NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 7 प्रत्यभिज्ञानम् प्रश्न उत्तर

NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 7 प्रत्यभिज्ञानम्

TextbookNCERT
Class9th
Subject(संस्कृत) 
Chapter7th
Chapter Nameप्रत्यभिज्ञानम्
CategoryClass 9th संस्कृत
MediumSanskrit
SourceLast Doubt

NCERT Solutions for Class 9th Sanskrit Shemushi Chapter – 7 प्रत्यभिज्ञानम्

?Chapter – 7?

✍ प्रत्यभिज्ञानम् ✍

?प्रश्न उत्तर?

अभ्यासः

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 1

प्रश्न 1. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषय लिखत –

(क) भटः कस्य ग्रहणम् अकरोत्?
?‍♂️उत्तर: भटः अभिमन्यो ग्रहणं तरोत।

(ख )अभिमन्युः कथं गृहीतः आसीत्?
?‍♂️उत्तर: अभिमन्युः अशस्त्रेण भीमेन बाहुभ्या गृहीतः आसीत्।

(ग) भीमसेनेन बृहन्नलया च पृष्टः अभिमन्युःकिमर्थम् उत्तर न दााति?
?‍♂️उत्तर: एव वाक्य शौण्डीर्यम्। किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः।

(घ) अभिमन्युः स्वग्रहणे किमर्थम् वञ्चितः इव अनुभवति?
?‍♂️उत्तर: यतः भीमं निश्शस्त्र अवलोक्य सः प्रहारं नाकरोत् अतः सः ग्रहणं आगतः वञ्चित इव अनुभवति।

(ङ) कस्मात् कारणात् अभिमन्युः गोग्रहणं सुखांत मन्यते?
?‍♂️उत्तर: यतः गोग्रहणकारणाज्जाते युद्धे सः बन्दी भूतः विराटनगरे च पितृत् पश्यति।

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 2

प्रश्न 2. अधोलिखितवाक्येषु प्रकटितभावं चिनुत –

(क) भोः को न खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि। (विस्मयः, भयम, जिज्ञासा)
?‍♂️उत्तर: विस्मयः।

(ख) कथं कथं! अभिमन्यु माहम्। (आत्मप्रशंसा, स्वाभिमानः, दैन्यम)
?‍♂️उत्तर: स्वाभिमानः।

(ग) कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथां पृच्छसे? (लज्जा, क्रोधः, शौर्यम्, उत्साहः)
?‍♂️उत्तर: क्रोधः।

(घ) धनुस्तु दुर्बलैः एव गृह्यते मम तु भुजौ एव प्रहरणम्( अन्धविश्वासः, शौर्यम्, उत्साहः)
?‍♂️उत्तर: उत्साहः

(ङ) बाहुभ्यामहृत भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यत। (आत्मविश्वासः, निराशा, वाक्यसंयमः)
?‍♂️उत्तर: आत्मविश्वासः।

(च) दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दर्शिताः। (क्षमा, हर्षः, धैर्यम्)
?‍♂️उत्तर: हर्षः।

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 3

प्रश्न 3. यथास्थानं रिक्तस्थानपूर्ति कुरुत –

(क) खलु + एषः = ………………
(ख) बल + ………….. + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) अवभाति + …….. = विभात्युमावेषम्
(घ) ………….. + एनम् = वाचालयानम्
(ङ) रुष्यति + एप = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = …………….
(छ) यातु + ………….. = यात्विति
(ज) ………….. + इति = धनञ्जयायेति
?‍♂️उत्तर: 
(क) खलु + एषः = खल्वेषः
(ख)बल + अधिकेन + अपि = बलाधिकेनापि
(ग) अवभाति + उमावेषम् = विभात्युमावेषम्
(घ) वाचालयतु + एनम् = वाचालयत्वेनम्
(ङ) रुष्यति + एप = रुष्यत्येष
(च) त्वमेव + एनम् = त्वमैवैनम्
(छ) यातु + इति = यात्विति
(ज) धनञ्जयाय + इति = धनञ्जयायेति

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 4

प्रश्न 4. अधोलिखितानि वचनानि कः के प्रति कथयति
यथा – कः – कं प्रति
आर्य, अभिषाणकौतूहल मेंमहत् – बृहन्नला – भीमसेनम्

