुपात के मामले में वे उतने ही पीछे हैं। इसके विपरीत जो राज्य जितने गरीब और शैक्षिक दृष्टि से पीछे हैं, वहाँ लिंगानुपात अन्य राज्यों से उतना ही अच्छा है।
हरियाणा और पंजाब उच्च संपन्न और शिक्षित राज्य हैं, जहाँ लिंगानुपात एक हजार पुरुषों पर 870 से भी कम है, जबकि बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे गरीब और कम शिक्षित राज्यों में लिंगानुपात, पंजाब, हरियाणा से बेहतर ही नहीं, बहुत बेहतर है। पंजाब-हरियाणा की स्थिति तो अब यह है कि वहाँ लड़कों के विवाह के लिए लड़कियों की कमी हो गई है। इससे वे अन्य राज्यों का रुख करते हैं और खरीद-फरोख्त को बढ़ावा देते हैं। इससे सामाजिक असंतुलन तथा अन्य समस्याएँ उत्पन्न होने का खतरा पैदा हो गया है।
कमी आने का कारण – भारतीय समाज में लड़कियों से जुड़ी यह मान्यता प्रचलित है कि वे घर की इज़्ज़त होती हैं। मध्यकाल से ही विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए उन्हें परदे में रखा गया तथा उनके अधिकार छीन लिए गए। विवाह योग्य कन्याओं के विवाह में आने वाली परेशानियों को देखते हुए उन्हें बोझ समझा जाने लगा। बस धीरे-धीरे लड़कियों को जन्म लेने से रोकने के उपाय अपनाए जाने लगे।
यदि परिवार में लड़की का जन्म हो भी गया, तो उसके पालन- पोषण और इलाज पर ध्यान नहीं दिया जाता था ताकि किसी तरह उसका जीवन समाप्त हो जाए। विज्ञान के साधनों एवं शिक्षा के विस्तार के साथ ही कन्याभ्रूण को ही मार देने के तरीके अपनाए जाने लगे। पुरुष प्रधान समाज में कन्या का जन्म लेना ही हीन समझा जाने लगा। इससे कन्या के जन्मने से पूर्व ही उसे मार दिया जाने लगा, जिसका दुष्परिणाम आज हम सबके सामने है।
सुधार के उपाय – समाज में लड़कियों की संख्या बढ़ाने के लिए सामाजिक जागरुकता ही ज़रूरत है। पुरुष प्रधान समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए। उसे लड़की-लड़के में भेद करने की प्रवृत्ति त्याग देनी चाहिए। युवाओं को इस दिशा में विशेष रूप से आगे आने की आवश्यकता है। यद्यपि सरकार ने एक ओर कन्या भ्रूण हत्या को अपराध घोषित किया है, तो दूसरी ओर कन्याओं के पालन-पोषण और शिक्षण से जुड़ी अनेक योजनाएं शुरू की हैं, ताकि समाज कन्या जन्म को बोझ न समझे। फिर भी समाज को अपनी सोच में बदलाव लाने की नितांत आवश्यकता है।
उपसंहार – समाज का संतुलन बनाए रखने के लिए लड़की-लड़के दोनों की जरूरत होती है। किसी एक की कमी सामाजिक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न कर देगी। समाज में लड़कियों की संख्या में गिरावट को रोकने के लिए हमें भारतीय संस्कृति का आदर्श पुनः लाने की आवश्यकता है—’यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
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