NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 3 निर्धनता : एक चुनौती (Poverty As A Challenge) Question & Answer In Hindi

NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 3 निर्धनता : एक चुनौती (Poverty As A Challenge)

Text BookNCERT
Class 9th
Subject अर्थशास्त्र (Economics)
Chapter3rd
Chapter Nameनिर्धनता : एक चुनौती (Poverty As A Challenge)
CategoryClass 9th Social Science Economics
Medium Hindi
SourceLast Doubt
NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 3 निर्धनता : एक चुनौती (Poverty As A Challenge) Question & Answer In Hindi जिसमे हम गरीबी एक समस्या क्यों है?, अर्थशास्त्र में गरीबी क्या है?, गरीबी को कैसे नापते हैं?, गरीबी को कौन परिभाषित करता है?, इसे गरीबी क्यों कहा जाता है?, गरीबी संक्षिप्त उत्तर क्या है?, जीरो गरीबी किस देश में है?, गरीबी क्यों महत्वपूर्ण है?, गरीबी कितनी गंभीर है?, गरीबी के दो मुख्य प्रकार कौन से हैं? आदि के बारे में पढ़ेंगे।

NCERT Solutions Class 9th Social Science अर्थशास्त्र (Economics) Chapter – 3 निर्धनता : एक चुनौती (Poverty As A Challenge)

Chapter – 3

निर्धनता : एक चुनौती

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1. भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर –
निर्धनता को मापने के लिए आय या उपभोग स्तरों पर आधारित एक सामान्य पद्धति का प्रयोग किया जाता है। भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं आदि को मुख्य माना जाता है। इन भौतिक मात्राओं को रुपयों में उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है। निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित हैं। खाद्य वस्तुएँ जैसे अनाज, दालें, आदि मिलकर इस आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करती है।

भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग अधिक शारीरिक कार्य करते हैं, अतः ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी आवश्यकता शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक मानी गई है। अनाज आदि रूप में इन कैलोरी आवश्यकताओं को खरीदने के लिए प्रति व्यक्ति मौद्रिक व्यय को, कीमतों में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए समय-समय पर संशोधित किया जाता है। इन परिकल्पनाओं के आधार पर वर्ष 2000 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में 328 रुपये प्रतिमाह और शहरी क्षेत्रों में 454 रुपये प्रतिमाह किया गया था।

प्रश्न 3. भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर –
भारत में निर्धनता अनुपात में वर्ष 1973 में लगभग 55 प्रतिशत से वर्ष 1993 में 36 प्रतिशत तक महत्त्वपूर्ण गिरावट आई है। वर्ष 2000 में निर्धनता रेखा के नीचे के निर्धनों का अनुपात और भी गिर कर 26 प्रतिशत पर आ गया। यदि यही प्रवृत्ति रही तो अगले कुछ वर्षों में निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों की संख्या 20 प्रतिशत से भी नीचे आ जाएगी।

यद्यपि निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत पूर्व के दो दशकों 1973-93 में गिरा है, निर्धन लोगों की संख्या 32 करोड़ के लंगभग काफी समय तक स्थिर रही। नवीनतम अनुमान; निर्धनों की संख्या में लगभग 26 करोड़ की कमी उल्लेखनीय गिरावट का संकेत देते हैं।

प्रश्न 4. भारत में निर्धनता में अंतर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर –
भारत में निर्धनता के कारण अग्रलिखित हैं-

(क) औपनिवेशिक सरकार की नीतियों ने पारंपरिक हस्त-शिल्पकारी को नष्ट कर दिया और वस्त्र जैसे उद्योगों के विकास को हतोत्साहित किया।   विकास की धीमी दर 1980 के दशक तक जारी रही। इसके परिणामस्वरूप रोजगार के अवसर घटे और आय की वृद्धि दर गिरी।

(ख) भारतीय सरकार दो बातों में असफल रही आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन और जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण जो निर्धनता चक्र को स्थिर कर सकते  हैं।