(क) कथमिदानों सावज्ञमिव मा हस्यते ……………. – ……………….
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् …………. – …………..
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा …………. – ……………
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम ……………. – ……………
(ङ) शातं पापम्! धनुस्तु दुर्बलैः एव गाते …………. – …………….
?‍♂️उत्तर:
(क) कथमिदानी सावमिव मा हस्यते – अभिमन्युः – भीमसेनम्
(ख) अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम् – अभिमन्युः – भीमार्जनौ
(ग) पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा – उत्तरः – राजानाम्
(घ) पुत्र! कोऽयं मध्यमो नाम – राजा – अभिमन्युम्
(ङ) शातं पापम्! धनुस्तु दुर्बलेः एव गाते – भीमसेनः – अभिमन्युम्

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 5

प्रश्न 5. अधोलिखितानि स्थूलानि सर्वनामपदानि कस्मै प्रयुक्तानि

(क) बचालयतु एनम् आर्यः।
?‍♂️उत्तर: अभिमन्येवा

(ख) किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः।
?‍♂️उत्तर: भीमसेनाय।

(ग) कथं न माम् अभिवादयसि।
?‍♂️उत्तर: राज्ञे।

(घ) मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।
?‍♂️उत्तर: भीमसेनाय।

(ङ) अपूर्व इव ते हर्षों ब्रूहि केन विसितमः?
?‍♂️उत्तर:  भटाय।

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 1

प्रश्न 6. श्लोकानाम् अपूर्णः अन्वयः अधोदत्तः। पाठमाधृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत –

(क) पार्थ पितरम् मातुलं. ………….. च उदिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य …………… युक्तः ।
(ख)कण्ठश्लिष्टेन …………… जरासन्धं योकत्रयित्वा तत् असह्य ………….. कृत्वा (भीमेन) कृष्ण: अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुध्यता …………. रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, कि . …… अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यात इति।
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः …………… बाहुभ्याम् आहृतम् (माम्) …………… बाहुभ्याम् एव नेष्यति।
?‍♂️उत्तर:
(क) पार्थ पितरम् मातुलं जनार्दनं च उद्रिश्य कृतास्त्रस्य तरुणस्य युद्धपराजयः युक्तः।
(ख)कण्ठश्लिष्टेन बाहुना जरासन्धं योक्त्रयित्वा तत् असह्य कर्म कृत्वा (भीमेन) कृष्णः अतदर्हतां नीतः।
(ग) रुध्यता भवता रमे। ते क्षेपेण न रुष्यामि, कि उक्त्वा अहं नापराद्धः, कथं (भवान्) तिष्ठति, यातु इति!
(घ) पादयोः निग्रहोचितः समुदाचारः क्रियताम् । बाहुभ्याम् आहतम् (माम्) बाहुभ्यामेव बाहुभ्याम् एव नेष्यति।

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 7

प्रश्न 7. (क) अधोलिखितेभ्यः पवेभ्यः उपसर्गान् विचित्य लिखत –


?‍♂️उत्तर:

NCERT Solutions Class 9th Sanskrit (Chapter – 7) Question. 8

प्रश्न 8. (ख) उदाहरणमनुसृत्य कोष्ठकदत्तपदेषु पञ्चमीविभक्तिं प्रयुज्य वाक्यानि पूरजत –
यथा – श्मशनाद् धनुरादाय अर्जुनः आगतः। (श्मशान)
1.पठान् पठित्वा सः ………………… आगतः। (विद्यालय)
2.…………………….. पत्राणि पतन्ति। (वृक्ष)
3.गङ्गा …………………… निर्गच्छति। (हिमालय)
4.क्षमा ………………………… फलानि आनयति। (आपणम्)
5.………….. बुद्धिनाशो भवति। (स्मृतिनाश)
?‍♂️उत्तर:
1.पठान् पठित्वा सः विद्यालय आगतः।
2.वृक्षात् पत्राणि पतन्ति।
3.गङ्गा हिमालयात् निर्गच्छति।
4.क्षमा आपणात् फलानि आनयति।
5.स्मृतिनाशद् बुद्धिनाशो भवति।व्याकरणात्मकः बोधः

