NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 8 लौहतुला
Textbook | NCERT |
Class | 9th |
Subject | (संस्कृत) |
Chapter | 8th |
Chapter Name | लौहतुला |
Category | Class 9th संस्कृत |
Medium | Sanskrit |
Source | Last Doubt |
NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 8 लौहतुला
?Chapter – 8?
✍ लौहतुला ✍
? प्रश्न उत्तर ?
अभ्यासः
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 1 प्रश्न 1. अधोलिखतानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत भाषा लिखत – (क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत्? (ख) स्वतुला याचमान जीर्णधनं श्रेष्ठी कि अकथयत्? (ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वार कया आच्छद्य गृहमागतः। (घ) स्नानान्तर पुत्र विषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिन किम् उवाच? (ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधन श्रेष्ठिनौ कथं सन्तोषितौ? |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 2 प्रश्न 2. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणकुरुत – (क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन व्यचिन्तयत्। (ख) श्रेष्ठिन: शिशु स्नानोपकरणमदाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। (ग) श्रेष्ठी उच्चस्वरेण उवाच- भो: अब्रह्ममण्यम् अब्रह्ममण्यम्। (घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिश-प्रदानेन सन्तोषितौ। |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 3 प्रश्न 3. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपुर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तम् पूरयत – (क) यत्र देशे अथवा स्थाने ……… भोगः भुक्ता …………… विभवहीनः यः ……………. स पुरुषाधमः। |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 4 प्रश्न 4. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र – (क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति (ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति (ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 5 प्रश्न 5. सन्धिना सन्धिविच्छेद वा रिक्तस्थनानि पूरयत – (क) श्रेष्ठ्याह = ……………….. + आह |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 6 प्रश्न 6. समस्तपदं विग्रह वा लिखत – विग्रहः – समस्तपदम् |
NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 8) Question. 7 प्रश्न 7. यथापेक्षम् अधोलिखितानां शब्दानां सहायता “लौहतुला” इति कथायाः सारांश संस्कृतभाषया लिखत – वणिक्पुत्रः – स्नानार्थम् परं अहं स्नानार्थ नदी तट गन्तुं इच्छामि अतः त्वं स्वपुत्रं मया सह प्रेषय। तेन पेषितः। तत्र पुत्रं एकस्यां गिरिगुहायांनिक्षिप्य द्वारं शिलया आच्छाद्य गृह प्रत्यागतः। तेन पुत्रविषये पृष्टे सति स उवाच-“भो:! तव पुत्रः श्येनेन अपहृतः”। श्रेष्ठी उच्चस्वरेण आह-भोः! असत्यवादिन्! श्येनोऽपि क्वचित् बालं हर्त शक्नोति? अर्पय में बालम्। एवं विवदमानौ तौ राजकुलं गत्वा निवेदितवतौ। धर्माधि कारिणः सर्व वृत्तान्तं ज्ञात्वा तौ संबोध्य परस्परं तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ। |
व्याकरणात्मकः बोधः 1. पदपरिचयः-(क) अधिष्ठाने – ‘अधि स्था’ से निष्पन्न शब्द अधिष्ठान, सप्तमी विभक्ति, एकवचन बस्ती में। व्यचिन्तयत् – वि + चिन्त, लङ्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (सोचा) |