(ग) सिंचाई और हरित क्रांति के प्रसार से कृषि क्षेत्र में रोजगार के अनेक अवसर सृजित हुए। लेकि इनका प्रभाव भारत के कुछ भागों तक ही सीमित  रहा। सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों ने कुछ रोजगार उपलब्ध कराए। लेकिन ये रोजगार तलाश करने वाले सभी लोगों के लिए पर्याप्त नहीं हो सके। शहरों में उपयुक्त नौकरी पाने में असफल अनेक लोग रिक्शा चालक, विक्रेता, गृह निर्माण श्रमिक, घरेलू नौकर आदि के रूप में कार्य करने लगे। अनियमित और कम आय के कारण ये लोग महँगे मकानों में नहीं रह सकते थे। वे शहरों से बाहर झुग्गियों में रहने लगे। विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक तत्व जैसे-जाति, लिंग भेद और सामाजिक अपवर्जन जो मानव निर्धनता को बढाते हैं।

(घ) छोटे किसानों को बीज, उर्वरक, कीटनाशकों जैसे कृषि आगतों की खरीदारी के लिए धनराशि की जरूरत होती है। चूंकि निर्धन कठिनाई से ही  कोई बचत कर पाते हैं, वे इनके लिए कर्ज लेते हैं। निर्धनता के चलते पुनः भुगतान करने में असमर्थता के कारण वे ऋणग्रस्त हो जाते हैं। अतः अत्यधिक ऋणग्रस्तता निर्धनता का कारण और परिणाम दोनों हैं।

(ङ) आय असमानता भारत में निर्धनता का मुख्य कारण हैं। इसका मुख्य कारण भूमि और अन्य संसाधनों का असमान वितरण हैं।

प्रश्न 5. उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं।
उत्तर –
जो सामाजिक समूह निर्धनता के प्रति सर्वाधिक असुरक्षित हैं, वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवार हैं। इस प्रकार, आर्थिक समूहों में सर्वाधिक असुरक्षित समूह, ग्रामीण कृषक श्रमिक परिवार और नगरीय अनियत मजदूर परिवार हैं। इसके अतिरिक्त महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चियों को अति निर्धन माना जाता है क्योंकि उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से वंचित रखा जाता है।

प्रश्न 6. भारत में अंर्तराज्यीय निर्धनता में विभिन्नता के कारण बताइए।
उत्तर –
प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। यद्यपि 1970 के दशक के प्रारंभ से राज्य स्तरीय निर्धनता में सुदीर्घकालिक कमी हुई है, निर्धनता कम करने में सफलता की दर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निधर्नता अनपात राष्ट्रीय औसत से कम है। दूसरी ओर, निर्धनता अब भी उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश में एक गंभीर समस्या है। उड़ीसा और बिहार क्रमशः 47 और 43 प्रतिशत निर्धनता औसत के साथ दो सर्वाधिक निर्धन राज्य बने हुए हैं।

इन राज्यों में ग्रामीण और शहरी दोनों प्रकार की निर्धनता का औसत अधिक है। उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में ग्रामीण निर्धनता के साथ नगरीय निर्धनता भी अधिक है। इसकी तुलना में केरल, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिम बंगाल में निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है। अनाज का सार्वजनिक वितरण, मानव संसाधन विकास पर अधिक ध्यान, अधिक कृषि विकास, भूमि सुधार उपायों से इन राज्यों में निर्धनता कम करने में सहायता मिली है।

प्रश्न 7. वैश्विक निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें।
उत्तर –
विकासशील देशों में अत्यंत आर्थिक निर्धनता में रहने वाले लोगों; विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन 1 डॉलर से कम पर जीवन निर्वाह करना; का अनुपात 1990 के 28 प्रतिशत से गिर कर 2001 में 21 प्रतिशत हो गया है। यद्यपि 1980 से वैश्विक निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आई है, लेकिन इसमें वृहत क्षेत्रीय भिन्नताएँ पाई जाती हैं। तीव्र आर्थिक प्रगति और मानव संसाधन विकास में वृहत निवेश के कारण चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में निर्धनता में विशेष कमी आई है। चीन में निर्धनों की संख्या 1981 के 60.6 करोड़ से घट कर 2001 में 21.2 करोड़ हो गई है।