1. (क) अवतारतिः अव + तु + णिच + क्तः प्रथमा विभक्ति, एकवचन। उतार लिया गया है।
अभिमन्युर्नाम? – क्या कहा-अभिमन्यु? अर्थात् नाम लेकर पुकारा गया? ‘नाम’ यहां प्रश्नात्मक भाव में भी है।
तत्रभवन्तम् – तत्रभवत् (पु.) शब्द, द्वितीया विभक्ति, एकवचन, संस्कृसत में आदरसम्मान में सामने खड़े गुरु (बड़े) को ‘अत्रभवान्’ तथा परोक्षस्थित को ‘तत्रभवान्’ शब्द से सम्बोधित किया जाता है। तत्रभवन्तम्-उन पूज्य को।
अपिकुशली देवकी पुत्र: – ‘अपि’ वाक्य के आरम्भ में प्रश्नवाचक शब्द का कार्य करता है अपना मूल अर्थ ‘भी’ छोड़कर। क्या देवकी पुत्र (श्री कृष्ण) कष्नल (ठीक-ठाक) है?
‘आ’-“शोक प्रकट” करने के अर्थ में प्रयुक्त अव्यय।

शान्त पापम् – भगवान बचाए अर्थात् पाप कर्म से। एक प्रकार का अव्यय युगल।
कोऽयं मध्यमो नाम – ‘नाम’ अव्यय यहां निश्चयार्थ में प्रयुक्त है अर! यह माध्यम कौन है?
अपवार्य – संस्कृत नाटकों में इस शब्द का प्रयोग उस बात को कहते हुए किया जाता है। जिसके मंच पर स्थित सहनायक (पात्र) को नहीं सुनाकर श्रोताओं को ही सुनाया जाता है। ऐसी बात कहते हुए वह इस दूसरे पात्र की तरफ अपने एक हाथ से पर्दा बना कर श्रोतओं की ओर मुंह करके कहता है।
जो बात सब को सुनाने के उद्देश्य से कही जाती है, उसके लिए यह शब्द प्रयुक्त होता है।

(ख) ब्रूहि – ‘बू’ धातु, लोट्लकार, मध्यम पुरुष एकवचन। (कहो)।
वाचालयतु – वच्-णिच् धातु, लोट, प्रथम पुरुष, एकवचन। (बुलवाएं आप)
अभिभाषय – अभि-भाष्+णिच्, मध्यम पुरुष, लोट, एकवचन। (बुलवाओ तुम)
आस्ते – आस् धातु, (आ.प.) लट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (स्थित है)
हन्याम् – हन् धातु, विधिलिङ्, उत्तम पुरुष, एकवचन। (मारूं. मुझे करना चाहिए)

अभिधीयताम् – अभि+धा धातु, लोट्लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन। (कहिए)
क्रियताम् – कृ (कर्मवाच्य). लोट्लकार, प्रथम पुरुष, एकचवन। (कीजिए)

2. प्रकृति प्रत्यय विभाग: –

विस्मितः – वि + स्मि + क्तः
गृहीत: – ग्रह + क्तः
गत: – गम् + क्तः
युक्तः – युज् + क्तः
स्मरन् – स्मृ + शत्
वञ्चयित्वा – बञ्च् + क्त्वा
गृहीतवान् – ग्रह क्तवतु
उत्सितवान् – उत्+सिच्+क्तः
योक्त्रयित्वा – योका+क्त्वा (णिच्) रस्सी की तरह बांधकर
उक्त्वा – वच् + क्त्वा
उपराद्ध – उप-राध क्त:
दर्शिता: – दृश (णिच) + क्तः, बहुवचन। दिखा दिए गए।

भट: – जयतु महाराजः।
सैनिक – महाराज की जय हो।
राजा – अपूर्व इव ते हर्षो केनासि विस्मितः?
राजा – पहले से जैसे प्रसन्न होकर बोल, आश्चर्यचकित क्यों हो।
भट: – अश्रद्धेयं प्रिंय प्राप्तं सौभद्रो ग्रहणं गतः। “सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु पकड़ा गया”।
राजा – कथमिदानी गृहीत?