2. प्रकृति प्रत्यय विभागः भुक्ताः – भुज् + क्तः, बहुवचन संधि परिचयः वि + अचिन्तयत् = व्यचिन्तयत् (यण् सन्धिः) यणसन्धिः – जब (इ, उ, ऋ) कार के सामने इनसे (भिन्न)स्वर आ जाए तोइ के स्थान पर यकार, 3 के स्थान पर वकार तथा ‘ऋ’ के स्थान पर कार हो जाता है। जैसे- उपर्युक्त उदाहरणों में देखा गया है। जैसे – गन्तुम् + इच्छन् = गन्तुमिच्छन् सन्धि व संयोग में भेद – दो अत्यन्त समीपवर्ती वर्गों के मेल से होने वाले परिवर्तन (विकार) को सन्धि कहा कहा जाता है। परन्तु उन्हीं दो निकटवर्ती वणों में सामीप्यतावश मेल तो होता है परन्तु कोई विकार नहीं होता तो वह मेल सन्धि नहीं संयोग (वणों का संयोग) कहलाता है। संयोग में पूर्ववर्ती हलन्त (व्यन्जन वर्ण)में उत्तरवर्ती स्वर आ मिलता है, कोई परिवर्तन नहीं होता। जैसे उपर्युक्त उदाहरणों में देखा गया है। |
Class 9 Sanskrit Shemushi Chapter 8 लौहतुला Summary Translation in Hindi
आसीत्………….. व्यचिन्तयत्। सरलार्थ – किसी सथान पर जीर्णधन नामक कोई व्यापारी था। (व्यापार में) धनकी हानि होने के कारण प्रदेश (अन्य स्थान पर) जाने की इच्छा से उसने सोचा – स श्रेष्ठी …………………….. सार्धम्” इति। सीलार्थ – वह सेठ अपने पुत्र से बोला – “पुत्र! ये तुम्हारे चाचा हैं जो स्नान हेतु(नदी पर) जा रहे हैं ,अत: तुम इनके साथ चले जाओं”। अथासौ …………………. गृहमागतः। सालार्थ – इसके बाद वह बणिये का पुत्र स्नानोचित सामान्य लेकर प्रसन्न मन हुआ उस अतिथि (व्यापारी) के साथ चला गया। वैसा हो जाने पर वह व्यापारी स्नान करके उस बालक को पर्वत की एक गुफा में छिपाकर और उसके द्वारा को एक बड़ी शिला से ढककर शीघ्र घर आ गया। पष्टश्च तेन…………….निवेदष्यिामि। सलारर्थ – उस वणिक् ने पूछा – “अर! अतिथि। बताओं मेरा वह पुत्र कहां है जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था?” वह बोला – उसे नदी के किनारे से एक बाज उठा ले गया। सेठ बोला अरे झूठे। क्या कहीं बाज भी बालक को उठाकर ले जा सकता है? तो तुम मेरे पुत्र को मुझे सोप दो नहीं तो मैं राजदरबार में तुम्हारी शिकायत करूँगा स आह ………………………..अपहृतः! इति। सरलार्थ – वह(वणिक्) बोला – “अरे! सत्यवादी! जैसे एक बाज बच्चे को नहीं ले जो सकता, वैसे ही चूहं भी लोहे की बनी तराजू को नहीं खा सकते। इसलिए यदि तुम्हें अपना बालक चाहिए तो मुझे मेरी तराजू सौंप दो”। अथ धमीधिकारिण …………………………समों भवति? सरलार्थ – तब न्यायाधीशों ने उससे कहा – “अरे! वणिका! सेठ का पुत्र दे दो”। वह बोला – मैं क्या करता? मेरे देखते – देखते, बालक को दी के तट से बाज उठा ले गया। यह सुनकर उन (न्यायाधीशों) ने कहा – अर! आपके द्वारा कहा गया सच नहीं है – क्या कभी बाज भी बच्चे का अपहरण कर सकता है? स आह……………. मद् वचः सरलार्थ – उसने कहा – हे आदरणीयो! मेरी बात सुनें तुला लौहसहस्वस्य यत्र खादन्ति मूषकाः। प्रसंग – उपरोक्त श्लोक हमारी पाठ्य – पुस्तक “शेषुमी – प्रथम भागः” के “लौह तुला” नामक पाठ से अवतरित है जो विष्णु शर्मा रचित लोक प्रसिद्ध ग्रन्थ “पञ्चतन्त्रम्” से संग्रहीत है। जब वणिक् द्वारा धरोहर रखी तुला को संठ लोभवश देने से इन्कार कर देता है, कहता है – उसे तो चूह खा गए, तब वणिक् ने स्नान के बहाने उसके बच्चे को पर्वत् गुफा में छुपाकर घर आकर एसे उठा ले गया। यही बात जब उसने न्यायालय में कही तो उन सभी ने कहा कि “आप सत्य नहीं कह रहै” तब वह वणिक् कहता है सरलार्थ – जहाँ एक टन (1000 कि, ग्रा.) की लौह तुला को चहे ख सकते हैं, हे राजन्! वहां पर बाज जी बालक को उठा सकता अर्थात् उपहरण कर सकता हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं होना चाहिए। ते प्राचु: ………………सन्तोषितौ । सरलार्थ – उन्होंने कहा (पूछा) वह कैसे? तब उस सेठ (वणिक् पुत्र) ने धर्माधिकारियों के आगे शुरू से लेकर (अन्य तक) सारा वृत्तान्त सुनाया। तब उन (ध माधिकारियों) ने हँसते हुए उन दोनों को आपस में समझा – बुझा कर, परस्पर तुला व बालक का विनिमय कराकर सन्तुष्ट कर दिया। |
NCERT Solutions for Class 9 संस्कृत सभी अध्याय प्रश्न उत्तर