दक्षिण एशिया के देशों (भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, बांग्ला देश, भूटान) में निर्धनों की संख्या में गिरावट इतनी तीव्र नहीं है। जबकि लैटिन अमेरिका में निर्धनता का अनुपात पहले जैसा ही है, सब-सहारा अफ्रीका में निर्धनता वास्तव में 1981 के 41 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 46 प्रतिशत हो गई है। विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार नाइजीरिया, बांग्ला देश और भारत में अब भी बहुत सारे लोग प्रतिदिन 1 डॉलर से कम पर जीवन निर्वाह कर रहे है। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में भी निर्धनता पुनः व्याप्त हो गई, जहाँ पहले आधिकारिक रूप से कोई निर्धनता थी।

प्रश्न 8. निर्धनता उन्मूलन की वर्तमान सरकारी रणनीति की चर्चा करें।
उत्तर –
सरकार की वर्तमान निर्धनता-निरोधी रणनीति मोटे तौर पर दो कारकों पर आधारित है।

(क) आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहनः विकास की उच्च दर ने निर्धनता को कम करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1980 के दशक से भारत  की आर्थिक संवृद्धिदर विश्व में सबसे अधिक रही। संवृद्धि दर 1970 के दशक के करीब 3.5 प्रतिशत के औसत से बढ़कर 1980 और 1990 के दशक । में 6 प्रतिशत के करीब पहुँच गई। इसलिए यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आर्थिक संवृद्धि और निर्धनता उन्मूलन के बीच एक घनिष्ठ संबंध है। आर्थिक संवृद्धि अवसरों को व्यापक बना देती है और मानव विकास में निवेश के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराती है।

(ख) लक्षित निर्धनता-निरोधी कार्यक्रमः सरकार ने निर्धनता को समाप्त करने के लिए कई निर्धनता–निरोधी कार्यक्रम चलाए। जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण  रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एन.आर. ई.जी.ए.), प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पी.एम.आर.वाई.), ग्रामीण रोजगार सृजन, स्वर्ण जयंती  ग्राम स्वरोजगार योजना (एस.जी.एस.वाई.), प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (पी.एम.जी.वाई.), अंत्योदय अन्न योजना (ए.ए.वाई.), राष्ट्रीय काम के  बदले अनाज।

प्रश्न 9. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दें-

(क) मानव निर्धनता से आप क्या समझते हैं?
(ख) निर्धनों में भी सबसे निर्धन कौन हैं?
(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर –

(क) ‘मानव निर्धनता की अवधारणा केवल आय की कमी तक सीमित नहीं है। इसका अर्थ है किसी व्यक्ति को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक  अवसरों का ‘उचित स्तर न मिलना। अनपढ़ता, रोजगार के अवसर में कमी, स्वास्थ्य सेवा की सुविधाओं और सफाई व्यवस्था में कृमी, जाति, लिंग भेद आदि मानव निर्धनता के कारक हैं।

(ख) महिलाओं, वृद्ध लोगों और बच्चों को अति निर्धन माना जाता है क्योंकि उन्हें सुव्यवस्थित ढंग से परिवार के उपलब्ध संसाधनों तक पहुँच से   वंचित रखा जाता है।

(ग) राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एन.आर.ई.जी.ए.) की विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-

• राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एन.आर.ई.जी.ए.) को सितंबर 2005 में पारित किया गया।

• प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन के सुनिश्चित रोजगार का प्रावधान करता है।

• प्रारंभ में यह विधेयक प्रत्येक वर्ष देश के 200 जिलों में और बाद में इस योजना का विस्तार 600 जिलों में किया गया।

• प्रस्तावित रोजगारों का एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए आरक्षित है।

• केंद्र सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी। इसी तरह राज्य सरकारें भी योजना के कार्यान्वयन के लिए राज्य रोजगार गारंटी कोष की स्थापना करेंगी। कार्यक्रम के अंतर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दैनिक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा।

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