राजा – पकड़ा गया (वह) अब कैसे कहां है?
भट: – रथमासाद्य निश्शक बाहुभ्यामवतारितः। (प्रकाशम्) इत इतः कुमारः।
सैनिक – रथ के द्वारा पहुँचाकर, बिना किसी हिचक के (उन्हें) भुजाओं से पकड़का उतसर लिया गया है। (प्रकट रूप में) इधर से कुमार। इधर से।
अभिमन्यु – भोः को नु खल्वेषः? येन भुजैकनियन्त्रितो बलाधिकेनापि न पीडितः अस्मि।
अभिमन्यु: – अरे! यह (शक्तिशाली व्यक्ति) कौन है?

जिसके द्वारा एक भुजा से पकड़ा गया, अत्यधिक बल के होते भी, मैं पीड़ा (कष्ट) नहीं पा रहा। अर्थात् उन्होंने मुझे पकड़ तो रखा है, लेकिन बिना मुझे विशेष कष्ट दिए।
बृहन्नला – इत इत; कुमारः। बृहन्नला – इधर से कुमार! इधर से…..
अभिमन्यु: – अये! अयमपरः कः विभात्युमावेषमिवाश्रितो
अभिमन्यु: – अहो! यह दूसरे कौन है। जो उमा के वेष को धारण किए शिव के समान सुशोभित है।।
बृहन्नला – आर्य, अभिभाषणकौतूहल में महत्। वाचाल – यत्वेनमायः।
बृहन्नला – पूज्य, मुझे इससे बात करने की बड़ी उत्कंठा हो रहा है, आप इस बुलवाइये तो।
भीमसेनः – (अपवार्य) बाझम् (प्रकाशम्) अभिमन्यो!
भीमसेनः – (हटाकर) ठीक है (प्रकट रूप में) हे अभिमन्यु!
अभिमन्युः – अभिमन्युर्नाम?अभिमन्यु – (क्या)? (तुमने मुझे) ‘अभिमन्यु’ नाम से पुकारा?
भीमसेनः – रुष्यत्येष मया त्वमेवैनमभिभाषय।
भीमसेन – यह मुझसे कुपित है। तुम ही (अर्जुन) इसे बुलबाओ।
बृहन्नला – अभिमन्यो! बृहन्नला – अरे! अभिमन्यु!
अभिमन्यु: – कथं कथम्। अभिमन्यु माहम्। भो:! किमत्र विराटनगरे क्षत्रियवंशोद्भूताः नीचैः अपि नामभिः अभिभाष्यन्ते अथवा अहं शत्रुवशं गतः। अतएव तिरसिक्रयते।

अभिमन्यु – कैसे, कैसा व्यवहार है इनका? (ये सभी मुझे ) मुझ अभिमन्यु को नाम से सम्बोधित कर रहे हैं। (आदर सम्मान से नहीं) अरे! क्या इस विराटनगर में क्षत्रियकुल (श्रेष्ठकुल) में जन्में वीरों को, नीच सैनिक आदि के द्वारा भी नाम लेकर बोला जाता है। अथवा (ठीक है) मैं अब शत्रु के अधीन हो गया हूँ इसीलिए ये मेरा तिरस्कार कर रह हैं।
बृहन्नला – अभिमन्यु! सुखमास्ते ते जनतो?
बृहन्नला – अरे! अभिमन्यु! तुम्हारी माता सुख में तो है अर्थात् ठीक तो है।?
अभिमन्यु: – कथं कथम्?जननी नाम? किं भवान् में पिता अथवा पितृव्यः? कथं मां पितृवदाक्रम्य स्त्रीगतां कथा पुच्छसे?

अभिमन्यु – कैसे? कैसा व्यवहार किया जा रहा है? माता के बारे में पूछा। क्या आप मेरे पिता है या चाचा है? फिर कैसे आप पिता की तरह प्रकट होकर मुझसे स्त्री (माता) के विषय में पूछताछ कर रहे हैं?
बृहनला – अभिमन्यो! अपि कुशली देवकीपुत्रः केशवपः?
बृहन्नला – हे! अभिमन्यु! देवकीपुत्रकेशव (श्रीकृष्ण) सकुशल तो हैं?

अभिमन्यु: – कथ कथम्? तत्रभवन्तमपि नाम्ना। अथ किम् अथ किम्?(उभौ परपस्परवलोकयतः)
अभिमन्यु – कैसे, कैसे (क्या) कहा? पूज्य श्री कृष्णा को भी नाम से (बिना यथोचित सम्मान के) पुकारा जा रहा है। अथवा इनसे और क्या आशा की जा सकती है? (दोनों आपस में एक – दूसरे को देखते हैं)
अभिमन्यु: – कमिदानों सावज्ञमिव मां हस्यते?
अभिमन्यु – (देखकर) कैसे अब आप निरादरपूर्वक मुझ पर हँस रह हैं?
बृहन्नला – न खलु किञ्चित्।
बृहन्नला – नहीं, ऐसा कुछ नहीं।

पार्थ पितरमुदिश्य मातुलं च जनार्दनम्।
तरुणस्य कृतास्वस्य युक्ता युद्धपराजयःसन्दर्भ – ‘शेमुषी प्रथमोभागः’ के ‘प्रत्यभिज्ञानम’ नाम पाठ से अवतरित प्रस्तुत श्लोक में छद्मवेषधारी अर्जुन, पकड़े गए अभिमन्यु के साथ हास – परिहास करते हुए उन्हें छेडते हैं।

सरलार्थ – पार्थ! (अर्जुन) तुम्हारे पिता है, जनार्दन श्री कृष्ण तुम्हारे मा। तुम युवा हो और शस्त्रविद्या में निपुण भी। अतः युद्ध में तुम्हारी पराजय उचित ही है।

भाव – अर्जुन और भीम दोनों छद्मवेष में है। अभिमन्यु उन्हें नहीं पहचानता। अर्जुन अपने पुत्र अभिमन्यु के साथ बात करने को उत्सुक है। जबकि अभिमन्यु युद्ध में मिली पराजय से खिन्न है, वह इसलिए भी खिन्न है कि विराट के यहां छोटे सैनिक भी उसे नाम लेकर पुकार रह थे। अत: वह स्वयं को अपमानित महसूस कर रहा है। जब वह बात नहीं करता तो अर्जुन उसे छेडने के लिए उपयुक्त कटुवचन (व्यायोक्ति) कहता है ताकि वह कुछ बोले और अर्जुन की अभिलाषा पूर्ण हो।

अभिमन्युः – अलं स्वच्छन्दप्रलापेन! अस्माकं कुले आत्मस्तव कर्तुमनुचितम्। रणभूमौ हतेषु शरान् पश्य, मदते अन्यत् नाम न भविष्यति।
अभिमन्यु – रहने दो यहअनर्गल प्रलाप। हमारे कुल में आत्मस्तुति करना उचित नहीं माना जाता। युद्ध – भूति में मृत पड़े बाणों को देखो, मेरे अतिरिक्त और कोई नाम नही मिलेगा।
बृहन्नला – एवं वाक्यशैण्डीर्यम्। किमर्थ तेन पदातिना गृहीतः?
बृहन्नला – अच्छा तो बाग्वीरता (दिखाई जा रही है)। क्यों तुम उस पैदल सैनिक के द्वारा ही पकड़े गए?

अभिमन्यु: – अशस्त्रं मामभिगतः। पितरम् अर्जुन स्मरन् अहं कथं हन्याम्। अशस्त्रेषु मादृशाः न प्रहरन्ति। अतः अशस्त्रोऽय मां वञ्चयित्वा गृहीतवान।
अभिमन्यु – यह (सैनिक) बिना शस्त्र के मेरे समीप आया था। अपने पिता अर्जुन (उनकी शिक्षा) को याद करते हुए मैं कैसे उसे मारता? मुझ जैसे (वीर) निश्शस्त्र पर प्रहार नहीं किया करते। अत: निश्शस्त्र इसने धोखे से (छलकर) मुझे पकड़ा है।
राजा – त्वर्यतां त्वर्यतामभिमन्युः।
राजा – शीघ्रता, शीघ्रता कीजिए। अभिमन्यु। बृहन्नला – इत इत: कुमारः। एष महाराज:। उपसर्पतु कुमारः।
बृहन्नला – कुमार इधर से, इधर से…..। ये महाराज हैं, आप इनके पास जाए।

अभिमन्यु: – आः कस्य महाराज? अभिमन्यु – ओह! किसके महाराज?
राजा – एहोहि पुत्र! कथं न मामभिवादयसि? (आत्मगतम्) अहा! उत्सिक्तः खल्वयं क्षत्रियकुमारः। अहमस्य दर्पप्रशमनं करोमि। (प्रकाशम्) अथ कनायं गृहीत:?
राजा – आओ आओ पत्र! तुम प्रणाम कैसे (क्या) नहीं कर रहे हो (केवल मन में सोचते हैं) अहो! निश्चय ही यह क्षत्र्यिवंशी बालक अत्यधिक गर्वित है। मैं इसके गर्व को दमित (शान्त) करता हूँ (प्रकट रूप में) अच्छा तो किसने पकड़ा इसको?
भीमसेनः – महाराज! मया। भीमसेन – मैंने महाराज।
अभिमन्युः – अशस्त्रेणेत्यभिधीयताम्। अभिमन्य – ‘बिना शस्त्र के आकर’ ऐसा भी बोलो ना।
भीमसेनः – शान्तं पापम्। धनुस्तु दुर्बलैः। एव गृह्यते। मम तु भुजौ एव प्रहरणम्।

भीमसेन – ईश्वर भला कर (पाप करने से बचाए) धनुष तो दुर्वलों के द्वारा ही ग्रहण किया जाता है। मेरे लिए तो मेरी दोनों भुजाएं जी शस्त्र हैं।
अभिमन्यः – मा तावद् भो: किं भवान् मध्यमः तात: य: तस्य सदृशं वचः वदति।।
अभिमन्यु – अरे! इतनी गर्वोक्ति भरी बात मत कहा। क्या आप पूज्य (पिताजी) मध्यम (भीम) हो जो उनके समान वचन बोल रहे हो।
भगवान् – पुत्र! कोऽयं मध्यमों नाम? राजा – पत्र यह भीम (मध्यम) कौन है?

अभिमन्युः
योक्वयित्वा जरासन्ध कण्ठश्लिष्टेन बाहुना।
असा कर्म तत् कृत्वा नीति:
कृष्णोऽतदर्हताम् ॥सदंर्भ – संस्कृत की पाठ्य – पुस्तक “शेमुषी प्रथमः भागः” के ‘प्रत्याभिज्ञानम्’ पाठ में सेकलित इस श्लोक में अभिमन्यु – “राजा के यह पछने पर कि भीम कौन है?” प्रत्युत्तर स्वरूप भीम द्वारा पहले किए गए जरासन्ध – वध के माध्यम से राजा को गर्वसहित भीम का परिचय देता है।

सरलार्थ – कण्ठ पर लिपटी एक भुजा रूपी रज्जु से जरासन्ध को बांधकर जो वह (प्रसिद्ध) असा कार्य, उसक साथ किया था। (जरासन्ध की देह को दे भागों में, बीच से चीर डाला था) ऐसा करके उन्होंने (भीम ने) श्रीकृष्ण से
उनकी (जरासन्ध को मारने की) पाशा नले ली थी।

भाव – जरासन्ध का श्री कृष्ण से वैर जगत्प्रसिद्ध ही है। अतः श्रीकृष्ण ने जरासन्ध को मारने की प्रतिज्ञा की हुई थी. परन्तु भीम ने जरासन्ध की देह को बीच से चीर कर उस मार दिया। अत: श्रीकृष्ण का कार्य करके उन्होंने कृष्ण से उनकी जरासन्ध को मानरे की पात्रता ले ली। ऐसे अदम्य वीर है पूज्य भीम। ऐसे उन भीम को कौन नहीं जानता। ये वचन कहकर अभिमन्यु परोक्ष रूप से राजा विराट को भी शेतावनी देना चाहता

राजा – न ते क्षेपेण रुष्यामि, रुष्यता भवता रमे।
किमुक्त्वा नापराद्धोऽहं, कथं तिष्ठति यात्विति ॥

सरलार्थ – मैं (राजा विटार) तुम्हारे व्यंग्य वचनों (तानों) से क्रोध नहीं कर रहा है अपितु आपके क्रोधित होने से मुझे प्रसन्नता हो रही है। ऐसे वैसे बोलकर मैं उनके (भीम के) प्रति अपराध नहीं कर सकता। आप खड़े क्यों हैं (चाहे तो) जा सकते हैं।
अभिमन्य: – यद्यहमनुग्राह्य:अभिमन्यु – यदि आप मुझ पर अनुग्रह करना चाहते हैं पादयों समुदाचारः क्रियतां निग्रहोचितः। बाहुण्यामाहृतं भीमः बाहुभ्यामेव नेष्यति। (ततः प्रविशत्युत्तरः)

सरलार्थ – उचित दण्ड स्वरूप पैरों में पड़कर शिष्टाचार निभाइये अन्यथा भुजाओं से पकड़कर लाया गया था। और अब तात भीम भुजाओं से पकड़कर ही ले जाएंगे (तभी उत्तर (राजकुमार उत्तर) प्रवेश करते हैं। उत्तर:तात् अभिवादये! ?‍♂️उत्तर: पिताजी! अभिवादल करते हैं।
राजा – आयुष्मान् भव पुत्र। पूजिताः कृतकर्माणो योध पुरुषाः।
राजा – पुत्र चिरञ्जीवी हुओ। पुत्र! युद्धभूमि में उचित (वीर) कर्म करने वाले योद्धाओं को सम्मानित कर दिया?
?‍♂️उत्तर: पूज्यतमस्य क्रियतां पूजा

?‍♂️उत्तर: (पिताजी)! पूजा (सम्मान) के अत्यन्त योग्य की पूजा की जाए।
राजा – पुत्र! कस्मै?
राजा – पुत्र! किसकी पूजा?
?‍♂️उत्तर:  इहात्रभवते धनञ्जयाय।
?‍♂️उत्तर:  सही उपस्थित पूज्य धनञ्जय (अर्जुन)की।
राजा – कथं धनञ्जयायेति?
राजा – कैसे? धनञ्जय की पूजा, कैसे?
?‍♂️उत्तर: अथ किम् उत्तर – और क्या?…..

श्मशानाद्धनुरादाय तुणीराक्षयसायके।
नृपा भीष्यादये भग्ना वंय च परिरक्षिताः। सरलार्थ – जिसने श्मशान भूमि में (पहले से छुपाए) ध नुष, तरकश तथा अक्षय बाणों को लगकर भीष्म आदि कुरु राजाओं को खदेड़ा तथा हमारी सबपकार से रक्षा की। (उस ध नञ्जय अर्जुन को पूजित किया जाए)
राजा – एवमेतत्। राजा – अच्छा, तो इस प्रकार से है।
?‍♂️उत्तर: व्यपनयतु भवाञ्छङ्काम्। अयतेव अस्ति धनुर्धरः धनञ्जयः।
?‍♂️उत्तर:  आपकी शङ्का दूर हो। यही है (श्रेष्ठ) धनुर्धरः धनञ्जयः।
बृहन्नला – यांह अर्जुनः तर्हि अयं भीमसेनः अयं च राजा युधिष्ठिरः।
बृहन्नला – यदि मैं अर्जुन हूं तो ये भीम है और ये राजा युधिष्ठिर।

अभिमन्युः – इहात्रभवन्तोमें पितरः। तेन खलु….
अभिमन्यु – मेरे पूज्य पितृजन यहीं पर है?

न रुष्यन्ति मया क्षिप्ता इसन्तश्च क्षिपन्ति माम्।
दिष्ट्या गोग्रहणं स्वन्तं पितरो येन दशिताः।।

(इति क्रमेण सर्वान् प्रणमति, सर्वे च तम् आलिङ्गन्ति)
सरलार्थ – (तभी तो) मेरे, निन्दा करने पर भी ये कुपित नहीं हो रहे थे और हुए मेरा परिहास कर रह थे। भाग्य से ‘गो – अपहरण’ सुखान्त ही रहा जिसने पितृजनों से मिला दिया।
(और क्रमश: सभी का यथायोग्य प्रणाम करता है तथा सभी उसे गले लगाते आलिङ्गन करते है।)

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